अल्लाह की शक्ति का अतिक्रमण करता भारतीय संविधान, कठमुल्लों फतवा जारी करो



मुस्लिमों द्वारा वन्दे मातरम् को लेकर जो गंदा खेल खेला जा रहा है, उसके पीछे देश के एकीकृत ढाचे को तोड़ने की मंशा दिखाई देती है। वन्दे मातरम् कोई गीत मात्र नहीं है बल्कि देश की आजादी के समय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में जोश भर देने वाला मंत्र था, जिसे गर्व से हिन्दू भी गाता था और मुसलमान भी और इसके साथ साथ स्वतंत्रता की लडाई लड़ने वाला हर भारतीय ने इसे स्वाभिमान के साथ स्वीकार किया। वंदे मातरम बोलते समय भगत सिंह अशफाक उल्ला के स्वर एक साथ फूटते थे और सीना चौड़ा कर अग्रेजो बत्तीसी तोड़ने की माद्दा रखते थे। ये असर थ वन्दे मातरम् का।
अल्लाह की शक्ति का अतिक्रमण करता भारतीय संविधान, कठमुल्लों फतवा जारी करो
 
कल सुरेश जी का लेख इस्लाम के "सच्चे" फ़ॉलोअर्स से आपका परिचय बहुत जरूरी है को मैने पढ़ा और वकाई इस्‍लाम के बारे में ऐसी बात जानने को मिली जिसकी जिन्दा ही की जानी चाहिये। इस्‍लामकि खलीफाओ की दादागीरि सिर्फ महिलाओ पर ही होती है। 112 का बुड्डा 17 साल की लड़की से शादी कर रहा है। और भी ऐसी बातें आप सुरेश जी के लेख में बेहतर पढ़ सकते है।

आज कुछ तुगलकी मुसलमान, ये कह रहे है कि वन्देमातरम गाने से वे नापाक हो जाएंगे तो वे कब का नापाक हो चुके है, जितनी बार वन्देमातरम का विरोध करते है उतनी बार ही भारत माता को प्रणाम भी करते है। देश का हर प्रकार के भोजन मे वंदे मातरम का गान गूँज रहा है और इसे मुसलमान भी खा रहे और और हिन्दू भी। आज मुसलमान हिंदुओं के साथ रह रहे है, जबकि इस्लाम मे कहा गया है जहाँ भी मूर्तिपूजक मिले उन्हें मार डालो, जब तक कि वे अल्‍लाह की पनाह मे न आ जाये। अरे नामकूलो 80 करोड़ हिन्दुओ के साथ रह कर अल्‍लाह के नियम को तुम कब का तोड़ चुके हो, तुम अल्लाह के गुनहगार हो गये हो, तुम न तो 80 करोड़ हिन्दुओ के मार सके और न ही उन्हें अल्लाह का गुलाम बना सके। अल्लाह के प्रति तुम लोग कितना अनैतिक काम किये जा रहे है, तब पर अल्लाह तुम पर रहम किये हुये है, तुम्हे हूरो से बद्दुआये नहीं दिलवा रहा, तुम गर्व से वंदे मातरम् गाओ, इस पर भी अल्लाह नाराज नही होगा।

यार तुम्हारा अल्लाह न हो गये हो गये छुई-मुई जब देखो तब किसी न किसी बात से नाराज हो जाते है कभी महिलाओ द्वारा पुरूष से सेक्‍स से इंकार करने पर भी अल्लाह नाराज हो जाता है तो कभी वंदे मातरम गाने से, अल्लाह को सर्वशक्तिमान बने रहने दो छुई-मुई मत बनाओ, अगर तुम लोग अल्लाह को छुई-मुई बनाओ के तो जरूर अल्लाह नाराज हो जायेगा।

हिन्‍दी चिट्ठकारी मे एक सनकी महाराज है, जब सनक सवार होती है तो एक घटिया पोस्‍ट डाल देते है अब वो कर रहे है कि देशभक्ति जताने के लिए मुसलमान 'वन्दे-मातरम्' के मुहताज नहीं है। अब वो देश भक्ति की बात भी करते है और अल्लाह भक्ति की भी जबकि उनके अनुसार इस्लाम सिर्फ अल्लाह की भक्ति की बात ही करता है। बन्देमातरम् गाकर देशभक्ति नही कर सकते तो गोलियों के दम देश से देश भक्ति न करो। वन्दे मारम् न गाने की बात अब हम पाकिस्‍तानी से सीखेगे वो हमे बतायेगा कि हम वन्दे मातरम् क्‍यो न गाये। जिस बड़े विद्वान डॉ. जाकिर अब्दुल करीम नाइक की बात हो रही है उसे मुसलमानों ने ही पिछले साल इलाहाबाद और लखनऊ मे घुसने नही दिया, इसलिए कि खुद मुसलमान इससे नफरत करते है।


आज सरकार और उनके गृह मंत्री के सामने यह सब हो रहा है और लज्जाहीन गृहमंत्री अपने सामने होने की बात से इंकार कर रहे है इससे ज्यादा शर्म की बात और क्‍या हो सकती है? कांग्रेसी नीति देश तोड़ो राज करो की नीति थी, आखिर कांग्रेस पैदाइश तो है अंग्रेजो की ही। गृहमंत्री को बाबरी ढांचा याद आता है गुजरात याद आ जाता है किन्तु वो कांग्रेसियो द्वारा सिखों पर हमले को वो भूल जाते है, आखिर क्यों ? क्योंकि खुद के दामन पर दाग आता है। जब तक देश में देश विरोधी शक्तियाँ सत्ता मे रहेगी 20 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यक रहेंगे और 2 करोड़ सिखों के साथ अन्याय किया जाता रहेगा।

आज वंदे मातरम गलत है तो कल को भारत के संविधान के खिलाफ फतवा जारी हो सकता है क्योंकि संविधान सभी को समानता का अधिकार देता है चाहे वो पुरुष हो या स्त्री पर इस्लाम की किताबो में लिखा है कि एक पुरूष की बयान दो महिलाओ के बराबर होती है। इस्लाम की कुछ ऐसी बातें जिसे संविधान प्रतिरोध करता है-
एक रखैल अपने मालिक की सम्पत्ति है, वह उसको कोड़े मार सकता है और बेच सकता है ।

भारतीय सविधान के अनुसार ऐसा कृत्‍य अपराध होगा।
वह एक बलात पत्नी है और वह अपने मालिक को उसकी इच्छानुसार उसके साथ संभोग करने से इंकार नहीं कर सकती, नही वह वहाँ से भाग सकती थी क्योकि भगोड़े दासों से संबंधित कानून वस्तुत: बहुत कठोर था।

महिला आयोग ही दंडा लेकर पीछे पड़ जायेगी।
यदि कोई स्त्री अपने पति से बुलाए जाने पर शय्या पर न आए तो वह फरिश्तों की बद्दुआओं का निशाना बन जाती है । यदि वह अपने पति की शय्या त्याग कर चली जाती है तो भी ठीक ऐसा ही होगा । ( बोखारी, खण्ड 7 पृष्ठ 93 )

आज के समय में स्त्रियाँ चाहे बद्दुआओं का निशाना बने या न बने, ऐसा कृत्‍य करने वाले इस्लामिक पुरूषो को महिला आयोग जरूर बद्दुआओं के शिकार हो जाएंगे।
फिर जब हराम के महीने बीत जाएं, तो 'मुशरिकों'* को जहाँ कहीं पाओ कत्ल करो, और पकड़ो, और उन्हें घेरो, और घात की जगह उनकी ताक में बैठो । फिर यदि वे ' तौबा ' कर लें नमाज कायम करें, और जकात दें, तो उनका मार्ग छोड़ दो । नि: सन्देह अल्लाह बड़ा क्षमाशील और दया करने वाला है । *मूर्तिपूजको (कुरान - '10 पार: 9 शूर: 5 वीं आयत)

ये भारतीय दंड संहिता की धाराओ का उल्‍लंघन करती है।
ये तो कुछ ही बाते है जो भारतीय संविधान की भावना का अतिक्रमण करने है और भारतीय संविधान इसका अतिक्रमण करता है। इस लहजे से जब वंदेमातरम से अल्लाह नाराज हो जाता है तो भारतीय संविधान द्वारा अल्लाह के पावर में हस्तक्षेप कैसे अल्लाह और उनके कठमुल्ले कैसे बर्दाश्त कर सकते है? फतवा तो संविधान के खिलाफ होना चाहिए। मुसलमानों का संविधान के प्रति फतावा जरूरी भी है, क्योंकि देशभक्ति जताने के लिये बंदेमातरम) जरूरी नही है उसी प्रकार मुस्लिमों के अनुसार देश में रहने के लिये संविधान भी जरूरी नही है। वैसे भी संविधान गैर इस्‍लामिक हो गया है, और मुस्लिमों के लिये भारत उनका कब रहा ही है जो वो संविधान से बंधे रहे?
और अंत में आज मुझे अपने हिन्दू होने और कहने पर गर्व है कि मै सूर्य, पृथ्वी, जल, वायु या प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष किसी के भी प्रति कृतज्ञता प्रकट कर सकता हूँ, जिससे हमें कुछ मिल रहा है हमारा धर्म हमें यही सिखाता भी है। क्योंकि हमारा ईश्वर छुई-मुई जो नही है, कि छूने से ही मुरझा जाये।


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क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?




मै भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच चल रहे क्रिकेट की बात नही कर रहा हूँ। मै आज बात करने जा रहा हूँ, मुम्बई और पंजाब के बीच खेले जा रहे रणजी किक्रेट मैच की। मै रणजी की बात कर रहा हूँ, मुझे मूर्ख ही कहा जाएगा क्योंकि भारत में रणजी की बात करने वाले को मूर्ख ही कहा जाता है। वो भी तब जबकि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच वनडे मैच आ रहा हो और भारत के सामने 350 रनों का विशाल लक्ष्य हो।
जिसे जो कहना हो कहे पर मै तो बात आज रणजी की ही करूँगा। आज पेपर में कल के मुंबई और पंजाब खेल खत्म होने पर खबर थी - पंजाब का पलटवार शीर्षक था पंजाब ने मुंबई के 244 के स्कोर पर सात विकेट ले लिए थे और पंजाब 14 रनों की बढ़त पर था। पर आज के तीसरे दिन जब मुम्बई न बैटिंग 244 के स्कोर पर सात पर शुरू की तो 471 के स्कोर पर 9 विकेट पर मुंबई को घोषित करनी पड़ी, अर्थात 7 और 8 वें विकेट की साझेदारी में कुल 227 रन बने, वाकई है न किक्रेट अनिश्चितता का खेल ? नौवें नंबर पर बैटिंग करने उतरे रमेश पोवार ने शतक लगा कर 125 पर नाबाद रहे।
रणजी के खेल के प्रति न तो बीसीसीआई अपनी रूच‍ि दिखाती है और न ही सरकार, यही कारण है कि रणजी जैसे घरेलू महत्‍पूर्ण मैच के खिलाडियो के प्रदर्शन का नकार दिया जाता है। चेतेश्‍वर पुजारा ने रणजी ट्राफी के नौ मैच में 82.36 की औसत से 906 रन बनाए जिसमें चार शतक शामिल हैं। चोपड़ा ने रणजी और विजय हजारे दोनों में 60 से अधिक औसत से रन बनाए लेकिन यह चयनकर्ताओं का ध्यान खींचने के लिए पर्याप्त नहीं था। गुजरात के पार्थिव पटेल ने तो विकेट के आगे और विकेट के पीछे दोनों भूमिकाओं में प्रभावशाली प्रदर्शन किया है। 
भारत के वर्तमान समय के सबसे ज्यादा विकेट लेने वाले गेंदबाज अजीत अगरकर को भी लगातार नजरअंदाज किया जा रहा है, जबकि वो अपने 300 वे विकेट से मात्र 12 विकेट दूर है, और लगातार रणजी में उम्दा प्रदर्शन कर रहे है। गुजरात के स्पिनर मोहनीश परमार [पिछले रणजी सत्र में 42 विकेट], ने अपने प्रदर्शन से कई पूर्व क्रिकेटरों को कायल बनाया लेकिन वह भी बालाजी [36 विकेट] और सिद्धार्थ त्रिवेदी [34 विकेट] की तरह चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। आखिर ये क्रिकेटर लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे है तो भी उन्हें राष्ट्रीय टीम में जगह क्यो नही मिल रही है ?
क्‍या भारत में रणजी का सिर्फ मजाक भर ही है ?
 


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