मुस्लिम अल्पसंख्यक नहीं के फैसले के खिलाफ अपील पर निर्णय




इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के न्यायमूर्ति श्री शम्भू नाथ श्रीवास्तव के ऐतिहासिक फैसले की आबादी व ताकत के हिसाब से मुस्लिम अल्पसंख्यक उत्तर प्रदेश में अल्पसंख्यक नहीं फैसले के खिलाफ राज्य सरकार व अन्य की अपीलों पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। न्यायालय के समक्ष बहस की गयी कि याचिका में अल्पसंख्यक विद्यालय की मान्यता व धांधली बरतने की शिकायत की। इसमें जांच की मांग की गयी थी लेकिन न्यायालय ने याचिका के मुद्दे से हटकर मुस्लिम के अल्पसंख्यक होने या न होने के मुद्दे पर फैसला दिया है। इस तकनीकी बहस के अलावा निर्णय के पक्ष में कोई तर्क नहीं दिया गया। हालांकि उ. प्र. अधिवक्ता समन्वय समिति की तरफ से अधिवक्ता भूपेंद्र नाथ सिंह ने अर्जी दाखिल कर प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए वृहद पीठ के हवाले करने की मांग की है। इस अर्जी की सुनवाई 6 अप्रैल को होगी। श्री बी.एन. सिंह का कहना है कि उन्हें भी सुनने का अवसर दिया जाए।

उ. प्र. सरकार, अल्पसंख्यक आयोग, अंजुमन मदरसा नुरुल इस्लाम दोहरा कलां सहित दर्जनों विशेष अपीलों की सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति एस.आर. आलम तथा न्यायमूर्ति सुधीर अग्रवाल की खंडपीठ ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है। उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति एस.एन. श्रीवास्तव ने अपने फैसले में कहा है कि उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी व ताकत के हिसाब से अल्पसंख्यक नहीं माने जा सकते। साथ ही संविधान सभा ने 5 फीसदी आबादी वाले ग्रुप को ही अल्पसंख्यक घोषित करने की सहमति दी थी। उ. प्र. में मुस्लिमों की आबादी एक चौथाई है। जिसमें 2001 की जनगणना को देखा जाय तो तीन फीसदी बढ़ोतरी हुई है। जबकि हिंदुओं की आबादी 9 फीसदी घटी है। कई ऐसे जिले है जहां मुस्लिम आबादी 50 फीसदी से अधिक है। संसद व विधानसभा में पर्याप्त प्रतिनिधित्व है। एकलपीठ के निर्णय में कहा गया है कि हिंदुओं के 100 सम्प्रदायों को अलग करके देखा जाए तो मुस्लिम आबादी बहुसंख्यक है। एकल पीठ ने भारत सरकार को कानून में संशोधन का निर्देश दिया था। अपील में निर्णय पर रोक लगी हुई है अब फैसला सुरक्षित हो गया है।

चुनावी माहौल में अनचाहे समय में आये इस फैसले की भनक मीडिया को नही लग सकी, अन्यथा मीडिया के भाइयों और खासकर उनकी कुछ बहनो के दिलो पर सांप लोट गया होता। (जैसा पिछली बार हुआ था, जानने के लिये नीचे के संबंधित आलेख देखिए) कुछ फैसले के विरोध में कुछ पत्रकार ऐसे कोमा में चले गये कि दोबारा टीवी पर नज़र ही नही आये। वैसे ही चिट्ठाकारी से सम्बन्धित ज्यादातर पत्रकार टीवी ही क्या समाचार पत्रों पर भी नही ही आते होंगे :) । चुनावी माहौल को देखते हुए, आने वाले 6 अप्रैल को चुनाव के साथ-साथ अब मीडिया के नुमाइंदों की निगाहें अब इलाहाबाद उच्‍च न्‍यायालय के भावी फैसले पर होगी। डिवीजन बेंच के स्वरूप को देखते हुए शायद ही अब मीडिया न्‍यायालय और मूर्तियों पर कोई आक्षेप होगा। जैसा कि पिछली बार सेक्युलर मीडिया के चाटुकार पत्रकारों ने किया था।

इस लेख पर सम्‍बन्धित के पूर्व आलेख -


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धन्‍यवाद भगवान - नुकसान तो किया, पर बहुत बड़े नुकसान से बचा लिया



कल समीरलाल जी से सपत्निक इलाहाबाद जक्‍शन पर मुलाकात हुई और कल ही भइया ने एक इलेक्‍ट्रनिक बाईक को मुझे खरीद कर दिया। करीब 3 साल से समीर लाल जी और मुझमें अनेको संवाद हुये किन्‍तु मिलने का अवसन अवसर आज ही मिला। पिछली बार समीर लाल जी सेन मिल पाने का कारण भी विश्‍वस्‍त सूत्रो से पता चला कि ट्रेन को ज्ञान जी ने ट्रेन को ऐसा राईट टाईम किया कि ट्रेन जबलपुर भी राईट टाईम ही पहुँची। पिछली बार की बात मैने इस पोस्‍ट पर लिखा था। इस बार मै बिल्‍कुल सही समय से 10 मिनट पहले पहुँच गया था। और उसका परिणाम यह हुआ कि समीर लाल जी से मिलना हो गया। उन्‍होने पूछा आज कल कम लिख रहे हो तो मैने अपनी मजबूरी बताई और कहा कि मैने अपने लिये इस साल से 4 पोस्‍ट मासिक तय कर ली है। इस कारण से अब तक हर माह में सिर्फ 4 ही पोस्‍ट लिख रहा हूँ।
इलाहाबाद स्‍टेशन पर एक सज्‍जन भी समीर लाल जी के परिचित मिल गये जो कोलकाता से उनके साथ ही ट्रेन पर थे किन्‍तु साथ साथ थे ये न उनके पता था समीर लाल जी को, फिर उनके बीच भी काफी बातचीत हुई। समीर लाल जी को इलाहबादी अमरूद खाने की इच्‍छा थी किन्‍तु मौसम में अमरूद उपलब्‍ध नही थे। बहुत कुछ बात करने की इच्‍छा था किन्‍तु बात कम समय में बहुत बात कर पाना कठिन था। अन्‍तोगत्‍वा अन्तिम घड़ी भी आ गई जब ट्रेन को जाना था। समीर ने जबलपुर में ब्‍लागरमीट के लिये भी बुलाया आज हमारी जबलपुर की यात्रा भी फिक्‍स हो गई। मेरी बहुत इच्‍छा कि मै एक बार जबलपुर की यात्रा करूँ क्‍योकि मेरे साथ कक्षा 11 से परास्‍नातक के साथी ताराचंद्र ने मुझे कई बार जबलपुर के लिये आमंत्रित किया था, उनके बाद श्री गिरीश बिल्‍लोरे जी ने भी यात्रा के कई बार कह चुके थे। मेरी तो तैयारी थी ही किन्‍तु घर से अनुमति मिल पाना कठिन हो रहा था। जो आज मिल गई।
अभी अनुमति मिली ही थी कि मेरी टिकट के लिये तैयारी करने लगा, और गाड़ी में चाभी लगा कर भूल गया। तभी अदिति‍ पता नही कैसे गाड़ी के पास पहुँची और आटोमैटिक होने के कारण वह स्‍टार्ट हो कर गिर पड़ी। काफी कुछ टूट-फूट हुआ, कल आई हुई गाड़ी में कई जगह ऐब आ चुके थे। मुझे बहुत तेज गुस्‍सा आ रहा था। करीब 1500-2000 तक का नुकसान हो चुका था। एक तरफ अदिति रो रही थी। उसे चोट नही लगी थी किन्‍तु उसे भी दुख था कि नई गाड़ी टूट गई। जो कुछ भी हुआ अच्‍छा ही हुआ, अदिति को चोट नही लगी। यदि 16 किलो की अदिति पर 88 किलो की गाड़ी गिरी होती तो अदिति की जो स्थिति होती, उसे मै सोच भी नही सकता। ईश्‍वर नुकसान तो किया किन्‍तु पुरे पर‍िवार को बड़े नुकसान से बचा लिया। गाड़ी है 2500-3000 लगा कर पहले जैसी करा लूँगा किन्‍तु अदिति को कुछ होता तो अमूल्‍य निधि लगा कर भी, पहले जैसी न करवा पाता। इस बस होने के बाद मै और अदिति उसी गाडी से हनुमान मन्दिर, अष्‍टभुजी माता के मन्दिर और साई बाबा के म‍ंदिर गया और हम दोनो ने अपना सभी के दरबार अपना माथा टेका और धन्‍यवाद दिया।

अदिति


साभार ( लिखना पड़ता है, कल को जबलपुर पहुँचने पर हमारे उपर चड़ बैठे तो लेने के देने पड़ जायेगे, जिसकी कल्‍पना मैने अदिति पर बाईक गिरने की की थी)
हमारी बात समीर जी की कीबोर्ड से - http://udantashtari.blogspot.com/2009/04/blog-post.html


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