प्रकृति का पर्व: नागपंचमी



श्रावण मास की शुक्लपक्ष की पँचमी तिथि नागों को समर्पित है। श्रीमद्भागवद गीता के 10वें अध्याय के 29वें श्लोक में भगवान स्वयं कहते हैं-अनंतश्चास्मि नागानां वरूणो यादसामहम्। अर्थात् मैं नागों में शेषनाग और जलचरों का अधिपति वरूण हूँ। पौराणिक ग्रंथों के अनुसार शेषनाग समस्त नागों के राजा और हजारों फनों से युक्त हैं वे स्वयं श्रीहरि की शैया बनकर सदैव उनकी सेवा में रत रहते हैं।
Naga Panchami
शास्त्रानुसार नागों की उत्पत्ति महर्षि कश्यप की पत्नी कद्रू से हुई है, नागों का मूल निवास स्थान पाताल लोक को माना गया है। पुराणों में नागों की राजधानी भोगवतीपुर विख्यात है। नाग कन्याओं का सौंदर्य किसी भी अप्सरा से कमतर नहीं है और योगसाधना में भी ‘कुण्डलिनी शक्ति’ को सर्पिणी का ही रूप बताया गया है। हमारे देश में नागों की पूजा देवता के रूप में किए जाने की पुरानी परम्परा है। इसका पता पौराणिक ग्रंथों के अतिरिक्त पुरानी सभ्यताओं के अवशेषों से भी लगता है। इससे स्पष्ट होता है कि भारतीय समाज में नागों को सदैव ही आदरणीय और पूजनीय स्थान प्राप्त है। सनातन ग्रंथों की मान्यता है कि भगवान के नाम का स्मरण करते समय नागों की नामावली का पाठ करना विष नाशक और सर्वत्र विजय दिलाने वाला होता है। नागों के प्रमुख नौ नाम नवनाग देवता कहलाते हैं:-अनंत वासुकिं शेष पद्मनाभ च कंबलम्। शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
Naga Panchami
नागपँचमी का पर्व मनाने के संबंध में एक प्राचीन कथा मिलती है, जिसके अनुसार एक बार नागों ने अपनी माता कद्रू की आज्ञा की अवहेलना की इससे क्रोधित होकर नागमाता ने उन्हें यह श्राप दे दिया कि ‘जब राजा जन्मेजय नाग-यज्ञ करेंगे तो उसकी अग्नि में तुम सब जलकर भस्म हो जाओगे।’ तब नागों ने ब्रह्माजी से श्राप से मुक्त होने का उपाय पूछा। ब्रह्माजी बोले- यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारू तुम्हारे बहनोई होंगे और उनका पुत्र आस्तिक तुम्हारी रक्षा करेगा। इस तरह से ब्रह्माजी ने यह वरदान नागों को शुक्लपक्ष की पँचमी को ही दिया था। इसी तिथि में आस्तीक मुनि ने नागों का परिरक्षण किया था। नागों को संरक्षित करने के प्रयास से आरंभ हुई नागपँचमी आज भी पूर्ण प्रासंगिक है आज भी नागों सहित अन्य सर्पों को बचाने की आवश्यकता है। इसका कारण भी है क्योंकि सर्प हमारे पर्यावरण संतुलन के लिए परमावश्यक जीव हैं और हमारी कृषि के लिए भी ये बहुउपयोगी हैं ये चूहों और कीटपतंगों से फसलों की रक्षा करते हैं।
नागपंचमी नागदेवता की पूजा का मुख्य पर्व है। पंचमी तिथि को नागपंचमी का त्योहार नागदेवता को ही समर्पित है। इस त्योहार पर व्रतपूर्वक नागदेव का पूजन किया जाता है। नागदेव की जाति सर्प है, जोकि भगवान् विष्णु की शय्या के रूप में हैं, भगवान् भोलेशंकर के गले की शोभा है, गणेश दुर्गा आदि देव देवियों के आभूषण स्वरूप हैं। सर्प जाति बहुत ही निडर होती है तथा बिना किसी दोष के कुछ भी नही करती कहा गया है कि- सिंहानां महती निद्रा सर्पाणां च महद्भयम्। ब्राह्मणानां न चैकत्वं तस्माद् जीवन्ति जन्तवः।।
अर्थात् सिंहो को बहुत नींद आती है तथा सर्पों को बहुत भय रहता है तथा ब्राह्मणों में एकता नही है। इसलिए सभी जीव-जन्तु इस धरातल पर जी रहे हैं। श्रीमद्देवीभागवत् महापुराण में नागपँचमी की कथा इस प्रकार से है। इस कथा को कहने वाले सुमंत मुनि तथा सुनने वाले पाण्डव वंश के राजा शतानीक थे- देवताओं और असुरों द्वारा समुन्द्रमँथन से प्राप्त चैदह रत्नों में से उच्चैःश्रवा नामक अश्व आकाश मार्ग से जा रहा था। तभी उस अश्व पर नागमाता कद्रू तथा विमाता विनता की दृष्टि पड़ी दोनों में वार्ता हुई कि-बताओ बहन इस अश्व के बाल किस रंग के हैं। विमाता विनता ने कहा स्वेत तथा नागमाता कद्रू ने उसे चितकबरे रंग का बतलाया, फिर तो अपनी-अपनी बात पर अड़ गई और दोनों माताओं में शर्त लग गई कि एक दूसरे की बात असिद्ध होने पर जिसकी भी बात सिद्ध होगी तो वह दूसरी की दासी बन जाएगी। नागमाता कद्रू ने सभी नागों को आज्ञा दी कि सभी सर्प केश सदृश बनकर उस अश्व के शरीर में प्रवेश करो। किन्तु नागों ने असमर्थता प्रकट कर उनकी आज्ञा का पालन नही किया तभी माता कद्रू ने उन सर्पों को श्राप दे दिया कि पांडववंश के राजा जब अपने पिता की मृत्यु के बदले में नागयज्ञ करेंगे तब उस यज्ञ में तुम सभी सर्प आहुति के रूप में उस अग्नि में प्रवेश करोगे। इस श्राप से भयाक्राँत सभी सर्प वासुकि सर्प के नेतृत्व में ब्रह्माजी के पास गए और इससे निवारण का उपाय पूछा। ब्रह्माजी ने उन्हें उपाय बताते हुए कहा-यायावर वंश में उत्पन्न तपस्वी जरत्कारू को अपना बहनोई बनाओ तथा उसके संयोग से उत्पन्न आस्तिक ही तुम्हारी रक्षा करेगा। ब्रह्माजी ने सर्पों को यह युक्ति पँचमी तिथि को बताई थी अतएव तब से इस तिथि पर आस्तिक मुनि द्वारा नागों का परिक्षण और तभी से नागपँचमी पर्व मनाया जाता है।
हमारे ऋषि-मुनियों द्वारा नागोपासना के अनेक व्रत पूजन विधानों को बताया गया है। नागों को अत्यंत प्रसन्न करने वाली इस श्रावणशुक्ल की पँचमी पर उनको गोदुग्ध से स्नान व पारणादि कराया जाता है। व्रत के साथ एक ही बार भोजन करने का नियम है। पूजन के समय पृथ्वी पर नागों का चित्रांकन कर सवर्ण, रजत, काष्ठ या फिर मृत्तिका से नाग बनाकर पुष्प, धूप, गन्धादि से पूजन करना चाहिए। नागपूजन में निम्न मंत्रों को पढ़कर नागों को प्रणाम किया जाता है- सर्वें नागाः प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले। ये च हेलिमरीचिस्था येऽन्तरे दिविसंस्थिता।। ये नदीषु महानागा ये सरस्वतिगामिनः। ये च वापीडागेषु तेषु सर्वेषु वै नमः।।
अर्थात् जो नाग पृथ्वी आकाश, स्वर्ग, सूर्य की किरणों, सरोवरों, वापी, कूप तथा तालाबादि में वास करते हैं वे हम सब पर प्रसन्ना हों, हम उनको शत्शत् नमन करते हैं। नागपूजन वनसम्प्रदायों में भारत के विभिन्न पहाड़ी क्षेत्रों में एवं राजस्थान के कई क्षेत्रों में बड़े ही सम्मान के साथ नागदेवता का पूजन किया जाता है। यथासंभव नागों को न मारने की परंपरा आज भी भारत में जीवित है क्योंकि भारतवर्ष के जनमानस का विचार ‘‘सर्वं खल्विदं ब्रह्म’’ इस उक्ति को ही सिद्ध करता है।
नागपंचमी पर कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए करें ये उपाय
जब किसी व्यक्ति की कुंडली में सभी ग्रह राहु और केतु के बीच में आ जाते हैं, तो ऐसा माना जाता है कि उस व्यक्ति की कुंडली में काल सर्प योग बन गया है। यदि ऐसा होता है तो उस व्यक्ति के द्वारा की गई मेहनत का फल उसे नहीं मिल पाता है। इसी कारण से इस दोष का निवारण करना बहुत ज़रूरी होता है। नागपंचमी का पर्व कालसर्प दोष से मुक्ति पाने के लिए सबसे उत्तम माना जाता है। मान्यता है कि नागपंचमी के दिन मंदिरों में नाग देवता की पूजा करने से कालसर्प दोष खत्म हो जाता है। कालसर्प दोष से मुक्ति के लिए नागपंचमी पर करें ये उपाय :
  1. नाग पंचमी के दिन भगवान शिव का अभिषेक करें और उन्‍हें चांदी के नाग और नागिन का जोड़ा अर्पित करें, इससे कालसर्प दोष से मुक्‍ति मिल सकती है।
  2. नाग पंचमी के दिन रुद्राभिषेक करने से भी कालसर्प दोष को कम किया जा सकता है।
  3. नव नाग स्तोत्र का 108 बार पाठ करें।
  4. अगर संभव हो तो किसी सपेरे से जीवित नाग और नागिन का जोड़ा खरीदें और उसे जंगल में मुक्त करवाएं
  5. नागपंचमी के दिन बहते हुए जल में 11 नारियल प्रवाहित करें। इससे भी कालसर्प दोष खत्म होता है।
  6. नाग पंचमी के दिन पीपल के पेड़ के नीचे किसी बर्तन में दूध रखें। इन मंत्रों का करें जाप: कालसर्प दोष से पीड़ित लोगों को नाग पंचमी के दिन नाग की विधि विधान से पूजा करनी चाहिए। इसके अलावा नाग गायत्री मंत्र- ‘ॐ नवकुलाय विद्यमहे विषदंताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्’ का जाप करें। इस दिन ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ नागदेवताय नम:’ मंत्र का 11 या 21 माला जाप करने से भी कालसर्प दूर होता है।
नागपंचमी पूजा विधि: घर के मुख्यद्वार के दोनों ओर नाग का चिंत्र बनाएं या उनकी प्रतिमा स्थापित करें। फिर धूप, दीपक, कच्चा दूध, खीर आदि से नाग देवता की पूजन करें। भोग में गेंहू, भूने हुए चने और जौं का इस्तेमाल करें। प्रसाद नागों को चढ़ाएं और लोगों को बांटें।

नागपंचमी में नागों की पूजा से संबंधित कई कथाएं
  1. दूध की कटोरी से नागिन हुई प्रसन्न - नागपंचमी की कई कथाओं में एक कथा आंध्रप्रदेश में काफी लोकप्रिय है। किसी समय एक किसान अपने दो पुत्रों और एक पुत्री के साथ रहता था। एक दिन खेतों में हल चलाते समय किसान के हल के नीचे आने से नाग के तीन बच्चे मर गए। नाग के मर जाने पर नागिन ने रोना शुरू कर दिया और उसने अपने बच्चों के हत्यारे से बदला लेने का प्रण किया। रात में नागिन ने किसान व उसकी पत्नी सहित उसके दोनों लड़कों को डस लिया। अगले दिन प्रात: किसान की पुत्री को डसने के लिये नागिन फिर चली तो किसान की कन्या ने उसके सामने दूध से भरा कटोरा रख दिया। और नागिन से हाथ जोड़कर क्षमा मांगने लगी। नागिन ने प्रसन्न होकर उसके माता-पिता व दोनों भाइयों को पुन: जीवित कर दिया। कहते हैं कि उस दिन श्रावण मास की पंचमी तिथि थी। उस दिन से नागों के कोप से बचने के लिये नागों की पूजा की जाती है और नाग -पंचमी का पर्व मनाया जाता है।
  2. नाग भाई ने दिए बहन को उपहार - एक धनवान सेठ के छोटे बेटे की पत्नी रूपवान होने के साथ ही बहुत बुद्धिमान भी थी। उसका कोई भाई नहीं था। एक दिन सेठ की बहुएं घर लीपने के लिए जंगल से मिट्टी खोद रही थीं तभी वहां एक नाग निकला। बड़ी बहू उसे खुरपी से मारने लगी तो छोटी बहू ने कहा ‘सांप को मत मारो’। यह सुनकर बड़ी बहू ने रुक गई। जाते-जाते छोटी बहू सांप से थोड़ी देर में लौटने का वादा कर गई। मगर बाद में वह घर के कामकाज में फंसकर वहां जाना भूल गई। दूसरे दिन जब उसे अपना वादा याद आया तो वह दौड़कर वहां पहुंची जहां सांप बैठा था और कहा, ‘सांप भैया प्रणाम!’ सांप ने कहा कि आज से मैं तेरा भाई हुआ, तुम्हें जो कुछ चाहिए मुझसे मांग लो। छोटी बहू ने कहा, ‘तुम मेरे भाई बन गये यही मेरे लिए बहुत बड़ा उपहार है।’ कुछ समय बाद सांप मनुष्य रूप में छोटी बहू के घर आया और कहा कि मैं दूर के रिश्ते का भाई हूं और इसे मायके ले जाना चाहता हूं। ससुराल वालों ने उसे जाने दिया। विदाई में सांप भाई ने अपनी बहन को बहुत गहने और धन दिये। इन उपहारों की चर्चा राजा तक पहुंच गयी। रानी को छोटी बहू का हार बहुत पसंद आया और उसने वह हार रख लिया। रानी ने जैसे ही हार पहना वह सांप में बदल गया। राजा को बहुत क्रोध आया मगर छोटी बहू ने राजा को समझाया कि अगर कोई दूसरा यह हार पहनेगा तो यह सांप बन जाएगा। तब राजा ने उसे क्षमा कर दिया और साथ में धन देकर विदा किया। जिस दिन छोटी बहू ने सांप की जान बचायी थी उस दिन सावन कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि थी इसलिए उस दिन से नाग पंचमी का त्योहार मनाया जाता है।
  3. नाग की पूजा से मिला संतान सुख - नाग पंचमी से संबंधित एक अन्य कथा के अनुसार एक राजा के सात पुत्र थे। सभी का विवाह हो चुका था। उनमें से छ: पुत्रों के यहां संतान का जन्म हो चुका था। राजा के सातवें पुत्र के घर संतान का जन्म नहीं हुआ था। संतानहीन होने के कारण उन दोनों को घर और समाज में तानों का सामना करना पड़ता था। समाज की बातों से उसकी पत्नी परेशान हो चुकी थी। परन्तु पति यही कहकर समझाता था, कि संतान होना या न होना तो ईश्वर के हाथ है। इसी प्रकार उनकी जिन्दगी संतान की प्रतीक्षा में गुजर रहे थे। एक दिन श्रवण मास की पंचमी तिथि के दिन रात में राजा की छोटी बहू ने सपने में पांच सांप देखे। उनमें से एक सांप ने कहा कि, पुत्री तुम संतान के लिए क्यों दुःखी होती हो, हमारी पूजा करो तुम्हारे घर संतान का जन्म होगा। प्रात: उसने यह स्वप्न अपने पति को सुनाया, पति ने कहा कि जैसे स्वप्न में देखा है, उसी के अनुसार नागों का पूजन करो। उसने उस दिन व्रत कर नागों का पूजन किया, और कुछ समय बाद उनके घर में संतान का जन्म हुआ।


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स्‍पीक एशिया का झूठ पर झूठ और रही जनता को लूट



 
युवाओं को बरगलाने वाली स्पीक एशिया ऑनलाइन पर सरकारी शिकंजा कसता जा रहा है। नई खबरों के मुताबिक सिंगापुर के यूनाइटेड ओवरसीज बैंक ने स्पीक एशिया के खातों को बंद कर दिया है। जबकि स्पीक एशिया ग्राहकों को बरगलाने मे कोई कसर नहीं छोड़ रही है, इस घटनाक्रम के बाद स्पीक एशिया ने एक बयान में कहा, ‘सिंगापुर में हमारे खातों को फ्रीज नहीं किया गया है, बल्कि हम सिर्फ कंपनी के खातों को दूसरे बैंक में ले जा रहे हैं।' कंपनी दूसरे बैंक मे खाता खोलने की बात कर रही है जबकि सिंगापुर में नया बैंक अकाउंट खोलने में छह माह से भी ज्यादा का समय लगेगा। ऐसे में किसी भी निवेशक को पैसे वापस नहीं किए जा सकते हैं।
जबकि भारत मे भी कड़ा कदम उठाते हुये रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के एजीएम आर माहेश्वरी ने साफ कर दिया है कि भारत में स्पीक एशिया को कारोबार करने या गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था के रूप में काम करने की अनुमति नहीं दी गई है। शुक्रवार सुबह कंपनी के खाते फ्रीज किए जाने की खबर मिलते ही राजधानी के निवेशकों में खलबली मच गई।
 ग्राहकों को बरगलाने के मामले मे स्पीक एशिया जरा भी पीछे नही दिख रही है है, वह सार्वजनिक स्थानों पर झूठ पर झूठ बोले जा रही है। कंपनी ने कहा था कि आईसीआईसीआई, बाटा, एयरटेल, नेस्ले उसके ग्राहक, यह तथ्य झूठ पाए गए, भारत में तीन ऑफिस खुलने की बात कही जबकि अभी तक एक भी ऑफिस नहीं है। कई रिटेल कंपनियों के पार्टनर बनने की बात कही थी किन्तु हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। सिंगापुर में कारोबार करने की बात की थी किन्तु तथ्यों से मेल नहीं खाए।
स्पीक एशिया का भारत में करीब 19 लाख लोगों को डायरेक्ट एजेंट बना चुकी स्पीक-एशिया के खातों में 10 हजार करोड़ रुपए से अधिक की रकम जमा है और यह पूरा पैसा भारत से बाहर जा चुका है या जाने की प्रक्रिया में है। भारत के युवा वर्ग को इस प्रकार चालो मे फंसने से बचना चाहिए। और उद्यमिता की ओर रुख करना चाहिये।


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महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक रहस्य



भारतीय जन-मानस में यह मान्यता है कि शिव में सृजन और संहार की क्षमता है। उनकी यह भी मान्यता है कि शिव ‘आशुतोष' हैं अर्थात् जल्दी और सहज ही प्रसन्न हो जाने वाले हैं। इसी भावना को लेकर वे शिव पर जल चढ़ाते और उनकी पूजा करते हैं। परन्तु प्रश्न उठता है कि जीवन भर नित्य शिव की पूजा करते रहने पर भी तथा हर वर्ष श्रद्धापूर्वक शिवरात्रि पर जागरण, व्रत इत्यादि करने पर भी मनुष्य के पाप एवं संतान क्यों नहीं मिटते? उसे मुक्ति और जीवनमुक्ति अथवा शक्ति क्यों नहीं मिलती? उसे राज्य भाग्य का अमर वरदान क्यों नहीं प्राप्त होता? आखिर शिव को प्रसन्न करने की सहज विधि क्या है? शिवरात्रि का वास्तविक रहस्य क्या है? हम सच्ची शिवरात्रि कैसे मनाए? 'शिव' का ‘रात्रि' के साथ क्या सम्बन्ध है जबकि अन्य देवताओं की पूजा-अर्चना दिन में होती है। शिवरात्रि से जुड़े इन प्रश्नों का उत्तर इसके आध्यात्मिक रहस्य का उद्घाटन करते हैं।
Mahashivratri 2023
महारात्रि अज्ञानता और पापाचार की सूचक है ‘शिवरात्रि' फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की अंतिम रात्रि (अमावस्या) से एक दिन पहले मनाई जाती है। परमपिता परमात्मा शिव का अवतरण इस लोक में कलियुग के पूर्णान्त से कुछ ही वर्ष पहले हुआ था जबकि सारी सृष्टि अज्ञान अन्धकार में थी। इसलिए 'शिव' का सम्बन्ध ‘रात्रि' से जोड़ा जाता है और परमात्मा शिव की रात्रि में पूजा को अधिक महत्व दिया जाता है। श्री नारायण तथा श्रीराम आदि देवताओं का पूजन तो दिन में होता है क्योंकि श्री नारायण और श्री राम का जन्म क्रमश: सतयुग एवं त्रेता युग में हुआ था। मन्दिरों में उन देवताओं को रात्रि में 'सुला' दिया जाता है और दिन में ही उन्हें जगाया जाता है। परन्तु परमात्मा शिव की पूजा के लिए तो भक्त लोग स्वयं भी रात्रि को जागरण करते हैं।
आज पूर्व लिखित रहस्य को न जानने के कारण कई लोग कहते हैं कि 'शिव' तमोगुण के अधिष्ठाता (आधार) है इसलिए शिव की पूजा रात्रि को होती है और इसकी याद में शिवरात्रि मनाई जाती है। क्योंकि 'रात्रि' तमोगुण की प्रतिनिधि है परन्तु उनकी यह मान्यता बिल्कुल गलत है क्योंकि वास्तव में शिव तमोगुण के अधिष्ठाता नहीं है बल्कि तमोगुण के संहारक अथवा नाशक है। यदि शिव तमोगुण के अधिष्ठाता होते तो उन्हें शिव अर्थात कल्याणकारी, पापकटेश्वर एवं मुक्तेश्वर आदि कहना ही निरर्थक हो जाता। 'शिव' का अर्थ है- 'कल्याणकारी।' शिव का कर्तव्य आत्माओं का कल्याण करना है जबकि तमोगुण का अर्थ अकल्याणकारी होता है। यह पाप वर्धक एवं मुक्ति में बाधक है। अत: वास्तव में 'शिवरात्रि' इसलिए मनाई जाती है क्योंकि परमात्मा शिव ने कल्प के अंत में अवतरित होकर अज्ञानता, दु:ख और अशांति को समाप्त किया था।
Mahashivratri 2023
महाशिवरात्रि का आध्यात्मिक महत्व महाशिवरात्रि के बारे में एक मान्यता तो यह भी है कि इस रात्रि को परमपिता परमात्मा शिव ने महासंहार कराया था और दूसरी मान्यता यह है कि इसी रात्रि को अकेले ईश्वर ने अम्बा इत्यादि शक्तियों से सम्पन्न होकर रचना का कार्य प्रारम्भ किया था। परन्तु प्रश्न उठता है कि शिव तो ज्योर्तिलिंगम् और अशरीरी हैं। वह संहार कैसे और किस द्वारा कराते हैं और नई दुनिया स्थापना की स्पष्ट रूपरेखा क्या है?
ज्योतिस्वरूप परमपिता परमात्मा शिव प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा सतयुगी सतोप्रधान सृष्टि की स्थापना और शंकर द्वारा कलियुगी तमोप्रधान सृष्टि का महाविनाश करते हैं। कलियुग के अन्त में ब्रह्मा के तन में प्रवेश करके उसके मुख द्वारा ज्ञान-गंगा बहाते हैं। इसलिए शिव को 'गंगाधर' भी कहते हैं और ‘सुधाकर' अर्थात् 'अमृत देने वाला' भी कहते हैं। प्रजापिता ब्रह्मा द्वारा जो भारत-माताएं और कन्याएं ‘गंगाधर' शिव की ज्ञान-गंगा में स्नान करती अथवा ज्ञान सुधा (अमृत) का पान करती हैं, वे ही शिव-शक्तियां अथवा अम्बा, सरस्वती इत्यादि नामों से विख्यात होती हैं। ये चैतन्य ज्ञान-गंगाएं अथवा ब्रह्मा की मानस पुत्रियां ही शिव का आदेश पाकर भारत के जन-मन को शिव-ज्ञान द्वारा पावन करती हैं इसलिए शिव 'नारीश्वर' और 'पतित-पावन' अथवा 'पाप-कटेश्वर' भी कहलाते हैं क्योंकि मनुष्यात्माओं को शक्ति-रूपा नारियों अथवा माताओं द्वारा ज्ञान देकर पावन करते हैं तथा उनके विकारों रूपी हलाहल को पीकर उनका कल्याण करते हैं और उन्हें सहज ही मुक्ति तथा जीवन मुक्ति का वरदान देते हैं। वे सभी मनुष्यात्माओं को शरीर से मुक्त करके शिवलोक को ले जाते हैं। इसलिए वे मुक्तेश्वर भी कहलाते हैं। परन्तु ये दोनों कार्य कलियुग के अन्त में अज्ञान रूपी रात्रि के समय शिव के द्वारा ही सम्पन्न होते हैं।
Mahashivratri 2023

इसलिए स्पष्ट है कि ‘शिवरात्रि' एक अत्यन्त महत्वपूर्ण वृत्तांत का स्मरणोत्सव है। यह सारी सृष्टि की समस्त मनुष्यात्माओं के पारलौकिक परमपिता परमात्मा के दिव्य जन्म का दिन है और सभी की मुक्ति और जीवन मुक्ति रूपी सर्वश्रेष्ठ प्राप्ति की याद दिलाती है। इस कारण से शिवरात्रि सभी जन्मोत्सवों अथवा जयन्तियों की भेंट में सर्वोत्कृष्ट है क्योंकि अन्य सभी जन्मोत्सव तो मनुष्य आत्माओंअथवा देवताओं के जन्म दिन की याद में मनाये जाते हैं जबकि शिवरात्रि मनुष्य को देवता बनाने वाले, देवों के भी देव, धर्म पिताओं के भी पिता, सद्गति दाता, परम प्रिय, परमपिता परमात्मा के दिव्य और परम कल्याणकारी जन्म का स्मरणोत्सव है। इसे सारी सृष्टि के सभी मनुष्यों को बड़े उत्साह से मनाना चाहिए परन्तु आज मनुष्य आत्माओं को परमपिता परमात्मा का यथार्थ परिचय न होने के कारण अथवा परमात्मा शिव को नाम-रूप से न्यारा मानने के कारण शिव जयन्ति का महात्म्य बहुत कम हो गया है और लोग धर्म के नाम पर ईर्ष्या और लड़ाई करते हैं।
Mahashivratri 2023
सच्ची शिवरात्रि मनाने की रीति भक्त लोग शिवरात्रि के दिन होने वाले उत्सव पर सारी रात्रि जागरण करते हैं और यह सोचकर कि खाना खाने से आलस्य, निद्रा और मादकता का अनुभव होने लगता है, वे अन्न भी नहीं खाते हैं ताकि उनके उपवास से भगवान शिव प्रसन्न हों परन्तु मनुष्यात्माओं को तमोगुण में सुलाने वाली और रुलाने वाली मादकता तो पांच विकार हैं। जब तक मनुष्य इन विकारों का त्याग नहीं करता तब तक उसकी आत्मा का पूर्ण जागरण हो ही नहीं सकता और तब तक आशुतोष भगवान शिव भी उन पर प्रसन्न नहीं हो सकते हैं क्योंकि भगवान शिव तो स्वयं ‘कामारि' (काम के शत्रु) हैं, वे भला 'कामी' मनुष्य पर कैसे प्रसन्न हो सकते हैं? दूसरी बात यह है कि फाल्गुन के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी रात्रि को मनाया जाने वाला शिवरात्रि महोत्सव तो कलयुग के अंत के उन वर्षों का प्रतीक है, जिसमें भगवान शिव ने मनुष्यों को ज्ञान द्वारा पावन करके कल्याण का पात्र बनाया था। अत: शिवरात्रि का व्रत सारे वर्ष मनाना चाहिए क्योंकि वर्तमान संगमयुग में परमात्मा का अवतरण हो चुका है। इस कलियुगी सृष्टि के महाविनाश की सामग्री एटम, हाइड्रोजन, परमाणु बमों के रूप में तैयार हो चुकी है व परम प्रिय परमात्मा द्वारा विश्व नव-निर्माण का कर्तव्य भी सम्पन्न हो रहा है। अब महाविनाश के समय तक ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करें ताकि मनोविकारों पर ज्ञान-योग द्वारा विजय प्राप्त कर सकें। यही महा व्रत है जो कि 'शिवव्रत' के नाम से प्रसिद्ध है और यही वास्तव में शिव का मन्त्र (मत) है जो कि 'तारक-मन्त्र' के नाम से प्रसिद्ध है क्योंकि इसी व्रत से अथवा मन्त्र से मनुष्यात्माएं इस संसार रूपी विषय सागर से तैर कर, मुक्त होकर शिवलोक को चली जाती हैं। इस वर्ष परमात्मा शिव को इस सृष्टि पर अवतरित हुए 81 वर्ष हो रहे हैं। परमात्मा शिव ईश्वरीय ज्ञान और राजयोग की शिक्षा से सर्व मनुष्यात्माओं को पावन बना रहे हैं। आप भी परमात्मा के साथ सच्ची शिवरात्रि मनाकर जन्मजन्मान्तर के लिए श्रेष्ठ भाग्य प्राप्त कर सकते हैं।


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