क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?




मै भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे क्रिकेट की बात नही कर रहा हूँ। मै आज बात करने जा रहा हूँ, मुम्बई और पंजाब के बीच खेले जा रहे रणजी किक्रेट मैच की। मै रणजी की बात कर रहा हूँ, मुझे मूर्ख ही कहा जाएगा क्योंकि भारत में रणजी की बात करने वाले को मूर्ख ही कहा जाता है। वो भी तब जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वनडे मैच आ रहा हो और भारत के सामने 350 रनों का विशाल लक्ष्य हो।
जिसे जो कहना हो कहे पर मै तो बात आज रणजी की ही करूँगा। आज पेपर में कल के मुंबई और पंजाब खेल खत्म होने पर खबर थी - पंजाब का पलटवार शीर्षक था पंजाब ने मुंबई के 244 के स्कोर पर सात विकेट ले लिए थे और पंजाब 14 रनों की बढ़त पर था। पर आज के तीसरे दिन जब मुम्बई न बैटिंग 244 के स्कोर पर सात पर शुरू की तो 471 के स्कोर पर 9 विकेट पर मुंबई को घोषित करनी पड़ी, अर्थात 7 और 8 वें विकेट की साझेदारी में कुल 227 रन बने, वाकई है न किक्रेट अनिश्चितता का खेल ? नौवें नंबर पर बैटिंग करने उतरे रमेश पोवार ने शतक लगा कर 125 पर नाबाद रहे।
रणजी के खेल के प्रति न तो बीसीसीआई अपनी रूच‍ि दिखाती है और न ही सरकार, यही कारण है कि रणजी जैसे घरेलू महत्‍पूर्ण मैच के खिलाडियो के प्रदर्शन का नकार दिया जाता है। चेतेश्‍वर पुजारा ने रणजी ट्राफी के नौ मैच में 82.36 की औसत से 906 रन बनाए जिसमें चार शतक शामिल हैं। चोपड़ा ने रणजी और विजय हजारे दोनों में 60 से अधिक औसत से रन बनाए लेकिन यह चयनकर्ताओं का ध्यान खींचने के लिए पर्याप्त नहीं था। गुजरात के पार्थिव पटेल ने तो विकेट के आगे और विकेट के पीछे दोनों भूमिकाओं में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। 
भारत के वर्तमान समय के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज अजीत अगरकर को भी लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि वो अपने 300 वे विकेट से मात्र 12 विकेट दूर है, और लगातार रणजी में उम्दा प्रदर्शन कर रहे है। गुजरात के स्पिनर मोहनीश परमार [पिछले रणजी सत्र में 42 विकेट], ने अपने प्रदर्शन से कई पूर्व क्रिकेटरों को कायल बनाया लेकिन वह भी बालाजी [36 विकेट] और सिद्धार्थ त्रिवेदी [34 विकेट] की तरह चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। आखिर ये क्रिकेटर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे है तो भी उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह क्यो नही मिल रही है ?
क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?
 


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