चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जायें हम दोनों



महेन्‍द्र कपूर जी की आवाज में जादू है। पता नहीं क्यों जब मैं उनके गीत सुना हूँ तो भाव विभोर हो जाता हूँ। अब यह ही एक गीत लीजिए जिसमें उनकी दिलकश आवाज न जाने क्यों इस गीत को बार-बार सुनने को मजबूर करती है। वैसे इस गीत के गीतकार श्री शाहिर लुधियानवी की भी तारीफ करनी होगी कि इन्होंने बेहतरीन शब्दों के जाल से बुना है इसे -
चलो इक बार फिर से, अजनबी बन जाएं हम दोनों
चलो इक बार फिर से ...
न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से
न मेरे दिल की धड़कन लड़खड़ाये मेरी बातों से
न ज़ाहिर हो तुम्हारी कश्म-कश का राज़ नज़रों से
चलो इक बार फिर से ...
तुम्हें भी कोई उलझन रोकती है पेशकदमी से
मुझे भी लोग कहते हैं कि ये जलवे पराए हैं
मेरे हमराह भी रुसवाइयां हैं मेरे माझी की - २
तुम्हारे साथ भी गुज़री हुई रातों के साये हैं
चलो इक बार फिर से ...
तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन - २
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा
चलो इक बार फिर से ...
 
इस गीत को जितना अच्छा लुधियानवी जी ने बुना है, तो रवि जी ने संगीत से सजाया है और महेन्‍द्र जी ने अपने आवाज से इस गीत को जिन्‍दा किया है। इस गीत की सभी पंक्तियां मुझे बहुत अच्छी लगी पर

तार्रुफ़ रोग हो जाये तो उसको भूलना बेहतर
ताल्लुक बोझ बन जाये तो उसको तोड़ना अच्छा
वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन - २
उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ना अच्छा


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2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

अरे पर्मेंदर भैया ,कहा खो गए थे आप , सबसे पहले जय राम जी कि ...और इलाहबाद का कैसा मौसम है ...इलाहबाद कि बहुत याद आती है ,वो युनिवर्सिटी गेट के सामने वाली चाट के दुकान कि तो बहुत ही जयादा .इस बार तो बहुत धान्शु पोस्ट ले के आये हो ..मस्त लिखा है .....हमसे कौनो नाराज़गी है क्या ,जो आप हमारे ब्लोग पे नही आ रहे हो ,शायद मैं अच्छा नही लिख रह हूँगा ,अच्छा अब चलते है जय राम जी कि .
जल्दी ही आपके ब्लोग पे फिर आना होगा.

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत उम्दा!!

न मैं तुमसे कोई उम्मीद रखूँ दिलनवाज़ी की
न तुम मेरी तरफ़ देखो गलत अंदाज़ नज़रों से


बढ़िया खोये!!