दीवार मे सेध



कोई चुल्‍लू भर पानी दे दे

कोई चुल्‍लू भर पानी दे दे

11, 0, 15, 18, 9, 26, 6, 0, 7 और 4 यह कोई लॉटरी का नंबर नहीं है। कि जो आप अपनी लॉटरी के नंबरों को मिला रहे है यह वे रन है जो पिछले दस पारियों में द्रविड़ के बैट से निकले है। यह वही द्रविड है जो भारतीय क्रिकेट के मजबूत दीवार के नाम से विख्यात थे और गांगुली के कप्तान के विकल्प के रूप भी। मगर आज इस दीवार में लोना कैसे लग गया? इसका उत्तर तो द्रविड़ के पास भी नहीं होगा। कुछ इसी तरह की पारियों के कारण गांगुली की विदाई की गई थी। गांगुली की विदाई का कारण उनका रन न बनाना न होकर ग्रेग चैपल की प्रयोगशाला में हस्तक्षेप था जो जो चैपल को पसन्द न था । क्योंकि तत्कालीन परिस्थितियों में भले ही गांगुली रन नहीं बना रहे थे किन्तु टीम अच्छा प्रदर्शन कर रही थी। पिछले 5 साल के क्रिकेट के इतिहास में पहली बार हुआ होगा कि भारत फाइनल में स्थान बनाने से चूक गया।
भारतीय क्रिकेट में जो कुछ हो रहा है वह शुभ प्रतीत नहीं हो रहा है, जिस प्रकार द्रविड़ के दब्‍बू कप्तानी के आगे भारतीय खिलाड़ियों का मनोबल गिर रहा है, जो आज हो रहा है वह गांगुली के समय मे नही था। आज केवल तेंदुलकर का बल्ला बोल रहा है इसका कारण भी है यही है कि वे एकमात्र शक्‍स है जिसका टीम में स्थान पक्का है अन्यथा हर भारतीय खिलाड़ी भारतीय क्रिकेट टीम मे अपना अंतिम मैच खेल रहा होता है और यही कारण है प्रत्येक खिलाड़ी के मनोबल मे गिरावट आया है। किन्तु यही टीम थी जिसका नेतृत्व गांगुली कर रहे थे और तेंदुलकर और गांगुली को छोड सभी अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन कर रहे थे। किन्तु आज परिस्थितियां बदल गई है। एक समय भारतीय क्रिकेट टीम संघर्ष के दौर मे थी, और भारत की दीवार के लिये भी टीम मे जगह नही थी, किन्तु गांगुली के नजरो मे द्रविड़ की भूमिका महत्वपूर्ण थी और एक विकेटकीपर के तौर पर द्रविड़ को टीम मे शामिल किया और उन्होंने अपने संघर्षों के दौर मे अच्‍छा प्रदर्शन भी किया यही होता है कैप्टन का सहयोग जो खिलाड़ियों का मनोबल बृद्धि करता है। मगर यह द्रविड के मे नही है। आज जो प्रयोग इरफान पठान के साथ किया जा रहा है यही गागुली ने भी किया था जब अजित अगरकर के साथ को तीसरे नम्‍बर पर भेजा था और उन्‍हो ने भी अपना सर्वश्रेष्‍ठ किया था। पर गांगुली के प्रयोग को टीम में भय फैलाने की संज्ञा दी गई, और आज जो हो रहा है वह प्रयोगशाला की उपज बताई जा रही है। गांगुली के समय अनेको भारतीय खिलाड़ी रेटिंग में शीर्ष पर रहते थे और शीर्ष 20 में यह संख्या 5 से 6 खिलाड़ियों की होती थी, भारत वनडे में दूसरे नंबर की टीम होती थी, गेंदबाज भी अपनी भूमिका में फिट रहते थे पर आज दहशत फैलाई जा रही है चैपल द्वारा दामे मूक समर्थन द्रविड़ दे रहे है। जो गड्ढे द्रविड़ ने कप्तानी प्राप्त करने के लिये खोदे थे आज उसमें ही फंस रहे है। हर खिलाड़ी का अच्छा और खराब दौर आता है अब समय द्रविड़ का है और देखना है कि चैपल तथा चयन समिति कब तक द्रविड़ को अभयदान देती है।


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गांधीवाद खडा चौराहे पर !




मोहनदास करमचन्द्र गाँधी
मोहनदास करमचन्द गांधी

 

देश की सत्ताधारी पार्टी कांग्रेस के द्वारा अलग-अलग समय के अलग-अलग नेतृत्व के संबंध को लेकर आज देश दुविधा में है। आज सम्पूर्ण देश सिर्फ यही सोच रहा है कि कांग्रेस तब ठीक थी अथवा अब। मैं बात कर रहा हूं आज से 75 साल पहले की घटना कि जब कांग्रेस का नेतृत्व अप्रत्यक्ष रूप से गांधी जी करते थे, तब जो स्थिति कांग्रेस में महात्मा गांधी की थी आज उससे भी बढ़कर सोनिया गांधी की है। व्यक्ति तथा उद्देश्य अलग-अलग है किन्तु घटना एक ही है उस समय भी संसद (नेशनल असेम्बली) में बम विस्फोट किया गया था आज भी संसद पर हमला किया गया है। तब हमला करने का मकसद देश भक्ति थी और आज वतन के साथ गद्दारी है।
आज संसद पर हमला एक वाले आतंकवादी की फांसी की माफ़ी वही पार्टी कर रही है जिसने वीर शहीदों भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु की फांसी माफ़ी का विरोध किया था, गांधी जी का कहना था कि मैं अहिंसा के मार्ग रोडा डालने वाले का समर्थन नहीं करूंगा, तब के देश भक्त अहिंसा के मार्ग में रोड़ा थे तो आज के गद्दार कौन शान्ति के कबूतर उडा रहे है? यह वही पार्टी है जब तीनों देशभक्तों को फांसी पर लटकाया जा रहा था तो कांग्रेस गा रही थी- साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। तब से आज तक इस पार्टी ने कमाल करने में कहीं कमी नहीं की है, तब कांग्रेस में गांधीवादी के रूप में कमाल हो रहा था तो आज आतंकवादी के रूप में हो रहा है। आज कांग्रेस बीच चौराहे पर खडी है, वह तब से आज के दौर में 180 अंश पलट चुकी है। आज कांग्रेस के एक मुख्यमंत्री फांसी का विरोध कर रहे है तो कांग्रेसी नेतृत्व मूक दर्शक बनी हुई है, तब भी कांग्रेस मूकदर्शक की भांति खडी थी जब पूरा देश गांधी जी से तीनों शहीदों की प्राणों की भीख मांग रहा था। पूरे देश को पता था कि गांधी जी ही वीर शहीदो भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी से बचा सकते है पर अपनी हठधर्मिता के कारण गांधी जी ने फांसी से माफ़ी बात नहीं की, अन्यथा गांधी ही वह नाम था जो अंग्रेजों से कुछ भी मनवा सकता था। उसके सिर पर भूत सवार था कि अहिंसा का, पर अहिंसा की नाक आगे अंग्रेजों ने कितनों का दमन किया तब कहां था गांधी की अहिंसा। आज उस पार्टी के एक मुख्य मंत्री आतंकवादी का समर्थन कर रहे हैं। कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी मौन हैं। इस मौन का अर्थ समर्थन माना जाए या असमर्थित। जहां तक पार्टी प्रवक्ता सिंघवी की बात है वे अपने बयान में मुख्यमंत्री का समर्थन कर चुके हैं। आज देश के समक्ष प्रश्न है क्या वही गांधी की कांग्रेस है यह फिर गांधी के आदर्श गांधी के साथ दफना दिये गये?
वह समय देश की आजादी का था देश के बच्चे की अपेक्षा थी कि गांधी जी इरविन पैक्ट में अपनी मांगों में भगत सिंह आदि की फांसी को माफ़ी की मांग रखें किंतु गांधी ने स्पष्ट कहा था इनकी माफी हिंसा को बढ़ावा होगी। हम हिंसा का समर्थन नहीं कर सकते। आज देश के प्रत्येक देश भक्त व्यक्ति की इच्छा है कि लोकतंत्र की हत्या करने वाले अभियुक्त को फांसी दी जाये, किन्तु आज का नेतृत्व कुछ और सोच रहा है। यही बात मन में खटकती है। प्रश्न उठता है कि क्या कांग्रेस सदैव देश की सामूहिक इच्छा के विपरीत काम करेगी? इससे तो यही प्रतीत होता है गांधीवाद दो अक्टूबर तक श्रद्धा के फूलों तथा नोटों पर फोटो तक ही सीमित रह गया है। और इन नेताओं ने गांधीवाद को वोट की खातिर चौराहे पर लाकर खडा कर दिया है। आज उनके वंशज गांधीवाद की नींव में मट्ठा डालने का काम कर रहे है । जो भूल गांधी ने तब की थी आज उनके वंशज कर रहे है।


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