वरिष्‍ठ चिट्ठाकारों से एक अनुरोध



मैने आदरर्णीय XYZ को लेकर एक पोस्‍ट लिखी थी, इस लेख को लेकर मेरा उद्देश्‍य किसी को दोष देना या चोट पहुँचाना नही था। किन्तु मेरे द्वारा XYZ जी को टिप्‍पणी के माध्‍यम से इस लेख के बारें मे सूचित करने पर जो टिप्‍पड़ी आई, वह मुझे खल गई ओर दर्शा गई कि मै अपराधी हूँ, उनकि द्वारा टिप्‍पणी जो क्षमा नामक शब्‍द प्रयुक्‍त हुआ है वह हम छोटों को फिर कभी अपनी बात बड़ों के सामने रखने में हिचक पैदा करता है। हम लेखन से इसलिए जुडें है कि हम आपस में संवाद खड़ा कर परिष्‍कृत बाते सामने लाये किन्‍तु बड़ों द्वारा छोटों के समक्ष क्षमा आदि शब्‍द हमें यह सोचने पर मजबूर कर देते है कि अब दोबारा मत लिखना।

मेरा यह यह मानना है कि हमें एक लेखक की भातिं आपस में संवाद खड़ा करना चाहिए, किन्‍तु वरिष्‍ठों द्वारा इस प्रकार के वचन हमें लज्जित कर देतें है। मेरा सभी वरिष्‍ठों से निवेदन है कि लेखनी की इस तरह अनादर नही करना चाहिए। और कम से कम छोटों से इस प्रकार के कटु वचनों को बोल कर संवाद के माध्‍यम को बंद होने से बचाइऐं।


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ब्‍लागर मीट एट इलाहाबाद जंक्शन



आज कल नेट पर कम ही बैठ रहा था, किंतु मैसेज आज चेक करने के लिए थोड़ी देर के लिये आना जाना हो ही जाता है। अब कल की बात को ले लीजिए जैसे कुछ देर के लिये आनलाईन हुआ वैसे ही एक टनटनाते आवाज के साथ गूगल टाँक का मेसेज बोर्ड हाजिर हो गया। यह संदेश था मित्र चंदन सिंह का जो महाशक्ति समूह और हिन्दू चेतना पर हिन्दू चेतना के नाम से लिखते है। उन्होंने कहा कि प्रमेन्द्र भाई जय श्री राम, मेरी आपसे मिलने की बड़ी हार्दिक इच्छा है, क्या कल आप मुझसे मिल सकते है ? यह मेरे लिये समस्या का प्रश्न था और मैने अचंभित होकर कहा कि मै अभी दिल्ली नही आ सकता हूँ। उन्होंने कहा कि नहीं भाई कल मै इलाहाबाद से हो कर गुजऊँगा अगर समय हो तो लगे हाथ अपने मिलना हो जायेगा। मैने भी लगे हाथ हॉं कर दिया। और अगली ब्‍लागर मीट के आयोजन के समय की प्रतीक्षा करने लगा। लगे हाथ सारी अन्य जानकारी भी उपलब्ध हो गई कि मित्र पुरूषोत्‍तम से आ रहे है।



हर बार की तरह मुझे पता था कि ट्रेन जरूर लेट होगी, और मैने अगली सुबह पुरूषोत्‍तम के समयानुसार 7.30 पर चंदन भाई को फोन किया और पूछा कि भाई आप कहां है? तो उन्होंने कहा कि ट्रेन इस समय कानपुर से चल चुकी है, मै भी अंदाजे से कि कानपुर से ट्रेन को आने में ज्यादा से ज्यादा 3 घंटे लगते है ठीक 9.30 बजे घर से निकल दिया और इलाहाबाद जंक्शन पर जा पहुँचा। तो वह पूछने पर पता चला कि ट्रेन सवा तीन धन्‍टे लेट है फिर मै कुछ दूर स्थित राजकुमार के घर पर चल दिया कि लगे हाथ उनके घर पर कुछ मदत कर दूंगा। इसी आशय के साथ मै राजकुमार के घर पर पहुँच गया और आवश्यक मदद आदि की। लगभग 10.40 पर चंदन भाई फिर से फोन करते है कि मै इलाहाबाद से 30 मिनट की दूरी पर हूँ। फिर हम भी आशवस्त होकर स्टेशन की ओर चल दिये किन्तु ट्रेन अपने मूल समय से लगभग 4 घन्‍टे देर थी। हम लोग प्‍लेटफार्म नम्बर 6 पर चल दिये, और प्लेटफार्म पर पहुँचते ही रेल आ भी गई। और उसी के साथ चंदन भाई का फोन भी, कि मै अमुक अमुक कपड़ा पहना हूँ और यहाँ हूँ वहॉं हूँ, रुकिए भाई आप मुझे दिख रहे है। अन्तिम ये शब्‍द सुनते ही लगा कि हॉं अब कुछ बात बनी। पुन: जय श्री राम के उद्घोष के साथ हमारा मिलन हुआ। पता नही चंदन भाई को मेरी कमजोर कैसे पता चला गई कि चॉकलेट और टाफियाँ मुझे पसंद है? उन्होंने मेरे लिये कुछ चॉकलेट आदि लाये और मुझे भेंट किया साथ ही मैंने भी उन्हें कुछ पुस्तकें भेंट की।

पुरुषोत्तम का जंक्शन पर रुकने का समय करीब 10 मिनट है और हमारे पास चिट्ठाकार मिलन का केवल यही समय था। इन दस मिनटों में हम लोगों ने दिल्‍ली से लेकर प्रयाग की सभी चर्चाएं कर लिया, साथ ही साथ प्रथम मिलन के दौरान एक दूसरे को नजदीक से जानने का भी मौका मिला, मुझे यह पता चला कि वह दिल्‍ली में किसी अच्छी कम्पनी में कार्यरत है, और मैने भी अपना सम्पूर्ण परिचय दिया, तथा मेरे साथ महाशक्ति समूह के राजकुमार ने भी अपना सम्पूर्ण परिचय दिया। परिचय की समाप्ति पर हम लोग अपने मेन मुद्दे पर आये और उस पर लग कर सामूहिक काम करने वचन लिया।

यह ब्लॉगर मीट केवल 10 मिनट चली किन्तु भविष्य के लिये नये आयामों को सृजन करने को कटिबद्ध हो समाप्त हुई, यह अपने आप में खास थी, क्योंकि यह वह व्यक्ति है जो आज तक बिना किसी एग्रीगेटर पर रहे बिना ब्‍लागिंग की है। आज किसी को टिप्‍पणी नही मिलती है तो हाय-हाय करता है किन्‍तु सही मायने में सोचा जाये तो पता चलेगा कि एक यह भी ब्‍लागर है कि इनके प्रारम्भिक लेखों पर जो मुझे अच्‍छे लगे उन पर टिप्‍पणी कर देता था। यह बड़ी बात है कि कोई ब्‍लागर बिना टिप्‍पणी के अपेक्षा के भी ब्‍लागगिंग करता है। आज महाशक्ति समूह में मित्र चंदन की काफी सक्रिय भूमिका है और अपने ज्‍वलंत वैचारिक लेखों से एक अलग अलख जला रहे है। जो किसी अन्‍य सक्रिय ब्‍लाग से अगल है। क्‍योकि यह हिन्‍दी ब्‍लाग के सबसे निचले स्‍तर के ब्‍लागरों का मिलन था।

 महाशक्ति समूह पर मित्र अ‍ाशुतोष मासूम की रचना हाँ बाबूजी, मै वेश्‍या हूँ पर एक नज़र जरूर डालिये।



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क्‍या आप अभी भी अपनी राय पर कायम है ?




लगभग आज से कुछ माह पहले मै कुछ पढ़ने की कोशिस कर रहा था, और अचानक मैने XYZ जी के XYZ का एक लेख देख गया। और जो न कह सके पर आपका वर्णन हो और आपको 4 महीने बाद पता चले तो अचम्‍भा होना भी स्‍वाभाविक है। 30 अप्रेल 2007 को एक लेख में श्री सुनील दीपक जी ने मेरी एक पोस्‍ट "क्‍या ईसा और मुहम्‍द से गणेश " का जिक्र किया, और उनकी वह पोस्‍ट मुझे पढ़ने को नसीब हुई करीब चार माह बाद अगस्‍त में सोचा था‍ कि कुछ लिखूँगा किन्‍तु समयाभाव के कारण लिख न सका, और उनके इस पोस्‍ट को भविष्‍य के लिए सुरक्षित कर लिया कि कभी कुछ लिखूँगा। वैसे आज कोई खास दिन नही है कि मेरे पास समय का खजाना मिल गया है, काफी दिनों से कीबोर्ड पर अगुँलिया नही ठोकी सोचा कि लगे हाथ ये तम्‍मना भी पूरी कर लिया जाय।

इन दिनों अपने अधिन्‍यास के कार्य में इतना व्‍यस्‍त हूँ कि कलम छोड़ कर कीबोर्ड थामने का मौका नही मिल रहा है। यह नवम्‍बर अब तक बीते सभी नवम्‍बरों में सबसे बकवास रहा है। अब किन मायनों में है यह मुझ पर ही छोड़ दीजिए, मै झेल लूँगा। कीबोर्ड पर ऊंगली ठोकना भी एक नशे के समान है जिसकी तलब रहे न रहे लग ही जाती है। खैर किन विषयो को लेकर बैठ गया, ये तो कहावत हो गई आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास, करनी थी वार्ता जो न कह सके के सम्‍बन्‍ध में और ले कर बैठ गया मै अपनी राम कथा।

श्री XYZ ने अपनी एक पोस्‍ट में कहा था-
प्रेमेंद्र ने "ईसा, मुहम्मद और गणेश" के नाम से एक और बात उठायी कि जब ईसाई और मुसलमान अपने धर्मों का कुछ भी अनादर नहीं मानते तो हिंदुओं को भी गणेश की तस्वीरों का कपड़ों आदि पर प्रयोग का विरोध करना चाहिये. मैं इस बात से भी सहमत नहीं हूँ.

ईसा के नाम पर कम से कम पश्चिमी देशों में टीशर्ट आदि आम मिलती हैं, उनके जीवन के बारे में जीसस क्राइस्ट सुपरस्टार जैसे म्यूजिकल बने हें जिन्हें कई दशकों से दिखाया जाता है, फिल्में और उपन्यास निकलते ही रहते हैं जिनमें उनके जीवन और संदेश को ले कर नयी नयी बातें बनाई जाती है. इन सबका विरोध करने वाले भी कुछ लोग हैं पर मैंने नहीं सुना कि आजकल पश्चिमी समाज में कोई भी फिल्म या उपन्यास सेंसरशिप का शिकार हुए हों या किसी को बैन कर दिया हो या फिर उसके विरोध में हिंसक प्रदर्शन हुए हों. असहिष्णुता, मारपीट दंगे, भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मिडिल ईस्ट के देशों में ही क्यों होते हैं? हम लोग अपने धर्म के बारे में इतनी जल्दी नाराज क्यों हो जाते हैं?

आदरणीय श्री सुनील दीपक जी, वस्त्रों पर भगवान छवि की बात को मै गलत नही मानता हूँ, मुझे लगता है कि आपने मेरी पोस्ट का सही अवलोकन नही किया है। मैंने अपने लेख में अन्‍त: वस्‍त्र पर इन चित्रों का विरोध किया था। हमारी परंपरा है कि हम वस्त्रों पर ऊँ और हरे राम हरे कृष्ण आदि के छाप मिलते है। हमारी परम्परा में कमर के नीचे के भाग को अपवित्र माना जाता है। कमर के नीचे इन वस्‍त्रों को पहना मेरी ही नही किसी भी व्यक्ति के समझ ठीक नहीं है। मुहम्मद साहब के कार्टून पर जो विवाद बरपा था वह उसके बारे में ज्यादा वर्णन की जरूरत नही है। हाल मे ही एक शराब कम्पनी ने ईसा का चित्र को बोतल पर छापा तो बहुत ज्यादा खुले दिमाग वाले ईसाइयों ने खूब हंगामा बरपाया था। तो हिन्दू धर्म के साथ यह मजाक क्यों? अन्‍त: वस्त्र की बात छोडिये जूतों और चप्पलों पर देवी देवताओं की बात सामने आयी है।





चप्‍पल पर गणेश भगवान का चित्र जूते पर श्री राम का चित्र
क्या श्री सुनील दीपक जी चप्‍पलों पर भी इन चित्रों का होना सही मानते है? क्या अभी भी सुनील दीपक जी वही विचार रखते है, जो उन्होंने अपने लेख में लिखा है ? मेरा मानना है कि आस्था के साथ खिलवाड़ ठीक नहीं है, क्योंकि आस्था से करोड़ों भावनाएं जुड़ी होती है, और करोड़ों भावनाओं को ठेस पहुँचा कर हम किसी मकसद को पूरा नहीं कर सकते है। यह सब व्यापारिक छलावा है और आस्था के साथ व्यापार संभव नहीं है।


काफी देर से कीबोर्ड के बटन ठोकर कर काफी अच्छा महसूस हो रहा है। :) इधर मित्र राजकुमार की बहन की शादी 26 नवम्बर को है, सो उधर का काम धाम देखना भी जरूरी है। साथ ही साथ अपना लगभग 80-90 पन्नों अधिन्यास भी पूरा करना है जिसकी अंतिम तिथि 30 है। और मै किसी काम को अन्तिम दिन तक के लिये नही रखता हूँ। इधर शादी के भी पर्याप्त मौसम चल रहा है। 21 नवंबर से हर दिन दो युगल एक दंपत्ति के रूप में अपने जीवन की शुरुआत करेंगे। एक एक दिन में दो से चार तक निमंत्रण है तो कहीं न कहीं न चाहते हुऐ भी मेरा नम्‍बर लगना तय ही है। :) इन व्यस्ताओं के बीच मेरा न तो महाशक्ति पर कुछ लिख पाना होगा न ही महाशक्ति समूह पर, हॉं यह जरूर है कि महाशक्ति समूह पर आपको अन्य मित्रों की रचनाएँ जरूर पढ़ने को मिलती रहेगी। अगर इस दौर में फिर समय मिला और कीबोर्ड को बजाने का मन किया जो जल्द मिलना होगा। दिसम्बर माह के पहले ही सप्ताह मे मिलना होगा।


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अनुगूँज को लेकर बातें खत्‍म नही हुई हैं



अनुगूँज को लेकर मेरी पिछली पोस्ट ने एक बार फिर से चिट्ठाकारों के मध्य उत्पन्न खाई को दर्शाती है। इसमें मै किसी व्यक्ति विशेष को दोष नहीं दूँगा। अनुगूँज के सम्बन्ध में उठाये गये प्रश्‍न वास्तव में कई प्रश्‍न ले कर आते है। अनुगूँज में मतभेद को लेकर कई वरिष्ठ चिट्ठाकारों ने भी अपनी चिन्ता जाहिर किया है। मुझे रोष इसलिए भी था कि मेरी प्रथम भागीदारी में मुझे नकारा गया। मै किसी के प्रथम को बहुत महत्व देता हूँ। किसी के असफल प्रथम प्रयास को भी अगर प्रोत्साहित किया जाये तो निश्चित रूप आगे आने वाले परिणाम सदैव सार्थक होंगे।
अनुगूँज सम्बन्धी पोस्ट पर मैने एक साथ कई बाते रख दी जो वास्तव में कई बातों को सामने लेकर आई है। आज जो प्रश्न है कि क्या एक ब्‍लागर दूसरे की सफलता से खुश है तो मेरा मानना है कतई नहीं, आज एक ब्‍लागर दूसरे के विचारों को इतना द्वन्द ले रहा है कि वह आपसी सौहार्द को भूल जाता है। तो कभी कभी ऐसी अभद्र टिप्‍पणी देखने को मिलती है अनैतिक होती है। अनैतिक काम भी करना ठीक है किन्तु नैतिकता का जामा पहन कर मन में राम बगल में छुरी की धारणा गलत है। अक्सर देखने में आता है कि ब्‍लागों पर बहुत ही अभद्र अभद्र टिप्‍पणी आ जाती है जो यह दर्शाता है कि हॉं आज के दौर मे ऐसे लुच्‍्चों की कमी नही है।
कुछ वरिष्ठ चिट्ठाकारों ने टिप्पणी के माध्यम से प्रश्न किए थे उनका उत्तर भी देना चाहूँगा। 


 
आपने कहा मैने कहा
arvind mishra said...
anugoonj bhalaa kya hai ?kya yah koi saahityik abhiyaan hai ?
मित्र आप इसे साहित्यिक अभियान का नाम भी दे सकते है, इसका आयोजन समय समय पर, किसी एक ब्‍लागर द्वारा किया जाता है जो अपनी विषय निर्धारित करता है सभी अन्‍य ब्‍लागर बंधु उस पर लेख लिखते है, आप भी चाहे तो इस बार के अनुगूँज में भाग ले सकते है।
मै अनुगूँज का महत्व भारतीय क्रिकेट की टीम की कैप तरह मानता हूँ, जिसे हर खिलाड़ी पहनने की इच्छा रखता है, ठीक उसी प्रकार अनुगूँज में भाग लेने के सम्बन्ध में मेरे विचार है।
Shiv Kumar Mishra said...
प्रमेन्द्र जी,
आपका कहना एक दम ठीक है. वैचारिक मतभेद कभी भी एक दूसरे को इज्जत देने में आड़े नहीं आना चाहिए. आपका नया ब्लॉग बहुत ही बढ़िया लगा मुझे. उसमें जिस तरह से विभिन्न विषयों पर लिखा जाता है, वो वाकई में तारीफ के काबिल है.
रही बात लिंक देने या नहीं देने की, तो ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. आप अच्छा लिखते हैं और इतने सारे विषयों पर लिखते हैं कि आपके पाठक बहुत हैं. अनुगूंज में शामिल न होइए लेकिन अपनी लेखनी चलाते रहिये क्योंकि आपके लेखों का इंतजार बहुत लोगों को रहता है.

श्री शिव कुमार मिश्र जी
मैने अपनी चिट्ठाकारी के जीवन में बहुत विवादों को झेला है और कईयों से अपने विभिन्न व्यवहारों के कारण विवादों का सामना भी किया किन्तु कभी किसी को अपशब्द नही कहा, किसी को सम्‍मान देने में कमी नही किया। मुझे जानकर अच्छा लगा कि आपको मेरा लिखा अच्‍छा लगता है,इससे बड़ी सम्‍मान की बात मेंरे लिये क्‍या होगी। लिंक दिया जाना उतना महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न नही है जितना लिंकों को हटाया जाना है।
Sunil Deepak said...
परमेंद्र जी, इतना गुस्सा वह भी टिप्पणी न मिलने का? टिप्पणी न होने का यह अर्थ नहीं कि किसी ने पढ़ा नहीं. कभी कभी आलस के मारे में टिप्पणी न लिख पाते पर इसमें गुस्से से अपना खून जलाना ठीक नहीं. :-)
श्री सुनील दीपक जी,
क्षमा चाहूंगा , आपने पोस्ट पढ़ने में भूल की है। मेरा क्षोभ टिप्पणी को लेकर नहीं है। पाठक का आना टिप्पणी पाने से ज्यादा सार्थक होता है। एक सार्थक टिप्‍पणी पूरे लेख को धन्य कर देती है।
काकेश said...
आपकी बात से सहमत हूँ. मैंने पहले भी इस तरह की गुटबाजी के प्रति लिखा था. आप तो बस लिखते रहिये.धीरे धीरे टिप्पणीयां भी बढ़ जायेंगी.
श्री काकेश जी,
मै जून 2006 से इस चिट्ठाकारिता का कीड़ा मुझमें रेंग रहा है। और शायद मै आपसे पहले से इस कार्य को कर रहा हूँ किन्तु इस डेढ़ साल में मैंने यही पाया कि कुछ लोगों में में तो परस्पर प्रेम भावना है और एक दूसरे के मदत को अग्रसर रहते है किन्तु कुछ ऐसे भी है जो अपना काम तो साधते है किन्तु दूसरे का न सधे यह प्रयासरत रहते है। गुटबाजी का दौर तो जून 2006 में भी था जब मै नया नया आया था, और आज भी है। आज स्थिति सोवियत रूस और अमेरिका वाली रह गई है, और इसमें पीसने का प्रयास उसे किया जा रहा है जो तटस्थ है।
Pratik said...
भाई, हर बार भिन्न व्यक्ति अनुगूंज आयोजित करता है। पहले आपकी पोस्ट शामिल नहीं हुई, इसका मतलब यह नहीं है कि आगे भी शामिल नहीं की जाएगी। लोग अलग, सोच अलग।
भाई प्रतीक जी, अगर कोई कार्य सामूहिकता में किया जाय तो उसमें सभी को प्रतिभाग का अवसर दिया जाना चाहिए, अगल अगर व्यक्ति पर निर्भर करता है कि किसी को जगह मिले किसी नहीं तो इसे सामूहिक आयोजन नहीं मानना चाहिए।
शास्त्री जे सी फिलिप् said...
प्रिय परमेंद्र,
कुछ व्यावहारिक तरीके से सोचो !
1. एक बार में किसी के बारे में कोई राय न बनाओ. कम से कम तीन बार कोशिश करने के बाद ही किसी के विरुद्ध राय बनानी चाहिये. (अनुगूंज से मेरा कोई संबंध नहीं है अत: यह एक निर्गुट राय है).
2. अपने चिट्ठे पर आपने कई ऐसे चिट्ठों को कड़ी दी है जो कभी किसी को भी कडी नहीं देते. तो फिर शिकायत क्यो ?
3. सारथी जैसे "निर्गुट" चिट्ठे को आपने एक भी कड़ी नहीं दी है (कम से कम मुझे तो नहीं दिखा) वर्ना मुख्यपृष्ठ पर ही हम आपके चिट्ठे को सजा देते. ऐसा हम हर उस चिट्ठे के लिये करते हैं जो हमे कड़ी देता है -- शास्त्री
हिन्दी ही हिन्दुस्तान को एक सूत्र में पिरो सकती है.
इस काम के लिये मेरा और आपका योगदान कितना है?

श्री शास्‍त्री जी,
1. यह किसी से व्यक्तिगत आक्षेप नही है बल्कि समूहिकता को बढ़ावा देने का प्रयास है, मै तीन बार सोचने की बात पर ध्यान देंगे।
2. अक्सर मै जिन चिट्ठों पर जाना होता है या बिलकुल नये है उन्‍हीं को मैंने अभी तक जगह दी है, चूंकि मेरा लेखन ज्यादा लिंक करने वाला नहीं है, और जहाँ कि मै किसी व्यक्ति को लिंक करने वाला लेखन करता भी हूँ तो शीघ्र उपलब्ध होने वाले लिंक को जगह दे देता हूँ। साथ ही साथ अगर भूल भी जाता हूँ तो किसी के याद दिलाने अथवा लिंक दिये जाने पर तुरंत डाल देता हूँ।
3. चूंकि मैंने पहले भी कहा है कि मेरा लेखक लेख में लिं‍किंत करने वाला नहीं है। न ही कभी आपके बारे में लिखने का मौका मिला न ही आप लिंक हुए। और बात रही साइड में लिंक देने की मै सदैव तत्पर हूँ, सभी के लिंक देने के लिये, बशर्ते वह मेरा भी लिंक जरूर दे। जो मेरा लिंक नही भी देगें मै उन्‍हे एक माह तक जरूर अपने ब्लॉग पर जगह दूंगा। जिन दिन भी मैने लिंक डालूँगा आप अपने जो भी लिंक हो भेज दीजिये मै दे दूँगा।


Gyandutt Pandey said...
ऐसा है तो आपके साथ निश्चित गलत हुआ। मुझे आपसे सहानुभूति है।
श्री ज्ञानदत्त पाण्डेय जी, आपका हार्दिक धन्यवाद, जरूरत है गलत व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाने की।
और जहॉं तक मुझे याद है कि आपने एक लेख में अभद्र टिप्‍पणी के सम्बन्ध में लिखा था। और मेरी समस्या को लिंक किया था। आपने अभद्र टिप्‍पणी से पीड़ित होकर ही ब्लॉग को मडरेट मोड में डाला था।
Sagar Chand Nahar said...
ऐसा नहीं चलेगा.. जिस दिन हम अनूंगूंज आयोजित करेंगे उस दिन आपको लिखना ही पड़ेग यह हमारा आदेश है। समझे... :)
(स्माईली लगा दी है )
अब मुस्करा भी दो भाई।

श्री सागर भाई, मेरा बहिष्कार सिर्फ वर्तमान अनुगूँज के लिये है, वह भी केवल विरोध स्वरूप जब आप आयोजन करेंगे तो मै जरूर शामिल होऊंगा। :) अगर आपका विषय गांधी जी होगा तो मजा आयेगा :D
Sanjeet Tripathi said...
बंधु, यदि पक्षपात हो रहा है, और आपकी टिप्पणियां वहां से हटाई जा रही है तो यह तो गलत बात है!!
श्री संजीत भाई, मैने वहां टिप्पणी की थी अब चाहे वह किस प्रकार हटी मै नही जानता किंतु इतना जरूर था कि मेरी टिप्पणी वहॉं थी।

कल मेरे इस शिकायती लेख के बाद श्री आलोक जी जो कि उस अनुगूँज के आयोजक थे, उन्‍होने खेद प्रकट किया और अपने खेद पत्र का सार्वजनिक करने को भी कहा, उनके इस पत्र में मेरा हृदय भी काफी दुख हुआ, किन्तु मै सामूहिकता में किसी एक को दोष नही दूँगा। श्री आलोक जी आयोजक मात्र थे और अयोजक की कोई गलती नही है, क्योंकि आयोजक की अपनी सीमाएं है। श्री आलोक जी के प्रति मेरे हृदय में सम्मान है और सदा रहेगा। मेरे इस विरोध को किसी के द्वारा व्यक्तिगत नही लिखा जाना चाहिए। बस उद्देश्य इतना ही है कि सामूहिकता में षयन्‍त्र की कोई जगह न हो। मेरे इस लेख से कई नई बातें सामने आई है और कई मित्र इससे सीख लेकर किसी प्रतिद्वंद्विता में शामिल न होकर, सामूहिकता और सहयोग को बढ़ावा देंगे। अभी बातें खत्म नहीं हुई और निश्चित रूप से गलत काम के खिलाफ बात खत्म नहीं होनी चाहिए।


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मै अनूगूँज का बहिष्‍कार करता हूँ



पिछली बार 15 अगस्त को आयोजित अनुगूँज मैने एक लेख लिखा था तथा अनुगूँज से संबंधित पोस्ट पर कई टिप्‍पणी भी किया था किन्तु आज के दिन न किसी पोस्ट पर मेरी टिप्पणी ही है और न ही मेरी पोस्ट को अनुगूँज में शामिल ही किया गया। यह मेरा अनुगूँज में पहला प्रयास था और हर चिट्ठाकार की इच्छा होती है कि वह भी इसका अंग बने इसीलिये मैने काफी उत्‍सुक होकर इसमें भाग भी लिया था किन्तु पिछले कटु अनुभवों से लगता है कि अबकी बार अनुगूँज में भाग लेना ठीक नहीं है। 




निश्चित रूप से मेरी पोस्ट को या तो अनुगूँज के लायक नहीं समझा गया या तो कोई कारण रहा हो इसके विषय में मै नही जानता हूँ। किन्तु मेरा धारणा है कि जहाँ सम्मान न हो वहाँ रहना ठीक नहीं है। कनिष्‍ट जरूर हूँ तिरष्कृत नही हूँ। आज कल हिन्दी ब्लागिंग में खाई बढ़ती ही जा रही है। आज भी गुटबाजी का दौर बरकरार है। और अपने पराए का भेदभाव बरकरार है।

सच कहूँ तो आज गुटबाजी अपने चरम पर है और इसी गुटबाजी का ही परिणाम है कि लोग अपनी वैचारिक दूरी को अपनी व्यावहारिक जिन्दगी मे उतार लेते है। आज हिन्‍दी चिट्ठाकारिता में कुछ मठाधीशों मठाधीशी और कुछ सक्रिय चटुकाओं की चाटुकारिता का परिणाम है कि आज हिन्‍दी ब्‍लॉग में यह वैमनस्य आ गया है। मठाधीशी मै इस लिये कह रहा हूँ कि कुछ लोग आज भी अपने आपके हिन्दी ब्लॉगिंग के स्‍वयंभू मनवाने में लगे हुऐ है और कुछ लोग तो उनकी चाटुकारिता करके अपने अस्तित्व को बचाये रखने की जद्दोजहद में लगे है। यही कारण है कि कुछ ब्‍लागर सिर्फ कुछ ब्‍लागों तक ही कूपमंडूप दिखते है। उनकी सीमाएं सिर्फ आपस मे ही लै टिप्‍पणी दै टिप्‍पणी तक ही होती है।

अनुगूँज के बहाने आज काफी कुछ मुँह से निकल गया है,किन्‍तु जो कुछ भी निकला है गलत नही है, आज मेरे किसी भी ब्‍लाग का लिंक शायद ही किसी के बलाग पर हो। किन्‍तु मेरे बर्तमान दो सक्रिय ब्‍लाग पर इस समय दो दर्जन से ज्‍यादा लिंक मौजूद है। मुझे आश्‍चर्य तो तब हुआ कि जब मेरी टेक्नोराटी रेटिंग 54 से घट कर 44 पर आज जाती है। अर्थात आज भी ऐसे तत्‍व मौजूद है जो लिंक हटाने के काम में लगे है। मेरे उपर इन बातों का कोई असर नही होने वाला है मेरे ब्‍लाग पर जो भी अपना लिंक डालने को कहता है मै सहर्ष डालने को तैयार हूँ, मुझे कोई आपत्ति नही है। किन्‍तु वह ब्‍लाग सभ्‍य हो।

मै लिखता हूँ तो सिर्फ आपने पाठको के लिये न किसी व्‍यक्ति विशेष की टिप्‍पणी के लिए, न ही मै किसी की टिप्‍पणी का भूखा हूँ न कि किसी वाह वाह या अति सुन्‍दर शब्‍द सुनने के लिये। मै सप्‍ताहिक लगभग 55 टिप्‍पणी कर पाता हूँ जो पोस्‍ट अच्‍छी लगती है उसी पर करता हॅूं, नही तो जाकर वापस भी आ जाता हूँ। यही कारण है कि किसी किसी की 6-7 माह पुरानी पोस्ट पर भी टिप्‍प्‍णी हो जाती है।

जहाँ तक अनुगूँज की घोषणा हो गई है और मै अनुगूँज की बहिष्कार करता हूँ, क्योकि मै किसी कि मठाधीशी और चाटुकारिता नही करूँगा। भाड़ में जाये अनुगूँज और भाड़ मे जाये मठाधीशी, आज 4 माह बाद अपने लेख को अनुगूँज पर न देखकर निश्चित रूप से दुख तो हुआ ही है। अब मै दोबारा अवसर नही दूंगा।



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महात्‍मा गांधी - एक आधुनिक कटु सत्‍य




मैंने कुछ अक्टूबर माह में ऑरकुट पर एक प्रश्न पूछा था कि क्या गांधी को राष्ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है? जिस पर इस ब्‍लागर समुदाय में इसे आरकुटिया महाभियोग की संज्ञा दिया गया। था। इस पर काफी लोगों को प्रतिक्रियाएँ देखने और पढ़ने को मिली आपका प्रतिक्रियाएं फिर काभी पढ़ाऊंगा। क्योंकि प्रतिक्रियाएं इन परिणामों से ज्यादा रोचक है, यह मेरा वादा है। किन्तु इस प्रश्‍न का जो परिणाम था वह आश्चर्यजनक है। आज जिस गांधी जी की दुहाई देकर राष्‍ट्र को धोखा दिया जा रहा है उन गांधी जी को 65 प्रतिशत लोग राष्ट्रपिता नहीं मानते है, 34 प्रतिशत लोग उन्हें राष्ट्रपिता के रूप में देखते और 1 प्रतिशत बंधु कोई राय नहीं रखते है।

आज गांधी जी पर प्रश्‍न उठाने पर हो हल्ला किया जाता है कि गांधी जी ने ये किया, गांधी जी ने वो किया, गांधी जी भगवान है, गांधी जी से पहले दाग लगाने से पहले सोचना चाहिए। आदि बाते इस बात की ओर इंगित करती है कि आज के समाज का 35 प्रतिशत हिस्‍सा 65 प्रतिशत हिस्से पर हावी है। जिस प्रकार राम सेतु के मुद्दे पर सरकार द्वारा बहुसंख्यक वर्ग पर कुठाराघात किया गया उसी प्रकार आज के समाज में कुछ प्रभावशाली लोगों का ही राज है। गांधी जी को इस प्रकार पूजा जाता है कि जैसे पहलवान वीर बाबा। गांधी जी को पूजना गलत नहीं किन्तु गांधी वाद के नाम पर अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को ठगा नहीं जाना चाहिए।

संघ लोक सेवा आयोग की परीक्षा में जैसा प्रश्‍न भगत सिंह के नाम पर पूछा गया वह सर्व विदित है, आज मुट्ठीभर कुछ लोग देश की जन भावना को आतंकित कर रहे है। भगत सिंह को आतंकवादी बताना यही दर्शाता है कि जो भी काम इस देश में हुआ गांधी के कारण ही हुआ। आज रोड़, गली,योजना, परियोजना, स्‍वास्‍थ केन्द्र, तो बिजली घर, डाक टिकट, नोट, आदि सब कुछ गांधीमय ही कर दिया गया। तथा सरदार भगत सिंह, चन्‍द्रशेखर आजाद आदि को आंतकवादी बताकर देश के नौनिहालों को उनके रास्तों से दूर किया रहा है। आज समय है ऐसी दमनकारी नीतियों का दमन करने का, और ऐसे किसी भी प्रस्ताव का विरोध करने का जिसे देश की जनता मनने को तैयार नही है। गांधी को हम पर थोपने के बजाय उन्हें आत्मसात करवाने की जरूरत है न कि सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग करके उन्हें राष्‍ट्रपिता का दर्जा देने की।

यह सर्वेक्षण यह स्पष्ट करता है कि आज से 60 साल पहले भी लोगों पर गांधी जी को लोगों पर थोपा और आज भी थोपा जा रहा है। गाधी जी को थोपना तो मैं मानता हूँ कुछ हद तक ठीक है किन्तु भगत सिंह, सुभाष चन्द्र बोस, आजाद, तिलक आदि को जनमानस से दूर करके का क्‍या औचित्‍य है, कुछ दिनों पूर्व एक राजनेता ने कहा था कि गाधी भी कुछ सालों बाद भगवान की श्रेणी में आ जायेगें और उन्हे भी पूजा जायेगा। निश्चित रूप से यह सरकार का यह कृत्य भगवान राम को नकार कर, श्रीराम के स्थान पर गांधी जी को भगवान का दर्जा दिलाना ही है। जिस प्रकार देश के इतिहास से एक एक कर शहीदों के नाम गायब हो रहे है वह दिन दूर नहीं कि राष्‍ट्रीय प्रियंका-राहुल मेमोरियल ट्रस्‍ट की स्थापना न हो जाये।

इस सर्वेक्षण का मकसद सिर्फ इतना ही था कि लोग गांधी जी सच्चाई को जाने और खुद पर भरोसा कर गांधी-नेहरू परिवार की भाँति अन्य स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का न भूलें। पोल में कुल 1300 से ज्यादा लोगों ने मतदान किया था। भारत नाम कि एक कम्‍यूनिटी में इस प्रश्न को हटा दिया गया किन्तु उसमें भी जब तक प्रश्न था करीब 135 लोगो ने मतदान में हिस्सा लिया था। इस कम्‍यूनिटी के हटने के बाद कुल 1149 मत पड़े जिसमें प्रश्न के पक्ष में 746 विपक्ष में 392 तथा कोई राय नहीं रखने वाले 11 थे। मै नहीं समझता कि मेरा 252 शब्दों का लेख ब्लागर बंधुओं को प्रभावित करता है कि नहीं किन्तु आज ऐसे लोगों की कमी नहीं है जो देश में परिवर्तन चाहते है। यह सर्वेक्षण हमें प्रेरित करता है कि कि हमें इस बात पर विचार करना होगा कि क्या सरकारों के दबाव में हमें अभी भी महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता मानना उचित है ?

आप इन लेखों पर भी अपने नज़र जरूर डालेगें-

महात्‍मा गाधी पर मेरे विभिन्‍न लेख

गांधी का अहं
गांधी वाद खडा चौराहे पर !
भारत दुर्दशा के जिम्‍मेदार
गांधी के आड़ मे भारतीयता पर चोट
क्‍या गांधी को राष्‍ट्रपिता का दर्जा दिया जाना उचित है? 
 


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महाशक्ति स्‍थापना दिवस



 


हर वर्ष की भातिं इस बार भी हम लोगों ने महाशक्ति का स्‍थापना दिवस 5 नवम्‍बर को मनया। इस मौके पर हमारे सभी साथी उपस्थित थे। यह हमारे लिये एक अनुपम दिन होता है, कि 8 साल पुराने साथी एक फिर से साथ साथ होते है।

कार्यक्रम की शुरूवात ताराचन्‍द्र के द्वारा लाये गये पुष्‍प से सभी ने माता सरस्‍वती के चरणों में पुष्प अर्पण करके हुआ। राजकुमार ने पुरानी यादों को तरोताजा किया। तो कामता प्रसाद भी अपने महाशक्ति से जुड़ाव के सम्‍बन्‍ध में बाते बाताई। अभिषेक शर्मा ने दिल्‍ली से फोन पर ही सभी को बधाईयॉं दी। अन्‍य आमत्रित साथियों ने भी अपनी बात रखी।

अन्‍त में मैने भी बातें रखी और महाशक्ति समूह विषय मुद्दे को चर्चा के लिये रखा, महाशक्ति के नये सामूहिक ब्‍लाग महाशक्ति समूह का सभी ने करतल घ्‍वनि से स्‍वागत किया। इस ब्‍लाग की बात सुनते ही कवि जा़लिम जी ने भी अपने को इस समूह में शामिल करने की बात कही और उन्‍हे भी तत्‍काल निमत्रण दे दिया गया।

महाशक्ति समूह में शामिल सभी सदस्‍यों को विशेष धन्‍यवाद दिया गया कि वे हमारे मनोरथ कार्य के सहभागी बनें। कार्यक्रम का अन्‍त भारत-पाक मैच के साथ चाय और समोसे से किया गया। :)



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ब्‍लागवाणी बनाम चिट्ठाजगत : शीतयुद्ध




विवादों की लोकप्रियता खत्म होने का नाम ही नही ले रही है। आये दिन कोई न कोई नया महाभारत चिट्ठाकारी के इतिहास में जुड़ता चला जा रहा है। हाल में ही जारी हुई ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत के बीच जारी हुआ शीत युद्ध इस बात का गवाह है कि आने वाले समय में कई लोग अपने आपको इस चिट्ठाकारी के भगवान सिद्ध करने में लगे होंगे।
विवादों को चिट्ठाकारी में विवादों को तूल देना तो एक चलन जैसा बन गया है और कुछ लोग उसमें समर्थन और निंदा के द्वारा अपनी आशाओं की रोटी सेकने में लगे रहते है। एक छोटी सी घटना से दो दिग्गजों को लड़ा बैठी, दिग्गजों की लड़ाई मलाई और मजा कोई और मार रहा है। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि कुछ लोग ऐसे भी है जिन्हें इस प्रकार के काम में मजा आता है।
ब्लॉगवाणी और चिट्ठाजगत प्रशासन के बीच में चल रहा यह शीत युद्ध न थमा तो न केवल उन दोनों की प्रतिष्ठा गर्त में जाएगी बल्कि काफी कुछ नुकसान भी होगा जो वे कभी भर नही पायेगें। यहॉं खेद आलोक जी या शिरिल जी के चिट्ठे के एक दूसरे के एग्रीगेटर पर होने या न होने की नही है, खेद तो इस बात है कि जब आप एक दूसरे के प्रतिस्‍पधी हो तो क्‍यो इच्‍छा करते हो कि आपका ब्‍लाग किसी के अन्‍य एग्रीगेटर पर रहे। अगर यह लड़ाई किसी एग्रीगेटर और ब्‍लागर के बीच होती तो मै समझ सकता था कि यह कुछ ठीक काम किया जा रहा है किन्‍तु जब यह युद्ध सीधे-सीधे एग्रीगेटर के मध्‍य है तो हंसी भी आती और दुख भी होता है। जहॉं तक मुझे याद है कि नारद की विफलता के परिणाम स्‍वरूप दो चिट्ठा एग्रीगेटरों का अवरतण हुआ था और दोनो ही अपने आपको श्रेष्‍ठ शिद्ध करना चाहते थे। सही कहूँ तो मुझे हंसी आती है कि कोई मकान मालिक दूसरे के घर में शरणार्थी बन कर रहने के लिये जंग लड़ रहा है। कहा जाता है कि आवाश्‍यकता अविष्‍कार की जननी होती है, दोनो ने अपने अपने अविष्‍कार स्‍वयं किये किन्‍तु दोनों ही चिन्‍ता कर रहे है कि मै क्‍यो नही हूँ उनके वाले में, ऐसा देखने को पहली बार मिल रहा है। मेरे ख्‍याल से सभी को अपनी ऊर्जा अपने आपने रचनात्‍मक कार्यो में लगानी चाहिए न कि इन प्रकार के लफड़ो में, लफड़ो को हमारे लिये ही छोड़ दिया करों भाई हमारा टाईम पास हो जाया करेगा।
मै मनता हूँ कि ब्लॉगवाणी ने आलोक जी के चिट्ठे को हटा कर ठीक नहीं किया किन्तु किसी भी ब्लॉग को रखना या न रखना एग्रीगेटर नियंत्रक के हाथ में है, ब्लॉगवाणी न कोई सरकारी या सामूहिक या धर्मार्थ संस्था है जो हर चिट्ठे को अपने यहां स्थान देने के लिये बाध्य है और न ही चिट्ठाजगत। हर व्यक्ति अपने उद्देश्य से कोई काम शुरू करता है चूंकि ब्लॉगवाणी का भी अपना उद्देश्य रहा होगा। आलोक भाई ने जिस प्रकार व्यथा जाहिर की उनके ब्लॉग को ब्लॉगवाणी से हटा दिया गया है वह अपनी जगह पर ठीक हो सकता है किन्तु एक वरिष्ठ चिट्ठाकार और एक अन्य एग्रीगेटर के मुखिया होने नाते यह कहना ठीक नहीं था। मै अर्थशास्त्र का विद्यार्थी हूँ एक आलोचना अक्सर अर्थशास्त्र में की जाती है‍ कि एडम स्मिथ ने धन को साध्य बना दिया है, जबकि साध्य तो मनुष्य और उसकी संतुष्टि है। इसी तरह प्रश्न उठता है कि चिट्ठा साध्य है या एग्रीगेटर। मेरी नज़र में तो साध्‍य तो चिट्ठा है किन्‍तु आलोक भाई के इस बात से कि ब्‍लागवाणी पर चिट्ठा यह दर्शाता है कि साध्‍य तो एग्रीगेटर है न कि ब्‍लाग।
आज हर ब्‍लागर एग्रीगेटर पर निर्भर करता है, पर मै यह नही मानता हूँ, कि आज के दौर में किसी भी पुराने ब्‍लागर के लिये एग्रीगेटर का महत्‍व है। अनूप शुक्‍ल, समीर लाल, मसि‍जीवी, अलोक पुराणिक, ज्ञानजी, तथा मेरा खुद का चिट्ठा किसी एग्रीगेटर का नही मोहताज है। एग्रीगेटर तो एक माध्‍यम है त्‍वरित भीड़ एकट्ठा करने कि जबकि भीड़ उतना मायने नही रखता है जितना कि आपका सच्‍चा पाठक रखता है। हर व्‍यक्ति का अपना दूसरे के चिट्ठे को पढ़ने का तरीका होता है, मेरा अपना तरीका है और ज्ञान जी का अपना हम दोनो ही चिट्ठा पढ़ने के लिये किसी एग्रीगेटर पर निर्भर नही है। समीर लाल, अनूप जी, सागर भाई, तथा और अन्‍य मनपंसद चिट्टे मै सप्‍ताह में एक दिन ही पढ़ता हूँ, और चाहे पोस्‍ट पुरानी हो या नई जो अच्‍छी लगती है उसी पर टिप्‍पणी करता हूँ।( अनूप जी, समीर लाल जी मेरी बात की पुष्टि करें :) ) ऐसे कई दर्जन से ज्‍यादा ब्‍लाग है जो मै सप्‍ताह में एक बार ही खोलता हूँ। जिसके लिये मुझे किसी एग्रीगेटर की जरूरत नही पड़ती है, ब्‍लाग लेखक का प्यार वहॉं तक अपने आप मुझे लेकर चला जाता है।
थोड़ा मै एग्रीगेटर की भूमिका पर आना चाहूंगा कि यह कितना जरूरी है, मै सिर्फ अपने चिट्ठे की बात करूँगा, मार्च माह में विभिन्न साइट से मेरे ब्लॉग पर आने वाले लोगों की संख्या 350 के आस पास थी जिसमें एग्रीगेटर का प्रतिशत 75 के आस पास था, तब केवल नारद और हिन्दी ब्लॉग्स का ही अस्तित्व था किन्तु आज अगस्त में कुछ ज्यादा सक्रिय था और मेरे ब्लॉग पर आने वालों की संख्या करीब 1036 की थी जिसमें एग्रीगेटर का प्रतिशत 60 के आस पास था। किन्तु सितम्बर में अपनी असक्रियता के कारण कुल 650 के आस पास पाठक आये जिसमें सभी एग्रीगेटरों का प्रतिशत 55 से भी कम था। इस बात को बताने का मेरा उद्देश्य यही है कि पाठक संख्या के हिसाब से जब मै गर्त में था तो एग्रीगेटर का प्रतिशत ज्यादा था किन्तु जब अगस्‍त में मेरी पाठक संख्‍या मेरी ब्लॉगिंग इतिहास में सर्वाधिक हुई तो एग्रीगेटर का प्रतिशत सामान्य रहा और घटा भी, और सितम्बर में जब फिर पाठक कम आये एग्रीगेटर का प्रतिशत वही रहा।







समय सारणी
यहॉं मेरा कहने का उद्देश्‍य यही है कि एग्रीगेटर से लेख पढ़ने का काम 90 प्रतिशत से ज्‍यादा ब्‍लागर ही करते है, जो पहले नारद पर निर्भर करते थे आज चार अन्‍य पर निर्भर है। अर्थात चारों एग्रीगेटरों के आने से पाठकों के प्रतिशत में वृद्धि के बजाय गिरावट ही हुई। जो पाठक पाठक मेरे 75 प्रतिशत दो एग्रीगेटर से आते थे वही 60 प्रतिशत अब चार एग्रीगेटरों से आते है। ऐसा नही है कि मेरे पाठकों में गिरावट हुई है और इस कारण प्रतिशत गिर गया। मेरी पाठक संख्‍या मार्च के मुकाबले सितम्‍बर में 125 ज्‍यादा थी। अर्थात स्‍पष्‍ट होता है कि कुछ पाठको ने ब्‍लाग पढ़ने का माध्‍यम बदल लिया। और आज मै यह गर्व से कह सकता हूँ मेरे चिट्ठे को अगर एग्रीगेटर से हटा भी दिया जाये तो मेरे ब्‍लाग की सेहत पर कोई असर नही पडने वाला है। इसी तरह श्री समीर लाल जी, श्री अनूप शुक्‍ल जी व कई अन्‍य श्रीमान जी के ब्‍लाग के सेहत पर ज्‍यादा असर नही पड़ने वाला है।
हॉं एग्रीगेटर का उपयोग तो मसालेदार पोस्‍टों के लिये ही ज्‍यादा है जिसमें त्‍वरित टिप्‍पणी ही जायके दार तड़के काम करती है। सही कहूँ तो आलोक जी का ब्‍लाग ब्‍लागवाणी पर नही था किन्‍तु विवदित पोस्‍टों के होने से उनकी सेहत पर कोई असर नही पड़ा और एक एग्रीगेटर के बल बूते भरपेट पाठकों को खिलाया, तथा बहती गंगा में कई और भाई हाथ धो लिये जिसमें अब मै भी शामिल हो गया हूँ :) श्री आलोक जी की ब्‍लागवाणी के प्रति की गई पोस्‍ट वास्‍तव में मुझे कतई अच्‍छी नही लगी, जिसमें वे स्‍वर्ग से उतरी गंगा की तरह पूरे प्रंचड वेग में दिख रहे थे, जिस प्रकार उन्‍होने श्री अरूण जी की टिप्‍पणी को एक दर्जन बार से ज्‍यादा लिंकित किया वह ठीक नही था, उनके ब्‍लाग को पढ़ कर लगा रहा था कि अरूण जी अगर उन्हे मिल जाये, तो फ्री मे एक इन्‍टरटेनमेन्ट कार्यक्रम की शुरूवात हो सकती है। मुझे अफशोस की यह ब्‍लागवाणी और चिट्ठाजगत की ओर से प्रयोजित कार्यक्रम अयोजित न हो सका। :)
आज मैंने सुबह अनूप जी सही ही कहा था कि चिंगारी तो अरुण जी तो थे ही किन्तु ज्वनशील पदार्थ श्री आलोक जी में पहले से मौजूद था, जब उनका ब्लॉग ब्लॉगवाणी पर आ गया था तो क्या पोल-खोल कार्यक्रम आयोजित करना जरूरी था :) मुझे आलोक जी के पोस्‍ट तमाशे से ज्यादा कुछ नही लगी, और ऐसे तमाशे की कोई जरूरत नहीं थी। यह मुझे लगता है कि एक ब्लॉगर नहीं एग्रीगेटर के स्वामी का स्वाभिमान सामने आ गया था। श्री आलोक जी की वह पोस्ट कष्ट पहुँचाई है, क्योंकि उनकी भाषा बिल्कुल बदल गई थी। आलोक भाई मै आपसे निवेदन करूँगा कि इस प्रकार में पचड़े में पढ़ने से अच्छा है कि सार्थक कामों में समय दीजिए, आपका चिट्ठा किसी एग्रीगेटर की वजह से नही है बल्कि कई एग्रीगेटर आपके चिट्ठे की वजह से है।
एक निवेदन मै श्री शिरिल गुप्त जी से भी करना चाहूंगा, कि आपने अपने पूज्य पिताजी के आदर्शों पर चलें, और उनके द्वारा बताये गये राह पर चलें। मुझे आदमी पहचानने में देर नही लगती है। जितना मैने मैथली जी को अकेले में (अरूण जी कुछ खाने पीने की सामग्री लेने चले गये थे) पॉंच मिनट में जाना है वह व्‍यक्ति किसी के लिये आदर्श हो सकते है। आये दिन मै भी नारद से नाराज रहा करता था‍ किन्‍तु जब मैने दिल्‍ली में मैथली से मिला तो उनसे काफी कुछ सीखने को मिला, उनसे जब नारद विषय बात हुई तो उन्‍होने यही कहा कि नारद परिवार ने जो कुछ भी चिट्ठाकारी और हिन्‍दी के लिये किया वह किसी अन्‍य के लिये करना नामूम‍कीन है। इसलिये कभी भी अक्षरग्राम परिवार के खिलाफत मत किया करों, विरोध हो तो विरोध करो कभी प्रतिशोघ मत करना। इसलिये मै यह मानने को तैयार नही हूँ कि मैथली जी किसी के प्रति भेदभाव करेगें, उनके अन्‍दर हिन्‍दी और हिन्‍दुस्‍थान के प्रति काफी सम्‍मान है। मै उनके इस कार्य से अभिभूत हूँ मेरी एक इच्‍छा है कि एक बार फिर से ज्‍यादा से ज्‍यादा समय उनके साथ अकेले में बिताऊ। :) शिरिल जी मै आपसे भी मिला हूँ और चाहूँगा कि आप भी आपने पिताजी की तरह आदर्श बने, आप में क्षमता है, मुझे किसी प्रकार का संदेह नही है। आपका ब्‍लाग किसी एग्री पर है या नही है यह ज्‍यादा महत्‍व नही है, आप भी अपनी ऊर्जा सकारात्‍मक कार्यो में लगाईये।
एक व्‍यक्ति की बात किये बिना मेरी इस पोस्ट अधूरी रहेगी, वो व्‍यक्ति है श्री अरूण अरोड़ा जी। श्री आलोक जी ने अरुण जी कि टिप्पणी को काफी तवज्जो दी जो एक प्रकार से अनावश्यक थी। श्री आलोक जी की यह बात कि मै भी पंजाबी हूँ, और मुझे भी बोलना आता है। श्री आलोक जी एक बात स्पष्ट कर दूँ, आप भी बोल सकते है किन्तु जो बोलती बोली बच्चों के मुँह से लगती है वह बड़ों के मुँह से नहीं। जो बातें अरुण जी की अच्‍छी लगती है वह आपसे नहीं लगेगी। और जो आप बोलोगे वह अरुण जी के मुंह से नहीं अच्छा लगेगा। जहाँ तक मै अरुण जी से मिला हूँ, वो एक अच्छे इंसान है और स्वभाव से भी बेहतरीन है। मै उनसे भी मिला था, कभी लगा ही नहीं कि वह मुझे अपना पराया मान रहे थे, हर व्यक्ति पर हक नहीं जताया जा सकता किन्तु मै उन पर हक जता सकता हूँ और जताया भी है, तब मै दिल्‍ली में था और अकेला महसूस कर रहा था तो मैंने बड़ी गुस्से मै रौद्र रूप में उन्हें हड़काया था, शायद सुबह 6:00 रविवार के दिन उसकी नींद खुली रही होगी। पता नही मैने सुबह सुबह क्‍या क्‍या कहा होगा मुझे याद नही है। उन्‍होन फोन पर कहा कि भाई गलती हो गई माफ करों, बस तुरंत बदरपुर बार्डर पहुँचों मै तुम्‍हे लेने आ रहा हूँ, उसके बाद कई बार उन्‍होने मुझे फोन करके हाल चाल लेना लगे, पर उनकी काल रीसिव करने की बाजाय काट कर उन्हे खुद मिला देना था, उन्‍होने मुझे डाटा कि ये क्‍यो कर रहे हो ? हॉं उन्हें मेरे पैसों की चिंता थी, किन्तु मुझे अपने पैसों कि चिंता थी जब मैने उन्हें बताया कि उनकी काल रिसिव करने पर मुझे ज्यादा पैसे देने पढ़ रहे थे, बजाय करने के तो वे हंस पड़े :) मुश्किल से 3 घण्टे के अन्दर मै उनके साथ था। और काफी अच्छा महसूस कर रहा था। इसलिये श्री अरुण जी अखरोट की तरह है बाहर से बिल्कुल कड़क और अंदर से नरम। अरुण जी जैसे भी अच्‍छे है और मुझे उसमें कोई परिवर्तन नहीं चाहिए पर उनसे भी एक निवेदन करूँगा कि संयत भाषा कभी कभी ज्यादा कड़क भाषा से ज्यादा कड़क हो जाती है। आप संयत का प्रयोग ज्यादा किया करें। :)
इस पोस्ट का उद्देश्य यही था कि आपस में प्यार बंटाने से भी प्यार बढ़ेगा, कभी आप लोग जो विवादों में फंसे रहते है अगर गौर कीजिएगा तो पाएंगे कि जब आप अपनी दूरी को कम करेंगे तो एक नये परिवार को पायेगें। सभी को शुभकामनाऐ सहित कामना करता हूँ कि विवादों का अंत करें।

आप सभी को सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि 1 नवम्बर से महाशक्ति समूह सक्रिय हो जायेगा, और करीब 11 लेखक इस पर लेखन कार्य करेंगे, हमारा उद्देश्य विद्यार्थियों को एकत्र करने का है, किन्‍तु हर किसी काम में बड़ों का‍ मार्गदर्शन जरूरी होता है इसलिये कई अन्‍य बन्धु भी है, किन्तु पूरा का पूरा ब्लॉग विद्यार्थी आधारित ही है। जैसा कि मैंने पोस्ट मे कहा है कि नये ब्लॉग को एग्रीगेटर की जरूरत होती है, और इसी लिये मै चाहता हूँ कि सभी एग्रीगेटर इस नये ब्लॉग को अपने अपने जगह त्वरित स्थान देने का कष्ट करें। अगर भावना वश कुछ ज्‍यादा कह गया हूँ, तो सभी लोग अनुज समझ कर माफ कीजिएगा। पर मेरी राय/इच्छा यही है कि शीत युद्ध बंद होना चाहिए।


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जा रही हो, अब दोबारा मत आना



 


आज सुबह से ही मन व्‍यथित था, जब यह समाचार पढ़ा की मार्टीना हिंगिस ने पुन: संन्‍यास ले लिया है, यह किसी भी टेनिस प्रंशसक को व्‍यथित करने वाला समाचार है। खबर थी कि विम्‍बडन के दौरान कुछ प्रतिबन्धित दवाओं के सेवन की दोषी पाई गई थी, और हिंगिस ने अपने आपको 100% निर्दोष हूँ, किन्‍तु मै वाडा (प्रतिबन्धित दवाओं की जॉंच संस्‍था) से लड़ाई के नही चाहती हूँ। मैने हिंगिस के लिये लिखा है काफी मजा आया है लिखने में पर आज नही लिख पा रहा हूँ। हिगिंस जा रही हो, अब दोबारा मत आना, एक बार पहले भी गई थी, तब भी दर्द हुआ था आज तुमने फिर से उसी जगह पर ला कर खड़ा दिया है। अब बर्दाश्‍त के बाहर है, एक बार मारो बार बार नही। मेरे लिये हि‍गिंस के प्रति लिखना बाये हाथ काम है किन्‍तु मन इतना व्‍यथित है कि क्‍या कुछ लिखा नही जा रहा है। हिगिंस मै तुम्‍हे न भूल पाऊँगा। हिगिंस के सम्‍मान में आपके सामने फिर से अपने लेख का लिंक दे रहा हूँ।

भारत मे हिगिंस ने किया जोरदार वापसी आगाज



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