पैमाने पर दोहरे मापदंड कितने सही ?



आज टहलते-घूमते डॉक्टर कविता वाचक्नवी के एक ब्लॉग बालसभा पर पहुँचना हुआ। उनका एक लेख मेरे एक लेख को लेकर लिखा गया था। लेखो पर प्रतिक्रियात्‍मक लेख प्राप्‍त होना बहुत कम लोगो को नसीब होता है। मेरे पिछले लेख पिता बच्‍चे को मार दे तो यह भी मीडिया की खबर होती है मैने सम्‍पूर्ण बाते इकोनामिक्‍स टाईम्स से साभार लिया था। सिर्फ मैने इतना अपनने मन से लिखा था। नोट : इस पोस्‍ट को बाल हिंसा के सर्मथन के रूप में न देखा जाये, हमें न पता था कि पुत्र और पिता के रिश्‍तो में मीडिया भूमिका अहम हो जायेगी। जो भी इस पोस्‍ट को पढ़ रहा होगा, कभी न कभी वह अपने पिता-माता-भाई से मार न खाया हो। अगर खाया भी होगा तो शायद ही आज उस मार की किसी को खुन्‍नस होगी ?
 
मै मारपीट तथा हिंसा वृत्ति का समर्थन नही कर रहा किन्तु एक यर्थात बात सामने रखना चाह रहा था। आज अगर उस लड़के की पिटाई हुई तो सिर्फ मीडिया के कारण। क्योंकि उसने मीडिया के सम्मुख आने का मना कर रहा था। कविता जी के ब्लॉग पर भी एक टिप्पणी पढ़ने को मिली वह भी मजेदार थी। यहाँ मजा लेना मेरा मकसद नहीं था। बात को हकीकत तक ले जाना था। आज देश में बच्‍चो के साथ क्‍या क्‍या हो रहा है उससे किसी को सरोकार नहीं होता, किन्तु वही अगर किसी सेलिब्रिटी के बच्चे या सेलिब्रिटी बच्‍चे की बात आती है तो पूरा मीडिया झूम उठता है। आखिर सामान्‍य बच्चे की चिंता मीडिया को क्यो नही होती है ? क्योंकि उससे मीडिया को पब्लिसिटी जो नही मिलती है।

उस लेख से मेरा तात्पर्य यही था कि पिता-पुत्र का कोई रिश्ता दुश्मनी का नही होता जो तत्काल में मीडिया ने उस मामले में प्रस्तुत किया था। आज बाल श्रम की बात होती है तो फिल्‍म और टेलीविजन पर काम करने वाले बच्‍चो पर यह क्यों लागू नहीं होता है? आखिर इन बच्चों को मीडिया को भी कमाना रहता है। बालिका वधू के हर एपिसोड की कहानी हर न्‍यूज चैनल पर प्रकाशित होती है और तो और उनके इंटरव्‍यूह का भी घंटों लाइव प्रसारण किया जाता है। क्या सिर्फ होटल और घर में काम करने वाले बच्चो के लिये ही बाल श्रम कानून है। मीडिया और व्यावहारिकता में इसकी दोहरी नीतियों का विश्लेषण होना चाहिये। भावुक होना ही नहीं जागृत होना भी जरूरी है।


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पिता बच्‍चे को मार दे तो यह भी मीडिया की खबर होती है



इनकी किस्मत में आई चांदनी पर फिर से स्लम का अंधेरा छाने लगा है। गुरुवार को ही ऑस्कर समारोह से घर लौटने वाले अजहरुद्दीन को उसके बाप ने मामूली सी बात पर पिटाई कर दी । स्लमडॉग में यंग हीरो का रोल करने वाला 10 साल का अजहर मुंबई में धारावी के स्लम इलाके में रहता है। लॉस एंजेलिस में स्लमडॉग को 8 ऑस्कर पुरस्कार मिले हैं। अजहर भी इस समारोह में शामिल होने के लिए वहां पहुंचा था।

गुरुवार को ही घर लौटे अजहर को उस दिन मीडिया के लोगों, मित्रों और पड़ोसियों ने घेर रखा। जबकि लॉस एंजेलिस से लंबी यात्रा कर लौटा अजहर थक गया था और आराम करना चाहता था। इसी कारण वह शुक्रवार को स्कूल भी नहीं गया। पर शुक्रवार को भी मीडिया के लोग और कुछ अन्य लोग उससे मिलना चाहते थे। वे उसके घर आने लगे, जबकि अजहर सोना चाहता था।

उसके पिता 45 साल के मोहम्मद इस्माइल को यह बात नागवार गुजर रही थी। उसे यह लग रहा है कि अजहर ही उन्हें इस स्लम से बाहर निकालने की टिकट है। लेकिन जब अजहर लोगों से मिलने नहीं निकला और उसने जोर से चिल्ला कर यह कहा कि अभी वह किसी से मिलना नहीं चाहता तो उन्होंने अजहर की जमकर लात-घूंसों से पिटाई कर दी।

सबके सामने पिटता अजहर रोता-चिल्लाता हुआ घर के अंदर भागा। पर घर के अंदर भी बाप ने उसे दो-चार हाथ जड़ दिए। हालांकि बाद में टीबी के मरीज इस्माइल ने अपने इस व्यवहार के लिए अजहर से माफी मांगी। उन्होंने कहा, मैं अजहर से बहुत प्यार करता हूं। मुझे उस पर गर्व है। बस मैं पता नहीं कैसे कुछ देर के लिए अपना आपा खो बैठा था।

जिस दिन अजहर मुंबई लौटा था, उस दिन भी अजहर के पिता कई बातों पर नाराज होते रहे। अजहर को जिस कार में बैठाया गया था, उसमें उन्हें जगह नहीं मिल पाई थी तो वह कार की छत पर ही बैठ गए थे।

अजहर की पिटाई की खबर फोटो सहित इंग्लैंड के सन अखबार में छपी है। इस बात पर वहां हंगामा मचा हुआ है। लोगों और मानवाधिकार संस्थाओं ने इस बात पर बवाल मचाना शुरू कर दिया है।

नोट : इस पोस्ट को बाल हिंसा के समर्थन के रूप में न देखा जाए, हमें न पता था कि पुत्र और पिता के रिश्‍तो में मीडिया भूमिका अहम हो जाएगी। जो भी इस पोस्ट को पढ़ रहा होगा, कभी न कभी वह अपने पिता-माता-भाई से मार न खाया हो। अगर खाया भी होगा तो शायद ही आज उस मार की किसी को खुन्नस होगी ?





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