भाग्य सूक्तं - Bhagya Suktam Vedic Hymn



Bhagya Suktam Vedic Hymn
Bhagya Suktam Vedic Hymn
 
ॐ प्रातरग्निं प्रातरिन्द्रं हवामहे प्रातर्मित्रा वरुणा प्रातरश्विना ।
प्रातर्भगं पूषणं ब्रह्मणस्पतिं प्रातस्सोममुत रुद्रँ हुवेम ॥
Aum praataragniṃ praatarindraṃ havaamahe praatarmitraa varuṇaa praatarashvinaa |
praatarbhagaṃ pooṣhaṇaṃ brahmaṇaspatiṃ praatass somamuta rudraṃ huvem ||
At dawn, we invoke Agni (the fire deity), Indra (the rain deity), Mitrā (the Sun) and Varuṇa (the deity of the ocean); the Aśvins (the celestial physician twins), Bhaga (the deity of wealth), Puṣan (the Sun as the deity of nutrition), Bṛahmaṇaspati (the preceptor of the gods), Soma (the Moon), and Rudra (the god of dissolution)
हम प्रात: के समय पर अग्नि, वरुण, इन्द्र, मित्र, अश्विन कुमार, भग, पूष, ब्रह्मनास्पति, सोम और रूद्र का आवाहन करते हैं

प्रातर्जितं भगमुग्रँ हुवेम वयं पुत्रमदितेर्यो विधर्ता । 
आद्ध्रश्चिद्यं मन्यमानस्तुरश्चिद्राजा चिद्यंभगं भक्षीत्याह॥
Praatarjitaṃ bhagmugraṃ huvem vayaṃ putramaditeryo vidhartaa |
aadhrash chidyaṃ manya maanastu rashchidraajaa chid yaṃ bhagaṃ bhakṣhityaaha ||
We invoke at dawn, the fierce Bhaga, the son (manifestation) of Aditi (the Cosmic Power), who is the very sustainer of the creation. Whether a pauper, a busy person, or a king; everyone worships and contemplates upon Bhaga saying, 'I would worship Bhaga.'
हम शक्तिशाली, युद्ध में जीतने वाले भग का आवाहन करते हैं जिनके बारे में सोचकर राजा भी कहते हैं की हमें भग दीजिए

भग प्रणेतर्भगसत्यराधो भगेमां धियमुदवददन्नः। 
भगप्रणो जनय गोभि-रश्वैर्भगप्रनृभि-र्नृवन्तस्स्याम ॥
bhagha praṇetarbhaga satyaraadho bhaghemaaṃ dhiyamudava dadannaḥ |
bhaga praṇo janaya gobhirashvairbhaga pranṛibhirnṛivantassyaam ||
O Bhaga! The great leader, and truth is your wealth. Bestow it upon us, and elevate our intellect and protect it. Bless us with cattle-wealth, horses, and descendants and followers.
हे भग हमारा मार्गदर्शन करें ,आपके उपहार अनुकूल हैं ,हमें ऐश्वर्य दीजिये हे भग! हमें घोडे {सवारी }, गाय और योद्धा वंशज दीजिए

उतेदानीं भगवन्तस्यामोत प्रपित्व उत मध्ये अह्नाम्। 
उतोदिता मघवन् सूर्यस्य वयं देवानाँ सुमतौ स्याम ॥
utedaaneeṃ bhagavantasyaamot prapitv ut madhye ahnaam |
utoditaa maghavan sooryasya vayaṃ devaanaaṃ sumatau syaam ||
4. May we be blessed by Bhaga now (during this fire-ritual), and when the light approaches, or at midday. O Lord Indra! At sunset also, may we still find favor of the Sun, and other gods.
4. कृपा कीजिये कि अब हमें सुख-चैन मिले , और जैसे जैसे दिन बढ़ता जाये , जैसे -जैसे दोपहर हो , शाम हो हम देव कृपा से प्रसन्न रहे

भग एव भगवाँअस्तु देवास्तेन वयं भगवन्तस्स्याम। 
तं त्वा भग सर्व इज्जोहवीमि सनो भग पुर एता भवेह॥
bhaga eva bhagavaanastu devaastena vayaṃ bhagvantasyaam |
taṃ tvaa bhaga sarva ijjohaveemi sano bhaga pur etaa bhaveha ||
5. May Bhaga, (and) the gods be the possessor of good fortune, and through Him, may we may be blessed with good fortune by that god. Everyone including myself invite you to bring in good fortune. O Bhaga! Kindly lead us being present in the ritual.
5. हे भग आप परमानंद प्रदान करें और आपके द्वारा देव हमें प्रसन्नता से स्वीकार करें हे भग हम आपका आवाहन करते हैं ,आप यहाँ हमारे साथ आयें

समध्वरायोषसोऽनमन्त दधिक्रावेव शुचये पदाय। 
अर्वाचीनं वसुविदं भगन्नो रथमिवाश्वावाजिन आवहन्तु॥
samadhvaraayoshaso namanta dadhikraaveva shuchaye padaaya |
arvaacheenaṃ vasuvidaṃ bhaganno rathamivaaśhvaa vaajina aavahantu ||
6. May the presiding deities of the early morning-hour arrive here, like the horse that puts its foot in the place of Vedic ritual for establishing the fire altar. May they bring Bhaga, the Lord of wealth, as speedily as swift horses pulling a chariot
6. इस प्रकार प्रतिदिन भग यहाँ आयें {पवित्र स्थान जैसे दधिक्रावन }जैसे शक्तिशाली घोड़े रथ को खींचते हैं वैसे ही भग का यहाँ आवाहन किया जाये

अश्वावतीर्गोमतीर्नउषासो वीरवतीस्सदमुच्छन्तु भद्राः।
घृतं दुहाना विश्वतः प्रपीनायूयं पात स्वस्तिभिस्सदा नः॥
ashhvaavateergomateerna uṣhaaso veeravateess sadamuchchantu bhadraḥ |
ghṛitaṃ duhanaa vishvataḥ prapeenaa yūyaṃ paata swastibhissadaa naha||

May the presiding deities of the Dawn bless us with many horses and cattle, and plenty of milk and milk-products. May these auspicious gods bless us with good progeny, and nourish all life. May they proclaim auspiciousness in the place of worship. May they always ensure our good fortune
इस प्रकार कृतार्थ सुबह हमें प्राप्त हो हमें हमें सुपुत्र, घोडे, पशु, दुग्ध और योधा रिश्तेदार प्राप्त हो हे देव हमें अपने आशीर्वाद दीजिये

ॐ अवैध मृत्युम न अमृतम न आगम मैव सुतो नो अभै त्रुणोत ।
वर्णम वनस्पती रिभाभिनष्यी यथागम भयै सदा नस्च जिपदही ।।

परम प्रत्यो अन्पढे एवम धयस्ते श्वेतयो देवाय न आत ।
तत्क्षुस्मते ब्रह्मणे देव प्रवी विमानव प्रजा ग्म्य निसोमोद विनोद्: ।।

वातम प्राणम वन्सान्त्वा हावामहे प्रजापतिम्यो भुवन्श्य गोप: ।
स नो रुद्रो: स्त्राय धान्त्वाम त्रध्युम धधयो जीवा: धधा मुचिमहे ।।

अमृत प्रभु या धध: योग्यवस्य वृहश्पते अभिशस्त्रे न रुद्र: ।
मृत्यो हावा मश्मिना मृत्यो मस्मा देवानामने भि च गाच देवहि: ।।

परिगम धनम च मुचयम च देवा विश्वा शेषानम पृतभम पतीनअ्म ।
ब्रह्मा सदो च वेदमागा च यधमागा मधिय विक्रमस्य: ।।

सल्के न अग्निम दानभुतौ लोकौ स नै माहम ।
उपायो भोगयो रुध्रापी मृत्युम जराम्य्हम ।।

मा चिदो मृत्यो मा वधेर मा मे बलम चिदहो मा प्रमोसि: ।
प्रजाम मा मे रीरिष: समायु रुद्र निरक्ष सन्त्रा: हविषा विधेमा ।।

मा नो महान्त मुत मानो अर्ब्भकम्मन अक्ष्यन्त मुत मान उक्षितम ।
मा नो व्यधिम पितरम्मोत मातरम्मनम प्रियास्तनवो रुद्ररीरिष: ।।

मानस्तोके तनए मान आयौ मानो अश्वेषु रीरिश: ।
वीरन्मानो रुद्र भामितो वेधी: हविष्मन्त सदमित्वा हावामहे ।।

इस वैदिक सूक्त का पाठ कोई भी कर सकता है इसका पाठ करने से या इसे सुनना सौभाग्याकारी है
ऋग्वेद ७-४१


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स्वप्न में गो दर्शन का फल



स्वप्न में गौ अथवा सांड के दर्शन से कल्याण लाभ एवं व्याधि नाश होता है, इसी प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना गया है।
इसी प्रकार स्वप्न में गौ के थन को चूसना भी श्रेष्ठ माना गया है।
स्वप्न में गौ का घर में ब्याना, बैल अथवा सांड की सवारी करना, तलाक के बीच में घृत मिश्रित खीर का भोजन भी उत्तम माना गया है। इनमें से घी सहित खीर का भोजन तो राज्य प्राप्ति का सूचक माना गया है। किसी प्रकार स्वप्न में ताजे दुहे  हुए  फेन सहित दुग्ध का पान करने वाले को अनेक भोगों  की तथा दही के देखने से प्रसन्नता की प्राप्ति होती है। जो बैल अथवा साड़ से युक्त रथ पर स्वप्न में अकेला सवार होता है और उसी अवस्था में जागता है, उसे शीघ्र ही धन मिलता है।
स्वप्न में दही मिलने से धन की भी मिलने से तथा दही खाने से यश की प्राप्ति निश्चित है। इसी प्रकार यात्रा आरंभ करते समय दही अथवा दूध का दिखना शुभ शकुन माना गया है। स्वप्न में दही भात का भोजन करने से कार्य सिद्धि होती है तथा बैल पर चढ़ने से द्रव्य लाभ होता है एवं व्याधि से छुटकारा मिलता है इसी प्रकार स्वप्न में सावन सांड अथवा गौ का दर्शन करने से कुटुंब की वृद्धि होती है। स्वप्न में सभी काली वस्तु का दर्शन निषेध माना गया है, केवल कृष्णा गौ का दर्शन शुभ होता है।
स्वप्न में सभी काली वस्तु का दर्शन निर्णय माना गया है केवल कृष्णा गौ का  दर्शन शुभ होता है



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नवग्रह स्तोत्र - जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं



शास्त्रों में कुल नौ नवग्रह बताए गए हैं और इन नवग्रहों के अनुसार ही हम लोगों का जीवन चलता है। ज्योतिषियों के अनुसार जातक की कुंडली में ये नौ ग्रह किस घर में हैं। इस पर ही जातक का जीवन आधारित होता है। इसलिए ये बेहद ही जरूरी होता है कि आपकी कुंडली में ग्रह आपके अनुकुल ही बनें रहें। ताकि इन ग्रहों के दुष्भाव से बचा जा सके। नौ नवग्रहों के नाम इस प्रकार हैं- सूर्य, चंद्रमा, मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र, शनि, राहु और केतु। इन सभी ग्राहकों का नाता हमारे शरीर के किसी ना किसी अंग से होता है और इन ग्रहों की खराब दशा चलने पर शरीर पर बुरा प्रभाव पड़ता है।

शरीर के किस अंग से जुड़ा है कौन सा ग्रह-
  1. सूर्य ग्रह की खराब दिशा चलने से आंखों से संबंधित रोग हो जाते हैं। क्योंकि ये ग्रह आंखों से जुड़ा होता है।
  2. चंद्रमा को मन का ग्रह माना जाता है और इसकी बुरी दिशा होने पर मन अशांत रहता है।
  3. मंगल ग्रह को रक्त संचार माना जाता है और जब किसी जातक की कुंडली में ये ग्रह गलत घर में हो, तो जातक को रक्त यानी खून से संबंधित रोग लग जाते हैं।
  4. बुध ग्रह हृदय से जुड़ा होता है और कुंडली में ये ग्रह भारी होने पर इसका असर दिल पर पड़ता है।
  5. बृहस्पति ग्रह अगर कुंडली में गलत स्थान पर हो, तो जातक की बुद्धि पर इसका बुरा प्रभाव पड़ता है।
  6. शुक्र ग्रह का नाता रस से होता है और शुक्र ग्रह के कुंडली में अशांत होने पर शरीर पर नकारात्मक असर पड़ता है।
  7. शनि, राहू और केतु ये तीनों ग्रह उदर के स्वामी होते हैं और इनकी वजह से पेट से जुड़ी तकलीफें होती हैं।
श्री नवग्रह स्तोत्र का पाठ पढ़ने से मिलने वाले लाभ-
  1. नवग्रह स्तोत्र का पाठ करने से ग्रह सदा शांत रहते हैं और इनके प्रकोप से आपकी रक्षा होती है।
  2. रोजाना इस स्तोत्र को करने से रोग दूर हो जाते हैं और आपको सेहतमंद शरीर मिलता है।
  3. ग्रह शांत रहने से घर में कलह नहीं होती है और दिमाग शांत रहता है।
  4. ग्रहों की बुरी दशा चलने पर ये जरूरी होता है कि आप इन ग्रहों को शांत रखने के लिए उपाय करें।
श्री नवग्रह स्तोत्र  

सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महद्युतिं।
तमोरिसर्व पापघ्नं प्रणतोस्मि दिवाकरं ।। (रवि) 
जो जपा पुष्प के समान अरुणिमा वाले महान तेज से संपन्न अंधकार के विनाशक सभी पापों को दूर करने वाले तथा महर्षि कश्यप के पुत्र हैं उन सूर्य को मैं प्रणाम करता हूं
दधिशंख तुषाराभं क्षीरोदार्णव संभवं।
नमामि शशिनं सोंमं शंभोर्मुकुट भूषणं ।। (चंद्र)
जो दधि, शंख तथा हिम के समान आभा वाले छीर समुद्र से प्रादुर्भूत भगवान शंकर के सिरो भूषण तथा अमृत स्वरूप है उन चंद्रमा को मैं नमस्कार करता हूं।
धरणीगर्भ संभूतं विद्युत्कांतीं समप्रभं।
कुमारं शक्तिहस्तंच मंगलं प्रणमाम्यहं ।। (मंगळ)
जो पृथ्वी देवी से उद्भूत विद्युत की कांति के समान प्रभाव आ दें कुमारावस्था वाले तथा हाथ में शक्ति लिए हुए हैं उन मंगल को मैं प्रमाण प्रणाम करता हूं।
प्रियंगुकलिका शामं रूपेणा प्रतिमं बुधं।
सौम्यं सौम्य गुणपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहं ।।(बुध)
जो प्रियंगु लता की कली के समान गहरे हरित वर्ण वाले अतुलनीय सौंदर्य वाले तथा सौम्य गुण से संपन्न है उन चंद्रमा के पुत्र बुद्ध को मैं प्रणाम करता हूं।
देवानांच ऋषिणांच गुरुंकांचन सन्निभं
बुद्धिभूतं त्रिलोकेशं तं नमामि बृहस्पतिं (गुरु)
जो देवताओं और ऋषियों के गुरु हैं स्वर्णिम आभा वाले हैं ज्ञान से संपन्न है तथा तीनों लोकों के स्वामी हैं उन बृहस्पति को मैं नमस्कार करता हूं।
हिमकुंद मृणालाभं दैत्यानां परमं गुरूं।
सर्वशास्त्र प्रवक्तारं भार्गवं प्रणमाम्यहं।। (शुक्र)
जो हिमकुंद पुष्प तथा कमलनाल के तंतु के समान श्वेत आभा वाले, दैत्यों के परम गुरु, सभी शास्त्रों के उपदेष्टा तथा महर्षि ध्रुव के पुत्र हैं, उन शुक्र को मैं प्रणाम करता हूं।
नीलांजन समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजं।
छायामार्तंड संभूतं तं नमामि शनैश्वरं।। (शनि)
जो नीले कज्जल के समान आभा वाले, सूर्य के पुत्र यम के जेष्ठ भ्राता तथा सूर्य पत्नी छाया तथा मार्तंड से उत्पन्न है उन शनिश्चर को मैं नमस्कार करता हूं।
नवग्रह स्तोत्र - navagraha stotra in Hindi
 
अर्धकायं महावीर्यं चंद्रादित्य विमर्दनं।
सिंहिका गर्भसंभूतं तं राहूं प्रणमाम्यहं।। (राहू)
जो आधे शरीर वाले हैं महान पराक्रम से संपन्न है, सूर्य तथा चंद्रमा को ग्रसने वाले हैं तथा सिंह ही का के गर्भ से उत्पन्न उन राहों को मैं प्रणाम करता हूं। 
पलाशपुष्प संकाशं तारका ग्रह मस्तकं। 
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहं।।(केतु)
पलाश पुष्प के समान जिनकी आभा है जो रुद्र शोभा वाले और रुद्र के पुत्र हैं भयंकर हैं तारक आधी ग्रहों में प्रधान है उनके तो को मैं प्रणाम करता हूं।
फलश्रुति : 
इति व्यासमुखोदगीतं य पठेत सुसमाहितं दिवा वा यदि वा रात्रौ।
विघ्नशांतिर्भविष्यति नर, नारी, नृपाणांच भवेत् दु:स्वप्न नाशनं ऐश्वर्यंमतुलं तेषां आरोग्यं पुष्टिवर्धनं।। 
भगवान वेद व्यास जी के मुख से प्रकट इस स्तुति को जो दिन में अथवा रात में एकाग्रचित होकर पाठ करता है उसके समस्त दिल शांत हो जाते हैं स्त्री पुरुष और राजाओं के दुख में दुख सपनों का नाश हो जाता है पाठ करने वाले को अतुलनीय ऐश्वर्या और आरोग्य प्राप्त होता है तथा उसके पुष्टि की वृद्धि होती है
 इति श्री व्यासविरचित आदित्यादि नवग्रह स्तोत्रं संपूर्णं


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