स्‍वाकलन - 2006,



 पुराना वर्ष कैसे बीत चला पता ही नही चला, पुराने वर्ष मे जिन्दगी की वास्तविक हकीकत से रूबरू होने का मौका मिला। काफी कुछ सीखने का मित्र जैसे ब्लॉग बनाना, गुस्से मे कमी करना, संयम बनाये रखना और विवादों मे पढना किन्तु संयम व्यवहार के साथ। आज काफी कुद वास्तविकता को जाना क्‍या है वास्तविकता? जब आप अपने घर मे सबसे छोटे होते है तो निश्चित ही आपके व्यवहार मे बचकाना पन होना स्वाभाविक होता है, जैसा कि मै अदिति के जन्म के पहले मै 19 साल तक सबसे छोटे का अनुभव रहा है।

बीते साल मे की 31 तारीख को मैने कुछ और भी सीखा, हमेशा अडे़ रहने मे बडाई नही है। लोच का होना भी जरूरी होता है। संसार की कोई भी ऐसी वस्तु नहीं है जो कठोर के साथ मजबूत भी हो और बिना लचीलेपन के कोई भी वस्‍तु की मजबूती क्षणिक होती है। यह मेरे लिये साल की कुछ उपलब्धियों मे एक है, सन 2006 ने मुझे स्नातक होने का रुतबा दिला दिया, अब मै भी गर्व से कह सकता हूँ कि मै ग्रेजुएट हूँ।

अपने विवेक के तराजू मे मै अपने आप को तौलता हूँ तो वर्ष 2006 मे मैने कुछ पाने के साथ कुछ खोया भी है, पहला कि मेरी बहुत इच्‍छा थी कि मै 2006 से ही विधि स्नातक मे प्रवेश लूँ किन्तु यह दिवा स्वप्न की भांति ही रह गया। इस बीते वर्ष ने एक और सीख दी कि अति आत्‍मविश्‍वास होना ठीक नहीं है। मुझे अपने आप पर पूरा भरोसा कि मै विधि प्रवेश परीक्षा पास कर लूँगा, इलाहाबाद मे विश्वविद्यालय के अतिरिक्त दो महाविद्यालय है जिसमें मैंने केवल विवि और एक महाविद्यालय मे ही परीक्षा दी थी, और पूरा विश्वास था कि मै क्वालीफाई कर जाएगा किंतु अपना सोचा कुछ होत नही हरि सोचा सब होय और ए‍डीसी महाविद्यालय की प्रवेश परीक्षा मे केवल 4 अंकों से चूक गया, अगर मैने सीएमपी मे भी पर्चा भर दिया होता तो ठीक होता किन्तु प्रवेश हो ही जायेगा, असत्‍य साबित हुआ। आरक्षण की मार भी लगी, एससी/एसटी के छात्रों का प्रवेश 105 अंक पर ही होगा। मेरा सोचना भी गलत न था क्योंकि जब 2003 मे स्नातक प्रवेश परीक्षा मे मेरा 15000 छात्रों मे 111वॉं स्थान था। कुछ मित्रों ने कहा कि एलएलबी की करनी है तो कही से भी कर लो पर मन नही मान रहा था कि जब संगम के तट पर (इलाहाबाद विश्‍वविघालय) हूँ तो स्‍नान के लिये कुनदी के तट पर जाऊँ। सो अब 2007 मे लक्ष्‍य है कि अपने लक्ष्‍य की प्राप्ति करूँ, जहॉं कमी रख गई है वह पूरी करूँ।

साल 2006 मे कुछ स्वभाव वश गलतियां हुई पर साल के अंतिम दिन तक मैने सुधार करने की कोशिश की और सफल रहा। एक विवाद जो लम्बे समय तक चला और चलता रहता किन्तु उसका भी अंत करके सुखद अहसास हो रहा है।

मैने व्यक्तिगत कारणों से दो बार न लिख पाने मे असमर्थता जाहिर किन्तु आज तक लिख रहा हूँ। एक चुनाव का मौसम भी आया, मै जान रहा था कि मेरी कोई सम्भावना नही है, कईयों श्रेष्ठों के बीच में अन्तिमवॉं स्थान दिया जाना तो वह भी मेरे लिये बहुत अधिक होता। संजय भैया ने चुनाव रिजल्ट की घोषणा कि मुझे मालूम था कि मेरा नाम न होगा। किंतु एक बार मन मे विश्वास तो था कि शायद कि मेरा नाम हो सकता है पर नहीं था, थोड़ा अटपटा सा लगा,मन मे कई विचार आये कि मेरे सभी चिट्ठी पर विचार नहीं किया गया होगा क्योंकि कविता अलग लिखता हूँ फोटो ब्लॉग अलग है और अब तो कविता भी शैलेश जी के कवि मित्र पर जा रही है, पर यह सब केवल मन को तसल्ली देने तक ही ठीक था क्योकि मै क्‍या था वह मै जानता था, पर जब बंधु गिरिराज न थे तो मै क्‍या हस्‍ती था जो आता। गिरिराज के नाम न होने से कुछ दुख तो जरूर हुआ क्योंकि उन्होंने कम समय जो भी लिखा वह कि ग्रन्‍थ से कम न था।

एक बार मन मे था कि चुनाव मे भाग ही न लिया जाये पर अपने आप को परखने के लिये यह जरूरी था पर यह कोई प्रतियोगिता थोड़े ही थी कि हम हार गये, हम सभी हार के भी जीत का का स्वाद ले रहे है। कोई भी जितेगा अपना ही जीतेगा और अपने वोट से जीतेगा। तो इसमें किस प्रकार का शोक करना। मुझे किसी से कोई शिकायत कभी नही रही है। हमेशा प्‍यार ही मिला प्‍यास के अलावा कुछ और न मिला, नहीं और कुछ भी मिला कोई मित्र मिला, तो काई भाई तो कोई अभिभावक तुल्य श्रेष्ठ जन तो कोई बहन। जब इतने लोग साथ हो तो कोई हार भी सकता है? आपके दिल मे सदा जगह बनी रहे यही मेरी वास्तविक जीत होगी।

आप सभी का स्नेह मुझे लगातार मिलता रहे यही अभिलाषा है। अपना नववर्ष तो विक्रमी संवत होता है किन्तु लोग यही मना रहे है, कोई गलत नहीं है पर अपने नव वर्ष को भी भूलना नहीं चाहिए। आप सभी को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं



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