मुहावरे और लोकोक्तियाँ (Idioms and Proverbs)



हिंदी मुहावरे और लोकोक्तियाँ
विश्व की सभी भाषाओं में लोकोक्तियों का प्रचलन है। प्रत्येक समाज में प्रचलित लोकोक्तियाँ अलिखित कानून के रूप में मानी गई हैं। मनुष्य अपनी बात को और अधिक प्रभावपूर्ण बनाने के लिए इनका प्रयोग करता है।लोकोक्ति शब्द लोक+उक्ति के योग से निर्मित हुआ है। लोक में पीढ़ियों से प्रचलित इन उक्तियों में अनुभव का सार एवं व्यावहारिक नीति का निचोड़ होता है। अनेक लोकोक्तियों के निर्माण में किसी घटना विशेष का विशेष योगदान होता है और उसी कोटि की स्थिति परिस्थिति के समय उस लोकोक्ति का प्रयोग स्थिति या अवस्था के स्पष्टीकरण हेतु किया जाता है, जो उस सम्प्रदाय या समाज को सहर्ष स्वीकार्य होता है। मुहावरा एक ऐसा वाक्यांश होता है जिसके प्रयोग से अभिव्यक्ति-कौशल में अभिवृद्धि होती है। प्रायः मुहावरे के अंत में क्रिया का सामान्य रूप प्रयुक्त होता है। जैसे - i. नाकों चने चबाना , ii. दाँतों तले उँगली दबाना।

अंतर: लोकोक्ति का अपर नाम ‘कहावत’ भी है। लोकोक्ति जहाँ अपने आप में पूर्ण होती है और प्रायः प्रयोग में एक वाक्य के रूप में ही प्रयुक्त होती है, जबकि मुहावरा वाक्यांश मात्र होता है। लोकोक्ति का रूप प्रायः एक सा ही रहता है, जब कि मुहावरे के स्वरूप में लिंग, वचन एवं काल के अनुसार परिवर्तन अपेक्षित होता है।

मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ
मुहावरे व लोकोक्तियाँ
मुहावरे व लोकोक्तियाँ
मुहावरे
मुहावरे हमारी तीव्र हृदयानुभूति को अभिव्यक्त करने में सहायक होते हैं। इनका जन्म आम लोगों के बीच होता है। लोक-जीवन में प्रयुक्त भाषा में इनका उपयोग बड़े ही सहज रूप में होता है। इनके प्रयोग से भाषा को प्रभावशाली, मनमोहक तथा प्रवाहमयी बनाने में सहायता मिलती है। सदियों से इनका प्रयोग होता आया है और आज इनके अस्तित्व को भाषा से अलग नहीं किया जा सकता। यह कहना निश्चित रूप से गलत नहीं होगा कि मुहावरों के बिना भाषा अप्राकृतिक तथा निर्जीव जान पड़ती है। इनका प्रयोग आज हमारी भाषा अौर विचारों की अभिव्यक्ति का एक अभिन्न तथा महत्वपूर्ण अंग बन गया है। यही नहीं इन्होेंने हमारी भाषा को गहराई दी है तथा उसमें सरलता तथा सरसता भी उत्पन्न की है। यह मात्र सुशिक्षित या विद्वान लोगों की ही धरोहर नहीं है, इसका प्रयोग अशिक्षित तथा अनपढ़ लोगों ने भी किया है। इस प्रकार ये वैज्ञानिक युग की देन नहीं है। इनका प्रयोग तो उस समय से होने लगा, जिस समय मनुष्य ने अपने भावों को अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया था।
  1. अपना उल्लू सीधा करना : स्वार्थ सिद्ध करना
  2. अपनी खिचड़ी अलग पकाना: सबसे अलग रहना
  3. अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना: अपनी प्रशंसा स्वयं करना
  4. अपने पाँव पर कुल्हाड़ी मारना: स्वयं को हानि पहुँचाना
  5. अपने पैरो पर खड़े होना : आत्मनिर्भर होना
  6. अक्ल पर पत्थर पड़ना : बुद्धि भ्रष्ट होना
  7. अक्ल के पीछे लट्ठ लेकर फिरना : मूर्खता प्रदर्शित करना
  8. अँगूठा दिखाना : कोई वस्तु देने या काम करने से इनकार करना
  9. अंधे की लकड़ी होना : एकमात्र सहारा
  10. अच्छे दिन आना : भाग्य खुलना
  11. अंग-अंग फूले न समाना : बहुत खुशी होना
  12. अंगारों पर पैर रखना : साहस पूर्ण खतरे में उतरना
  13. आँख का तारा होना: बहुत प्यारा
  14. आँखें बिछाना: अत्यन्त प्रेम पूर्वक स्वागत करना
  15. आँखें खुलना : वास्तविकता का बोध होना
  16. आँखों से गिरना: आदर कम होना
  17. आँखों में धूल झोंकना : धोखा देना
  18. आँख दिखाना: क्रोध करना/डराना
  19. आटे दाल का भाव मालूम होना : बड़ी कठिनाई में पड़ना
  20. आग बबूला होना : बहुत गुस्सा होना
  21. आग से खेलना : जानबूझकर मुसीबत मोल लेना
  22. आग में घी डालना: क्रोध भड़काना
  23. आँच न आने देना : हानि या कष्ट न होने देना
  24. आड़े हाथों लेना : खरी-खरी सुनाना
  25. आनाकानी करना : टालमटोल करना
  26. आँचल पसारना : याचना करना
  27. आस्तीन का साँप होना : कपटी मित्र
  28. आकाश के तारे तोड़ना : असंभव कार्य करना
  29. आसमान से बातें करना: बहुत ऊँचा होना
  30. आकाश सिर पर उठाना: बहुत शोर करना
  31. आकाश पाताल एक करना : कठिन प्रयत्न करना
  32. आँख का काँटा होना : बुरा लगना
  33. आँसू पीकर रह जाना : भीतर ही भीतर दुखी होना
  34. आठ-आठ आँसू गिराना: पश्चाताप करना
  35. इधर-उधर की हाँकना : बेमतलब की बातें करना
  36. इतिश्री होना : समाप्त होना
  37. इस हाथ लेना उस हाथ देना: हिसाब-किताब साफ करना
  38. ईद का चाँद होना: बहुत दिनों बाद दिखाई देना
  39. ईंट से ईंट बजाना: नष्ट कर देना
  40. ईंट का जवाब पत्थर से देना : कड़ाई से पेश आना
  41. आँसू पोंछना : सांत्वना देना
  42. आँखें तरेरना : क्रोध से देखना
  43. आकाश टूट पड़ना: अचानक विपत्ति आना
  44. आग लगने पर कुआँ खोदना: ऐन मौके पर उपाय करना
  45. उंगली उठाना: निंदा करना/लांछन लगाना
  46. उन्नीस-बीस का फर्क होना : मामूली फर्क होना
  47. उल्टी गंगा बहाना : प्रचलन के विपरीत कार्य करना
  48. उड़ती चिड़िया पहचानना : बहुत अनुभवी होना
  49. उल्लू बनाना : मूर्ख बनाना
  50. उँगली पर नचाना : वश में करना
  51. उल्लू सीधा करना : अपना स्वार्थ देखना
  52. एक और एक ग्यारह होना : एकता में शक्ति होना
  53. एक लाठी से हाँकना : सबसे एक जैसा व्यवहार करना
  54. एक आँख से देखना : समदृष्टि होना/भेदभाव न करना
  55. एड़ी चोटी का जोर लगाना : बहुत कोशिश करना
  56. एक ही थाली के चट्टे-बट्टे होना : एक प्रवृत्ति के होना
  57. ओखली में सिर देना : जानबूझकर विपत्ति में फँसना
  58. ओढ़ लेना : जिम्मेदारी लेना
  59. और का और होना: एकदम बदल जाना
  60. औने-पौने बेचना : हानि उठाकर बेचना
  61. औघट घाट चलना: सही रास्ते पर न चलना
  62. कंचन बरसना: चारों ओर खूब धन मिलना
  63. काट खाना : सूने पन का अनुभव
  64. किस्मत ठोकना : भाग्य को कोसना
  65. कंठ का हार होना: प्रिय बनना
  66. काम में हाथ डालना : काम शुरू करना
  67. कूप मण्डूक होना : अल्पज्ञ होना
  68. कुएं में भाँग पड़ना: सब की बुद्धि मारी जाना
  69. कन्नी काटना: आँख बचाकर खिसक जाना
  70. कसौटी पर कसना: परीक्षण करना
  71. कलेजा मुँह को आना : व्याकुल होना/बहुत परेशान होना
  72. कलेजा ठंडा होना: संतुष्ट होना
  73. काम आना : युद्ध में मारा जाना
  74. कान खाना : शोर करना/परेशान करना
  75. कान भरना : चुगली करना
  76. कान में तेल डालना : शिक्षा पर ध्यान न देना/अनसुना करना
  77. कफन सिर पर बाँधना : लड़ने मरने को तैयार होना
  78. किं कर्तव्य विमूढ़ होना : कोई निर्णय न कर पाना
  79. कमर कसना : तैयार होना
  80. कोल्हू का बैल होना : हर समय श्रम करने वाला
  81. कलेजा टूक-टूक होना : दुःख पहुँचना
  82. कान कतरना : बहुत चतुराई दिखाना
  83. काम तमाम कर देना : मार देना
  84. कीचड़ उछालना : कलंक लगाना/नीचा दिखाना
  85. कंधे से कंधा मिलाकर चलना : साथ देना
  86. कच्चा-चिट्ठा खोलना : भेद खोलना
  87. कौड़ी के मोल बिकना : बहुत सस्ता होना
  88. कान का कच्चा होना : जल्दी बहकावे में आना
  89. कान पर जूँ न रेंगना : कोई असर न होना
  90. खून खौलना : गुस्सा आना
  91. खून के घूँट पीना : गुस्सा मन में दबा लेना
  92. खून पसीना एक करना: बहुत मेहनत करना
  93. खाक छानना: भटकना/काफी खोज करना
  94. खेत रहना : युद्ध में मारे जाना
  95. खाक में मिलना : बर्बाद होना
  96. खाक में मिलाना : बर्बाद करना
  97. खून-सूखना : भयभीत होना
  98. कठपुतली की तरह नाचना : किसी के वश में होना
  99. कब्र में पाँव लटकना : मौत के करीब होना
  100. कलम तोड़ना: अत्यधिक मर्मस्पर्शी रचना करना
  101. कलेजा छलनी करना : ताने मारना/व्यंग्य करना
  102. कलेजा थामकर रह जाना : असह्य बात सहन कर रह जाना
  103. कलेजे का टुकड़ा होना: अत्यंत प्रिय/आत्मिक होना
  104. कागज की नाव होना : क्षणभंगुर
  105. कागजी घोड़े दौड़ाना : केवल कागजी कार्यवाही करना
  106. कानों कान खबर न होना : किसी को पता न चलना
  107. कुत्ते की मौत मरना : बुरी दशा में प्राणांत होना
  108. कमर टूटना : सहारा न रहना
  109. कान भरना : किसी के विरूद्ध शिकायत करते रहना
  110. किसी का घर जलाकर अपना हाथ सेंकना: अपने छोटे से स्वार्थ के लिए दूसरों को हानि पहुँचाना
  111. कटे पर नमक छिड़कना: दुखी को और अधिक दुखी करना
  112. गुदड़ी का लाल होना : छुपा रुस्तम/गरीब किन्तु गुणवान
  113. गड़े मुर्दे उखाड़ना : बीती बातें छेड़ना
  114. गले पड़ना : जबरन आश्रय लेना
  115. गंगा नहाना : दायित्व से मुक्ति पाना
  116. गिरगिट की तरह रंग बदलना : अवसरवादी होना/निश्चय बदलना
  117. गुड़ गोबर होना : काम बिगड़ना
  118. गुड़ गोबर करना : काम बिगाड़ना। किया कराया नष्ट करना
  119. गुलछर्रे उड़ाना : मौज उड़ाना
  120. गाल बजाना : अपनी प्रशंसा करना
  121. गागर में सागर भरना : थोड़े में बहुत कुछ कह देना
  122. गांठ में कुछ न होना : पैसा पास न होना
  123. गला काटना : लोभ में पड़कर हानि पहुँचाना
  124. गर्दन पर छुरी फेरना : अत्याचार करना
  125. घाट-घाट का पानी पीना : स्थान-स्थान का अनुभव होना
  126. घाव पर नमक छिड़कना : दुखी को और दुखी करना
  127. घड़ों पानी पड़ना : बहुत लज्जित होना
  128. घी के दीये जलाना : बहुत खुश होना/खुशियाँ मनाना
  129. घर फूँक कर तमाशा देखना: अपना लुटाकर भी मौज करना/अपने नुकसान पर प्रसन्न होना
  130. घर सिर पर उठाना : बहुत शोर करना
  131. घोड़े बेचकर सोना : निश्चिंत होना
  132. घुटने टेक देना : हार मान लेना
  133. चादर के बाहर पैर पसारना : आय से अधिक व्यय करना
  134. चंगुल में फँसना : किसी के काबू में होना
  135. चोली दामन का साथ होना : घनिष्ठ सम्बन्ध होना
  136. चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना : घबरा जाना
  137. चिकनी चुपड़ी बातें करना : चापलूसी करना/कपट व धोखा
  138. चुल्लू भर पानी में डूब मरना : बहुत शर्मिन्दा होना
  139. चिकना घड़ा होना : अत्यन्त बेशर्म
  140. चूड़ियाँ पहनना : कायरता दिखाना
  141. चकमा देना : धोखा देना
  142. चौपट करना : पूर्ण रूप से नष्ट करना
  143. चारों खाने चित्त होना : बुरी तरह हारना
  144. चैन की बंसी बजाना : आराम से रहना
  145. चूना लगाना : धोखा देकर ठगना
  146. चार चाँद लगाना : शोभा बढ़ाना
  147. चम्पत होना : गायब होना
  148. छठी का दूध याद आना : बड़ी मुसीबत में फंसना
  149. छाती ठोकना: उत्साहित होना
  150. छप्पर फाड़कर देना: बिना परिश्रम देना
  151. छाती पर मूँग दलना : बहुत परेशान करना
  152. छोटे मुँह बड़ी बात करना : अपनी हैसियत से ज्यादा बात करना
  153. छाती पर साँप लोटना : अत्यन्त ईर्ष्या करना
  154. छक्के छुड़ाना: पैर उखाड़ देना/बेहाल करना
  155. छाती पर पत्थर रखना : हृदय कठोर करना
  156. जले पर नमक छिड़कना : दुःखी का दुःख बढ़ाना
  157. जान हथेली पर रखना : मरने की परवाह न करना
  158. जमीन पर पैर न पड़ना: बहुत गर्व करना
  159. जान में जान आना: धीरज बँधाना/मुसीबत से छुटकारा पाना
  160. जबानी जमा खर्च करना : गप्पें लड़ाना
  161. जबान पर लगाम लगाना : बहुत कम बोलना
  162. जहर का घूँट पीना : कड़वी बात सुनकर सहन कर लेना
  163. जीती मक्खी निगलना : जानबूझकर बेईमानी करना
  164. जान पर खेलना : साहस पूर्ण कार्य करना
  165. जूता चाटना : चापलूसी करना
  166. जहर उगलना: कड़वी बात कहना
  167. झख मारना : समय नष्ट करना
  168. झगड़ा मोल लेना : विवाद में जानबूझकर पड़ना
  169. जी तोड़ कर काम करना : बहुत मेहनत करना
  170. जी भर आना: दया उमड़ना/चित्त में दुख होना
  171. टोपी उछालना : अपमानित करना
  172. टेढ़ी-खीर होना : कठिन काम
  173. टका सा जवाब देना : साफ इनकार करना
  174. टेक निभाना : वचन पूरा करना
  175. टट्टी की आड़ में शिकार खेलना : छिपकर षड्यंत्र रचना
  176. टाट उलट देना : दिवाला निकाल देना
  177. टाँग अड़ाना : व्यर्थ दखल देना
  178. ठगा सा रह जाना: किंकर्त्तव्य विमूढ़ होना/विस्मित रह जाना
  179. ठकुर सुहाती बातें करना : चापलूसी करना
  180. ठिकाने लगाना : नष्ट कर देना
  181. डूबते को तिनके का सहारा देना: मुसीबत में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद
  182. डकार जाना : हड़प लेना/हजम कर जाना
  183. डींग हाँकना : झूठी बड़ाई करना
  184. डूब मरना : शर्म से झुक जाना
  185. डेढ़ चावल की खिचड़ी पकाना: अपना मत अलग ही रखना
  186. डंका बजना : प्रभाव होना
  187. ढिंढोरा पीटना: प्रचार करना/सूचना देना
  188. ढोल में पोल होना: थोथा या सारहीन
  189. ढोल पीटना : अत्यधिक प्रचार करना
  190. तलवे चाटना : खुशामद करना
  191. तिल का ताड़ करना : छोटी सी बात को बहुत बढ़ा देना
  192. तूती बोलना : खूब प्रभाव होना
  193. तोते उड़ जाना : घबरा जाना
  194. तेवर चढ़ाना : नाराज होना/त्यौरी बदलना
  195. तलवार के घाट उतारना : मार डालना
  196. तिलांजलि देना : त्याग देना/छोड़ देना
  197. तितर-बितर होना : अलग-अलग होना
  198. तारे गिनना : बेचैनी में रात काटना
  199. तीन तेरह करना : तितर-बितर करना
  200. थूक कर चाटना : अपने वचन से मुकरना
  201. थैली खोलना: जी खोल कर खर्च करना
  202. थू-थू करना : घृणा प्रकट करना
  203. दूध का दूध पानी का पानी करना : ठीक न्याय करना
  204. दौड़ धूप करना : खूब प्रयत्न करना
  205. दाँत खट्टे करना : परेशान करना/हरा देना
  206. दाने-दाने को तरसना : बहुत गरीब होना
  207. दाल में काला होना : छल/कपट होना/संदेहपूर्ण होना
  208. दीया लेकर ढूँढना : अच्छी तरह खोजना
  209. दुम दबाकर भागना: डर कर भाग जाना
  210. दाल गलना : काम बनना
  211. दिन में तारे दिखाई देना : घबरा जाना
  212. दाँतों तले उँगली दबाना: आश्चर्यचकित होना
  213. दो-दो हाथ करना: द्वन्द्व युद्ध/अंतिम निर्णय हेतु तैयार होना
  214. दो टूक जवाब देना : स्पष्ट कहना
  215. दिन-रात एक करना : खूब परिश्रम करना
  216. द्रोपदी का चीर होना : अनन्त/अन्त हीन
  217. दिमाग आसमान पर चढ़ना : अत्यधिक गर्व होना
  218. दाँत काटी रोटी होना : अत्यधिक स्नेह होना
  219. दोनों हाथों में लड्डू होना : सर्वत्र लाभ ही लाभ होना
  220. दूसरे के कंधे पर रखकर बंदूक चलाना: दूसरे को माध्यम बनाकर काम करना
  221. दिल छोटा करना : दुखी होना, निराश होना
  222. दिन फिरना : अच्छा समय आना
  223. धूप में बाल सुखाना : अनुभवहीन होना
  224. धाक जमाना : रोब जमाना/प्रभाव जमाना
  225. धूल में मिलाना : नष्ट करना
  226. धरती पर पाँव न पड़ना: फूला न समाना अभिमानी होना
  227. धूल फाँकना : दर-दर की ठोकरें खाना
  228. धज्जियां उड़ाना : दुर्गति करना, कड़ा विरोध करना
  229. बरस पड़ना : बहुत क्रोधित होकर उल्टी-सीधी सुनाना
  230. नमक मिर्च लगाना : बात को आकर्षक बनाकर कहना
  231. नानी याद आना : बड़ी कठिनाई में पड़ना घबरा जाना
  232. निन्यानवे के फेर में पड़ना : धन इकट्ठा करने की चिन्ता में रहना
  233. नाम कमाना : प्रसिद्ध होना
  234. नौ दो ग्यारह होना: भाग जाना
  235. नीला-पीला होना : क्रोध करना
  236. नाक रगड़ना : दीनता प्रदर्शित करना, खुशामद करना
  237. नाक में दम करना: बहुत परेशान करना
  238. नाक भौंह सिकोड़ना: घृणा करना
  239. नाकों चने चबाना : खूब परेशान करना
  240. नाक कटना : बदनामी होना
  241. नुक्ताचीनी करना : दोष निकालना
  242. नाक रख लेना : इज्जत बचाना
  243. नाम निशान तक न बचना : पूर्ण रूप से नष्ट हो जाना
  244. नचा देना : बहुत परेशान कर देना
  245. नींव की ईंट होना: प्रमुख आधार होना
  246. पानी मरना : किसी की तुलना में निकृष्ट ठहरना
  247. पैर पटकना : खूब कोशिश करना
  248. पगड़ी उछालना : बेइज्जत करना
  249. पेट पालना : जीवन निर्वाह करना
  250. पहाड़ टूट पड़ना : बहुत मुसीबत आना
  251. पानी पीकर जात पूछना: काम करके फिर जानकारी लेना
  252. पेट में दाढ़ी होना : लड़कपन में बहुत चतुर होना/घाघ होना
  253. पैरों तले से जमीन खिसकना : बहुत घबरा जाना, अचानक परेशानी आना
  254. पापड़ बेलना : कड़ी मेहनत करना, विषम परिस्थितियों से गुजरना
  255. प्राण हथेली पर रखना : जान देने के लिये तैयार रहना
  256. पिंड छुड़ाना : पीछा छुड़ाना या बचना
  257. पानी पानी होना : लज्जित होना
  258. पेट में चूहे कूदना : तेज भूख लगना
  259. पाँचों उँगलियाँ घी में होना : सब ओर से लाभ होना
  260. पीठ ठोकना : शाबाशी देना, हिम्मत बँधाना
  261. फूँक फूँक कर कदम रखना : सावधानी पूर्वक कार्य करना
  262. फूटी आँखों न सुहाना : बिल्कुल पसंद न होना
  263. फूला न समाना : अत्यधिक खुश होना
  264. पट्टी पढ़ाना : बहका देना, उल्टी राय देना
  265. पेट काटना : बहुत कंजूसी करना
  266. पानीदार होना: इज्जतदार होना
  267. पाँवों में बेड़ी पड़ जाना: बंधन में बंध जाना
  268. बाँह पकड़ना : सहायता करना/सहारा देना
  269. बीड़ा उठाना : कठिन कार्य करने का उत्तरदायित्व लेना
  270. बाल की खाल निकालना : नुक्ताचीनी करना
  271. बात बनाना : बहाना करना
  272. बाँसों उछलना : अत्यधिक प्रसन्न होना
  273. बाल बाँका न होना: कुछ भी नुकसान न होना
  274. बाज न आना: आदत न छोड़ना
  275. बगलें झाँकना: इधर-उधर देखना/निरुत्तर होना/जवाब न दे सकना।
  276. बायें हाथ का खेल होना : सरल कार्य
  277. बल्लियों उछलना : अत्यधिक प्रसन्न होना
  278. बछिया का ताऊ होना : महामूर्ख
  279. भौंह चढ़ाना : क्रुद्ध होना
  280. भूत सवार होना : हठ पकड़ना/काम करने की धुन लगना
  281. भीगी बिल्ली बनना: डरपोक होना
  282. भाड़ झोंकना : तुच्छ कार्य करना/व्यर्थ समय गुजारना
  283. भरी थाली को लात मारना : जीविकोपार्जन के साधन ठुकरा देना
  284. भैंस के आगे बीन बजाना : मूर्ख के समक्ष बुद्धिमानी की बातें करना व्यर्थ
  285. बाल-बाल बचना : कुछ भी हानि न होना
  286. बाछें खिल जाना : आश्चर्यजनक हर्ष
  287. मन खट्टा होना : मन फिर जाना/जी उचाट होना
  288. मन के लड्डू खाना : कोरी कल्पनाएँ करना
  289. मंत्र न लगना : कोई उपाय काम न आना
  290. मुँह में पानी भर आना : इच्छा होना/जी ललचाना
  291. मुँह में लगाम न लगाना: अनियंत्रित बातें करना
  292. मुट्ठी गर्म करना : रिश्वत देना, लेना
  293. मुँह की खाना : हार जाना/हार मानना
  294. मक्खियाँ मारना : बेकार भटकना/बैठना
  295. मक्खी चूस होना : बहुत कंजूस होना
  296. मुँह पर हवाइयाँ उड़ना : चेहरा फक पड़ जाना
  297. मन मसोस कर रह जाना : इच्छा को रोकना
  298. मुँह काला करना : कलंकित होना
  299. मुँह की खाना : बातों में हारना/अपमानित होना
  300. मुँह तोड़ जवाब देना : कठोर शब्दों में कहना
  301. मन मारना : उदास होना/इच्छाओं पर नियंत्रण
  302. मुँह मोड़ना : ध्यान न देना
  303. रंग में भंग होना : मजा किरकिरा होना/बाधा होना
  304. राई का पहाड़ बनाना : बात को बढ़ा-चढ़ा देना
  305. रंगा-सियार होना : ढोंगी/धोखेबाज
  306. रोम-रोम खिल उठना : प्रसन्न होना
  307. रोंगटे खड़े होना : डर से रोमांचित होना
  308. रफू चक्कर होना : भाग जाना
  309. रंग दिखाना/जमाना : प्रभाव जमाना
  310. रंगे हाथों पकड़ना : अपराध करते हुए पकड़े जाना
  311. लकीर का फकीर होना: परम्परावादी होना/ अंधानुकरण करना
  312. लोहे के चने चबाना : बहुत कठिन कार्य करना/संघर्ष करना
  313. लाल-पीला होना : क्रोधित होना
  314. लोहा मानना : बहादुरी स्वीकार करना
  315. लहू का घूँट पीना: अपमान सहन करना
  316. लोहा बजाना: शस्त्रों से युद्ध करना
  317. लुटिया डुबो देना : काम बिगाड़ देना
  318. लोहा लेना : युद्ध करना/मुकाबला करना
  319. लहू-पसीना एक करना: कठिन परिश्रम करना
  320. लंबा हाथ मारना : धोखा धड़ी से पैसे बनाना
  321. विष उगलना: किसी के खिलाफ बुरी बात कहना
  322. शहद लगाकर चाटना : तुच्छ वस्तु को महत्व देना
  323. शैतान के कान कतरना : बहुत चतुर होना
  324. समझ पर पत्थर पड़ना : अक्ल मारी जाना
  325. सिर धुनना : पछताना/चिन्ता करना
  326. सिर हथेली पर रखना : मृत्यु की चिन्ता न करना
  327. सिर उठाना : विद्रोह करना
  328. सितारा चमकना : भाग्यशाली होना
  329. सूरज को दीपक दिखाना : अत्यधिक प्रसिद्ध व्यक्ति का परिचय देना
  330. सब्ज बाग दिखाना: लोभ देकर बहकाना/लालच देकर धोखा देना
  331. सिर पर कफ़न बाँधना : मरने को प्रस्तुत रहना
  332. सिर से बला टालना : मुसीबत से पीछा छुड़ाना
  333. सिर आँखों पर रखना : आदर सहित आज्ञा मानना
  334. सोने की चिड़िया हाथ से निकलना: लाभ पूर्ण वस्तु से वंचित रहना
  335. सिक्का जमाना : प्रभाव डालना/प्रभुत्व स्थापित करना
  336. सोने की चिड़िया होना : बहुत धनवान होना
  337. साँप छछूंदर की गति होना: दुविधा में पड़ना
  338. सीधे मुँह बात तक न करना: बहुत इतराना
  339. सोने में सुगंध होना : एक गुण में और गुण मिलना
  340. सौ-सौ घड़े पानी पड़ना : अत्यंत लज्जित होना
  341. सिर-मूंडना : ठगना
  342. हवा से बातें करना: बहुत तेज दौड़ना
  343. हाथ धोकर पीछे पड़ना: बुरी तरह पीछे पड़ना
  344. हाथ तंग होना : धन की कमी या दिक्कत होना
  345. होम करते हाथ जलना : भलाई करने में नुकसान होना
  346. होंठ चबाना : क्रोध प्रकट करना
  347. हवाई किले बनाना: थोथी कल्पना करना
  348. हवा हो जाना : भाग जाना
  349. हाथ पाव मारना : प्रयत्न करना
  350. हथियार डाल देना: हार मान लेना/आत्मसमर्पण करना
  351. हाथ पर हाथ धर कर बैठना : निष्क्रिय बनना/बेकार बैठे रहना
  352. हवा के घोड़ों पर सवार होना: बहुत जल्दी में होना
  353. हवा का रूख देखना : समय की गति पहचान कर काम करना
  354. हाथ के तोते उड़ जाना: भौचक्का रह जाना/होश गँवाना
  355. हाथ पाँव फूलना : घबरा जाना। विपत्ति में पड़ना
  356. हाथ पैर मारना : मेहनत करना/प्रयत्न करना
  357. हाथ साफ करना : ठगना/माल मारना
  358. हुक्का पानी बंद करना : बिरादरी से बाहर करना
  359. हथेली पर सरसों जमाना : जल्दबाजी करना
  360. हाथ खींचना : साथ न देना/मदद बंद करना/सहायता बंद करना
  361. हाथ धो बैठना : गंवा देना
  362. हाथ पीले करना : विवाह करना
  363. श्री गणेश करना : आरम्भ करना
लोकोक्तियाँ
मुहावरों की तरह ही लोकोक्ति भी मानव जाति के अनुभवों की सुन्दर अभिव्यक्ति है। ये मानव स्वभाव और व्यवहार कौशल के सिक्के के रूप में प्रचलित होती है और वर्तमान पीढ़ी को पूर्वजों से उत्तराधिकार के रूप में प्राप्त होती है। इनका प्रयोग सर्वत्र होता है। यह कम आश्चर्य की बात नहीं कि शहरों की अपेक्षा गांव में रहने वाले लाेगों के बीच इनका प्रयोग प्रचुर मात्रा में होता है। लोक साहित्य में कहावतों का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। इनका सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से नहीं होता अथवा ये किसी व्यक्ति विशेष की संपत्ति नहीं है। कहावत लोक से सम्बन्धित हैं इसलिए इसका नाम लोकोक्ति भी है। यह लोक की संपत्ति है।
किसी कामचोर पेटू लड़के के बारे में प्रश्नोत्तर रूप में प्रचलित यह कहावत देखिए: कहावत देखिए:
‘‘नाम क्या है?’
‘‘शक्करपारा।’’
‘‘रोटी कितनी खाए?’’
‘‘दस-बारह।’’
‘‘पानी कितना पीए?’’
‘‘मटका सारा।’’
‘‘काम करने को?’’
‘‘मैं लड़का बेचारा।’’
कामचोर लोगों के लिए कैसा मजेदार व्यंग्य भरा है इस कहावत में। इस प्रकार कहावत अपने में स्वतंत्र अस्तित्व रखने वाली, सारगर्भित, संक्षिप्त एवं चटपटी उक्ति है, जिसका प्रयोग किसी को शिक्षा व चेतावनी देना या उपालंभ व व्यंग्य कसने के लिए होता है। कुछ प्रसिद्ध लोकोक्तियाँ निम्न है :-
  1. अपना रख, पराया चख : अपना बचाकर दूसरों का माल हड़प करना
  2. अपनी करनी पार उतरनी : स्वयं का परिश्रम ही काम आता है।
  3. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता : अकेला व्यक्ति शक्तिहीन होता है।
  4. अधजल गगरी छलकत जाय : ओछा आदमी अधिक इतराता है।
  5. अंधों में काना राजा : मूर्खों में कम ज्ञान वाला भी आदर पाता है।
  6. अंधे के हाथ बटेर लगना : अयोग्य व्यक्ति को बिना परिश्रम संयोग से अच्छी वस्तु मिलना।
  7. अंधा पीसे कुत्ता खाय : मूर्खों की मेहनत का लाभ अन्य उठाते हैं। असावधानी से अयोग्य को लाभ।
  8. अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत : अवसर निकल जाने पर पछताने से कोई लाभ नहीं।
  9. अंधे के आगे रोवै अपने नैना खावैं : निर्दय व्यक्ति या अयोग्य व्यक्ति से सहानुभूति की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
  10. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है : अपने क्षेत्र में कमजोर भी बलवान बन जाता है।
  11. अंधेर नगरी चौपट राजा : प्रशासन की अयोग्यता से सर्वत्र अराजकता आ जाना।
  12. अन्धा क्या चाहे दो आँखें : बिना प्रयास वांछित वस्तु का मिल जाना।
  13. अक्ल बड़ी या भैंस : शारीरिक बल से बुद्धि बल श्रेष्ठ होता है।
  14. अपना हाथ जगन्नाथ : अपना काम अपने ही हाथों ठीक रहता है।
  15. अपनी-अपनी ढपली सबका अपना-अपना राग : तालमेल का अभाव/अलग-अलग मत होना/एकमत का अभाव
  16. अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपनों को देय : स्वार्थी व्यक्ति अधिकार पाकर अपने लोगों की सहायता करता है।
  17. अंत भला तो सब भला: कार्य का अन्तिम चरण ही महत्त्वपूर्ण होता है।
  18. आ बैल मुझे मार: जानबूझकर मुसीबत में फंसना
  19. आम के आम गुठली के दाम : हर प्रकार का लाभ/एक काम से दो लाभ
  20. आँख का अंधा नाम नयन सुख : गुणों के विपरीत नाम होना।
  21. आगे कुआँ पीछे खाई : दोनों/सब ओर से विपत्ति में फँसना
  22. आप भला जग भला : अपने अच्छे व्यवहार से सब जगह आदर मिलता है।
  23. आये थे हरिभजन को ओटन लगे कपास: उद्देश्य से भटक जाना/श्रेष्ठ काम करने की बजाय तुच्छ कार्य करना/कार्य विशेष की उपेक्षा कर किसी अन्य कार्य में लग जाना।
  24. आधा तीतर आधा बटेर: अनमेल मिश्रण/बेमेल चीजें जिनमें सामंजस्य का अभाव हो।
  25. इन तिलों में तेल नहीं : किसी लाभ की आशा न होना।
  26. आठ कनौजिए नौ चूल्हे: फूट होना।
  27. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे : अपना अपराध न मानना और पूछने वाले को ही दोषी ठहराना।
  28. उल्टे बाँस बरेली को : विपरीत कार्य या आचरण करना
  29. ऊधो का न लेना, न माधो का देना : किसी से कोई मतलब न रखना/सबसे अलग।
  30. ऊँची दुकान फीका पकवान : वास्तविकता से अधिक दिखावा। दिखावा ही दिखावा। केवल बाहरी दिखावा।
  31. ऊँट के मुँह में जीरा : आवश्यकता की नगण्य पूर्ति
  32. ओखली में सिर दिया तो : जब दृढ़ निश्चय कर लिया तो मूसल का क्या डर बाधाओं से क्या घबराना
  33. ऊँट किस करवट बैठता है : परिणाम में अनिश्चितता होना।
  34. एक पंथ दो काज : एक काम से दोहरा लाभ/एक तरकीब से दो कार्य करना/एक साधन से दो कार्य करना।
  35. एक अनार सौ बीमार : वस्तु कम, चाहने वाले अधिक/एक स्थान के लिये सैकड़ों प्रत्याशी
  36. एक मछली सारा तालाब गंदा कर देती है : एक की बुराई से साथी भी बदनाम होते हैं।
  37. एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं : दो प्रशासक एक ही जगह एक साथ शासन नहीं कर सकते।
  38. एक हाथ से ताली नहीं बजती: लड़ाई का कारण दोनों पक्ष होते हैं।
  39. एक तो करेला दूजे नीम चढ़ा : बुरे से और अधिक बुरा होना/एक बुराई के साथ दूसरी बुराई का जुड़ जाना।
  40. कागज की नाव नहीं चलती : बेईमानी से किसी कार्य में सफलता नहीं मिलती।
  41. काला अक्षर भैंस बराबर: बिल्कुल निरक्षर होना।
  42. कंगाली में आटा गीला : संकट पर संकट आना।
  43. कोयले की दलाली में हाथ काले : बुरे काम का परिणाम भी बुरा होता है/ दुष्टों की संगति से कलंकित होते हैं।
  44. का वर्षा जब कृषि सुखानी : अवसर बीत जाने पर साधन की प्राप्ति बेकार है।
  45. कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा भानुमति ने कुनबा जोड़ा : अलग-अलग स्वभाव वालों को एक जगह एकत्र करना/इधर-उधर से सामग्री जुटा कर कोई निकृष्ट वस्तु का निर्माण करना।
  46. कभी नाव गाड़ी पर कभी गाड़ी नाव पर : एक-दूसरे के काम आना परिस्थितियाँ बदलती रहती हैं।
  47. काबुल में क्या गधे नहीं होते : मूर्ख सब जगह मिलते हैं।
  48. कहने पर कुम्हार गधे पर नहीं चढ़ता : कहने से जिद्दी व्यक्ति काम नहीं करता।
  49. कोउ नृप होउ हमें का हानि : अपने काम से मतलब रखना।
  50. कौवा चला हंस की चाल, भूल गया अपनी भी चाल : दूसरों के अनधिकार अनुकरण से अपने रीति रिवाज भूल जाना।
  51. कभी घी घना तो कभी मुट्ठी चना : परिस्थितियाँ सदा एक सी नहीं रहतीं।
  52. करले सो काम भजले सो राम: एक निष्ठ होकर कर्म और भक्ति करना
  53. काज परै कछु और है, काज कछु और सरै : दुनिया बड़ी स्वार्थी है काम निकाल कर मुँह फेर लेते हैं।
  54. खोदा पहाड़ निकली चुहिया : अधिक परिश्रम से कम लाभ होना
  55. खरबूजे को देखकर खरबूजा रंग बदलता है : स्पर्धा वश काम करना/साथी को देखकर दूसरा साथी भी वैसा ही व्यवहार करता है।
  56. खग जाने खग ही की भाषा : मूर्ख व्यक्ति मूर्ख की बात समझता है।
  57. खिसियानी बिल्ली खम्भा खोंसे: शक्तिशाली पर वश न चलने के कारण कमजोर पर क्रोध करना
  58. गागर में सागर भरना : थोड़े में बहुत कुछ कह देना
  59. गुरु तो गुड़ रहे चेले शक्कर हो गये : चेले का गुरु से अधिक ज्ञानवान होना
  60. गवाह चुस्त मुद्दई सुस्त : स्वयं की अपेक्षा दूसरों का उसके लिए अधिक प्रयत्नशील होना
  61. गुड़ खाएं और गुलगुलों से परहेज : झूठा ढोंग रचना
  62. गाँव का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : अपने स्थान पर सम्मान नहीं होता।
  63. गरीब तेरे तीन नाम-झूठा, पापी, बेईमान : गरीब पर ही सदैव दोष मढ़े जाते हैं। निर्धनता सदैव अपमानित होती है।
  64. गुड़ दिये मरे तो जहर क्यों दे: प्रेम से कार्य हो जाये तो फिर दंड क्यों ।
  65. गंगा गये गंगादास जमुना गये जमुनादास: अवसरवादी होना
  66. गोद में छोरा शहर में ढिंढोरा : पास की वस्तु को दूर खोजना
  67. गरजते बादल बरसते नहीं : कहने वाले (शोर मचाने वाले) कुछ करते नहीं
  68. गुरु कीजै जान, पानी पीवै छान : अच्छी तरह समझ बूझकर काम करना
  69. घर-घर मिट्टी के चूल्हे हैं : सबकी एक सी स्थिति का होना/सभी समान रूप से खोखले हैं।
  70. घोड़ा घास से दोस्ती करे तो क्या खाये : मजदूरी लेने में संकोच कैसा ?
  71. घर का भेदी लंका ढाहे : घरेलू शत्रु प्रबल होता है।
  72. घर की मुर्गी दाल बराबर : अधिक परिचय से सम्मान कम/घरेलू साधनों का मूल्यहीन होना
  73. घर बैठे गंगा आना : बिना प्रयत्न के लाभ, सफलता मिलना
  74. घर में नहीं दाने बुढ़िया चली भुनाने : झूठा दिखावा करना
  75. घर आये नाग न पूजे, बाँबी उसकी पूजन जाय : अवसर का लाभ न उठाकर खोज में जाना
  76. घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध : विद्वान का अपने घर की अपेक्षा बाहर अधिक सम्मान/परिचित की अपेक्षा अपरिचित का विशेष आदर
  77. चमड़ी जाय पर दमड़ी न जाए: बहुत कंजूस होना
  78. चलती का नाम गाड़ी : काम का चलते रहना/बनी बात के सब साथी होते हैं।
  79. चंदन की चुटकी भली गाड़ी : अच्छी वस्तु तो थोड़ी भी भली
  80. चार दिन की चाँदनी फिर : सुख का समय थोड़ा ही अँधेरी रात होता है।
  81. चिकने घड़े पर पानी नहीं ठहरता : निर्लज्ज पर किसी बात का असर नहीं होता।
  82. चिराग तले अँधेरा : दूसरों को उपदेश देना स्वयं अज्ञान में रहना
  83. चींटी के पर निकलना : बुरा समय आने से पूर्व बुद्धि का, नष्ट होना
  84. चील के घोंसले में मांस कहाँ?: भूखे के घर भोजन मिलना असंभव होता है
  85. चुपड़ी और दो-दो : लाभ में लाभ होना
  86. चोरी का माल मोरी में : बुरी कमाई बुरे कार्यों में नष्ट होती है
  87. चोर की दाढ़ी में तिनका : अपराधी का सशंकित होना अपराध के कार्यों से दोष प्रकट हो जाता है।
  88. चोर-चोर मौसेरे भाई : दुष्ट लोग प्रायः एक जैसे होते हैं एक से स्वभाव वाले लोगों में मित्रता होना
  89. छछूंदर के सिर में चमेली का तेल : अयोग्य व्यक्ति के पास अच्छी वस्तु होना
  90. छोटे मुँह बड़ी बात : हैसियत से अधिक बातें करना
  91. जहाँ काम आवै सुई का करै तरवारि : छोटी वस्तु से जहाँ काम निकलता है वहाँ बड़ी वस्तु का उपयोग नहीं होता है।
  92. जल में रहकर मगर से बैर : बड़े आश्रयदाता से दुश्मनी ठीक नहीं
  93. जब तक साँस तब तक आस : जीवन पर्यन्त आशान्वित रहना
  94. जंगल में मोर नाचा किसने देखा : दूसरों के सामने उपस्थित होने पर ही गुणों की कद्र होती है। गुणों का प्रदर्शन उपयुक्त स्थान पर।
  95. जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी : मातृभूमि का महत्त्व स्वर्ग से भी बढ़कर है।
  96. जहाँ मुर्गा नहीं बोलता वहाँ क्या सवेरा नहीं होता : किसी के बिना कोई काम नहीं रुकता नहीं है।
  97. जहाँ न पहुँचे रवि वहाँ पहुँचे कवि : कवि दूर की बात सोचता है सीमातीत कल्पना करना
  98. जाके पैर न फटी बिवाई, सो क्या जाने पीर पराई : जिसने कभी दुःख नहीं देखा वह दूसरों का दुःख क्या अनुभव करे
  99. जाकी रही भावना जैसी, हरि मूरत देखी तिन तैसी : भावानुकूल(प्राप्ति का होना) औरों को देखना
  100. जान बची और लाखों पाये : प्राण सबसे प्रिय होते हैं।
  101. जाको राखे साइयाँ मारि सके न कोय : ईश्वर रक्षक हो तो फिर डर किसका, कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता।
  102. जिस थाली में खाया उसी में छेद करना : विश्वासघात करना। भलाई करने वाले का ही बुरा करना। कृतघ्न होना
  103. जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्तिशाली की विजय होती है
  104. जिन खोजा तिन पाइया : प्रयत्न करने वाले को सफलता/गहरे पानी पैठ लाभ अवश्य मिलता है।
  105. जो ताको काँटा बुवै ताहि बोय तू फूल भी : अपना बुरा करने वालों के साथ भलाई का व्यवहार करो
  106. जादू वही जो सिर चढ़कर बोलेः उपाय वही अच्छा जो कारगर हो
  107. झटपट की घानी आधा तेल : जल्दबाजी का काम खराब हीआधा पानी होता है।
  108. झूठ कहे सो लड्डू खाए साँच कहे सो मारा जाय : आजकल झूठे का बोल बाला है।
  109. जैसी बहे बयार पीठ तब वैसी दीजै : समय अनुसार कार्य करना।
  110. टके का सौदा नौ टका विदाई: साधारण वस्तु हेतु खर्च अधिक
  111. टेढ़ी उंगली किये बिना घी नहीं निकलता : सीधेपन से काम नहीं (चलता) निकलता।
  112. टके की हांडी गई पर कुत्ते की जात पहचान ली : थोड़ा नुकसान उठाकर धोखेबाज को पहचानना।
  113. डूबते को तिनके का सहारा : संकट में थोड़ी सहायता भी लाभप्रद/पर्याप्त होती है।
  114. ढाक के तीन पात : सदा एक सी स्थिति बने रहना
  115. ढोल में पोल : बड़े-बड़े भी अन्धेर करते हैं।
  116. तीन लोक से मथुरा न्यारी : सबसे अलग विचार बनाये रखना
  117. तीर नहीं तो तुक्का ही सही : पूरा नहीं तो जो कुछ मिल जाये उसी में संतोष करना।
  118. तू डाल-डाल मैं पात-पात : चालाक से चालाकी से पेश आना/ एक से बढ़कर एक चालाक होना
  119. तेल देखो तेल की धार देखो : नया अनुभव करना धैर्य के साथ सोच समझ कर कार्य करो परिणाम की प्रतीक्षा करो।
  120. तेली का तेल जले मशालची का दिल जले : खर्च कोई करे बुरा किसी और को ही लगे।
  121. तन पर नहीं लत्ता पान खाये अलबत्ता : अभावग्रस्त होने पर भी ठाठ से रहना/झूठा दिखावा करना।
  122. तीन बुलाए तेरह आये : अनियंत्रित व्यक्ति का आना।
  123. तीन कनौजिये तेरह चूल्हे : व्यर्थ की नुक्ताचीनी करना। ढोंग करना।
  124. थोथा चना बाजे घना : गुणहीन व्यक्ति अधिक डींगेंमारता है/आडम्बर करता है।
  125. दूध का दूध पानी का पानी : सही सही न्याय करना।
  126. दमड़ी की हांडी भी ठोक बजाकर लेते हैं : छोटी चीज को भी देखभाल कर लेते हैं।
  127. दान की बछिया के दाँत नहीं गिने जाते : मुफ्त की वस्तु के गुण नहीं देखे जाते।
  128. दाल भात में मूसलचंद : किसी के कार्य में व्यर्थ में दखल देना।
  129. दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम : संदेह की स्थिति में कुछ भी हाथ नहीं लगना।
  130. दूध का जला छाछ को फूँक फूँक कर पीता है : एक बार धोखा खाया व्यक्ति दुबारा सावधानी बरतता है।
  131. दूर के ढोल सुहावने लगते हैं : दूरवर्ती वस्तुएँ अच्छी मालूम होती हैं /दूर से ही वस्तु का अच्छा लगना पास आने पर वास्तविकता का पता लगना
  132. दैव दैव आलसी पुकारा : आलसी व्यक्ति भाग्यवादी होता है / आलसी व्यक्ति किस्मत के सहारे होता है।
  133. धोबी का कुत्ता घर का न घाट का : किधर का भी न रहना न इधर का न उधर का
  134. न नौ मन तेल होगा और न राधा नाचेगी : ऐसी अनहोनी शर्त रखना जो पूरी न हो सके/बहाने बनाना।
  135. न रहेगा बाँस न बजेगी बाँसुरी: झगड़े को जड़ से ही नष्ट करना
  136. नक्कारखाने में तूती की आवाज : अराजकता में सुनवाई न होना/बड़ों के समक्ष छोटों की कोई पूछ नहीं।
  137. न सावन सूखा न भादो हरा : सदैव एक सी तंग हालत रहना
  138. नाच न जाने आँगन टेढ़ा : अपना दोष दूसरों पर मढ़ना/अपनी अयोग्यता को छिपाने हेतु दूसरों में दोष ढूंढना।
  139. नाम बड़े और दर्शन खोटे : बड़ों में बड़प्पन न होना गुण कम किन्तु प्रशंसा अधिक।
  140. नीम हकीम खतरे जान, नीम मुल्ला खतरे ईमान : अधकचरे ज्ञान वाला अनुभवहीन व्यक्ति अधिक हानिकारक होता है।
  141. नेकी और पूछ-पूछ : भलाई करने में भला पूछना क्या?
  142. नेकी कर कुए में डाल : भलाई कर भूल जाना चाहिए।
  143. नौ नगद, न तेरह उधार: भविष्य की बड़ी आशा से तत्काल का थोड़ा लाभ अच्छा/व्यापार में उधार की अपेक्षा नगद को महत्व देना।
  144. नौ दिन चले अढ़ाई कोस : बहुत धीमी गति से कार्य का होना
  145. नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली : बहुत पाप करके पश्चाताप करने का ढोंग करना
  146. पढ़े पर गुने नहीं: अनुभवहीन होना।
  147. पढ़े फारसी बेचे तेल, देखो यह विधना का खेल : शिक्षित होते हुए भी दुर्भाग्य से निम्न कार्य करना।
  148. पराधीन सपनेहु सुख नाहीं : परतंत्र व्यक्ति कभी सुखी नहीं होता।
  149. पाँचों उँगलियाँ बराबर नहीं होती : सभी समान नहीं हो सकते।
  150. प्रभुता पाय काहि मद नाहीं : अधिकार प्राप्ति पर किसे गर्व नहीं होता।
  151. पानी में रहकर मगर से बैर : शक्तिशाली आश्रयदाता से वैर करना।
  152. प्यादे से फरजी भयो टेढ़ो-टेढ़ो जाय : छोटा आदमी बड़े पद पर पहुँचकर इतराकर चलता है।
  153. फटा मन और फटा दूध फिर : एक बार मतभेद होने पर पुनःनहीं मिलता। मेल नहीं हो सकता।
  154. बारह बरस में घूरे के दिन भी फिरते हैं : कभी न कभी सबका भाग्योदय होता है।
  155. बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद : मूर्ख को गुण की परख न होना। अज्ञानी किसी के महत्व को आँक नहीं सकता।
  156. बद अच्छा, बदनाम बुरा: कलंकित होना बुरा होने से भी बुरा है।
  157. बकरे की माँ कब तक खैर मनायेगी : जब संकट आना ही है तो उससे कब तक बचा जा सकता है
  158. बावन तोले पाव रत्ती : बिल्कुल ठीक या सही सही होना
  159. बाप न मारी मेंढकी बेटा तीरंदाज : बहुत अधिक बातूनी या गप्पी होना
  160. बाँबी में हाथ तू डाल मंत्र मैं पढूँ स्वयं : खतरे का कार्य दूसरों को सौंपकर अलग रहना।
  161. बापू भला न भैया, सबसे बड़ा रुपया : आजकल पैसा ही सब कुछ है।
  162. बिल्ली के भाग छींका टूटना : संयोग से किसी कार्य का अच्छा होना/अनायास अप्रत्याशित वस्तु की प्राप्ति होना।
  163. बिन माँगे मोती मिले माँगे : भाग्य से स्वतः मिलता है इच्छा मिले न भीख से नहीं।
  164. बिना रोए माँ भी दूध नहीं पिलाती: प्रयत्न के बिना कोई कार्य नहीं होता।
  165. बैठे से बेगार भली : खाली बैठे रहने से तो किसी का कुछ काम करना अच्छा।
  166. बोया पेड़ बबूल का आम : बुरे कर्म कर अच्छे फल की कहाँ से खाए इच्छा करना व्यर्थ है।
  167. भई गति सांप छछूंदर जैसी : दुविधा में पड़ना।
  168. भूल गये राग रंग भूल गये छकड़ी तीन चीज याद रही नोन, तेल, लकड़ी : गृहस्थी के जंजाल में फंसना
  169. भूखे भजन न होय गोपाला : भूख लगने पर कुछ भी अच्छा नहीं लगता।
  170. भागते भूत की लंगोटी भली : हाथ पड़े सोई लेना जो बच जाए उसी से संतुष्टि/कुछ नहीं से जो कुछ भी मिल जाए वह अच्छा।
  171. भैंस के आगे बीन बजाये भैंस खड़ी पगुराय : मूर्ख को उपदेश देना व्यर्थ है।
  172. बिच्छू का मंत्र न जाने साँप के बिल में हाथ डाले : योग्यता के अभाव में उलझनदार काम करने का बीड़ा उठा लेना।
  173. मन चंगा तो कठौती में गंगा : मन पवित्र तो घर में तीर्थ है।
  174. मरता क्या न करता : मुसीबत में गलत कार्य करने को भी तैयार होना पड़ता है।
  175. मानो तो देव नहीं तो पत्थर : विश्वास फलदायक होता है।
  176. मान न मान मैं तेरा मेहमान : जबरदस्ती गले पड़ना।
  177. मार के आगे भूत भागता है : दण्ड से सभी भयभीत होते हैं।
  178. मियाँ बीबी राजी तो क्या करेगा काजी ? : यदि आपस में प्रेम है तो तीसरा क्या कर सकता है ?
  179. मुख में राम बगल में छुरी : ऊपर से मित्रता अन्दर शत्रुता धोखेबाजी करना।
  180. मेरी बिल्ली मुझसे ही म्याऊँ : आश्रयदाता का ही विरोध करना
  181. मेंढकी को जुकाम होना: नीच आदमियों द्वारा नखरे करना।
  182. मन के हारे हार है मन के जीते जीत: हतोत्साहित होने पर असफलता व उत्साह पूर्वक कार्य करने से जीत होती है।
  183. यथा राजा तथा प्रजा : जैसा स्वामी वैसा सेवक
  184. यथा नाम तथा गुण : नाम के अनुसार गुण का होना।
  185. यह मुँह और मसूर की दाल : योग्यता से अधिक पाने की इच्छा करना
  186. मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन: मुफ्त में मिली वस्तु का दुरुपयोग करना।
  187. रस्सी जल गयी पर ऐंठन गई: सर्वनाश होने पर भी घमंड बने रहना/टेकन छोड़ना।
  188. रंग में भंग पड़ना : आनन्द में बाधा उत्पन्न होना।
  189. राम नाम जपना, पराया माल अपना : मक्कारी करना।
  190. रोग का घर खांसी, झगड़े का घर हाँसी : हँसी मजाक झगड़े का कारण बन जाती है।
  191. रोज कुआ खोदना रोज पानी पीना: प्रतिदिन कमाकर खाना रोज कमाना रोज खा जाना।
  192. लकड़ी के बल बन्दरी नाचे : भयवश ही कार्य संभव है।
  193. लम्बा टीका मधुरी बानी: पाखण्डी हमेशा दगाबाज होते हैं। दगेबाजी की यही निशानी
  194. लातों के भूत बातों से नहीं मानते : नीच व्यक्ति दण्ड से/भय से कार्य करते हैं कहने से नहीं।
  195. लोहे को लोहा ही काटता है : बुराई को बुराई से ही जीता जाता है।
  196. वक्त पड़े जब जानिये को बैरी को मीत: विपत्ति/अवसर पर ही शत्रु व मित्र की पहचान होती है।
  197. विधि कर लिखा को मेटन हारा : भाग्य को कोई बदल नहीं सकता।
  198. विनाश काले विपरीत बुद्धि : विपत्ति आने पर बुद्धि भी नष्ट हो जाती है।
  199. शबरी के बेर : प्रेममय तुच्छ भेंट
  200. शक्कर खोर को शक्कर मिल ही जाती है : जरूरतमंद को उसकी वस्तु सुलभ हो ही जाती है
  201. शुभस्य शीघ्रम : शुभ कार्य में शीघ्रता करनी चाहिए।
  202. शठे शाठ्यं समाचरेत् : दुष्ट के साथ दुष्टता का व्यवहार करना चाहिये।
  203. साँच को आँच नहीं : सच्चा व्यक्ति कभी डरता नहीं।
  204. सब धान बाईस पसेरी : अविवेकी लोगों की दृष्टि में गुणी और मूर्ख सभी व्यक्ति बराबर होते हैं।
  205. सब दिन होत न एक समान : जीवन में सुख-दुःख आते रहते हैं, क्योंकि समय परिवर्तनशील होता है।
  206. सैयां भये कोतवाल अब काहे का डर : अपनों के उच्च पद पर होने से बुरे कार्य बे हिचक करना।
  207. समरथ को नहीं दोष गुसाईं : गलती होने पर भी सामर्थ्यवान को कोई कुछ नहीं कहता।
  208. सावन सूखा न भादो हरा : सदैव एक सी स्थिति बने रहना।
  209. साँप मर जाये और लाठी न टूटे : सुविधापूर्वक कार्य होना/बिना हानि के कार्य का बन जाना।
  210. सावन के अंधे को हरा ही सूझता है: अपने समान सभी कोहरा समझना।
  211. सीधी उंगली घी नहीं निकलता: सीधेपन से कोई कार्य नहीं होता
  212. सिर मुंडाते ही ओले पड़ना : कार्य प्रारम्भ करते ही बाधा उत्पन्न होना।
  213. सोने में सुगंध : अच्छे में और अच्छा।
  214. सौ सुनार की एक लोहार की : सैकड़ों छोटे उपायों से एक बड़ा उपाय अच्छा।
  215. सूप बोले तो बोले छलनी भी बोले : दोषी का बोलना ठीक नहीं।
  216. हथेली पर दही नहीं जमता : हर कार्य के होने में समय लगता है
  217. हथेली पर सरसों नहीं उगती : कार्य के अनुसार समय भी लगता है।
  218. हल्दी लगे न फिटकरी रंग : आसानी से काम बन जाना चोखा आ जाय कम खर्च में अच्छा कार्य।
  219. हाथ कंगन को आरसी क्या : प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता क्या ?
  220. हाथी के दाँत खाने के और दिखाने के और : कपट पूर्ण व्यवहार/कहे कुछ करो कुछ/कथनी व करनी में अंतर।
  221. होनहार बिरवान के होत चीकने पात : महान व्यक्तियों के लक्षण बचपन मेंही नजर आ जाते हैं।
  222. हाथ सुमरिनी बगल कतरनी : कपट पूर्ण व्यवहार करना।

लोकोक्ति और मुहावरे में अंतर Muhavre Aur Lokokti Men Antar
मुहावरे की तरह लोकोक्ति भी लोक से उत्पन्न लोक की संपत्ति है। लोकोक्ति और मुहावरे में सबसे बड़ा अंतर यह है -
  • मुहावरे वाक्यांश हैं, तो कहावतें (लोकोक्ति) सम्पूर्ण वाक्य।
  • मुहावरों का प्रयोग स्वतंत्र रूप से नहीं किया जा सकता। इसके विपरीत कहावतों का प्रयोग स्वतंत्र रूप में होता है।
  • मुहावरे का प्रयोग भाषा को बल देने के लिए होता है, तो कहावतों का प्रयोग किसी घटना विशेष पर किया जाता है।
  • मुहावरे के प्रयोग के फलस्वरूप भाषा समृद्ध होती है, तो कहावतों के प्रयोग से फल प्राप्त होने की आशा की जाती है।
मुहावरे और लोकोक्ति में कोई साम्य है तो इतना कि दोनों की उत्पत्ति लोक से होती है। दोनों हमारी लोक-संस्कृति के परिचायक हैं। दोनों का प्रयोग भाषा में सजीवता और सरसता लाने के लिए होता है। दोनों के अर्थ सामान्य से भिन्न और लाक्षणिक होते हैं।


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अलंकार (Alankar) का अर्थ तथा भेद और उदाहरण



अलंकार (Alankar) का अर्थ तथा भेद और उदाहरण 
अलंकार शब्द का शाब्दिक अर्थ होता है ‘आभूषण’ यानी गहने, किन्तु शब्द निर्माण के आधार पर अलंकार शब्द ‘अलम्’ और ‘कार’ दो शब्दों के योग से बना है। ‘अलम्’ का अर्थ है ‘शोभा’ तथा ‘कार’ का अर्थ हैं ‘करने वाला’। अर्थात् काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तथा उसके शब्दों एवं अर्थों की सुन्दरता में वृद्धि करके चमत्कार उत्पन्न करने वाले कारकों को अलंकार कहते हैं। आचार्य केशव ने काव्य में अलंकारों के महत्त्व को प्रतिपादित करते हुए कहा कि-
जदपि सुजाति सुलक्षणी, सुबरन सरस सुवृत्त।
भूषण बिनु न बिराजही, कविता, वनिता मित्त।।
वास्तव में अलंकारों से काव्य रुचिप्रद और पठनीय बनता है, भाषा में गुणवत्ता और प्राणवत्ता बढ़ जाती है, कविता में अभिव्यक्ति की स्पष्टता व प्रभावोत्पादकता आने से कविता संप्रेषणीय बन जाती है। अलंकार के मुख्यतः दो भेद माने जाते हैंः शब्दालंकार और अर्थालंकार

शब्दालंकार:
काव्य में जब चमत्कार प्रधानतः शब्द में होता है, अर्थात् जहाँ शब्दों के प्रयोग से ही सौन्दर्य में वृद्धि होती है। काव्य में प्रयुक्त शब्द को बदल कर उसका पर्याय रख देने से अर्थ न बदलते हुए भी उसका चमत्कार नष्ट हो जाता है, वहाँ शब्दालंकार होता है। अनुप्रास, यमक, श्लेष, वक्रोक्ति आदि शब्दालंकार के भेद हैं।

1.अनुप्रास: काव्य में जब एक वर्ण से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की रसानुकूल दो या दो से अधिक बार आवृत्ति होती है, वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है। जैसे-
भगवान भक्तों की भयंकर भूरि भीति भगाइये।
******
तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाये।
******
गंधी गंध गुलाब को, गंवई गाहक कौन ?

उपयुर्क्त उदाहरणों में क्रमशः भ, त, ‘ग’ वर्ण से प्रारम्भ होने वाले शब्दों की पुनरावृत्ति हुई है।

छेकानुप्रास, वृत्यनुप्रास, श्रुत्यनुप्रास, अन्त्यनुप्रास, लाटानुप्रास आदि अनुप्रास के उपभेद हैं।

2. यमक: काव्य में जब कोई शब्द दो या दो से अधिक बार आये तथा प्रत्येक बार उसका अर्थ भिन्न हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। यथा-
कनक कनक तें सौगुनी, मादकता अधिकाय।
या खाये बौराय जग, वा पाये बौराय।।
यहाँ ‘कनक’ शब्द दो बार प्रयुक्त हुआ है जिसमें पहले में कनक ‘सोना’ तथा दूसरे में ‘धतूरा’ के अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। अन्य उदाहरण-
गुनी गुनी सब के कहे, निगुनी गुनी न होत।
सुन्यौ कहुँ तरु अरक तें, अरक समानु उदोत।।
******
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहन वारी।
ऊँचे घोर मन्दर के अन्दर रहाती हैं।
******
तीन बेर खाती थी, वे तीन बेर खाती हैं।

3. श्लेष: जब काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के प्रसंगानुसार एक से अधिक अर्थ हों, वहाँ श्लेष अलंकार होता है। जैसे-
‘पानी गये न ऊबरे, मोती मानुष चून’
यहाँ ‘पानी’ शब्द का मोती के संदर्भ में अर्थ है चमक, मनुष्य के संदर्भ में ‘इज्जत’ तथा चून(आटा) के संदर्भ में जल।
‘सुबरण को ढूँढत फिरत, कवि, व्यभिचारी चोर।’
यहाँ ‘सुबरण’ में श्लेष है। सुबरण का कवि के संदर्भ में सुवर्ण (अक्षर), व्यभिचारी के संदर्भ में ‘सुन्दर रूप’ तथा चोर के संदर्भ में ‘सोना’ अर्थ है।

अर्थालंकार:
काव्य में जहाँ अलंकार का सौन्दर्य अर्थ में निहित हो, वहाँ अर्थालंकार होता है। इन अलंकारों में काव्य में प्रयुक्त किसी शब्द के स्थान पर उसका पर्याय या समानार्थी शब्द रखने पर भी चमत्कार बना रहता है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, अन्योक्ति, सन्देह, भ्रान्तिमान, विभावना, विरोधाभास, दृष्टान्त आदि अर्थालंकार हैं।

1. उपमा: काव्य में जब दो भिन्न व्यक्ति, वस्तु के विशेष गुण, आकृति, भाव, रंग, रूप आदि को लेकर समानता बतलाई जाती है अर्थात् उपमेय और उपमान में समानता बतलाई जाती है, वहाँ उपमा अलंकार होता है। ‘सागर सा गंभीर हृदय हो’ उपमा के चार अंग होते हैं-
I. उपमेय: वर्णनीय व्यक्ति या वस्तु यानी जिसकी समानता अन्य किसी से बतलाई जाती है। उक्त उदाहरण में‘हृदय’ के बारे में कहा गया है अतः ‘हृदय’ उपमेय है।
II. उपमान: जिस वस्तु के साथ उपमेय की समानता बतलाई जाती है उसे उपमान कहते हैं । उक्त उदाहरण में ‘हृदय’ की समानता सागर से की गई है। अतः यहाँ‘सागर’ उपमान है।
III. समान धर्म: उपमेय और उपमान में समान रूप से पाये जाने वाले गुण को ‘समान धर्म’ कहते हैं। उक्त उदाहरण में हृदय व सागर में ‘गम्भीरता’ को लेकर समानता बतलाई गई है, अतः ‘गम्भीर’ शब्द समान धर्म है।
IV. वाचक शब्द: जिन शब्दों के द्वारा उपमेय और उपमान को समान धर्म के साथ जोड़ा जाता है उसे ‘वाचक शब्द’ कहते हैं। उक्त उदाहरण में‘सा’ शब्द द्वारा उपमान तथा उपमेय के समान धर्म को बतलाया गया है । अतः ‘सा’ शब्द वाचक शब्द है। अन्य उदाहरण-

I. पीपर पात सरिस मन डोला।
II.कोटि कुलिस सम वचन तुम्हारा। पहले उदाहरण में उपमेय (मन), उपमान (पीपर पात), समान धर्म (डोला) तथा वाचक शब्द(सरिस) उपमा के चारों अंगों का प्रयोग हुआ है अतः इसे पूणोर्पमा कहते हैं जबकि दूसरे उदाहरण में उपमेय (वचन), उपमान (कोटि कुलिस) तथा वाचक शब्द (सम) का प्रयोग हुआ है यहाँ समान धर्म प्रयुक्त नहीं हुआ है अतः इसे लुप्तोपमा कहा जाता है। क्योंकि इसमें उपमा के चारों अंगों का समावेश नहीं है।

2. रूपक: काव्य में जब उपमेय में उपमान का निषेध रहित अर्थात् अभेद आरोप किया जाता है अर्थात् उपमेय और उपमान दोनों को एक रूप मान लिया जाता है वहाँ रूपक अलंकार होता है। इसका विश्लेषण करने पर उपमेय उपमान के मध्य ‘रूपी’ वाचक शब्द आता है।‘अम्बर-पनघट में डुबो रही तारा-घट ऊषा-नागरी’ उक्त उदाहरण में तीन स्थलों पर रूपक अलंकार का ”प्रयोग हुआ है। यथा ‘अम्बर-पनघट’, तारा-घट, एवं ‘ऊषा-नागरी’।
1. अम्बर रूपी पनघट।
2. तारा रूपी घट।
3. ऊषा रूपी नागरी।
चरण-कमल बन्दौं हरि राई

3. उत्प्रेक्षा: काव्य में जब उपमेय में उपमान की संभावना की जाती है तथा संभावना हेतु जनु, मनु, जानो, मानो आदि में से किसी वाचक शब्द का प्रयोग किया जाता है, वहाँ उत्प्रेक्षाअलंकार होता है। जैसे-
सोहत ओढ़े पीत-पट, स्याम सलोने गात।
मनों नीलमणि सैल पर, आतप पर्यो प्रभात।।

पीताम्बर धारी श्री कृष्ण हेतु कवि बिहारी संभावना व्यक्त करते हुए कहते हैं कि पीत-पट ओढ़े कृष्ण ऐसे प्रतीत हो रहे हैं मानों नीलमणि पर्वत पर प्रातः काल का आतप (धूप) शोभायमान हो। अन्य उदाहरण देखिए-
लता भवन ते प्रगट भे, तेहि अवसर दोउ भाई।
निकसे जनु जुग विमल विधु जलद पटल विलगाई।।
**************
मोर मुकुट की चन्द्रकनि, त्यों राजत नन्दनन्द।
मनु ससि सेखर को अकस, किए सेखर सतचन्द।।

यमक और श्लेष में अन्तर: यमक अलंकार में किसी शब्द की आवृत्ति दो या दो से अधिक बार होती है तथा प्रत्येकबार उसका अर्थ भिन्न होता है, जबकि श्लेष अलंकार में किसी एक ही शब्द के प्रसंगानुसार एक से अधिक अर्थ होते हैं।उदाहरण जैसे-
यमक: कनक कनक ते सौ गुनी, मादकता अधिकाय।
श्लेष - पानी गये न ऊबरे, मोती मानुस चून।
उपमा और रूपक: उपमा अलंकार में किसी बात को लेकर उपमेय एवं उपमान में समानता बतलाई जाती है जबकि रूपक में उपमेय उपमान का अभेद आरोप किया जाता है जैसे उदाहरण-
उपमा - पीपर पात सरिस मन डोला।
रूपक - चरण-कमल बन्दौं हरि राई।।


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