भारत के संविधान का अनुच्छेद 243 और उसके महत्व Article 243 of the Constitution of India and its Importance



वर्ष 1992 से पहले पंचायती राज संस्थाओं को संविधानिक दर्जा नहीं दिया गया था। संविधान के निर्माताओं ने जब 26 नवम्बर 1949 में संविधान बनाकर तैयार किया तथा 26 जनवरी 1950 में गणतन्त्र दिवस के रूप में संविधान को लागू किया तो उसमें एक बहुत बड़ी त्रुटि रह गई। संविधान निर्माता तथा विशेषज्ञों द्वारा यह भूल हो गई कि संविधान में उन्होनें "पंचायतों" तथा "नगरपालिकाओं" के बारे में कुछ नहीं कहा तथा इन दो महत्वपूर्ण संस्थाओं को कोई विशेष अनुच्छेद में नहीं बताया गया। नतीजा यह रहा कि "पंचायतों" तथा "नगरपालिकाओं" को संविधानिक दर्जा नहीं मिल पाया।
Article 243 of the Constitution of India and its Importance
संविधान के अनुच्छेद 40 में केवल एक पंक्ति में कहा गया है कि "राज्य अगर चाहें तो पंचायतों का गठन कर सकते हैं"। यह सिद्धान्त अनुच्छेद 40 जो "राज्यों के नीति निदेशक सिद्धान्त" के तहत माना गया था। परन्तु 1991-92 में संविधान में पंचायतों के बारे अनुच्छेद होने की बात रखी गई। मध्य नज़र 73वें और 74वें संवैधानिक संशोधन विधेयक लोक सभा में पारित किये गए। इन विधेयकों को लोक सभा में पूर्ण रूप से बहुमत से पारित किया गया तथा बिल अधिनियम के रूप में निकल कर उभरे और 73वें संशोधन अधिनियम के तहत पंचायतों को अनुच्छेद 243 के रूप में संवैधानिक दर्जा मिला तथा 74वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम के तहत नगरपालिकाओं को संवैधानिक दर्जा मिला।
जब संविधानिक दर्जा पंचायतों को मिला तब सभी राज्यों को आदेशानुसार जरूरी हो गया कि वे अपने राज्य में नया पंचायती राज अधिनियम, संविधान के 73वें और 74वें अधिनियम के मध्य नजर रखकर बनायें। अनुच्छेद 243 बहुत महत्वपूर्ण है। इसमें पंचायतों के बारे में कहा गया है कि पंचायतें क्या हैं, कैसी होंगी, इनके कार्य क्या होंगे, चुनाव प्रक्रिया क्या होगी इत्यादि।
अनुच्छेद 243 को संक्षिप्त में यहां बताया जा रहा है:-
  • अनुच्छेद 243 - परिभाषाएँ
  • अनुच्छेद 243 क - ग्रामसभा
  • अनुच्छेद 243 ख - ग्राम पंचायतों का गठन
  • अनुच्छेद 243 ग - पंचायतों की संरचना
  • अनुच्छेद 243 घ - स्थानों का आरक्षण
  • अनुच्छेद 243 ङ - पंचायतों की अवधि
  • अनुच्छेद 243 च - सदस्यता के लिए अयोग्यताएँ
  • अनुच्छेद 243 छ - पंचायतों की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तरदायित्व
  • अनुच्छेद 243 ज - पंचायतों द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्तियाँ और उनकी निधियाँ
  • अनुच्छेद 243 झ - वित्तीय स्थिति के पुनर्विलोकन के लिए वित्त आयोग का गठन
  • अनुच्छेद 243 ञ - पंचायतों की लेखाओं की संपरीक्षा
  • अनुच्छेद 243 ट - पंचायतों के लिए निर्वाचन
  • अनुच्छेद 243 ठ - संघ राज्यों क्षेत्रों को लागू होना
  • अनुच्छेद 243 ड - इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
  • अनुच्छेद 243 ढ - विद्यमान विधियों और पंचायतों का बना रहना
  • अनुच्छेद 243 ण - निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
  • अनुच्छेद 243 त - परिभाषा
  • अनुच्छेद 243 थ - नगर पालिकाओं का गठन
  • अनुच्छेद 243 द - नगर पालिकाओं की संरचना
  • अनुच्छेद 243 ध - वार्ड समितियों आदि का गठन और संरचना
  • अनुच्छेद 243 न - स्थानों का आरक्षण
  • अनुच्छेद 243 प - नगर पालिकाओं की अवधि आदि
  • अनुच्छेद 243 फ - सदस्यता के लिए निरर्हताएँ
  • अनुच्छेद 243 ब - नगरपालिकाओं आदि की शक्तियाँ, प्राधिकार और उत्तदायित्व
  • अनुच्छेद 243 भ - नगरपालिकाओं द्वारा कर अधिरोपित करने की शक्ति और उनकी निधियाँ
  • अनुच्छेद 243 म - वित्त आयोग
  • अनुच्छेद 243 य - नगरपालिकाओं के लेखाओं की संपरीक्षा
  • अनुच्छेद 243 य क - नगरपालिकाओं के लिए निर्वाचन
  • अनुच्छेद 243 य ख - संघ राज्य क्षेत्रों को लागू होना
  • अनुच्छेद 243 य ग - इस भाग का कतिपय क्षेत्रों को लागू न होना
  • अनुच्छेद 243 य घ - ज़िला योजना के लिए समिति
  • अनुच्छेद 243 य ङ - महानगर योजना के लिए समिति
  • अनुच्छेद 243 य च - विद्यमान विधियों पर नगर पालिकाओं का बना रहना
  • अनुच्छेद 243 य छ - निर्वाचन सम्बन्धी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप का वर्णन
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सूर्यार्घ्य मंत्र - Suryarghya Mantras



Suryarghya (सूर्यार्घ्य मंत्र) Mantras...


सूर्यार्घ्य मंत्र - Suryarghya Mantras...


LYRICS (Sanskrit)
एहि सूर्य ! सहस्त्रांशो ! तेजोराशे ! जगत्पते |
अनुकम्पय मां भक्त्या गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||

तापत्रयहरं दिव्यं परमानन्दलक्षणम् |
तापत्रयविमोक्षाय तवार्घ्यं कल्प्याम्यहम् ||

नमो भगवते तुभ्यं नमस्ते जातवेदसे |
दत्तमर्घ्य मया भानो ! त्वं गृहाण नमोस्तुते ||

अर्घ्यं गृहाण देवेश गन्धपुष्पाक्षतैः सह |
करुणां कुरु मे देव गृहाणार्घ्यं नमोस्तुते ||

नमोस्तु सूर्याय सहस्त्रभानवे नमोस्तु वैश्वानर- जातवेदसे |
त्वमेव चार्घ्य प्रतिगृह्ण देव ! देवाधिदेवाय नमो नमस्ते || 

LYRICS (English)
Ehi surya ! Sahastraansho ! Tejoraashe ! Jagatpate |
Anukampya maam bhaktyaa grihaanaarghyam namo-stute ||

Taapatrayaharam divyam parmaanandlakshanam |
Taapatrayavimokshaaya tavaarghya kalpayaamyaham ||

Namo bhagavate tubhyam namaste jaatavedase |
Duttamarghya mayaa bhano ! ttvam grihaana namo-stute ||

Arghyam grihaana devesha gandhpushpaakshataiha saha |
Karunaam Kurume deva grihaanaarghya namo-stute ||

Namostu suryaaya sahastrabhaanave
Namostu vaishvaanar-jaatvedasa |
Ttvameva chaarghyam pratigrihana deva !
Devaadhidevaaya namo Namaste ||

 
सूर्य अर्घ्य देने की विधि
दीर्घ काल से सूर्योपासना अनवरत चली आ रही है। भगवान सूर्य के उदय होते ही संपूर्ण जगत का अंधकार नष्ट हो जाता है और चारों ओर प्रकाश ही प्रकाश फैल जाता है। सृष्टि के महत्वपूर्ण आधार हैं सूर्य देवता। सूर्य की किरणों को आत्मसात करने से शरीर और मन स्फूर्तिवान होता है। नियमित सूर्य को अर्घ्य देने से हमारी नेतृत्व क्षमता में वृद्धि होती है। बल, तेज, पराक्रम, यश एवं उत्साह बढ़ता है।निम्‍न क्रमानुसार हम भगवान सूर्य को अर्घ देते है-
  1. सर्वप्रथम प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व शुद्ध होकर स्नान करें।
  2. तत्पश्चात उदित होते सूर्य के समक्ष आसन लगाए।
  3. आसन पर खड़े होकर तांबे के पात्र में पवित्र जल लें।
  4. उसी जल में मिश्री भी मिलाएं। कहा जाता है कि सूर्य को मीठा जल चढ़ाने से जन्मकुंडली के दूषित मंगल का उपचार होता है।
  5. मंगल शुभ हो तब उसकी शुभता में वृद्धि होती है।
  6. जब पूर्व दिशा में सूर्यागमन से पहले नारंगी किरणें प्रस्फुटित होती दिखाई दें, आप दोनों हाथों से तांबे के पात्र को पकड़ कर इस तरह जल चढ़ाएं कि सूर्य जल चढ़ाती धार से दिखाई दें।
  7. प्रातःकाल का सूर्य कोमल होता है उसे सीधे देखने से आंखों की ज्योति बढ़ती है।
  8. सूर्य को जल धीमे-धीमे इस तरह चढ़ाएं कि जलधारा आसन पर आ गिरे ना कि जमीन पर।
  9. जमीन पर जलधारा गिरने से जल में समाहित सूर्य-ऊर्जा धरती में चली जाएगी और सूर्य अर्घ्य का संपूर्ण लाभ आप नहीं पा सकेंगे।
  10. अर्घ्य देते समय निम्न मंत्र का पाठ करें -
    'ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजोराशे जगत्पते।
    अनुकंपये माम भक्त्या गृहणार्घ्यं दिवाकर:।।' (11 बार)

    'ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्रकिरणाय।
    मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा: ।।' (3 बार)
  11. तत्पश्चात सीधे हाथ की अंजूरी में जल लेकर अपने चारों ओर छिड़कें।
  12. अपने स्थान पर ही तीन बार घूम कर परिक्रमा करें।
  13. आसन उठाकर उस स्थान को नमन करें।


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