चर्च बना ''चकलाघर''- ईसाई पादरी ने युवती से किया बलात्‍कार




इस समय धर्मान्तरण के नाम पर ईसाइयों द्वारा समाज में जो नंगा नृत्य किया जा रहा है, उस पर मीडिया का मौन सच्चाई और मीडिया के अस्तित्व पर स्वयं प्रश्न चिन्ह उठता है। अकसर देखा जाता है कि हिंदूओं के नाम पर बहुत सारे टीवी कैमरे छा जाते है किन्तु अन्य धर्मों का नाम आने पर बात मौन हो जाती है, आखिर क्यों ?
मेरे गृह जनपद प्रतापगढ़ में ईसाई मिशनरी का नंगा नाच पिछले कुछ सालो से जारी है, चंगाई के नाम पर लोगों को ठगा जा रहा है। क्या यह वही ईसाई समाज है जो कभी हिन्दू धर्म में झाड़-फूंक, टोने-टोटके का विरोध कर अपने आपको ज्यादा शिक्षित साबित कर रहा था ? आज यही शिक्षित समाज चंगाई पर उतर आया। यह वही समाज है जो हिन्दू धर्म की धार्मिक मान्यताओं को पानी पी-पी कर कोसता था आज वही चंगाई के पानी से रोगों को ठीक कर रहा है।
मैं मुख्य विषय पर आऊँगा, हाल में ही उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ जिले में ईसाई मिशनरी के पादरी के द्वारा एक एक युवती को चार महीने तक कमरे बंद रखा गया और उसके साथ दुराचार किया जाता रहा और यह बात तब सामने आयी जब वह युवती उस पदारी के चंगुल से भागने में सफल हुई और प्रतापगढ़ के पुलिस अधीक्षक से मिल कर आपबीती बताई। जैसा कि पता चला कि नगर कोतवाली क्षेत्र के ईश्वरपुर गांव की एक युवती की तबीयत खराब रहती थी। ईसाई मिशनरी के कुछ लोगों ने उसे चंगाई कार्यक्रम के तहत ईसाई धर्म कबूल करने की सलाह दी गई। इसके लिए वह चार माह पूर्व शहर के एक पादरी के यहां पहुंच गयी। युवती का कहना है कि पादरी ने उसे झाड़-फूंक (चंगाई) के बहाने घर में कैद कर लिया और उसके साथ चार माह तक दुराचार करता रहा। इस दौरान पादरी लोगों से झाड़-फूंक कर उसे ठीक करने की बात कहता रहा।
सर्वप्रथम यह प्रश्न उठता है कि चंगाई के नाम कितने यौन शोषण के शिकार होते होगे, इसकी गिनती कर पाना बहुत कठिन है क्योंकि भारत के लाखों मोहल्ले में चंगाई के नाम पर यौन शोषण हो रहा होता है किन्तु लोग अपनी इज्जत खोने के डर से मौन रह जाते है। आखिर इज्जत का मौन बलात्कार होने के बाद शायद ही कोई सार्वजनिक बलात्कार करवाना चाहेगा।
हाल में गोवा में रूसी नाबालिग लड़की के साथ हुआ बलात्कार का अभियुक्त सेवा गोवा फ्रंट के अध्यक्ष और आरोपी जान फर्नांडिस (जो ईसाई ही है) राज्य के काफी प्रभावशाली नेता हैं, जॉन 2007 में बेनालिम निर्वाचन क्षेत्र से विधानसभा चुनाव हार गए थे। वर्ष 2008 में केरल पुलिस ने वर्ष 1992 में हुई एक नन की हत्या के आरोप में दो कैथोलिक पादरियों को गिरफ्तार किया था, तिरुवअनंतपुरम स्थित एक प्रयोगशाला में नन की मेडिकल रिपोर्ट के साथ छेड़छाड़ करने की घटना भी प्रकाश में आयी थी। क्या यही है विश्व के सबसे शिक्षित समाज का स्वच्छ चेहरा?
क्या हम इसे नैतिकता कहेंगे कि जो ईसा के नाम सच्चाई की बात करता है, और ईसा के सामने माफी मांगने पर हर गुनाह कबूल करने पर माफ करने की बात है। ईसाई पादरियों द्वारा ईसा और चंगाई के नाम पर चर्चो में ''चकलाघर'' खोला कहाँ तक ठीक है?


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साबरमती के संत तूने सच मे कर दिया कमाल..



आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि है, सर्वप्रथम श्रद्धा सुमन अर्पित करता हूँ। कल दैनिक जागरण में साबरमती के संत गीत के सम्‍बन्‍ध मे एक लेख था और आज के संस्करण में उसी से सम्बन्ध चर्चा पढ़ने को मिली। महात्मा गांधी के सम्मान में गाए जाने वाले गीत..दे दी आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल.. आज के समय मे कितना उचित है यह जानना जरूरी है ?

महात्मा गांधी जी ने देश की आजादी में अहम योगदान दिया इसे अस्वीकार करना असम्‍भव है पर यह गीत वास्तव मे देश की आजादी में अपना बलिदान देने वाले लोगों को कमतर बताता है। आज स्वयं आकालन करने की जरूरत है कि क्या आजादी हमें खड्ग, बिना ढाल के ही मिली है ? ईमानदारी से कहे तो गीत लिखने वाले भी इसे स्वीकार नहीं करेंगे।
भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई 1857 और उससे भी पहले छोटी मोटे तौर पर लड़ी जा रही थी, शहीद मंगल पांडेय, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई और अनगिनत ऐसे लोगों ने अपने जान की परवाह न करते हुये भारत माता को आजाद करने के लिये हर सम्भव प्रहार किया। गांधी जी के भारत आने के बाद की परिस्थिति दूसरी थी, गांधी जी 1915 में भारत आये और 1916 से विभिन्न आंदोलनों में भाग लिया। आज हम अपने बच्चों तो जो पढ़ा रहे हे कि हमें आजादी बिना खड्ग और ढाल के मिली है इससे तो यही सिद्ध करना चाहते है कि गांधी से पहले स्वतंत्रता के नाम पर सिर्फ मजाक हो रहा था? और गांधी जी के आने के बाद यथावत स्वतंत्रता की लड़ाई बिना खड्ग और ढाल के लड़ी गई ?
जो सम्मान गांधी का हो रहा है उसी प्रकार का सम्मान हर स्वतंत्रता सेनानी के साथ होना चाहिये। अगर इतिहासकारों की माने तो गांधी युग न होता तो 20 साल पहले भारत आजाद हो चुका होता और भारत विभाजन की नौबत ही नहीं आती। गांधी जी का यह गुणगान सिर्फ गांधी वादियो को ही सुहा सकता है, उन्हें ही इसे गाना चाहिये। अगर देश की आत्मा के साथ यह गान बहुत बड़ा मजाक है। यह गाना तो सीधे सीधे यही कह रहा है कि गांधी बाबा एक तरफ और सारे शहीद क्रान्तिकारी एक तरफ और तब पर भी गांधी भारी ? क्या यही सही है ?


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