प्रतीक जी का साक्षात्‍कार : न तुम काबिल न हम काबिल



हिन्‍दी ब्‍लॉग के सबसे युवा चिठ्ठाकार श्री प्रतीक पाण्डेय जी का कल जन्‍मदिन था। युवा के साथ साथ प्रतीक जी का लेखन काफी उम्दा है, जिससे हिन्‍दी ब्‍लॉग के पाठक काफी प्रभावित रहते है। हिन्‍दी ब्‍लॉग के साथ साथ प्रतीक जी अंग्रेजी ब्लॉग मे भी हाथ आजमाते रहते है, और वहां पर भी इन‍के नियमित पाठक है। सर्वप्रथम तो मै उन्हे जन्मदिन कि बधाई देगा कि यह दिन उनके जीवन मे हमेशा प्रसन्नता ले कर आये। वैसे मेरा उनका साक्षात्कार लेने का कोई मन नही था किंतु अचानक किस प्रकार यह मन बन गया कि मैंने उनका साक्षात्कार ले ही लिया।

हमेशा की तरह आज मैने उनके गपशप कमरे की हरी बत्ती जलती देख कर मिलने जा पहुचा, प्रतीक जी उपस्थित भी थे। मेरे उनके बीच जो बात हुई वह निम्न है--

स्‍वयं प्रतीक भाई जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, जल्दी से मिठाई खिलाएं। :)

प्रतीक जी (मुस्कुराते हुए) धन्यवाद, आपके लिए मिठाई रखी है, आगरा कब आ रहे हैं :-)

स्वयं- (मजाक के मूड मे) आगरा, क्या आपने ने पागल समझ रखा है :) आयेगें जरूर आयेंगे, पर समय लगेगा किंतु पगलाने के बाद :)

प्रतीक जी: (मजाक के मूड मे) नहीं... पागल तो नहीं समझा है। लेकिन अगर आप मिठाई खाने के लिए आगरा न आएँ, तो उससे भी गए-बीते हैं। :-) हम तो मिठाई खाने कहीं भी चले जाते हैं :-)

स्‍वयं: (शिकायती लहजें में) कामधेनु और सुलाकी की मिठाई मेरे पास रखी है कब खाने आ रहे है? अभी तक तो आप प्रयाग आये नही ?

प्रतीक जी विनम्रता के साथ) अरे, मैं तो भूल ही गया था। परीक्षाएं खत्म हो जाए, फिर आता हूँ। :-)

स्‍वयं स्वागत है, आपका इन्तजार रहेगा। आपने आज क्या क्या किया? क्योकि आज का दिन आपका है। प्रतीक जी कुछ ख़ास नहीं किया... वही सब कुछ किया जो रोज़ करता हूँ।

स्‍वयं (शरारत की मुद्रा मे) कुछ खास जो खास लोगों को बताते हो :)

प्रतीक जी (मुस्कुराते हुए) नहीं, कुछ भी ख़ास नहीं :-)

स्‍वयं (शंकित मन से) क्या आप मुझे आपने जन्म दिन का छोटा सा साक्षात्कार देगें? मेरे ब्लाग के लिये

प्रतीक जी (गंभीरता के साथ) हाँ, बिल्कुल।(हंसते हुऐ) लेकिन मुझे नहीं लगता कि मैं किसी साक्षात्कार देने के काबिल हूँ।

स्‍वयं (साथ साथ हँसते हुऐ) तो मै ही कहॉं लेने लायक हूँ, कहावत है न जब मिल बैठेगें दो अंधे यार

प्रतीक जी तो फिर ठीक है :-)

तो आईये शुरू करते है आपका और मेरा पहला साक्षात्कार (दोनो के द्वारा जोरदार ठाहके के साथ शुरू होता है साक्षात्कार)

प्रश्‍न कर्ता पहला प्रश्न

आपका हिन्दी चिट्ठाकारी मे प्रवेश कैसे हुआ?

प्रतीक जी पहले मैं अंग्रेजी में एक ब्लॉग लिखा करता था। तभी इच्छा हुई कि हिन्दी में भी एक ब्लॉग बनाया जाए। हिन्दी में ब्लॉग बनाने के बाद पता चला कि क़रीब दस लोग पहले से हिन्दी में ब्लॉग लिख रहे हैं। तभी से हिन्दी ब्लॉग लेखन शुरू हो गया।

प्रश्‍न कर्ता दूसरा प्रश्न

जैसा कि आप हिन्दी के प्रारंभिक चिट्ठाकारों मे से है, और जमाने मे हिन्दी लिखने और पड़ने बाले भी कम थे। जब आपको पहली टिप्पणी मिली तो कैसा लगा ?

प्रतीक जी जब मुझे पता चला कि हिन्दी में अन्य ब्लाग भी हैं, तो कुछ ब्लॉग्स पर मैंने टिप्पणी की। उस वक़्त सभी नए चिट्ठाकारों के स्वागत् के लिए उत्सुक रहते थे। तो सभी ने उत्साहवर्धन के लिए टिप्पणी की।

प्रश्‍न कर्ता तीसरा प्रश्न

आपको कैसे ब्लाग लिखने की सूझी ? (प्रतीक जी कुछ सोच रहे थे, फिर प्रश्नकर्ता ने कहा) शायद यह पहले प्रश्न का समरूप है या आप उत्तर देना चाहेगें?

प्रतीक जी हाँ, तभी मैं सोचने में लगा था कि क्या उत्तर हो सकता है। इसका भी उत्तर तो वही पहले वाले की तरह है।

प्रश्‍न कर्ता चौथा प्रश्‍न

आपकी अब तक कि सबसे अच्छी पोस्ट कौने सी थी ?

प्रतीक जी पोस्ट का नाम है - जिम में मेरे अनुभव। यह पोस्ट मुझे सबसे अच्छी लगती है, क्योंकि इसमें लिखा एक-एक शब्द सच है।

बहुत खूब (प्रश्‍नकर्ता ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुऐ कहा)

प्रश्न कर्ता पाचवा प्रश्न

जब आपको लगता है कि यह मेरी सबसे अच्छी पोस्ट है और कोई टिप्पणी करने नही आता या जैसी टिप्पणी आप चाहते है, (सकारात्मक या नकारात्मक में) नही मिलती है तो कैसा लगता है ?

प्रतीक जी तो काफ़ी ख़राब लगता है और लगता है कि लोगों में कुछ समझ नहीं अच्छी और खराब पोस्ट की :-)

प्रश्‍न कर्ता आपके जीवन मे कोई ऐसा क्षण जो आपको याद हो।

प्रतीक जी वैसे तो मुझे अपना पूरा जीवन ही याद है, लेकिन मुझे सबसे ज़्यादा ख़ुशी तब हुई थी जब मैंने पहली बार स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण साहित्य ऑनलाइन ख़रीदा था :-)

है न अजीब :-) (मेरी रजामंदी/हूकारी लेते हुऐ)

(प्रश्नकर्ता ने रजामंदी देते हुऐ कहा) जी हॉं यह तो बहुत ही रोमांचक होता ही है, जब कोई नया काम आप करते है।

प्रश्नकर्ता छठा प्रश्न

अक्सर सभी ब्लॉगरों की समस्या होती है समय संयोजन और परिवार के द्वारा ब्लागिंग मे सहयोग की। यह आपके साथ कैसे होता है? अर्थात कि आप समय संयोजन कैसे करते है, और आपके परिवार का आपके ब्लागिंग के प्रति क्या दृष्टिकोण रहता है?

प्रतीक जी नहीं, मेरे साथ कभी ऐसा नहीं होता है। क्योंकि मैं ब्लॉगिंग के मामले में बहुत आलसी जीव हूँ और केवल तभी ब्लॉगिंग करता हूँ जब मेरे पास पर्याप्त खाली समय होता है।

प्रश्नकर्ता और आपके परिवार का दृष्टिकोण :) (प्रश्नकर्ता द्वारा परिवार की ओर इंगित करने पर)

प्रतीक जी परिवार वालों को भी कोई समस्या नहीं है।

प्रश्नकर्ता यह तो आपके लिये अच्छा है और हमारे लिये भी (दोनों एक साथ हँसते है)

प्रश्नकर्ता छठा प्रश्न

आपको किस प्रकार के लेख पढ़ने मे अच्छा लगता है?

प्रतीक जी मैं हर तरह के लेख पढ़ता हूँ। पढ़ना मेरा शौक़ है। लेकिन कम्प्यूटर के स्क्रीन पर मुझे ज़्यादा पढ़ने की इच्छा नहीं होती है। छपे हुए शब्द ही अधिक सुहाते हैं। इसलिए छोटी ब्लॉग पोस्ट पसंद आती हैं। हालाँकि हिन्दी ब्लॉग जगत् की लंबी पोस्ट्स भी जैसे-तैसे पढ़ लेता हूँ। :-)

प्रश्‍नकर्ता द्वारा बीच मे टोकते हुऐ यानी कि लोगों छोटी पोस्ट लिखनी पडेगी :)

प्रश्‍न कर्ता सातँवा प्रश्न

क्या आप अपने लेखन मे भी यही मानक रखते है?

प्रतीक जी नहीं, मेरे ब्लॉग पर पोस्ट का आकार विषय के हिसाब से होता है। कभी-कभी पोस्ट लंबी भी हो जाती हैं, लेकिन छोटी पोस्ट लिखने की ही कोशिश करता हूँ।

प्रश्‍न कर्ता आठवॉं प्रश्न

इस समय हिन्दी ब्लाग विवादों का अखाड़ा बन रहा है, ब्लगर कई ध्रुवो मे बंट रहे है। आप इस विषय में क्या सोचते है?

प्रतीक जी फिलहाल ज़्यादा कुछ नहीं कह सकता हूँ, क्योंकि मैं काफ़ी वक़्त से चिट्ठाकारी से दूर हूँ और यहाँ क्या चल रहा है इसकी जानकारी मुझे नहीं है। लेकिन मेरा मानना है कि ब्लॉग जगत् में सबको पहले की तरह एक परिवार बनकर काम करना चाहिए और गुटबाज़ी से दूर रहना चाहिए। हिन्दी चिट्ठाकारी के भविष्य के लिए यही अच्छा है।

साक्षात्‍कार के बीच और कुछ बाते और व्‍यवधान

प्रश्‍न कर्ता क्या आप है? (इंटरनेट लाइन मे व्‍यवधान होने के कारण सम्पर्क टूट गया था)

प्रतीक जी not at my desk

प्रश्‍न कर्ता क्‍या आप है ?

प्रतीक जी काफी देर बाद हाँ, प्रमेंद्र भाई, कहिए

प्रश्न कर्ता कहाँ चले गये थे आप? (चुटकी लेते हुऐ)

प्रतीक जी पास के बाज़ार तक गया था (हँसते हुऐ)

प्रश्‍न कर्ता अच्छा साक्षात्कार मे ही बाजार हो आये

प्रतीक जी हाँ :-)

प्रश्‍न कर्ता कुछ लम्बी तो नहीं खींच रहा है, प्रश्न कठिन तो नही है?

प्रतीक जी हाँ, बहुत कठिन हैं। इतने कठिन तो परीक्षाओं में भी नहीं आते हैं :-)

प्रश्नकर्ता :-) (प्रश्नकर्ता ने भी हल्‍की मुस्कान दिया)

प्रश्नकर्ता नौवां प्रश्न

आपको खाने मे क्या पंसद है?

प्रतीक जी - मैं खाने का बहुत शौकीन हूँ। हर तरह का खाना पसंद है। ख़ास तौर पर पनीर के पकवान और खीर बहुत पसंद हैं।

प्रश्‍न कर्ता अरे वाह सुन कर मुँह मे पानी आ गया (मजाक के लहजे में,)

प्रतीक जी मेरे मुंह में तो बताकर ही पानी आ गया :-) मजाक पर नहले पर दहला देते हुऐ) (दोनो मिलकर हँसते है।)

प्रश्‍न कर्ता 10वॉं प्रश्न

आपकी प्रिय अभिनेत्री कौन है? | कृपया नई मे ही बतायेगा :)

प्रतीक जी नई अभिनेत्रियों में प्रीति जिंटा और ऐश्वर्या राय, अगर ऐश्वर्या राय को अभिनेत्री कहा जा सके तो, वैसे मेरे ख़्याल से वे मॉडल ज़्यादा और अभिनेत्री कम हैं :-)

फिर से कुछ अन्य बातें होने लगी

प्रश्नकर्ता आप 21 साल के पूरे हो रहे है? तो पूरे 21 प्रश्न पूछूँगा कोई दिक्कत तो नही है?

प्रतीक जी हाँ, अभी तो कहीं जाना है। दरअसल भैया को छोड़ने रेलवे स्टेशन जाना है। अगर आप 7 बजे बाद ऑनलाइन आ सकें, तब तो कोई दिक्कत ही नहीं है। नहीं तो आप मुझे प्रश्न ई-मेल कर दीजिए, मैं 7 बजे उत्तर दे दूंगा।

प्रश्नकर्ता ईमेल ठीक रहेगा :)

प्रतीक जी ठीक है। आप ई-मेल कर दीजिए। मैं चलता हूँ फिर मिलेंगे नमस्कार

प्रश्नकर्ता : नमस्कार

ईमेल से किये गये प्रश्‍न

प्रश्‍न कर्ता आपने कभी कोई कविता लिखी है? यदि हॉं तो पोस्ट किया है?

प्रतीक जी कविता तो नहीं कह सकते, लेकिन एक-दो बार कुछ तुकबंदियाँ की थीं। उन्हें पढ़ने के बाद ऐसा लगा कि अगर मैं आगे कविता न लिखूँ तो ही पाठकों की प्राण रक्षा हो सकेगी। :-) सो आगे कभी कविता लिखने का विचार मन में पैदा नहीं हुआ।

प्रश्‍न कर्ता आपकी मनपसंद पुस्तक कौन सी?

प्रतीक जी मैं अपने जीवन में सबसे ज़्यादा स्वामी विवेकानंद के विचारों से प्रभावित हूँ। स्वामी विवेकानंद का सम्पूर्ण साहित्य मुझे बहुत पसंद है।

प्रश्नकर्ता स्कूल के दिनों मे कोई शरारत या यादगार घटना?

प्रतीक जी स्कूल के दिनों में मैंने बहुत-सी शरारतें की हैं। हाँ, सबसे यादगार घटना यह रही है कि एक बार स्कूल के वार्षिकोत्सव में मुझे ढेर सारे इनाम मिले थे, इतने सारे कि उन्हें एक झोले में भरकर घर ले जाना पड़ा था।

प्रश्‍न कर्ता आपका मनपंसद खिलाड़ी कौन?

प्रतीक जी दूसरे करोड़ों भारतीयों की ही तरह मुझे भी सचिन तेन्दुलकर सबसे ज़्यादा पसंद है। उम्मीद है कि इस विश्व-कप में भी सचिन का जादू चलेगा।

प्रश्‍न कर्ता एक दिन के लिये आपको भारत का प्रधानमंत्री बना दिया जाये तो आप क्या करेगें।

प्रतीक जी एक दिन में कुछ नहीं होने का। भारत में करने और होने को बहुत कुछ है। वैसे भी हर समस्या का हल राजनीति और सत्ता के ज़रिए नहीं हो सकता है। बहुत-सी गम्भीर समस्याएँ हैं जिन्हें भिन्न स्तर पर हल करने की ज़रूरत है।

प्रश्‍न कर्ता आप आपने जन्म दिन को किस तरह मानाऐगें।

प्रतीक जी उसी तरह मनाऊँगा जैसे बाक़ी दिन मनाता हूँ और वैसे भी अपने लिए तो 'हर दिन होली रात दीवाली' है।

प्रश्‍न कर्ता आपके जिन्दगी मे प्यार के क्या मायने है?

प्रतीक जी इस सवाल को सुनकर लग रहा है कि मानो मैं कोई अभिनेता हूँ, क्योंकि अक़्सर ये सवाल फ़िल्मी पत्रकार अभिनेताओं से करते हैं। :-)
मेरा मानना है कि हर इन्सान की ज़िन्दगी में प्यार की वही अहमियत होती है, जो हवा, पानी की होती है। प्यार के बिना ज़िन्दा रहना नामुमकिन है।
प्रश्‍न कर्ता आप अपने कैरियर मे किस क्षेत्र बनाना चाहते है?

प्रतीक जी फ़िलहाल तो सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में ही अपना करियर बनाना चाहता हूँ। आगे रब जाने।

प्रश्‍न कर्ता आपको हिन्दी ब्लाग का काम देव कहा जाता है तो कैसा लगता है? पाठक गण अक्सर आपके टाइमपास का इंतजार करते रहते है। कैसे खोजते है आप टाइम पास के इतने अच्छे साधन ? :)

प्रतीक जी अपनी तारीफ़ तो सभी को अच्छी लगती है, भले ही वह झूठी क्यों न हो। लेकिन मेरा मानना है कि लोगों को मुझे 'कामदेव' कहने से पहले यह भी सोचना चाहिए कि यह सुनकर कामदेव को कितना बुरा लगेगा।

लोग जो मनोरंजक ई-मेल मुझे फ़ॉरवर्ड करते हैं, उन्हीं को मैं टाइमपास पर चिपका देता हूँ। इसमें मेरी अपनी मेहनत और दिमाग़ का रत्ती भर भी नहीं है। सारा श्रेय उन लोगों का है जो अपना क़ीमती वक़्त लगाकर यह काम करते हैं।

प्रश्‍न कर्ता टाईमपास की कोई टिप्प्णी जो आपको अच्छी लगी हो और याद हो।

प्रतीक जी टाइमपास पर कई रोचक टिप्पणियाँ होती रहती हैं। किसी एक को चुनना बाक़ियों पर अन्याय करना होगा।

करीब तीन घन्‍टे बाद फिर मिलना हुआ और बात प्रारम्‍भ होती है।
प्रश्‍नकर्ता प्रतीक जी, प्रश्न तो आपको मिल गये होगें
प्रतीक हाँ, उन्हीं के उत्तर लिख रहा था :-)

प्रश्‍नकर्ता जी धन्यवाद, जो आप मेरा इतना सहयोग कर रहे है।
प्रतीक जी क्या मज़ाक कर रहे हो भाई। आप मेरा साक्षात्कार लेकर मुझे celebrity बना रहे हो, तो इतना करना तो बन ही पड़ता है। :-) (भीनी भीनी मुस्‍कराहट देते हुऐ)
प्रश्‍नकर्ता :-) प्रश्‍नकर्ता ने भी मुस्‍कराहट का रिपलाई किया।

कुछ देर बाद

प्रश्‍नकर्ता अभी कुल 20 प्रश्न हुऐ है 1 बाकी मुझे पूछना बाकी है।

फिर शुरू होता है दौर

प्रतीक जी : कौन-सा प्रश्न बाक़ी है भाई? पूछिए... 21 प्रश्नों के उत्तर देकर लगेगा कि पूरे 21 साल बेकार नहीं गए अब तक। कोई तो 21 प्रश्न पूछ रहा है :-)

(प्रश्नकर्ता भी हँसता है)

प्रश्न कर्ता 21 वॉं प्रश्न
कभी आपके जीवन मे दो रास्ते आये पहला चिट्ठाकारी दूसरा कोई और तो आप किसको चुनेंगे ?

प्रतीक जी यह तो पक्के तरीके से तभी कहा जा सकता है जब पता हो कि दूसरा रास्ता क्या है।

पर इसका उत्तर तो यह है कि ब्लॉगिंग को मैं अधिकांश चीज़ों की तुलना में कम महत्व देता हूँ। इसलिए छोड़ना पड़े तो शायद सबसे पहले ब्लॉगिंग ही जाएगी। :-)

आप रखने के लिये स्वतंत्र है

करियर, मित्र या जो आपकी प्रिय हो आप कंफ्यूज है कया? :)

प्रतीक जी हाँ... समझ नहीं आ रहा कि किसे रखूँ दूसरी चीज़ की जगह पर :-)

me: एक प्रश्न और है, इसके अलावा जो कभी मै अपने विषय मे सोचता हूँ

प्रतीक जी कहिए... शायद वो कुछ सरल हो :-)

me: इसका उत्तर नही मिलेगा

?

प्रतीक जी इसका उत्तर तो यह है कि ब्लॉगिंग को मैं अधिकांश चीज़ों की तुलना में कम महत्व देता हूँ। इसलिए छोड़ना पड़े तो शायद सबसे पहले ब्लॉगिंग ही जाएगी। :-)

प्रश्‍न कर्ता 22वॉं प्रश्न था कि आपके पिता जी आपसे कहे कंप्यूटर, ब्लागिंग छोड दो, एक दम से कभी देखना भी मत तो आप ऐसा करेगें?

प्रतीक जी इस बारे में मेरा मानना थोड़ा अलग है क्योंकि मैं ज्यादातर काम अपने सही-ग़लत की सोच के आधार पर करता हूँ

और मेरे हिसाब से अगर पिताजी ऐसा कहें, बिना किसी पुख़्ता वजह के, तो मैं शायद ब्लॉगिंग नहीं छोड़ूंगा :-) मैं बिना किसी ख़ास कारण के ब्लॉगिंग नहीं छोड़ता अगर मुझे ठीक लगेगा और महसूस होगा कि ब्लॉगिंग छोड़ना सही है, तभी छोड़ूंगा... अन्यथा नहीं।

इसी के साथ साक्षात्कार समाप्‍त होता है।

हम लोग पिछले 4 घन्‍टे से हो रही साक्षात्कार से मुक्त हो कर चर्चा मे तल्लीन होते है।

स्‍वयं आज इलाहाबाद मे एयर शो हुआ था वहॉं गया तो सब कुछ खत्म हो चुका था :)

प्रतीक जी ये तो गुगली हो गई :-)

स्‍वयं हा हा

वही यह फोटो ली थी नये यमुना पुल पर

प्रतीक जी अच्छा... नई तस्वीर है, इसीलिए इतने ख़ूबसूरत लग रहे हो

स्वयं आप तो बड़ी जल्दी खूबसूरती पहचान लिये

:)

आज मैने एक लेख पोस्ट किया था अभी तक बोहनी नही हुई

प्रतीक जी हम किए देते हैं, कड़ी दीजिए

स्‍वयं लगता है अबस भाई कखग भाई व तथद भाई सदमे से बाहर नही निकल पाये है। :-)

देता हूँ अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय क्योंकि टिप्पणी करने मे ये ही भाई आगे रहते है।प्रतीक जी हा हा... सही कहा :-)

प्रतीक जी प्रमेंद्र भाई, थोड़ी देर में बात करता हूँ। माताजी बुला रही हैं।

स्वयं ठीक है, यह जरूरी है, नमस्ते पुन: आपको जन्मदिन कि हार्दिक शुभकामनाऐ

प्रतीक जी नमस्ते धन्यवाद


कुछ कमी हो तो क्षमा कीजियेगा


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अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय



अमर बलिदानी बालक वीर हकीकत राय
वीर हकीकत राय
शाहजहाँ के शासन काल की बात है। पंजाब के सियालकोट मे सन् 1719 में जन्में वीर हकीकत राय जन्म से ही कुशाग्र बुद्धि के बालक थे। यह बालक 4-5 वर्ष की आयु में ही इतिहास तथा संस्कृत आदि विषय का पर्याप्त अध्ययन कर लिया था। सियालकोट के एक छोटे-से मदरसे में हकीकत राय पढ़ता था। एक लंबी दाढ़ी वाले मौलवी साहब वहाँ बच्चों को पढ़ाया करते थे। एक दिन मौलवी कहीं बाहर गये तो उनकी अनुपस्थिति में बच्चे खेलने-कूदने लगे। हकीकत राय इस खेल-कूद में सम्मिलित नहीं हुआ, इस पर दूसरे बच्चों ने उसे छेड़ा। एक मुसलमान बच्चे ने हकीकत राय को गाली दी, दूसरे ने सारे हिंदुओं को और तीसरे ने हिंदुओं के देवी-देवताओं को- भगवती दुर्गा को।
इस पर हकीकत चुप न रह सका। वह बोल उठा, ‘अगर मैं भी बदले में यही शब्द कहूँ तो तुम बुरा तो नहीं मानोगे?’ एक बच्चे ने कहा, ‘तो क्या तू ऐसा भी कर सकता है?’ हकीकत राय ने कहा, ‘क्यों नहीं? मुझे भी तो भगवान ने जुबान दी है।’ दूसरा बच्चा बोला, ‘तो कहकर देख।’ और हकीकत राय ने वही शब्द दुहरा दिये। आखिर बच्चा ही तो था और साथ ही अपने धर्म का पक्का भी। चारों ओर सन्नाटा छा गया। मौलवी साहब आये तो मुसलमान बच्चों ने नमक-मिर्च लगाकर सारी घटना उन्हें सुनाई। मौलवी साहब ने आँखें फाड़ते हुए पूछा, ‘हकीकत! क्या सचमुच ही तूने यह सब कुछ कहा है?’ हकीकत ने दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘हाँ, लेकिन उससे पहले इन सबने भी तो मेरी देवी भगवती के लिये वही सब कुछ कहा था।’ मौलवी साहब ने इस्लाम की तौहीन का यह मामला सियालकोट के हाकिम अमीर बेग की अदालत में भेज दिया। वहाँ भी हकीकत राय ने सब कुछ स्वीकार कर लिया। हाकिम ने मुल्लाओं की सहमति ली। उन्होंने बताया कि इस्लाम की तौहीन करने वाले के लिये शहर में मौत की सजा लिखी है।’
Haqiqat Rai
हकीकत राय का बूढ़ा बाप रो पड़ा। उसकी माँ बिलखने लगी। उसकी नन्ही-सी पत्नी बेहोश होकर गिर पड़ी। हकीकत राय की अवस्था उस समय मात्र 13 वर्ष की थी। हाकिम के निर्णय के विरूद्ध लाहौर में अपील भी की गई, वहाँ से भी वही फैसला बहाल रहा। हकीकत जेल की सलाखों के पीछे बैठा था। वह निश्चिंत था, गंभीर था और प्रसन्न भी। मौत का फैसला सुनकर उसके हृदय में घबराहट नहीं थी।
काजी, मुल्ला और उसके बूढ़े माँ-बाप सलाखों के बाहर आकर खड़े हो गये। काजी ने कहा, ‘हकीकत! अगर तू मुसलमान बन जाये तो मरने से बच सकता है।’
हकीकत राय का चेहरा तमतमा उठा। वह कुछ बोलना ही चाहता था कि उसके बूढ़े पिता भागमल हिचकियाँ लेते हुए कह उठे, ‘हाँ-हाँ बेटा, मुसलमान बन जा, अगर तू जीवित रहेगा तो हमारी आंखें तुझे देखकर ठंडी तो होती रहेंगी।’
हकीकत ने कहा, ‘आप भी यही कहने लगे, पिताजी! तो क्या मैं मुसलमान बन जाने पर फिर कभी नहीं मरूँगा? और अगर एक-न-एक दिन मरना ही है तो फिर दो दिन के जीवन के लिये धर्म छोड़ने से क्या लाभ?’ काजी ने कहा, ‘बड़ा लाभ होगा तुम्हें हकीकत।’ शाही दरबार में इज्जत, बेशुमार दौलत और..........।’
वीर हकीकत राय बलिदान दिवस
हकीकत राय हँस पड़ा, ‘बस-बस इतना ही? इतने भर के लिए ही मैं अपना धर्म छोड़ दूँ, काजी साहब? धर्म कभी बदला नहीं जाता, वह तो अटल होता है। जीवन भर के लिए वह हमारे साथ रहता है और मरने पर भी हमारे साथ ही जाता है।’
माता पिता और सम्बन्धियों ने बहुत समझाया, किंतु हकीकत राय टस-से-मस न हुआ। इस्लाम का अपमान करने के अपराध में हकीकत राय का सिर काट देने का आयोजन खुले मैदान में किया गया था। मैदान हिंदू और मुसलमान स्त्री-पुरुषों से खचाखच भरा हुआ था। जिस समय उस मैदान में हकीकत राय लाया गया, वह तलवारों की छाया में था, हथकड़ी-बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, मुसलमानी फौजों से घिरा हुआ था। काजी ने एक बार फिर उससे मुसलमान हो जाने के लिये कहा। उसने फिर उसी दृढ़ता से उत्तर दिया, ‘मैं धर्म नहीं छोड़ सकता, दुनिया छोड़ सकता हूँ।’
मुल्ला ने काजी को संकेत किया और काजी ने जल्लाद को। जल्लाद ने तलवार उठाई और उस फूल जैसे बच्चे को अपनी तलवार के नीचे देखा तो उसका पत्थर-जैसा हृदय भी पिघल गया। तलवार उसके हाथ से छूटकर गिर पड़ी।
काजी और मुल्लाओं की त्योरियां चढ़ गयी। सारी भीड़ में हलचल-सी मच गई। किंतु एक क्षण बाद ही सबने देखा कि हकीकत राय स्वयं तलवार उठाकर जल्लाद के हाथों में दे रहा है। हकीकत ने तलवार देकर कहा, ‘घबराओ नहीं, जल्लाद! लो, अपने कर्तव्य का पालन करो।’ जल्लाद ने तलवार थामी और हकीकत की गर्दन पर दे मारी। एक छोटी-सी किंतु तीखी रक्त की धार पृथ्वी पर बह निकली।

~ वीर हकीकत राय की रागनी ~ वीर हकीकत राय बलिदान दिवस ~ वीर हकीकत की कहानी ~ हकीकत राय का जीवन परिचय ~ धर्मवीर हकीकत राय


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