एक और सच



आये दिन देश में मुस्लिमों की दशा को लेकर आरक्षण का खेल खेला जाता है और इस खेल में पिसता है बहुसंख्यक वर्ग का अधिकार। आज ये आंकड़े अपने आप में बहुत कुछ बायन कर रहे है कि देश की वर्तमान स्थिति क्या है? मुस्लिमों की संख्या में वृद्धि का दो कारण है कि उनकी धार्मिक रूढ़िवादिता तथा दूसरी है घुसपैठ अगर इन दोनों विषयों से निपट लिया जाये तो निश्चित रूप से मुस्लिमों को देशा की मुख्‍य धारा से जुड़ने से कोई रोक नही सकता है। इन आंकड़ों पर गौर करें-

1991 से 2001 के बीच बांग्लादेश से सटे असम
सीमावर्ती: जिलों का जनसंख्या वृ
द्धि प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
मुस्लिम
गैर मुस्लिम
कुल
धुबरी
29.5
7.1
22.9
ग्वालपाड़ा
31.7
14.4
23.0
हैलाकांडी
27.2
13.3
20.9
करीमगंज
29.4
14.5
21.9
कछार
24.6
16.0
18.9
अन्य जिले
बरपेटा
25.8
10.0
18.9
नगांव
32.1
11.3
22.2
मारीगांव
27.2
16.3
21.2
दरांग
28.9
9.6
15.8
असम की जनसंख्या में मुसलमानों का बढ़ता प्रतिशत
सीमावर्ती जिले
1991
2001
धुबरी
70.4
74.3
ग्वालपाड़ा
50.2
53.6
हैलाकांडी
54.8
57.6
करीमगंज
49.2
52.3
कछार
34.5
36.1
अन्य जिले
बरपेटा
56.1
59.4
नगांव
47.2
51.0
मारीगांव
46.0
47.6
दरांग
32.0
35.6
पश्‍िचम बंगाल के सीमावर्ती जिलों में बढ़ती मुस्लिम जनसंख्या (प्रतिशत में)
सीमावर्ती जिले
1991
2001
दक्षि24 परगना
29.9
33.2
उत्तर 24 परगना
24.2
24.2
नादिया
24.9
25.4
मुर्तिशाबाद
61.4
63.7
मालदा
47.5
49.7
कोलकाता
17.7
20.3
दक्षिण दिनाजपुर
36.8
38.4
उत्तर दिनाजपुर
36.8
38.4
जलपाईगुड़ी
10.0
10.8
कूच बिहार
23.4
24.2
कुल
23.6
25.2

यदि आज कोई सच में मुस्लिमों का हितचिंतक है और उनकी दशा और दिशा की चिंता करता है तो इन आंकड़ों पर गौर करे और उन्हें धार्मिक अंधविश्वास से दूर कर, उनके समुचित जीवन के निर्माण की व्यवस्था की जा सकती है, और घुसपैठ पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना चाहिऐ क्योकि घुसपैठी न तो हिन्दू न मुसलमान, घुसपैठियों घुट पेठिया होता है तभी अरब के देशों में भी घुसपैठ मुस्लिमों के साथ अत्यधिक कड़ा रुख रखा जाता है।


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चिट्ठाकारी के मठाधीशों का असली चेहरा



देवाशीष जी का साक्षत्‍कार पढ़ रहा था कि हिन्‍दी चिट्ठाकारी में मठाधीशी नही है किन्‍तु उनकी बातों में कितनी सच्‍चाई है, यह बात उनके कृत्‍यो के द्वारा पता चलता है। उक्‍त लेख पर मैने एक टिप्‍पणी चिट्ठाकार पर अपने प्रतिबन्‍ध को लेकर की थी और जानना चाहा था कि क्‍या वास्‍तव में चिट्ठाकारी में मठा‍धीशी नही है? उस टिप्‍पणी के प्रतिउत्‍तर में देबाशीष जी की जो प्रतिक्रिया मिली कि चिट्ठाकार गूगल समूह न होकर एक उनका व्‍यक्तिगत साईट है, और उस पर उन्‍हे पूर्ण मनमानी करने का अधिकार है। शायद आप सब को भी पता नही होगा कि जिस चिट्ठकार समूह के आप सदस्‍य है वह समूह देबाशीष जी की सम्‍पत्ति है और किस श्रेणी के लोगों को आने की अनुमति है और किस को नही। अब जरूरी है कि सच्‍चाई और वास्‍तविकता सामने आये।

अगर देवाशीष जी अपनी टिप्‍पणी को गौर से पढ़े और विश्लेषण करे तो निष्कर्ष यही आयेगा कि देबाशीष जी ने खुद की बातो को घता साबित किया है। देवाशीष जी की उक्‍त टिप्‍पणी निम्‍न है Debashish said...

प्रमेंद्र, आपने यह राज़ क्यों बनाये रखा मैं नहीं जानता। चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है। स्पष्ट लिखा है कि समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे। यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है। अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं। मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे। यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही। मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा।

मै देवाशीष जी की ही टिप्पणी का क्रमबद्ध उल्‍लेख करूँगा, उनकी बिन्‍दुवार उनकी टिप्‍पणी के अंश तथा उसके नीचे मैने अपनी बात रखी है -
चिट्ठाकार पत्र समूह में कई बार कह चुका हूं, वह समूह कोई सार्वजनिक संपत्ति नहीं है, मेरी साईट है, इसकी नीति मैंने बनाई है जो http://groups.google.com/group/Chithakar/web/group-charter पर बड़े साफ शब्दों में लिखी है।

कई लोगों को नही पता होगा कि ‘’चिट्ठाकार समूह’’ आपकी प्रोपराईटरशिप में चल रही है अन्‍यथा मुझ जैसे कई लोग आपके चिट्ठाकार समूह के नाम से बने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल की सदस्‍यता ग्रहण न करते। मुझे चिट्ठकार समूह पर आपके द्वारा किये गये बैन पर हर्ष है कि इस बाबत कई लोगों को सच्चाई से रूबरू होने का अवसर मिला, कि वे किसी सामुदायिक चिट्ठाकार समूह के सदस्य न होकर किसी की नि‍जी सम्‍पत्ति में घुसे हुऐ है। आप जिस प्रकार से चिट्ठाकार समूह का नेतृत्‍व कर रहे है इससे यह नही प्रतीत होता है कि चिट्ठाकार समूह कोई समुदायिक विचार का मंच है, जैसा कि आपके बातों से भी स्‍पष्‍ट हो गया है। नेतृत्‍व हर समाज में होता है, इसमें प्रोपराईटरशिप या स्‍वामित्‍व की बात कहॉं से आ जाती। आपके द्वारा दिये गये तथाकथित व्‍यापार चार्टर लिंक को मैने अपने बैन होने के बाद काफी पढ़ा था। किन्‍तु आपके अन्‍दर का भय मुझे आज दिखा, कि जो चिट्ठाकार सर्वजनिक तौर पर खुला रहता था आज वह बन्‍द है। उस चार्टर को बन्द करके फिर लिंक देकर मुझे पढने के लिये कहना, हँसने योग्य प्रसंशनीय कार्य है।


समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं और "ऐसे संदेश भेजने वाले सदस्य की सदस्यता बिना किसी चेतावनी के समाप्त कर दी जायेगी"। आपके और अन्य कुछ मामलों में यही किया गया। जो चार्टर से सहमत नहीं वो समूह में रह कर क्या करेंगे।

मुझे आपकी इस उत्‍तर पर तरस आ रहा है, कि आप इस समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रहे है। क्‍योकि आपने टिप्‍पणी मे कहा था कि - समूह में "भड़काऊ, व्यक्तिगत आरोप प्रत्यारोप या धर्म जैसे संवेदनशील मसलों पर संदेश" वर्जित हैं किन्‍तु मै इस बात का पूर्ण खंडन करता हूँ कि मेरे द्वारा 2006 से आज तक चिट्ठाकार समूह तो क्‍या किसी भी समू‍ह पर इस तरह की पो‍स्टिग नही की गई है, तो नियमों के उल्‍लंघन की बात कहाँ से आ जाती है। मेरी आपत्ति के बाद आपका तर्क प्रस्‍तुत करना नैतिक दायित्‍व है, जबकि आप इस समूह का नेतृत्‍व कर रहे है। यदि आप इसके प्रोप्राइटर या मालिक है तो नैतिकता समाप्‍त हो जाती है। स्‍पष्‍ट है कि जब अपराध हुआ ही नही तो चेतावनी क्‍या? कार्यवाही क्‍या ? आप पिछले कई महीनों से मठाधीशी की परिभाषा तलाश रहे है मेरे याद दिलाने से ज्ञान हो गया होगा। इसी के साथ पुन: एक कहावत कहना चाहूँगा – कस्तूरी कुंडल बसै , मृग ढूढै वनमाही। आप फिर कहेगे कि मै आपको शिखड़ी के बाद मृग कह रहा हूँ। पुनरावलोकन कर लें कि मैने चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल के किसी नियम का उल्लघन तो नही किया। अगर मेरे द्वारा संदेश नही गया तो किसी नियम के उल्‍लघंन का प्रश्‍न ही कहाँ उठता? बिना नियमों के उल्‍लंघन के मेरी चिट्ठाकारी की दुकान का राजिस्‍ट्रेशेन कैन्सिल करना न्‍यायोचित नही है।


यह आपकी अभिव्यक्ति पर रोक तो नहीं हैं क्योंकि ज़ाहिर तौर पर "चिट्ठाकार" कोई एकलौता मंच नहीं है जहाँ आप अपनी बात रख सकें, आपके अनेक चिट्ठे हैं, अन्य समूह भी हैं, नहीं हैं तो आप बना सकते हैं। आपको समान राय वाले समूह में ही रहना चाहिये, जहाँ मतैक्य न हों वहाँ क्यों रहना? यह जिद करना कि आप मेरी साईट पर आकर "मूंग दलेंगे" तो बचकानी जिद है।

आपको ही बैन जैसे लुच्‍चे साधनों की आवाश्‍कता होगी, क्‍योकि आप हिन्‍दुत्‍व से अपने को दूर रखना चाहते है। हिन्दुत्‍व ही सर्वधर्म सम्‍भाव कि बात करता है, असली सेक्यूलरिज्‍म हिन्‍दुत्‍व में ही पोषित होता है। बाकी तो आपकी ही तरह पूछते रहते है कि मेरे अंगने में तुम्‍हारा क्‍या काम है? जहॉं तक ब्‍लाग्स की बात है तो मेरे लिये लिखने के मंचों की कमी नही है। जहाँ तक गूगल समूह की बात है तो आपकी व्‍यापार मंडल भी गूगल के रहमोकरम पर ही है, और गूगल तो सबके माई-बाप है। माई-बाप की जागीर में सभी संतानो का हिस्‍सा बराबर का होता है। चालबाज संताने ही पूरे पर दावा ठोकती है। समूह बनाना कौन सा बड़ा काम है? बहु धनुहीं तोरीं लरिकाईं, कबहुँ न असि रिस कीन्हि गोसाईं ||एहि धनु पर ममता केहि हेतू, सुनि रिसाइ कह भृगुकुलकेतू || मैने भी खेल खेल में बहुत से समूह और ब्‍लाग बना डाले है, पर स्‍वामित्‍व का ऐसा दावा, मतभिन्‍नता रखने वालो पर इतना बड़ा प्रहार मुझसे आज तक न हुआ। जहॉं तक मतैक्‍य की बात है तो मुझे लगता है आपका ही मत लोगो से नही मिलता है, तभी जो भी आता है आपकी घंटी बजाकर चला जाता है, किसी का नाम लेने की जरूरत नही है। जहॉं तक मूँग दलने की बात है तो आपकी जानकारी के लिये बता दूँ कि मूँग की दाल काफी मॅहगी है, पेट खराब होने पर काफी फयादा करती है। ऐसी चीज दलने में नुकसान ही क्‍या है? खुद ही सोचिये व्‍यापार मंडल की साइट पर मूँग नही दला जायेगा तो क्‍या मौसम की जानकारी प्रकाशित होगी? वैसे मेरे पास व्‍यापार मंडल में न तो मूँग दलने का समय है न बाजार लगाने का, मुझे लगाता है कि मूँग दलने और इस तरह के बाजार लगाने की आपकी पुरानी आदत है। आप आपने आदत से मजबूर है, नही तो अकारण बैंन नही लगातें।
 
अपनी ही साईटों की नीति तय करना अगर आपकी दृष्टि में मठाधीशी है तो मैं आपकी सोच पर केवल तरस ही खा सकता हूं।
 
आपको तरस खाने की जरूरत नही है वैसे आप कुछ भी खा सकते है, मूँग की दाल खाइये, फायदा करेगी। जैसा कि मैने पहले ही कहा था कि मठाधीशी तो कुछ के रग रग में है, जो अकारण सम्‍प्रभु बने रहने की कोशिश करते रहते है, मुझे आपका नाम लेने में जरा भी हिचक नही है। क्‍योकि जो कर्म आपने किया और फिर सीना जोरी के साथ सबके सामने यह कह रहे है कि आप चिट्ठकार व्‍यापार मंडल के प्रोपइटर है तो यह आप अपनी सबसे बड़ी मूर्खता को उजागर कर रहे है।
 
एक बात और जो मैं काफी दिनों से कहना चाह रहा था। मुझे विश्वास है कि आप चिट्ठाकारी में कुछ कहने आये हैं पर फिर ये शत्रुता का व्यवहार क्यों। हम दोनों एक दूसरे की विचारधारा से परीचित हैं यह तो अच्छी बात है, मैं कट्टर हिंदूवाद की विचारधारा से विरोध रखता हूं पर व्यक्तिगत तौर पर आग्रह नहीं पालता। मेरी बैंगानी बंधुओं और शशि सिंह से भी इस बाबत राय नहीं मिलती, पर हम अच्छे मित्र हैं।
 
अकारण प्रतिबंध दुराग्रह नही तो क्‍या है? जो कहना था आप कह सकते थे किन्‍तु लगता है कि आप प्रतिबंधित कर अपनी ताकत का प्रर्दशन करना चाहते थे। आपको यह कैसे लगा कि यह शत्रुता का व्‍यवहार कर रहा हूँ, हर चोर को दूसरा आदमी चोर ही नज़र आता है। मुझे तो नही लगता कि आपकी कोई अपनी विचारधारा है, सिवाय पिचाल खेलने के।
 
जहाँ तक मुझे लगता है कि मेरी कई व्‍यक्तियों के साथ वैचारिक दूरी है, वह संघ, गांधी, हिन्‍दुत्‍व के अलावा बहुत कुछ विषय है। हम एक दूसरे की खिचाई करते है किन्‍तु व्‍यक्तिगत दुराग्रह नही करते। किन्‍तु आपका मामला भिन्‍न है जो आपके आधीन और आपके नक्‍शेकदम पर नही चलता उसकी कोई विचारधारा नही। यह हिटलरशाही, तुगलकशाही, सद्दामशाही नही तो और क्‍या है? इसी को साहित्यिक भाषा में मठाधीशी कहते है।
 
मैंने जगदीश भाटिया पर ब्लॉगवाणी द्वारा डीडॉज अटैक के आरोप का बड़ा तकनीकी तौर पर संयत स्पष्टीकरण दिया, मैथिलि जी ने स्वयं जवाब को सराहा। पर आपने क्या किया? अपने ब्लॉग पर मुझे शिखंडी करार दे दिया, जबकि तकनीक और इस सारे मामले की बारीकी से ही आप अनभिज्ञ थे।यहाँ तो हिन्दू मुस्लिम, साँप्रदायिकता की बहस भी न थी। मैं क्यों न समझूं कि आप की खुन्नस अब व्यक्तिगत हो चुकी है, वैचारिक नहीं रही।
 
लगता है कि आपकी ऑंखे ठीक काम नही कर रही है, अगर न कर रही हो तो चश्‍मा लगवा लीजिऐ। क्‍योकि जिस लेख की बात आप कर वह मानवेन्‍द्र जी का है मेरा नही, क्‍योकि उन दिनों मै अपने ब्‍लाग से अनुपस्थित था और जिसकी स्‍पष्‍ट सूचना ब्‍लाग के हेडर पर मौजूद थी। एक बात स्‍पष्‍ट कर दूँ कि आपके चिट्ठाकार व्‍यापार मंडल पर प्रतिबंध के बाद वह लेख आया था। इससे यह कहना कि शुरूवात मैने की है यह निहायत ही ओछा आरोप है जो सर्वथा गलत है।
 
मुझे लगता है कि आपने मैथिली जी की बात भी स्‍पष्‍टता से नही पढ़ी क्‍योकि मैथिली जी ने कही भी क्लीन चिट नही दिया है क्‍योकि उनका कहना था कि – हो सकता है ? अर्थात उन्‍होने गांरटी के साथ नही कहा है कि गलती नही हुई है। मैथिली जी ने यहॉं श्रेष्‍ठ अग्रज की भूमिका निभाई है दो के विवाद के निपटारे के लिये उन्‍होने यह बात कहीं थी न कि किसी को सही साबित करने के लिये।
 
अब आप अपने आपको शिखड़ी मानो या शूपनर्खा, इसमें मेरा क्‍या दोष है ? जहॉं तक की गई टिप्‍पणी को देखने के बाद कोई छोटा सा बच्‍चा भी यह कहेगा कि यह किसी व्‍यक्ति विशेष के लिये नही कहा गया है, किन्‍तु चोर की दाढ़ी में तिनका यहीं दिखाई पढ़ता है, तिनका हो न हो चोर अपनी दाढ़ी जरूर साफ करता है। अब आप अपने शिखड़ी समझ रहे है तो भला चोर की दाढ़ी मे तिनका कहने वाले का क्‍या दोष ?
 
चूकिं तत्‍कालीन लेखन ने वह टिप्‍पणी भाटिया जी के ब्‍लाग पर की थी किन्‍तु भाटिया जी ने उसे प्रकाशित नही किया। तो लेखक को अपनी बात टिप्‍पणी से परे होकर ब्‍लाग पर करनी पड़ी।
 
मुझे यह खुन्नस निकालनी होती तो मैं समूह में केवल अपने जाने पहचाने लोगों कौ ही आमंत्रित करता। विचारधारा का विरोध अस्विकार्य होता तो क्या अनुनाद, अरुण अरोरा वगैरह समूह में शामिल रहते? ठंडे दिमाग से सोचिये ज़रा!
 
आपकी यह बात खुद ही उक्‍त लोगों से आपकी वैचारिक दूरी को उजागर करती है। आपकी महानता ही है कि उक्‍त लोगों को किस प्रकार इस समूह में झेल रहे है। उक्‍त लोग आपके सदैव आभारी रहेगे कि आपने अभी तक इन पर अपने प्रोप्राइटरी कार्यवाही का दंडा चला कर इनका रजिस्‍ट्रेशन कैन्सिल नही किया।
 
श्री देबाशीष जी की टिप्‍पणी के सर्मथन में एक और टिप्‍पणी आई थी मै उसका भी उल्‍लेख करना चाहूँगा, जो जरूरी है -
दिनेशराय द्विवेदी said...
देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद्।
मैं उन के इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे कि संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उस की सहमति से कर रहे हैं। आप एक लायसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।
16 February, 2008 5:18 PM
श्री द्विवेदी जी अधिवक्‍ता है विधिक मामलों के जानकार है, कानून क्‍या कहता है जितना उन्‍होने पढ़ा वह कह दिया। किन्‍तु सच्‍चाई यह है कि विचारमंच कभी किसी की सम्‍पत्ति नही हो सकती है, और यदि आप कानून के जानकार है तो आपको पता होगा कि किसी कारखाने का मालिक, प्रोपराईटर जब अपने किसी अदना से नौकर को भी उसकी गलती की वजह से कम्‍पनी से निकालता है तो उसे चार्टशीट देनी होती है, उसे उसके अपकृत्‍य से बिन्‍दुवार अवगत कराया जाता है, तथा एक इन्‍क्‍वाईरी ऑफिसर नियुक्‍त किया जाता है जो मामले की पूर्ण जॉंच करता है। जहॉं तक सम्म‍पत्ति की बात है तो मकान मालिक और किरायेदार के सम्‍बन्‍ध में राजस्‍थान के कानून भारत के अन्‍य राज्‍यों से बहुत ज्‍यादा भिन्‍न नही होगें, और शायद प्राकृतिक न्‍याय के सम्‍बनघ में भी आप अ‍नभिज्ञ है। किसी की कब्‍जेदारी को वि‍मुक्‍त करना एक पूर्ण विधिक प्रक्रिया है। जिसके पालन न किये जाने की गणना आपराधिक अपकृत्‍य में की जाती है। आपने उपयुक्‍त टिप्‍प्‍णी की अपेक्षा नही थी। किसी अधिवक्‍ता का इस प्रकार का कथन सच में उसकी विधिक अनभिज्ञता का घोतक है।


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