बैस राजपूत वंश



बैस राजपूत वंश
Bais Rajput Dynasty

बैंस सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल है, हालांकि कुछ विद्वान इन्हें नागवंशी भी बताते हैं।
  • इनका गोत्र भारद्वाज है
  • प्रवर-तीन है : भारद्वाज, वृहस्पति और अंगिरस
  • वेद-यजुर्वेद
  • कुलदेवी-कालिका माता
  • इष्ट देव-शिव जी
  • ध्वज-आसमानी और नाग चिन्ह
प्रसिद्ध बैस व्यक्तित्व - Ffamous Bais Personality
  • शालिवाहन - शालिवाहन राजा, शालिवाहन (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शातकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को शालिवाहन शक के शुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है जब उसने वर्ष 78 में उज्जयिनी के नरेश विक्रमादित्य को युद्ध में हराया था और इस युद्ध की स्मृति में उसने इस युग को आरंभ किया था। एक मत है कि, शक युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरू हुआ।
  • हर्षवर्धन - हर्षवर्धन प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह अंतिम हिंदू सम्राट था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्ट रचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राजश्री उसकी बड़ी बहन थी।
  • त्रिलोकचंद
  • अभयचंद
  • राणा बेनी माधव बख्श सिंह
  • मेजर ध्यानचंद आदि
बैस राजपूतों की शाखाएँ - Branches of Bais Rajputs
  • कोट बहार बैस
  • कठ बैस
  • डोडिया बैस
  • त्रिलोकचंदी(राव, राजा, नैथम, सैनवासी) बैस,
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस,
  • रावत,
  • कुम्भी,
  • नरवरिया,
  • भाले सुल्तान,
  • चंदोसिया
बैस राजपूतों के प्राचीन राज्य और ठिकाने - Ancient states and whereabouts of Bais Rajputs
  • प्रतिष्ठानपुरी, स्यालकोट ,स्थानेश्वर, मुंगीपट्टम्म, कन्नौज, बैसवाडा, कस्मांदा, बसन्तपुर, खजूरगाँव थालराई, कुर्रिसुदौली, देवगांव,मुरारमउ, गौंडा, थानगांव, कटधर आदि
बैस राजपूतों वर्तमान निवास - Bais Rajputs Present Residence
  • यूपी के अवध में स्थित बैसवाडा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, आजमगढ़, बलिया, बाँदा, हमीरपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, फतेहपुर, गोरखपुर, बस्ती, मिर्जापुर, गाजीपुर, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, बिहार, पंजाब, पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान में बड़ी आबादी है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी थोड़ी आबादी है।
परम्पराएँ - Traditions
बैस राजपूत नागो को नहीं मारते हैं, नागपूजा का इनके लिए विशेष महत्व है, इनके ज्येष्ठ भ्राता को टिकायत कहा जाता था और सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा आजादी से पहले तक उसे ही मिलता था। मुख्य गढ़ी में टिकायत परिवार ही रहता था और शेष भाई अलग किला/मकान बनाकर रहते थे, बैस राजपूतो में आपसी भाईचारा बहुत ज्यादा होता है। बिहार के सोनपुर का पशु मेला बैस राजपूतों ने ही प्रारम्भ किया था।
बैस क्षत्रियों की उत्पत्ति : बैस राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कई मत प्रचलित हैं-
  1. ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114 के अनुसार सूर्यवंशी राजा वासु जो बसाति जनपद के राजा थे, उनके वंशज बैस राजपूत कहलाते हैं, बसाति जनपद महाभारत काल तक बना रहा है
  2. देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74 के अनुसार वैशाली से निकास के कारण ही यह वंश वैस या बैस या वैश कहलाया, इनके अनुसार बैस सूर्यवंशी हैं, इनके किसी पूर्वज ने किसी नागवंशी राजा की सहायता से उन्नति की इसलिए बैस राजपूत नाग पूजा करते हैं और इनका चिन्ह भी नाग है।
  3. महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं।
  4. महान इतिहासकार गौरीशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या 154-162 में भी बैस राजपूतों को सूर्यवंशी सिद्ध किया गया है।
  5. श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 78, 79 एवं 368, 369 के अनुसार भी बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  6. डा देवीलाल पालीवाल की कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास के प्रष्ठ संख्या 182 के अनुसार बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  7. ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर में बैस वंश को स्पष्ट सूर्यवंशी बताया गया है।
  8. इनके झंडे में नाग का चिन्ह होने के कारण कई विद्वान इन्हें नागवंशी मानते हैं,लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार भी माना जाता हैअत: कुछ विद्वान बैस राजपूतो को लक्ष्मण का वंशज और नागवंशी मानते हैं,कुछ विद्वानों के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष से तक्षक नाग वंश चला जिसने तक्षशिला की स्थापना की,बाद में तक्षक नाग के वंशज वैशाली आये और उन्ही से बैस राजपूत शाखा प्रारम्भ हुई
  9. कुछ विद्वानों के अनुसार बैस राजपूतों के आदि पुरुष शालिवाहन के पुत्र का नाम सुन्दरभान या वयस कुमार था जिससे यह वंश वैस या बैस कहलाया,जिन्होंने सहारनपुर की स्थापना की
  10. कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम राजा धीरपुंडीर ने 12 वी सदी के अंत में राजा अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में दिए इन बाईस परगनों के कारण यह वंश बाईसा या बैस कहलाने लगा
  11. कुछ विद्वान इन्हें गौतमी पुत्र शातकर्णी जिन्हें शालिवाहन भी कहा जाता है उनका वंशज मानते हैं, वहीं कुछ के अनुसार बैस शब्द का अर्थ है वो क्षत्रिय जिन्होंने बहुत सारी भूमि अपने अधिकार में ले ली हो
बैस वंश की उत्पत्ति के सभी मतों का विश्लेषण एवं निष्कर्ष - Analysis and conclusion of all the opinions on the origin of Bais dynasty
बैस राजपूत नाग की पूजा करते हैं और इनके झंडे में नाग चिन्ह होने का यह अर्थ नहीं है कि बैस नागवंशी हैं, महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैंलक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है किन्तु लक्ष्मण जी नागवंशी नहीं रघुवंशी ही थे और उनकी संतान आज के प्रतिहार(परिहार) और मल्ल राजपूत है।
जिन विद्वानों ने 12 वी सदी में धीरपुंडीर को अर्गल का गौतमवंशी राजा लिख दिया और उनके द्वारा दहेज में अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में देने से बैस नामकरण होने का अनुमान किया है वो बिलकुल गलत है,क्योंकि धीरपुंडीर गौतम वंशी नहीं पुंडीर क्षत्रिय थे जो उस समय हरिद्वार के राजा थे, बाणभट और चीनी यात्री ह्वेंस्वांग ने सातवी सदी में सम्राट हर्ष को स्पष्ट रूप से बैस या वैश वंशी कहा है तो 12 वी सदी में बैस वंशनाम की उतपत्ति का सवाल ही नहीं है, किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है कि अगर बैस वंश की मान्यताओं के अनुसार शालिवाहन के वंशज वयस कुमार या सुंदरभान सहारनपुर आये थे तो उनके वंशज कहाँ गए?
बैस वंश की एक शाखा त्रिलोकचंदी है और सहारनपुर के वैश्य जैन समुदाय की भी एक शाखा त्रिलोकचंदी है इन्ही जैनियो के एक व्यक्ति राजा साहरनवीर सिंह ने अकबर के समय सहारनपुर नगर बसाया था, आज के सहारनपुर, हरिद्वार का क्षेत्र उस समय हरिद्वार के पुंडीर शासको के नियन्त्रण में था तो हो सकता है शालिवाहन के जो वंशज इस क्षेत्र में आये होंगे उन्हें राजा धीर पुंडीर ने दहेज़ में सहारनपुर के कुछ परगने दिए हों और बाद में ये त्रिलोकचंदी बैस राजपूत ही जैन धर्म ग्रहण करके व्यापारी हो जाने के कारण वैश्य बन गए हों और इन्ही त्रिलोकचंदी जैनियों के वंशज राजा साहरनवीर ने अकबर के समय सहारनपुर नगर की स्थापना की हो, और बाद में इन सभी मान्यताओं में घालमेल हो गया होअर्गल के गौतम राजा अलग थे उन्होंने वर्तमान बैसवारे का इलाका बैस वंशी राजा अभयचन्द्र को दहेज़ में दिया था।
गौतमी पुत्र शातकर्णी को कुछ विद्वान बैस वंशावली के शालिवाहन से जोड़ते हैं किन्तु नासिक शिलालेख में गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी को एक ब्राह्मण (अद्वितिय ब्राह्मण) तथा खतिय-दप-मान-मदन अर्थात क्षत्रियों का मान मर्दन करने वाला आदि उपाधियों से सुशेभित किया है। इसी शिलालेख के लेखक ने गौतमीपुत्र की तुलना परशुराम से की है। साथ ही दात्रीशतपुतलिका में भी शालीवाहनों को मिश्रित ब्राह्मण जाति तथा नागजाति से उत्पन्न माना गया है। अत: गौतमी पुत्र शातकर्णी अथवा शालिवाहन को बैस वंशी शालिवाहन से जोड़ना उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि बैसवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं
उपरोक्त सभी मतो का अध्ययन करने पर हमारा निष्कर्ष है कि बैस राजपूत सूर्यवंशी है, प्राचीन काल में सूर्यवंशी इछ्वाकू वंशी राजा विशाल ने वैशाली राज्य की स्थापना की थी, विशाल का एक पुत्र लिच्छवी था यहीं से सूर्यवंशी की लिच्छवी, शाक्य (गौतम), मोरिय (मौर्य), कुशवाहा (कछवाहा), बैस शाखाएं अलग हुई, जब मगध के राजा ने वैशाली पर अधिकार कर लिया और मगध में शूद्र नन्दवंश का शासन स्थापित हो गया और उसने क्षत्रियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए तो वैशाली से सूर्यवंशी क्षत्रिय पंजाब, तक्षिला, महाराष्ट्र, स्थानेश्वर, दिल्ली आदि में आ बसे, दिल्ली क्षेत्र पर भी कुछ समय बैस वंशियों ने शासन किया, बैंसों की एक शाखा पंजाब में आ बसी। इन्होंने पंजाब में एक नगर श्री कंठ पर अधिकार किया, जिसका नाम आगे चलकर थानेश्वर हुआ। दिल्ली क्षेत्र थानेश्वर के नजदीक है अत:दिल्ली शाखा,थानेश्वर शाखा,सहारनपुर शाखा का आपस में जरूर सम्बन्ध होगा, बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन अपनी राजधानी थानेश्वर से हटाकर कन्नौज ले गए, हर्षवर्धन ने अपने राज्य का विस्तार बंगाल, असम, पंजाब, राजपूताने, मालवा व नेपाल तक किया और स्वयं राजपुत्र शिलादित्य की उपाधि धारण की।
हर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए, इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश की कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भाले सुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर की स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे
चंदावर के युद्ध में हर्षवर्धन के वंशज केशवदेव भी जयचंद के साथ युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए बाद में उनके वंशज अभयचंद ने अर्गल के गौतम राजा की पत्नी को तुर्कों से बचाया जिसके कारण गौतम राजा ने अभयचंद से अपनी पुत्री का विवाह कर उसे 1440 गाँव दहेज़ में दे दिए जिसमें विद्रोही भर जाति का दमन कर अभयचंद ने बैस राज्य की नीव रखी जिसे आज बैसवाडा या बैसवारा कहा जाता है, इस प्रकार सूर्यवंशी बैस राजपूत आर्याव्रत के एक बड़े भू भाग में फ़ैल गए
बैस वंश राजपूतों का सम्राट हर्षवर्धन से पूर्व का इतिहास - History of Baisavanshi Rajputs before Emperor Harshavardhana
बैस राजपूत मानते हैं कि उनका राज्य पहले मुर्गीपाटन पर था और जब इस पर शत्रु ने अधिकार कर लिया तो ये प्रतिष्ठानपुर आ गए, वहां इस वंश में राजा शालिवाहन हुए, जिन्होंने विक्रमादित्य को हराया और शक सम्वत इन्होने ही चलाया,कुछ ने गौतमी पुत्र शातकर्णी को शालिवाहन मानकर उन्हें बैस वंशावली का शालिवाहन बताया है और पैठण को प्रतिष्ठानपुर बताया और कुछ ने स्यालकोट को प्रतिष्ठानपुर बताया है, किन्तु यह मत सही प्रतीत नहीं होते कई वंशो बाद के इतिहास में यह गलतियाँ की गई कि उसी नाम के किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को यह सम्मान देने लग गए, शालिवाहन नाम के इतिहास में कई अलग अलग वंशो में प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। भाटी वंश में भी शालिवाहन हुए हैं और सातवाहन वंशी गौतमीपुत्र शातकर्णी को भी शालिवाहन कहा जाता था, विक्रमादित्य के विक्रम सम्वत और शालिवाहन के शक सम्वत में पूरे 135 वर्ष का फासला है अत: ये दोनों समकालीन नहीं हो सकते.दक्षिण के गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक शिलालेख में स्पष्ट ब्राह्मण लिखा है अत:इसका सूर्यवंशी बैस वंश से सम्बन्ध होना संभव नहीं है।
वस्तुत: बैस इतिहास का प्रतिष्ठानपुर न तो दक्षिण का पैठण है और न ही पंजाब का स्यालकोट है यह प्रतिष्ठानपुर इलाहबाद (प्रयाग) के निकट और झूंसी के पास था, किन्तु इतना अवश्य है कि बैस वंश में शालिवाहन नाम के एक प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए जिन्होंने प्रतिष्ठानपूरी में एक बड़ा बैस राज्य स्थापित किया, शालिवाहन कई राज्यों को जीतकर उनकी कन्याओं को अपने महल में ले आये, जिससे उनकी पहली तीन क्षत्राणी रानियाँ खिन्न होकर अपने पिता के घर चली गयी, इन तीन रानियों के वंशज बाद में भी बैस कहलाते रहे और बाद की रानियों के वंशज कठबैस कहलाये, ये प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग)के शासक थे।
इन्ही शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद बैस ने दिल्ली (उस समय कुछ और नाम होगा) पर अधिकार कर लिय.स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार दिल्ली पर सन 404 ईस्वी में राजा मुलखचंद उर्फ़ त्रिलोकचंद प्रथम ने विक्रमपाल को हराकर शासन स्थापित किया इसके बाद विक्र्मचन्द, कर्तिकचंद, रामचंद्र, अधरचन्द्र, कल्याणचन्द्र, भीमचंद्र, बोधचन्द्र, गोविन्दचन्द्र और प्रेमो देवी ने दो सो से अधिक वर्ष तक शासन किया,वस्तुत ये दिल्ली के बैस शासक स्वतंत्र न होकर गुप्त वंश और बाद में हर्षवर्धन बैस के सामंत के रूप में यहाँ पर होंगे,इसके बाद यह वंश दिल्ली से समाप्त हो गया,और सातवी सदी के बाद में पांडववंशी अर्जुनायन तंवर क्षत्रियों(अनंगपाल प्रथम) ने प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर दिल्ली की स्थापना की. वस्तुत:बैसवारा ही बैस राज्य था. (देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 70,एवं ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 113,114)

बैस वंश की शाखाएँ -
Branches of Bais Dynasty
  • कोट बाहर बैस - शालिवाहन की जो रानियाँ अपने पीहर चली गयी उनकी संतान कोट बाहर बैस कहलाती है
  • कठ बैस - शालिवाहन की जो जीती हुई रानियां बाद में महल में आई उनकी संतान कोट बैस या कठ बैस कहलाती हैं।
  • डोडिया बैस - डोडिया खेड़ा में रहने के कारण राज्य हल्दौर जिला बिजनौर
  • त्रिलोकचंदी बैस - त्रिलोकचंद के वंशज इनकी चार उपशाखाएँ हैं राव, राजा, नैथम व सैनवासी
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस - प्रतिष्ठानपुर में रहने के कारण
  • चंदोसिया - ठाकुर उदय बुधसिंह बैस्वाड़े से सुल्तानपुर के चंदोर में बसे थे उनकी संतान चंदोसिया बैस कहलाती है
  • रावत - फतेहपुर, उन्नाव में
  • कुम्भी एवं नरवरिया - बैसवारा में मिलते हैं
बैसवंशी राजपूतो की वर्तमान स्थिति - Current Status of Bais Dynasty Rajputs
बैस राजपूत वंश वर्तमान में भी बहुत ससक्त वंश मन जाता है, ब्रिटिश गजेटियर में भी इस वंश की सम्पन्नता और कुलीनता के बारे में विस्तार से लिखा गया है। अवध, पूर्वी उत्तर प्रदेश के बैसवारा में बहुत से बड़े जमीदार बैस वंश से थे, बैस वंशी राणा बेनी माधव बख्श सिंह और दूसरे बैस जमीदारों ने सन 1857 इसवी में अवध क्षेत्र में अंग्रेजो से जमकर लोहा लिया था, बैस राजपूतों द्वारा अंग्रेजो का जोरदार विरोध करने के बावजूद अंग्रेजो की हिम्मत इनकी जमिदारियां खत्म करने की नहीं हुई, बैस राजपूत अपने इलाको के सरताज माने जाते हैं और सबसे साफ़ सुथरे सलीकेदार वस्त्र धारण करने से इनकी अलग ही पहचान हो जाती है, अंग्रेजी ज़माने से ही इनके पक्के ऊँचे आवास इनकी अलग पहचान कराते थे, इनके बारे में लिखा है कि-
"The Bais Rajput became so rich at a time it is recorded that each Bais Rajput held Lakhs (Hundreds of thousands) of rupees a piece which could buy them nearly anything. To hold this amount of money you would have to have been extremely rich.This wealth caused the Bais Rajput to become the "best dressed and housed people"[22] in the areas they resided. This had an influence on the areas of Baiswara and beyond as recorded the whole area between Baiswara and Fyzabad was.
जमीदारी के अतिरिक्त बैस राजपूत राजनीती और व्यापार के क्षेत्र में भी कीर्तिमान बना रहे हैं,कई बड़े व्यापारी और राजनेता भारत और पाकिस्तान में बैस बंश से हैं जो विदेशो में भी व्यापार कर रहे हैं,राजनीती और व्यापार के अतिरिक्त खेलो की दुनियां में मेजर ध्यानचंद जैसे महान हॉकी खिलाडी,उनके भाई कैप्टन रूप सिंह आदि बड़े खिलाडी बैस वंश में पैदा हुए हैं.कई प्रशासनिक अधिकारी,सैन्य अधिकारी बैस वंश का नाम रोशन कर रहे हैं। वस्तुत: जिस सूर्यवंशी बैस वंश में शालिवाहन, हर्षवर्धन, त्रिलोकचंद, अभयचंद, राणा बेनी माधव बख्श सिंह, मेजर ध्यानचंद आदि महान व्यक्तित्व हुए हैं उन्ही के वंशज भारत,पाकिस्तान,पाक अधिकृत कश्मीर, कनाडा, यूरोप में बसा हुआ बैस राजपूत वंश आज भी पूरे परिश्रम, योग्यता से अपनी सम्पन्नता और प्रभुत्व समाज में कायम किये हुए है और अपने पूर्वजो की गौरवशाली परम्परा का पालन कर रहा है

क्षत्रिय राजपूतों से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण लेख -


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प्रमुख देशों के राष्ट्रीय चिन्ह



National Symbols Of Various Countries
 National Symbols Of Various Countries
  1. कनाडा - सफेद लिली
  2. भारत - अशोक चक्र
  3. जापान - गुलदाउदी
  4. पाकिस्तान - चाँद-तारा
  5. स्पेन -ईगल
  6. ऑस्ट्रेलिया - कंगारू
  7. ईरान - गुलाब का फूल
  8. इटली - सफेद लिली
  9. फ्रांस - लिली
  10. अमेरिका - गोल्डेन रॉड
  11. नार्वे - शेर
  12. ब्रिटेन - गुलाब का फूल
  13. तुर्की - चाँद-तारा
  14. नेपाल - खुखरी
  15. न्यूजीलैण्ड - किवी
  16. बांग्लादेश - कमल (वाटर लिली)


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जानिये राजीव गांधी ( Rajeev Gandhi ) के बारे में 10 महत्वपूर्ण बातें



  1. 21 मई 1991 को तमिल आतंकियों ने चुनाव प्रचार के दौरान इनकी हत्या कर दी।
  2. 40 वर्ष की उम्र में राजीव गांधी भारत के सबसे कम उम्र के प्रधानमंत्री बने।
  3. इनकी शादी इटली की नागरिक सोनिया गांधी से हुई जिनसे इनको 2 संतान हैं, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी।
  4. इनके कार्यकाल में का बोफोर्स घोटाला इनके पतन का कारण बना, बोफोर्स घोटाला तोप खरीदी में घुस से संबंधित है।
  5. उनके आधुनिक सोच से ही भारत मे सूचना क्रांति आई थी, उनके कार्यकाल में सूचना के क्षेत्र में अद्वितीय कार्य हुआ।
  6. राजीव गांधी 31 अक्टूबर 1984 से 02 दिसंबर 1989 तक भारत के प्रधानमंत्री थे। वे भारत के सातवें प्रधानमंत्री हुये।
  7. राजीव गांधी ने लंदन के इम्पीरियल कॉलेज से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।
  8. राजीव गांधी पहली बार अमेठी लोकसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर संसद पहुंचे। अमेठी लोकसभा क्षेत्र उत्तरप्रदेश राज्य में आता है।
  9. राजीव गांधी, भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी एवं फिरोज गांधी के पुत्र थे।
  10. संजय गांधी इनके भाई थे जिनकी विमान दुर्घटना ( 1980 ) में मौत हो गयी।


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वियना संधि ( Vienna Convention ) क्या है ?



वियना संधि ( Vienna Convention ) क्या है ?
1961 में सबसे पहले आजाद और संप्रभु देशों के बीच आपसी राजनयिक संबंधो को लेकर वियना कन्वेंशन हुआ था। जिसके तहत ऐसे अंतर्राष्टरीय संधि का प्रावधान हुआ जिसमें राजनयिकों को विशेष अधिकार दिए गए। वियना कन्वेंशन के दो साल बाद 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इससे मिलती-जुलती एक और संधि का प्रावधान किया, जिसे ‘वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’ कहा गया। इसका ड्राफ्ट इंटरनेशनल लॉ कमीशन ने तैयार किया था। जिसे 1964 में इसे लागू किया गया और तभी वियना संधि अस्तित्व में आई। इस संधि के प्रमुख प्रावधानों के तहत कोई भी देश दूसरे देश के राजनियकों को किसी भी कानूनी मामले में गिरफ्तार नहीं कर सकता है। इसके साथ ही राजनयिक के ऊपर मेजबान देश में किसी तरह का कस्टम टैक्स नहीं लगेगा।

  1. वियना संधि एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जिसमे अबतक लगभग 191 देशों ने अपनी सहमति जताकर हस्ताक्षर किए हैं।
  2. वियना संधि में कुल 54 आर्टिकल ( अनुच्छेद ) हैं।
  3. 1961 में वियना कन्वेंशन हुआ था जिसमे इस अंतराष्ट्रीय संधि का प्रावधान किया गया।
  4. इस संधि के तहत दूसरे देशों में जाकर कार्य कर रहे राजनयिकों को विशेष अधिकार दिया गया।
  5. इसके 2 वर्ष उपरांत संयुक्त राष्ट्र संघ ने " वियना कन्वेंशन ऑन कंसुलर रिलेशन्स " के नाम से नए संधि का प्रावधान किया जिसमें 179 देशों की सहमति अबतक बानी है और 79 अनुच्छेद हैं।
  6. भारत द्वारा इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस ( I.C.J. ) में इसी नए संधि के आधार पर जाधव वाला मामला उठाया गया है।
  7. इसके दो साल बाद 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने इसी संधि से मिलती जुलती एक और संधि का प्रावधान किया। इस संधि को वियना कन्वेंशन ऑन कांसुलर रिलेशंस’के नाम से जाना जाता है।
  8. भारत ने आईसीजे में इसी जाधव का मामला इसी संधि के तहत उठाया है। इस संधि पर अभी तक 179 देश सहमत हो चुके हैं। इस संधि के तहत कुल 79 आर्टिकल हैं।
  9. इस संधि के आर्टिकल 31 के तहत मेजबान देश दूतावास में नहीं घुस सकता है और उसे दूतावास के सुरक्षा की जिम्मेदारी भी उठानी है। इसके आर्टिकल 36 के तहत अगर किसी विदेशी नागरिक को कोई देश अपनी सीमा के भीतर गिरफ्तार करता है तो संबंधित देश के दूतावास को बिना किसी देरी के तुरंत इसकी सूचना देनी पड़ेगी।
  10. गिरफ्तार किए गए विदेशी नागरिक के आग्रह पर पुलिस को संबंधित दूतावास या राजनयिक को फैक्स करके इसकी सूचना भी देनी पड़ेगी। इस फैक्स में पुलिस को गिरफ्तार व्यक्ति का नाम, गिरफ्तारी की जगह और गिरफ्तारी की वजह भी बतानी होगी। यानी गिरफ्तार विदेशी नागरिक को राजनयिक पहुंच देनी होगी।
नोट - इसके प्रावधानों में संशोधन की मांग समय समय पर उठती रही राय क्योकि कई बार राजनयिक गलत फायदा उठाकर अपने देश भाग जाते हैं।


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रैनसमवेयर क्या है ? कैसे बचें ? | Computer General Knowledge |




 
रेनसमवेयर वायरस क्या है ?
रैनसमवेयर ( Ransomware) एक प्रकार का दुर्भावनापूर्ण फिरौती मांगने वाला सॉफ़्टवेयर है। इसे इस तरह से बनाया जाता है कि वह किसी भी कंप्यूटर सिस्टम के सभी फाइलों को इनक्रिप्ट कर दे। जैसे ही सॉफ्टवेयर इन फाइलों को इनक्रिप्ट कर देता है, वैसे ही वह फिरौती मांगने लगता है और धमकी देता है कि यदि उतनी राशि नहीं चुकाई तो वह कंप्यूटर के सभी फाइलों को बर्बाद कर देगा। इसके बाद इन फाइलों तक कंप्यूटर उपयोगकर्ता तब तक देख या उपयोग नहीं कर सकता जब तक वह फिरौती में मांगी गई राशि का भुगतान न कर दे। खास बात यह है कि इसमें फिरौती की रकम चुकाने हेतु समयसीमा निर्धारित की जाती है और यदि कोई समय से पैसा नहीं चुकाता तो उसके लिए फिरौती की रकम बढ़ जाती है।

जैसा कि वायरस के नाम से स्पष्ट है अब बात आती है फिरौती की - हैकर्स व्यक्ति/संस्था से संपर्क करके रकम की मांग करते हैं और न देने की स्थिति में निजी जानकारी को इंटरनेट पर साझा करने अथवा डिलीट करने की धमकी भी देते है। समय पर पैसा न देने से रकम बढ़ाया जाता है। फिरौती बिटकॉइन के रूप में मांगी जाती है ताकि पेमेंट को जल्द से जल्द उचित ढंग से व्यवस्थित किया जा सके।

रैनसमवेयर से कैसे बचें?

इंटरनेट पर ब्राउज़िंग करते समय सतर्क रहें और किसी भी अनजान व्यक्ति द्वारा भेजे ईमेल की सामग्री को पड़ताल करने के बाद ही डाउनलोड करें। विश्वस्त वेबसाइट से ही डाउनलोड करें। अपने कंप्यूटर पर रखे जानकारियों का समय समय पर बैकअप बनाते रहें। हाल ही में इस वायरस ने भारत सहित लगभग 100 देशों के 2 लाख से भी ज्यादा कंप्यूटर सिस्टम के सिक्योरिटी को ध्वस्त किया है यह एक बेहद शातिर वायरस है।


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International Court Of Justice ( ICJ) - अंतराष्ट्रीय न्यायलय



International Court Of Justice
अंतराष्ट्रीय न्यायालय
अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय संयुक्त राष्ट्र का प्रधान न्यायिक अंग है और इस संघ के पांच मुख्य अंगों में से एक है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्रसंघ के घोषणा पत्र के अंतर्गत हुई है। इसका उद्घाटन अधिवेशन 18 अप्रैल 1946 ई. को हुआ था। इस न्यायालय ने अंतर्राष्ट्रीय न्याय के स्थाई न्यायालय की जगह ले ली थी। न्यायालय हेग में स्थित है और इसका अधिवेशन छुट्टियों को छोड़ सदा चालू रहता है। न्यायालय के प्रशासन व्यय का भार संयुक्त राष्ट्रसंघ पर है। 1980 तक अंतर्राष्ट्रीय समाज इस न्यायालय का ज़्यादा प्रयोग नहीं करती थी, पर तब से अधिक देशों ने, विशेषतः विकासशील देशों ने, न्यायालय का प्रयोग करना शुरू किया है। फ़िर भी, कुछ अहम राष्ट्रों ने, जैसे कि संयुक्त राज्य, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के निर्णयों को निभाना नहीं समझा हुआ है। ऐसे देश हर निर्णय को निभाने का खुद निर्णय लेते है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में समान्य सभा द्वारा 15 न्यायाधीश चुने चाते है। यह न्यायाधीश नौ साल के लिए चुने जाते है और फ़िर से चुने जा सकते है। हर तीसरे साल इन 15 न्यायाधीशों में से पांच चुने जा सकत्ते है। इनकी सेवानिव्रति की आयु, कोई भी दो न्यायाधीश एक ही राष्ट्र के नहीं हो सकते है और किसी न्यायाधीश की मौत पर उनकी जगह किसी समदेशी को दी जाती है। इन न्यायाधीशों को किसी और ओहदा रखना मना है। किसी एक न्यायाधीश को हटाने के लिए बाकी के न्यायाधीशों का सर्वसम्मत निर्णय जरूरी है। न्यायालय द्वारा सभापति तथा उपसभापति का निर्वाचन और रजिस्ट्रार की नियुक्ति होती है। न्यायालय में न्यायाधीशों की कुल संख्या 15 है, गणपूर्ति संख्या नौ है। निर्णय बहुमत निर्णय के अनुसार लिए जाते है। बहुमत से सहमती न्यायाधीश मिलकर एक विचार लिख सकते है, या अपने विचार अलग से लिख सकते है। बहुमत से विरुद्ध न्यायाधीश भी अपने खुद के विचार लिख सकते है। 

प्रमुख तथ्य 
  • स्थापना - 1945
  • कार्य प्रारंभ - 1947
  • मुख्यालय - द हेग ( नीदरलैंड )
  • अध्याय एवं अनुच्छेद - 5 अध्याय 79 अनुच्छेद।
  • न्यायधीशों की संख्या - 15
  • न्यायधीशों की नियुक्ति - 9 वर्ष के लिए।
  • ICJ में प्रथम भारतीय न्यायधीश - डॉ. नागेंद्र सिंह।
  • प्रत्येक 3 वर्ष में सेवानिवृत्त न्यायधीश की संख्या - 5
  • कार्यकारी भाषा - फ्रेंच और अंग्रेजी।
  • न्यायधीश नियुक्ति की मुख्य शर्त - दो न्यायधीश एक देश से नही हो सकते।


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पुराणों के अनुसार विवाह के प्रकार



यथाशक्ति अलंकृत कर अपनी कन्या प्रदान करना ब्रह्म विवाह

अपने घर पर वर को बुलाकर यथाशक्ति अलंकृत कर अपनी कन्या प्रदान करना 'ब्रह्म विवाह' है। इस विधि से विवाहित स्त्री-पुरुष से उत्पन्न होने वाली संतान दोनों कुलों के 21 पीढ़ियों को पवित्र करती हैं। आज के समय में बहु प्रचिलित अरेन्ज्ड मैरेज ब्रह्म विवाह का ही स्वरुप है।

तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो


यज्ञ दीक्षित ऋत्विक ब्राह्मण को अपनी कन्या देना जय विवाह है तथा वर से एक जोड़ा गौ (गाय और बैल का एक जोड़ा) लेकर उसको कन्या प्रदान करना आर्ष विवाह कहां जाता है। इस के प्रथम (ब्रह्म विवाह) विधि से विवाहित स्त्री-पुरुष से उत्पन्न पुत्र अपनी प्रथम की साथ तथा बाद की साथ इस तरह 14 पीढ़ियों को पवित्र करता है आर्ष विधि के विवाह से उत्पन्न पुत्र तीन पूर्व तथा तीन बाद की इस तरह 6 पीढ़ियों को पवित्र करता है।

यज्ञ दीक्षित ऋत्विक ब्राह्मण को अपनी कन्या देना जय विवाह है


'तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो' यह कह कर विवाह की इच्छा रखने वाले वर को पिता के द्वारा जब कन्या प्रदान की जाती है तब ऐसे विवाह को काय विवाह (प्रजापत्य विवाह) कहते हैं इस विवाह विधि से उत्पन्न पुत्र अपने सहित पूर्व की छह तथा बाद की 6 पीढ़ियों इस तरह कुल 13 पीढ़ियों को पवित्र करता है।

प्रेम विवाह गान्धर्व विवाह का ही स्वरुप है
'तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो' यह कह कर विवाह की इच्छा रखने वाले वर को पिता के द्वारा जब कन्या प्रदान की जाती है तब ऐसे विवाह को काय विवाह (प्रजापत्य विवाह) कहते हैं

कन्या के पिता या बंधु-बांधव अथवा कन्या को ही यथाशक्ति धन देकर यदि कोई वर उससे विवाह करता है तो इस विवाह को 'असुर विवाह' और वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं। प्रेम विवाह गान्धर्व विवाह का ही स्वरुप है।  कन्या की इच्छा नहीं है तब भी बलात युद्ध आदि के द्वारा अपहृत उस कन्या के साथ विवाह करना 'राक्षस विवाह' है। स्वाप (कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको 'पैशाच विवाह' कहते हैं।

वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं
वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं


इन उपर्युक्त आठ विवाह में प्रथम चार प्रकार के विवाह अर्थात ब्रम्ह, दैव, आर्ष और प्रजापत्य विवाह ब्राह्मण वर्ण के लिए उपयुक्त है। गांधर्व विवाह तथा राक्षस विवाह क्षत्रिय वर्ण के लिए उचित है। असुर विवाह वैश्य वर्ण और अंतिम गर्हित पैशाच विवाह शूद्र वर्ण के लिए उचित माना गया है।

कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको पैशाच विवाह कहते हैं
कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको 'पैशाच विवाह' कहते हैं।



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अहिल्या का उद्धार



एक दिन मुनि महानंद ने अपने गुरु से पूछा, 'गुरुदेव, क्या श्री रामचंद जी के विषय में यह कथन सही है कि उन्होंने ऋषि गौतम की शापित पत्नी अहिल्या को अपने चरण कमलों की ठोकर मार कर उनका उद्धार किया था?' इस पर गुरु मुस्कराए, फिर बोले 'वत्स! यह तो जनश्रुति है, सत्य नहीं। राम जैसे मर्यादा पुरुष क्या किसी स्त्री को अपने पैर से ठोकर मार सकते थे? ठोकर मारना तो दूर, राम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस कथा के प्रतीकार्थ को समझने की जरूरत है। श्रीराम पृथ्वी विज्ञान के ज्ञाता थे। उन्होंने इसी ज्ञान का प्रयोग कर प्रजा के उत्थान का प्रयास किया था। लेकिन यह कथा दूसरे ही रूप में प्रचलित हो गई।

अहिल्या का उद्धार

वत्स महानंद, यहां अहिल्या का अर्थ पृथ्वी है, ऐसी भूमि जो उपजाऊ तो हो परंतु उसमें अन्न उत्पन्न नहीं किया जा रहा हो। यानी जो भूमि वज्र तुल्य पड़ी हो। वस्तुत: वज्र तुल्य बेकार पड़ी पृथ्वी को अहिल्या कहा जाता है। ' गुरु जी ने स्पष्ट करते हुए कहा, 'हे महानंद! प्रभु श्रीरामचंद सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या त्याग कर वनवास जाते हुए जब निषाद राज्य सीमा में पहुंचे तो निषादराज ने तीनों का हार्दिक स्वागत करते हुए श्री रामचंद से प्रार्थना की, 'महाराज, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कृपया आदेश दें।'

श्री रामचंद ने स्वागत से विभोर होकर निषादराज से कहा, 'हे प्रिय बंधु निषादराज! यह जो बेकार पड़ी कृषि योग्य भूमि है इसे उपजाऊ बनाओ, इसके लिए अपने कृषकों को आदेश दो कि वे इस वज्र तुल्य भूमि को पानी और खाद देकर, जोतकर उपजाऊ बनाएं तथा इसमें अन्न उत्पन्न करें।' निषादराज ने रामचंदजी का आदेश स्वीकार किया। निषाद राज्य के किसानों और श्रमिकों ने अत्यंत मेहनत से काम किया और देखते ही देखते वह भूमि लहलहा उठी। तो इस तरह रामचंद के कहने पर उस वज्र तुल्य पृथ्वी को उपजाऊ बनाकर उसका उद्धार किया गया। यही अहिल्या (पृथ्वी) का वास्तविक उद्धार है।'

महानंद एक आख्यान की इस व्याख्या से संतुष्ट हुए। उन्होंने कहा, 'इस कथा में निहित इस संदेश को जन-जन तक फैलाने की आवश्यकता है।'


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ॐ aum, om



aum, also om (Devanagari: ॐ) is the most sacred syllable in Hindu Dharma, first coming to light in the Vedic Tradition. The character is a composite of three different letters of the Sanskrit alphabet. The syllable is sometimes referred to as the udgitha or pranava mantra (primordial mantra); not only because it is considered to be the primal sound, but also because most mantras begin with it. In Devanagari it is written ॐ, and in Tibetan script ༀ.

"Aum" is the most sacred syllable often spoken during the practice of any Hindu rites. It is a holy character of the Sanskrit language, the language of God. The character is a composite of three different letters of the Sanskrit alphabet. Because of its significance this sacred syllable is spoken before any chants to show God we remember him. This sign in Hinduism also represents the whole universe.

The Significance of the Symbol ॐ

The symbol ॐ (aum, also called pranava), is the most sacred symbol in Hinduism. Volumes have been written in Sanskrit illustrating the significance of this mystic symbol. Although this symbol is mentioned in all the Upanishads and in all Hindu scriptures, it is especially elaborated upon in the Taittiriya Upanishad, Chandogya Upanishad and Mundaka Upanishad Upanishads.
The goal, which all Vedas declare, which all austerities aim at, and which humans desire when they live a life of continence, I will tell you briefly it is aum. The syllable aum is indeed Brahman. This syllable aum is the highest. Whosoever knows this symbol obtains all that he desires. This is the best support; this is the highest support. Whosoever knows this support is adored in the world of Brahman.
—Katha Upanishad I, ii, 15-17
The symbol of ॐ (aum) contains of three curves, one semicircle and a dot. The large lower curve symbolizes the waking state; the upper curve denotes deep sleep (or the unconscious) state, and the lower curve (which lies between deep sleep and the waking state) signifies the dream state. These three states of an individual’s consciousness, and therefore the entire physical phenomenon, are represented by the three curves. The dot signifies the Absolute (fourth or Turiya state of consciousness), which illuminates the other three states. The semicircle symbolizes maya and separates the dot from the other three curves. The semicircle is open on the top, which means that the absolute is infinite and is not affected by maya. Maya only affects the manifested phenomenon. In this way the form of aum symbolizes the infinite Brahman and the entire Universe.
Uttering the monosyllable ॐ, the eternal world of Brahman, One who departs leaving the body (at death), he attains the superior goal.
— Bhagavad Gita, 8.13


ॐ (AUM) — Origin

Found first in the Vedic scriptures of Hinduism, aum has been seen as the first manifestation of the unmanifest Brahman (the single Divine Ground of Hinduism) that resulted in the phenomenal universe. Essentially, all the cosmos stems from the vibration of the sound 'Aum' in Hindu cosmology. Indeed, so sacred is it that it is prefixed and suffixed to all Hindu mantras and incantations. It is undoubtedly the most representative symbol of Hinduism.
Although the ॐ symbol's left part, ऊ, which looks like a figure 3, looks like the uu vowel in the Devanagari script, specifically, when used as a syllable with no attached initial consonant, it is actually based on Brahmi version of ओ. The nasal sound is indicated by a chandrabindu.

Philosophy of AUM

Gods and Goddesses are sometimes referred to as Aumkar (or Omkar), which means form of Aum, thus implying that who are limitless, the vibrational whole of the cosmos. Ek Onkar, meaning 'one god' is a central tenet of Sikh religious philosophy. In Hindu metaphysics, it is proposed that the manifested cosmos (from Brahman) has name and form (nama-rupa), and that the closest approximation to the name and form of the universe is Aum, since all existence is fundamentally composed of vibration. (This concept of describing reality as vibrations, or rythmic waves, can also be found in quantum physics and super string theory, which describe the universe in terms of vibrating fields or strings.)
In advaita philosophy it is frequently used to represent three subsumed into one, a common theme in Hinduism. It implies that our current existence is mithya, or 'slightly lesser reality,' that in order to know the full truth we must comprehend beyond the body and intellect and intuit the true nature of infinity, of a Divine Ground that is imminent but also transcends all duality, being and non-being, that cannot be described in words. Within this metaphysical symbolism, the three are represented by the lower curve, upper curve and tail of the ॐ subsumed into the ultimate One, represented by the little crescent moon-shape and dot, known as chandrabindu. Essentially, upon moksha, mukti, samadhi, nirvana, liberation, etc. one is able not only to see or know existence for what it is, but to become it. In attaining truth one simply realizes fundamental unity; it is not the joining together of a prior manifold splitting. When one gains true knowledge, there is no split between knower and known: one becomes knowledge/consciousness itself. In essence, Aum is the signifier of the ultimate truth that all is one.
For the scriptural esoteric explanation of Aum see Mandukya Upanishad.
dvaita-advaita (Vaishnava) philosophies teach that 'Aum' is an impersonal sound representation of Vishnu/Krishna while Hari Nama is the personal sound representation. A represents Krishna, U Srimati Radharani and M jivas. According to Sridhara Svami the pranava has five parts: A, U, M, the nasal bindu and the reverberation (nada). Liberated souls meditate on the Lord at the end of that reverberation.
Examples of Three into One:
  • Creation (Brahma)- Preservation (Vishnu)- Destruction (Shiva) into Brahman
  • Waking- Dreaming- Dreamless Sleep into Turiya (transcendental fourth state of consciousness)
  • Rajas (activity, heat, fire)- Tamas (dullness, ignorance, darkness)- Sattva (purity, light, serenity/shanti) into Brahman
  • Body, Speech and Mind into Oneness
The Chandogya Upanishad (1.1.1-10) states,

"The udgitha is the best of all essences, the highest, deserving the highest place, the eighth."
"Aum" can be seen as Sri Ganesh, whose figure is often represented in the shape of Aum. He is thus known as Aumkar (Shape of Aum). Sri Nataraja, or the Hindu god 'Shiva' dancing his dance of destruction, is seen in that popular representation mirroring the image of Aum. It is said to be the most perfect 'approximation' of the cosmic existence within time and space, and therefore the sound closest to Truth.
"The First Word Om (Aum) It is also called Pranav because its sound emanates from the Prana (vital vibration), which feels the Universe. The scripture says "Aum Iti Ek Akşara Brahman" (Aum that one syllable is Brahman)."

The AUM Sound

"A - emerges from the throat, originating in the region of the navel U - rolls over the tongue M - ends on the lips A - waking, U - dreaming, M - sleeping It is the sum and substance of all the words that can emanate from the human throat. It is the primordial fundamental sound symbolic of the Universal Absolute.".
In fact, when correctly pronounced, or rather, "rendered", the "A" can be felt as a vibration that manifests itself near the navel or abdomen; the "U" can be felt vibrating the chest, and the "M" vibrates the cranium or the head. The abdominal vibration symbolises Creation; It is interesting that the "creative" or reproductive organs are also located in the lower abdomen. The vibration of the chest represents Preservation, which is also where the lungs are situated (the lungs sustain or preserve the body through breath). The vibration of the head is associated with Destruction or sacrifice, since all that gives up or destroys is first destroyed mentally. Hence, the entire cycle of the universe and all it contains is said to be symbolised in AUM.
Today, in all Hindu art and all over India and Nepal, 'Aum' can be seen virtually everywhere, a standard sign for Hinduism and a vast but economical storehouse for the deep mythology inherent in the world's oldest religion.
Notes the Chandogya Upanishad, "That syllable, is a syllable of permission; for, whenever we permit anything, we say Aum." However, this is seen by others as a myopic perspective because the same Hindu scriptures, the Upanishads, that aver this function also attribute to it the divine property of the source of the universe. Aum is seen as the source of existence as we know it within the causal dimensions of time and space, and thus affirmatory meanings in languages are a natural progression. Aum is not only affirmation, but negation, and transcends both.
The AUM sound is sometimes called "the 3-syllable Veda". The third syllable arises because in Devanagari and similar alphabets, a consonant at the end of a word is sometimes written as a separate consonant letter with the virama "no vowel" sign, and this combination is treated as a syllable when talking about Devanagari writing rather than about phonetics.
The Sanskrit word omkāra (from which came Punjabi onkār, etc), literally "OM-maker", has two families of meanings:-
Brahma (god) in his role as creator, and thus a word for "creator". Writers' term for the OM sign.
The use of the universal AUM sound can be found on every nearly continent and in many different cultures. The sound is unique to every individual: hence it can only be described by how it feels. Below is a secular guide to making the sound:
An individual's "Aum" is the sound that can be held steady the longest per breath for the longest consecutive sequence of breaths. It is called "aum" in every culture that is aware of it because it sounds like that in all humans. The lower pitches are more suited because they require less muscular contraction of the abdomen, leading to lower rates of oxygen consumption, allowing for longer time between breaths. The Aum is the exact sound that is easiest for the individual to produce.
Once the minimization of oxygen consumption occurs (by minimization of muscular exertion), the outflow of air will be steady and quite sensitive to any forces that alter the amount of pressure in the chest cavity. One of the most notable consequences of this is that the rythmic contractions of the heart become audible within the Aum.
Thus, by the use of Aum:
  • one can easily hear their own heart.
  • a person can modify the pace of their heart.
  • a group of people can synchronize their heartbeats.


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भाग्य सूक्तं - Bhagya Suktam Vedic Hymn



Bhagya Suktam Vedic Hymn
Bhagya Suktam Vedic Hymn
 
ॐ प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रा वरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातस्सोममुत रुद्रँ हुवेम ॥
Aum praataragniṃ praatarindraṃ havaamahe praatarmitraa varuṇaa praatarashvinaa |
praatarbhagaṃ pooṣhaṇaṃ brahmaṇaspatiṃ praatass somamuta rudraṃ huvem ||
At dawn, we invoke Agni (the fire deity), Indra (the rain deity), Mitrā (the Sun) and Varuṇa (the deity of the ocean); the Aśvins (the celestial physician twins), Bhaga (the deity of wealth), Puṣan (the Sun as the deity of nutrition), Bṛahmaṇaspati (the preceptor of the gods), Soma (the Moon), and Rudra (the god of dissolution)
हम प्रात: के समय पर अग्नि, वरुण, इन्द्र, मित्र, अश्विन कुमार, भग, पूष, ब्रह्मनास्पति, सोम और रूद्र का आवाहन करते हैं

प्रातर्जितं भगमुग्रँ हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता । 
आद्ध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यंभगं भक्षीत्याह॥
Praatarjitaṃ bhagmugraṃ huvem vayaṃ putramaditeryo vidhartaa |
aadhrash chidyaṃ manya maanastu rashchidraajaa chid yaṃ bhagaṃ bhakṣhityaaha ||
We invoke at dawn, the fierce Bhaga, the son (manifestation) of Aditi (the Cosmic Power), who is the very sustainer of the creation. Whether a pauper, a busy person, or a king; everyone worships and contemplates upon Bhaga saying, 'I would worship Bhaga.'
हम शक्तिशाली, युद्ध में जीतने वाले भग का आवाहन करते हैं जिनके बारे में सोचकर राजा भी कहते हैं की हमें भग दीजिए

भग प्रणेतर्भगसत्यराधो भगेमां धियमुदवददन्नः। 
भगप्रणो जनय गोभि-रश्वैर्भगप्रनृभि-र्नृवन्तस्स्याम ॥
bhagha praṇetarbhaga satyaraadho bhaghemaaṃ dhiyamudava dadannaḥ |
bhaga praṇo janaya gobhirashvairbhaga pranṛibhirnṛivantassyaam ||
O Bhaga! The great leader, and truth is your wealth. Bestow it upon us, and elevate our intellect and protect it. Bless us with cattle-wealth, horses, and descendants and followers.
हे भग हमारा मार्गदर्शन करें ,आपके उपहार अनुकूल हैं ,हमें ऐश्वर्य दीजिये हे भग! हमें घोडे {सवारी }, गाय और योद्धा वंशज दीजिए

उतेदानीं भगवन्तस्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। 
उतोदिता मघवन् सूर्यस्य वयं देवानाँ सुमतौ स्याम ॥
utedaaneeṃ bhagavantasyaamot prapitv ut madhye ahnaam |
utoditaa maghavan sooryasya vayaṃ devaanaaṃ sumatau syaam ||
4. May we be blessed by Bhaga now (during this fire-ritual), and when the light approaches, or at midday. O Lord Indra! At sunset also, may we still find favor of the Sun, and other gods.
4. कृपा कीजिये कि अब हमें सुख-चैन मिले , और जैसे जैसे दिन बढ़ता जाये , जैसे -जैसे दोपहर हो , शाम हो हम देव कृपा से प्रसन्न रहे

भग एव भगवाँअस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तस्स्याम। 
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीमि सनो भग पुर एता भवेह॥
bhaga eva bhagavaanastu devaastena vayaṃ bhagvantasyaam |
taṃ tvaa bhaga sarva ijjohaveemi sano bhaga pur etaa bhaveha ||
5. May Bhaga, (and) the gods be the possessor of good fortune, and through Him, may we may be blessed with good fortune by that god. Everyone including myself invite you to bring in good fortune. O Bhaga! Kindly lead us being present in the ritual.
5. हे भग आप परमानंद प्रदान करें और आपके द्वारा देव हमें प्रसन्नता से स्वीकार करें हे भग हम आपका आवाहन करते हैं ,आप यहाँ हमारे साथ आयें

समध्वरायोषसोऽनमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय। 
अर्वाचीनं वसुविदं भगन्नो रथमिवाश्वावाजिन आवहन्तु॥
samadhvaraayoshaso namanta dadhikraaveva shuchaye padaaya |
arvaacheenaṃ vasuvidaṃ bhaganno rathamivaaśhvaa vaajina aavahantu ||
6. May the presiding deities of the early morning-hour arrive here, like the horse that puts its foot in the place of Vedic ritual for establishing the fire altar. May they bring Bhaga, the Lord of wealth, as speedily as swift horses pulling a chariot
6. इस प्रकार प्रतिदिन भग यहाँ आयें {पवित्र स्थान जैसे दधिक्रावन }जैसे शक्तिशाली घोड़े रथ को खींचते हैं वैसे ही भग का यहाँ आवाहन किया जाये

अश्वावतीर्गोमतीर्नउषासो वीरवतीस्सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीनायूयं पात स्वस्तिभिस्सदा नः॥
ashhvaavateergomateerna uṣhaaso veeravateess sadamuchchantu bhadraḥ |
ghṛitaṃ duhanaa vishvataḥ prapeenaa yūyaṃ paata swastibhissadaa naha||

May the presiding deities of the Dawn bless us with many horses and cattle, and plenty of milk and milk-products. May these auspicious gods bless us with good progeny, and nourish all life. May they proclaim auspiciousness in the place of worship. May they always ensure our good fortune
इस प्रकार कृतार्थ सुबह हमें प्राप्त हो हमें हमें सुपुत्र, घोडे, पशु, दुग्ध और योधा रिश्तेदार प्राप्त हो हे देव हमें अपने आशीर्वाद दीजिये

ॐ अवैध मृत्युम न अमृतम न आगम मैव सुतो नो अभै त्रुणोत ।
वर्णम वनस्पती रिभाभिनष्यी यथागम भयै सदा नस्च जिपदही ।।

परम प्रत्यो अन्पढे एवम धयस्ते श्वेतयो देवाय न आत ।
तत्क्षुस्मते ब्रह्मणे देव प्रवी विमानव प्रजा ग्म्य निसोमोद विनोद्: ।।

वातम प्राणम वन्सान्त्वा हावामहे प्रजापतिम्यो भुवन्श्य गोप: ।
स नो रुद्रो: स्त्राय धान्त्वाम त्रध्युम धधयो जीवा: धधा मुचिमहे ।।

अमृत प्रभु या धध: योग्यवस्य वृहश्पते अभिशस्त्रे न रुद्र: ।
मृत्यो हावा मश्मिना मृत्यो मस्मा देवानामने भि च गाच देवहि: ।।

परिगम धनम च मुचयम च देवा विश्वा शेषानम पृतभम पतीनअ्म ।
ब्रह्मा सदो च वेदमागा च यधमागा मधिय विक्रमस्य: ।।

सल्के न अग्निम दानभुतौ लोकौ स नै माहम ।
उपायो भोगयो रुध्रापी मृत्युम जराम्य्हम ।।

मा चिदो मृत्यो मा वधेर मा मे बलम चिदहो मा प्रमोसि: ।
प्रजाम मा मे रीरिष: समायु रुद्र निरक्ष सन्त्रा: हविषा विधेमा ।।

मा नो महान्त मुत मानो अर्ब्भकम्मन अक्ष्यन्त मुत मान उक्षितम ।
मा नो व्यधिम पितरम्मोत मातरम्मनम प्रियास्तनवो रुद्ररीरिष: ।।

मानस्तोके तनए मान आयौ मानो अश्वेषु रीरिश: ।
वीरन्मानो रुद्र भामितो वेधी: हविष्मन्त सदमित्वा हावामहे ।।

इस वैदिक सूक्त का पाठ कोई भी कर सकता है इसका पाठ करने से या इसे सुनना सौभाग्याकारी है
ऋग्वेद ७-४१


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स्वप्न में गो दर्शन का फल



स्वप्न में गौ अथवा सांड के दर्शन से कल्याण लाभ एवं व्याधि नाश होता है, इसी प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना गया है।
इसी प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना गया है।
स्वप्न में गौ का घर में ब्याना, बैल अथवा सांड की सवारी करना, तलाक के बीच में घृत मिश्रित खीर का भोजन भी उत्तम माना गया है। इनमें से घी सहित खीर का भोजन तो राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है। किसी प्रकार स्वप्न में ताजे दुहे  हुए  फेन सहित दुग्ध का पान करने वाले को अनेक भोगों  की तथा दही के देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। जो बैल अथवा साड़ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जागता है, उसे शीघ्र ही धन मिलता है।
स्वप्न में दही मिलने से धन की भी मिलने से तथा दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है। इसी प्रकार यात्रा आरंभ करते समय दही अथवा दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है। स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ होता है एवं व्याधि से छुटकारा मिलता है इसी प्रकार स्वप्न में सावन सांड अथवा गौ का दर्शन करने से कुटुंब की वृद्धि होती है। स्वप्न में सभी काली वस्तु का दर्शन निषेध माना गया है, केवल कृष्णा गौ का दर्शन शुभ होता है।
स्वप्न में सभी काली वस्तु का दर्शन निर्णय माना गया है केवल कृष्णा गौ का  दर्शन शुभ होता है



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नवग्रह स्तोत्र - जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं



शास्त्रों में कुल नौ नवग्रह बताए गए हैं और इन नवग्रहों के अनुसार ही हम लोगों का जीवन चलता है। ज्योतिषियों के अनुसार जातक की कुंडली में ये नौ ग्रह किस घर में हैं। इस पर ही जातक का जीवन आधारित होता है। इसलिए ये बेहद ही जरूरी होता है कि आपकी कुंडली में ग्रह आपके अनुकुल ही बनें रहें। ताकि इन ग्रहों के दुष्भाव से बचा जा सके। नौ नवग्रहों के नाम इस प्रकार हैं- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन सभी ग्राहकों का नाता हमारे शरीर के किसी ना किसी अंग से होता है और इन ग्रहों की खराब दशा चलने पर शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

शरीर के किस अंग से जुड़ा है कौन सा ग्रह-
  1. सूर्य ग्रह की खराब दिशा चलने से आंखों से संबंधित रोग हो जाते हैं। क्योंकि ये ग्रह आंखों से जुड़ा होता है।
  2. चंद्रमा को मन का ग्रह माना जाता है और इसकी बुरी दिशा होने पर मन अशांत रहता है।
  3. मंगल ग्रह को रक्त संचार माना जाता है और जब किसी जातक की कुंडली में ये ग्रह गलत घर में हो, तो जातक को रक्त यानी खून से संबंधित रोग लग जाते हैं।
  4. बुध ग्रह हृदय से जुड़ा होता है और कुंडली में ये ग्रह भारी होने पर इसका असर दिल पर पड़ता है।
  5. बृहस्पति ग्रह अगर कुंडली में गलत स्थान पर हो, तो जातक की बुद्धि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
  6. शुक्र ग्रह का नाता रस से होता है और शुक्र ग्रह के कुंडली में अशांत होने पर शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  7. शनि, राहू और केतु ये तीनों ग्रह उदर के स्वामी होते हैं और इनकी वजह से पेट से जुड़ी तकलीफें होती हैं।
श्री नवग्रह स्तोत्र का पाठ पढ़ने से मिलने वाले लाभ-
  1. नवग्रह स्तोत्र का पाठ करने से ग्रह सदा शांत रहते हैं और इनके प्रकोप से आपकी रक्षा होती है।
  2. रोजाना इस स्तोत्र को करने से रोग दूर हो जाते हैं और आपको सेहतमंद शरीर मिलता है।
  3. ग्रह शांत रहने से घर में कलह नहीं होती है और दिमाग शांत रहता है।
  4. ग्रहों की बुरी दशा चलने पर ये जरूरी होता है कि आप इन ग्रहों को शांत रखने के लिए उपाय करें।
श्री नवग्रह स्तोत्र  

सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।। (रवि) 
जो जपा पुष्प के समान अरुणिमा वाले महान तेज से संपन्न अंधकार के विनाशक सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।। (चंद्र)
जो दधि, शंख तथा हिम के समान आभा वाले छीर समुद्र से प्रादुर्भूत भगवान शंकर के सिरो भूषण तथा अमृत स्वरूप है उन चंद्रमा को मैं नमस्कार करता हूं।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं ।। (मंगळ)
जो पृथ्वी देवी से उद्भूत विद्युत की कांति के समान प्रभाव आ दें कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिए हुए हैं उन मंगल को मैं प्रमाण प्रणाम करता हूं।
प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं ।।(बुध)
जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले अतुलनीय सौंदर्य वाले तथा सौम्य गुण से संपन्न है उन चंद्रमा के पुत्र बुद्ध को मैं प्रणाम करता हूं।
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं (गुरु)
जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं स्वर्णिम आभा वाले हैं ज्ञान से संपन्न है तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूं।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र)
जो हिमकुंद पुष्प तथा कमलनाल के तंतु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि ध्रुव के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूं।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)
जो नीले कज्जल के समान आभा वाले, सूर्य के पुत्र यम के जेष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तंड से उत्पन्न है उन शनिश्चर को मैं नमस्कार करता हूं।
नवग्रह स्तोत्र - navagraha stotra in Hindi
 
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
जो आधे शरीर वाले हैं महान पराक्रम से संपन्न है, सूर्य तथा चंद्रमा को ग्रसने वाले हैं तथा सिंह ही का के गर्भ से उत्पन्न उन राहों को मैं प्रणाम करता हूं। 
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं। 
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।।(केतु)
पलाश पुष्प के समान जिनकी आभा है जो रुद्र शोभा वाले और रुद्र के पुत्र हैं भयंकर हैं तारक आधी ग्रहों में प्रधान है उनके तो को मैं प्रणाम करता हूं।
फलश्रुति : 
इति व्यासमुखोदगीतं य पठेत सुसमाहितं दिवा वा यदि वा रात्रौ।
विघ्नशांतिर्भविष्यति नर, नारी, नृपाणांच भवेत् दु:स्वप्न नाशनं ऐश्वर्यंमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनं।। 
भगवान वेद व्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति को जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित होकर पाठ करता है उसके समस्त दिल शांत हो जाते हैं स्त्री पुरुष और राजाओं के दुख में दुख सपनों का नाश हो जाता है पाठ करने वाले को अतुलनीय ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उसके पुष्टि की वृद्धि होती है
 इति श्री व्यासविरचित आदित्यादि नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं


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