मक्का काबा मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग



काबा और भगवान शिव 
'काबा' अरब का प्राचीन मन्दिर है। जो मक्का शहर में है। विक्रम की प्रथम शताब्दी के आरम्भ में रोम के इतिहास लेखक 'द्यौद्रस् सलस्' लिखता है - यहाँ इस देश में एक मंदिर है, जो अरबों का अत्यंत पूजनीय है। इस कथन से इस बात को बल मिलता है कि काबा और भगवान शिव का कोई न कोई प्राचीन जुड़ाव जरूर है। पूरा विश्व आज काबा का सच को जानने को उत्सुक है किंतु वर्तमान परिदृश्य में काबा में गैर-इस्लामिक या कहे कि गैर मुस्लिम का जाना प्रतिबंधित है इस कारण काबा के अंदर क्या है और इसके पीछे सच का बहुत खुलासा आज तक नहीं हो पाया है।
क्या मक्का पहले मक्केश्वर महादेव शिवलिंग था 
क्या मक्का पहले मक्केश्वर महादेव शिवलिंग था
मक्का मदीना का सच 
मक्का मदीना का सच
makkeshwar shivling (मक्केश्वर शिवलिंग)
Makkeshwar Shivling मक्केश्वर शिवलिंग Makka Madina Shivling

इस्लामिक मान्यता से इतर काबा शरीफ का इतिहास
संपूर्ण विश्व क्या भारत के लोग ही यह कटु सत्य स्वीकार नहीं कर सकते कि इस्लाम ने हिन्दू की आस्था माने जाने वाले असंख्य मंदिर तोड़े है और उनके स्थान पर उसी मंदिर के अवशेष से मस्जिदों को निर्माण करवाया। मक्का का इतिहास के बारे इसी बात से पता चलता है कि इस्लामिक विध्वंसक गतिविधियाँ इतनी प्रचंडता के साथ की जाती थी कि तक्षशिला विश्वविद्यालय और सोमनाथ मंदिर विध्वंस किये गये, तो भारत से हजारों किलो मीटर दूर काबा और मक्‍का मे क्या हुआ होगा, इसके बारे में कह पाना बिना अध्ययन के बहुत उचित नहीं होगा।

इस्लाम नींव इस आधार पर रखी गई कि दूसरों के धर्म का अनादर करने और उनको नेस्तनाबूत और पवित्र स्थलों को खंडित कर वहाँ मस्जिद और मकबरे का निर्माण किया जाए। इस काम बाधा डालने वाले जो लोग भी सामने आये उन लोगों को मौत के घाट उतार दिया जाये। भले ही वे लोग मुस्लिमों को परेशान न करते हो। मुहम्मद साहब और मुसलमानों के हमले से मक्का और मदीना के आस पास का पूरा इतिहास बदल दिया गया। इस्लाम एक तलवार पे बना धर्म था है और रहेगा और इसका अंत भी उस से ही होगा किंतु पी एन ओक ने सिद्ध कर दिया है मक्केश्वर शिवलिंग ही हजे अस्वद है। मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं।

काबा में शिव और मक्का मदीना का रहस्य
द्वारिका शारदा पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का मानना है कि मक्का में मक्केश्वर महादेव मंदिर है। मुहम्मद साहब भी शैव थे, इसलिए वे मक्केश्वर महादेव को मानते थे। एक बार वहां लोगों ने बुद्ध की मूर्ति लगा थी, वह इसके बहुत विरोधी थें। अरब में मुहम्मद पैगम्बर से पूर्व शिवलिंग को 'लात' कहा जाता था। मक्का के काबा में जिस काले पत्थर की उपासना की जाती रही है, भविष्य पुराण में उसका उल्लेख मक्केश्वर के रूप में हुआ है। इस्लाम के प्रसार से पहले इजराइल और अन्य यहूदियों द्वारा इसकी पूजा किए जाने के स्पष्ट प्रमाण मिले हैं। इराक और सीरिया में सुबी नाम से एक जाति थी यही साबिईन है। इन साबिईन को अरब के लोग बहुदेववादी मानते थे। कहते हैं कि साबिईन अर्थात नूह की कौम। माना जाता है कि भारतीय मूल के लोग बहुत बड़ी संख्या में यमन में आबाद थे, जहां आज भी श्याम और हिन्द नामक किले मौजूद हैं। विद्वानों के अनुसार सऊदी अरब के मक्का में जो काबा है, वहां कभी प्राचीन काल में 'मुक्तेश्वर' नामक एक शिवलिंग था जिसे बाद में 'मक्केश्वर' कहा जाने लगा।
अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)
अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है 'मक्केश्वर लिंग' (मक्केश्वर महादेव)
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।
मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैर-कानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं।

मक्का के गेट पर साफ-साफ लिखा था कि काफिरों का अंदर जाना गैरकानूनी है। कहा जा रहा है अब इस बोर्ड को उतार दिया गया है और लिख दिया है नॉन-मुस्लिम्स का अंदर जाना माना है। इसका मतलब है कि ईसाई, जैनी या बौद्ध धर्म को भी मानने वाले इसके अंदर नहीं जा सकते हैं। मक्का मदीना के शिवलिंग का रहस्य क्‍या है इसे इस्लाम पंथियों द्वारा सदा से छिपाया जा रहा है।

मुसलमानों के पैगम्बर मुहम्मद एक ऐसे विध्वंसक गिरोह का नेतृत्व करते थे जो धन और वासना के पुजारी थे। मोहम्मद ने मदीना से मक्का के शांतिप्रिय मूर्तिपूजकों पर हमला किया और जबरदस्त नरसंहार किया। मक्का का मदीना के अपना अलग अस्तित्व था किन्तु मुहम्मद साहब के हमले के बाद मक्का मदीना को एक साथ जोड़कर देखा जाने लगा। जबकि मक्का के लोग जो कि शिव के उपासक माने जाते है। मुहम्मद की टोली ने मक्का में स्थापित कर वहां पे स्थापित की हुई 360 में से 359 मूर्तियाँ नष्ट कर दी और सिर्फ काला पत्थर सुरक्षित रखा जिसको आज भी मुस्लिमों द्वारा पूजा जाता है। उसके अलावा अल-उज्जा, अल-लात और मनात नाम की तीन देवियों के मंदिरों को नष्ट करने का आदेश भी मुहम्मद ने दिया और आज उन मंदिरों का नामों निशान नहीं है (हिशम इब्न अल-कलबी, 25-26)। इतिहास में यह किसी हिन्दू मंदिर पर सबसे पहला इस्लामिक आतंकवादी हमला था। उस काले पत्थर की तरफ आज भी मुस्लिम श्रद्धालु अपना शीश जुकाते है। किसी हिंदू पूजा के दौरान बिना सिला हुआ वस्त्र या धोती पहनते हैं, उसी तरह हज के दौरान भी बिना सिला हुआ सफेद सूती कपड़ा ही पहना जाता है।
मक्‍का मे विराजित प्रसिद्ध मक्‍केश्‍वर महादेव शिवलिंग
जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी आराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

जिस प्रकार हिंदुओं की मान्यता होती है कि गंगा का पानी शुद्ध होता है ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी अबे जम-जम के पानी को पाक मानते हैं। जिस तरह हिंदू गंगा स्नान के बाद इसके पानी को भरकर अपने घर लाते हैं ठीक उसी प्रकार मुस्लिम भी मक्का के आबे जम-जम का पानी भर कर अपने घर ले जाते हैं। ये भी एक समानता है कि गंगा को मुस्लिम भी पाक मानते हैं और इसकी आराधना किसी न किसी रूप में जरूर करते हैं।

मक्का मदीना का सच
मुसलमानों के सबसे बड़े तीर्थ मक्का मक्केश्वर महादेव का मंदिर था। वहां काले पत्थर का विशाल शिवलिंग था जो खंडित अवस्था में अब भी वहां है। हज के समय संगे अस्वद (संग अर्थात पत्थर, अस्वद अर्थात अश्वेत यानी काला) कहकर मुसलमान उसे ही पूजते और चूमते हैं। इस सम्बन्ध में प्रख्यात प्रसिद्ध इतिहासकार स्व0 पी.एन.ओक ने अपनी पुस्तक ‘वैदिक विश्व राष्ट्र का इतिहास’ में समझाया है कि मक्का और उस इलाके में इस्लाम के आने से पहले से मूर्ति पूजा होती थी। हिंदू देवी-देवताओं के मंदिर थे, गहन रिसर्च के बाद उन्होंने यह भी दावा किया कि काबा में भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग है। पैगंबर मुहम्मद ने हमला कर मक्का की मूर्तियां तोड़ी थीं। यूनान और भारत में बहुतायत में मूर्ति पूजा की जाती रही है, पूर्व में इन दोनों ही देशों की सभ्यताओं का दूरस्थ इलाकों पर प्रभाव था। ऐसे में दोनों ही इलाकों के कुछ विद्वान काबा में मूर्ति पूजा होने का तर्क देते हैं। हज करने वाले लोग काबा के पूर्वी कोने पर जड़े हुए एक काले पत्थर के दर्शन को पवित्र मानते हैं जो कि हिन्दूओं का पवित्र शिवलिंग है। वास्तव में इस्लाम से पहले मिडिल-ईस्ट में पीगन जनजाति रहती थी और वह हिंदू रीति-रिवाज को ही मानती थी।
 काबा के अंदर क्या है
काबा और भगवान शिव
मक्का शिव मंदिर
मक्‍केश्‍वर महादेव शिव
एक प्रसिद्ध मान्यता के अनुसार है कि काबा में “पवित्र गंगा” है। जिसका निर्माण महापंडित रावण ने किया था, रावण शिव भक्त था वह शिव के साथ गंगा और चंद्रमा के महात्मा को समझता था और यह जानता था कि कभी शिव को गंगा से अलग नहीं किया जा सकता। जहाँ भी शिव होंगे, पवित्र गंगा की अवधारणा निश्चित ही मौजूद होती है। काबा के पास भी एक पवित्र झरना पाया जाता है, इसका पानी भी पवित्र माना जाता है। इस्लामिक काल से पहले भी इसे पवित्र (आबे ज़म-ज़म) ही माना जाता था। रावण की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को एक शिवलिंग प्रदान किया जिसे लंका में स्थापित करने का कहा और बाद जब रावण आकाश मार्ग से लंका की ओर जाता है पर रास्ते में कुछ ऐसे हालत बनते हैं की रावण को शिवलिंग धरती पर रखना पड़ता है। वह दोबारा शिवलिंग को उठाने की कोशिश करता है पर खूब प्रयत्न करने पर भी लिंग उस स्थान से हिलता नहीं। वेंकटेश पंडित के अनुसार यह स्थान वर्तमान में सऊदी अरब के मक्का नामक स्थान पर स्थित है। सऊदी अरब के पास ही यमन नामक राज्य भी है जहाँ श्री कृष्ण ने कालयवन नामक राक्षस का विनाश किया था। जिसका जिक्र श्रीमदभगवत पुराण में भी आता है।
मक्का मदीना की फोटो जिसमें मक्केश्वर महादेव है
मक्का मदीना की फोटो जिसमें मक्केश्वर महादेव है
पहले राजा भोज ने मक्का में जाकर वहां स्थित प्रसिद्ध शिव लिंग मक्केश्वर महादेव का पूजन किया था, इसका वर्णन भविष्य-पुराण में निम्न प्रकार है :-
"नृपश्चैवमहादेवं मरुस्थल निवासिनं !
गंगाजलैश्च संस्नाप्य पंचगव्य समन्विते :
चंद्नादीभीराम्भ्यचर्य तुष्टाव मनसा हरम !
इतिश्रुत्वा स्वयं देव: शब्दमाह नृपाय तं!
गन्तव्यम भोज राजेन महाकालेश्वर स्थले !! "

चित्रों की प्रमाणिकता में शिव लिंग और मक्का
मक्का स्थित प्रचीन शिव लिंग


 मक्का की आन्तरिक संरचना और भगवान शिव लिंग
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जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा



जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा
ब्राह्मी एक परिचय (Brahmi An Introduction) - ब्राह्मी का एक पौधा होता है जो भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियॉं मुलामय, गूदेदार और फूल सफेद होते है। ब्राह्मी हरे और सफेद रंग की होती है। इसका स्वाद फीका होता है और इसकी तासीर शीतल होती है। ब्राह्मी का पौधा पूरी तरह से औषधीय है। यह पौधा भूमि पर फैलकर बड़ा होता है। इसके तने और पत्तियां मुलायम, गूदेदार और फूल सफेद होते हैं। इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी है। ब्राह्मी के फूल छोटे, सफेद, नीले और गुलाबी रंग के होते हैं। -यह पौधा नम स्‍थानों में पाया जाता है, तथा मुख्‍यत: भारत ही इसकी उपज भूमि है। इसे भारत वर्ष में विभिन्‍न नामों से जाना जाता है जैसे हिन्‍दी में सफेद चमनी, संस्‍कृत में सौम्‍यलता, मलयालम में वर्ण, नीरब्राम्‍ही, मराठी में घोल, गुजराती में जल ब्राह्मी, जल नेवरी आद‍ि तथा इसका वैज्ञानिक नाम बाकोपा मोनिएरी(Bacapa monnieri) है। इस पौधे में हायड्रोकोटिलिन नामक क्षाराभ और एशियाटिकोसाइड नामक ग्लाइकोसाइड पाया जाता है।यह पूर्ण रूपेण औषधी पौधा है। ब्राह्मी कब्‍ज को दूर करती है। इसके पत्‍ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होता है। ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है। यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं क्योंकि यह प्रधानतः जलासन्न भूमि में पाई जाती है। आयुर्वेद में इसका बहुत बड़ा नाम है।
औषधीय गुण - यह पूर्ण रूपेण औषधी पौधा है। यह औषधि नाडि़यों के लिये पौष्टिक होती है।
  • दिल का दोस्त (Heart Friendly) - ब्राह्मी बुद्धि और उम्र को बढ़ाती है। यह रसायन के समान होती है। यह बुखार को खत्म करती है, याददाश्त को बढ़ाती है। सफेद दाग, पीलिया, खून की खराबी को दूर करती है। खांसी, पित्त और सूजन को रोकती है। यह मानसिक रोगों में भी लाभकारी है और दिल के लिए भी फायदेमंद। ब्राह्मी को यह नाम उसके बुद्धिवर्धक होने के गुण के कारण दिया गया है। इसे जलनिम्ब भी कहते हैं, क्योंकि यह प्रधानत: जलासन्न भूमि में पाई जाती है। ब्राह्मी में रक्तशोधक गुण भी पाये जाते हैं। यह हृदय के लिए भी पौष्टिक होती है।
  • कार्य क्षमता संवर्धक (Work Capacity Extenders)- ब्राह्मी के पौधे के सभी भाग उपयोगी होते हैं। जहां तक हो सके ब्राह्मी को ताजा ही प्रयोग करना चाहिए। ब्राह्मी का प्रभाव मुख्यत: मस्तिष्क पर पड़ता है। यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है। लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
  • स्मृति बढ़ाए (Memory Enhancer)- मिर्गी के दौरों तथा उन्माद में भी ब्राह्मी बहुत लाभकारी होती है।सही मात्रा में इसका सेवन करने से याददाश्त दुरुस्त होती है। अल्पमंदता में ब्राह्मी का रस या चूर्ण पानी या मिसरी के साथ रोगी को दिया जाना चाहिए।ब्राह्मी के तेल की मालिश से मस्तिष्क की दुर्बलता तथा खुश्की दूर होती है तथा बुद्धि बढ़ती है।बच्चों को खांसी या छोटी उम्र में क्षयरोग होने पर छाती पर इसका गर्म लेप करना चाहिए, लाभ होता है। 200 ग्राम शंखपुष्पी के पंचांग (जड़, तना, फल, फूल, पत्ते) के चूर्ण में इतनी ही मात्रा में मिश्री और 30 ग्राम काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर पीस लें। इसे एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम प्रतिदिन 1 कप दूध के साथ सेवन करते रहने से स्मरण शक्ति (दिमागी ताकत) बढ़ जाती है।
  • कब्ज और गठिया में फायदेमंद (Beneficial in Arthritis and Constipation) - यह कई तरह के रोगों में फायदेमंद साबित होती है। यह कब्ज को दूर करती है। इसके पत्ते के रस को पेट्रोल के साथ मिलाकर लगाने से गठिया दूर होती है। 10 से 20 मिलीलीटर शंखपुष्पी के रस को लेने से शौच साफ आती हैं। प्रतिदिन सुबह और शाम को 3 से 6 ग्राम शंखपुष्पी की जड़ का सेवन करने से कब्ज (पेट की गैस) दूर हो जाती है।
ब्राह्मी के अन्य औषधीय उपयोग

ब्राह्मी के अन्य औषधीय उपयोग
  • ब्राह्मी में रक्‍त शुद्ध करने के गुण भी पाये जाते है।यह हृदय के लिये भी पौष्टिक होता है।यह मस्तिष्क के लिए टॉनिक है ही, उसे शान्ति भी देती है।
  • लगातार मानसिक कार्य करने से थकान हो जाने पर जब व्यक्ति की कार्यक्षमता घट जाती है तो ब्राह्मी के उपयोग से आश्चर्यजनक लाभ होता है।
  • ब्राह्मी और बादाम की गिरी की एक भाग ,काली मिर्च का चार भाग लेकर इनको पानी में घोटकर छोटी- छोटी गोली बनाकर एक-एक गोली नियमित रूप से दूध के साथ सेवन करने पर दिमाग की स्फूर्ति बनी रहती है।
  • ब्राह्मी 2.5 ग्राम, शंखपुष्पी -2.5 ग्राम ,बादाम क़ी गिरी पांच ग्राम, छोटी इलायची का पाउडर -2.5 ग्राम, इन सब को पानी में अच्छी तरह घोलकर छान लें और मिश्री मिलाकर सुबह शाम आधा से एक गिलास पीएं...इससे खांसी, बुखार में लाभ तो मिलता ही है साथ ही स्मरण शक्ति भी तीव्र होती है।
  • नींद न आने क़ी समस्या है तो आप ब्राह्मी का ताजा रस निकाल लें और इसे आधा लीटर गाय के कच्चे दूध में मिला लें और सात दिनों तक नियमित सेवन कर के देखें, आप तनावमुक्त होकर अच्छी नींद लेने लग जाएंगे।
  • ब्राह्मी के पांच मिलीग्राम स्वरस को 2.5 ग्राम कूठ के पाउडर और शहद के साथ सात दिनों तक सेवन कराने से पागलपन की बीमारी में भी लाभ मिलता है।
  • ब्राह्मी की ताजी पत्तियों का रस, बालवचा, शंखपुष्पी और कूठ को समान मात्रा में लेकर पुराने गाय के घी के साथ लगातार लेने से भी मानसिक रोगों में लाभ मिलता है।
  • यदि आपको बालों से सम्बंधित कोई समस्या है जैसे बाल झड़ रहे हों तो परेशान न हों बस ब्राह्मी के पांच अंगों का यानी पंचाग का चूर्ण लेकर एक चम्मच की मात्रा में लें और लाभ देखें।
  • बच्चों की स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए सौ ग्राम की मात्रा में ब्राह्मी, पचास ग्राम की मात्रा में शंखपुष्पी के साथ चार गुना पानी मिलाकर इसका अर्क निकाल लें और नियमित प्रयोग करें। बस ध्यान रहे कि खट्टी चीजें न खाएं आपको जल्द ही फायदा होगा।
  • यदि पेशाब में तकलीफ हो या पेशाब रूक रहा हो तो बस ब्राह्मी के दो चम्मच स्वरस में मिश्री मिलाकर दें। इससे पेशाब खुल कर आएगा।
  • यदि उच्च रक्तचाप का कोई विशेष कारण न हो तो ब्राह्मी की ताजी पत्तियों का स्वरस 2.5 मिलीग्राम मात्रा में शहद लेकर सेवन करें, इससे भी रक्तचाप नियंत्रित रहेगा। ये हैं इसके कुछ सामान्य नुस्खें, इसके अलावा भी ब्राह्मी का कई रोगों में उपयोग किया जा सकता है ।
  • यह बहुपयोगी नर्व टॉनिक है जो मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है । यह कमज़ोर स्मरण शक्ति वालों तथा दिमागी काम करने वालों के लिए विशेष लाभकारी है।
  • ब्राह्मी का पावडर अल्प मात्रा में (२ ग्राम) दूध में मिलाकर छानकर लेने से अनिद्रा के रोग में फायदा होता है।
  • ब्राह्मी का शरबत उन्माद रोग में लाभकारी होता है तथा गर्मियों में दिमाग को ठंडक प्रदान करता है। 4. शहद के साथ इसके पत्तों का रस प्रयोग करने से उच्च रक्तचाप में लाभ मिलता है।
  • बच्चों में दस्त लगने पर तीन अथवा चार पत्तियां जीरा तथा चीनी के साथ मिलाकर देने से तथा इसके पेस्ट को नाभि के चारों ओर लगाने से आराम मिलता है।
  • त्वचा सम्बन्धी विकारों जैसे एक्जीमा तथा फोड़े फुंसियों पर इसकी पत्तियों के चूर्ण को लगाने से फायदा होता है।
  • हाथीपाँव की शिकायत में सूजे हुए अंग पर इस पौधे के तने तथा पत्तियों का रस लगाने से सूजन कम करने में मदद मिलती है।
  • चटनी बनाते समय ब्राह्मी के कुछ पत्ते चटनी में डाल कर इसका लाभ उठाया जा सकता है।
  • रहमी को वास्तु की दृष्टि से भी महत्पूर्ण माना जाता है। जिस घर में ब्रहमी का पेड़ लगा होता है, उस परिवार के बच्चों की स्मरण शक्ति अच्छी होती है और घर में अचानक दुर्घटना होने की आशंका भी नहीं रहती है।
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