बैस राजपूत वंश



बैस राजपूत वंश
Bais Rajput Dynasty

बैंस सूर्यवंशी क्षत्रिय कुल है, हालांकि कुछ विद्वान इन्हें नागवंशी भी बताते हैं।
  • इनका गोत्र भारद्वाज है
  • प्रवर-तीन है : भारद्वाज, वृहस्पति और अंगिरस
  • वेद-यजुर्वेद
  • कुलदेवी-कालिका माता
  • इष्ट देव-शिव जी
  • ध्वज-आसमानी और नाग चिन्ह
प्रसिद्ध बैस व्यक्तित्व - Ffamous Bais Personality
  • शालिवाहन - शालिवाहन राजा, शालिवाहन (जिसे कभी कभी गौतमीपुत्र शातकर्णी के रूप में भी जाना जाता है) को शालिवाहन शक के शुभारम्भ का श्रेय दिया जाता है जब उसने वर्ष 78 में उज्जयिनी के नरेश विक्रमादित्य को युद्ध में हराया था और इस युद्ध की स्मृति में उसने इस युग को आरंभ किया था। एक मत है कि, शक युग उज्जैन, मालवा के राजा विक्रमादित्य के वंश पर शकों की जीत के साथ शुरू हुआ।
  • हर्षवर्धन - हर्षवर्धन प्राचीन भारत में एक राजा था जिसने उत्तरी भारत में अपना एक सुदृढ़ साम्राज्य स्थापित किया था। वह अंतिम हिंदू सम्राट था जिसने पंजाब छोड़कर शेष समस्त उत्तरी भारत पर राज्य किया। शशांक की मृत्यु के उपरांत वह बंगाल को भी जीतने में समर्थ हुआ। हर्षवर्धन के शासनकाल का इतिहास मगध से प्राप्त दो ताम्रपत्रों, राजतरंगिणी, चीनी यात्री युवेन संग के विवरण और हर्ष एवं बाणभट्ट रचित संस्कृत काव्य ग्रंथों में प्राप्त है। उसके पिता का नाम 'प्रभाकरवर्धन' था। राजवर्धन उसका बड़ा भाई और राजश्री उसकी बड़ी बहन थी।
  • त्रिलोकचंद
  • अभयचंद
  • राणा बेनी माधव बख्श सिंह
  • मेजर ध्यानचंद आदि
बैस राजपूतों की शाखाएँ - Branches of Bais Rajputs
  • कोट बहार बैस
  • कठ बैस
  • डोडिया बैस
  • त्रिलोकचंदी(राव, राजा, नैथम, सैनवासी) बैस,
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस,
  • रावत,
  • कुम्भी,
  • नरवरिया,
  • भाले सुल्तान,
  • चंदोसिया
बैस राजपूतों के प्राचीन राज्य और ठिकाने - Ancient states and whereabouts of Bais Rajputs
  • प्रतिष्ठानपुरी, स्यालकोट ,स्थानेश्वर, मुंगीपट्टम्म, कन्नौज, बैसवाडा, कस्मांदा, बसन्तपुर, खजूरगाँव थालराई, कुर्रिसुदौली, देवगांव,मुरारमउ, गौंडा, थानगांव, कटधर आदि
बैस राजपूतों वर्तमान निवास - Bais Rajputs Present Residence
  • यूपी के अवध में स्थित बैसवाडा, मैनपुरी, एटा, बदायूं, कानपुर, इलाहाबाद, बनारस, आजमगढ़, बलिया, बाँदा, हमीरपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर रायबरेली, उन्नाव, लखनऊ, हरदोई, फतेहपुर, गोरखपुर, बस्ती, मिर्जापुर, गाजीपुर, गोंडा, बहराइच, बाराबंकी, बिहार, पंजाब, पाक अधिकृत कश्मीर, पाकिस्तान में बड़ी आबादी है और मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ हिस्सों में भी थोड़ी आबादी है।
परम्पराएँ - Traditions
बैस राजपूत नागो को नहीं मारते हैं, नागपूजा का इनके लिए विशेष महत्व है, इनके ज्येष्ठ भ्राता को टिकायत कहा जाता था और सम्पत्ति का बड़ा हिस्सा आजादी से पहले तक उसे ही मिलता था। मुख्य गढ़ी में टिकायत परिवार ही रहता था और शेष भाई अलग किला/मकान बनाकर रहते थे, बैस राजपूतो में आपसी भाईचारा बहुत ज्यादा होता है। बिहार के सोनपुर का पशु मेला बैस राजपूतों ने ही प्रारम्भ किया था।
बैस क्षत्रियों की उत्पत्ति : बैस राजपूतों की उत्पत्ति के बारे में कई मत प्रचलित हैं-
  1. ठाकुर ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली के प्रष्ठ संख्या 112-114 के अनुसार सूर्यवंशी राजा वासु जो बसाति जनपद के राजा थे, उनके वंशज बैस राजपूत कहलाते हैं, बसाति जनपद महाभारत काल तक बना रहा है
  2. देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास के पृष्ठ संख्या 67-74 के अनुसार वैशाली से निकास के कारण ही यह वंश वैस या बैस या वैश कहलाया, इनके अनुसार बैस सूर्यवंशी हैं, इनके किसी पूर्वज ने किसी नागवंशी राजा की सहायता से उन्नति की इसलिए बैस राजपूत नाग पूजा करते हैं और इनका चिन्ह भी नाग है।
  3. महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैं।
  4. महान इतिहासकार गौरीशंकर ओझा जी कृत राजपूताने का इतिहास के पृष्ठ संख्या 154-162 में भी बैस राजपूतों को सूर्यवंशी सिद्ध किया गया है।
  5. श्री रघुनाथ सिंह कालीपहाड़ी कृत क्षत्रिय राजवंश के पृष्ठ संख्या 78, 79 एवं 368, 369 के अनुसार भी बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  6. डा देवीलाल पालीवाल की कर्नल जेम्स तोड़ कृत राजपूत जातियों का इतिहास के प्रष्ठ संख्या 182 के अनुसार बैस सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।
  7. ठाकुर बहादुर सिंह बीदासर कृत क्षत्रिय वंशावली एवं जाति भास्कर में बैस वंश को स्पष्ट सूर्यवंशी बताया गया है।
  8. इनके झंडे में नाग का चिन्ह होने के कारण कई विद्वान इन्हें नागवंशी मानते हैं,लक्ष्मण को शेषनाग का अवतार भी माना जाता हैअत: कुछ विद्वान बैस राजपूतो को लक्ष्मण का वंशज और नागवंशी मानते हैं,कुछ विद्वानों के अनुसार भरत के पुत्र तक्ष से तक्षक नाग वंश चला जिसने तक्षशिला की स्थापना की,बाद में तक्षक नाग के वंशज वैशाली आये और उन्ही से बैस राजपूत शाखा प्रारम्भ हुई
  9. कुछ विद्वानों के अनुसार बैस राजपूतों के आदि पुरुष शालिवाहन के पुत्र का नाम सुन्दरभान या वयस कुमार था जिससे यह वंश वैस या बैस कहलाया,जिन्होंने सहारनपुर की स्थापना की
  10. कुछ विद्वानों के अनुसार गौतम राजा धीरपुंडीर ने 12 वी सदी के अंत में राजा अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में दिए इन बाईस परगनों के कारण यह वंश बाईसा या बैस कहलाने लगा
  11. कुछ विद्वान इन्हें गौतमी पुत्र शातकर्णी जिन्हें शालिवाहन भी कहा जाता है उनका वंशज मानते हैं, वहीं कुछ के अनुसार बैस शब्द का अर्थ है वो क्षत्रिय जिन्होंने बहुत सारी भूमि अपने अधिकार में ले ली हो
बैस वंश की उत्पत्ति के सभी मतों का विश्लेषण एवं निष्कर्ष - Analysis and conclusion of all the opinions on the origin of Bais dynasty
बैस राजपूत नाग की पूजा करते हैं और इनके झंडे में नाग चिन्ह होने का यह अर्थ नहीं है कि बैस नागवंशी हैं, महाकवि बाणभट्ट ने सम्राट हर्षवर्धन जो की बैस क्षत्रिय थे उनकी बहन राज्यश्री और कन्नौज के मौखरी (मखवान, झाला) वंशी महाराजा गृह वर्मा के विवाह को सूर्य और चन्द्र वंश का मिलन बताया है, मौखरी चंद्रवंशी थे अत: बैस सूर्यवंशी सिद्ध होते हैंलक्ष्मण जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है किन्तु लक्ष्मण जी नागवंशी नहीं रघुवंशी ही थे और उनकी संतान आज के प्रतिहार(परिहार) और मल्ल राजपूत है।
जिन विद्वानों ने 12 वी सदी में धीरपुंडीर को अर्गल का गौतमवंशी राजा लिख दिया और उनके द्वारा दहेज में अभयचन्द्र को 22 परगने दहेज़ में देने से बैस नामकरण होने का अनुमान किया है वो बिलकुल गलत है,क्योंकि धीरपुंडीर गौतम वंशी नहीं पुंडीर क्षत्रिय थे जो उस समय हरिद्वार के राजा थे, बाणभट और चीनी यात्री ह्वेंस्वांग ने सातवी सदी में सम्राट हर्ष को स्पष्ट रूप से बैस या वैश वंशी कहा है तो 12 वी सदी में बैस वंशनाम की उतपत्ति का सवाल ही नहीं है, किन्तु यहाँ एक प्रश्न उठता है कि अगर बैस वंश की मान्यताओं के अनुसार शालिवाहन के वंशज वयस कुमार या सुंदरभान सहारनपुर आये थे तो उनके वंशज कहाँ गए?
बैस वंश की एक शाखा त्रिलोकचंदी है और सहारनपुर के वैश्य जैन समुदाय की भी एक शाखा त्रिलोकचंदी है इन्ही जैनियो के एक व्यक्ति राजा साहरनवीर सिंह ने अकबर के समय सहारनपुर नगर बसाया था, आज के सहारनपुर, हरिद्वार का क्षेत्र उस समय हरिद्वार के पुंडीर शासको के नियन्त्रण में था तो हो सकता है शालिवाहन के जो वंशज इस क्षेत्र में आये होंगे उन्हें राजा धीर पुंडीर ने दहेज़ में सहारनपुर के कुछ परगने दिए हों और बाद में ये त्रिलोकचंदी बैस राजपूत ही जैन धर्म ग्रहण करके व्यापारी हो जाने के कारण वैश्य बन गए हों और इन्ही त्रिलोकचंदी जैनियों के वंशज राजा साहरनवीर ने अकबर के समय सहारनपुर नगर की स्थापना की हो, और बाद में इन सभी मान्यताओं में घालमेल हो गया होअर्गल के गौतम राजा अलग थे उन्होंने वर्तमान बैसवारे का इलाका बैस वंशी राजा अभयचन्द्र को दहेज़ में दिया था।
गौतमी पुत्र शातकर्णी को कुछ विद्वान बैस वंशावली के शालिवाहन से जोड़ते हैं किन्तु नासिक शिलालेख में गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी को एक ब्राह्मण (अद्वितिय ब्राह्मण) तथा खतिय-दप-मान-मदन अर्थात क्षत्रियों का मान मर्दन करने वाला आदि उपाधियों से सुशेभित किया है। इसी शिलालेख के लेखक ने गौतमीपुत्र की तुलना परशुराम से की है। साथ ही दात्रीशतपुतलिका में भी शालीवाहनों को मिश्रित ब्राह्मण जाति तथा नागजाति से उत्पन्न माना गया है। अत: गौतमी पुत्र शातकर्णी अथवा शालिवाहन को बैस वंशी शालिवाहन से जोड़ना उचित प्रतीत नहीं होता क्योंकि बैसवंशी सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं
उपरोक्त सभी मतो का अध्ययन करने पर हमारा निष्कर्ष है कि बैस राजपूत सूर्यवंशी है, प्राचीन काल में सूर्यवंशी इछ्वाकू वंशी राजा विशाल ने वैशाली राज्य की स्थापना की थी, विशाल का एक पुत्र लिच्छवी था यहीं से सूर्यवंशी की लिच्छवी, शाक्य (गौतम), मोरिय (मौर्य), कुशवाहा (कछवाहा), बैस शाखाएं अलग हुई, जब मगध के राजा ने वैशाली पर अधिकार कर लिया और मगध में शूद्र नन्दवंश का शासन स्थापित हो गया और उसने क्षत्रियों पर जुल्म करने शुरू कर दिए तो वैशाली से सूर्यवंशी क्षत्रिय पंजाब, तक्षिला, महाराष्ट्र, स्थानेश्वर, दिल्ली आदि में आ बसे, दिल्ली क्षेत्र पर भी कुछ समय बैस वंशियों ने शासन किया, बैंसों की एक शाखा पंजाब में आ बसी। इन्होंने पंजाब में एक नगर श्री कंठ पर अधिकार किया, जिसका नाम आगे चलकर थानेश्वर हुआ। दिल्ली क्षेत्र थानेश्वर के नजदीक है अत:दिल्ली शाखा,थानेश्वर शाखा,सहारनपुर शाखा का आपस में जरूर सम्बन्ध होगा, बैसवंशी सम्राट हर्षवर्धन अपनी राजधानी थानेश्वर से हटाकर कन्नौज ले गए, हर्षवर्धन ने अपने राज्य का विस्तार बंगाल, असम, पंजाब, राजपूताने, मालवा व नेपाल तक किया और स्वयं राजपुत्र शिलादित्य की उपाधि धारण की।
हर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए, इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश की कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भाले सुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर की स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे
चंदावर के युद्ध में हर्षवर्धन के वंशज केशवदेव भी जयचंद के साथ युद्ध लड़ते हुए शहीद हो गए बाद में उनके वंशज अभयचंद ने अर्गल के गौतम राजा की पत्नी को तुर्कों से बचाया जिसके कारण गौतम राजा ने अभयचंद से अपनी पुत्री का विवाह कर उसे 1440 गाँव दहेज़ में दे दिए जिसमें विद्रोही भर जाति का दमन कर अभयचंद ने बैस राज्य की नीव रखी जिसे आज बैसवाडा या बैसवारा कहा जाता है, इस प्रकार सूर्यवंशी बैस राजपूत आर्याव्रत के एक बड़े भू भाग में फ़ैल गए
बैस वंश राजपूतों का सम्राट हर्षवर्धन से पूर्व का इतिहास - History of Baisavanshi Rajputs before Emperor Harshavardhana
बैस राजपूत मानते हैं कि उनका राज्य पहले मुर्गीपाटन पर था और जब इस पर शत्रु ने अधिकार कर लिया तो ये प्रतिष्ठानपुर आ गए, वहां इस वंश में राजा शालिवाहन हुए, जिन्होंने विक्रमादित्य को हराया और शक सम्वत इन्होने ही चलाया,कुछ ने गौतमी पुत्र शातकर्णी को शालिवाहन मानकर उन्हें बैस वंशावली का शालिवाहन बताया है और पैठण को प्रतिष्ठानपुर बताया और कुछ ने स्यालकोट को प्रतिष्ठानपुर बताया है, किन्तु यह मत सही प्रतीत नहीं होते कई वंशो बाद के इतिहास में यह गलतियाँ की गई कि उसी नाम के किसी प्रसिद्ध व्यक्ति को यह सम्मान देने लग गए, शालिवाहन नाम के इतिहास में कई अलग अलग वंशो में प्रसिद्ध व्यक्ति हुए हैं। भाटी वंश में भी शालिवाहन हुए हैं और सातवाहन वंशी गौतमीपुत्र शातकर्णी को भी शालिवाहन कहा जाता था, विक्रमादित्य के विक्रम सम्वत और शालिवाहन के शक सम्वत में पूरे 135 वर्ष का फासला है अत: ये दोनों समकालीन नहीं हो सकते.दक्षिण के गौतमीपुत्र शातकर्णी को नासिक शिलालेख में स्पष्ट ब्राह्मण लिखा है अत:इसका सूर्यवंशी बैस वंश से सम्बन्ध होना संभव नहीं है।
वस्तुत: बैस इतिहास का प्रतिष्ठानपुर न तो दक्षिण का पैठण है और न ही पंजाब का स्यालकोट है यह प्रतिष्ठानपुर इलाहबाद (प्रयाग) के निकट और झूंसी के पास था, किन्तु इतना अवश्य है कि बैस वंश में शालिवाहन नाम के एक प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए जिन्होंने प्रतिष्ठानपूरी में एक बड़ा बैस राज्य स्थापित किया, शालिवाहन कई राज्यों को जीतकर उनकी कन्याओं को अपने महल में ले आये, जिससे उनकी पहली तीन क्षत्राणी रानियाँ खिन्न होकर अपने पिता के घर चली गयी, इन तीन रानियों के वंशज बाद में भी बैस कहलाते रहे और बाद की रानियों के वंशज कठबैस कहलाये, ये प्रतिष्ठानपुर (प्रयाग)के शासक थे।
इन्ही शालिवाहन के वंशज त्रिलोकचंद बैस ने दिल्ली (उस समय कुछ और नाम होगा) पर अधिकार कर लिय.स्वामी दयानंद सरस्वती के अनुसार दिल्ली पर सन 404 ईस्वी में राजा मुलखचंद उर्फ़ त्रिलोकचंद प्रथम ने विक्रमपाल को हराकर शासन स्थापित किया इसके बाद विक्र्मचन्द, कर्तिकचंद, रामचंद्र, अधरचन्द्र, कल्याणचन्द्र, भीमचंद्र, बोधचन्द्र, गोविन्दचन्द्र और प्रेमो देवी ने दो सो से अधिक वर्ष तक शासन किया,वस्तुत ये दिल्ली के बैस शासक स्वतंत्र न होकर गुप्त वंश और बाद में हर्षवर्धन बैस के सामंत के रूप में यहाँ पर होंगे,इसके बाद यह वंश दिल्ली से समाप्त हो गया,और सातवी सदी के बाद में पांडववंशी अर्जुनायन तंवर क्षत्रियों(अनंगपाल प्रथम) ने प्राचीन इन्द्रप्रस्थ के स्थान पर दिल्ली की स्थापना की. वस्तुत:बैसवारा ही बैस राज्य था. (देवी सिंह मंडावा कृत राजपूत शाखाओं का इतिहास पृष्ठ संख्या 70,एवं ईश्वर सिंह मढ़ाड कृत राजपूत वंशावली पृष्ठ संख्या 113,114)

बैस वंश की शाखाएँ -
Branches of Bais Dynasty
  • कोट बाहर बैस - शालिवाहन की जो रानियाँ अपने पीहर चली गयी उनकी संतान कोट बाहर बैस कहलाती है
  • कठ बैस - शालिवाहन की जो जीती हुई रानियां बाद में महल में आई उनकी संतान कोट बैस या कठ बैस कहलाती हैं।
  • डोडिया बैस - डोडिया खेड़ा में रहने के कारण राज्य हल्दौर जिला बिजनौर
  • त्रिलोकचंदी बैस - त्रिलोकचंद के वंशज इनकी चार उपशाखाएँ हैं राव, राजा, नैथम व सैनवासी
  • प्रतिष्ठानपुरी बैस - प्रतिष्ठानपुर में रहने के कारण
  • चंदोसिया - ठाकुर उदय बुधसिंह बैस्वाड़े से सुल्तानपुर के चंदोर में बसे थे उनकी संतान चंदोसिया बैस कहलाती है
  • रावत - फतेहपुर, उन्नाव में
  • कुम्भी एवं नरवरिया - बैसवारा में मिलते हैं
बैसवंशी राजपूतो की वर्तमान स्थिति - Current Status of Bais Dynasty Rajputs
बैस राजपूत वंश वर्तमान में भी बहुत ससक्त वंश मन जाता है, ब्रिटिश गजेटियर में भी इस वंश की सम्पन्नता और कुलीनता के बारे में विस्तार से लिखा गया है। अवध, पूर्वी उत्तर प्रदेश के बैसवारा में बहुत से बड़े जमीदार बैस वंश से थे, बैस वंशी राणा बेनी माधव बख्श सिंह और दूसरे बैस जमीदारों ने सन 1857 इसवी में अवध क्षेत्र में अंग्रेजो से जमकर लोहा लिया था, बैस राजपूतों द्वारा अंग्रेजो का जोरदार विरोध करने के बावजूद अंग्रेजो की हिम्मत इनकी जमिदारियां खत्म करने की नहीं हुई, बैस राजपूत अपने इलाको के सरताज माने जाते हैं और सबसे साफ़ सुथरे सलीकेदार वस्त्र धारण करने से इनकी अलग ही पहचान हो जाती है, अंग्रेजी ज़माने से ही इनके पक्के ऊँचे आवास इनकी अलग पहचान कराते थे, इनके बारे में लिखा है कि-
"The Bais Rajput became so rich at a time it is recorded that each Bais Rajput held Lakhs (Hundreds of thousands) of rupees a piece which could buy them nearly anything. To hold this amount of money you would have to have been extremely rich.This wealth caused the Bais Rajput to become the "best dressed and housed people"[22] in the areas they resided. This had an influence on the areas of Baiswara and beyond as recorded the whole area between Baiswara and Fyzabad was.
जमीदारी के अतिरिक्त बैस राजपूत राजनीती और व्यापार के क्षेत्र में भी कीर्तिमान बना रहे हैं,कई बड़े व्यापारी और राजनेता भारत और पाकिस्तान में बैस बंश से हैं जो विदेशो में भी व्यापार कर रहे हैं,राजनीती और व्यापार के अतिरिक्त खेलो की दुनियां में मेजर ध्यानचंद जैसे महान हॉकी खिलाडी,उनके भाई कैप्टन रूप सिंह आदि बड़े खिलाडी बैस वंश में पैदा हुए हैं.कई प्रशासनिक अधिकारी,सैन्य अधिकारी बैस वंश का नाम रोशन कर रहे हैं। वस्तुत: जिस सूर्यवंशी बैस वंश में शालिवाहन, हर्षवर्धन, त्रिलोकचंद, अभयचंद, राणा बेनी माधव बख्श सिंह, मेजर ध्यानचंद आदि महान व्यक्तित्व हुए हैं उन्ही के वंशज भारत,पाकिस्तान,पाक अधिकृत कश्मीर, कनाडा, यूरोप में बसा हुआ बैस राजपूत वंश आज भी पूरे परिश्रम, योग्यता से अपनी सम्पन्नता और प्रभुत्व समाज में कायम किये हुए है और अपने पूर्वजो की गौरवशाली परम्परा का पालन कर रहा है

क्षत्रिय राजपूतों से संबंधित अन्य महत्वपूर्ण लेख -


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149 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

Proud to be bais rajpoot

Unknown ने कहा…

भाई हर्षबर्धन बैंस राजपूत नहीं जाट शासक था। आप बैंस गोत्र को राजपूत बोल रहे लेकिन बैंस एक जाट गोत्र है। बैंस गोत्र पंजाब, हरियाणा, जम्मू, पाकिस्तान, यू पी, राजस्थान सब जगह है और भाई ये जाट है राजपूत नहीं।

Unknown ने कहा…

भाई हर्षबर्धन बैंस राजपूत नहीं जाट शासक था। आप बैंस गोत्र को राजपूत बोल रहे लेकिन बैंस एक जाट गोत्र है। बैंस गोत्र पंजाब, हरियाणा, जम्मू, पाकिस्तान, यू पी, राजस्थान सब जगह है और भाई ये जाट है राजपूत नहीं।

Unknown ने कहा…

भाई, आप अपनी जानकारी सुधारिये

Jasmat singh bais ने कहा…

Bhai bais kshatriya rajput he and wo jaat nhi he ye ek rajput shakha he

Unknown ने कहा…

Sir , sohel dev bais(bhalesultan ) ka sachchha kaha mila aap ko

Unknown ने कहा…

Sir , sohel dev bais(bhalesultan ) ka sachchha kaha mila aap ko

DEVENDRA SINGH ने कहा…

जाटों का कोई प्राचीन इतिहास नही है यह गोत्र आधरित भी नही हैं जब कि गोत्र ऋषियों द्वारा अपनाये जाने के बाद उस ऋषि के नाम से जाने जातें है बिना तथ्यात्मक पुस्टि के आप किसी को भी जाट नही कह सकते

विजय सिंह बैस ने कहा…

भाई बैस राजपूतों का एक वंश है ये प्राचीन पुराणो पर आधारित तथ्य है।

Unknown ने कहा…

मैं खुद बैंस हूँ और जाट हूँ। और मेरे जठेरे भई वहीँ हैं जहाँ हर्षवर्धन महाराज के पूर्वज पुष्पपति के थे अर्थात श्रीमालपुर में।

Unknown ने कहा…

Aap jankari thik kije.. Baish kshatriya Hai.. Yeah sab koi janta Hai.. Main bhi hoo

Unknown ने कहा…

Yeah jaat and gujjar log kshatriya veero ko aaj Kal apna purvaj batane lage Hai.. Ajab isthiti aa gai Hai.. Baish rajput/kshatriya ki ek sakha Hai.. Aur main bhi Baish rajput trilokchandi, gotra Bhardwaj hoo.. Jai kaali Maa..

जितेन्द्र सिंह जादौन ने कहा…

बैस गोत्र राजपूतों में भी है ,जिस प्रकार भरतपुर के जाट राजाओं का संबंध करौली के यदुवंश से हैं ,उसी प्रकार रहा होगा। इतिहास की गहराई में जाने पर जातियां लुप्त हो जाऐंगी, तथा चार वर्ण ही शेष रहेंगे।मै जादौन क्षत्रिय वंश से हू,हमारे वंश की कई शाखाएं कालांतर में जाट,यादव आदि जातियों में सम्मलित हो गई, तथा कई जातियां राजपूतों के रूप में क्षत्रियों मे।

जितेन्द्र सिंह जादौन ने कहा…

बैस गोत्र राजपूतों में भी है ,जिस प्रकार भरतपुर के जाट राजाओं का संबंध करौली के यदुवंश से हैं ,उसी प्रकार रहा होगा। इतिहास की गहराई में जाने पर जातियां लुप्त हो जाऐंगी, तथा चार वर्ण ही शेष रहेंगे।मै जादौन क्षत्रिय वंश से हू,हमारे वंश की कई शाखाएं कालांतर में जाट,यादव आदि जातियों में सम्मलित हो गई, तथा कई जातियां राजपूतों के रूप में क्षत्रियों मे।

Unknown ने कहा…

कैसी बात कर रहे हैं आप मैं बैस हूँ ठिकाना "कटघर"और मैं राजपूत हूँ।।जाट नहीं।।।

Unknown ने कहा…

Bhai aapne trilokchand bais ka kawal bhardwaj gotra aur tin prawer- bhardwaj ,bharaspatya, angiras ke bare me likha hai jab ki iss vans me garg ,sankraiti gotra bhi hota hai thata pachh prawer hote hai bhardwaj , barhaspatya , angiras , sainya ,gargya bhi hote hai sutra- katyayan ,shakha-madhyandini, shikha- dahinna pad-
dhaina .East deweta sive ji , Kuldevi kalika , aridhiya dev ram ,vahan hisibaj, upwahan bajh ,ved -yajurved , upwed dhanurved ,janda - asmani jisme nag ka chinh hota hai, sthan - awadh pranth ,pratap garh , reybareli, kanpur, unnaw, banda , azamgarh , baiswada , bihar , mp , rajyasthan , aur chhatishgarh me paye jate hai ham log raibareli pratapgarh prathisthan pur ke vansaj hai abhi 2,3 sau sal pahele hamare vansaj mugal sasan ke samey dharma parivartan ke karan mp, cg me aa gay the kripya iss jankari ko apdate karne ka kaste kare gita press gorakhpur ke gotravali pustak jiske lekhak shree vyash ji maharaj se liya gaya hai this comment posted by - santosh singh

Unknown ने कहा…

Proud to be a bais rajput

Unknown ने कहा…

Bhai aapne trilokchand bais ka kawal bhardwaj gotra aur tin prawer- bhardwaj ,bharaspatya, angiras ke bare me likha hai jab ki iss vans me garg ,sankraiti gotra bhi hota hai thata pachh prawer hote hai bhardwaj , barhaspatya , angiras , sainya ,gargya bhi hote hai sutra- katyayan ,shakha-madhyandini, shikha- dahinna pad-
dhaina .East deweta sive ji , Kuldevi kalika , aridhiya dev ram ,vahan hisibaj, upwahan bajh ,ved -yajurved , upwed dhanurved ,janda - asmani jisme nag ka chinh hota hai, sthan - awadh pranth ,pratap garh , reybareli, kanpur, unnaw, banda , azamgarh , baiswada , bihar , mp , rajyasthan , aur chhatishgarh me paye jate hai ham log raibareli pratapgarh prathisthan pur ke vansaj hai abhi 2,3 sau sal pahele hamare vansaj mugal sasan ke samey dharma parivartan ke karan mp, cg me aa gay the kripya iss jankari ko apdate karne ka kaste kare gita press gorakhpur ke gotravali pustak jiske lekhak shree vyash ji maharaj se liya gaya hai this comment posted by - santosh singh

Gopal Singh Bais Rajput ने कहा…

Bhai apka naam avtar singh bains h....Yha pr baat BAIS ki chal rhi na ki BAINS ki...ykinan Bains jaat honge....lekin bais rajput hai

Anonymous ने कहा…

Bhai....kaha se padh ke aaye ho. ulta seedha gyan baant rahe ho.
सुहैलदेव एक भर क्षत्रिय थे ....भेंस तो उस समय आये भी नहीं थे.
दूसरे का इतिहास मत चुराओ .....

Unknown ने कहा…

Trilokchandi bais ki garg sankriti sainya gotra bi hota hai kripya add karen

Unknown ने कहा…

भाई साहब बैंस नहीं बैस राजपूत है

बेनामी ने कहा…

Kya yah sahi baat hai ki suheldev bais ke baare me likha hua itihaas ke page muslim king ke dwara phad diya gya that jiske Karan hamein suheldev bais ke baare me bhut si jaankari malum nahi hai kyu ki suheldev jitne bada raja the utna unko pratistha nahi mili

Unknown ने कहा…

राजा हर्षवर्धन बैस क्षत्रिय थे और हम उनके वंशज है, हम पूर्वी उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जनपदों के निवासी है तथा यहां बेसो का बहुत बड़ा क्षेत्र है, जो जो बेल्हा, चौरी और कूबा तीन परगनो में फैला हुआ है, हम सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं।

Unknown ने कहा…

राजा हर्षवर्धन क्षत्रिय थे और हम उनके वंशज हैं पूर्वी उत्तर उत्तर आजमगढ़ जनपद में बहुत बड़ी संख्या में बैस क्षत्रिय निवास करते हैं, यहां पर बेल्हा ,चौरी और कूबा 3 परगनो मैं बैस क्षत्रिय निवास करते हैं, हम सूर्यवंशी क्षत्रिय है।

बेनामी ने कहा…

हर्षवर्धन ही पहला राजपूत कहा गया है क्योंकि इसने ही राजपूत संघ बनाया था जिसके बाद कई राजा जिनकी जाति बेशक कोई बीही थी वो इसमें जुड़ गए। हर्षवर्धन के काल से पहले राजपूत शब्द कहीँ भी प्रयुक्त नहीं किया गया । राजपूत अर्थात राजा का पुत्र।
इस संघ में हर जाति के राजा शामिल हुए क्यूंकि महाराजा हर्षवर्धन बैंस उस काल के सर्वश्रेष्ठ राजा थे। जिनकी राजधानी थानेश्वर थी जिनके पुरखे पुष्पपति मालपुर से आके थानेश्वर म बसे थे वहाँ जाके आज भी देखो बैंस जाटों के जठेरे हैं । राजपूत तो कोई जाति थी ही नहीं। उसी तरह जैसे जाट भी कभी संघ ही था और बैसे ही जैसे गुर्जर भी।।

Unknown ने कहा…

Avtar Singh kuch bhi ho lekin bais rajput veero ke bare me tippdi krne se phle apne vans ki history khoje

Unknown ने कहा…

bais rajput ki ek shakha hai gotra nahi hai bais rajputon ka gotra bharduwaj garg sankritya aur sainya hai inake praver bhi do hote hain teen prawer aur panch prawer bharduwaj angiras barhasptya sainya garg ek hi vans mein sthan aur kulpurohit ke anusar gotra alag alag hote hain

Unknown ने कहा…

Trilokchand bais suryavansi hain isake mool gotra risi bharduwaj hain parantu inake do putron risi garg aur sankriti ke duwara garg avam sankriti gotra ka shakha shuru huwa

Unknown ने कहा…

bais rajput bhart desh mein bahut adhik paye jate hain isaki kai shakhaye hai bais maahashaki mein kewal bharduwaj gotra bataya gaya hai jabaki iske garg sankriti sainya sanei gotra bi hota hai bais surYavansi kshatri hai aur raja ikshavaku se lekar rara surath tak iagbhag ek sau choubis rajao ne bharat ke alag alag jagaho mein raj kiya isiliye alag alag jagah evam alag alag kul guru hone ke karan ek hi shakha ke gotra bhi alag alag hai kashap ke putra angiras ke putra brihaspati ke putra bharduwa ke putra garg ke putra gargya evam garg ke bhai sankriti ye pancho hi bais vanshi ke gotra evam prawar hai jo ki alag alag jagaho mein alag alag hai is prakar bais vansi ke kashyap bhardueaj garg sankritya sainya gotra hai

Unknown ने कहा…

Trilokchandi bais ka garg sankriti sainya gotra bhi hota hai jankari thik kare

Unknown ने कहा…

Hum rajput hai
Baki faltu baat

Unknown ने कहा…

suheldev rajbhar raja the vaish nahi

Unknown ने कहा…

suheldev rajbhar raja the vaish nahi

Unknown ने कहा…

अच्छा से history नेट पर पढ़ lo हर्ष वर्धन bais ही था

Unknown ने कहा…

Hum log agra se 30 km dur ardaya m rahte h yaha hamare 8 ghar h

amit pratap singh ने कहा…

अवतार जी जाट भी किसी समय राजपूत ही थे
राजा सूरजमल के समय उन्होंने अपने को एक अलग शाखा के रूप में विकसित किया

Unknown ने कहा…

Jaat, Giujjar, Yadav and Rajputs are part of kshatriya. After medical era they were divided but before that in ancient India kshatriya were divided only in rajpoot and yadavas. No jaat and gujjar. Jaat and gujjar are part if rajputs or kshatriya.

Unknown ने कहा…

Bhai menu basis rajput hu

Unknown ने कहा…

बैस राजपूत बहुत शक्तिशाली होते हैं क्षत्रीयता बैसों के खून में बसती है हैं पुराणों में भी उल्लेख मिलता है शौर्य पराक्रम की मिसाल है बैस राजपूतों की प्रेरणा स्त्रोत शाखा है हमें इस शाखा पर गर्व है।

Unknown ने कहा…

बैस राजपूत बहुत शक्तिशाली होते हैं क्षत्रीयता बैसों के खून में बसती है हैं पुराणों में भी उल्लेख मिलता है शौर्य पराक्रम की मिसाल है बैस राजपूतों की प्रेरणा स्त्रोत शाखा है हमें इस शाखा पर गर्व है।

Unknown ने कहा…

Aap Bains hain Bais nahi

Kamal Singh Rajbhar ने कहा…

महाराजा सुहेलदेव राजभर है

Unknown ने कहा…

Bhai me b rajput hu jaat nhi or ha ek bat hm sb jaat gurjar rajput sb khastriye h sb ki gotra vansh apas m jarur milenge

Unknown ने कहा…

hum baish h jo mp m nibash karte h 12 gao baisho k bashe huye h

Nagendra Singh Arkvanshi ने कहा…

सुहेलदेव और त्रिलोकचंद्र को राजभर और पासी लोग अपना बताते है ?

Bhar/Rajbhar ने कहा…

Hindu Rashtriya Maharaja suheldev Bhar Jati ke the

Unknown ने कहा…

अवतार सिंह जी
यहां बैस क्षत्रिय की बात हो रही है न कि जाटों की
हम राजपूत का इतिहास गवाह रहा है कि हम वंशो में विभाजित हुए उसके उपरांत वर्णो मैं ।
राजा हर्षवर्धन सिंह बैस जी का वंश सूर्य था जो कि राजपूतों मैं है।
उपर्युक्त लेख ध्यान पूर्वक पढ़िए ।
अगर सन्तुष्ट न हो तो जमीनी स्तर की जानकारी कीजिये।
और हाँ आखरी बात बहने व आपकी ननिहाल को से वंश मैं है स्पस्ट करें।।

Unknown ने कहा…

Kaisi bat karte yarr bains toh ham bhi hai dodiya kheda se

Unknown ने कहा…

Avtar Singh jab tumhe itihaas malum na ho na to Javab na diya karo theek hai na Harsh Vardhan Singh Bais ek Kshatriya Raja hai jankari ydi na ho to hamse samprk karo pura ka pura Kshatriya vansavali bta duga tuhme

Unknown ने कहा…

Main bhi thakur hu trilokchandi bais hu go jai maa kaalika mata

Unknown ने कहा…

Bais rajpoot Sury bansi hai jo ki Raja Ichchhavaku ke
bans Raja Vishal ke bansaj hi Bais kahalaye

Unknown ने कहा…

Thaku Ishwar Singh madad Itihash padiye Raja Suhelde Rajbhar Rajpoot the aur Han Bains Rajpoot nahi

Unknown ने कहा…

Maharaja Suhelde Rajbhar Rajpoot Han Bains nahi

Unknown ने कहा…

Jankari nhi h to kyu ek Kshatriya ko jat bna rhe ho. Jake phle pdho fir apni baat rkho aise hawa me teer marna uchit nhi

Unknown ने कहा…

तो हम कौन हैं भाई , तुम सब ने अपनी रट लगा रखी है,हम भी सूर्यवंशी कश्यप गोत्र राजपूत हैं

Unknown ने कहा…

👇👇👇
जाट राजपूत संबंध

•जस्टिस कैम्पबैल - प्राचीन काल की रीति रिवाजों को मानने वाले जाट , नवीन हिन्दू धर्म के रिवाजों को मानने पर राजपूत है । जाटों से राजपूत बने हैं न कि राजपूतों से जाट ।

•विद्वान् नेशफिल्ड - “जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।”

•प्रो.हेत सिह बघेला  “उत्तरी भारत का इतिहास” नामक पुस्तक मे लिखते है कि मुस्लिम विजताओ ने पराजित राजाओ को राजपूतो की संज्ञा दी।

•राजपूत इतिहासकार जगदीश सिंह गहलोत राजपूताने का इतिहास पृष्ठ 8 पर लिखते है की मुस्लिमो के आने के बाद ही शासको की जातियों के लिए राजपूत शब्द प्रयोग में आने लगा जबकि तोमरो पांडवो और जाटों का इतिहास आठवी शताब्दी से पहले भी अस्तित्व में था |

•भारतीय संस्कृति के रक्षक पुस्तक में रतनलाल वर्मा लिखते है| मुस्लिमकाल आने से पहले राजपूत जाति का अस्तित्व सिद्ध करना असंभव है | जबकि तोमरो पांडवो और जाटों का इतिहास आठवी शताब्दी से पहले भी अस्तित्व में था |

•इतिहासकार विलियम स्मिथ के अनुसार राजपूत प्राचीन जाट, अहीर,गुर्जर, मीणा जाति के वंशज है|

•इतिहासकार अली हसन चौहान लिखते है मुस्लिमकाल  में जिस किसी भी स्थानीय व्यक्ति को विदेशी मुस्लिम बादशाहो ने जागीरे दी उसको उन्होंने राजपूत कहा इसलिए वर्तमान राजपूत जाति भिन्न भिन्न जातियों मिश्रण है |

•इतिहासकार ओझा भी स्वीकार करते है की राजपूत जाति मुग़ल काल में अस्तित्व में आयी।

•हिस्टोरियन आर एस जून के अनुसार - जाट गोत्र चौहान,सोलकी (सोरौत),ग्रेवाल,तन्वर(तोमर) के कुछ लोग 12 वि सदी के आस नवीन बने राजपूत सघ मे सम्मलित हो गए।

•इतिहासकार ठाकुर देशराज जी 1964 में प्रकाशित पुस्तक बीकानेरीय जागृति के अग्रदूत के पेज 9 पर लिखते है की जब दिल्ली से तोमरो का राज्य चला गया तब कुछ तोमरो ने राजपूत संघ में दीक्षा लेली और जो राजपूत संघ में दीक्षित नहीं हुये वे जाट ही रहे।

•इतिहासकार परमेश शर्मा के अनुसार तोमर जाटों से ही तोमर राजपूतों की उत्पत्ति हुई है वो लिखते है अनंगपाल तोमर जाट सम्राट था।

•जाटों में ऋषि गोत्र नहीं होता है ऋषि गोत्र राजपूतो में ही मिलता है क्योंकी जिस ऋषि के सानिध्य में वो अग्नि कुंड से यज्ञ दुवारा जाट ओर अन्य जातियो से उनको राजपूत सघ मे मिलाया गया वो ऋषि उन के लिये आदरनीय हो गया इसलिए तोमर जाट का कुछ भाग अग्निकुंड यज्ञ के बाद ही अन्य जातियों  में मिल गया ।

•कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता -
(i) राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले जाटों का राज था ।
(ii) एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।

•जेपी जैसवाल भारतीय राजनेता और इतिहासकार 1881 से लेकर 1937 तक जो खुद एक राजपूत थे!और अपनी जिंदगी में 120 रिसर्च करके उसको 11 किताबों की 11 वॉल्यूम में लिखा है उन्होंने भी विक्रमादित्य पंवार और धार के पंवार राजाओं को जाट वंश का बताया है जो बाद में राजपूत संघ में मिल गए ।

•राजपूतों के इतिहास में जो खुद जोधपुर के राजा राठौड़ों ने लिखवाया है राजपूत इतिहास कर्नल टॉड द्वारा उसमें साफ लिखित है कि आबू के परमार पंवार जाट राजा थे जो बाद में राजपूत बन गए ।

•मि० आर्जीलेथम के ‘एथोनोलोजी आफ इण्डिया’ पृ० 254 के एक लेख से जाट-राजपूतों के सम्बन्ध पर इस तरह प्रकाश पड़ता है -
रक्त में जाट, परिवर्तन किए हुए राजपूत से न तो अधिक ही हैं और न कम ही हैं। किन्तु अदल-बदल हैं। एक राजपूत प्राचीन धर्म (वैदिक धर्म) का पालन करने वाला एक जाट हो सकता है।
आगे यही लेखक पृ० 66-67 पर लिखते हैं कि “हम चैलेंज पूर्वक कहते हैं कि भाटों और व्यासों की बहियों (पोथियों) में जाटों को राजपूतों में से होने की जो कथा लिखी हुई है, वह सफेद झूठ है।”

Unknown ने कहा…

•चीनी इतिहासकार ह्यूनत्सांग ने भी सातवीं शताब्दी में राजपूत शब्द नहीं लिखा जबकि उन्होंने भारत की बाकी बहुत सी जातियों का वर्णन किया है ।राजपूत शब्द सातवीं शताब्दी से पूर्व कहीं पर भी लिखा हुआ नहीं मिलता।

•डॉ० बुद्धप्रकाश ने लिखा है कि “अरब आक्रमणों के समय (8वीं ई० से 11वीं ई०) में क्षत्रिय शब्द कदाचित् नहीं मिलता तथा राजपूत शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी।”

•डा० पी० सारन (Dr. P. Saran) के अनुसार “राजपूत शब्द इसकी जाति सम्बन्धी ज्ञान के रूप में दसवीं शताब्दी तक प्रचलित नहीं हुआ।” (P. Saran, Studies in Medieval Indian History, P. 23)।

•यह सच्चाई है कि मुसलमान इतिहासज्ञों के किसी भी इतिहास में यह लिखा हुआ नहीं है कि कभी भी मुसलमानों के साथ राजपूतों का कोई युद्ध पंजाब , सिन्ध , बलोचिस्तान , मकरान , कैकान, अफगानिस्तान, गजनी और कश्मीर आदि प्रान्तों में हुआ। भारतवर्ष के इतिहास में इसके अपने राजपूत इतिहासज्ञों ने उस समय राजपूत शब्द का होना बिल्कुल नहीं लिखा। (Elliot and Dowson, Vol I)।

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने पृ० 113 पर लिखा है कि “दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में बनी राजपूत जाति, जाट और गुर्जरों का संघ है।”

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)यह 10वीं या 11वीं शताब्दी में जाट और गुर्जरों से बना राजपूत संघ है। (पृ० 113)

ii)भविष्य पुराण में साफ लिखा हुआ है कि “आबू पर्वत का यज्ञ सम्मेलन बौद्धों के विरुद्ध किया गया था जिसका तात्पर्य बौद्धों के विरुद्ध एक नवीन योद्धा संघ बनाने का था।” (भविष्य पुराण, लेखक एस० आर० शर्मा (1970 बरेली)। (पृ० 171, 174, 175)।

iii)जाट, अहीर, गुर्जर जिन्होंने नवीन हिन्दू धर्म (पौराणिक धर्म) अपना लिया वे राजपूत कहलाए और जो इस धर्म के अनुयायी नहीं बने वे जाट, अहीर, गुर्जर नाम से ही कहलाते रहे। जाट और राजपूतों के पूर्वपुरुष एक ही थे। जाट और राजपूत जाति एक ही पुरखा की संतान हैं। (पृ० 116)

•जाट इतिहास अंग्रेजी, लेखक लेफ्टिनेंट रामसरूप जून ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)अनेक अंग्रेज तथा भारतीय इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज लिखा है जो कि असत्य बात है। राजपूतों की अधिक संख्या प्राचीन जाट गोत्रों से सम्बन्ध रखती है। केवल थोड़ी सी इनकी संख्या शक और हूण जातियों में से है।

ii)राजपूतों को अंग्रेज ऐतिहासिकों ने भारत के निवासी न बताकर इनको विदेशी जाति के बताया जो भारत में आकर आबाद हो गये। उनकी यह बात असत्य होने का प्रमाण यह है कि राजपूतों के गोत्रों का निरीक्षण करने से यह परिणाम निकला कि इनमें थोड़े से हूण मिले हैं किन्तु, इनकी अधिक संख्या असली आर्यों की है जो राजपूत कहलाने से पहले जाट और गुर्जर थे। (पृ० 135)।

iii)मि० स्मिथ ने राजपूतों को जाट, अहीर और गुर्जरों के वंशज लिखा है। इनमें कुछ हूण लोग भी मिले हैं। तो भी राजपूत अपने, जाटों, अहीरों और गुर्जरों के साथ इन ऐतिहासिक सम्बन्धों को छिपाना चाहते हैं। (पृ० 137)।

•कर्नल टॉड थे जिन्होंने सन् 1829 ई० में ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान नामक ग्रन्थ लिखा है। टॉड साहब अपने इतिहास में लिखते हैं कि राजपूत लोग जाट, सीथियन (शक) और हूण आदि की सन्तान हैं। (टॉड, राजस्थान, भाग 1, पृ० 73-96 ऑक्सफोर्ड संस्करण)।”

•जाट इतिहास पृ० 728 पर ठा० देशराज ने जनरल कनिंघम के सिक्ख इतिहास का हवाला देकर लिखा है कि “जाट लोग एक ओर राजपूतों के साथ और दूसरी ओर अफगानों के साथ मिल गये हैं, किन्तु यह छोटी-छोटी जाट जाति की शाखा सम्प्रदाय पूर्व अंचल के ‘राजपूत’ और पश्चिम के ‘अफगान’ और ‘बलोच’ के नाम से अभिहित हैं।”

•राजस्थान के राजवंशों का इतिहास लेखक जगदीशसिंह गहलोत (राजपूत) ने राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में लिखा है - “राजपुत्र” शब्द का अर्थ “राजकीय वंश में पैदा हुआ” है। इसी का अपभ्रंश ‘राजपूत’ शब्द है जो बाद में धीरे-धीरे मुग़ल बादशाहों के शासनकाल या कुछ पहले 14वीं शताब्दी से बोलचाल में क्षत्रिय शब्द के स्थान पर व्यवहार में आने लगा। इससे पहले राजपूत शब्द का प्रयोग जाति के अर्थ में कहीं नहीं पाया जाता है।” (पृ० 7)

•भारत का इतिहास (प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए), लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा ने पृ० 163 पर लिखा है कि “वास्तव में राजपूत विदेशियों तथा भारतीयों के मेल से उत्पन्न हुए। अतः इनमें विदेशी जातियों तथा भारतीय क्षत्रिय वंशों का रक्त सम्मिलित है।”

Unknown ने कहा…

जाट राजपूत संबंध

•जस्टिस कैम्पबैल - प्राचीन काल की रीति रिवाजों को मानने वाले जाट , नवीन हिन्दू धर्म के रिवाजों को मानने पर राजपूत है । जाटों से राजपूत बने हैं न कि राजपूतों से जाट ।

•विद्वान् नेशफिल्ड - “जाटों से राजपूत हो सकते हैं परन्तु राजपूतों से जाट कभी नहीं हो सकते हैं ।”

•प्रो.हेत सिह बघेला  “उत्तरी भारत का इतिहास” नामक पुस्तक मे लिखते है कि मुस्लिम विजताओ ने पराजित राजाओ को राजपूतो की संज्ञा दी।

•राजपूत इतिहासकार जगदीश सिंह गहलोत राजपूताने का इतिहास पृष्ठ 8 पर लिखते है की मुस्लिमो के आने के बाद ही शासको की जातियों के लिए राजपूत शब्द प्रयोग में आने लगा जबकि तोमरो पांडवो और जाटों का इतिहास आठवी शताब्दी से पहले भी अस्तित्व में था |

•भारतीय संस्कृति के रक्षक पुस्तक में रतनलाल वर्मा लिखते है| मुस्लिमकाल आने से पहले राजपूत जाति का अस्तित्व सिद्ध करना असंभव है | जबकि तोमरो पांडवो और जाटों का इतिहास आठवी शताब्दी से पहले भी अस्तित्व में था |

•इतिहासकार विलियम स्मिथ के अनुसार राजपूत प्राचीन जाट, अहीर,गुर्जर, मीणा जाति के वंशज है|

•इतिहासकार अली हसन चौहान लिखते है मुस्लिमकाल  में जिस किसी भी स्थानीय व्यक्ति को विदेशी मुस्लिम बादशाहो ने जागीरे दी उसको उन्होंने राजपूत कहा इसलिए वर्तमान राजपूत जाति भिन्न भिन्न जातियों मिश्रण है |

•इतिहासकार ओझा भी स्वीकार करते है की राजपूत जाति मुग़ल काल में अस्तित्व में आयी।

•हिस्टोरियन आर एस जून के अनुसार - जाट गोत्र चौहान,सोलकी (सोरौत),ग्रेवाल,तन्वर(तोमर) के कुछ लोग 12 वि सदी के आस नवीन बने राजपूत सघ मे सम्मलित हो गए।

•इतिहासकार ठाकुर देशराज जी 1964 में प्रकाशित पुस्तक बीकानेरीय जागृति के अग्रदूत के पेज 9 पर लिखते है की जब दिल्ली से तोमरो का राज्य चला गया तब कुछ तोमरो ने राजपूत संघ में दीक्षा लेली और जो राजपूत संघ में दीक्षित नहीं हुये वे जाट ही रहे।

•इतिहासकार परमेश शर्मा के अनुसार तोमर जाटों से ही तोमर राजपूतों की उत्पत्ति हुई है वो लिखते है अनंगपाल तोमर जाट सम्राट था।

•जाटों में ऋषि गोत्र नहीं होता है ऋषि गोत्र राजपूतो में ही मिलता है क्योंकी जिस ऋषि के सानिध्य में वो अग्नि कुंड से यज्ञ दुवारा जाट ओर अन्य जातियो से उनको राजपूत सघ मे मिलाया गया वो ऋषि उन के लिये आदरनीय हो गया इसलिए तोमर जाट का कुछ भाग अग्निकुंड यज्ञ के बाद ही अन्य जातियों  में मिल गया ।

•कर्नल जेम्स टॉड राजस्थान इतिहास के रचयिता -
(i) राजस्थान में राजपूतों का राज आने से पहले जाटों का राज था ।
(ii) एक समय राजपूत जाटों को खिराज (टैक्स) देते थे ।

•जेपी जैसवाल भारतीय राजनेता और इतिहासकार 1881 से लेकर 1937 तक जो खुद एक राजपूत थे!और अपनी जिंदगी में 120 रिसर्च करके उसको 11 किताबों की 11 वॉल्यूम में लिखा है उन्होंने भी विक्रमादित्य पंवार और धार के पंवार राजाओं को जाट वंश का बताया है जो बाद में राजपूत संघ में मिल गए ।

•राजपूतों के इतिहास में जो खुद जोधपुर के राजा राठौड़ों ने लिखवाया है राजपूत इतिहास कर्नल टॉड द्वारा उसमें साफ लिखित है कि आबू के परमार पंवार जाट राजा थे जो बाद में राजपूत बन गए ।

•मि० आर्जीलेथम के ‘एथोनोलोजी आफ इण्डिया’ पृ० 254 के एक लेख से जाट-राजपूतों के सम्बन्ध पर इस तरह प्रकाश पड़ता है -
रक्त में जाट, परिवर्तन किए हुए राजपूत से न तो अधिक ही हैं और न कम ही हैं। किन्तु अदल-बदल हैं। एक राजपूत प्राचीन धर्म (वैदिक धर्म) का पालन करने वाला एक जाट हो सकता है।
आगे यही लेखक पृ० 66-67 पर लिखते हैं कि “हम चैलेंज पूर्वक कहते हैं कि भाटों और व्यासों की बहियों (पोथियों) में जाटों को राजपूतों में से होने की जो कथा लिखी हुई है, वह सफेद झूठ है।”

•चीनी इतिहासकार ह्यूनत्सांग ने भी सातवीं शताब्दी में राजपूत शब्द नहीं लिखा जबकि उन्होंने भारत की बाकी बहुत सी जातियों का वर्णन किया है ।राजपूत शब्द सातवीं शताब्दी से पूर्व कहीं पर भी लिखा हुआ नहीं मिलता।

Unknown ने कहा…

•डॉ० बुद्धप्रकाश ने लिखा है कि “अरब आक्रमणों के समय (8वीं ई० से 11वीं ई०) में क्षत्रिय शब्द कदाचित् नहीं मिलता तथा राजपूत शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी।”

•डा० पी० सारन (Dr. P. Saran) के अनुसार “राजपूत शब्द इसकी जाति सम्बन्धी ज्ञान के रूप में दसवीं शताब्दी तक प्रचलित नहीं हुआ।” (P. Saran, Studies in Medieval Indian History, P. 23)।

•यह सच्चाई है कि मुसलमान इतिहासज्ञों के किसी भी इतिहास में यह लिखा हुआ नहीं है कि कभी भी मुसलमानों के साथ राजपूतों का कोई युद्ध पंजाब , सिन्ध , बलोचिस्तान , मकरान , कैकान, अफगानिस्तान, गजनी और कश्मीर आदि प्रान्तों में हुआ। भारतवर्ष के इतिहास में इसके अपने राजपूत इतिहासज्ञों ने उस समय राजपूत शब्द का होना बिल्कुल नहीं लिखा। (Elliot and Dowson, Vol I)।

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने पृ० 113 पर लिखा है कि “दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में बनी राजपूत जाति, जाट और गुर्जरों का संघ है।”

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)यह 10वीं या 11वीं शताब्दी में जाट और गुर्जरों से बना राजपूत संघ है। (पृ० 113)

ii)भविष्य पुराण में साफ लिखा हुआ है कि “आबू पर्वत का यज्ञ सम्मेलन बौद्धों के विरुद्ध किया गया था जिसका तात्पर्य बौद्धों के विरुद्ध एक नवीन योद्धा संघ बनाने का था।” (भविष्य पुराण, लेखक एस० आर० शर्मा (1970 बरेली)। (पृ० 171, 174, 175)।

iii)जाट, अहीर, गुर्जर जिन्होंने नवीन हिन्दू धर्म (पौराणिक धर्म) अपना लिया वे राजपूत कहलाए और जो इस धर्म के अनुयायी नहीं बने वे जाट, अहीर, गुर्जर नाम से ही कहलाते रहे। जाट और राजपूतों के पूर्वपुरुष एक ही थे। जाट और राजपूत जाति एक ही पुरखा की संतान हैं। (पृ० 116)

•जाट इतिहास अंग्रेजी, लेखक लेफ्टिनेंट रामसरूप जून ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)अनेक अंग्रेज तथा भारतीय इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज लिखा है जो कि असत्य बात है। राजपूतों की अधिक संख्या प्राचीन जाट गोत्रों से सम्बन्ध रखती है। केवल थोड़ी सी इनकी संख्या शक और हूण जातियों में से है।

ii)राजपूतों को अंग्रेज ऐतिहासिकों ने भारत के निवासी न बताकर इनको विदेशी जाति के बताया जो भारत में आकर आबाद हो गये। उनकी यह बात असत्य होने का प्रमाण यह है कि राजपूतों के गोत्रों का निरीक्षण करने से यह परिणाम निकला कि इनमें थोड़े से हूण मिले हैं किन्तु, इनकी अधिक संख्या असली आर्यों की है जो राजपूत कहलाने से पहले जाट और गुर्जर थे। (पृ० 135)।

iii)मि० स्मिथ ने राजपूतों को जाट, अहीर और गुर्जरों के वंशज लिखा है। इनमें कुछ हूण लोग भी मिले हैं। तो भी राजपूत अपने, जाटों, अहीरों और गुर्जरों के साथ इन ऐतिहासिक सम्बन्धों को छिपाना चाहते हैं। (पृ० 137)।

•कर्नल टॉड थे जिन्होंने सन् 1829 ई० में ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान नामक ग्रन्थ लिखा है। टॉड साहब अपने इतिहास में लिखते हैं कि राजपूत लोग जाट, सीथियन (शक) और हूण आदि की सन्तान हैं। (टॉड, राजस्थान, भाग 1, पृ० 73-96 ऑक्सफोर्ड संस्करण)।”

•जाट इतिहास पृ० 728 पर ठा० देशराज ने जनरल कनिंघम के सिक्ख इतिहास का हवाला देकर लिखा है कि “जाट लोग एक ओर राजपूतों के साथ और दूसरी ओर अफगानों के साथ मिल गये हैं, किन्तु यह छोटी-छोटी जाट जाति की शाखा सम्प्रदाय पूर्व अंचल के ‘राजपूत’ और पश्चिम के ‘अफगान’ और ‘बलोच’ के नाम से अभिहित हैं।”

•राजस्थान के राजवंशों का इतिहास लेखक जगदीशसिंह गहलोत (राजपूत) ने राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में लिखा है - “राजपुत्र” शब्द का अर्थ “राजकीय वंश में पैदा हुआ” है। इसी का अपभ्रंश ‘राजपूत’ शब्द है जो बाद में धीरे-धीरे मुग़ल बादशाहों के शासनकाल या कुछ पहले 14वीं शताब्दी से बोलचाल में क्षत्रिय शब्द के स्थान पर व्यवहार में आने लगा। इससे पहले राजपूत शब्द का प्रयोग जाति के अर्थ में कहीं नहीं पाया जाता है।” (पृ० 7)

•भारत का इतिहास (प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए), लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा ने पृ० 163 पर लिखा है कि “वास्तव में राजपूत विदेशियों तथा भारतीयों के मेल से उत्पन्न हुए। अतः इनमें विदेशी जातियों तथा भारतीय क्षत्रिय वंशों का रक्त सम्मिलित है।”

•राजपूतों का यह कहना चला आ रहा है कि सारी जाट, अहीर और गुर्जर जातियां, जाति से खारिज किए हुए राजपूतों के टोल हैं जिन्होंने पौराणिक धर्म के नियम को भंग करके विधवा विवाह जारी किया। परन्तु इतिहासकारों ने राजपूतों के इस दावे को असत्य सिद्ध कर दिया क्योंकि जाट जाति राजपूत जाति से अति प्राचीन है और विधवा विवाह की प्रथा शास्त्रों के अनुसार है और राजपूत संघ जाट, गुर्जर, अहीर, भारतीय क्षत्रिय आर्यों तथा शक, सीथियन, हूण आदि अनेक जातियों का मिला जुला संघ है।

Unknown ने कहा…

•डॉ० बुद्धप्रकाश ने लिखा है कि “अरब आक्रमणों के समय (8वीं ई० से 11वीं ई०) में क्षत्रिय शब्द कदाचित् नहीं मिलता तथा राजपूत शब्द की उत्पत्ति नहीं हुई थी।”

•डा० पी० सारन (Dr. P. Saran) के अनुसार “राजपूत शब्द इसकी जाति सम्बन्धी ज्ञान के रूप में दसवीं शताब्दी तक प्रचलित नहीं हुआ।” (P. Saran, Studies in Medieval Indian History, P. 23)।

•यह सच्चाई है कि मुसलमान इतिहासज्ञों के किसी भी इतिहास में यह लिखा हुआ नहीं है कि कभी भी मुसलमानों के साथ राजपूतों का कोई युद्ध पंजाब , सिन्ध , बलोचिस्तान , मकरान , कैकान, अफगानिस्तान, गजनी और कश्मीर आदि प्रान्तों में हुआ। भारतवर्ष के इतिहास में इसके अपने राजपूत इतिहासज्ञों ने उस समय राजपूत शब्द का होना बिल्कुल नहीं लिखा। (Elliot and Dowson, Vol I)।

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने पृ० 113 पर लिखा है कि “दसवीं या ग्यारहवीं शताब्दी में बनी राजपूत जाति, जाट और गुर्जरों का संघ है।”

•जाट्स दी ऐनशन्ट रूलर्ज लेखक बी० एस० दहिया ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)यह 10वीं या 11वीं शताब्दी में जाट और गुर्जरों से बना राजपूत संघ है। (पृ० 113)

ii)भविष्य पुराण में साफ लिखा हुआ है कि “आबू पर्वत का यज्ञ सम्मेलन बौद्धों के विरुद्ध किया गया था जिसका तात्पर्य बौद्धों के विरुद्ध एक नवीन योद्धा संघ बनाने का था।” (भविष्य पुराण, लेखक एस० आर० शर्मा (1970 बरेली)। (पृ० 171, 174, 175)।

iii)जाट, अहीर, गुर्जर जिन्होंने नवीन हिन्दू धर्म (पौराणिक धर्म) अपना लिया वे राजपूत कहलाए और जो इस धर्म के अनुयायी नहीं बने वे जाट, अहीर, गुर्जर नाम से ही कहलाते रहे। जाट और राजपूतों के पूर्वपुरुष एक ही थे। जाट और राजपूत जाति एक ही पुरखा की संतान हैं। (पृ० 116)

•जाट इतिहास अंग्रेजी, लेखक लेफ्टिनेंट रामसरूप जून ने राजपूतों के विषय में लिखा है -

i)अनेक अंग्रेज तथा भारतीय इतिहासकारों ने राजपूतों को विदेशी आक्रमणकारियों के वंशज लिखा है जो कि असत्य बात है। राजपूतों की अधिक संख्या प्राचीन जाट गोत्रों से सम्बन्ध रखती है। केवल थोड़ी सी इनकी संख्या शक और हूण जातियों में से है।

ii)राजपूतों को अंग्रेज ऐतिहासिकों ने भारत के निवासी न बताकर इनको विदेशी जाति के बताया जो भारत में आकर आबाद हो गये। उनकी यह बात असत्य होने का प्रमाण यह है कि राजपूतों के गोत्रों का निरीक्षण करने से यह परिणाम निकला कि इनमें थोड़े से हूण मिले हैं किन्तु, इनकी अधिक संख्या असली आर्यों की है जो राजपूत कहलाने से पहले जाट और गुर्जर थे। (पृ० 135)।

iii)मि० स्मिथ ने राजपूतों को जाट, अहीर और गुर्जरों के वंशज लिखा है। इनमें कुछ हूण लोग भी मिले हैं। तो भी राजपूत अपने, जाटों, अहीरों और गुर्जरों के साथ इन ऐतिहासिक सम्बन्धों को छिपाना चाहते हैं। (पृ० 137)।

•कर्नल टॉड थे जिन्होंने सन् 1829 ई० में ऐनाल्स ऐंड ऐंटिक्विटीज ऑफ राजस्थान नामक ग्रन्थ लिखा है। टॉड साहब अपने इतिहास में लिखते हैं कि राजपूत लोग जाट, सीथियन (शक) और हूण आदि की सन्तान हैं। (टॉड, राजस्थान, भाग 1, पृ० 73-96 ऑक्सफोर्ड संस्करण)।”

•जाट इतिहास पृ० 728 पर ठा० देशराज ने जनरल कनिंघम के सिक्ख इतिहास का हवाला देकर लिखा है कि “जाट लोग एक ओर राजपूतों के साथ और दूसरी ओर अफगानों के साथ मिल गये हैं, किन्तु यह छोटी-छोटी जाट जाति की शाखा सम्प्रदाय पूर्व अंचल के ‘राजपूत’ और पश्चिम के ‘अफगान’ और ‘बलोच’ के नाम से अभिहित हैं।”

•राजस्थान के राजवंशों का इतिहास लेखक जगदीशसिंह गहलोत (राजपूत) ने राजपूतों की उत्पत्ति के विषय में लिखा है - “राजपुत्र” शब्द का अर्थ “राजकीय वंश में पैदा हुआ” है। इसी का अपभ्रंश ‘राजपूत’ शब्द है जो बाद में धीरे-धीरे मुग़ल बादशाहों के शासनकाल या कुछ पहले 14वीं शताब्दी से बोलचाल में क्षत्रिय शब्द के स्थान पर व्यवहार में आने लगा। इससे पहले राजपूत शब्द का प्रयोग जाति के अर्थ में कहीं नहीं पाया जाता है।” (पृ० 7)

•भारत का इतिहास (प्री-यूनिवर्सिटी कक्षा के लिए), लेखक अविनाशचन्द्र अरोड़ा ने पृ० 163 पर लिखा है कि “वास्तव में राजपूत विदेशियों तथा भारतीयों के मेल से उत्पन्न हुए। अतः इनमें विदेशी जातियों तथा भारतीय क्षत्रिय वंशों का रक्त सम्मिलित है।”

•राजपूतों का यह कहना चला आ रहा है कि सारी जाट, अहीर और गुर्जर जातियां, जाति से खारिज किए हुए राजपूतों के टोल हैं जिन्होंने पौराणिक धर्म के नियम को भंग करके विधवा विवाह जारी किया। परन्तु इतिहासकारों ने राजपूतों के इस दावे को असत्य सिद्ध कर दिया क्योंकि जाट जाति राजपूत जाति से अति प्राचीन है और विधवा विवाह की प्रथा शास्त्रों के अनुसार है और राजपूत संघ जाट, गुर्जर, अहीर, भारतीय क्षत्रिय आर्यों तथा शक, सीथियन, हूण आदि अनेक जातियों का मिला जुला संघ है।

Rajnish Bhardwaj ने कहा…

Bhai bais koi gotar nhi hai yeh Rajputo ki ek category hai...Bais Rajputo ka gotra Bhardwaj hai ...mai bhi Bais Rajput hu ....jab aapko puri baat nhi pta to mat bolo

Unknown ने कहा…

Bais/bains/wais/wains jato se hi baad me dusri caste me shadi krke converted log bais rajput kehlaaye

Unknown ने कहा…

Punjab ke bains asli kshtriya dikhte h by face. Bains jato k face dekhna wo aaj bhi aryan h

Unknown ने कहा…

वाग्यावर्धन और कल्याण वर्धन महाराज हर्षवर्धन के दोनो पुत्र मर गए थे फिर तो उनका वंश खत्म ना ??

Someone please tell 🙏🙏

Unknown ने कहा…

महत्वपूर्ण जानकारी लेकिन कुल देवी जानकारी नही है।कृपया देने की कृपा करें

Unknown ने कहा…

Mai v trilokchand I bais Rajput hu

Unknown ने कहा…

Sir mai bhi bais hu trilokchand bais par mai ab Indore Madhya Pradesh mai rahta hu mujhe kuch jankari Chahiye thi kuldevi mandir ki mujhe kaise malum hoga please marg darshan de 9893459087

बेनामी ने कहा…

Bhai saheb aapki jaankari galat h kripya krke isse sudhar le......����������������������

Rana Harishankar Singh ने कहा…

KSHATRIYA BHAIYI SE NIWEDAN MI JAAT GUJJAR AHIR AUR ANYA JATIYA KE BAATO KO VALUE DENE KI JARURAT NHI INKA AAY DIN NAYA ITIHAS BANTA HAI .

Rana Harishankar Singh ने कहा…

KSHATRIYA BHAIYI SE NIWEDAN MI JAAT GUJJAR AHIR AUR ANYA JATIYA KE BAATO KO VALUE DENE KI JARURAT NHI INKA AAY DIN NAYA ITIHAS BANTA HAI .

Unknown ने कहा…

Bhai baiss Rajput hote hai Mai baiss hu uttar pradesP se

Unknown ने कहा…

Maharaja suheldev maharaja Trilokchand ke bade putra Vidardev ke vanshaj hai jo bhala chalane me nipud the wahi bais vansh baad me bhale sultan ki upathi milne ke karan bhale sultan kahlaye jo ek trilok chandi bais hai

Unknown ने कहा…

न जानकारी हो तो क्यों बोलते हो जाटों की यही कहानी ही गयी है दुसरो के इतिहास को चुराने की
बैस गोत्र के क्षत्रिय है हम और पूरे पूर्वांचल में तमको हम मिल जायेंगे

wali ullah ने कहा…

देश मे क्षत्रिय राजपूतों की आबादी 50% से अधिक है।
जानबूझकर इन्हें छोटी छोटी जातियों मे बांट दिया गया है।
कुमीॅ,लोधी,अहीर,गुजॅर,जाट,मौयॅ,आदि सभी राजपूत जातियाँ हैं।

Unknown ने कहा…

Ham baise thakur h hamre purvaj Dada Harsh vardhan hai isliye vi baise thakur hai ye sahi h

Unknown ने कहा…

He murkh siromani bais gotra nhi kchatriyo ki ek sakha ma bais kchatriya baisvada se mera gotra bhrdwaj h or raebareli ki puri politics hmare ird gird hi ghumti h to aap hmara itihas n churae apme hoga bais gotra vase bhi dada harsh wardhan ne pure uttar bharat pr raj kiya tha

Unknown ने कहा…

Pagla gye ho kya bais kchatriyo ka gotra bhardwaj n ki bains bevkuf insan

Unknown ने कहा…

Sahi baat hai Bhai jinko kuch pata nahi hota Of ayasa hi boltai hai Mai khud Trilokchandi Bais ho Bhai maire tum jaat ho achi baat hai mujeh koi dikkat lekin hameh jota dikkat mat do befegul ka nahi Tau aap bhi dikkat Mai phad saktai hai pura itihas pehlai phado tab bolo sab chutiya hai Bas ek tum hi sahi ho pehlai jao jankari lo aur hai ab jyada na bolo Bhai aap ko koi adhikar nahi kisi samaj ke barai Mai ayasa bolne ka

Unknown ने कहा…

Sahi kaha Bhayya ji aap ne bhilkul sahi baat hai

Unknown ने कहा…

Kuldevi ki jankari de ko Kolkata me, Delhi-faridabad k pass h, ya chomu sahapura k pass h?

Raj ने कहा…

Bhale Sultan ka itihas to pata hai na aur nhi pata tb suheldev ko bhale Sultan na bolo

Raj ने कहा…

Bhai sahab pehle bata den ki bhala chalane ke karan bhale sunltan nahi balki ek bhar raja ko harane ke karan delhi de jo muslim shashak tha usne bhale Sultan ki upadhi di aur ye itihas me likha bhi hai aur suheldev ki baat hai to bs trilokchand aur vidardev ke aage ki vanshavali me suheldev ko darshaiye to ya fir bs bol denge ki vidardev ke vanshaj the to ho jayega kya

Raj ने कहा…

Aur bhai suheldev ko lagbhag sahi historical books me bhar ya bharshiv hi mana gaya hai yaani nagvanshi the chunki kuchh Bains apne aap ko naagvanshi bhi kehte ispe charcha kijiye

Raj ने कहा…

Trilokchand ka nahi pata but suhledev bhar the aur trilokchand ke vansh ke jo vidardev the unka Shasabkaal 1394 me tha aur log vidardev ko suheldev ke purvaj bata rahe yrrr itna to padh ke aaya karo ki suheldev ka shashankaal 1027 me shuru hua aur vidardev ka 1094 me

Raj ने कहा…

Sahi bol rahe ho bhai vidardev ko suheldev ka purvaj banate hain ye log but suheldev ke 300 saal baad vidardev ka janm hua tha aur trilokchand dwitiy bhi suheldev ke baad paida hua tha

Raj ने कहा…

Vidardev ke vansaj kaha se janab vidardev ka janm to suheldev ke baad me hua tha aur .... Suheldev ka shashankaal 1027 me tha aur vidardev jinhe pehla bhalesultan kaha gaya unka Shashankal 1394 me tha to jara history padh ke aaya karo dusre jaise bolte tum bhi maan loge kya

बेनामी ने कहा…

बैस राजपूत (कोट बाहर)कुलदेवी कालिका देवता शिव नाग पूजा स्थान आज़मगढ़ kuba क्षेत्र।

V.K ने कहा…

बैंस गौत्र को बानिया गौत्र के नाम से भी जाना जाता है
और भगवान श्रीराम के भाई भरत के वंशज है

पुष्पेंद्र सिंह ने कहा…

आपका कहना है कि हर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए, इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश की कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भाले सुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर की स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे। तो इस आधार पर पासी जाती भी बैस क्षत्रिय हुए, क्योंकि यह सिद्ध हो चुका है कि महाराज सुहेल देव पासी जाती से हैं तो आप पासी जाती का उल्लेख करने में संकोच क्यों कर रहे हैंकी वो बैस क्षत्रिय हैं।

Unknown ने कहा…

आप का कहना है किहर्षवर्द्धन के पश्चात् इस वंश का शासन समाप्त हो गया और इनके वंशज कन्नौज से आगे बढकर अवध क्षेत्र में फ़ैल गए, इन्ही में आगे चलकर त्रिलोकचंद नाम के प्रसिद्ध व्यक्ति हुए इनसे बैस वंश की कई शाखाएँ चली, इनके बड़े पुत्र बिडारदेव के वंशज भाले सुल्तान वंश के बैस हुए जिन्होंने सुल्तानपुर की स्थापना की.इन्ही बिडारदेव के वंशज राजा सुहेलदेव हुए जिन्होंने महमूद गजनवी के भतीजे सैय्यद सलार मसूद गाजी को बहराइच के युद्ध में उसकी सेना सहित मौत के घाट उतार दिया था और खुद भी शहीद हो गए थे।और यह सिद्ध हो चुका है कि महाराज सुहेल देव पासी राजा थे ।तो आपको पासियों को वैस क्षत्रिय कहने में संकोच क्यों हो रहा है । खुल कर लिखे की पासी भी बैस क्षत्रिय हैं

Addagks ने कहा…

Ji hkm

Unknown ने कहा…

Bhai mai aap ki bat se sahmat hu mai khud up ke gonda ka bais rajput ho hamare jile me bais rajputo ki badi aabadi hi.

बेनामी ने कहा…

Correct yourself....with mini knowledge u can not open your big mouth.Bais are proven Rajputs if u speak more u got the demmo...

Bhar Kshatriya ने कहा…

राजा तिलोकचंद सुहेलदेव राजभर राजा डलदेव भारशिव नागवंशी क्षत्रिय भर क्षत्रिय राजा थे

Kisan Bharshiv Nagvanshi ने कहा…

राजभर का भी गोत्र भारद्वाज हैं और वह भारशिव नागवंशी है

बेनामी ने कहा…

Aapas me tark karne ka koi fayda nhi jisko jankari nhi hai ya koi galat jankari hai use correct kar ke bataye sabhi bhaiyo se nivedan hai

Unknown ने कहा…

जय माता दी
बैंस के बारे में जो भी जानकारी दी गई है बिल्कुल सत्य है परन्तु इसे पूर्व अवलोकन करे एवं जो भी त्रुटि है उसे सुधारे जैसे डोडिया एवं बालोटिया दोनो साथ मे जोडे बैंस की शाखा जिसका गोत्र भारद्वाज है कुलदेवी कालिका देवी इसका यदि एतिहासिक साक्ष्य जो कि उन्नाव रायबरेली की प्रगतिहसिक पुस्तक मे अभी भी लिखा है अतः आपसे निवेदन है आप इसे सुधार के साथ पुनः प्रसरिक करें।।

Unknown ने कहा…

Mai bhi bais rajput hu bhai hmara gotra Bhardwaj hai vo to hmari vans hai hm maharaja suheldev singh bais ke vansaj hAi

Unknown ने कहा…

ye sare betuki bat hai agr sare log bol rahe hai ki rajput se pahle jat gurjar the to shuryebansh kab aur ush bansh me kitne raja the sare kya jathh gurjar the

Unknown ने कहा…

bilkul sahi

Unknown ने कहा…

Sirmur rajput bhi bais sakha ke hai na

बेनामी ने कहा…

बैस बेशक राजपूत ही होते हैं. जाटों में बैस होता है या नहीं, मुझे इसकी स्पष्ट जानकारी नहीं है. मैं बिहार से हूँ, और यहाँ सब इस तथ्य से वाकिफ़ हैं.

Vinay Kumar Rajbhar ने कहा…

राजा सुहेलदेव वैश क्षत्रिय नहीं राजभर(भारशिव नागवंशी ) क्षत्रिय थे आप इस लेख को कृपया करके सुधार करें और तथ्यों के आधार पर इसे पुनः प्रस्तुत करें -धन्यवाद

बेनामी ने कहा…

Sry bro ye shi h vasya rajput hota h jat ni ap glt bol rhe h ye ni

बेनामी ने कहा…

M v vays hu pta ni ye Bhai kis chiz k ivstgsn krke aye h or bol rhe h hm sb jat h 🤣🤣

बेनामी ने कहा…

ब्रो बैस राजपूत है ना कि जाट आप लोग तो हर किसी को जाट गुजर बना देते हो आप लॉगो ने तो मिहिरभोज को भी गुज़र बता दिया

बेनामी ने कहा…

Baruwar kshatriya ka etihas btaeye

बेनामी ने कहा…

कैसी बात कर रहे हों आप मैं भी बैस ठाकुर हू ठीक है और मैं राजपूत हू जाट नहीं यार कुछ भी लिख देते हो

Deepak Singh ने कहा…

Anpdh aadmi ho kya mr phle ye note kro ki gotr sirf or sirf 12 rishi ke naam se start hota hai bais gotra kaise ho gya

बेनामी ने कहा…

Apne baap whensong ki history padhe

बेनामी ने कहा…

Bhai- Sainthwar-Mall ek kurmi kshatriye caste ka parts hota hain but ab Rajput-Thakur caste ke public usko Rajput-Thakur caste banate ja rha hain kyu?

बेनामी ने कहा…

Bhai raja Harshvardhan pushbhuti vansh se tha jo ki bais class se Aata tha and vo ek Buddhist religion ka follow karta tha , vo hindu Rajput-Thakur caste, ek wrong History apna bana liya jo ek jhutha History hain
Rajput-Thakur caste other ko apne apko bahut higher dikhana chahta hain
:- Raja Harshvardhan nhi Rajput-Thakur caste tha or nhi jaat caste ka tha vo ek Buddhist tha.

बेनामी ने कहा…

Bhai raja Harshvardhan pushbhuti vansh se tha jo ki bais class se Aata tha and vo ek Buddhist religion ka follow karta tha , vo hindu Rajput-Thakur caste, ek wrong History apna bana liya jo ek jhutha History hain
Rajput-Thakur caste other ko apne apko bahut higher dikhana chahta hain
:- Raja Harshvardhan nhi Rajput-Thakur caste tha or nhi jaat caste ka tha vo ek Buddhist tha.

बेनामी ने कहा…

Hi

raghuvansh bhai patel ने कहा…

Raja Harshvardhan ek pushbhuti vansh ka raja tha jo ki Buddhism religion ka follow karta tha , nhi Rajput-Thakur caste ka tha or nhi jaat caste ka tha vo ek vaishy class ka tha , Rajput-Thakur caste ke wrong History likh kar apne apko raj Harshvardhan ka vanshaj batata hain, ye sab wrong History hain tera 100% , jhutha kahani hain , mithak

raghuvansh bhai patel ने कहा…

Sainthwar-Mall ek kurmi kshatriye caste ka parts hai , or ab Rajput-Thakur caste, usko apna society ke under banaya ja rha hai , jo ek Rajput-Thakur caste ka old agenda hai or aaj bhi uska use kar rha

raghuvansh bhai patel ने कहा…

Baisawar, raikwar, katiyar, sachan, Awadhiya, Ghamaila, patanwar, kochaisa, patnawar, singraur, chandrakar, manwa, kurmi- Sainthwar , kurmi-Mall , Chandel,
Patidar, kapu,kamma, vokalinga, velama etc. Jaise 1500 sub caste hain , kurmi kshatriye caste ke under India mein

raghuvansh bhai patel ने कहा…

Raja jaylal Singh- kurmi kshatriye caste ke the. Uttar Pradesh

raghuvansh bhai patel ने कहा…

Shivaji maharaja- kunbi and kunbi-Maratha the jo hi kurmi kshatriye caste parts hai

बेनामी ने कहा…

Bais Thakur hote h because I'm bias thakur

बेनामी ने कहा…

हम भी बैस राजपूत। है और हमारा गोत्र। भारद्वाज है और हम बिहार राज्य के दरभंगा जिला के तुमौल गौव से आता हूं और यह बैस का लगभाग 10000 जनसंख्या है

बेनामी ने कहा…

Bhai bais thakur kuchh musalman ho gaye
wo kaise huye Muslim

बेनामी ने कहा…

हम बिहार के पटना जिले के बारहगाया , जो बारह गांवों का समूह है ,से आते है। यहाँ बैस राजपूत बसते हैं ।यहां सती मैय्या की पूजा भी होती है। यह क्षेत्र गौरी चक के आसपास है। गोत्र भारद्वाज है।यहाँ राजपूत जाति की अन्य शाखायें भी बस्ती हैं। यहाँ के लडकियो की विवाह ज्यादातर मामले में पहले के समय में आरा या छ्परा जिले में होती थीं।

बेनामी ने कहा…

हम बिहार के पटना जिले के बारहगाया , जो बारह गांवों का समूह है ,से आते है। यहाँ बैस राजपूत बसते हैं ।यहां सती मैय्या की पूजा भी होती है। यह क्षेत्र गौरी चक के आसपास है। गोत्र भारद्वाज है।यहाँ राजपूत जाति की अन्य शाखायें भी बस्ती हैं। यहाँ के लडकियो की विवाह ज्यादातर मामले में पहले के समय में आरा या छ्परा जिले में होती थीं।

बेनामी ने कहा…

कासगंज जिला उत्तर प्रदेश यहां पर हम क्षत्रियों के 84 गांव पढ़ते हैं और हम सभी क्षत्रिय राजपूत समाज से हॆ

बेनामी ने कहा…

मै बैस राजपूत हूं। मेरा गोत्र "भारद्वाज" है । कुछ दूसरी जातियों का आदत ही रहा है की दूसरे के वंश या गोत्र का नाम चुरा लो। खासकर के जाटों में तो सभी राजपूत के वंशनाम या गोत्र मिलता ही है इसका मतलब तुम लोग ना जाने कितने सालों से राजपूत बनने की कोशिश कर रहे हो लेकिन सफलता नहीं मिल पायल

🚩⚔️जय भवानी⚔️🚩

बेनामी ने कहा…

Jai bais rajputana 🚩🚩🚩🚩

Talwar singh ने कहा…

Banna
मेरा नाम अनुप सिंह राजपूत है । और मै बैंस राजपूत हू हमारा गौत्र भारद्वाज है । और मे स्री राजपूत करणी सेना का सदस्य हू । मै राजस्थान के जयपुर जिले से हू । मेरे गावँ का नाम जटवाडा है । हम क्षत्रिय है हम जाट नहीं है । राजस्थान मे हमारे 84 गावँ है जिनमे बैंस राजपूत निवास करते है । हमे यहा पूर्विया राजपूत के नाम से भी जानते है क्योकि हम पूर्व दिशा यानी उत्तर प्रदेश से आये हुये है । वहा हमारे पूर्वज है ।आप गलत न्यूज मत फैलाओ नही तो हम इसके खिलाफ आवाज उठाएंगे । हमारी देवी कालिका माता है । और कुल देवता शिवजी हम सूर्यवंशी है ।
जय माँ भवानी ��

बेनामी ने कहा…

मैं बैसवारा से ही हूं और हर्षवर्धन ही बैस
(सूर्यवंशी) राजपूत थे

बेनामी ने कहा…

Uff
1. Ab logon ko different language ke incorrect translation se itna bhi pata nhi chalta ki ek Chinese na vaish likha hai ya bais/vais.
2. Banabhatt Jo ki rajkavi the harshvardhan ke unhone likha tha ki harshvardhan ki bhen rajshri ka vivah ek dusre chandravanshi raja ke sath Suryavansh -chandravash ka miln bataya hai. Toh agar vo vaishya the toh Suryavansi kaise hui unki behen
3. Aur banabhatt duvra anekon baar harshvardhan ko kshatriya bol gya hai.
4. And agar ham harshvardhan ka rajya map dekhte Han toh vo bilkul ussi same ratio me hai jis ratio me bais rajputon ki population hai uss area me.
5. Abhay Chand bais jinhone baiswara ka NIV rakha tha vo bhi kannauj se kuch hi doori par tha jo ki darshata hai ki harshvardhan ke jana ke baad bhi bais kshatriya kul uss area me kitna powerful tha

VETERINARIAN ने कहा…

क्षत्रिय भारत वर्ष में आदि काल से है। क्षत्रियों के इछवाकु वंश में भगवान राम ने जन्म लिया था । प्राचीन इतिहास में जाट जैसी कोई जाति नही थी।
बैस क्षत्रियों की एक महत्वपूर्ण उपजाति है।

बेनामी ने कहा…

हम भी bais rajput hai Jay बैसवार

बेनामी ने कहा…

Ji ha

बेनामी ने कहा…

May v vais rajput hu

बेनामी ने कहा…

Jai.Baiswara

बेनामी ने कहा…

Jai.Baiswara

Rabindra.Singh

बेनामी ने कहा…

Jai bais rajputana 🙏🚩

बेनामी ने कहा…

bais ek kshatriya varn ki suryavanshi shakha hai. yeh shriram ke priya bhai shri bharat ke putra 'takashk' se sambadh rakhati hai . esi vansh me raja vishal ne vaishali rajaya banaya tha. vaihsali ka arth hota hai 'vishal ka'. vaishali se bahar jane ke karan vaish/baais kahlaye. bais ka arth hota hai 'vaishali ka' . harshvardhan ne pahle pahal rajput shabd ka prayog kia tha isliya ye apane ko rajput kahte hai. vaishe rajput shabad adhik prachin nahi. isliya rajput banam jat aur gurger ki larari larna murkhata hai. jat aur gurjer shabd bhi ati prachin nahi. han ye bhi khatriya varn ke log hai.
sabhi garbarjhala boudo ke karan hua hai. bari sankhya me jab kkshatriya boudh ho gaye to bharat ki sainik vyavastha bigar gaye. isko theek karne ke liya abu parvat par ek bara yagya kiya gaya jisme boudh bani ksahatriyo ko punha vedic dharm mi pravist karya gaya . usme sabhi kshatrya sammilit huye the. isiliya chauhan adi char aur unke upvansh huye.
kul milakar bat ye hai ki sabhi kshatriya hai bodho ke karan ghalmel ho gaya . ab tum sab jabardati lar rahe ho.
sab murjh ho.
bhale sultan , vidardev , nam ke kya ek hi vyakti huye are bhai ek nam ke aneak hote hai . etne varsho me pata nahi lagta ki kaun kaun tha.

Ramchandrachauhan ने कहा…

Bhar rajbhar bhi bhardwaj gotra kahai all bais pasi rawat ekhi mahashudra jatiahai bania bais vashyahaiok no rajput pundhir only samnt the1241se1192tsk smrat prithvirajchauhan ka no rajput ok only chauhan hi tajputanahai baki108damnttheok 600yrsto1192va1300tak chauhan rajputanakalhai Loniarajputanachauhan 1300yrs13rajput 13jatiokiarmy haijoaj 3army ka13 terah2r as nkhaiok

Ramchandrachauhan ने कहा…

Rajput shabd kab paida hua indiae likho kis jati vanshj se jaichauhannsabsemahan warriors rajput clan only chauhan

Ramchandrachauhan ने कहा…

Cjauhanclan is proud of india .chauhan arms warriors .chauhanhindu empirrors to sanatan .chauhan katyar hindu duja nakoi sjtak .chauhan rajput kal 600yrsto1300yrs 1200yrs chauhan 24shakha all kshatriya .1300yrs Smrat hammirdevchauhan hathi ranthambhaur 13jatioki 13rajputoki army orgnisation Lonoarajputanachauhan kijai upmau vaksha gotra chauhan ramraj vats gotra chauhan rajput kalhu chauhan shahid rajaoko ram.ke barabardarjadiyagaya ok all rajput turk.khan 1300yrs kebad muglokeakbarkesalessdur singh titalme no chauhsn Lonia rajputanaok

Ramchandrachauhan ने कहा…

Nadol.pali raj maharaja laxman chauhannki shadi vashya baniaki ladkisehui thi jo jaino bana bhandariok

बेनामी ने कहा…

इस लेख मे जो बसंतपुर और कसमंडा का जिक्रहै क्या वह जनपद सीतापुर उत्तर प्रदेश के है ।

बेनामी ने कहा…

इस लेख मे बसंतपुर और कसमंडा का उल्लेख है क्या यह स्थान जिला सीतापुर उत्तर प्रदेश के हैं यदि हां तो स्लीमन जनगणना डायरी 1850 का अध्ययन करना चाहिए ।

बेनामी ने कहा…

बसंपुर कसमंडा जिला सीतापुर

बेनामी ने कहा…

यूपी मे मैनपुरी ब्लाक के अधीन गांगसी गांव है इस गांव मे बैस राजपूत है अब वो राजस्थान मे बस गए है और वो नाम के साथ भाटी लगाते है.... क्या ये सही है.... ?

बेनामी ने कहा…

Jaise Puri duniya yhi smbhale h aur cast ki to KOi ahmiyat hi ni kash mrne k liye chhod dete hmare purwaj itne hi kashatriya the Ek juban k to sar kata lete mullla m shad I aur mulla na bnte

बेनामी ने कहा…

बांसवाड़ा राजस्थान के बैस राजपूत गोत्र कौशिक के कुलदेवता का नाम क्या है ??