इलाहाबाद जनपद के औद्योगिक विकास की सम्भावनाऍं एवं समस्याऍं : एक आलोचनात्मक अध्ययन



इलाहाबाद जनपद प्राचीनतम भारतीय नगरों में प्रमुख स्थान रखता है। भारत के वे नगर ही ज्यादा उन्नति कर सके है जो किसी न किसी नदी के तट पर बसे है, उनमें से इलाहाबाद भी एक है। इलाहाबाद का अपना धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है, इस कारण यहाँ सभ्यताओं का विकास काफी तीव्र हुआ। इलाहाबाद का भौगोलिक राजनीतिक विस्तार उत्तर में प्रतापगढ़ जौनपुर, पूर्व में संत रविदास नगर और मिर्जापुर, पश्चिम में कौशांबी, चित्रकूट तथा दक्षिण में मध्य प्रदेश की सीमा तक जाता है। इलाहाबाद का क्षेत्रफल 5425 वर्ग किलोमीटर है, तथा इसकी जनसंख्या 4936105 (जनगणना सन् 2001 के अनुसार) है, यह जनसंख्या इस जनपद को उत्तर प्रदेश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला जनपद बनाता है। इलाहाबाद जनपद का महत्व यही खत्म नही हो जाता है, इस जनपद ने मदन मोहन मालवीय, राजर्षि टंडन, पंडित नेहरू तथा अनगिनत ऐसे महान-महान विभूतियों से देश को सुशोभित किया है जिन्होंने देश की आजादी तथा देश के सर्वांगीण विकास में अद्वितीय योगदान किया है। प्रदेश के इस जनपद ने कई प्रधानमंत्री तथा अनेकों केन्दीय मंत्री दिये है, जिससे इस जनपद की विशेष स्थित का अपने आप ही पता चलता है।
अपना विशेष स्‍थान होने के कारण इलाहाबाद जनपद मुगलों तथा अग्रेजो के भी आकर्षण का केन्‍द्र रहा है। अंग्रेजों ने इस जनपद की महत्‍ता को जानते हुये ही, इसे संयुक्त आगरा-अवध प्रान्‍त की राजधानी बनाया था। आज भी इस जनपद का महत्व समाप्‍त नही हुआ है। पूर्व का आक्सफोर्ड कहा जाने वाला इलाहाबाद विश्वविद्यालय, राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय इसी जिले में स्थित है। एशिया का सबसे बड़ा उच्‍च न्‍यायालय, माध्‍यमिक शिक्षा परिषद, महालेखाकार कार्यालय,उत्तर मध्‍य रेलवे का मुख्‍यालय, पुलिस के कई प्रदेश स्‍तरीय उच्‍च अधिकारियों के दफ्तर तथा अन्‍य कई प्रमुख केन्‍द्रीय कार्यालयों के मुख्‍यालय इसी जनपद में स्थित है, जो कि आज भी इसके वर्तमान महत्व को दर्शाता है।
इलाहाबाद औ़द्यौगिक रूप से भी काफी समृद्ध रहा है, लघु उद्योगों का जाल प्रारम्‍भ काल में घरों घरों में फैला हुआ था। अंग्रेजों की दमनकारी औद्योगिक नीतियों ने लद्यु उद्योगों को काद्यी छति पहुँचाई है। इसका यह कारण हुआ कि भारत की आजादी के समय में इस समृद्ध और सम्‍पन्‍न जनपद को कमजोर औद्योगिक आधार विरासत में मिला। आजादी के साथ ही साथ इलाहाबाद में औद्योगिक विकास बहुत सीमित था और कुशल प्रबंधन के अभाव में इसे ठीक से स्थापित करना भी कठिन था। कुशलता के अभाव में जनपद के उद्योग भी रुग्ण अवस्था में रहे और कुछ तो आज बंद होने के कगार पर भी आ चुके है।
जनपद के औद्योगिक सीमाओं का विस्तार भारतगंज, मेजा व मांडा से सीमेंट के पाउडर, ग्रेनाइट पत्थर के लघु उद्योगों से होती है, इसी क्षेत्र में शीशे की विशाल फैक्ट्री भी स्थित है। नैनी का क्षेत्र स्वदेशी कॉटन मिल तथा अन्य कारखानों के कारण औद्योगिक नगर के रूप में जाना जाता है, यही पर आई.टी.आई और जी.ई.सी आदि स्थिति है। शहर में शेरवानी इंडस्ट्री की काफी धाक रही है किन्तु वर्तमान समय में यह बंद हो चुका है, लूकरगंज मोहल्ले में एशिया की सबसे बड़ी आटा और दाल मिले स्थिति थी जो आज बंद हो चुकी है । जनपद की मऊआइमा तहसील में मऊआइमा सहकारी कताई मिल तथा इसी क्षेत्र में पटाखों तथा आतिशबाजी उद्योग की सम्भावना है। इफ्को फूलपुर मे यूरिया खाद का उत्‍पाद किया जा रहा है। यमुना नदी में बालू उत्खनन के क्षेत्र में इस उद्योग के विस्तार की काफी सम्‍भावनाऍं है। इसके साथ ही साथ आज के अत्‍याधुनकि आई.टी युग में सूचना प्रौद्योगिकी तथा साफ्टवेयर निर्माण उद्योग की काफी सम्‍भावनाऍं इस जनपद में है क्‍योकि आज IIIT, मोतीलाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज, एग्रीकल्चर डीम्‍ड युनीवर्सिटी तथा अन्‍य तकनीकी कालेज इस इस जनपद में स्थित है।
इलाहाबाद जनपद, अन्‍यक्षेत्रों में महत्वपूर्ण स्थित के साथ-साथ औद्योगिक क्षेत्र में भी काफी चमत्‍कृत था। किन्तु सही संचालन के अभाव में कई उद्योग आज इतिहास बन गये है। आज ये उद्योग अपने अस्तित्‍व की बनाये रखने के लिये संघर्ष कर रहे है। विकास की इस दौड़ में इलाहाबाद जैसे विशाल जनसंख्‍या वाले जनपद को आज उद्योग की बहुत आवश्यकता है। आज इस जनपद की बढ़ती हुई जनसंख्‍या और बेरोजगारी के स्‍तर को, इन उद्योगों की रक्षा और नये उद्योगों के सृजन के बिना नही सम्‍भाला जा सकता है। आज जरूरत है कि जनपद के आर्थिक आधार स्‍वरूप इन उद्योगों को कुशल प्रबंन्‍धन, राज्‍य व केन्‍द्र सरकार सरकार के सहयोग द्वारा बचाया जाये। उद्योगों को आधारभूत सुविधाएं उपलब्ध करवायी जायें जिससे नये उद्योगों की स्थापना हो सके और इसके औद्योगिक स्वरूप को बनाए रखा जा सके और विकसित किया जा सके।


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