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अभिनंदन हे! मौन तपस्वी Abhinandan Hey Maun Tapasvi



अभिनंदन हे! मौन तपस्वी
अभिनंदन हे! मौन तपस्वी धीरोदात्त पुजारी!
तुम्हें जन्म दे धन्य हुई मां भारत भूमि हमारी!!
नव जीवन भर कर कण-कण में, बहा प्रेम रस धारा,
अमित राग मन में भर केशव साथर्क नाम तुम्हारा!
फिर बसंत की फूल रही है, आशा की फूलवारी…………
आज जागरण का स्वर लेकर मलियानिल के झोंके
प्रेम हृदय में भरते जाते कोटी कोटी सुमनों के
नव प्रभात हो रहा चतुदिर्क फैली फिर उजियारा ……।।१।। 
प्राची का मुख भी उज्ज्वल है केशव किरणें फैली
चला अंधेरा ले समेट कर अपनी चादर मैली
अंधकार अज्ञान ही त्यागी मिटी कालिमा सारी …………।। २।।
देव तुम्हारी पुण्य स्मृति में रोम रोम हषिर्त है
देव तुम्हारे पद पदमों पर श्रध्दांजलि अपिर्त है
केशव बन ध्रुव ज्योति दिखा दो जन मानस भवहारी…… ।।३।।


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संघ गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) गीत - संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो



संगठन गढ़े चलो, सुपंथ पर बढ़े चलो।
भला हो जिसमें देश का, वो काम सब किए चलो॥
युग के साथ मिल के सब, कदम बढ़ाना सीख लो।
एकता के स्वर में गीत, गुनगुनाना सीख लो।
भूलकर भी मुख में, जाति-पंथ की न बात हो।
भाषा, प्रांत के लिए, कभी न रक्तपात हो॥
फूट का भरा घड़ा है, फोड़कर बढ़े चलो ॥१॥
संगठन गढ़े चलो.............॥

आ रही है आज, चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग, मातृभूमि के लिए अपार॥
कष्ट जो मिलेगा, मुसकुराकर सब सहेंगे हम।
देश के लिए सदा, जियेंगे और मरेंगे हम।
देश का ही भाग्य, अपना भाग्य है, यह सोच लो॥२॥
संगठन गढ़े चलो.................॥


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हिन्दु जगे तो विश्व जगेगा मानव का विश्वास जगेगा






हिन्दु जगे तो विश्व जगेगा मानव का विश्वास जगेगा
भेद भावना तमस ह्टेगा समरसता अमर्त बरसेगा
हिन्दु जगेगा विश्व जगेगा
हिन्दु सदा से विश्व बन्धु है जड चेतन अपना माना है
मानव पशु तरु गीरी सरीता में एक ब्रम्ह को पहचाना है
जो चाहे जिस पथ से आये साधक केन्द्र बिंदु पहुचेगा ॥१॥
इसी सत्य को विविध पक्ष से वेदों में हमने गाया था
निकट बिठा कर इसी तत्व को उपनिषदो में समझाया था
मन्दिर मथ गुरुद्वारे जाकर यही ज्ञान सत्संग मिलेगा ॥२॥
हिन्दु धर्म वह सिंधु अटल है जिसमें सब धारा मिलती है
धर्म अर्थ ओर काम मोक्ष की किरणे लहर लहर खिलती है
इसी पुर्ण में पुर्ण जगत का जीवन मधु संपुर्ण फलेगा
इस पावन हिन्दुत्व सुधा की रक्षा प्राणों से करनी है
जग को आर्यशील की शिक्षा निज जीवन से सिखलानी है
द्वेष त्वेष भय सभी हटाने पान्चजन्य फिर से गूंजेगा ॥३॥


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