हे भगवान जी हमारी नानी को वापस बुला लो'



कुछ दिन पूर्व अदिति की नानी का हमारे यहॉं आने का कार्यक्रम हुआ। किन्‍तु अद‍िति से पुरानी दुश्‍मनी थी, करीब जब अदिति ढ़ेड साल की थी और नानी के यहॉं गई थी तभी से उसकी नानी से नही पटती थी। दुश्‍मनी की हद इस तरह तक की थी, वह नानी को अपने घर से भगाने के लिये भगवान से प्राय: प्रार्थना भी करती थी, जब तक की नानी चली नही गई। प्रार्थना की अपनी स्‍टाईल भी थी '' हे भगवान जी हमारी नानी को वापस बुला लो'' एक न दिन तो उनकी नानी को वापस जाना ही था और वह दिन भी आ गया और भोर में ही नानी अदिति के उठने से पहले चली गई। जब अदिति उठती है तो नानी को नई पाती है, घर में पूछती है कि नानी कहॉं है उसे पता चलता है नानी चली गई तो वह बोली है - भले भई चली गई, भगवान जी हमार सुन लीहिन।
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कामोत्तजक पुरूष और अम्‍बूमणि रामदौस



आज खबर पढ़ रहा था तो पढ़ने में आया कि कोई हालीवुड स्टार ह्यूं जैकमैन 2008 के सबसे कामोत्‍तेजक अर्थात Sexy पुरुष चुने गए है। भारतीय के लिये शर्म की बात यह की भारत का को नंग धडग आदमी इस दौड़ में शामिल नही हो पाया। जॉन अब्राहम, सलमान, हासमी पता नही कितने कपड़ा उतारू एक्‍टरों की मेहनत पर बट्टा लग गया। ये भारतीय एक्‍टर कितनी मेहनत करते है कमोत्तेजक कहलाने में किन्‍तु हो गया ढ़ाक के तीन पात, देश की बात होने पर सिर्फ इन्‍ही के चर्चे होते है किन्‍तु जहॉं विदेश की बात आती है, दुनिया में इनका नामो निशान नही होता है, बिल्‍कुल क्रिकेट खिलाडियों की तरह भारत में जो खेलने आता है उसे पटक के हरा देते है, किन्‍तु जब विदेश दौरे में हार जाते है तो कहते है कि बेईमानी कर के जीत लिये, खिसियानी बिल्‍ली खम्‍भा नोचे, ऐसे है भारतीय एक्‍टर और भारतीय क्रिकेट टीम।
 
आज कल तो सेक्‍स और सेक्‍सी दोनो ने समाज में बहुत गंदा वातावरण फैला दिया है। इसी में रामदौस भी अड़ गये है कि अब मर्द की शादी मर्द से करा के ही दम लेगे, चाहे मनमोहन साहब कितने खफा क्‍यो न हो ? मनमोहन साहब भी करे तो करे क्‍या चार दिन के मेहमान जो ठहरे पता नही अगली बार कुर्सी मिले भी कि न मिले, गे मामले में उनकी रुचि देख कर लगता है कि शायद कही साहब अपने लिये नये पार्टनर तो नहीं खोज रहे है, अब पता चला कि Sexy Man ऐसे लोगो के लिये चुना जाता है अब तो उन्‍हे सबसे कमोत्तजक पुरूष ह्यूं जैकमैन पंसद आ ही जाएंगे सूत्रों से पता चला है कि उन्‍हे पीएम इन वेटिंग से जितना खतरा नही है उससे ज्यादा राहुल बाबा से है। चुनाव का समय है सुनाई दे रहा था कि राहुल बाबा को 84 के सिख दंगों का खेद है, मुस्लिम इंदिरा दादी ने सिखों पर दंगा करने में कसर नहीं छोड़ी थी अब ईसाई पुत्र राहुल हिन्दुओं पर दंड़ा किये पड़े है। चुनाव आ रहा है तो राजनीति खेली ही जायेगी, वो चाहे अच्छी हो या गंदी राजनीति तो राजनीति होती है, आज कल केन्द्रीय खजाने में कमी की खबर आ रही है, जांच करने में पता चला कि कुछ मनमोहन साहब मैडम के आदेश पर अमेरिका के गरीब में बाँट आये और जो कुछ बचा वो मुस्लिम अनुदान आयोग में चला गया, मुस्लिम छात्रों को वजीफा।
 
खैर बहुत बेबात की बात हो गई, पर रामदौस वाली बात शत प्रतिशत सही है, तभी वे समलैंगिक (gay) संबंधों के पीछे पड़ा है, पहले से ही यह आदमी बद्दिमाग लग रहा था किन्तु आज कल चुनाव में हार के डर पता नही क्‍या क्‍या कर रहे है। कुछ लोगों का कहना है कि इसमें गलत क्या है तो मेरा कहना है कि हर प्रश्न का उत्तर नहीं होता है। अब भाई आका वही है तो जो करे सर आँखों में, अब वो मर्द को दर्द देना चाहते है तो हम क्या कर सकते है, हमारी Constituency से भी नही है कि हम उन्हें उनके कार्य से रोकने के लिये वोट न देने की धमकी दे सकते है। अगर वे हमारी Constituency से होते भी तो कोई फर्क नही पड़ता, वे इतना सब पड़ने के बाद स्वयं जान जाते कि बंदा हमको तो वोट नहीं ही देगा।
खैर शेष फिर .................
जॉब सम्बन्धी महत्वपूर्ण सूचना


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इलाहाबाद विश्वविद्यालय : छात्रसंघ पर प्रतिबन्‍ध अनुचित



इलाहाबाद विश्वविद्यालय और छात्र राजनीति का बहुत पुराना रिश्ता है, उस रिश्ते को आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन के द्वारा छात्र संद्य चुनाव न करवा कर तोड़ जा रहा है। हो सकता हो कि छात्र संद्य के चुनाव न करवाने से इलाहाबाद विश्वविद्यालय को काफी फायदे मिलते है, जैसा कि कुछ छात्र नेताओं के मुँह से मैने सुना है कि छात्रसंद्य के अभाव में जो पैसा छात्रों के कल्‍याण हेतु आता है वह सब केवल विवि प्रशासन जेब तक ही सीमित हो कर रह जाता है। मुझे इस बात में काफी दम भी लगती है क्योंकि मैने स्‍वय इलाहाबाद विवि के छात्रावास और अध्‍ययन कक्ष देखे है जिनमें व्यवस्था के नाम पर आपको कुछ नही मिलेगा। आज जब इलाहाबाद विश्वविद्यालय केंद्रीय दर्जा प्राप्त कर चुका है और वहॉं व्यवस्था के नाम पर सिर्फ अव्‍यवस्‍था दिखती है तो निश्चित रूप से दाल में कुछ काला है कि बात जरूर सामने आती है।
आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की अराजकता से ग्रसित है। जब यह विश्वविद्यालय स्‍वनियत्रण में आया है तब से इसके कुलपति अपने आपको विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा मानने लगे है। करोड़ो रूपये की छात्र कल्‍याण हेतु आर्थिक सहायता सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई है। जो काम छात्रों के काम छात्र संघ होने पर तुरंत हो जाता था आज कर्मचारी उसी काम को करने में हफ्तो लगा देते है। जिस छात्र संघ ने कई केन्‍द्रीय मंत्री और राज्‍य सरकार को मंत्री देता आ रहा है उस पर प्रतिबंध लगाना गैरकानूनी है। आज जबकि जेएनयू और डीयू जैसे कई केन्‍द्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव हो रहे है तो इलाहाबाद केन्‍द्रीय विवि में चुनाव न करवाना निश्चित रूप से विश्‍वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपनी खामियों के छिपाने का प्रयास मात्र है।विश्वविद्यालय राजनीति का अखड़ा नही है किन्तु छात्रसंघ से देश को प्रतिनिधित्‍व का साकार रूप मिलता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिये कि अपनी गलती को मान कर छात्रों के सम्‍मुख मॉफी मॉंग कर जल्‍द ही चुनाव तिथि घोषित करना चाहिये। वरन युवा शक्ति के आगे प्रशासन को झ़कना ही पड़ेगा।


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