उत्‍तर प्रदेश की राजनीति




हाल के वर्षों में राजनीति इतनी गन्‍दी हो गई है कि राजनीति का नाम लेने मात्र से उल्टी आती है। जैसा कि राजनीति का घिनौना रूप राजनीति की जन्म भूमि उत्तर प्रदेश में देखने को मिलता है, इस कारण राजनीतिक दृष्टि से मुझे यह कहते हुए शर्म आती है कि मैं इस प्रदेश का हूँ।

राजनीति मेरे प्रिय विषयों में रहा है आज भी मुझे याद है कि मैंने अपने रिश्ते के अधिवक्‍ता बड़े भाई को राजनीति प्रश्नोत्तरी में हरा कर आज से 10 साल पहले 100 रुपये की शर्त जीती थी। तब के समय के बहुत पहले से ही मैं राजनीति को निकटता से देखता आया हूँ। मैं अपने आपको भारतीय जनता पार्टी का समर्थक मानता हूँ पर इतना अंध नहीं कि हर गलत निर्णय पर मैं मौन धारण करता रहूँ।

आज के उत्तर प्रदेश के हालत देख कर मेरा मन दुखित होता है कि क्या यही है लाल बहादुर शास्त्री का उत्तर प्रदेश? आज उत्तर प्रदेश की जो दशा है उसके लिए अगर कोई पार्टी सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वह है भारतीय जनता पार्टी। भारतीय जनता पार्टी में भी अगर कोई व्यक्ति सबसे ज्यादा, ज्यादा ही नहीं पूर्ण रूप से कोई जिम्मेदार है तो वे है प्रदेश विधानसभा के तत्कालीन अध्यक्ष केसरी नाथ त्रिपाठी जो इस समय पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष है, और दूसरे माननीय है प्रदेश विधान सभा के पार्टी के नेता लाल जी टंडन।

आज जो कुछ हो रहा है उसके जनक केसरी नाथ त्रिपाठी है, तत्कालीन परिस्थितियों में जब बहुजन समाज पार्टी मे असंवैधानिक विभाजन हुआ तो उसको मान्यता उपरोक्त महोदय ने दिया था। जो आज नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे है, उस समय क्या इनकी नैतिकता घास चरने गई थी? इन्होंने न कि नये दल में रूप में मान्यता दी वरन उनके समाजवादी पार्टी के विलय को भी मान्यता दी............................. बस इतना ही लिखने को बहुत कुछ है पर मन नहीं कर रहा है। बात पूरी न कर पाने के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ।

आगे फिर कभी।



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संजय भाई की टिप्पणी






मैंने अपने पिछले पोस्ट में एक चित्र और कविता प्रकाशित किया था तथा इसमें संजय भाई की टिप्पणी ने मुझे आगे यह लिखने के लिये प्रेरित किया। संजय भाई ने क्या कहा आप वही जाकर देखे तो अच्छा होगा। किन्तु मैने उन्होंने जितना कहा और मैने जितना पढ़ा है उससे तो यही प्रतीत हो रहा है कि वे यह कहना चाह रहे है कि हिन्दू धर्म प्राचीन काल से ही अन्य धर्मों को आत्मसात करता आ रहा है, किन्तु अन्य धर्मों में हिंदू धर्म जैसा भाव नहीं है।

संजय भाई ने जो कहा वह सही है, हिन्दू धर्म ने सदैव ही सभी धर्मों के साथ मैत्री का भाव रखा, जो शांतिप्रिय धर्म तथा आक्रमणकारी धर्म आये सभी के साथ समान भाव रखा। यही कारण है कि जब भारत का संविधान बना तो भारत को एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की घोषणा की गई।

जब हम हिन्दू धर्म की अन्य धर्मों के साथ तुलना करते है तो लगता है अन्य धर्म हिन्दू धर्म की इस करुणा को उसकी कमजोरी समझते है। हिन्दू धर्म सदैव सभी धर्मों के साथ वसुधैव-कुटुम्बकम् की भावना रखता है। सभी धर्मों की अच्छाइयों को आत्मसात किया है।

जब हम भारत मे इस परिवेश को देखते है तो अत्यंत पीड़ा होती है। अन्य धर्म के अनुयायी धन को लोभ देकर मतान्तरण करवाते है। अभी हाल मे ही एक पादरी द्वारा धन ले-दे कर ईसाई धर्म की मान्यता देने का मामला सामने आया है।

जब हम भारत के आदिवासी इलाकों मे जाते है तो देखने को मिलता है कि ईसाई मिशनरी द्वारा किस प्रकार भोले भाले हिंदुओं के सामने हिन्दू देवी देवताओं को अपमानित कर ईसाई धर्म को श्रेष्ठ बताने को प्रयास करते है, और धन तथा अनय ह‍थगन्‍डों से धर्मान्‍तरण करने के प्रयास बन्‍द होगें। या कि पूर्ण रूप से धर्मांतरण बन्‍द हो, जबकि स्वेच्छा से किया जाये।

हिन्दू धर्म तो सदैव ही कह रहा है वसुधैव-कुटुम्बकम पर ईसाई धर्म कब कहेगा और अपने अनर्गल प्रयास बंद करेगा।

संजय भाई आपका नामोल्लेख बिना पूर्व अनुमति के किया है , अगर आपको खराब लगे तो मै आपका नाम हटाने या पूरा लेख हटाने को तैयार हूँ।


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