
भारतीय संस्कृति के अनुसार वर्ष का प्रारम्भ चैत्र शुक्ल से होता है। यह सृष्टि के आरम्भ का दिन भी है। यह वैज्ञानिक तथा शास्त्रशुद्ध गणना है। इसकी काल गणना बड़ी प्रचीन है। सृष्टि के प्रारम्भ से अब तक 1 अरब, 95 करोड़, 58 लाख, 85 हजार, 106 वर्ष बीत चुके है। यह गणना ज्योतिष विज्ञान के द्वारा निर्मित है। आधुनिक वैज्ञानिक भी सृष्टि की उत्पत्ति का समय एक अरब वर्ष से अधिक बता रहे है। अपने देश में कई प्रकार की कालगणनाकी जाती है- युगाब्द(कलियुग का प्रारम्भ), श्री कृष्ण संवत्, शक संवत् आदि है।

चन्द्रमा की गति के साथ अपनी कालगणना क्यों जुड़ी? भोला भाला ग्रामीण भी चन्द्रमा की गति से परिचित है। वह जानता है कि आज पूर्णिमा है या द्वितीया। इस प्रकार काल गणना हिन्दू जीवन के रोम-रोम एवं भारत के कण-कण से अत्यन्त गहराई से जुड़ी है। ठिठुरती ठंड मे पड़ने वाला ईसाई नववर्ष पहली जनवरी से भारतवंशियों का कोई सम्बन्ध नही है।


प्रतिपदा हमारे लिये क्यों महत्वपूर्ण है, इसके पौराणिक सामाजिक एवं ऐतिहासिक सन्दर्भ निम्न है-
- मर्यादा पुरूषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक।
- मॉं दुर्गा की उपासना की नवरात्र व्रत का प्रारम्भ
- युगाब्द(युधिष्ठिर संवत्) का आरम्भ
- उज्जयिनी सम्राट- विक्रामादित्य द्वारा विक्रमी संवत् प्रारम्भ
- शालिवाहन शक् संवत् ( भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचाग)
- महर्षि दयानंद द्वारा आर्य समाज की स्थापना
- संघ के संस्थापक केशव बलिराम हेडगेवार का जन्म दिन।
- महान सम्राट विक्रमादित्य के संवत्सर का यहीं से आरंभ माना जाता है।
- ईरान में 'नौरोज' का आरंभ भी इसी दिन से होता है, जो संवत्सरारंभ का पर्याय है।
- 'शक्ति संप्रदाय' के अनुसार इसी दिन से नवरात्रि का शुभारंभ होता है।
- सतयुग का आरंभ भी इसी दिन से हुआ
- ब्रह्म पुराण में ऐसे संकेत मिलते हैं कि इसी तिथि को ब्रह्माजी ने सृष्टि की रचना की थी। इसका उल्लेख अथर्ववेद तथा शतपथ ब्राह्मण में भी मिलता है।
- सृष्टि के संचालन का दायित्व इसी दिन से सारे देवताओं ने संभाल लिया था।
- 'स्मृत कौस्तुभ' के मतानुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को रेवती नक्षत्र के 'विष्कुंभ योग' में भगवान श्री विष्णु ने मत्स्यावतार लिया था।

सामान्यतः सभी धर्मो और पंथों में , मानव आचरण के दो
पहलू सामनें आते हैं , वे हैं अच्छाई और बुराई ...! इनके पक्ष में चलने
वाले क्रमशः अच्छे और बुरे लोग माने जाते हैं। जो कुछ ३१ दिसम्बर की
रात और १ जनवरी के प्रारंभ को लेकर यूरोप - अमेरिका और ईसाई समुदाय सहित
अन्य लोग देख देखी करते हैं वह अच्छाई तो नहीं है !!! यथा शराब पीना ,
अश्लील नाचगाना , सामान्य मर्यादाओं को तिलांजली देना ! होटल , रेस्तरां
और पब में जा कर मौज मजे के नाम पर जो कुछ होता है !! वह न तो सभ्यता का
हिस्सा है और न ही उसे अच्छा होने का सर्टिफिकेट दिया जा सकता है। इसलिए
सभ्यातानुकूल यह नया साल नहीं है इसमें सृष्टि जानी या नक्षत्रिय सरोकार भी
नहीं है। बल्की यह सामान्यतः दिन - प्रतिदिन के क्रिया कलापों को
व्यवस्थित करने की प्रक्रिया में निर्मित सत्रारंभ है। इसकी तुलना कभी भी
भारतीय नववर्ष से नहीं की जा सकती , क्यों कि वह ईश्वरीय है, सृष्टिजन्य
है, नक्षत्रिय है इसी कारण सम्पूर्ण हिन्दू समाज में सभी धार्मिक आयोजन
, कार्यशुभारंभ महूर्त, मानव जीवन से सम्बद्ध मांगलिक कार्यों को आज भी
बड़ी निष्ठा से इन्ही आधार पर आयोजित किया जाता ।

आप सभी को भारतीय नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाऐं।
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8 comments:
इस बारे में विस्तारपूर्वक अवगत कराने के लिए धन्यवाद। इसी तरह की जानकारी देते रहिए।
नुतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनाये !
आपका भी नवसंवत्सर मंगलमय हो!
शुभकामनाएं.
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
नव वर्ष की हार्दिक शुभ कामनाएं
प्रमेन्द्र जी अच्छी जानकारी दी है आपने। मेरी और से भी आपको नववर्ष की शुभकामनाएँ।
नववर्ष की बहुत बहुत शुभकामनाएं प्रमेन्द्र जी, इतनी अच्छी जानकारी देने के लिए बधाई।
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