नमस्ते




मुझे हिन्‍दी ब्‍लॉग में आये धीरे-धीरे एक साल होने को है, 30 जून को इस नव संसार में कदम रखा था। तब मुझे नहीं पता था कि ब्लॉग क्या होता है? पर चिठ्ठारिता की माया भी कितनी अजीब है कि आज इसमें मुझे रमा बसा दिया है। किन्तु आज मुझे न चाहते हुये भी इससे दूर होना पड़ रहा है, किंतु दूर होना मेरी जरूरत और मजबूरी दोनों है। जरूरी इसलिए है कि मेरी माता जी का विशेष आग्रह है कि मै इससे एक महीने दूर रहूँ और मजबूरी इस लिये है कि मेरी परीक्षाऐं सन्निकट है, निश्चित रूप से उनका आग्रह मेरी पढ़ाई को लेकर ही है, जो सर्वथा उचित है। मैने आग्रह शब्द का प्रयोग इसलिए किया था क्योंकि उन्होंने आग्रह ही किया था किन्तु मेरी लिऐ उनकी हर बात आदेश के समान है। निश्चित रूप से उनका यह आदेश के लिये एक विषय था यह से हटने का जिसकी मै काफी दिनों से तलाश कर रहा था।


मेरी परीक्षाऐं 22 और 24 जून को है, उसके बाद मै सम्‍भवत: गॉंव के लिये रवाना हो जाऊँगा, और वही बाकी छुट्टियाँ बिताएँगे। कोशिश करूँगा कि जब लौटूँ तो पूरे जोशो खरोश के साथ आपके सम्मुख आऊँ। और न आ सकूँगा तो माफ कीजिएगा। क्योंकि इस समय ब्‍लागिंग का माहौल इतना खराब हो गया है कि वापसी करूँ या न करूँ काफी सोचना विचारना पड़ रहा है। हर समय एक जैसा नही होता है जैसा माहौल जब मै आया था तब जैसा आज नही है। मुझे याद है कि पहले मुझे किसी ब्‍लागर की तरफ से पहला मेल किस प्रकार का मिला था, वह पा कर भी मै खुश था। किन्‍तु आज जो माहौल है इसमें खड़े होने का भी मन नही करता कि लोग मुद्दों पर न रह कर व्यक्तिगत आक्षेपों पर आ जाते है।


ब्लॉगिंग मेरे जीवन का अभिन्न अंग है, इसे छोड़ना मेरे लिये अपने शरीर के महत्वपूर्ण अंग को काटने के समान होगा। पर करना जरूरी है क्योंकि जब शरीर के किसी अंग में सड़न हो जाए तो उस हिस्से को काट देना ही उचित होगा। निश्चित रूप से कुछ ब्‍लागर मुझे बहुत याद आयेंगे जैसे समीर लाल जी, प्रतीक जी, गिरिराज जी, अरुण जी, अफलातून जी सहित बहुत ब्‍लागर याद आयेंगे याद आयेगें। मैने जिनका नाम लिया है उसने मेरा सबसे ज्यादा लगाव रहा है।

समीर जी

यह वही व्यक्तित्व है जो मुझे हर दम, हर पल मेरे साथ रहे है। जब भी मै कोई दिक्कत या व्यक्तिगत परेशानी में होता था तो वह भारतीय समय के अनुसार प्रातः 7 बजे उपलब्‍ध रहते थे। मै दिल खोल कर हर प्रकार की बातें कर दिया करता था। शायद ही मैने ब्‍लागिंग में जो किया उसे उनसे छिपाया हो। काफी दिनों पर मै जब उनसे संपर्क नही करता था तो उनके तरफ से एक मेल आ जाती थी, कैसे हो ? कोई दिक्कत परेशानी? मुझसे नाराजगी है क्‍या ? किन्तु अब उनसे भी दूरी प्रतीत होने लगी है पिछले कई महीनों से उनसे संपर्क नही हुआ, शायद चिट्ठाकारिता मे नये बयार का असर है।


प्रतीक जी

मेरी उम्र का एक सुन्‍दर नौजवान, विभिन्न मुद्दों पर बेबाक राय रखने वाला, इससे भी बाते करके मन को काफी सुकून मिलता था। मेरी कोई भी बात इनसे गोपनीय नही रही।


गिरि‍राज जी

अपने आप मे एक मस्‍त मौला इंसान, हमेशा हँस मुख स्‍वभाव का।


सागर भाई जी

सबसे अलग सबसे जुदा, मुझे डांटने वाले और अपना हक जताने वाले

अफलातून जी

मेरा इनसे परिचय विवाद से ही हुआ था और मैने अपने लेख में काफी कुछ कह दिया था किन्तु बाद में जब चैट के दौरान बात हुई तो मै इसने काफी प्रभावित हुआ। भले ही हमारे विचारों मे मतभेद रहा है किन्तु मनभेद नही हुआ। काफी कुछ सीखने को मिला। दिल सें बात निकलती है कि इंसान हो तो ऐसा।


अरुण अरोड़ा

पंगेबाज के रूप में अरुण जी निश्चित रूप से एक अच्छे इंसान है, पहली बार मेरा परिवार अथवा मित्रों के अलावा किसी नें मुझ पर सर्वाधिक विश्वास किया है, अपनी हर बात मुझसे शेयर की, मुझे अपने सगे छोटे भाई से भी ज्‍यादा प्‍यार दिया, हमेशा मुझे स्नेह देते हुए अपने अमूल्य सुझाव दिये और लिये भी।


यह वे व्‍यक्ति है जिसे मैने सर्वाधिक चैट वार्ता की है, चैट करने वालों मे एक नाम शैलेश जी का भी है पर वह सबसे अलग है। चूकिं मुझे चैटिंग करना कभी भी पसंद नही रहा है। किन्तु जितनों से मैंने बाते की सही में एक नये परिवार का एहसास कराया। अच्छा नमस्ते 




Share:

रोलाँ गैरो - दिग्गजो को नहीं रास आती ये लाल मिट्टी



 
28 मई से 10 जून तक होने वाला साल का दूसरा टेनिस ग्रैंड स्लैम टूर्नामेंट फ्रेंच ओपन (रोलैंड गारोस) लाल मिट्टी पर खेला जाने वाला विश्व का एकमात्र टूर्नामेंट है। यह टूर्नामेन्‍ट इस लिये भी प्रसिद्ध यह कई विश्व प्रसिद्ध नम्बर एक खिलाड़ियों को यह लाल मिट्टी रास नही आई है। विश्व मे सर्वाधिक 14 गैन्‍डस्‍लैम जीतने का रिकॉर्ड अपने नाम करने वाले पीट सैम्‍प्रास, उनके रिकार्ड को तोड़ने मे प्रयासरत लगातार 173 सप्ताह तक नंबर 1 रहने का रिकार्ड बनाने वाले रोजर फेडरर, 8 गैन्‍डस्‍लैम धारी जि‍मी कॉ‍नार्स, 7 ग्रैन्‍डस्‍लैम खिताबधारी जॉन मैकनेरों, 80 हफ्ते तक नम्‍बर एक रहे लेटेन हेविट, 6 खिताब धारी और 58 हफ्तों तक नंबर एक रहे स्‍टेफन एडबर्ग, मात्र एक हफ्ते नम्बर 1 रहे पैट्रिक रफ्टर जिन्‍होने दो ग्रैंड स्लैम जीता है, पूर्व नम्‍बर एक रूसी मरात साफिन, अमेरिकी क्‍यूट ब्वाय के नाम से मशहूर एंडी रोडिक सहित कई बड़े पुरूष खिलाड़ी है जो इससे आज तक महरूम है।

ऐसा नही है कि महिला खिलाड़ियों पर यह लागू नही होती है इस लिस्ट मे पहला नाम आता है विश्व की सबसे कम उम्र मे नम्बर एक का बनने का रुतबा हासिल करने वाली मार्टीना हिंगिस, हिंगिस के शान के कसीदे अभी खत्म नही होते है हिंगिस को 209 हफ्ते तक नंबर एक रही है। हिंगिस को एक बार फ्रेंच ओपन के फाइनल खेलने का अवसर मिला था किन्तु इस अवसर मे एक अनाम सी खिलाड़ी इवा मन्‍जोली के हाथों हार का सामना करना पड़ा था। मार्टीना की समकालीन और उनकी सबसे बड़ी प्रतिस्‍पधी पूर्व नम्‍बर एक लिंडसे डेवनपोर्ट भी तीन गैन्ड स्लैम जीता पर फ्रेंच ओपन को जीतने मे नाकामयाब रही। गौरतलब है कि लिंडसे ने यह तीनों हिंगिस को हरा कर ही जीता था। ब्‍लैक ब्‍यूटी के नाम से मशहूर विलियम्स बहनों मे एक वीनस ने भी 5 गैन्‍ड जीता पर इसे जीत न सकी। यह संयोग ही कहा जायेगा कि सेरेना इसे एक बार ही जीत सकी है वो भी तब जब इनकी बड़ी बहन वीनस इसकी प्रतिस्‍पधी थी। हाल मे ही सन्‍यास लेने वाली किम क्‍लाइस्‍टर्स, आयोजक देश की ऐमेली मरसमों, रूसी सुन्‍दरी मारिया सारापोआ, भी इस लाल बजरी पर खिताबी जीत पाने से महरूम रही है।

उपरोक्‍त सभी खिलाड़ी कभी न कभी नम्‍बर एक रहा है परन्‍तु देखना है कि क्‍या इस बार वर्तमान मे खेल रहे इन मशहूर खिलाडियों मे से कोई इस मिथक को तोड़ पाने मे सफल रहेगा? अगर यह होता है तो निश्चित रूप से इन खिलाड़ियों के लिये व्यक्तिगत उपलब्धि होगी, क्योंकि दिग्गजों को नहीं रास आई ये लाल मिट्टी।

मै जल्द ही नया फ्रेंच ओपन से सम्बन्धित लेख लेकर आऊँगा कि पर होगा इस प्रतियोगिता को जीतने का दारोमदार। तब तक आप आप भी फ्रेंच ओपन जीतने का प्रयास कर सकते है, यहाँ पर भी आपके लिये प्रतियोगिता चल रही है, और इनाम है वो भी डालरों मे है तो कीजिये आपने आपको इस प्रतियोगिता मे रजिस्टर, आप रजिस्‍टर करते समय स्पॉन्सर आईडी मे मेरी आईडी mahashakti दे सकते है।


Share:

सिन्‍धी समाज की दुर्दशा - राहुल गांधी क्या इसका भी श्रेय लेंगे ?



सिन्‍धी समाज की दुर्दशा - राहुल गांधी क्या इसका भी श्रेय लेंगे ?


हाल में ही एक सिंधी परिवार में जाना हुआ। एक 75 से ज्यादा वर्ष के वृद्ध पुरुष कि यह बात यह बात सुन का दिल को काफी आघात पहुँचा की देश के बंटवारे में बंगालियों का आधा बंगाल, पंजाबियों को आधा बंगाल दिया गया। किन्तु सिन्धियों को क्या मिला? हमें हमारी मातृभूमि से महरूम कर दिया गया।


मेरे लूकरगंज मोहल्ले मे 35 से अधिक सिन्‍धी आबादी है जो आजादी के समय सिन्ध से अपना सब कुछ छोड आये और इस मोहल्ले में बस गये। वृद्ध पुरुष से अपनी सारी व्यथा कर वर्णन किया जो उन्होंने ने 1947 में देखा और सहा था, उनके आंखों में आँसू के साथ-साथ मेरी आँखें भी नम हो गई थी। 

 वृद्ध द्वारा यह प्रश्न उठाना सही भी था। हाल में चुनावी दौरे मे कांग्रेसी स्‍टार प्रचारक राहुल गांधी ने कहा था कि पाकिस्तान बनवाने में उनके परिवार का हाथ है और उसका सम्पूर्ण श्रेय मेरी दादी इन्दिरा गांधी को जाता है। राहुल गांधी क्यों भूलते है पाकिस्तान को बटवाने के साथ-साथ भारत विभाजन का भी पूरा श्रेय इसी परिवार को जाता है। आज राहुल के बयान से यही प्रतीत हो रहा है कि बिल्लियों ने जो चूहे 1947 से लेकर 1975 तक खाये थे उसके डकार आज इनके नाती-पोते ले रहे है। 

 राहुल गांधी क्यों भूलते है कि देश की दुर्दशा के लिए अगर आज सबसे जिम्मेदार कोई है तो वह यही कांग्रेस और गांधी परिवार है। जिसने अपने राजनीतिक लाभ के लिये देश विभाजन तक को स्वीकार कर लिया। उस समय का सबसे समृद्ध समुदायों में से एक सिंधी समाज बीच चौराहे पर आ खड़ा हुआ। आखिर सिन्धियों के लिए आधे सिंध की मांग क्यों नहीं किया गया। क्या सिंधी समाज भारतीय जनमानस का अंग नहीं था। देश में उन्हें शरणार्थियों की तरह छोड़ दिया गया। यह वह समाज था जो पाकिस्तान निर्माण के समय सबसे अधिक प्रभावित हुआ था। गांधी जी को पाकिस्तान को रुपये देने की सुध थी किन्तु इन सिन्धियों की कोई सुध नहीं थी जिनके नाम पर आज भी पाकिस्तान में सिन्ध प्रान्त है। कांग्रेस चाहती तो सिन्‍धु नदी के तरफ का भारत की ओर का सिंध प्रांत की मांग कर सकती थी किन्तु कांग्रेस कि इस भूल के कारण यह समुदाय अपने अपनी अरबों खरबों से ज्यादा की संपत्ति छोड़ने पर विवश हुई। आखिर आजादी के समय इस धर्म को हितों की अनदेखी करना किसकी भूल थी? इस समाज को इनके घर से ऐसा निकाला गया कि जैसे किसी कुत्ते के सामने एक रोटी का टुकड़ा डाल कर बुलाओ और फिर जोर एक लाठी मार दों। बड़ा कष्ट होता है अपनी मातृभूमि को छोड़ने की। क्या बीतता होगा इन पर? किसी ने इनकी खबर ली? मुस्लिमों के लिये खच्चर सच्‍चर कमेटी का गठन आवश्यक है किन्तु सिंधी समाज की तरह अन्य वह धर्म व समुदाय जो वास्तव में अल्पसंख्यक है उनके लिये किसी प्रकार की योजना कभी कांग्रेस ने नहीं बनाई। आखिर क्यों? कारण साफ है कि मुस्लिमों के लिये कार्य करने पर 20% वोट बैंक जो दिखाई देता है देश की एक चौथाई लोक सभा क्षेत्रों में मुस्लिम मत निर्णायक जो होते है। आखिर प्रश्न उठता है कि जो धर्म अथवा समुदाय 20% होकर भी 25 से ज्यादा प्रतिशत को प्रभावित करने की क्षमता रखता है वह अल्पसंख्यक कैसे हो सकता है ? 

 जो काम अंग्रेजों ने आजादी से पहले किया वही काम अंग्रेजों द्वारा बनाई गई पार्टी कांग्रेस आजादी के बाद कर रही है। आज कांग्रेस भी ''फूट डालो राज करो'' की नीति लागू करना चाहती है। वह परोक्ष रूप से देश में ''नेहरू-गांधी'' परिवार का राजतंत्र लाना चाहती है। और इसी राजतंत्र के सपने आज गांधी परिवार के युवराज देख रहे है। कांग्रेस द्वारा धर्मनिरपेक्षता का फटा नगाड़ा बजा कर देश को पुरानी गति पर लाना चाहती है। आज देश गंभीर समस्याओं से जूझ रहा है किन्तु इस पार्टी के नेताओं को वोट बैंक की राजनीति दिख नहीं है। लोक सभा चुनाव तो 2009 में प्रस्तावित है किन्तु इस सरकार के नुमाइंदों को इसके विखंडन की रूपरेखा दिखने लगी है और इसी का परिणाम है सच्‍चर कमेटी का गठन। क्या धर्मनिरपेक्षता में केवल मुस्लिम समुदाय का हित दिखता है ? कभी कई धर्मों की पैदाइश राहुल गांधी को सिन्धी-बौद्ध-जैन-पारसी की भी सुध आई कि इस धर्म समुदाय के लोग भी इस देश में रहते है ओर ये भी देश के एक मतदाता है। कारण है कि यह समुदाय केवल मतदाता है कि वोट बैंक नहीं है नहीं तो इनके उत्थान के लिये भी योजनाएं बनाई जाती है।

 आज ऐसे कई धर्म और समाज अपने अस्तित्व को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे है किन्तु गांधी एंड सन्स को इनकी ओर कोई खबर नहीं है। ऐसा नहीं है कि इनकी खबर इनको नहीं है चूंकि यह एक सशक्त वोट बैंक नहीं है इस लिये इनकी ओर ध्यान देना अपने चुनावी समय को खराब करना है।

राजनीति अपनी जगह पर है, किन्तु देश का यह सबसे सभ्य समाज कभी भी अपनी उपेक्षा और मातृभूमि के अपमान के लिये कांग्रेस और कांग्रेसी परिवार को माफ नहीं करेगा। क्या राहुल गांधी भारत विभाजन का भी श्रेय लेने की हिम्मत रखते है ?



Share:

किम क्लाइस्टर्स का सन्‍यास




महिला टेनिस की महानतम खिलाडि़यों में से एक किम क्लिस्‍टर ने बीतों दिनों अपने पेशेवर टेनिस कैरियर से सन्‍यास ले लिया। इस महान खिलाड़ी के सन्‍यास के पीछे सबसे महत्‍वपूर्ण कारण था पिछले कई वर्षो से चोटों से जूझना। इस चोटों के कारण उन्‍हे कई बार मैचों से बहार भी बैठना पड़ा, जो उनकी कैरियर की सफलता पर दाग लगा रहे थें।

सन 1997 से अपना टेनिस करियर शुरू करने वाली किम ने अपने 10 साल के छोटे से करियर मे वो उपलब्धियाँ प्राप्त की जो बड़े बड़े नामी खिलाड़ी भी पाने मे वंचित रह जाते है। भले ही किम ने सिंगल मे एक ही खिताब जीता था किन्तु उनके समकालीन बड़ी बड़ी महिला टेनिस खिलाड़ी उनसे खौफ खाती थी।

8 जून 1983 को बेल्जियम के बिलेजेन मे जन्मी क्लिस्टर्स ने हर दम चुनौतियों से डटकर मुकाबला किया। चोटों से वे कई बार से परेशान हुई किन्तु उन्होंने मैदान को कभी नहीं छोड़ा, इस समय मैदान छोड़ने के तर्क मे क्लिस्टर कहती है कि मेरी सगाई हो चुकी है जल्द ही शादी होने वाली है और मैं नही चाहती कि मै अपनी शादी में बैसाखी पर चलते हुए जाऊ।

अपने संन्यास के बारे में किम क्लिस्टर्स ने अपनी वेब डायरी में लिखा है- मेरा सफ़र बहुत अच्छा रहा है लेकिन अब इसे छोड़ने का समय आ गया है। किम ने वर्ष 2005 में यूएस ओपन का खिताब जीता था. दो बार वे फ़्रेंच ओपन में उप विजेता रही हैं और एक बार ऑस्ट्रेलियन ओपन की। विंबलनड में उनका रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा लेकिन वे दो बार इस प्रतिष्ठित प्रतियोगिता के सेमीफाइनल तक पहुँची। क्लिस्टर्स ने अपना आखिरी डब्ल्यूटीए खिताब इस साल जनवरी में सिडनी में जीता था. लेकिन इस सप्ताह वे वॉरसा में चल रहे जे एंड एस कप के दूसरे दौर में हारकर बाहर हो गई थी।

किम क्लिस्टर्स का भी मानना है कि हर अच्छी चीज का अंत तो होता ही है. उन्होंने स्वीकार किया कि लगातार चोटों से वे परेशान रही हैं और अब उनके लिए खेल जारी रखना मुश्किल होता जा रहा था और खेल को खेलते रहने की इच्छा के बाद भी सन्यास लेना ही उचित है।


Share:

वामपंथी सरकार ने किया स्‍वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अनोखा सम्‍मान तोड़ दिया मंगल पांडेय की स्मृति मीनार



विडम्बना है कि आज भारत अपनी आजादी की लड़ाई की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर देश भर में कार्यक्रम किये जा रहें है किन्तु एक जगह ऐसी भी है जहां स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ा जा रहा है। यह घटना कभी देश की राजधानी और स्वतंत्रता संग्राम का केन्द्र रहे कोलकाता की है। जहां पर सरकारी नुमाइंदों के द्वारा अमर शहीद मंगल पाण्डेय की स्मारक मीनार को तोड़ दिया गया। क्या हमारी सरकार और प्रशासन इसी तरह शहीदों को नमन करना चाहती है?
 
वामपंथी सरकार ने किया स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का अनोखा सम्मान तोड़ दिया मंगल पांडेय की स्मृति मीनार
कितनी अजीब बात है कि देश की आत्मा को झकझोर देने वाली घटना का जिक्र एक दो अखबारों को छोड़कर किसी भी स्तर की मीडिया ने देना उचित न समझा? आज की मीडिया वास्तव में अपने महिमा मंडन से ही फुरसत नहीं मिल रही है। एक न्यूज को 4-4 घंटे तक पकड़ कर घुसे रहते है, लगता है बहुत बड़ी घटना हो। मंगल पाण्डेय की घटना मीडिया को इस लिये नहीं दिखी की यह कोई राजनीतिक घटना नहीं थी, जिससे राजनीतिक खेल खेला जा सकता। मंगल पाण्डेय कोई अम्बेडकर या गांधी नहीं थे जिनके पास वोट बैंक है। अगर मंगल पाण्डेय के पास वोट बैंक होता तो यह निंदनीय कदम किसी के द्वारा न किया जाता।
कांग्रेस की "सत्ता सौत" वाम दल द्वारा इस प्रकार की निंदनीय घटना ने पूरे देश को शर्मसार किया है, एक तरफ तो सरकारों द्वारा मात्र कार्यक्रम आयोजित करके सम्मान देने की खानापूर्ति की जा रही है दूसरी तरफ स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रही है। किसी ने पार्टी ने स्थानीय स्तर पर विरोध को छोड़ कर इस कुकृत्य का विरोध नहीं किया। इन हरामखोर पार्टियों को गुजरात की हर घटना पर निगाह रहती है किन्तु अपने घर में क्या हो रहा है उसकी खबर तक नहीं है।
मैं इस दुखद घटना पर क्षोभ व्यक्त करते हुये इस घृणित घटना की निंदा करता हूँ। और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों से क्षमा याचना करता हूँ। इस कुकृत्य पर इतना ही बात निकलती है "कि जो सरकार नहीं कर सकती जनता का सम्मान, उस पर थूको सौं-सौ बार।"
विशेष आग्रह - थूकने से पहले कृपया पान खा ले ताकि जब आप थूकें उसका रंग भी दिखें।


Share:

मुस्लिमों को अल्पसंख्यक न मानने का निर्णय आपके समक्ष



 मुस्लिमों को अल्पसंख्यक न मानने का निर्णय आपके समक्ष
उत्तर प्रदेश में मुस्लिमों की अल्पसंख्यक मान्यता समाप्त करने के बारे में इलाहाबाद उच्‍च न्यायालय की एकल पीठ के न्यायाधीश माननीय शम्‍भू नाथ श्रीवास्तव ने 4 मई को 89 पृष्ठ का विस्तृत फैसला सुनाया है और मुस्लिम समुदाय को प्रदेश में अल्पसंख्यक न मानने के कई आधारों का खुलासा किया है। हालांकि मुस्लिमों को प्रदेश में अल्पसंख्यक न मानने के आदेश पर उच्च न्यायालय की दो न्यायाधीशों की विशेष अपील खण्ड पीठ ने रोक लगा रखी है। चूंकि, एकल न्यायाधीश ने अपने पूर्व आदेश में कहा था कि वह बाद में विस्तृत आदेश देंगे, इस कारण उनके द्वारा अब विस्तृत आदेश पारित किया गया।
विस्तृत फैसला देते हुए माननीय न्यायमूर्ति एसएन श्रीवास्तव ने कहा है कि हिन्दू व मुस्लिम द्विराष्ट्र के सिद्धांत पर देश का विभाजन हुआ था और कहा गया कि राष्ट्रवादी मुसलमान जो भारत में रह रहे हैं, उनमें असुरक्षा भर गयी है उन्हें संरक्षण मिलना चाहिए। संविधान बनाते समय देश में भाषायी व धार्मिक अल्पसंख्यकों को संरक्षण देने पर बहस हुई और आधार तय करते हुए तीन ग्रुप बनाये गये। प्रथम दशमलव पांच फीसदी आबादी दूसरे डेढ़ फीसदी आबादी व तीसरे डेढ़ फीसदी आबादी से अधिक को अल्पसंख्यक माना जाए। संविधान सभा ने मुस्लिमों को आरक्षण व विधायी सीटें सुरक्षित रखने के प्रस्ताव को निरस्त कर दिया। हालांकि, अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए विधायी सीटें आरक्षित रखी गयी हैं।
न्यायालय ने कहा है कि 1951 की जनगणना व 2001 की जनगणना का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो एक तरफ जहां मुस्लिम आबादी में तीन फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गयी वहीं हिन्दू आबादी में नौ फीसदी की घटोतरी हुई है। आज की स्थिति यह है कि उत्तर प्रदेश की एक चौथायी आबादी मुस्लिम है। सर्वोच्च न्यायालय ने भी टीएमएपई केस में नान डामिनेन्ट ग्रुप को अल्पसंख्यक माना है। जब हिन्दू कोई धर्म न होकर एक जीवन शैली है और सैकड़ों सम्प्रदायों से यह समुदाय बना है तो ऐसी दशा में यदि धार्मिक जनसंख्या को देखा जाय तो प्रदेश में लगभग 100 हिन्दू सम्प्रदायों की अलग-अलग आबादी पर एक चौथाई मुस्लिम आबादी डामिनेन्ट पोजीशन में है। वे अपनी पसंद की सरकार चुन सकते हैं। न्यायालय ने प्रदेश में मुस्लिम जनप्रतिनिधियों का जिक्र करते हुए कहा है कि 18 सांसद, 9 एमएलसी व 45 विधायक मुस्लिम समुदाय के हैं। राजनीति में अच्छी दखल है, अब इन्हें अल्पसंख्यक माना जाना उचित नहीं है।
न्यायालय ने पं. जवाहर लाल नेहरू के विचारों का भी उदाहरण दिया और सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा संविधान सभा की मंशा का जिक्र करते हुए कहा कि धार्मिक अल्पसंख्यकों की आबादी कुल आबादी से पांच फीसदी से अधिक नहीं होनी चाहिए। भारत सरकार ने प्रदेश की एक चौथायी आबादी को अल्पसंख्यक का दर्जा देकर गलती की है, जिसमें सुधार होना चाहिए। सर्वोच्च न्यायालय ने भी देश में बहुराष्ट्रवाद की चेतावनी दी है। न्यायालय ने कहा है कि 2001 की जनगणना में प्रदेश में मुस्लिम आबादी 18.5 फीसदी है, जो 2007 में काफी बढ़ चुकी है। हिन्दू कहे जाने वाले किसी भी सामुदायिक ग्रुप की अकेली आबादी मुस्लिम आबादी से अधिक नहीं है। उत्तर प्रदेश में आज जितनी आबादी मुस्लिमों की है, देश के विभाजन के बाद उतनी आबादी पूरे देश में मुस्लिमों की थी। सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के तहत प्रदेश में मुस्लिम आबादी को नान डामिनेन्ट ग्रुप नहीं माना जा सकता है। कई जिले ऐसे हैं, जहां मुस्लिम आबादी कुल आबादी की 50 फीसदी से भी अधिक है। न्यायालय ने कहा है कि अनुच्छेद 29 व 30 में अल्पसंख्यकों को मिले संरक्षण को विशेषाधिकार के रूप में नहीं अपनाया जा सकता।
न्यायालय ने कहा है कि संविधान निर्माताओं ने कभी भी नहीं सोचा था कि पंथ निरपेक्ष राज्य में किसी धर्म को संरक्षण की जरूरत पड़ेगी। 1947 के विभाजन की स्थिति व आज की स्थिति में काफी बदलाव आया है। अब इस पर विचार किया जाना चाहिए। उत्तर प्रदेश में मुस्लिम जनसंख्या व ताकत के हिसाब से धार्मिक अल्पसंख्यक नहीं माने जा सकते। आज मुस्लिम देश के बहुमुखी विकास में आम नागरिकों की तरह अहम भूमिका निभा रहे हैं, भारतीय समाज के अभिन्न अंग हैं। इन्हें अलग ग्रुप के रूप में देखना संविधान निर्माताओं की भावना के साथ खिलवाड़ है। संविधान निर्माताओं ने कभी भी नहीं सोचा था कि पंथ निरपेक्ष राज्य में किसी धर्म को संरक्षण की जरूरत पड़ेगी। 1947 के विभाजन की स्थिति व आज की स्थिति में काफी बदलाव आया है। अब इस पर विचार किया जाना चाहिये।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने प्रदेश में मुसलिमों को अल्पसंख्यक न मानने का फैसला सुनाते हुए कहा है कि देश के सभी नागरिकों को संविधान के मूल कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। इसी के साथ कोर्ट ने केंद्र व प्रदेश सरकार को निर्देश दिया है कि उत्तर प्रदेश में सत्र 2007-08 में मूल कर्तव्य व नैतिक शिक्षा अनिवार्य किया जाये। यह व्यवस्था मदरसों सहित सभी धार्मिक स्कूलों में भी लागू की जाये। ताकि भावी पीढ़ी संविधान निर्माताओं के सपनों के अनुरूप तैयार हो सके। न्यायालय ने उप्र माध्यमिक शिक्षा परिषद को निर्देश दिया है वह मूल कर्तव्य एक अनिवार्य विषय के रूप में सत्र 2007-08 में लागू करें। न्यायालय ने कहा है कि मुस्लिमों को धार्मिक समुदाय के बजाए भारतीय नागरिक के रूप में देश के विकास का सहयोगी माना जाये। महान राष्ट्र निर्माण के लिए मूल कर्तव्यों का पालन अनिवार्य किया जाये।
माननीय न्‍यायमूर्तियों के फैसले को आप यहॉं पढ़ सकते है।


Share: