बनें हम धर्मके योगी





बनें हम धर्म के योगी, धरेंगे ध्यान संस्कृति का
उठाकर धर्म का झंडा, करेंगे उत्थान संस्कृति का ।। धृ ||
गले में शील की माला, पहनकर ज्ञान की कफनी
पक डकर त्याग का झंडा, रखेंगे मान संस्कृति का ||१||
जलकर कष्ट की होली, ऊठा कर ईष्ट  की झोली
जमाकर संत की टोली, करें ऊत्थान संस्कृति का ||२||
हमारे जन्म का सार्थक, हमारे मोक्ष का साधन
हमारे स्वर्ग का साधन, करें ऊत्थान संस्कृति का ||3||


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3 टिप्‍पणियां:

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

पढ़कर उत्साह मिलता है। ओजमयी आनंद आता है। साधुवाद!

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

बहुत अच्छा लगा...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ओजमयी कविता..