दादागीरी



गांधीगीरी का गुण गान चारो तरफ हो रहा है, फिल्‍म भी हिट और सुपर हिट जा रही है। हर मुखडे पर गांधी गीरी की बाते हो रही है, मेरे घर मे भी इस फिल्‍म को देखने की बात चली और ले आये डीवीडी, और सायं काल 7 बजे इस को देखने की योजना बनी, यह योजना पापा जी की तरफ से भी उनका दिया हुआ समय था। चूकिं हमे पता था कि पापा जी 7 बजे तक समय नही निकाल पायेगे तो अम्‍मा जी ने कहा कि लगा लो तो हम लोगो ने फिल्‍म को लगा कर देखना शुरू कर दिया। पापा जी का आना हुआ लगभग 7:30 पर उस समय गान्‍धी जी को ढाल बना कर मुन्‍ना भाई प्‍यार के गीत गा रहे थे। तो आते ही पापा जी का कहना कि गांधी के देश मे गांधी जी की ऐसी भी दुर्गति लिखी है। वास्‍तव मे एक अलग थीम को लेकर बनाई गई है यह फिल्‍म तथा तथा यह काफी सफल भी रही और लोगो मे नई सोच लाने मे कामयाब रही।

gandhigiri

आज मै गान्‍धी गी‍री की बात नही करना चाहता हूं गांधीगीरी के लिये काफी लोग है आज मे दादागीरी की बात कर रहा हूं। एक फिल्‍म जो हाल के कुछ वर्षो मे दादागीरी पर बनी थी वह फिल्‍म थी, शरारत। शायद यह फिल्‍म किसी को याद रही होगी। यह फिल्‍म दादा (वृद्वो) लोगो पर आधारित थी, वे दादा लोग जिनके गोद मे हमने कभी खेला था। पूरी फिल्‍म बुजुगों पर आधारित थी आज के दौर मे किस प्रकार उनकी उपेक्षा हो रही है वह पिता जो आपने जीवन काल मे सारी कमाई तथा प्‍यार आपने औलाद के लिये त्‍यज देता है और वह मां जो अपने पुत्र को के बोझ को 9 माह तक आपने कोख मे रखती है और सारा जीवन ममता न्‍यौछावर करती है वह मां-बाप जब वृद्व होने पर बोझ लगते है। बउी ही मार्मिक संवादो के साथ यह फिल्‍म बनी है, एक वाक्‍य ऐसे हृदय मे चोट करते है कि आखों मे पानी ला देता है। आज यह हलात है तो आने वाले हमारे समय मे हमारी क्‍या स्थिति होगी यह हमे सोचने पर मजबूर कर रही है। आज के दोर मे गांधीगीरी तो मात्र फिल्‍मों तक ही सीमित है, किन्‍तु इस फिल्‍म की कहानी लाखों करोडो परिवारो की कहनी है।
एक एक वृद्व पात्र का अपना दर्द है कोई आपने जो वास्‍तव मे हमारे समाज की वास्‍तविक स्थिति का दर्शन कराती है। इस फिल्‍म का एक गीत(गजल) बहुत ही सुन्‍दर तथा मार्मिक तरीके से गाया गया है इस गीत को मै काफी पंसद करता हूं और बार बार सुनने की इच्‍छा करता हूं, बस दिल से एक ही आवाज निकलती है कि-

ना किसी की आँख का नूर हूं,
ना किसी की आँख का नूर हूं
ना किसी के दिल का क़रार हूँ।
जो किसी के काम
न आ सके,
मैं वह एक मुश्त गुबार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूं
न तो मैं किसी का हबीब हूँ,
न तो मैं किसी का रक़ीब हूँ,
जो बिगड़ गया वह नसीब हूँ,
जो उजड़ गया वह दयार हूँ,
ना किसी की आँख का नूर हूं
मेरा रंगरूप बिगड़ गया,
मेरा यार मुझसे बिछड़ गया,
जो चमन ख़िज़ां से उजड़ गया,
मैं उसी की फ़सले बहार हूँ
ना किसी की आँख का नूर हूं..

गान्‍धी गीरी तो सब को समझ मे आ गई की बस उस दिन का इन्‍तजार है कि लोग दादागीरी को कब समझेगे।



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