समलैगिंक बनो पर अजीब रिश्‍ते को विवाह का नाम न दो, विवाह को गाली मत दो



समलैंगिकता एक जटिल प्रश्न है, किन्तु यह जिस प्रकार हमारे समाज पर हावी हो रहा है यह विचारणीय हो सकता है, जब दिल्‍ली हाईकोर्ट फिर उच्चतम न्यायालय भी रूल 377 को हटाने का फैसला कर चुके है तो अब कोई अदालत नहीं बचती कि वहाँ इसके खिलाफ अपील की जाए।


मैंने अभी तक किसी को पढ़ा उन्होंने लिखा था समलैंगिकता भले ही अपराध न हो किन्तु अनैतिक जरूर है, मै इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ। तथा यह भी जोडना चाहूंगा कि समलैंगिकता को सामाजिक चोला पहनाना उससे भी बड़ा अनैतिक है। वह दृश्य बड़ा भयावह होगा जब लोग केवल अप्राकृतिक सेक्स के लिये समलैंगिक विवाह करेंगे, अर्थात संतान की इच्‍छा विवाह का आधार नहीं होगा।
आज हम अपने मित्र के साथ आराम से गले में हाथ डालकर रास्ते में चल सकते थे किन्तु कोर्ट के इस फैसले के बाद अब तो ऐसा करने से डर लगता है, कहीं लोग हमें ऐसा देख कर यह न कहे- देखो-देखो गे कपल जा रहे है। निश्चित रूप से कोर्ट के इस फैसले के बाद दोस्ती शर्मसार होगी। आज कल आपसी दोस्तो के मध्य समलैंगिक चर्चा आम हो गई है। हम आराम से आज समलैंगिक चर्चा कर लेते है कि- यार इतना चिपक कर क्यों बैठ रहे हो?
 
कम से कम भारत के संदर्भ में यह चित्र उचित नहीं है जिस प्रकार खुले आम किया गया।

समलैंगिक होना गुनाह नही है, समलैंगिक भी इंसान है, और हो सकता है आम आदमी से ज्यादा ईमानदार। कोर्ट के फैसले के बाद जिस प्रकार से समलैंगिक शादियों का दौर चला वह निंदनीय था। धारा 377 जब गुनाह था तो भी समलैगिंक सेक्‍स होता था, आज भी सम्‍भव है, इसके लिये सामाजिक मान्यता देना गलत है और आज आवश्यकता कि सहमति से स्‍थापित समलैंगिक सेक्‍स दण्‍ड से दूर रखा जाता न कि विवाह की मान्यता देना।

कौन कहता है कि भारतीय नारी पिछड़ी है ? आदमी तो आदमी नारियों में भी है यह बीमारी

हिन्दू विवाह का उद्देश्य सिर्फ विवाह का उद्देश्य सिर्फ सेक्‍स ही नही सन्‍तानोत्‍पत्ति भी है, बिना संतान उत्पत्ति के विवाह का उद्देश्य अपूर्ण है। अब आदमी का आदमी के साथ और औरत का औरत का विवाह वो भी सिर्फ अप्राकृतिक सेक्‍स यह तो उचित नही जान पड़ता है। वे आपस में दोस्‍त बन रहे, सेक्‍स करे या भाड़ मे जाये यह उन पर निर्भर करता है, किंतु ऐसे सम्‍बन्‍धो को विवाह का नाम देना विवाह जैसे पवित्र बंधन हो गाली देना होगा।

चित्र विभिन्‍न सूत्र से साभार


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चिट्ठकारी की दुकान चलाना हर किसी के बस में नही



चिट्ठकारी की दुकान कुछ की बहुत तेजी से चल रही है तो कुछ की सुप्‍तावस्‍था में तो कुछ की बंद भी हो गई। हिन्‍दी चिट्ठाकारी में बड़े बड़े समूहों ने हाथ आजमाने की कोशिश की उसी में एक जो‍श18 समूह का गरम चाय> जून 2006 से चलते चलते अप्रेल 2009 में बंद हो गया। आज चिट्ठाकारों के द्वारा चिट्ठाकारी बंद करना तो समझ में आता है किन्‍तु इतने बड़े समूह द्वारा चली चलाई चिट्ठकाकारी बंद करना समझ से परे है। खैर जो कुछ भी है चिट्ठाकारी को शुरू करने के समय उत्‍साह और बंद करने के कारणों पर विचार करना चाहिये।


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