भूख न लगना या मन्दाग्नि का सरल आयुर्वेदिक निदान



 


 बदलते खान पान और जीवनशैली के कारण लोग अकसर भूख न लगने की समस्या से ग्रसित रहते हैं। लम्बे समय तक समस्या बनी रहे तो गम्भीर परिणाम दिखने लगते हैं। जिससे फ़ूड सप्लीमेंट खाने तक की नौबत आ जाती है। विशेषज्ञों की मानें तो फ़ूड सप्लीमेंट का बहुत दिन तक आहार के रूप में सेवन नहीं किया जा सकता है। आयुर्वेद में भूख न लगने का कारण शरीर की अग्नि का मंद हो जाना माना गया है और इस समस्या को मंदाग्नि रोग कहा गया है। अनियमित खान पान वायु पित्त और कफ़ को दूषित कर देता है और भूख लगना कम हो जाती है। जिस कारण से एसीडिटी हो जाती है, शरीर में दर्द रहता है, मुंह का स्वाद बिगड़ जाता है, पेट में भारीपन लगता है और स्वभाव में चिड़चिड़ापन आ जाता है। अगर संक्षेप में कहें तो शरीर की कार्य प्रणाली बिगड़ने लगती है।

  1. अजीर्ण रोग होने के कारण - मनुष्य की पाचन क्रिया में कोई परिवर्तन होना, पाचन क्रिया में रुकावट आना, अधिक भोजन करना, ठण्डे पदार्थ अधिक खाना आदि कारणों से यह रोग व्यक्ति को हो सकता है। इस रोग के होने के और भी कई कारण होते हैं जैसे- आंतों के अन्दर घाव होना, पेट की श्लैष्मिक झिल्ली खराब होना, शरीर में पित्त का बहाव रुक जाना या कोई अन्य शारीरिक गठन सम्बन्धी दोष का उत्पन्न होना आदि।
  2. अजीर्ण रोग होने के लक्षण - अजीर्ण रोग होने के कारण भोजन करने के बाद रोगी व्यक्ति का भोजन ठीक से नहीं पचता है, उसे खट्टी-खट्टी डकारे आने लगती हैं तथा उसका पेट फूलने लगता है। रोगी व्यक्ति के पेट में हल्का-हल्का दर्द होने लगता है, गले तथा हृदय में जलन होने लगती है, मुंह के अन्दर से पानी बाहर आने लगता है, जी-मिचलाने लगता है, दिल की धड़कन तेज हो जाती है, मल क्रिया बन्द हो जाती है। इसके अलावा दिमागी परेशानी, घबराहट तथा भूख न लगना आदि समस्याएं भी रोगी को हो जाती हैं।
  3. अजीर्ण रोग से पीड़ित व्यक्ति का प्राकृतिक चिकित्सा से उपचार
    पहला प्रयोगः 2 से 5 ग्राम पकी निबौली अथवा अदरक में 1 ग्राम सेंधा नमक लगाकर खाने से या लौंग एवं लेंडीपीपर के चूर्ण को मिलाकर 1 से 3 ग्राम चूर्ण को शहद के साथ सुबह-शाम लेने से मंदाग्नि मिटती है। यह प्रयोग दो सप्ताह से अधिक न करें।
    दूसरा प्रयोगः भोजन से पूर्व 2 से 5 मिलिलीटर नींबू एवं 5 से 10 मिलिलीटर अदरक के रस में सेंधा नमक डालकर पीने से मंदाग्नि, अजीर्ण एवं अरुचि में लाभ होता है।
    तीसरा प्रयोगः हरड़े एवं सोंठ का 2 से 5 ग्राम चूर्ण सुबह खाली पेट लेने से मंदाग्नि में लाभ होता है।

सावधानीः बहुत पानी पीने से, असमय भोजन करने से, मलमूत्रादि के वेगों को रोकने से, निद्रा का नियम न होने से, कम या अधिक खाने से अजीर्ण होता है। अतः कारणों को जानकर उसका निवारण करें। बार-बार पानी न पियें। प्यास लगने पर भी धीरे-धीरे ही पानी पियें एवं स्वच्छ जल का ही सेवन करें। इन सावधानियों को ध्यान में रखने से अजीर्ण से बचा जा सकता है।

कुछ अन्य प्रयोग

  1. जीर्ण रोग का प्राकृतिक चिकित्सा से इलाज करने के लिए सबसे पहले रोगी व्यक्ति को शुरू के 3 दिन कागजी नींबू के रस का सेवन कराके उपवास रखवाना चाहिए या फिर कुछ दिनों तक फलों का रस पिलाना चाहिए।
  2. संतरा, गाजर तथा टमाटर के रस का अधिक मात्रा में सेवन करने से भी अजीर्ण रोग ठीक हो जाता है।
  3. अजीर्ण रोग से पीड़ित रोगी को 4-5 दिनों तक आवश्यकता से कम भोजन का सेवन करना चाहिए। सुबह के समय में एक मीठा सेब या फिर पका टमाटर, दोपहर के समय कोई उबाली हुई सब्जी तथा तीसरे पहर के समय में गाजर, टमाटर, अनन्नास का रस और रात के समय में थोड़ी-सी उबाली हुई सब्जी या फिर इन सभी चीजों का रस पीना चाहिए। इन दिनों में उपचार करने के साथ-साथ रोगी व्यक्ति को गुनगुने पानी से एनिमा क्रिया करनी चाहिए। इससे यह रोग कुछ ही दिनों में ठीक हो जाता है।
  4. रोगी व्यक्ति को कुछ दिनों तक उपवास रखना चाहिए तथा पाचनशक्ति को बढ़ाने के लिए सादा और साधारण भोजन करना चाहिए। इसके साथ-साथ रोगी को हल्का व्यायाम भी करना चाहिए।
  5. अजीर्ण रोग को ठीक करने के लिए शुष्क तथा घर्षण स्नान करना चाहिए और इसके साथ-साथ हल्का व्यायाम भी करना चाहिए। यदि साधारण अजीर्ण रोग है तो वह मात्र इतने उपचार से ही ठीक हो जाता है लेकिन जब यह रोग अधिक गंभीर, प्रबल तथा पुराना होता है उसे ठीक होने में कुछ समय लग सकता है।


भूख न लगने की समस्या का उपचारभूख न लगने की समस्या का निवारण

  1. सोंठ, अजवाइन, छोटी पीपल, काली मिर्च और जीरे को बराबर मात्रा में लें और उसमें थोड़ी हींग मिलाकर महीन चूर्ण बना लें। दो सप्ताह तक प्रतिदिन एक गिलास छाछ के साथ एक चम्मच चूर्ण का सेवन करने से कब्ज़ और पेट की अनेक समस्याओं से मुक्ति मिलती है।
  2. सेंधा नमक, त्रिफला, अजवाइन और हींग को बराबर मात्रा में मिलाकर महीन चूर्ण बना लें; फिर समान मात्रा में पुराना गुड़ मिलाकर छोटी-छोटी गोलियाँ बनाकर रख लें। हर दिन खाना खाने के बाद एक-दो गोलियों को पानी के साथ लेने से खाया हुआ भोजन पचता है और भूख भी बढ़ती है।
  3. 50 ग्राम अजवाइन में 12 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन सुबह उठकर दो ग्राम चूर्ण पानी के साथ खाने से भूख बढ़ती है और वात सम्बंधित समस्याओं का नाश होता है।
  4. सोंठ, बड़ी इलायची, सूखा पुदीना, गुलाब की पंखुड़ियाँ, सफ़ेद जीरा, अनारदाना, आलू बुखारा और हरड को बराबर मात्रा में मिलाकर चूण बना लें और प्रतिदिन थोड़ा थोड़ा खाने से भूख न लगने की समस्या दूर हो जाती है।
  5. सोंठ, भुना सुहागा, हींग, काला नमक और सिरका समान मात्रा में मिलाकर खाने के बाद प्रतिदिन सेवन करने से भूख बढ़ती है।
  6. नीम की निम्बौरियों के साथ हरड का सेवन करने से भूख लगती है और अनेक त्वचा सम्बंधित परेशानियों से छुटकारा मिल जाता है।
  7. प्रतिदिन भोजन करने से पहले अदरक पर सेंधा नमक लगाकर खाने से फिर से भूख लगना शुरु हो जाती है।
  8. सोंठ और गुड़ के साथ हरड चूर्ण का सेवन करने से भूख बढ़ जाती है।
  9. सोंठ, गुड़ और हरड का चूर्ण बनाकर प्रतिदिन मट्ठे के साथ खाने से भूख न लगने की समस्या दूर हो जाती है।
  10. सोंठ, सौंफ और मिसरी को समान मात्रा में प्रतिदिन खाकर पानी पीएँ, इससे मंदाग्नि रोग समाप्त हो जाएगा।
  11. सोंठ का चूर्ण देसी घी में मिलाकर चटाने और गुनगुने जल का सेवन करने से भूख बढ़ जाती है।
  12. गाजर, चुकंदर, टमाटर, पालक, पत्ता गोभी जैसी कई हरी सब्जियों का रस निकालकर प्रतिदिन खाना खाने के आधे घंटे पहले पीने से भूख खुल जाती है।
  13. 1 ग्राम शहद को जायफल के साथ चाटने से जठराग्नि तीव्र होती है और मंदाग्नि का शांत होती है।
  14. अनार और सेब का फल भी क्षुधा बढ़ाते हैं, इसलिए प्रतिदिन इनका सेवन करना चाहिए।
  15. बेल का फल और जूस बनाकर पीने से भूख बढ़ती है और पेट की अनेक समस्याओं में लाभ मिलता है।


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सबका होल निचोड़ - क्‍योकि इन बंदरों का रंग भागवा न हो कर लाल था



 


गुजरात चुनाव में बहुतों ने बहुत कुछ बोल लिया है और मैंने लगभग सभी को पढ़ा और सुना, किन्तु एक गन्‍दी बदबू लगभग सभी जगह पढने और सुनने को मिली कि हिटलर मोदी, साम्‍प्रदायिक मोदी। आज मुझे यह कहने में संकोच नहीं है कि पत्रकारिता की लगाम आज विदेशी ताकतों के हाथों गिरवी रखी जा चुकी है, और मीडिया भी विदेशी जुबान बोलने लगी है। यह मोदी का विरोध नहीं हो रहा है बल्कि राष्‍ट्रीयता का विरोध है। गुजरात चुनाव के दौरान कांग्रेस बैकफुट पर रही और पत्रकारिता मुख्य विपक्षी दल के भूमिका में थी। कुछ ने मोदी को हिन्दूवादी कहा मै भी कहता हूँ किन्तु एक बात यह जरूर कहना चाहूंगा कि सरकारे जो बनती है उनका कोई धर्म नहीं होता है अगर सरकारो हिन्दू या ..... का नाम दिया तो यह देश के व्यवस्था का अपमान है।

गुजरात में मोदी की जीत ने न सिर्फ भाजपा में जीतने का जज्बा दिखाया अपितु 2009 के आम चुनाव में भाजपा को मुख्य संघर्ष में भी ले आई। मेरे विचार से आज में आज अगर कोई लोकनायक नेता है तो सिर्फ मोदी ही है। जिस प्रकार कांग्रेस के केन्द्रीय मंत्री दिनशा पटेल को को 85 हजार से ज्यादा मतों से हराया यह कोई आम बात नही है वास्तव में यह लोक नायक के दर्जे को दर्शाता है। मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी ने दर्शा दिया कि हमारे पास भी एक पश्चिम बंगाल है जो सुशासन के बल पर भाजपा का अभेद दुर्ग बना हुआ है।

मै गुजरात और बंगाल की तुलना नहीं करूँगा क्योंकि वे तुलनीय है भी नही। क्योंकि एक ओर जहां सूर्य उदित होता है तो दूसरी ओर अस्त होता है। आज बंगाल इसलिए नहीं रो रहा है कि वहां संसाधनों की कमी है इसलिए रो है कि वहां कि सरकार और मुख्यमंत्री निकम्मा है। आज मोदी के व्यक्तित्व के आगे हिन्दू और मुस्लिम दोनों प्रभावित है। जबकि बुद्धदेब की सरकार के गुर्गों ने ही नंदीग्राम के महिलाओं के साथ र्दुव्‍यवहार किया। गर मुसलमान मरता है तो देश का कुंठित मानसिकता का एक बुद्धिजीवी कीड़ा रेंगने लगता है तो यह भूल जाता है कि देश के इतिहास में दंगे पहली बार नहीं हुऐ, और यह जरूर हुआ है कि दंगों के बाद देश में पहली बार शान्ति जरूर हुई है। 84 के दंगे की विभीषिका आज भी जनता को याद है। किस प्रकार सिखों को कांग्रेसियों ने चुन चुन कर मारा था। आज एक सिख प्रधानमंत्री ही दंगों के सरगना जगदीश टाइटलर को अपने मंत्रिमंडल में जगह दिये हुये है। क्यों नहीं कांग्रेस से प्रश्न किया जाता कि क्‍यो बचा रही है अपराधियों को? यह प्रदेश प्रश्‍न पूछने वाला देश में कोई मीडिया नहीं है क्योंकि विदेशी ताकतों के हाथ बिकी हुई है। नंदीग्राम में हिन्दू भी मारे गये और मुस्लिम भी, किन्तु देश के धर्मनिरपेक्ष में अंधे बुद्धिजीवियों को यह नहीं दिखा क्‍यो ? क्योंकि इन बंदरों का रंग भगवा न हो कर लाल था, यह हनुमान को नही लेनिन को पूजते है।

इधर एक लेख और देखने को मिला नरेंद्र मोदी की जीत और बेनज़ीर भुट्टो की हत्या एक ही जैसा दु:खद प्रसंग है! क्योंकि इसमें पढ़ने लायक कुछ भी नहीं था। यह एक हास्‍यास्‍पद प्रसंग ही कहा जायेगा कि आज देश के विचारको में यह मत है। जिस प्रदेश की जनता ने मोदी को 48% वोट दे कर जिताती है उस जनता को ही जनता, गुनहगार मानती है। देश के आम चुनाव में कांग्रेस 145 सीट लेकर जीत जाती है और भाजपा 138 सीट लेकर हारा माना जाता है तो यह देश का र्दुभाग्य ही है।

गुजरात की हार में न तो महारानी का कोई जिम्मेदारी थी न युवराज की, बस जिम्मेदारी थी स्‍थानीय टट्टूओं की, अगर यह जीत होती तो सारा श्रेय मैडम को जाता, हार हुई तो टट्टुओं की। और टट्टू जन कर भी क्या सकते है? अपनी जिम्मेदारी लेने से मैडम की नजरों में कद ऊंचा होगा, और जनता तो एक रखैल है जिससे तो समय पर ही काम पड़ेगा। यह कहना गलत न होगा कि कांग्रेस नेताओं का मैडम जी के साथ हिन्दू विवाह है और जनता के साथ मुस्लिम विवाह :)

गुजरात के बाद हिमाचल प्रदेश में भी भारतीय जनता पार्टी 2/3 बहुमत की ओर है अब यह कहना गलत होगा कि गुजरात जी एक तुक्का थी। गुजरात के बाद हिमाचल में हार की जिम्मेदारी किसकी होगी, जल्द की कांग्रेस के पार्टी प्रवक्ता घोषणा करेंगे। खुद वामपंथियों और छद्म पत्रकारों के सीने पर जरूर सॉप लोट जायेगा। और अब नरेन्द्र मोदी को उनकी जीत पर अपनी सार्वजनिक पहली बधाई देता हूँ।



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