Hanuman Mantra for Strength & Power





मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्तिदायक हनुमान मंत्र
Lord Hanuman

सर्वप्रथम स्नानादि से निवृत्त होकर मंगलवार या शनिवार के दिन शुद्ध आसन पर विराजमान होकर श्री राम दरबार को सामने स्थापित कर श्री हनुमान जी का ध्यान करना चाहिए, ध्यान करने हेतु मंत्र दिया गया है:-

श्री हनुमान ध्यान मंत्र:-
उद्यन्मार्तण्ड कोटि प्रकटरूचियुतं चारूवीरासनस्थं।
मौंजीयज्ञोपवीतारूण रूचिर शिखा शोभितं कुंडलांकम्‌
भक्तानामिष्टदं तं प्रणतमुनिजनं वेदनाद प्रमोदं।
ध्यायेद्नित्यं विधेयं प्लवगकुलपति गोष्पदी भूतवारिम॥

भावार्थ:- उदय होते हुए करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी, मनोरम वीर तथा आसन में स्थित मुंज की मेखला और यज्ञोपवीत धारण किए हुए कुंडली से शोभित मुनियों द्वारा बारम्बार वंदित, वेद नाद से प्रहर्षित वानर कुल स्वामी, समुद्र को एक पैर में लांघने वाले देवता स्वरूप, भक्तों को अभीष्ट फल देने वाले श्री रामभक्त हनुमान जी मेरी रक्षा करें।

इस प्रकार हनुमान जी का ध्यान कर लेने के पश्चात श्री राम दरबार का ध्यान मन में करते हुए पूर्ण श्रद्धा तथा आस्था रखकर मंत्रों में विश्वास करते हुए श्रद्धा सहित मंत्र का जाप आरम्भ करना चाहिए | मंत्र इस प्रकार है:-


In Hindi:-
ॐ ह्राँ ह्रीं ह्रैं हनुमते श्री रामदूताय नमो नमः
ॐ नमो भगवते आञ्जनेयाय महाबलाय स्वाहा ||
In English:-
Ohm Hram Hrim Hraim Hanumate Shree Ramdutay Namo Namah:
Ohm Namo Bhagawate Aanjneyay Mahabalay Swaha ||
इस मंत्र का जाप कम से कम 108 बार अवश्य ही करना चाहिए तथा संभव हो सके तो प्रतिदिन संध्या कल में 21 बार इस मंत्र का जाप करने से मनुष्य कि सारी चिंताओ तथा पीडाओ को हनुमान जी हर लेते है तथा मानसिक तथा शारीरिक शांति प्रदान करते है।

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आपसी प्रेम और भाईचारा प्रेरक प्रसंग



बहुत पुरानी कथा है। किसी गांव में दो भाई रहते थे।बडे की शादी हो गई थी। उसके दो बच्चे भी थे। लेकिन छोटा भाई अभी कुंवारा था। दोनों साझा खेती करते थे।
एक बार उनके खेत में गेहूं की फसल पककर तैयार हो गई। दोनों ने मिलकर फसल काटी और गेहूं तैयार किया।
इसके बाद दोनों ने आधा-आधा गेहूं बांट लिया। अब उन्हें ढोकर घर ले जाना बचा था । रात हो गई थी, इसलिए यह काम अगले दिन ही हो पाता। रात में दोनों को फसल की रखवाली के लिए खलिहान पर ही रुकना था। दोनों को भूख भी लगी थी।
दोनों ने बारी-बारी से खाने की सोची। पहले बड़ा भाई खाना खाने घर चला गया। छोटा भाई खलिहान पर ही रुक गया। वह सोचने लगा- भैया की शादी हो गई है, उनका परिवार है, इसलिए उन्हें ज्यादा अनाज की जरूरत होगी।
यह सोचकर उसने अपने ढेर से कई टोकरी गेहूं निकालकर बड़े भाई वाले ढेर में मिला दिया। बड़ा भाई थोड़ी देर में खाना खाकर लौटा। उसके बाद छोटा भाई खाना खाने घर चला गया। बड़ा भाई सोचने लगा - मेरा तो परिवार है, बच्चे हैं, वे मेरा ध्यान रख सकते हैं, लेकिन मेरा छोटा भाई तो एकदम अकेला है, इसे देखने वाला कोई नहीं है। इसे मुझसे ज्यादा गेहूं की जरूरत है। उसने अपने ढेर से उठाकर कई टोकरी गेहूं छोटे भाई वाले गेहूं के ढेर में मिला दिया।
इस तरह दोनों के गेहूं की कुल मात्रा में कोई कमी नहीं आई। हां, दोनों के आपसी प्रेम और भाईचारे में थोड़ी और वृद्धि जरूर हो गई।


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सूक्ति महाभारत से



कुर्वतो नार्थसिद्धिर्मे भवतीति ह भारत।
निर्वेदो नात्र कर्तव्यो द्वावन्यौ ह्रत्र कारणम्।। - वेदव्यास (महाभारत,वनपर्व, 32/50)

हे भारत! पुरुषार्थ करने पर भी यदि सिद्धि न प्राप्त हो तो खिन्न नहीं होना चाहिए, क्योंकि फल-सिद्धि में पुरुषार्थ के अतिरिक्त भी प्रारब्ध तथा ईश्वर कृपा दो अन्य कारण हैं।


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