आईना देखे भड़ास पर प्रतिबन्‍ध करने वाले



आज वक्‍त यह है कि प्रचीन समय की गंदगी फैलाने वाला ब्‍लाग आज, प्रतिबन्‍ध की मॉंग कर स्‍वच्‍छता अभियान छेड़ रहा है। यह एक हस्‍यास्‍पद बात लग रही है। ऐसे लोगों द्वारा प्रतिबन्‍ध की मॉंग करना, शीशे को समाने रख कर थूकने के समान है, थूकते समय कुछ लोग यह भूल जाते है कि जिस शीशे के सामने रख कर थूक रहे है, सामने उनका चेहरा ही है।
भड़ास की 200+ भड़ासियों की संख्‍या देखकर कई को अपने समूहिक ब्‍लागिंग के मठ उजडने का खतरा मठाधीशों को नजर आ रहा है। मै कभी भी भड़ास की भाषा का समर्थक नही रहा हूँ, किन्‍तु भड़ास पर किसी प्रतिबन्‍ध की मॉंग करने का विरोध करूँगा। मै भाषा भाषा के आधार पर प्रतिबन्‍ध लगाया जा सकता है तो मॉंग करने वालों पर पहले लगना चाहिऐ।
भड़ास पर प्रतिबन्‍ध की मॉंग, निश्चित रूप से गलत कदम है, क्‍योकि जो खुद की नंगे हो उन्‍हे दूसरों को नंगा करने की नही करनी चाहिऐ। मै सदासर्वदा भड़ास की भाषा का विरोध करता हूँ, और यही कारण है कि उस ब्‍लाग पर बहुत कम जाता हूँ।
मेरे भड़ास के प्रतिबन्‍ध की मॉंग का विरोध को कतई भड़ास की भाषा का समर्थन नही है, भड़ास की भाषा का मै विरोधी रहा हूँ जब तक भाषा नही बदलती है विरोधी रहूँगा।
शेष फिर .......  
भाषा से तात्‍पर्य -- अश्लील भाषा से है


Share:

टिप्पणी में Virus तो नही ?



मुझे पिछले कुछ दिनों से अपने विभ्न्नि ब्‍लागों पर अनचाही टिप्‍पणी मिल रही है, जिसमें एक लिंक दिया होता है। मैने उसे खोलने की जहमत तो नही उठाई किन्‍तु यह परेशानी का एक सबब जरूर बन रहा है क्‍योकि हो सकता है कि यह कोई वाईरस हो ? और कोई पाठक अन्‍जाने में इसे न खोल से, जानकार भाईयों से अनुरोध है कि बारे में उचित राय देने का कष्‍ट करें। वह टिप्‍पणी लिंक सहित यहॉं इस लिये नही दे रहा हूँ ताकि किसी पाठक को कोई नुकसान न पहुँचे। कृपया उचित मार्गदर्शन करें। 
यहां पर वे लेख है जहॉं पर वह टिप्‍पणी है - 


Share:

मठाधीशी के आगे झूठ भी सच पर भारी पड़ता है



चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा लेख से काफी कुछ सीख मिली, कुछ भाईयों को स्‍नेह मिला तो कुछ के रोष का शिकार हुआ। पंकज भाई की बात मुझे बहुत अच्‍छी निश्चित रूप से मै उसे अमल में करने की कोशिश करूँगा। पंकज भाई सहित कई नाम ऐसे है जिनसे मैने इस चिट्ठाकारी में ब‍हुत कुछ सीखा है, पर भाई आपने मेरे लिये कुछ प्रश्‍न छोड़ रखे थे जिन्‍हे अनु‍त्तरित छोड़ना कठिन था- भाई जी अगर आप देबाशीष जी की टिप्‍पणी और मेरी पोस्‍ट को ध्‍यान पूर्वक पढ़ा होता तो आप यह न पूछते कि उन्‍होने क्‍या है? मै कतई बैन की बात को न उठाता, किन्‍तु जैसी टिप्पणी देबाशीष जी पढ़ी उससे तो मुझे लगा कि उनकी यही मंशा लगी कि आ बैल मुझे मार। क्‍योकि मेरा उनसे सिर्फ यही पूछना था कि आखिर किस बात पर मुझे बैन किया है? अगर मैने यह पूछकर गलत किया तो मै गुनाहगार हूँ। अगर कोई मेरे बैन का सही कारण न बताकर, अपनी ही बात बल दे कि जो मैने किया सही किया तो मै यह भी मानने को अब तैयार हूँ कि चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है। अगर निर्दोष होते हुऐ, अपने को दोषी ठहराये जाने का विरोध करना गलत है तो मै यह भी मानने को तैयार हूँ कि मै गलत हूँ। देबाशीष जी के पक्ष में लामबन्‍द टीम, यह जानना जरूरी न समझे कि बात क्‍या थी कि सच्‍चाई क्‍या है तो मै यह भी स्‍वीकार करने को तैयार हूँ कि मठाधीशी नही है। यह सब मेरे स्‍वीकार कर लेने से शायद गलत कदम सही नही मान जायेगा। मुझे टिप्‍पणी के आलावा कुछ नि‍जी ईमेल भी मिली थी किन्‍तु उसका जिक्र करना ठीक नही है क्‍योकि मैने उन्‍हे अपनी बात ईमेल से ही बता दी थी।
समदर्शी भाई आप ही बातये कि शीर्ष पुरूष अगर खुद ही भिडने को तैयार हो तो मेरी क्‍या भूमिका होनी चाहिये? आपकी बातों और इरादों से मै समझ सकता हूँ कि एक बड़ा छोटे से क्‍या अपेक्षा रखता है। और आपने अपनी भावनाऐं प्रकट की अच्‍छा लगा। मेरा कतई उद्देश्‍य नही था कि कोई विवाद हो, ममला शान्‍त ही रहता अगर अगर देबाशीष जी की बात में सच्‍चाई थी कि मैने साम्‍प्रदायिक पोस्‍ट की थी तो, मेरे स्‍पष्‍टीकरण माँगे जाने पर मौन क्‍यो? अगर मेरा स्‍पष्टिकरण मॉंगना गलत है तो स्‍पष्‍ट करें कि सही क्‍या है? खुद सोचिये भरे समाज में कोई चार जूते आपको मार कर चला जाये और आप आपको पता न हो कि आपका आपराध क्‍या है?
अमित भाई थोक मेल की बात मैने आपको बताई थी और जहॉं जहॉं वह थोक मेल गई थी उसके लिये मैने वहॉं पर पुन: ऐसी घटना न होने की बात कह आया था। सच बात जानना चाहते है तो मैने थोक मेल 25/1/2008 की गई थी तथा मुझे 24 जनवरी को ही बैन कर दिया गया था। अगर मै बैन न होता तो भूलवश वह ईमेल जरूर चिट्ठकार ग्रुप मेल में जाती किन्‍तु बैन के चलते वह ईमेल मेरे पास लौट आई, जिसका प्रमाण मेरे पास है। मै किसी की भैस को अपनी नही बनाने जा रहा हूँ, और तो और चारागाह में जाकर उसे छेडने का प्रयास भी नही किया। फिर यह मेरे ऊपर झूठा आरोप लगाना कि चार्टर का उलंग्‍घन किया है तो यह गलत है। मै मौन था और मौन रहना ही चहता था किन्‍तु मौन की अपनी सी‍माऐं होती है।

आलोक भाई आपने चिट्ठकारी और मठीधीशी की परिभाषा से रूबरू करवाया अच्‍छा लगा। जहाँ तक मेरा मानना और समझना है तो मैने यही जाना है कि कई व्‍यक्ति एक विषय की परिभाषा कई प्रकार से दे सकते है, जैसे एडम स्थिम अर्थशास्‍त्र को धन की विज्ञान कहते थे तो मार्शल भौतिक काल्‍यण सम्‍बन्धी और धीरे धीरे अर्थशास्‍त्र की परिभाषा व्‍यापक होती गई अर्थशास्‍त्र नही बदला, इसी प्रकार चिट्ठकारी के आप बहुत पुराने ब्‍लागर है और आपकी परिभाषा क्‍लासिकल श्रेणी में आती है किन्‍तु वर्तमान में चिट्ठाकारी में जो बदलाव आये है उसमें यह कहना गलत होगा कि मठाधीशी नही है। मठाधीशी यही है कि एक प्रभावी व्‍यक्ति की ही तरफदारी करना, वह व्‍यक्ति गलत यह जानते हुऐ भी न जानने का ढोग करना मठाधीशी ही होती है। मठा‍धीशी की चिन्‍ता करना जायज है क्‍योकि नासूर में सड़न पैदा होने से पहले ही काट दिया जाना चाहिऐ। आज बात कहना इसलिये भी आवश्‍यक है कि भविष्‍य के लिये यह सबक रहे।
आज अनूप जी की टिप्‍पणी पहली बार ही, कष्‍ट नही दे रही है, इसके भी उदाहरण मेरे पास बहुत है किन्‍तु मै देना उचित नही समझता हूँ, उनके ये शब्‍द इ‍सलिये भी कटु है क्यों मै जानता हूँ कि वह मुझसे बहुत लगाव रखते है। मै मानता हूँ कि भाषा महत्‍व रखती है किन्‍तु मेरी भाषा की समीक्षा करने से पहले देबाशीष जी की समीक्षा भी की जाने चाहिए थी, क्‍योकि मेरा यह लेख उनके भाषाई लहजे का प्रतिउत्‍तर था। मुझे निराशा इसलिये भी हुई कि आना वस्‍तुस्थिति को देखना और मुस्‍करा कर चल देना। 
कृतीश भाई आपकी भावनाओं का कद्र करता हूँ, मेरा विरोध इस बात से नही है कि साईट उनकी नही, तथा इस बात का भी नही कि उन्‍हे नियम निर्धारण का अधिकार नही है। बस मेरा बार-बार यही कहना है कि नियम और व्‍यक्ति के आड़ में मनमानी नही होने देना चाहिऐ।
नीरज भाई आपको भी अफशोश हुआ जान कर दु:ख हुआ, आप भी शोक सभा में शामिल हुऐ धन्‍यवाद।
कानून के जानकार द्विवेदी जी की अनुपस्थि‍ती भी खल रही है क्‍योकि जो कुछ भी बात आगे बढ़ी उसमें वि‍धि, कानून का उल्‍लेख होने कारण बढ़ी, अगर द्विवेदी जी देवाशीष जी की बात को कानून सम्‍मत न कहते तो शायद बात इतनी आगे न जाती, क्‍योकि बिना पूर्ण प्रकरण जाने उनके द्वारा न्‍याय कर दिया जाना, मुझ जैसे विधि के छात्र के लिये कष्‍टदायक था।
मेरे पास इस लेख को लेकर कई मेल आये और मैने उनके जवाब भी दिये किन्‍तु किसी के उत्तर नही मिला, मै समझ सकता हूँ उनकी मनोदशा क्‍या होगी? 
 
मेरे लिखने का उद्देश्‍य पूरा हुआ, मै अपनी बात रखना चाहता था, रखा मै जानता था कि गलत कार्यवाही की गई और बहुत लोग स्‍वीकार भी करते है। आज क्‍या हुआ यह कल के लिये इतिहास होगा, और इतिहास कभी भुलाया नही जाता है। जो हुआ नही उसका दोषी ठहराया जाना गलत है और अपनी बात को सा‍‍बित करने के लिये इस तर्क का सहायता लेना की चिट्ठकार मेरी सम्‍पत्ति है मुझे मनमानी करने का पूरा हक है तो इससे ज्‍यादा गिरी हुई हरकत और क्‍या हो सकती है? चिट्ठाकार पर बैन का विरोध इसलिये नही है कि उस मंच से मुझे कोई विशेष लाभ मिलता है, बात यही है कि जो भी सदस्‍य उस पर मेरे स्‍टेसस को देगेगें उनके मन में यही आयेगा कि निश्चित रूप से गलत काम करने के कारण यह बैन हुआ है। हर व्‍यक्त्ति को अपने नाम और सम्‍मान की चिन्‍ता होती है, और मुझे भी है।
 
जो भी देवाशीष जी का सर्मथन कर रहे है, चाहे उनकी प्रथम चिट्ठकार पुरूष होने के कारण या फिर मठाधीशी में प्रभावी स्थिति के कारण मुझे किसी कोई शिकायत नही है, किन्‍तु इतना जरूर कहना चाहूँगा कि वे सच्चाई को लाख झूठ के पुलिन्‍दे के आड़ में छिपा ली जाये सच्‍चाई छिपती नही है। आज देवाशीष जी की चुप्‍पी उनके दोषी और मेरी बेगुनाही का सबूत है। क्‍योकि ऐसा कुछ हुआ ही, जिसका प्रमाण दे सकें। और जो सच्‍चाई है वह आपके समाने है। अगर झूठ के सर्मथन में इतने लोग खडे हो जाये तो यह कहना कि मठाधीशी नही है अपने आप में झूठ के रूप में सच होगा क्‍योकि मठाधीशी के आगे झूठ भी सच पर भारी पड़ता है और आज पहली बार देखने को मिल रहा है कि जिससे जानबूझ एक्‍सीडेन्‍ट किया, लोग उसी का सर्मथन कर रहे और घायल को दोषी ठहरा रहे है। उक्‍त लेख पर टिप्‍पणीकारों के मत से तो यही प्रतीत होता है। बस मेरा यही कहना है कि देबाशीष को जो मनमानी करनी हो करें मुझे उससे कोई मतलब नही है किन्‍तु मेरे नाम को लेकर वह कुछ गलत काम करेगें वह असहनीय है। नैतिकता इसी में है कि वह झूठ का सहारा न ले और मेरे बैन को समाप्‍त करें, और मै उस ग्रुप को सहर्ष त्‍याग दूँगा।


Share:

एक और सच



आये दिन देश में मुस्लिमों की दशा को लेकर आरक्षण का खेल खेला जाता है और इस खेल में पिसता है बहुसंख्यक वर्ग का अधिकार। आज ये आंकड़े अपने आप में बहुत कुछ बायन कर रहे है कि देश की वर्तमान स्थिति क्या है? मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि का दो कारण है कि उनकी धार्मिक रूढ़िवादिता तथा दूसरी है घुसपैठ अगर इन दोनों विषयों से निपट लिया जाये तो निश्चित रूप से मुस्लिमों को देशा की मुख्‍य धारा से जुड़ने से कोई रोक नही सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें-

1991 से 2001 के बीच बांग्लादेश से सटे असम
सीमावर्ती: जिलों का जनसंख्या वृ
द्धि प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
मुस्लिम
गैर मुस्लिम
कुल
धुबरी
29.5
7.1
22.9
ग्वालपाड़ा
31.7
14.4
23.0
हैलाकांडी
27.2
13.3
20.9
करीमगंज
29.4
14.5
21.9
कछार
24.6
16.0
18.9
अन्य जिले
बरपेटा
25.8
10.0
18.9
नगांव
32.1
11.3
22.2
मारीगांव
27.2
16.3
21.2
दरांग
28.9
9.6
15.8
असम की जनसंख्या में मुसलमानों का बढ़ता प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
1991
2001
धुबरी
70.4
74.3
ग्वालपाड़ा
50.2
53.6
हैलाकांडी
54.8
57.6
करीमगंज
49.2
52.3
कछार
34.5
36.1
अन्य जिले
बरपेटा
56.1
59.4
नगांव
47.2
51.0
मारीगांव
46.0
47.6
दरांग
32.0
35.6
पश्‍िचम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या (प्रतिशत में)
सीमावर्ती जिले
1991
2001
दक्षि24 परगना
29.9
33.2
उत्तर 24 परगना
24.2
24.2
नादिया
24.9
25.4
मुर्तिशाबाद
61.4
63.7
मालदा
47.5
49.7
कोलकाता
17.7
20.3
दक्षिण दिनाजपुर
36.8
38.4
उत्तर दिनाजपुर
36.8
38.4
जलपाईगुड़ी
10.0
10.8
कूच बिहार
23.4
24.2
कुल
23.6
25.2

यदि आज कोई सच में मुस्लिमों का हितचिंतक है और उनकी दशा और दिशा की चिंता करता है तो इन आंकड़ों पर गौर करे और उन्हें धार्मिक अंधविश्वास से दूर कर, उनके समुचित जीवन के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, और घुसपैठ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिऐ क्योकि घुसपैठी न तो हिन्दू न मुसलमान, घुसपैठियों घुट पेठिया होता है तभी अरब के देशों में भी घुसपैठ मुस्लिमों के साथ अत्यधिक कड़ा रुख रखा जाता है।


Share:

चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा



देवाशीष जी का साक्षत्‍कार पढ़ रहा था कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है किन्‍तु उनकी बातों में कितनी सच्‍चाई है, यह बात उनके कृत्‍यो के द्वारा पता चलता है। उक्‍त लेख पर मैने एक टिप्‍पणी चिट्ठाकार पर अपने प्रतिबन्‍ध को लेकर की थी और जानना चाहा था कि क्‍या वास्‍तव में चिट्ठाकारी में मठा‍धीशी नही है? उस टिप्‍पणी के प्रतिउत्‍तर में देबाशीष जी की जो प्रतिक्रिया मिली कि चिट्ठाकार गूगल समूह न होकर एक उनका व्‍यक्तिगत साईट है, और उस पर उन्‍हे पूर्ण मनमानी करने का अधिकार है। शायद आप सब को भी पता नही होगा कि जिस चिट्ठकार समूह के आप सदस्‍य है वह समूह देबाशीष जी की सम्‍पत्ति है और किस श्रेणी के लोगों को आने की अनुमति है और किस को नही। अब जरूरी है कि सच्‍चाई और वास्‍तविकता सामने आये।

अगर देवाशीष जी अपनी टिप्‍पणी को गौर से पढ़े और विश्लेषण करे तो निष्कर्ष यही आयेगा कि देबाशीष जी ने खुद की बातो को घता साबित किया है। देवाशीष जी की उक्‍त टिप्‍पणी निम्‍न है Debashish said...

प्रमेंद्र, आपने यह राज़ क्यों बनाये रखा मैं नहीं जानता। चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है। स्पष्ट लिखा है कि समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे। यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है। अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं। मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे। यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही। मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा।

मै देवाशीष जी की ही टिप्पणी का क्रमबद्ध उल्‍लेख करूँगा, उनकी बिन्‍दुवार उनकी टिप्‍पणी के अंश तथा उसके नीचे मैने अपनी बात रखी है -
चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है।

कई लोगों को नही पता होगा कि ‘’चिट्ठाकार समूह’’ आपकी प्रोपराईटरशिप में चल रही है अन्‍यथा मुझ जैसे कई लोग आपके चिट्ठाकार समूह के नाम से बने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल की सदस्‍यता ग्रहण न करते। मुझे चिट्ठकार समूह पर आपके द्वारा किये गये बैन पर हर्ष है कि इस बाबत कई लोगों को सच्चाई से रूबरू होने का अवसर मिला, कि वे किसी सामुदायिक चिट्ठाकार समूह के सदस्य न होकर किसी की नि‍जी सम्‍पत्ति में घुसे हुऐ है। आप जिस प्रकार से चिट्ठाकार समूह का नेतृत्‍व कर रहे है इससे यह नही प्रतीत होता है कि चिट्ठाकार समूह कोई समुदायिक विचार का मंच है, जैसा कि आपके बातों से भी स्‍पष्‍ट हो गया है। नेतृत्‍व हर समाज में होता है, इसमें प्रोपराईटरशिप या स्‍वामित्‍व की बात कहॉं से आ जाती। आपके द्वारा दिये गये तथाकथित व्‍यापार चार्टर लिंक को मैने अपने बैन होने के बाद काफी पढ़ा था। किन्‍तु आपके अन्‍दर का भय मुझे आज दिखा, कि जो चिट्ठाकार सर्वजनिक तौर पर खुला रहता था आज वह बन्‍द है। उस चार्टर को बन्द करके फिर लिंक देकर मुझे पढने के लिये कहना, हँसने योग्य प्रसंशनीय कार्य है।


समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे।

मुझे आपकी इस उत्‍तर पर तरस आ रहा है, कि आप इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे है। क्‍योकि आपने टिप्‍पणी मे कहा था कि - समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं किन्‍तु मै इस बात का पूर्ण खंडन करता हूँ कि मेरे द्वारा 2006 से आज तक चिट्ठाकार समूह तो क्‍या किसी भी समू‍ह पर इस तरह की पो‍स्टिग नही की गई है, तो नियमों के उल्‍लंघन की बात कहाँ से आ जाती है। मेरी आपत्ति के बाद आपका तर्क प्रस्‍तुत करना नैतिक दायित्‍व है, जबकि आप इस समूह का नेतृत्‍व कर रहे है। यदि आप इसके प्रोप्राइटर या मालिक है तो नैतिकता समाप्‍त हो जाती है। स्‍पष्‍ट है कि जब अपराध हुआ ही नही तो चेतावनी क्‍या? कार्यवाही क्‍या ? आप पिछले कई महीनों से मठाधीशी की परिभाषा तलाश रहे है मेरे याद दिलाने से ज्ञान हो गया होगा। इसी के साथ पुन: एक कहावत कहना चाहूँगा – कस्तूरी कुंडल बसै , मृग ढूढै वनमाही। आप फिर कहेगे कि मै आपको शिखड़ी के बाद मृग कह रहा हूँ। पुनरावलोकन कर लें कि मैने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल के किसी नियम का उल्लघन तो नही किया। अगर मेरे द्वारा संदेश नही गया तो किसी नियम के उल्‍लघंन का प्रश्‍न ही कहाँ उठता? बिना नियमों के उल्‍लंघन के मेरी चिट्ठाकारी की दुकान का राजिस्‍ट्रेशेन कैन्सिल करना न्‍यायोचित नही है।


यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है।

आपको ही बैन जैसे लुच्‍चे साधनों की आवाश्‍कता होगी, क्‍योकि आप हिन्‍दुत्‍व से अपने को दूर रखना चाहते है। हिन्दुत्‍व ही सर्वधर्म सम्‍भाव कि बात करता है, असली सेक्यूलरिज्‍म हिन्‍दुत्‍व में ही पोषित होता है। बाकी तो आपकी ही तरह पूछते रहते है कि मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्‍या काम है? जहॉं तक ब्‍लाग्स की बात है तो मेरे लिये लिखने के मंचों की कमी नही है। जहाँ तक गूगल समूह की बात है तो आपकी व्‍यापार मंडल भी गूगल के रहमोकरम पर ही है, और गूगल तो सबके माई-बाप है। माई-बाप की जागीर में सभी संतानो का हिस्‍सा बराबर का होता है। चालबाज संताने ही पूरे पर दावा ठोकती है। समूह बनाना कौन सा बड़ा काम है? बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं, कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ||एहि धनु पर ममता केहि हेतू, सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू || मैने भी खेल खेल में बहुत से समूह और ब्‍लाग बना डाले है, पर स्‍वामित्‍व का ऐसा दावा, मतभिन्‍नता रखने वालो पर इतना बड़ा प्रहार मुझसे आज तक न हुआ। जहॉं तक मतैक्‍य की बात है तो मुझे लगता है आपका ही मत लोगो से नही मिलता है, तभी जो भी आता है आपकी घंटी बजाकर चला जाता है, किसी का नाम लेने की जरूरत नही है। जहॉं तक मूँग दलने की बात है तो आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मूँग की दाल काफी मॅहगी है, पेट खराब होने पर काफी फयादा करती है। ऐसी चीज दलने में नुकसान ही क्‍या है? खुद ही सोचिये व्‍यापार मंडल की साइट पर मूँग नही दला जायेगा तो क्‍या मौसम की जानकारी प्रकाशित होगी? वैसे मेरे पास व्‍यापार मंडल में न तो मूँग दलने का समय है न बाजार लगाने का, मुझे लगाता है कि मूँग दलने और इस तरह के बाजार लगाने की आपकी पुरानी आदत है। आप आपने आदत से मजबूर है, नही तो अकारण बैंन नही लगातें।
 
अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
 
आपको तरस खाने की जरूरत नही है वैसे आप कुछ भी खा सकते है, मूँग की दाल खाइये, फायदा करेगी। जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि मठाधीशी तो कुछ के रग रग में है, जो अकारण सम्‍प्रभु बने रहने की कोशिश करते रहते है, मुझे आपका नाम लेने में जरा भी हिचक नही है। क्‍योकि जो कर्म आपने किया और फिर सीना जोरी के साथ सबके सामने यह कह रहे है कि आप चिट्ठकार व्‍यापार मंडल के प्रोपइटर है तो यह आप अपनी सबसे बड़ी मूर्खता को उजागर कर रहे है।
 
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं।
 
अकारण प्रतिबंध दुराग्रह नही तो क्‍या है? जो कहना था आप कह सकते थे किन्‍तु लगता है कि आप प्रतिबंधित कर अपनी ताकत का प्रर्दशन करना चाहते थे। आपको यह कैसे लगा कि यह शत्रुता का व्‍यवहार कर रहा हूँ, हर चोर को दूसरा आदमी चोर ही नज़र आता है। मुझे तो नही लगता कि आपकी कोई अपनी विचारधारा है, सिवाय पिचाल खेलने के।
 
जहाँ तक मुझे लगता है कि मेरी कई व्‍यक्तियों के साथ वैचारिक दूरी है, वह संघ, गांधी, हिन्‍दुत्‍व के अलावा बहुत कुछ विषय है। हम एक दूसरे की खिचाई करते है किन्‍तु व्‍यक्तिगत दुराग्रह नही करते। किन्‍तु आपका मामला भिन्‍न है जो आपके आधीन और आपके नक्‍शेकदम पर नही चलता उसकी कोई विचारधारा नही। यह हिटलरशाही, तुगलकशाही, सद्दामशाही नही तो और क्‍या है? इसी को साहित्यिक भाषा में मठाधीशी कहते है।
 
मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे।यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही।
 
लगता है कि आपकी ऑंखे ठीक काम नही कर रही है, अगर न कर रही हो तो चश्‍मा लगवा लीजिऐ। क्‍योकि जिस लेख की बात आप कर वह मानवेन्‍द्र जी का है मेरा नही, क्‍योकि उन दिनों मै अपने ब्‍लाग से अनुपस्थित था और जिसकी स्‍पष्‍ट सूचना ब्‍लाग के हेडर पर मौजूद थी। एक बात स्‍पष्‍ट कर दूँ कि आपके चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल पर प्रतिबंध के बाद वह लेख आया था। इससे यह कहना कि शुरूवात मैने की है यह निहायत ही ओछा आरोप है जो सर्वथा गलत है।
 
मुझे लगता है कि आपने मैथिली जी की बात भी स्‍पष्‍टता से नही पढ़ी क्‍योकि मैथिली जी ने कही भी क्लीन चिट नही दिया है क्‍योकि उनका कहना था कि – हो सकता है ? अर्थात उन्‍होने गांरटी के साथ नही कहा है कि गलती नही हुई है। मैथिली जी ने यहॉं श्रेष्‍ठ अग्रज की भूमिका निभाई है दो के विवाद के निपटारे के लिये उन्‍होने यह बात कहीं थी न कि किसी को सही साबित करने के लिये।
 
अब आप अपने आपको शिखड़ी मानो या शूपनर्खा, इसमें मेरा क्‍या दोष है ? जहॉं तक की गई टिप्‍पणी को देखने के बाद कोई छोटा सा बच्‍चा भी यह कहेगा कि यह किसी व्‍यक्ति विशेष के लिये नही कहा गया है, किन्‍तु चोर की दाढ़ी में तिनका यहीं दिखाई पढ़ता है, तिनका हो न हो चोर अपनी दाढ़ी जरूर साफ करता है। अब आप अपने शिखड़ी समझ रहे है तो भला चोर की दाढ़ी मे तिनका कहने वाले का क्‍या दोष ?
 
चूकिं तत्‍कालीन लेखन ने वह टिप्‍पणी भाटिया जी के ब्‍लाग पर की थी किन्‍तु भाटिया जी ने उसे प्रकाशित नही किया। तो लेखक को अपनी बात टिप्‍पणी से परे होकर ब्‍लाग पर करनी पड़ी।
 
मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा!
 
आपकी यह बात खुद ही उक्‍त लोगों से आपकी वैचारिक दूरी को उजागर करती है। आपकी महानता ही है कि उक्‍त लोगों को किस प्रकार इस समूह में झेल रहे है। उक्‍त लोग आपके सदैव आभारी रहेगे कि आपने अभी तक इन पर अपने प्रोप्राइटरी कार्यवाही का दंडा चला कर इनका रजिस्‍ट्रेशन कैन्सिल नही किया।
 
श्री देबाशीष जी की टिप्‍पणी के सर्मथन में एक और टिप्‍पणी आई थी मै उसका भी उल्‍लेख करना चाहूँगा, जो जरूरी है -
दिनेशराय द्विवेदी said...
देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद्।
मैं उन के इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे कि संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उस की सहमति से कर रहे हैं। आप एक लायसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।
16 February, 2008 5:18 PM
श्री द्विवेदी जी अधिवक्‍ता है विधिक मामलों के जानकार है, कानून क्‍या कहता है जितना उन्‍होने पढ़ा वह कह दिया। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि विचारमंच कभी किसी की सम्‍पत्ति नही हो सकती है, और यदि आप कानून के जानकार है तो आपको पता होगा कि किसी कारखाने का मालिक, प्रोपराईटर जब अपने किसी अदना से नौकर को भी उसकी गलती की वजह से कम्‍पनी से निकालता है तो उसे चार्टशीट देनी होती है, उसे उसके अपकृत्‍य से बिन्‍दुवार अवगत कराया जाता है, तथा एक इन्‍क्‍वाईरी ऑफिसर नियुक्‍त किया जाता है जो मामले की पूर्ण जॉंच करता है। जहॉं तक सम्म‍पत्ति की बात है तो मकान मालिक और किरायेदार के सम्‍बन्‍ध में राजस्‍थान के कानून भारत के अन्‍य राज्‍यों से बहुत ज्‍यादा भिन्‍न नही होगें, और शायद प्राकृतिक न्‍याय के सम्‍बनघ में भी आप अ‍नभिज्ञ है। किसी की कब्‍जेदारी को वि‍मुक्‍त करना एक पूर्ण विधिक प्रक्रिया है। जिसके पालन न किये जाने की गणना आपराधिक अपकृत्‍य में की जाती है। आपने उपयुक्‍त टिप्‍प्‍णी की अपेक्षा नही थी। किसी अधिवक्‍ता का इस प्रकार का कथन सच में उसकी विधिक अनभिज्ञता का घोतक है।


Share:

ब्‍लागवाणी पर पंसदगी की व्‍यवस्‍था है तो नपंसदगी की भी होनी चाहिऐ



काफी दिनों से मेरे मन में यह प्रश्‍न उठ रहा था कि मै ब्‍लागवाणी की कुछ कमियों को उजागर करूँ। उन कमियों में मुझे लगता है कि पसंद ब्‍लागवाणी की सबसे बड़ी कमी है क्‍योकि यह पंसद लेख को पढ़ने से पहले आ जाती है। अर्थात जब कोई लेखे अभी तक पढ़ा नही गया है तो वह पंसद कैसे हो जाता है ? क्‍योकि कोई चिट्ठाजगत या नारद से पढ़ कर तो ब्‍लागवाणी पर पंसद करने आयेगा नही। :) 
 
एक कल्‍पना मन में उपजी की पंसद की जगह अगर नापसंद का उल्‍लेख होता तो ब्‍लागवाणी पर लेखे की इस सूची का क्‍या रूप रेखा होती यह सोच कर मुझे हँसी आ रही है। क्‍योकि बहुत से लेख या लेखक ऐसे होते है जिन्‍हे कुछ लोग पंसद करने ही नही है, और इस प्रक्रिया में हम कह सकते है कि लेख नापंसद किया गया। मेरे मानना है कि लेख के लिये साकारात्‍मक वोट की व्‍यवस्‍था है तो नकारात्‍मक राय की भी व्यपस्‍था होनी चाहिऐ ताकि लेख को नापसंद के न‍जरिये से भी देखा जा सकें। 
 
यह प्रयोग भी अजमाया जरूर जाना चाहिऐ क्‍योकि नापंसदगी का नजरिया निश्चित रूप से नया क्रान्तिकारी कदम होगा, जो मुझ जैसे कई लेखको को वाट लगाता रहेगा :)


Share:

कवि कुलवंत से मुलकात और उनके सम्‍मान के बीच महाशक्ति की 200वीं पोस्‍ट



हिन्‍दी चिट्ठाकारी में कवि कुलवंत सिंह कोई आम नाम नही है, कवि कुलवंत मुम्‍बई स्थित भाभा परमाणु शोध संस्‍थान में साइन्टिफिक ऑफिसर पद पर कार्यरत है। कहा जाता है कि जिस व्‍यक्ति का कद जितना बड़ा होता है, वह उतना ही विनम्र होता है। जब विनम्रता की बात आई है तो मुझे एक छोटी कहनी याद आ रही है उसका उल्‍लेख करना चाहूँगा।
एक बार एक राजा अपने सैनिको के साथ शिकार पर निकलते है, किन्‍तु हाथियों के झुंड के भंयकर हमले में उनकी सैनिक तिरत बितर हो जाते है। वही दूर रात्रि में एक एक दीपक की रोशनी में एक अन्‍धा साधू अपनी कुटिया के बाहर बैठा था। तभी एक आदमी आया बोला- ऐ सूरदास! हमारी सेना हाथी के हमले से बिछड़ गई है यहॉं आदमी तो नही आया था? साधू बोला कि हे सैनिक अभी कोई नही आया आप जाकर मेरी कुटिया में आराम करें जब कोई आयेगा तो मै अवश्‍य बता दूँगा, और सैनिक कुटिया में चले जाते है। फिर एक और आदमी आता है और फिर उसने हे साधु जी कह कर वही प्रश्‍न दोहराया। और साधु ने मंत्री शब्‍द का सम्‍बोधन कर उसे अपनी कुटिया में भेज दिया। कुछ देर पश्‍चात एक और आदमी आता है और वह साधू को हे महात्‍मन कह कर सम्‍बोधित किया और साधू ने उन्‍हे राजन कह कर सम्‍बोधित किया। 
साधू जी महाराज अन्‍धे थे किन्‍तु उन लोगों की वाणी के द्वारा पहचान लिया कि कौन व्‍यक्ति कैसा है। इसी प्रकार कुछ कवि कुलवंत जी के साथ भी मैने अनुभव किया कि उनकी बात के साथ उनका व्‍यक्तित्‍व झलकता है। शनिवार 16 फरवरी को उन्‍होने मुझे रात्रि 10.45 बजे अपने इलाहाबाद आगमन की सू‍चना दी, जैसा कि मैने पिछली पोस्‍ट में बताया था कि कवि कुलवंत का इलाहाबाद में सम्‍मानित किया है। अगले दिन अर्थात रविवार को पूरे दिन कवि कुलवंत का कार्यक्रम तय था और फोन पर ही उन्‍होने दोपहर 11 बजे का मिलने का समय दिया। अगले दिन मै करीब 11.15 पर उनके सम्‍मान समारोह स्‍थल पर मय साथीगण पहुँच गया,और सायं 4 बजे तक उनके कार्यक्रम मे शामिल रहा। इस दौर छोटी मोटी बाते हो जाती थी, किन्‍तु जो चिट्ठाकार मिलन वार्ता होना चाहिए था वह सम्‍भव नही हो पा रहा था। क्‍योकि वहॉं पहले से कार्यक्रम का सम्‍पदन हो रहा था और भारत के अनेको प्रान्‍त से कवि और साहित्‍यकार पधारे हुऐ थे। लगभग 3.30 बजे कवि कुलवंत को करीब 300-350 व्‍यक्तियों की करतल ध्‍वनि के बीच सम्‍मान से अलंकृत किया गया। एक चिट्ठाकार को सम्‍मानित होता देख मेरे मन को अत्‍यंत प्रसन्‍नता हो रही थी। सम्‍मानित होने के पाश्‍चात वे हमारे ( मेरे और ताराचंद्र) के पास आये और हम दोनो ने उन्‍हे बधाई दिया। कार्यक्रम करीब रात्रि 8 बजे तक का था हम बहुत चाहते थे कि कवि सम्‍मेलन में उनको सुनना किन्‍तु हमारे घर से बार बार मोबाइल पर बुलावा आ रहा था। और हम दोनो मित्रों ने अन्तिम भेंट समझकल उन्‍हे चरण स्‍पर्शकर पुन: इलाहाबाद भ्रमण का निमंत्रण दिया। और क्‍योकि इस बार उनके व्‍यस्‍त कार्यक्रम में यह नही हो सका। कवि कुलवंत की बहुत इच्‍छा थी परन्‍तु उनका कार्यक्रम बहुत व्‍यस्त था। हमारे मित्र तारा चंद्र ने कहा कि कवि कुलवंत को कल सुबह संगम स्‍नान करवा दिया जाये किन्‍तु तब तक हम लोग कार्यक्रम स्‍थल से काफी दूर हो चले थे। इसके बाद मै और ताराचंद्र काफी देर तक उनके बारे में बात करते रहे।
 
अगले दिन फिर कवि कुलवंत जी का फोन आया और वे कहने लगे कि स्‍टेशन से बोल रहा हूँ, सोचा चलते चलते नमस्‍कार करता चलूँ। मैने तुरंत पूछा कि आपकी ट्रेन कितने बजे कि है? उन्‍होने बताया कि करीब 30 मिनट में आ जायेगी और इसके आगे मुझे पता था कि स्‍टेशन पर 30 मिनट रूकेगी भी। मैने कहा कि आप 5 मिनट रूकिये मै आपसे मिलने आ रहा हूँ, उन्‍होने मना किया कि तुम्‍हे कुछ काम होगा, मैने कहा कि हॉं अध्‍ययन कर रहा था किन्‍तु कवि कुलवंत से मिलने का अवसर फिर जल्‍द नसीब होगा। यह सुनकर वे प्रसन्‍नता से बोले आ जाओं। मै तुरंत जैसे को तैसा भेष में मिलने पहुँच गया क्‍योकि समय का ध्‍यान रखना था, अगर टिप टॉंप होने लगता तो समय जाया जाता :) 10 मिनट के अन्‍दर ही मै स्‍टेशन पहुँच गया और हजारों की भीड़ में उनकी पगड़ी ने मुझे उन्‍हे पहचानने में पूरी मदद कर दी। फिर हम दोनो काफी देर तक आपसी चर्चा करते रहे। यह चर्चा इस लिये भी महत्‍वपूर्ण थी क्‍योकि कल हम लोग करीब 6 घंटे साथ होने के बाद भी कुछ बात न कर सकें थे। इसके बाद महाशक्ति, महाशक्ति समूह, मेरे पाठक संख्‍या, हिन्‍द युग्‍म, ब्‍लावाणी, श्री ज्ञान दत्‍त पाण्‍डेय जी, श्री समीर लाल, एडसेंस, श्री अनूप शुक्‍ल जी, श्री अमित अग्रवाल, श्री रविरतलामी सहित कई विषयों पर चर्चा हुई।
 
सर्वप्रथम उन्‍होने महाशक्ति के बारे मे जाना कि मै उस पर क्‍या करता हूँ? मैने उन्‍हे बताया कि यह मेरा वह ब्‍लागर है जिसे कुछ लोगों द्वारा सामप्रदायिक ब्‍लाग की संज्ञा दी जाती है। (यह सुनकर वे हस पड़े और मै भी मुस्‍कारा दिया।) महाशक्ति समूह के बारे में, मैने बताया कि इस ब्‍लाग का उद्देश्‍य अनियमित तथा नये ब्‍लागरों को मंच देना है क्‍योकि नये और अनियमित ब्लागर जब छिटके रहेगें तो उन्हे वह प्रोत्‍साह नही मिल पाता है जो मिलना चाहिए, इसी लिये यह मंच बनाया गया है। यही कारण है महाशक्ति समूह में जिसे जब समय मिलता है तब लिखता है, कोई बंधेज नही है कि वो अप्रकाशित रचना ही डाले। अनिय‍मित का नाम सुन कर वे प्रशन्‍नता से बोले कि अनियमित तो मै भी हूँ क्‍या मुझे महाशक्ति समूह में जगह मिलेगी, यह शब्‍द सुनकर मेरी प्रसन्‍नता की सीमा नही दिख रही थी, मैने कहा कि यह तो मेरे और समूह के लिये गौरव की बात होगी। उन्‍होने मेरे पाठको की संख्‍या जाननी चाहिए, मैने स्‍पष्‍टता से कहा कि मै महीने में चाहूँ लिखू या न लिखू सभी ब्‍लागों पर 750 से 2500 तक की औसत से महीने मे सभी ब्‍लागों सभी ब्‍लाग पर 4000 से 8000 तक पाठक आ जाते है। हिन्‍द युग्‍म पर भी चर्चा की और कभी देर तक एक दूसरे के विचारों को सुनते रहे। ब्‍लागवाणी के बारे में भी चर्चा हुई। अनूप शुक्‍ला जी के बारे में बात किया गया कि फुरसतिया वही है। ज्ञानदत्त जी के ब्‍लाग ज्ञानदत्‍त पाण्‍डेय की मानासिक हलचल पर भी चर्चा हुई उनका पूछना था कि उनहोने इतना बड़ा नाम क्‍यो रखा? इसका उत्‍तर तो मेरे पास न था किन्‍तु मन में जरूर सोचा कि कभी पांडेय जी से जरूर पूछूँगा :) मैने उन्‍हे यह भी बताया कि समीर लाल जी भी आ रहे है, इसी स्‍थान पर उनसे भी मिलना होगा। उन्‍होने महाशक्ति समूह को और बढ़ाने की बात कही किन्‍तु मैने अपनी समस्‍या का हवाला दिया जिसमें धन भी था, इसी पर एडसेस पर बात शुरू होती है, मैने उनसे कहा कि अभी मेरे पास समय का अभाव है धन का भी, मेरी पहली प्रथमिकता होगी कि मै अपनी पढ़ाई पूरी कर वकालत पेशे से जीविकोत्‍पार्जन में आऊ क्‍योकि आज हिन्‍दी में इतना पैसा नही है कि हम इस पर काम कर सकें। उन्‍होने पूछा कि क्‍या ब्‍लाग से पैसा कमाया जा सकता है मैने कहा कि एडसेंस से ऐसा होता है और अग्रेजी में अमिल अग्रवाल एक बड़ा नाम है जैसा कि हिन्‍दी के कई बलागरों से सुना है किन्‍तु हिन्‍दी में रवि रतलामी का नाम आता है जिन्होने अभी तक यह बताया है कि उनका ब्राडबैंड का खर्चा निकल आता है। जहाँ तक मेरा एडसेस से मेरा तालुक है तो मुझे अपने दो साल कि ब्‍लागिंग में कोई उप‍लब्धि नही मिली है, हॉं यह जरूर कह सकता हूँ कि अगर आपके 25000 तक पाठक प्रति माह के हो तो आप कुछ उम्मीद कर सकतें है। यही कारण है कि मैने अपने महाशक्ति ब्‍लाग से विज्ञापन हटा भी दिया क्‍योकि मेरा नया टे‍म्पलेट की शोभा विज्ञापनो से खराब हो रही थी कहो तो अब विज्ञापनो के लिये जगह नही है।
 
इतनी चर्चा हो ही रही थी कि अचानक उन्‍होने कहा कि मै ट्रेन की स्थिति देख लूँ, यह कह कर वे देखने चले गये, लौट कर आये तो घबरा कर बोले की ट्रेन तो प्‍लेटफार्म नम्‍बर 6 पर आयेगी और छूटने में पॉच मिनट बाकी है, हम दौड़ते हुऐ प्‍लेट नम्‍बर पॉच पहुँच गये, वहॉं पहुँच कर पता चला कि ट्रेन अभी 30 मिनट और लेट है। अन्‍तोगत्‍वा मै और कवि कुलवंत जी करीब अगले 1 घन्‍टे तक विभिन्‍न मुद्दो पर चर्चा करते रहे और एक दूसरे को बेहतर जानते रहे।
 
अन्‍तोगत्‍वा रेल ने हमारी चिट्ठाकार मिलन वार्ता की समाप्ति की सीटी बजा दी। रेल की सीटी तथा कवि कुलवंत के चरणस्‍पर्श के साथ ही जल्‍द ही पुन: मिलने के वायदे के साथ यह भेंट वार्ता समाप्‍त हो गई।

महाशक्ति की 200वीं पोस्‍ट
आज यह बातते हुऐ खुशी हो रही है कि इस पोस्‍ट के साथ ही महाशक्ति ब्‍लाग पर आज 200 पोस्‍ट पूरे हो गये। यह 200 पोस्‍ट मेरी व्‍यक्तिगत उपलब्‍धी नही है इसे पूरे होने में श्री मानवेन्‍द्र जी के 3 तारा चन्‍द्र के 8, राजकुमार के 1 तथा मेरे 188 लेखो का योगदान है। मेरे व्‍यक्तिगत ब्‍लाग पर अन्‍य लेखको के लिखने का भी रोचक इतिहास है, - महशक्ति समूह के गठन से पहले वे महाशक्ति पर ताराचन्‍द्र और राजकुमार महाशक्ति पर लिखते थे किन्‍तु महाशक्ति समूह के गठन के बाद से वही के हो गये। और फिर कुछ दिनों पूर्व एक दौर ऐसा भी आया कि मै खुद करीब दो हफ्ते तक महाशक्ति ब्‍लाग मेरे नियत्रंण नही रहा और इसका पूरा जिम्‍मा मेरे भइया मानवेन्‍द्र प्रताप सिंह ने ले लिया और उन्‍होने अपने स्‍वाभाव के विपरीत किसी ब्‍लाग के लिये पहली बार लेखा लिखा। मेरे ब्‍लाग के इस दोहरे शतक पर अपने सहयोगियों को बधाई तथा 200 लेखों के पाठको से मिले स्‍नेह को प्रणाम करता हूँ।


Share:

मोनिका सेलेस (Monica Seles) का भी अलविदा



मार्टीना हिंगिस (Martina Hingis) की असमयिक विदाई से टेनिस प्रेमी उबरे भी नही थी कि विश्‍व टेनिस इतिहास में अपने जोरदार आवाज के द्वारा प्रतिद्वन्‍दी खिलाड़ी को स्‍तब्‍ध कर देने वाली मोनिका सेलेस (Monica Seles) ने भी अपने सन्‍यास की घोषणा कर दिया। मोनिका एक महान खिलाड़ी है जो अपने खेल के दम पर चार ऑस्ट्रेलियन, तीन फ्रेंच ओपन और दो यूएस ओपन सहित 9 ग्रैन्‍डस्‍लैमों पर कब्‍जा किया। कहा जाता है कि व्‍यक्ति अपने व्‍यवहार से महान होता है, सेलेस ने संन्‍यास लेते हुए कहा कि टेनिस उनके जीवन का अभिन्‍न अंग और जब कभी भी चैरिटेबल मैच में बुलाया जायेगा वह अवश्‍य खेलेगी। किन्‍तु मुझे अपने प्रशंसकों की कमी खलेगी।

मोनिका सेलेसे वह नाम है जो स्‍टेफी ग्राफ से टेनिस साम्राज्‍य को चुनौती दे रहा था, इसी चुनौती को देखकर स्‍टेफी के एक प्रशंसक Günter Parche 1993 में हैम्‍बर्ग में उनकी पीठ में छूरा भोक दिया। वह 1991 से लेकर इस घटना तक वह विश्‍व की नम्‍बर एक खिलाड़ी रही। इस चोट से वह करीब 3 साल तक नही उबर पाई और 1996 में वापसी कनाडियन ओपन जीत कर की, और अस्‍टेलियन ओपन के रूप में नौवां खिताब जीत कर बता दिया कि उनमें दम है। वापसी के बाद सर्वोच्‍च महिला टेनिस संघ संसय में था कि मोनिका की वापसी पर रैंक क्‍या हो? क्‍योकि वह इस घटना के समय नम्‍बर वन थी, अन्‍तोगत्‍वा टेनिस इतिहास में पहली बार एक समय में दो खिलाड़ी नम्‍बर वन थे।

डब्ल्यूटीए टूर की मुख्य कार्यकारी लारा स्काट ने कहा, 'सेलेस डब्ल्यूटीए टूर के इतिहास की महान चैंपियनों में एक हैं तथा वह दुनिया के लाखों टेनिस प्रेमियों की आदर्श हैं।' उन्होंने कहा 'मोनिका ने कोर्ट पर जीत के लिए जो प्रतिबद्धता और इच्छाशक्ति दिखाई उसे कोई कभी नहीं भूलेगा। कोर्ट के बाहर वह बहुत मिलनसार रही और हमेशा दूसरों की मदद करने में भी आगे रही।'

मोनिका सेलेस का उल्‍लेख इस पोस्‍ट में भी है - भारत मे हिगिंस ने किया जोरदार वापसी आगाज


Share:

प्रत्यक्षा जी को कितने वोट मिले?



तरकश के चुनाव के बारे में मैने अपने पिछले लेख आलोक पुराणिक को हरा दिया, और कह रहे हो कि हार गये में काफी कुछ लिखा था, एक बात का उल्‍लेख और करना चाहता था किन्‍तु किसी कारणवश उस पोस्‍ट में नही कर सका था। अब मै इस छोटी सी मुनिया पोस्‍ट में कर रहा हूँ। :) मै प्रत्‍यक्षा जी से कभी बात नही हुई, न ही चैट से न ही ईमेल के द्वारा किन्‍तु प्रत्‍यक्षा जी पर यह मेरी दूसरी पोस्‍ट है पता नही क्‍यो उन पर लिखने अच्‍छा लगा है। :)

हिन्‍दी ब्लाग जगत में प्रत्‍यक्षा जी को कौन नही जानता है अगर कभी भी हिन्‍दी ब्‍लागर की चर्चा हो तो प्रत्‍यक्षा जी की चर्चा जरूर होती है। पहले जब मै हिन्‍दी ब्‍लाग को पढ़ता था तो प्रत्‍यक्षा जी की जुगलबंदी मुझे बहुत अच्‍छी लगती थी। इस चुनाव में जो सबसे रोचक बात जो सामने आई कि प्रत्‍यक्षाजी को कितने वोट मिले है, यह सभी जानना चाहते थे, और मै भी उनमें से एक था। :) फिर मैन भी तिकड़म लगाया और अनुमान लगाया कि कुल 492 वोट पडे़ थे, और प्रत्‍यक्षा जी को छोड़ कर सभी का मत प्रत्‍यासी के मतों का योग 460 था, और रचना सिंह जी ने बहुत पहले ही अपना नाम वापस ले लिया था, इस प्रकार 32 वोट के आस पास प्रत्‍यक्षा जी को वोट मिले होगें। :) खैर यह आधिकारिक तो नही है किन्‍तु आधिकारिक के काफी निकट जरूर है :)

नजीते चाहे जो भी हो किन्‍तु प्रत्‍यक्षा जी के वोटो की जानकारी पाने वालो की लिस्‍ट देखकर लगता है कि वह कितनी लोकप्रिय है। उनकी कलम को नमन है।

सम्बन्धित का लिंक
प्रत्‍यक्षा जी पर पहली पोस्‍ट - प्रत्‍यक्षा जी का जन्‍मदिन बार बार क्‍यो चला आता है ?


Share: