मोदी और ओबामा की 'मन की बात'



मोदी-ओबामा की 'मन की बात' man ki baat modi obama
मोदी-ओबामा की 'मन की बात'
ओबामा से सवालः वापस जाने पर अपनी बेटियों को आप भारत के बारे में क्या बताएंगे? ओबामा से सवालः वापस जाने पर अपनी बेटियों को आप भारत के बारे में क्या बताएंगे?
जवाबः मेरी बेटियां भारत आने को उत्सुक थीं। स्कूल की परीक्षाओं में व्यस्तता के कारण वे नहीं आ सकीं। भारत के स्वाधीनता संग्राम से वह बेहद प्रभावित हैं। वापस जाकर उन्हें बताऊंगा कि भारत उनकी कल्पना के अनुरूप ही भव्य है। मुझे पूरा यकीन है कि वे अगली बार भारत आने की जिद जरूर करेंगी।

ओबामा से सवालः मोटापे और डायबिटीज जैसी चुनौतियों के खिलाफ मिशेल ओबामा काम कर रही हैं। आपका कार्यकाल खत्म होने के बाद भी क्या बिल गेट्स और उनकी पत्नी की तरह वे भारत में ऐसा काम करेंगी?
जवाबः मिशेल के प्रयासों पर मुझे गर्व है। मोटापे की समस्या पूरी दुनिया को चपेट में ले रही है। कुछ जगह छोटी उम्र में ही बच्चे इसके शिकार हो रहे हैं। इस दिशा में भारत और अन्य देशों के साथ मिलकर काम करेंगे।

मोदी से सवालः मैंने (पाठक) वाइट हाउस के बाहर एक पर्यटक के रूप में आपकी पुरानी फोटो देखी है। आप जब दोबारा वाइट हाउस गए तो कैसा महसूस हुआ?
जवाबः मुझे वाइट हाउस में एक बात ने छू लिया। बराक ने मुझे एक किताब दी थी। 1894 में वह किताब प्रसिद्ध हुई थी। किताब विवेकानंद के धर्म संसद में दिए भाषण का संकलन थी। ओबामा ने किताब देते हुए गर्व के साथ कहा कि मैं उस शिकागो से आता हूं जहां विवेकानंद आए थे। इसने मेरे दिल को छू लिया।

बराक से सवालः क्या आपने सोचा था कि एक दिन आप वाइट हाउस में बैठेंगे?
जवाबः मोदी जी आपकी तरह मैंने भी कभी नहीं सोचा था कि वाइट हाउस में रहूंगा। हम दोनों साधारण परिवारों में जन्में हैं। हमें अपने देश में मौजूद असाधारण संभावनाओं का लाभ मिला है। हम जैसे लाखों बच्चों को भी यह मौका मिलना चाहिए।

मोदी से सवालः कभी इस पद पर पहुंचेंगे, आपने यह कल्पना की थी?
जवाबः मैंने भी यह कभी कल्पना नहीं की थी। मैं भी सामान्य परिवार से आता हूं। कभी कुछ बनने नहीं करने के सपने देखने चाहिए। मैंने जीवन में कभी भी बनने का सपना नहीं देखा था।

मोदी से सवालः आप किस अमेरिकन नेता से प्रभावित हैं?
जवाबः बचपन में हम जॉन कैनेडी की फोटो देखते थे, मुझे वह अच्छे लगते थे। मैंने बेंजामिन प्रैंकलिन का जीवन चरित्र पढ़ा। वह अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं थे। उनका जीवन चरित्र मुझे बेहद प्रेरक लगा। इसे हर किसी को पढ़ना चाहिए। मुझे आज भी इससे प्रेरणा मिलती है।

ओबामा से सवालः इतनी कठिनाइयों के बाद भी आपकी खुशी और प्रेरणा का क्या राज है?
जवाबः मेरे पास वही समस्याएं आती हैं, जिन्हें हर कोई हल नहीं कर पाता। अगर वे आसान होतीं तो उन्हें कोई और हल कर चुका होता। मुझे सबसे अधिक प्रेरणा देता है लोगों के जीवन में प्रेरणा लाना। कई बार लोग आपको धन्यवाद देते हैं, जिनकी आपने 4-5 साल पहले मदद की होती है। जो आपको याद भी नहीं होते। अगर आपकी मंशा लोक कल्याण की हो, तो इसके संतोष की सीमा नहीं है।

कार्यक्रम के आखिर में मोदी ने अपने जीवन का एक प्रसंग सुनाया, उन्होंने कहा, ' बचपन में एक परिवार बार-बार खाने के लिए बुलाता था, लेकिन मैं जाता नहीं था। मैं इसलिए नहीं जाता था, क्योंकि वह गरीब परिवार था। एक बार मैंने काफी जोर देने पर न्योता स्वीकार कर लिया। एक छोटी सी झोंपड़ी में बाजरे की रोटी और दूध दिया गया। उनका छोटा बच्चा दूध की ओर देख रहा है। मैंने दूध का कटोरा उसे दिया, तो वह उसे तुरंत पी गया। ऐसा लगा जैसे मां के दूध के सिवा उसने दूध देखा ही न हो। परिवार वाले नाराज थे कि उसने ऐसा क्यों किया। वे लोग मेरे लिए दूध खरीदकर लाए थे। मुझे यह घटना गरीबों के लिए काम करने की प्रेरणा देती है।

मोदी ने इस दौरान कम्युनिज्म की नई परिभाषा भी बताई। उन्होंने कहा, 'एक समय कम्युनिस्ट विचारधारा वाले दुनिया में आह्वान करते थे-दुनिया के कामगारो एक हो जाओ, आज मैं कहूंगा-युवाओ दुनिया को एक करो।'


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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस



भारत को स्वतंत्रता दिलाने के लिए, विदेशों में प्रयत्न करने के उद्देश्य से, विदेश जाने के पूर्व नेता जी सुभाष चन्द्र बोस का इरादा पूजनीय डॉक्टर जी से विचार-विनिमय करने का था। जर्मनी, जापान आदि देशों से मदद लेकर आजाद हिंद सेना का गठन कर पूर्व की ओर से भारत पर आक्रमण कर उसे स्वतंत्र करने की व्यापक योजना तैयार की गई थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस
इस आक्रमण के समय ही भारत की क्रांतिकारी संगठित होकर देश में अंग्रेज सत्ता के विरुध्द बगावत खड़ी कर सकेंगे- आवश्यक हुआ ता गृहयुद्ध का सहारा भी लेंगे ताकि भारत को स्वाधीनता दिलाने का स्वप्न शीघ्र ही पूरा किया जा सके- इस दृष्टि से श्री सुभाष चन्द्र बोस ने अनेक क्रांतिकारियों से संपर्क साधा था- इसी संदर्भ में वे डॉक्टर जी से भी मिलना चाहते थे। 1938 के मई मास में उन्होंने भेंट करने का प्रयास भी किया किन्तु उन दिनों डॉक्टरजी अस्वस्थता के कारण देवळाली में थे, इसलिए वह भेंट नहीं कर हो पायी। बाद में 1940 के जून में जब श्री सुभाषचन्द्र बोस नागपुर आये, तब तो पू. डॉक्टर जी मरणासन्न स्थिति में थे, इसलिए श्री सुभाष चन्द्र दूर से ही डॉक्टर जी को प्रणाम कर लौट गए। नागपुर से कानपुर (या लखनऊ) गए, जहां उन्होंने एक गुप्त बैठक में भाग लिया। इस गुप्त बैठक में, उचित समय आने पर आंतरिक उठाव करने सम्बन्धी विचार-विनिमय होने की बात कानों कान सुनी गई। किन्तु ऐसी गुप्त बैठक के पूर्व श्री सुभाष चन्द्र बोस को डॉक्टरजी से विचार-विनिमय करने की आवश्यकता महसूस हुई। इससे यह प्रतीत होता है कि श्री सुभाष चन्द्र बोस को इस बात का पूर्ण विश्वास था कि क्रांतिकारियों ही गोपनीय योजनाओं का सफल क्रियान्वयन डॉक्टर जी के सहयोग से ही संभव है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का चिंतन और नेताजी सुभाषचंद्र बोस
ऐसे ही एक घटना है कि वर्मा की क्लंग घाटी पर आजाद हिन्द फौज का मुकाबला अंग्रेजी सेना की एक टुकड़ी से हो गया। आजाद हिन्द फौज के कुल तीन जवान और अंग्रेजों की 169 सैनिकों की भारी-भरकम टुकड़ी। इस भीषण परिस्थिति में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस बैठे स्वामी विवेकानंद की पुस्तक पढ़ रहे थे। पुस्तक के इस अंश ने-जब संकटों के बादल सिर पर मंडरा रहे हों, तब भी मनुष्य को धैर्य नहीं छोड़ना चाहिए। धैर्यवान व्यक्ति भीषण परिस्थितियों में भी विजयी होते हैं।” नेताजी को प्रकाश प्रेरणा से आलोकित कर दिया। घाटी से खबर आयी कि क्या तीनों सैनिक पीछे हटा लिये जाएँ? नेताजी के हृदय में छुपे विवेकानन्द के विचार फूट पड़े। वे बोले-प्रातः काल तो वे स्वयं मुठभेड़ की लड़ाई के लिए चढ़ दौड़े। जब उस चौकी पर पहुँचे तो देखा कि अंग्रेजी सेना के कुछ सिपाही तो मरे पड़े हैं, शेष अपना सामान छोड़कर भाग गये हैं।
सुभाष चन्द्र बोस हैं नहीं, पर स्वतंत्रता का सबसे पहला आनन्द उन्होंने ही लिया। मातृभूमि पर अपना सर्वस्व निछावर करने वाले अमर सेनानी के बारे में यदि यह कहा जाए, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि स्वामी विवेकानंद के साहित्य ने उन्हें चिरमुक्त बना दिया था। उनमें अगाध निर्भयता, धैर्य और साहस था। यह सब गुण उन्हें विवेकानन्द साहित्य से विरासत में मिले थे। उन्होंने जो कुछ भी पढ़ा, उसके एक-एक वाक्य को अपने जीवन का एक-एक चरण बना लिया। उसी का प्रतिफल था कि वह जापान, सिंगापुर और जर्मनी जहाँ कहीं भी गये, उनका स्वागत उसी प्रकार हुआ जिस प्रकार स्वामी विवेकानंद का अमेरिका और इंग्लैंड में। भारतीय जनमानस में अभी भी वे जीवंत व्यक्तित्व के रूप में रचे-बसे हैं और प्रकाश एवं प्रेरणा स्रोत बने हुए हैं। वस्तुतः यह श्रेय स्वाध्याय को ही है, जो सुभाष की जीवन शिला पर क्रियाशीलता बनकर खुद चुका था।

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