इलाहाबाद हाई कोर्ट मे पहला दिन



नवरात्रि पर्व की पंचम, दिन मंगलवार आंग्ल तिथि के अनुसार 12 अक्टूबर को आज एक अधिवक्ता के रूप-वेश मे कोर्टरूम में प्रथम दिन था। एक लिहाज से बहुत अटपटा लगा रहा था, क्योंकि यह वेश थोड़ा नया प्रतीत हो रहा था। लेकिन कोर्ट परिसर में मेरे सीनियर और पिताजी के जूनियर्स के बीच हमारी अच्छी आव-भगत और उसका पूरा आर्थिक बोझ लंच हमारे भैया पर पड़ा।
एक लिहाज से पहला दिन बहुत अच्‍छा रहा मुख्‍य न्‍यायधीश कोर्ट मे तालाबंदी थी पता चला कि सीजे लखनऊ मे है। कुछ कोर्ट बैठी थी तो कुछ नही बैठी इसी के साथ उच्‍च न्‍यायालय का दशहरा अवकाश भी प्रारम्‍भ हो गया। प्रात कोर्ट जाने के पूर्व घर मे बड़ो के आशीर्वाद लेकर मंदिर मे प्रसाद के लिये गया और वही पर अपने एक अन्‍य अधिवक्‍ता मित्र जो कि लखनऊ मे उनसे भी बात किया, फिर प्रसाद लेकर अपने दोस्‍तो के घर पर उनके माता-पिता का आशीर्वाद लेने गया।

व्‍यस्‍ताओ के मध्‍य बहुत कुछ काम जो मै नेट पर करना चाहता था किन्‍तु नही कर सका, इधर वर्धा की रिर्पोटो की आज फोटो सुरेश जी के ईमेल से मिली तो याद आया कि मै कुछ बाते भेजना चाह रहा था लेकिन वो भी भूल गया, कार्यक्रम मे सुरेश जी खुश‍ दिख रहे है तो लगता है कि सब अच्‍छा ही हुआ है, सफल कार्यक्रम की सिद्धार्थ जी व अन्‍य आयोजको को बहुत शुभकामनाऍं। अब तक ब्‍ल‍ागिंग की पारी देख रहा था आज से नयी पारी स्‍टार्ट की है चाहूँगा कि उनमे नये मुकामो को छूऊ।

शेष फिर


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महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक



The Great Indian Freedom Fighter Lokmanya Bal Gangadhar Tilak
लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक
भारत के महान स्‍वातंत्रता संग्राम सेनानी बाल गंगाधर तिलक ने देश सेवा तथा समाज सुधार का बीड़ा बचपन में ही उठा लिया था। उनका जन्म 23 जुलाई, 1856 को हुआ था। पहले उनका नाम बलवंत राव था। वे अपने देश से बहुत प्यार करते थे। उनके बचपन की एक ऐसी ही घटना है, जिससे उनके देशप्रेम का तो पता चलता ही है, साथ ही यह भी पता चलता है कि छोटी-सी अवस्था में ही तिलक में कितनी सूझ-बूझ थी।

बाल गंगाधर तिलक भारत के एक प्रमुख नेता, समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी थे। ये भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के पहले लोकप्रिय नेता थे। इन्होंने सबसे पहले भारत में पूर्ण स्वराज की मांग उठाई। इनका कथन "स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर रहूँगा" बहुत प्रसिद्ध हुआ। इन्हें आदर से "लोकमान्य" (पूरे संसार में सम्मानित) कहा जाता था। इन्हें हिन्दू राष्ट्रवाद का पिता भी कहा जाता है।

उस समय भारत अंगरेजों का गुलाम था, लेकिन देश में कुछ व्यक्ति ऐसे भी थे, जो उनकी गुलामी सहने को तैयार नहीं थे। उन्होंने अपने छोटे-छोटे दल बनाए हुए थे, जो अंगरेजों को भारत से बाहर निकालने की योजनाएं बनाते थे और उन्हें अंजाम देते थे। ऐसा ही एक दल बलवंत राव फड़के ने भी बनाया हुआ था। वह अपने साथियों को अस्त्र-शस्त्र चलाने की ट्रेनिंग देते थे, ताकि समय आने पर अंगरेजों का डटकर मुकाबला किया जा सके। गंगाधर भी उनके दल में शामिल हो गए और टे्रनिंग लेने लगे। जब वह अस्त्र-शस्त्रों के प्रयोग में सिध्दहस्त हो गए, तो फड़के ने उन्हें बुलाया और कहा कि अब तुम्हारा प्रशिक्षण पूरा हुआ। तुम शपथ लो कि देश सेवा के लिए अपना जीवन भी बलिदान कर दोगे। इस पर गंगाधर बोले, 'मैं आवश्यकता पड़ने पर अपने देश के लिए जान भी दे सकता हूं, लेकिन व्यर्थ में ही बिना सोचे-समझे जान गंवाने का मेरा इरादा नहीं है। अगर आप यह सोचते हैं कि केवल प्रशिक्षण से ही अंगरेजों का मुकाबला हो सकता है, तो यह सही नहीं है। अब तलवारों का जमाना गया। अब बाकायदा योजनाएं बनाकर लड़ाई के नए तरीके अपनाने होंगे।' यह कहकर गंगाधर तेज कदमों से वहां से चले आए। फिर उन्होंने योजनाबध्द तरीके से देश के अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी।
Lokmanya Bal Gangadhar Tilak Indian Freedom Fighter
  तिलक ने भारतीय समाज में कई सुधार लाने के प्रयत्न किए। वे बाल-विवाह के विरुद्ध थे। उन्होंने हिन्दी को सम्पूर्ण भारत की भाषा बनाने पर ज़ोर दिया। महाराष्ट्र में उन्होंने सार्वजनिक गणेश पूजा की परम्परा प्रारम्भ की ताकि लोगों तक स्वराज का संदेश पहुँचाने के लिए एक मंच उपलब्ध हो। भारतीय संस्कृति, परम्परा और इतिहास पर लिखे उनके लेखों से भारत के लोगों में स्वाभिमान की भावना जागृत हुई। उनके निधन पर लगभग 2 लाख लोगों ने उनके दाह-संस्कार में हिस्सा लिया। 1 अगस्त, 1920 को उनका निधन हो गया।


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