ब्‍लागिंग वाले गुन्‍डो के बीच फंसी चिट्ठाकारी



हिन्दी चिट्ठाकारी आज अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है, आज एक दूसरे की टांग खिंचाई और भद्द मचाने मे लगे हुये है। आज हिन्‍दी ब्‍लागरो की एक ऐसी प्रतियोगिता मची हुई है कि कौन किस पर कितना कीचड़ उछाल सकता है ? कौन किसको कितनी गाली दे सकता है ? क्‍या इन प्रक्रियाओं से हिन्दी ब्लॉगिंग का उन्नयन होगा ?
न ही छोटो को बड़ो का कोई लिहाज है और नहीं बड़ों का बड़प्पन है, सब हिन्दी चिट्ठाकारी को विकाशोन्‍मुख करने मे धक्कमपेल पेले पड़े है। समझ मे नही आता कि वस्तु स्थिति क्या है और कौन अपने आपको क्या सिद्ध करना चाहता है ? वकाई उद्देश्य हिन्दी के उन्नयन का अथवा अपने अहं को न त्यागने का ? आज इसी प्रकार के प्रश्‍न पिछले कुछ दिनो के पोस्ट को पढ़ने के बाद व्यथित होकर लिखना पड़ रहा है।
हिन्दी ब्लॉगिंग न हो गई, पिछड़े वर्ग के साहित्यकारों को आरक्षण देने वाला कानून हो गया है, यह ऐसा कानून है जो ऐसे लोगो को ब्‍लागर अथवा चिट्ठकार नाम देकर अपने के माध्‍यम से एक दूसरे को गरिया कर अपने को पंत और निराला के समकक्ष पर खड़ा सुखद अनुभूति दे रहा हो।
चिट्ठकारी को एक वर्ग ने तमाशा बना दिया है, अनामी का विरोध करने वाले खुद सबसे ज्यादा अनामी बन कर टिप्‍पणी पेलने का सबसे ज्यादा काम करते है, मैने कोई शोध नहीं किया है बल्कि आप खुद दिल से पूछोगे तो यह बात सत्य साबित होगी। आखिर अनामी का विरोध क्यो जरूरी है ? क्‍यो जरूरत है ? अनामियों ने तो मेरी कुछ पोस्‍टो पर गालियां तो मुझे भी दी है किन्तु कुछ अच्छी पोस्ट पर सराहा भी है। सबसे बड़ा प्रश्न की आखिर आनामी है कौन तो, मै स्पष्ट कहना चाहूंगा कि अनामी हमारे में से ही कोई है जो इस प्रकार की गंदी हरकत करता है, और तो और आनामी का नाम करने मे पूरा ग्रुप काम करता है। महाशक्ति पर न माडरेशन कभी था न कभी रहेगा, सुरेश भाई को नैतिक या अनैतिक हार लगती हो तो उनकी निजी राय है लेकिन इस प्रकार की बातो से मै इत्तफाक नही रखता हूँ।
अगर आज हिन्दी चिट्ठाकारी से किसी का नुकसान हो रहा है तो सबसे ज्यादा इसके हितैषियों से, क्योंकि चिट्ठकारी की जड़ो मे ऐसे लोग छाछ डालने का काम कर रहे है। आज कल हिन्दी चिट्ठाकारी मे संघ बनाने का प्रयास चल रहा है ताकि किसी पर बैन लगाने और हटाने का मंत्री मंडलीय कार्यवाही रूप दिया जा सकें, यह तो बात बहुत पुरानी हो चुकी है जब नारद के दौर प्रतिबंध आदि की बात होती थी किन्‍तु विजय सत्‍य की होती रही है। हिन्‍दी चिट्ठकारी का संघ बने या महासंघ न तो हम पर ब्‍लागधीशों की राजनीति का कोई असर होने वाला है और न ही ब्‍लाग बंद करवा सकता है। यह तो हमारी मौलिकता को कोई रोक नही सकता है न ही नाराद के जमाने मे कोई रोक पाया था और न ही आज, हम आये भी तो अपनी मर्जी से और जायेगी भी अपनी मर्जी से, यह जरूर है कि चिट्ठकारो की चमरई से उब का लिखना कम जरूर कर दिया है किन्‍तु बंद होगी इसकी संभावना कम है और होगी भी तो मेरी मर्जी से होगी।
आज सुबह एक पोस्ट पढ़ने को मिली कि अमुक सामुदायिक ब्लॉग से हटा दिया गया है। मेरे समझ के यह बात परे है कि लोग इतना क्यों टेंशन लेते है ? लोग मतभेदों को मनभेद क्यों बना लेते है ? क्या कुछ बातों को इतना तूल देना जरूरी है कि वह एक दूसरे पर हावी हो जाये और आपसी प्रेम को तनिक तकरार में तोड़ दे ? किसी को रखना या न रखना ब्‍लाग मॉडरेटर की इच्छा पर है किन्तु यह भी जरूरी है कि जिसे आपने नियंत्रित किया है उसको तिरस्‍कृ‍त कर निकाला जाए, ठीक है मतभेद है सूचित कर आप हटा सकते है। अगर आपस मे सद्भाव है तो बात ही कोई नही है आना जाना तो लगा ही रहता है। किन्‍तु अब हठ कर यह साबित करने का प्रयास किया जाये कि जो मै कर रहा हूँ वो सही है तो हठी को उसके हठ के आगे कोई गलत नही कर सकता। किन्तु नैतिक रूप मे क्‍या सही है क्या गलत यह सब को पता होता ही है। अत: मेरा स्पष्ट निवेदन है कि चिट्ठकारी में गुंडईराज बंद करो और खुद भी ब्‍लागिंग वाले गुंडे बनाने का प्रयास मत करो। बहुत समय से हिन्दी चिट्ठाकारी में ऐसे गुड़े पाये गये है जो डराते-धमकाते और प्रतिबंध लगाते पाये गये है किन्तु सच्चाई कभी छुपती नही है और यह तो सभी जानते है।


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वीर सावरकर से अन्याय!



वीर सावरकर से अन्याय!वीर सावरकर से अन्याय!

महात्मा गांधी का कहना था-शांति- शांति-शांति
जबकि वीर सावरकर का नारा था -क्रांति-करांति-क्रांति।
लेकिन अफ़सोस आज हम उस मुकाम पर खड़े है जहाँ से इतिहास हमें चुनोती दे रहा है। आज कि पीढी वीर सावरकर के बारे मैं कुछ ज्यादा नहीं जानती है क्योंकि धर्मनिरपेक्षता का रोना रोने वालो ने देश मैं क्रांति का उदघोष करने वालो से अन्याय किया, उनका पूरा इतिहास सामने ही नहीं आने दिया। लाल रंग मैं रंगे बिके हुए इतिहासकारों ने क्रांतिकारिओं के इतिहास को विकृत किया । पाठ्य पुस्तकों से उनके जीवन सम्बन्धी लेख हटाये गए।
वीर सावरकर एक महान राष्ट्रवादी थे। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भूमिका अतुलनीय है। वीर सावरकर भारत के पहले क्रांतिकारी थे जिन्होंने विदेशी धरती से भारत की स्वाधीनता के लिए शंखनाद किया। वो पहले स्वाधीनता सेनानी थे जिन्होंने भारत कि पूर्ण स्वतंत्रता कि मांग की। वो पहले भारतीय थे जिनकी पुस्तके प्रकाशित होने से पहले ही जब्त कर ली गई और वो पहले छात्र थे जिनकी डिग्री ब्रिटिश सरकार ने वापिस ले ली थी। वस्तुत: वह भारतीय स्वाधीनता संग्राम के अमर सेनानी, क्रांतिकारियों के प्रेरणा स्त्रोत, अद्वितीय लेखक, राष्ट्रवाद के प्रवर्तक थे, जिन्होंने अखंड हिंदुस्तान के निर्माण का संकल्प लिया।
उनका सारा जीवन हिंदुत्व को समर्पित था। उन्होंने अपनी पुस्तक 'हिंदुत्व' मैं हिन्दू कोण है की परिभाषा मैं यह श्लोक लिखा--
"आसिंधू सिन्धुपर्यन्तास्य भारतभूमिका ।
पितृभू: पुन्याभूश्चैवा स वै हिन्दूरीति स्मृत:।। "
जिसका अर्थ है कि भारत भूमि के तीनो ओर के सिन्धुओं से लेकर हिमालय के शिखर से जहाँ से सिन्धु नदी निकलती है, वहां तक कि भूमि हिंदुस्तान है एवं जिनके पूर्वज इसी भूमि पर पैदा हुए है ओर जिनकी पुण्य भूमि यही है वोही हिन्दू है। " सावरकर का हिन्दू धर्मं से नहीं एक व्यवस्था, आस्था, निष्ठा, त्याग का परिचायक है, जो सामाजिक समरसता को बढ़ाने में अग्रसर हो।
वह तो फिरंगियों की चल से उद्वेलित थे जो जो की हिंदुस्तान मैं अपनी सत्ता को कायम रखने की लिए साम्प्रदायिकता को बढ़ावा दे रहे थे। अंग्रेजों द्वारा देश के किसानों मजदूरों पर जुल्म ढहाने वाले उनके कतई बर्दाश्त नहीं थे। उन्होंने हिंदुत्व के नाम पर देश को संगठित करने का प्रयत्न किया। वीर सावरकर के क्रांतिकारी विचारों और राष्ट्रवादी चिंतन से अंग्रेजो की नींद हराम हो गई थी और भयभीत अंग्रेजी सत्ता ने उन्हें कालापानी की सजा दी ताकि भारतीय जनता इनसे प्रभावित होकर अंग्रेजी सत्ता को न उखाड़ फेंके। वीर सावरकर ने अपनी निष्ठा और आत्मसम्मान पर कभी भी आंच नहीं आने दी। मदन लाल ढींगरा ने १ जुलाई ,१९०९ को कर्जन वायले की हत्या कर दी तब इंडिया हाउस मैं इस हत्या की निंदा करने के लिए एक सभा हुई जिसमें सर आगा खान ने कहा की यह सभा सर्वसम्मति से इस हत्या की निंदा करती है। इतने में वीर सावरकर ने निर्भय होकर कहा "केवल मुझे छोड़कर"।
वीर सावरकर पर यह भी आरोप भी लगाया गया की उन्होंने मदन लाल ढींगरा को उकसाकर कर्जन वायले की हत्या करवाई है। १३ मार्च १९१० को उन्हें लन्दन के विक्टोरिया स्टेशन पर गिरफ्तार कर लिया गया। उससे पूर्व उनके दोनों भाइयों को भी क्रन्तिकारी गतिविधियों के लिए जेल मैं बंद कर दिया गया था। वीर सावरकर को जब इस बात का पता चला तो वे गर्व के साथ बोले "इससे बड़ी और क्या बात होगी की हम तीनो भाई ही भारत माता की आजादी के लिए तत्पर है।" इतिहास साक्षी है की १ जुलाई १९१० के ब्रिटेन से भारत ले जाने वाले समुद्री जहाज मैं सावरकर को बैठाया गया और वो ८ जुलाई १९१० को "स्वतंत्र भारत की जय" बोल कर समुद्र मैं कूद पड़े। अंग्रेजो ने खूब गोलियां चलाई पर निर्भय सावरकर लगातार कई घंटे तैरकर फ्रांस की सीमा मैं पहुँच गए जहाँ उन्हें फिर से गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय हेग मैं मुकदमा चलाया गया और उन्हें दो आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। जज ने जब उनसे कहा की अंग्रेज सरकार आपको ५० साल बाद रिहा कर देगी तो उन्होंने मजाक उड़ते हुए कहा की क्या अंग्रेज ५० वर्षो तक भारत मैं टिके रहेंगे। सजा सुनते ही उन्होंने व्यंग्य किया- चलो इसाई सत्ता ने हिन्दू धर्म के पुनर्जन्म के सिधांत को मन लिया है।
वीर सावरकर को कला पानी की सजा के दोरान भयानक सैल्यूलर जेल मैं रखा गया। उन्हें दूसरी मंजिल की कोठी नंबर २३४ मैं रखा गया और उनके कपड़ो पर भयानक कैदी लिखा गया। कोठरी मैं सोने और खड़े होने पर दीवार छू जाती थी। उन्हें नारियल की रस्सी बनाने और ३० पोंड तेल प्रतिदिन निकलने के लिए बैल की तरह कोल्हू मैं जोता जाता था। इतना कष्ट सहने के बावजूद भी वह रत को दिवार पर कविता लिखते, उसे याद करते और मिटा देते। १३ मार्च १९१० से लेकर १० मई १९३७ तक २७ वर्षो की अमानवीय पीडा भोग कर उच्च मनोबल, ज्ञान और शक्ति साथ वह जेल से बाहर निकले जैसे अँधेरा चीर कर सूर्य निकलता है।
आजादी के बाद भी पंडित जवाहर लाल नेहरू और कांग्रेस ने उनसे न्याय नहीं किया। देश का हिन्दू कहीं उन्हें न अपना नेता मन बैठे इसलिए उन पर महात्मा गाँधी की हत्या का आरोप लगा कर लाल किले मैं बंद कर दिया गया। बाद मैं न्यायालय ने उन्हें ससम्मान रिहा कर दिया। पूर्वाग्रह से ग्रसित कांग्रेसी नेताओं ने उन्हें इतिहास मैं यथोचित स्थान नहीं दिया। स्वाधीनता संग्राम मैं केवल गाँधी और गांधीवादी नेताओं की भूमिका का बढा-चढ़ाकर उल्लेख किया गया।
वीर सावरकर की मृत्यु के बाद भी कांग्रेस ने उन्हें नहीं छोडा। सन २००३ में वीर सावरकर का चित्र संसद के केंद्रीय कक्ष में लगाने पर कांग्रेस ने विवाद खड़ा कर दिया था। २००७ मैं कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर ने अंडमान के कीर्ति स्तम्भ से वीर सावरकर के नाम का शिलालेख हटाकर महात्मा गांधी के नाम का पत्थर लगा दिया। जिन कांग्रेसी नेताओं ने राष्ट्र को झूठे आश्वासन दिए, देश का विभाजन स्वीकार किया, जिन्होंने शेख से मिलकर कश्मीर का सौदा किया, वो भले ही आज पूजे जाये पर क्या वीर सावरकर को याद रखना इस राष्ट्र का कर्तव्य नहीं है???आजादी केवल गांधीवादियों की देन नहीं है बल्कि भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु, सुखदेव, नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और वीर सावरकर जैसे क्रांतिकारियों के बलिदानों के चलते ही मिली है।। राष्ट्र इन सभी के बलिदानों को याद रखे और इन्हें सम्मान दे।

स्वातंत्र्यवीर सावरकर कौन थे ?
१. अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्वतन्त्रता के लिए क्रांतिकारी अभियान चलाने वाले पहले भारतीय थे वीर-विनायक दामोदर सावरकर।
२. मुद्रित और प्रकाशित होने के पूर्व ही दो शासनों ने जिनकी पुस्तकें ज़ब्त घोषित कर दीं, ऐसे पहले लेखक थे स्वातन्त्र्यवीर सावरकर।
३. भारत की स्वतन्त्रता के लिए संघर्षरत रहने के कारण उन्हें एक भारतीय विश्वविद्यालय की अपनी उपाधि से वंचित होना पड़े, ऐसे पहले स्नातक थे वीर विनायक सावरकर।
४. दो जन्मों का आजीवन कारा-दंड मिलने पर भी उससे बचने के बाद भी क्रियाशील रहे, विश्व के ऐसे पहले राजवंशी थे तात्या सावरकर।
५. ब्रिटिश न्यायालय के अधिकार को अमान्य करने वाले भारत के पहले विद्रोही नेता थे स्वातंत्र्यवीर सावरकर।
६. राज निष्ठा की शपथ लेने से इंकार कर देने के कारण उन्हें बैरिस्टर की उपाधि प्रदान नहीं की गयी, ऐसे पहले भारतीय छात्र थे वीर सावरकर।
७. भारतीय राष्ट्र जीवन को सभी स्तरों पर पुनर्गठित करने पर जिन्होनें गंभीरता से विचार किया और अपनी रत्नागिरी की स्थानबद्धता के काल-खंड में जिन्होने अस्पृश्यता को मिटाने और जाति मुक्त समाज निर्माण के लिए तीव्र अभियान आरंभ किया, ऐसे पहले क्रांतिकारी नेता थे स्वातंत्र्यवीर सावरकर।
८. सार्वजनिक सभा में विदेशी कपड़ों की होली जलाने का साहस दिखाने वाले पहले राजनीतिक नेता थे राष्ट्र-व्रती सावरकर।
९. "संपूर्ण राजनीतिक स्वतंत्रता" ही भारत का ध्येय है, ऐसी साहस-पूर्ण घोषणा करने वाले पहले युग नायक थे सावरकर।
१०. लेखनी और कागज से वंचित होकर भी उन्होंने काव्य सृजन किया, कविताओं को अंडमान की काल कोठरी की दीवारों पर कांटों से अंकित किया। उनकी यह सहस्र पंक्तियां वर्षों तक स्मरण रखकर बाद में उन्हें अपने सह बंदियों द्वारा संदेश पहुंचाने वाले विश्व के पहले कवि थे विनायक दामोदर।
११. विदेशी भूमि पर जिनका बंदी बनाया जाना देश के अन्तर्राष्ट्रीय न्यायालय में प्रतिष्ठा का विशय बनकर उभरा, ऐसे पहले राजबंदी थे सावरकर।
१२. योग की सर्वोच्च परंपरा के अनुसार उन्होंने "आत्मार्पण" द्वारा मृत्यु का स्वेच्छा से आलिंगन किया ऐसे प्रथम और एकमेव क्रान्तिकारी थे संगठन सावरकर।
प्रस्तुति: सावरकर सेना
साभार : शोध-वाहिनी, राष्ट्र-योग शोध मंत्रालय, संक्रांति
नेता जी सुभाष चंद्र बोस संबंधित अतिरिक्त लेख -


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एक अपील सभी से



मित्रो तापमान नित नई छलांगे लगा कर नया रिकार्ड बनाने में लगा है . ऐसे में इंसान तो क्या पशु पक्षी भी पानी के बिना दम तोड़ते दिखाई दे रहे है

मेरी सभी से विनती है पक्षियों के लिए कही छत पर किसी बर्तन में . अगर मिट्टी का तो अति सुन्दर ( इसमें पानी ठंडा बना रहता है )किसी छायादार स्थान पर रख दे .

 

आपकी थोड़ी सी मदद इन खुबसूरत पक्षियों को नया जीवन दे सकती है. अगर हो सके तो अपने घर के आस पास कुछ मित्रो पड़ोसियों के साथ मिलकर किसी पेड़ के नीचे अथवा किस अन्य छायादार स्थान पर कुछ घड़े थोड़ी रेत ड़ालकर रखा दे . तथा उस पर किसी साफ़ बोरी को लपेट कर गीला करदे . आपको थोड़ा सा श्रम किसी के लिए जीवन दाई हो सकता है

 
"इस जलते हुए मौसम में जल ही जीवन है "
जल पिलाये जीवन बचाये


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5 दिनो से फोन नही आया और मुझे पता भी नही चला



आज प्रात: नीशू तिवारी जी का मेरे भैया के फोन पर फोन आया। नीशू जी शिकायती लहजे मे बोले क्या प्रमेन्द्र जी, आपने फोन क्यों बंद कर रखा है। आज से 4 दिन पहले फोन मे कुछ दिक्कत थी, उसे सर्विस सेंटर पर ले गया। तब से आज तक मै उससे कॉल कर सक रहा था किन्तु काल न प्राप्त करने का कारण हमें लगा कि शायद आज कल कोई फोन नहीं कर रहा है, किंतु नीशू जी की बात से लगा कि शायद फोन मे ही कोई दिक्कत है। आज ही फोन को सर्विस सेंटर पर ले गया और तब से फोन आने लगे है।

आपमे से किसी को भी असुविधा हुई हो तो खेद है, चूकि मेरे से फोन जा रहा था इसलिए मुझे कोई असुविधा नहीं हुई जहाँ चाह वहाँ मिलाया। अत: आप यह न समझे कि फोन मैंने बंद कर रखा था। :)


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एक पत्र मित्रो को



ब्लॉगिंग की दुनिया को अलविदा कहे काफ़ी दिन गुजर चुके है, तब एक जूनून सा था लगता था हमारे हाथ मे कुछ तो है जहाँ से हम दुनिया बदले ना बदले पर हमने बदलने की कोशिश तो कर ही सकते थे। अपनी बात किसी ऐसे से कह सकते है जो पढकर अपनी राय भी रखता है, ऐसे मे जुडाव हो ही जाता है कुछ पसंद करते है कुछ नापसंद, यही जीवन है आप हर किसी को खुश नही रख सकते ।
अति हर एक की बुरी होती है हमने भी की, कुछ नुकसान भी उठाये पर यहाँ होने के फ़ायदे भी मिलें। बडे भ्राता जैसे मैथिली जी, समीर भाई, ज्ञान जी अफ़लातून जी मिले छोटो में सिरिल, प्रमेंद्र, पी डी नीरज और कितने नाम गिनाऊ बहुत लंबी लिस्ट बन जायेगी सम कक्षो मे मसिजिवी जी, सुरेश जी, शिव जी, अविनाश जी, अजीत जी, संजय बेंगाणी, कृतीश भट्ट जी ( माफ़ी चाहूंगा आपका साथ बीच मे छॊडकर भाग आया) नीरज जी व डाक्टर साहब ढेरो लोगो से मित्रता हुई, जो अभी तक जारी है।
बहुत मुश्किल वक्त था वो ब्लोगवाणी को ना देखने का निर्णय, चैट पर अपने आप को अदश्य रखने का, अखबार ना पढने का और टीवी पर खबरो को गंभीरता से ना लेने के लिये, पर अब आदत वापस आ गई है। अब कोई फ़रक नही पडता मुझे चाहे सौ सैनिक मारे जाये और सरकार शाम को पार्टी मे चियर्स करने मे जुटी रहे, गृहमंत्री को अब अचानक माओवादी समस्या सिर्फ़ छतीसगढ की सरकार की जिम्मेदारी है दिखने लगता है
क्योकी वहा अल्पसख्यक वोट नही मर रहे है. वहा देश के लिये मरे सैनिकों से किसी अल्पसंख्यक की भावना को ठेस नहीं लगती तब तक कोई समस्या नहीं. देश का क्या है जितनी देश में ताकत कम होगी जितना बटवारा होगा जितनी आग लगी होगी राज करना उतना आसान होगा. तब भ्रष्टाचार महंगाई का सवाल कही बहुत पीछे होगा. आतंकवाद के लिये हम पाक को दोषी ठहराते रहे है और रहेंगे भी ,पर कांग्रेस के समर्थन कारो के द्वारा माओवाद को पालकर उसकी इन आतंकवादी गतिविधियों को सरकार की अनदेखी को क्या कहेगे ? क्या काग्रेस फ़िर से भिडारवाला की तरह माओवादियो को पराश्रय नही दे रही है ?

सिर्फ़ दुनिया को दिखाने के लिये कि हम कितने सेकुलर है सरकार ने कासिब के दो लोकल साथियो की पैरवी मे ढील देकर उन्हे बाईज्जत बरी करवाया , चार साल लगा दिये अजमेर बम ब्लास्ट मे मालेगाव की तर्ज पर जबरन हिंदू आतंकवाद का ढिढोरा बजाने के लिये ?

अब नही फ़डफ़डाता मेरी हाथ कूटू बोर्ड पर लिख कर पोस्ट करने के लिये ,चाहे कितनी गन्दी और शर्मनाक कितनी हरकते होती रहे अब मै लिखने के लिये नही मचलता ना ही नीरज को फ़ोन कर सुनाता हूँ कि ये खबर काहे नही दिखाते बिके हुये लोगो ।
लेकिन दिल का क्या करूँ जब देखता हूँ कि समाज के लोग नीचता के तमाम रिकार्ड ध्वस्त करने मे लगे है, अभी तक आक्सी एसीटॊन जानवरो से जबरन दूध निकालने के लिये प्रयोग होता था, जिसके कारण जहरीला दूध बालक पीते थे और उन जानवरो के मरने के बाद खाने वाले गिद्ध दुनिया से अलविदा हो गये। सरकार कहती है इसे बनाना गैर कानूनी है, लोग इसे अब सब्जियो को बडा करने के लिये इसका प्रयोग शुरु किया , और अब राजेस्थान के कई शहरो मे लोग इसे पाच सात साल की लडकियो को देश भर से उठाकर उन्हे आक्सी एसीटोन से डेढ दो साल मे ही जवान कर की सेकस मंडी मे बेचने लगे है दूध तो अब खैर निरमा की सफ़ेदी से ही बन जाता है, और ये सारे गिद्ध खुले घूम रहे है इन्सानो के वेश मे ?
क्या रक्खा है इंसानियत में ? कहा बचे है अब इन्सान ? भेड़ की खाल मे भेड़िये चुने है हम ने देश का चरित्र ही बदल कर रख दिया है उन्होंने साठ साल बहुत होते है किसी देश को बदलने के लिये जापान को हिरोशिमा नागासाकी के बाद कुछ दशक ही लगे थे। पर हमे सदियाँ नहीं बदल पाए हम वही है वही थे और वही रहेंगे जयचंदो को सम्मान पृथ्वीराज को अपमान यही परंपरा चली आई है।

देश के सैनिक देश मे मर रहे है लेकिन मारने वालो से सरकार की सहानुभूति है, छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार का ना होना ही सबसे बडा कसूर बन गया है छत्तीसगढ़ का लिहाजा वहा का आतंकवाद कांग्रेस समर्थित होने के कारण न्योचित है ,वहा किसी कार्यवाही के बजाय सैनिक मारने पर केन्द्र सरकार अपराधियों से हाथ जोड़कर गुजारिश करती दिखती है . सारे देश का हाल कशमीरी पंडितो जैसा दिखता है, न्याय और अन्याय मे वोट बैंक का पलडा अन्याय को न्याय से ज्यादा बडा बना देता है।
देश का करोडो रूपया जा रहा है स्विस बैंक मे निर्बाध रूप से . दिल्ली मे जरुरत ना जरूरत देश का पैसा लग रहा है विकास हो रहा है पर जिस की कीमत पर वो मीलो सडक नाम की पगड्ण्डी पर बिना पैरो मे कुछ पहने भूखा प्यासा दो रोटी के चक्कर मे धक्के खाने मे लगा हुआ है .आखिर पिछले पचास सालो में देश के इन हिस्सों पर १००० करोड़ भी ना खर्च करने वाली सरकार पिछले दो साल में ५००० करोड़ रुपये सुरक्षा बालो पर खर्च कर चुकी है इस असमानता की कीमत तो देश ही चुकाएगा नेता नहीं
मीडिया नाम के इस चौथे खम्बे का हाल तीसरे खंबे से भी ज्यादा गलीच घ्रणित और गिरा हुआ हो गया है। एश ने क्या खाया, हालीवुड के किस हीरो ने किस हिरोइन को किस किया, दिखाने के लिये २४ घंटे पर खबरों के लिये वक्त नही। सोनिया के कमरे में लाइट चली गई सारा हिंदुस्तान सर पर उठा लेंगे पर जिनके घर के चिराग सोनिया के आंखे मूंद लेने से हमेशा के लिये बुझ गये उनके लिये एक पल नहीं।
ब्लॉग जगत की उठापटक से भी मै इतना अनभिज्ञ नहीं हूँ जहाँ कोई किसी के धर्म को नीचा दिखाने में ऊर्जा लगा रहा है तो कोई किसी के कद को छोटा करने में लगा है। लगता ही नहीं की ये इतनी बड़ी बड़ी बाते करने वाले खुद इतने छुद्र दिलो दिमाग के होंगे। पर कभी कभी बहुत अच्छा लगता है की अब मै इनमे से एक नहीं, जहाँ कोई किसी को सम्मन भेजने की धमकी देता हो, जहाँ कोई किसी के घरो के पते छापता फिरता हो, जहाँ कोई गुट बनाकर दूसरो के ऊपर कीचड़ उछलता फिरता हो। नही दोस्त नही अब और नही मै अपने दिल के लिये कॊई बीमारी नही पालना चाहता, मै नही चाहता कि मै सारे जहाँ का दर्द महसूस करने के चक्कर मे खुद के लिये दर्द पाल लूँ। तुम चाहे कुछ भी कहो मै रेगिस्तानी ऊँट की तरह रेत मे सर डाल कर बैठना पसंद करूंगा। अब मै अंधड से टकरा कर आखो मे रेत नही भरना चाहूंगा। भले वो ब्लोगिंग की दुनिया का ही अंधड़ क्यों ना हो।
प्रमेन्द्र तुम्हारी बात अपनी जगह है पर मै कुछ अपने व्यावसायिक हितो तथा पारिवारिक एंव सामाजिक ( मेरे साथ कार्य कर रहे सभी लोगो की भी काफ़ी कुछ जिम्मेदारी मेरी ही बनती है )जिम्मेदारियो के चलते इस से दूर रहने के फ़ैसले कॊ ही सही पाता हू. मै तुम से एवं अपने सभी ब्लॉगर मित्रों और शुभचिंतकों को उनके असीम प्यार के लिये कृतज हूं और रहूंगा .परंतु मेरी खेद के साथ आप सब से विनम्र करबद्ध प्रार्थना है कि मै कम से कम अभी पुन: आप सब के साथ ब्लॉगिंग की दुनिया में कदम मिला कर नहीं चल पाऊंगा .पुनः: आप सभी को इस अकिंचन को इतना प्यार और सम्मान देने के लिये आभार.


मंजिले धुमिल हुई है
मिटे राह के नामो निशा
फ़िर से लंगर को उठा
चल पड़ा है कारंवा
अब तो फ़लक पर ही मिलेगे
जब होगा हाथो मे आसमा


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चिट्ठकारी मे पंगेबाज की वापसी



आखिरकार मेरी जिद्द काम कर गई और अरुण जी ने मेरी बात मान ली और इसी के साथ चित्रकारी में अरुण अरोड़ा जी पुन: पदार्पण कर रहे है। मेरी पुरानी पोस्ट के बाद अरुण जी ने मुझे फोन किया, और लंबी बातचीत हुई। मेरी और उनके बीच यह बातचीत उनके चिट्ठकारी छोड़ने के बाद पहली बातचीत थी। मेरे निवेदन पर वह चिट्ठाकारी मे पुन: आ रहे है और अपना नियमित लेखन महाशक्ति पर करेंगे, उन्होंने मेरे से वादा किया है कि एक दो दिन में समय निकाल कर पोस्ट करेंगे।
सिर्फ मै ही नही ब्लॉग जगत मे ऐसे बहुत से उनके प्रसंशक और पाठक है जो उनकी वापसी का इंतजार कर रहे थे, इसका अनुमान मेरी उनको याद की गई पोस्ट पर टिप्पणी से पता चलता है। वह अच्छे ब्लॉगर के साथ-साथ व्यावहारिक व्यक्ति भी जिसके कारण वो सभी के चहेते है। उनकी वापसी से मुझे खुशी है और इससे ज्यादा यह कि उन्होंने महाशक्ति को अपना पटल चुना है।
मैंने उन्हें महाशक्ति पर आमंत्रित होने का निवेदन किया था जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया है, जिससे तो स्पष्ट है उनकी वापसी ने उन लोगों के मुँह पर तमाचा है जो मेरी पंगेबाज पर पिछली पोस्ट पर मेरे निवेदन को मजाक उड़ाया था। जबकि अब पंगेबाज का चिट्ठकारी मे वापसी हो चुकी है। उनको नयी पारी की शुरूवात की बहुत बधाई।

शेष फिर...... जय श्रीराम


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सर्वश्रेष्ठ चिट्ठाकार की कैटगरियॉं और भी है



सर्वश्रेष्ठ की दौड़ चल रही है, अभी तो पुरुष चिट्ठाकारों की प्रतियोगिता थी। तभी एक और सनसनाती हुई पोस्ट आती है कि सर्वश्रेष्ठ महिला ब्लॉगर का भी फैसला हो ही जाना चाहिए। बात तो लाख टके की सही है कि तय होना ही चाहिये कि कौन है सर्वश्रेष्ठ, बिना सर्वश्रेष्ठ की दौड़ मे दौड़ ब्‍लागात्‍माओ को शान्ति नही मिलेगी।
मुझे लगता है कि महिला आरक्षण की कामयाबी के बाद, ब्‍लाग में अगल से सर्वश्रेष्ठ की बात उठना जायज है। मुझे लगता है कि कुछ और बाते भी आज क्लियर हो जानी चाहिए, ताकि ब्लॉग आत्माओं को अनावश्यक भटकना न पड़े। मुझे लगता है कि सर्वश्रेष्ठ की दौड़ में निम्न श्रेणियों बन सकती है ताकि भविष्य पोस्ट के लिये आवश्यक मसाला मिलता रहे।
चिट्ठाकारों को नये श्रेणी तथा उपश्रेणी में बांट कर, सर्वश्रेष्ठ की व्यूह रचना किया जा सकता है जो निम्न प्रारूप में हो सकता है नहीं तो महान ब्‍लागर जन तो नयी श्रेणियों के निर्माण मे तो माहिर है ही।
  1. सर्वश्रेष्‍ठ अल्‍पसंख्‍यक चिट्ठाकार
  2. सर्वश्रेष्‍ठ अन्‍य पिछड़ा वर्ग चिट्ठाकार
  3. सर्वश्रेष्‍ठ अनुसूचित जात‍ि चिट्ठकार
  4. सर्वश्रेष्‍ठ अनुसूचित जनजाति चिट्ठकार
  5. सर्वश्रेष्‍ठ ब्राह्मण चिट्ठकार
  6. सर्वश्रेष्‍ठ ठाकुर चिट्ठकार
  7. सर्वश्रेष्‍ठ यादव चिट्ठकार
  8. सर्वश्रेष्‍ठ रोज पोस्‍ट ठेलने वाले चिट्ठाकार
  9. सर्वश्रेष्‍ठ कभी कभी पोस्‍ट ठेलने वाले चिट्ठकार
  10. सर्वश्रेष्‍ठ अनामी चिट्ठाकार
मुझे नही लगता कि इस प्रकार की श्रेणियों मे हम सर्वश्रेष्‍ठ सिद्ध हो कर कुछ सिद्ध कर पायेगे। आज समीर जी ने और अनूप जी ने अपनी उपयोगिता चिट्ठाकारी मे सिद्ध की है तभी हम उन पर पोस्‍टे लिखते है। इसमे कोई दो राय नही हो सकती है दोनो अपने अपने क्षेत्र मे अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। सर्वश्रेष्‍ठता मे एक नाम को मै सर्वश्रेष्‍ठ मानता हूँ अजित वडनेरकर जो ब्लाग सृजनात्‍मकता को सबसे ज्‍यादा अपनी लेखनी से अलंकृत कर रहे है। आज यही कारण है कि वे करीब 500 फालोवरर्स और 1000 के आस पास ईमेल सब्सक्राइबर की क्षमता रखते है। उनकी पोस्‍टो मे मौज कम तो जानकारी का भंडार मिलता है।
मै तो हर उस ब्‍लागर को सर्वश्रेष्ठ मानता हूँ जो अपने आपको अपनी ब्लॉग विधा मे अपने आपको सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करता है, उसमे अनूप जी, समीर जी, अजीत जी, अरुण जी, आलोक कुमार जी, घुघुती बासूती जी, गिरीश जी, विजय तिवारी जी, सुरेश जी, और वैचारिक मतभेद होते हुए भी अफलातून जी को मै अच्छा ब्लॉग लेखक मानता हूँ, और भी बहुत से अच्छे ब्‍लागर है किंतु मुझे इन्‍ही को ज्यादा पढ़ने का मौका मिला है और मै इनके बारे कह सकता हूँ। आपके खुद सर्वश्रेष्ठ चिट्ठकार होंगे, आप तो खुद ही जानते होंगे।
शेष फिर .......


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एक ब्‍लागर था पंगेबाज



चिट्ठाकारी में कोई व्यक्ति मेरे सबसे नजदीक रहा है तो उनमे से एक नाम फरीदाबाद स्थित अरुण अरोड़ा जी अर्थात पंगेबाज। अरुण जी के साथ चिट्ठकारी में काम करने का अपना ही अलग आनंद था, अत्मीयता थी। अपने से आधे उम्र के लड़के का सम्मान देने की क्षमता थी तो कुछ गंभीर मुद्दों पर कंधे से कंधा मिला कर रोध/प्रतिरोध का तार्किक शब्द प्रहार भी उनके अंदर था।
आज चिट्ठकारी के प्रति मेरी थोड़ी भी उदासीनी हुई तो उसका एक मात्र कारण अरुण जी है, उनके पंगेबाज बिना महाशक्ति की शक्ति भी अधूरी है। पंगेबाज जी हमेशा याद आते है किन्तु आज कुछ ज्यादा ही याद आये, आज मैंने उनके द्वारा भेजा गया पहले ईमेल को पढ़ा, उस मेल के शब्द थे - परमेन्दर जी आप के नाम पाती के बाद आज मोहल्ला से पंगा ले ही लिया कृपया चिट्ठा पढकर टिप्पणी अवश्य दे आपका अरुण, ८ अप्रैल २००७ के इस लघु पत्र को पढ़ कर आज मै उनको बहुत मिस कर रहा हूँ । पंगेबाज जितने अच्छे ब्‍लागर थे उससे भी अच्‍छे इंसान है, मुझे उनके साथ किये ये विभिन्‍न मुद्दो पर काम, आज उस पल का याद कर गम के आंसू दे रहे है। कोई व्‍यक्ति 24 घंटे मे किसी पर कितना विश्वास किसी पर पर कर सकता है मेरे द्वारा ९ अप्रैल २००७ को भेजे इस मेल से किया जा सकता है - अरूण जी, आपके लेख मे मात्रात्मक गल्तियॉं थी मैने उन्‍हे ठीक कर दिया है। लेख उत्‍तम है। यह तब के समय की बात है जब गिने ब्‍लागर थे, उन्होने मुझे अपने पंगेबाज ब्‍लाग लेख के वर्तनी सुधार के लिये ब्‍लाग पर प्रशासक का स्‍थान दिया था। तब न हमारे बीच कोई चैंट हुई थी न फोन पर बात बस एक अजीब से एक लक्ष्‍य दोनो को एक साथ काम करने को तत्पर कर दिया। मुझे दिल्‍ली की एक घटना याद आती है मै दिल्‍ली मे था तथा काफी ऊब गया था, मैने अरूण जी को प्रात: करीब 6 बजे फोन कर कहा शिकयत भरे लहजे मे कहा कि आपका छोटा भाई दिल्‍ली मे अकेले है और आपने आज तक उसकी फ्रिक नही की, उस समय पंगेबाज पूरी तरह नींद मे थे और बोले सॉरी.... तुम बदरपुर बॉर्डर पहुँचो मै तुमसे मिलता हूँ, जब हम बदरपुर पहुंचे तो अरुण जी हमसे पहले वहाँ मौजूद थे। इससे बड़ा आत्मीयता का उदाहरण मै नही दे सकता, अनजाने शहर में किसी से इतनी भी उम्मीद करना कठिन होता है। अरुण जी से वो मुलाकात मेरे चेहरे पर वो मुस्कान दे गई, मेरे लिये उस वक्त की सबसे बड़ी जरूरत थी, जिन्दगी मे पहली बार अपने परिवार से मै दूर किसी स्थान पर था। जब तक वो साथ रहे किसी प्रकार की कमी होने नही दी।
आज पंगेबाज जी महाशक्ति पर पहली टिप्पणी (19 April, 2007) को देखता हूँ जो स्टार न्यूज पर हमला मीडिया के बडबोले मुँह पर तमाचा और मेरी पोस्ट पर सबसे अन्तिम पोस्‍ट अल्लाह ने दिये अबाध बिजली आपूर्ति की गारंटी पर (09 December, 2008 को) उन्होंने की थी जब उनकी मात्राओं की गलतियों को आसानी से देखा जा सकता था और बाद की टिप्पणी में सुधार, ऐसा इसलिए नहीं था कि अरुण जी को हिंदी नहीं आती थी अपितु आज से 3 साल पहले हिन्दी चिट्ठाकारी इसलिए कोई अच्‍छे हिन्‍दी टाईपिंग के माध्‍यम उपलब्‍ध नहीं थे। अरुण जी शायद कभी पंगेबाज न बनते और न कभी चिट्ठाकारी करते किन्तु 2007 की चिट्ठाकारी का जो परिदृश्य था उसके कारण एक पाठक होने के कारण उनको चित्रकारी मे आना पड़ा और मेरी और उनकी वैचारिक समानता ने हमे एक किया।
पंगेबाज जी का नम्‍बर मेरे पास है (यदि बदला न हो तो) किन्‍तु मै बात करने का साहस नही जुटा पा रहा हूँ, क्‍योकि मै उनकी वापसी की माँग करूँगा, और वो न करेगे और न सुनने की आदत मुझमे नही है। अरूण जी आपका छोटा भाई दिल कड़ा लिखता है उसका दिल उतना कड़ा नही है, काश आपकी कमी के कारण हुये मेरे दर्द और छति को समझ पाते आज भी आप बहुत याद आते हो। मै आपके वापसी की प्रतीक्षा कर रहा हूँ, आज अपने शीर्षक को एक ब्‍लागर था पंगेबाज को एक ब्‍लागर है पंगेबाज करना चाहता हूँ।
आपके और मेरे संवाद बहुत है फिर आपको याद करते हुये लिखूँगा.......... जय श्रीराम


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चिट्ठाकारी ...... एक अदद फार्म की तलाश



काफी दिनो से चिट्ठाकारी असक्रिय रहा हूँ, गाहे बगाहे एकाध पोस्ट डाल देता था, ताकि लय बनी रहे किंतु जिस प्रकार मास्‍टर ब्‍लास्‍टर फार्म मे है उस प्रकार का फार्म न पाने में भी असमर्थ प्रतीत होता हूँ। आज अपनी दूसरी पारी प्रारंभ कर रहा हूँ। गाँव मे एक प्रचलित कहावत कही जाती है कि बूढ़ा बरधा हराई नही भूलता है उसी प्रकार इतने दिनो से हूँ कुछ फार्म गड़बड़ जरूर हुआ है किन्तु आशा है कि जल्द प्राप्त कर लूँगा।

हाल मे कुछ ब्‍लागों से पता चला कि बड़ा लोचा हो गया है, कोई किसी को खली बना रहा है तो तो कोई महाबली किन्तु खली और महाबली गले मिल कर मौज ले रहे। चिट्ठाकारी मे जब तक ही धर पटक न होती रही तब तक चैन नहीं पड़ता है। यही कारण है कि ज्यादातर पोस्ट पेट्रोल से बुझी होती है बस धांसू माचिस रूपी टिप्‍पणी की जरूरत है फिर देखो तमाशा फोकट का।

चिट्ठाकारी मे हर ब्लॉगर की अपनी अगल विधा है तो कोई सचिन जैसा है तो कोई गांगुली तो कोई द्रविड़ तो कोई अगैरा वगैरा की तरह अपनी उपयोगिता दिखता है। सभी का अपनी उपयोगिता है बिना ग्‍यारह खिलाड़ी के टीम पूरी नही होती, सचिन या सहवाग लाख शतक ठोक दे पर टीम तब तक नहीं जीतेगी जबकि खुद टीम वर्क के साथ काम न किया गया हो। उसी प्रकार चिट्ठकारी मे मै रहूँ या न रहूँ चिट्ठकारी को कोई फर्म नही पड़ा, उसी प्रकार किसी एक व्यक्ति के बल पर आज न चिट्ठाकारी चल रही है और न कभी चल पाएगा। चिट्ठाकारी एक बहता हुआ मृदुल पानी के समान है जो जितना प्रवाहित होगा उतना ही निर्मल होगा। यदि कोई इसे रोकने का प्रयास करेगा तो अपने आप इसके प्रभाव में बह जायेगा।

ब्लॉगिंग मस्ती है विचार का प्रवाह है और अपनी सोच है, मुझे तो दिल की बात लिखने में बड़ा मजा आता है काफी दिनो से दिल की बात नहीं लिखी थी आज बहुत दिनो के बाद ऐसी पोस्‍ट लिख रहा हूँ, दिल को सुकून मिल रहा है। कुछ लोग चिट्ठाकारी को डायरी बोलते है तो गलत नहीं है, मेरा मन में चाहे जो लिखूँ, कभी खुद के लिये तो कभी सबके लिये।

शेष फिर ......




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