पुराणों के अनुसार विवाह के प्रकार



यथाशक्ति अलंकृत कर अपनी कन्या प्रदान करना ब्रह्म विवाह

अपने घर पर वर को बुलाकर यथाशक्ति अलंकृत कर अपनी कन्या प्रदान करना 'ब्रह्म विवाह' है। इस विधि से विवाहित स्त्री-पुरुष से उत्पन्न होने वाली संतान दोनों कुलों के 21 पीढ़ियों को पवित्र करती हैं। आज के समय में बहु प्रचिलित अरेन्ज्ड मैरेज ब्रह्म विवाह का ही स्वरुप है।

तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो


यज्ञ दीक्षित ऋत्विक ब्राह्मण को अपनी कन्या देना जय विवाह है तथा वर से एक जोड़ा गौ (गाय और बैल का एक जोड़ा) लेकर उसको कन्या प्रदान करना आर्ष विवाह कहां जाता है। इस के प्रथम (ब्रह्म विवाह) विधि से विवाहित स्त्री-पुरुष से उत्पन्न पुत्र अपनी प्रथम की साथ तथा बाद की साथ इस तरह 14 पीढ़ियों को पवित्र करता है आर्ष विधि के विवाह से उत्पन्न पुत्र तीन पूर्व तथा तीन बाद की इस तरह 6 पीढ़ियों को पवित्र करता है।

यज्ञ दीक्षित ऋत्विक ब्राह्मण को अपनी कन्या देना जय विवाह है


'तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो' यह कह कर विवाह की इच्छा रखने वाले वर को पिता के द्वारा जब कन्या प्रदान की जाती है तब ऐसे विवाह को काय विवाह (प्रजापत्य विवाह) कहते हैं इस विवाह विधि से उत्पन्न पुत्र अपने सहित पूर्व की छह तथा बाद की 6 पीढ़ियों इस तरह कुल 13 पीढ़ियों को पवित्र करता है।

प्रेम विवाह गान्धर्व विवाह का ही स्वरुप है
'तुम इस कन्या के साथ धर्म का आचरण करो' यह कह कर विवाह की इच्छा रखने वाले वर को पिता के द्वारा जब कन्या प्रदान की जाती है तब ऐसे विवाह को काय विवाह (प्रजापत्य विवाह) कहते हैं

कन्या के पिता या बंधु-बांधव अथवा कन्या को ही यथाशक्ति धन देकर यदि कोई वर उससे विवाह करता है तो इस विवाह को 'असुर विवाह' और वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं। प्रेम विवाह गान्धर्व विवाह का ही स्वरुप है।  कन्या की इच्छा नहीं है तब भी बलात युद्ध आदि के द्वारा अपहृत उस कन्या के साथ विवाह करना 'राक्षस विवाह' है। स्वाप (कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि) अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको 'पैशाच विवाह' कहते हैं।

वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं
वर एवं कन्या के बीच पहले ही पारस्परिक सहमति हो जाने के बाद जो विवाह होता है उसको गांधर्व विवाह कहते हैं


इन उपर्युक्त आठ विवाह में प्रथम चार प्रकार के विवाह अर्थात ब्रम्ह, दैव, आर्ष और प्रजापत्य विवाह ब्राह्मण वर्ण के लिए उपयुक्त है। गांधर्व विवाह तथा राक्षस विवाह क्षत्रिय वर्ण के लिए उचित है। असुर विवाह वैश्य वर्ण और अंतिम गर्हित पैशाच विवाह शूद्र वर्ण के लिए उचित माना गया है।

कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको पैशाच विवाह कहते हैं
कन्या की मदहोशी, गहन निद्रा, मानसिक दुर्बलता आदि अवस्था में अपहरण कर उससे शारीरिक सम्बंध बना लेना या उसके साथ जो विवाह किया जाता है उसको 'पैशाच विवाह' कहते हैं।



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अहिल्या का उद्धार



एक दिन मुनि महानंद ने अपने गुरु से पूछा, 'गुरुदेव, क्या श्री रामचंद जी के विषय में यह कथन सही है कि उन्होंने ऋषि गौतम की शापित पत्नी अहिल्या को अपने चरण कमलों की ठोकर मार कर उनका उद्धार किया था?' इस पर गुरु मुस्कराए, फिर बोले 'वत्स! यह तो जनश्रुति है, सत्य नहीं। राम जैसे मर्यादा पुरुष क्या किसी स्त्री को अपने पैर से ठोकर मार सकते थे? ठोकर मारना तो दूर, राम इसकी कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस कथा के प्रतीकार्थ को समझने की जरूरत है। श्रीराम पृथ्वी विज्ञान के ज्ञाता थे। उन्होंने इसी ज्ञान का प्रयोग कर प्रजा के उत्थान का प्रयास किया था। लेकिन यह कथा दूसरे ही रूप में प्रचलित हो गई।

अहिल्या का उद्धार

वत्स महानंद, यहां अहिल्या का अर्थ पृथ्वी है, ऐसी भूमि जो उपजाऊ तो हो परंतु उसमें अन्न उत्पन्न नहीं किया जा रहा हो। यानी जो भूमि वज्र तुल्य पड़ी हो। वस्तुत: वज्र तुल्य बेकार पड़ी पृथ्वी को अहिल्या कहा जाता है। ' गुरु जी ने स्पष्ट करते हुए कहा, 'हे महानंद! प्रभु श्रीरामचंद सीता और लक्ष्मण के साथ अयोध्या त्याग कर वनवास जाते हुए जब निषाद राज्य सीमा में पहुंचे तो निषादराज ने तीनों का हार्दिक स्वागत करते हुए श्री रामचंद से प्रार्थना की, 'महाराज, मेरे योग्य कोई सेवा हो तो कृपया आदेश दें।'

श्री रामचंद ने स्वागत से विभोर होकर निषादराज से कहा, 'हे प्रिय बंधु निषादराज! यह जो बेकार पड़ी कृषि योग्य भूमि है इसे उपजाऊ बनाओ, इसके लिए अपने कृषकों को आदेश दो कि वे इस वज्र तुल्य भूमि को पानी और खाद देकर, जोतकर उपजाऊ बनाएं तथा इसमें अन्न उत्पन्न करें।' निषादराज ने रामचंदजी का आदेश स्वीकार किया। निषाद राज्य के किसानों और श्रमिकों ने अत्यंत मेहनत से काम किया और देखते ही देखते वह भूमि लहलहा उठी। तो इस तरह रामचंद के कहने पर उस वज्र तुल्य पृथ्वी को उपजाऊ बनाकर उसका उद्धार किया गया। यही अहिल्या (पृथ्वी) का वास्तविक उद्धार है।'

महानंद एक आख्यान की इस व्याख्या से संतुष्ट हुए। उन्होंने कहा, 'इस कथा में निहित इस संदेश को जन-जन तक फैलाने की आवश्यकता है।'


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