प्रमुख महापुरुषों की सूक्तियां एवं अमृत वचन



amrit vachan
  1. हिन्दी हमारे राष्ट्र की अभिव्यक्ति का सरलतम स्त्रोत है। - सुमित्रानंदन पंत
  2. राष्ट्रीय व्यवहार में हिन्दी को काम में लाना देश की उन्नति के लिए आवश्यक है। - महात्मा गांधी
  3. भाषा एक नगर है, जिसके निर्माण के लिए प्रत्येक व्यक्ति एक-एक पत्थर लाया है।- एमर्सन
  4. हिंदी चिरकाल से ऐसी भाषा रही है जिसने मात्र विदेशी होने के कारण किसी शब्द का बहिष्कार नहीं किया। - डा. राजेंद्र प्रसाद
  5. आस्था वो पक्षी है जो भोर के अंधेरे में भी उजाले को महसूस करती है।- रवींद्रनाथ ठाकुर
  6. प्रेम ही एकमात्र वास्तविकता है, यह महज एक भावना नहीं है। यह परम सत्य है जो सृजन के समय से आत्मा में वास करता है। - रवींद्रनाथ ठाकुर
  7. कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है। - डाॅ. रामकुमार वर्मा
  8. शाश्वत शांति की प्राप्ति के लिए शांति की इच्छा नहीं बल्कि आवश्यक है इच्छाओं की शांति। - स्वामी ज्ञानानंद
  9. धर्म का अर्थ तोड़ना नहीं बल्कि जोड़ना है। धर्म एक संयोजक तत्व है।धर्म लोगों को जोड़ता है। - डाॅ. शंकर दयाल शर्मा
  10. त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीड़ास्थल हैं। -बरुआ
  11. दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते। - प्रेमचंद
  12. अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है। - जयशंकर प्रसाद
  13. अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं। - महर्षि अरविंद
  14. चाहे गुरु पर हो या ईश्वर पर, श्रद्धा अवश्य रखनी चाहिए। क्योंकि बिना के सब बातें व्यर्थ होती हैं।- समर्थ रामदास
  15. यदि असंतोष की भावना को लगन व धैर्य से रचनात्मक शक्ति में न बदला जाए तो वह खतरनाक भी हो सकती है।- इंदिरा गांधी
  16. प्रजा के सुख में ही राजा का सुख और प्रजाओं के हित में ही राजा को अपना हित समझना चाहिए। आत्मप्रियता में राजा का हित नहीं है, प्रजाओं की प्रियता में ही राजा का हित है।- चाणक्य
  17. द्वेष बुद्धि को हम द्वेष से नहीं मिटा सकते, प्रेम की शक्ति ही उसे मिटा सकती है। - विनोबा
  18. साहित्य का कर्तव्य केवल ज्ञान देना नहीं है परंतु एक नया वातावरण देना भी है। - डाॅ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन
  19. लोकतंत्र के पौधे का, चाहे वह किसी भी किस्म का क्यों न हो तानाशाही में पनपना संदेहास्पद है। - जयप्रकाश नारायण
  20. बाधाएँ व्यक्ति की परीक्षा होती हैं। उनसे उत्साह बढ़ाना चाहिए, मंद नहीं पड़ना चाहिए। - यशपाल
  21. सहिष्णुता और समझदारी संसदीय लोकतंत्र के लिए उतने ही आवयक हैं जितने संतुलन और मर्यादित चेतना।- डाॅ. शंकर दयाल शर्मा
  22. जिस प्रकार रात्रि का अंधकार केवल सूर्य दूर कर सकता है, उसी प्रकार मनुष्य की विपत्ति को केवल ज्ञान दूर कर सकता है। - नारद भक्ति
  23. ज्ञानी जन विवेक से सीखते हैं, साधारण मनुष्य अनुभव से, अज्ञानी पुरुष आवश्यकता से और पशु स्वभाव से। - कौटिल्य
  24. जिस व्यक्ति के हृदय में संगीत का स्पंदन नहीं है वह व्यक्ति कर्म और चिंतन द्वारा कभी महान नहीं बन सकता। - सुभाष चन्द्र बोस
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