अंतककियों का अगला निशाना भोपाल/शिमला तो नही



जयपुर, बेंगलुरु और उसके बाद अहमदाबाद, जिस प्रकार भाजपा शासित राज्यों पर लगातार हमले हो रहे है, इससे यह जान पड़ता है कि आतंकियों का अगला निशाना अब भोपाल या शिमला हो सकता है। आतंकवाद भाजपा या कांग्रेस नही देखता है किन्तु जो परिदृश्य दिख रहा है कि यह सुनियोजित तरीके से देश के ही तत्व यह कुकृत्‍य कर रहे है।

देश के भीतर पल रहे विषबीजों का काम है जो आने वाले चुनावों में भाजपा के शासन को कलंकित दिखाना चाहते है। जिस प्रकार की हरकत केन्द्र सरकार ने संसद में कि उससे तो यही लगता है कि सरकार सत्ता के लिये कुछ भी कर सकती है, अगर बम विस्फोट भी होते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि खुफिया तंत्र की विफलता के पीछे सरकार का ही हाथ होता है। राजनीति का स्तर सत्ता की भूख के लिये इतना गिरना नहीं चाहिये।

भगवान दोनों जगह हुए विस्फोट में शहीद हुए लोगों की आत्मा को शान्ति प्रदान करें।


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अन्तिम संस्‍कार Antim Sanskar



अन्तिम संस्‍कार
भारतीय संस्‍कृति में सस्‍कारों की प्रधानता है। संस्‍कारों में अन्तिम संस्‍कार अन्‍तेष्टि संस्‍कार को कहा जाता है जिसे अन्तिम संस्‍कार भी कहा जाता है। अन्‍त्‍येष्टि संस्‍कार को हम परिभाषित करने के लिये अन्तिम इष्टि या कर्म भी कह सकते है। यह मनुष्‍य के जीवन का सबसे अन्तिम कर्म होता है इसके पश्‍चात कोई अन्‍य कर्म या कार्य मनुष्‍य के लिये शेष नही होता है। अन्तिम संस्‍कार का उद्देश्‍य शरीर की भौतिक सत्‍ता को परमात्‍मा में विलीन करने की होती है। हिन्‍दु धर्म में मनुष्‍य की यह अन्तिम क्रिया शरीर को जलाने से शुरू होती है। इस बात की पुष्टि करते हुये यजुर्वेद कहता है- मास्‍मातं शरीरम्।

वैदिक धर्म में मनुष्‍य की आयु 100 वर्ष निधारित की गई है- जीवेम शरद: शतम्। इस धर्म में पुर्नजन्‍म की धारणा मिलती है जिसके कारण हम यह देखते है कि मनुष्‍य अपने जीवन काल में सभी अच्‍छे कामों को करना चाहता है ताकि उसे अगले जन्‍म उच्‍च कोटि का का जन्‍म मिले अथवा परमात्‍मा उसें अपने में अंगीकृत कर ले। विद्वान बौधायन कहते है कि मनुष्‍य जन्‍म और मृत्‍यु के पश्चात हये समस्‍त संस्‍कारों से परलोक को जीतता है।

आत्‍मा अजर और अमर होती है। श्रीमद् भगवतगीता कहती है कि -

वासांसि जीर्णानि यथा विहाय नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि ।
तथा शरीराणि विहाय जीर्णान्यन्यानि संयाति नवानि देही ॥
व्‍यक्ति अपने पुराने कपड़े त्‍याग कर नये कपड़े धारण करता है उसी प्रकार आत्‍मा भी अपने कर्मो के आधार पर अपने पुराने शरीर को त्‍यागकर नये शरीर(योनि) को धारण करता है। यह तभी सम्‍भव होता है कि जब मनुष्‍य के शरीर का उचित कियाओं द्वारा आत्‍मा की शान्ति के लिये संस्‍कार क्रिया प्रतिपादित किये जाते है। आत्‍मा का शरीर त्‍याग के बाद शवदाह, शवयात्रा, अस्थिचयन, प्रवाह, पिण्‍डदान श्राद्ध, बह्मभोज आदि शरीरान्‍त के पश्चात ऐसे किये जाने वाले अनिवार्य कर्म है, जिनकी पूर्ति के बिना आत्‍मा की शान्ति सम्‍भव नही है। इन सभी कर्मो को विधि विधान से किये जाने पर आत्‍मा प्रेतयोनि में नही भटकती है।

शरीर की इस अंतिम क्रिया के लिये मत्स्य पुराण में शव को जलाने, गाड़ने तथा प्रवाह देने की बात कहीं गई है- य: संस्थित: पुरूषो दह्यते वा निखन्‍यते वा‍Sपि निकृष्‍यते वा। सम्‍पूर्ण विश्‍व में शव को गाड़ने की प्रथा दिखती है किन्तु आज चीन समेत कई देश हिन्दू संस्कृति के दाह प्रथा को मान्यता दे रहे है। क्योंकि यह शरीर की अंतिम क्रिया का सर्वश्रेष्ठ माध्यम है। चीन सरकार ने 14 मार्च 1985 के आदेश में कुछ जाति के लोगें को छोड़कर शेष धर्म जाति के लोगों में शव के गाड़ने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया है तथा पुरानी कब्र को पुनः जोतने का आदेश दे दिया है।

हिन्दू पद्धति में मृत्यु के बाद संस्कारों के आयोजन का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि हिन्दू धर्म में सम्बन्धियों के मध्य प्रेम के कारण ही वह मृतक के वियोग को सहन नहीं कर सकता है किन्तु मृत्यु के पश्चात होने वाले कर्मकाण्डों के फल स्वरूप वह मृत आत्मा की शान्ति के लिये लग जाता है इस व्यस्तता के कारण वह इस दुखद वेला को भूल जाता है। अन्‍त्‍येष्टि संस्‍कार में यह शोकापनयन की सर्वश्रेष्‍ठ मनोवैज्ञानकि औ व्‍यवहारिक प्रक्रिया है।
अपनी प्रतिक्रिया अवश्‍य दे ताकि संस्‍कारों की अगली श्रृंखला में सुधार कर सकूँ।
पिछली कडि़याँ - संस्‍कार:भारतीय दर्शन (Sanskar: Indian Philosophy) , हिन्दू विवाह


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