चाणक्य नीति की अकाट्य बातें जो कभी फेल नही होने देगी भाग-2 Chanakya Niti in Hindi



चाणक्य नीति की 656 अकाट्य बातें जो आपके कभी फेल नही होने देगी के आगे..  

  1. निकम्मे और आलसी व्यक्ति को भूख का कष्ट झेलना पड़ता है।
  2. निकृष्ट उपायों से प्राप्त धन की अवहेलना करने वाला व्यक्ति ही साधू होता है।
  3. नित्य दूसरे को सहभागी बनाए।
  4. निम्न अनुष्ठानों (भूमि, धन-व्यापार उद्योग-धंधों) से आय के साधन भी बढ़ते है।
  5. निर्धन व्यक्ति की पत्नी भी उसकी बात नहीं मानती।
  6. निर्धन व्यक्ति की हितकारी बातों को भी कोई नहीं सुनता।
  7. निर्धन होकर जीने से तो मर जाना अच्छा है।
  8. निर्बल राजा की आज्ञा की भी अवहेलना कदापि नहीं करनी चाहिए।
  9. निर्बल राजा को तत्काल संधि करनी चाहिए।
  10. नीच और उत्तम कुल के बीच में विवाह संबंध नहीं होने चाहिए।
  11. नीच की विधाएँ पाप कर्मों का ही आयोजन करती है।
  12. नीच लोग दूसरों की तरक्की देखकर जलते है और दूसरों के बारे में अपशब्द कहते है क्यों कि उनकी कुछ करने की औकात नहीं है।
  13. नीच लोगों की कृपा पर निर्भर होना व्यर्थ है।
  14. नीच व्यक्ति की शिक्षा की अवहेलना करनी चाहिए।
  15. नीच व्यक्ति के सम्मुख रहस्य और अपने दिल की बात नहीं करनी चाहिए।
  16. नीच व्यक्ति को अपमान का भय नहीं होता।
  17. नीच व्यक्ति को उपदेश देना ठीक नहीं। नीच लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
  18. नीच व्यक्ति हृदयगत बात को छिपाकर कुछ और ही बात कहता है।
  19. नीतिवान पुरुष कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व ही देश-काल की परीक्षा कर लेते है।
  20. नीम का फल कौए ही खाते है।
  21. न्याय विपरीत पाया धन, धन नहीं है।
  22. पडोसी राज्यों से सन्धियां तथा पारस्परिक व्यवहार का आदान-प्रदान और संबंध विच्छेद आदि का निर्वाह मंत्रिमंडल करता है।
  23. पति का अनुगमन करना, इहलोक और परलोक दोनों का सुख प्राप्त करना है।
  24. पति के वश में रहने वाली पत्नी ही व्यवहार के अनुकूल होती है।
  25. पराई वस्तु को पाने की लालसा नहीं रखनी चाहिए।
  26. पराए खेत में बीज न डाले अर्थात पराई स्त्री से सम्भोग (सेक्स) न करें।
  27. पराए धन को छीनना अपराध है।
  28. पराया व्यक्ति यदि हितैषी हो तो वह भाई है।
  29. परिचय हो जाने के बाद दोष नहीं छिपाते।
  30. परीक्षा करके विपत्ति को दूर करना चाहिए।
  31. परीक्षा करने से लक्ष्मी स्थिर रहती है।
  32. पहले निश्चय करिए, फिर कार्य आरम्भ करिए।
  33. पहले पांच सालों में अपने बच्चे को बड़े प्यार से रखिये। अगले पांच साल उन्हें डांट-डपट के रखिये। जब वह सोलह साल का हो जाये तो उसके साथ एक मित्र की तरह व्यवहार करिए। आपके वयस्क बच्चे ही आपके सबसे अच्छे मित्र हैं।
  34. पांच साल तक पुत्र को लाड एवं प्यार से पालन करना चाहिए, दस साल तक उसे छड़ी की मार से डराए। लेकिन इसके बाद उससे मित्र के समान व्यवहार करे क्योंकि आपके बालिग पुत्र ही आपके और आप उसके सबसे अच्छे मित्र होते हैं।
  35. पाप कर्म करने वाले को क्रोध और भय की चिंता नहीं होती।
  36. पापी की आत्मा उसके पापों को प्रकट कर देती है।
  37. पिता को अपने बच्चों को हमेशा अच्छे-बुरे की सीख देनी चाहिए क्योंकि समझदार लोग ही समाज में सम्मान पाते हैं।
  38. पुत्र की प्रशंसा नहीं करनी चाहिए।
  39. पुत्र के गुणवान होने से परिवार स्वर्ग बन जाता है।
  40. पुत्र के बिना स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होती।
  41. पुत्र के सुख से बढ़कर कोई दूसरा सुख नहीं है।
  42. पुत्र को पिता के अनुकूल आचरण करना चाहिए।
  43. पुत्र को सभी विद्याओं में क्रियाशील बनाना चाहिए।
  44. पुत्र प्राप्ति के लिए ही स्त्री का वरण किया जाता है।
  45. पुत्र प्राप्ति सर्वश्रेष्ठ लाभ है। प्रायः पुत्र पिता का ही अनुगमन करता है।
  46. पुत्र वही है जो पिता का कहना मानें, पिता वही है जो पुत्रों का पालन-पोषण करें, और पत्नी वही है जिससे सुख प्राप्त हो।
  47. पुत्र से ही कुल को यश मिलता है।
  48. पुराना होने पर भी शाल के वृक्ष से हाथी को नहीं बाँधा जा सकता।
  49. पुरुष के लिए कल्याण का मार्ग अपनाना ही उसके लिए जीवन-शक्ति है।
  50. पुरुष को कोई भी कार्य बिना सोचे समझे नहीं करना चाहिए ये उसे बर्बाद कर सकता है।
  51. पुष्प हीन होने पर सदा साथ रहने वाला भौंरा वृक्ष को त्याग देता है।
  52. पूर्वाग्रह से ग्रसित दंड देना लोकनिंदा का कारण बनता है।
  53. पृथ्वी सत्य की शक्ति द्वारा समर्थित है; ये सत्य की शक्ति ही है जो सूरज को चमक और हवा को वेग देती है; दरअसल सभी चीजें सत्य पर निर्भर करती हैं।
  54. प्रकृति (सहज) रूप से प्रजा के संपन्न होने से नेता विहीन राज्य भी संचालित होता रहता है।
  55. प्रकृति का कोप सभी कोपों से बड़ा होता है।
  56. प्रजा प्रिय राजा लोक-परलोक का सुख प्रकट करता है।
  57. प्रत्यक्ष और परोक्ष साधनों के अनुमान से कार्य की परीक्षा करें।
  58. प्रत्येक अवस्था में सर्वप्रथम माता का भरण-पोषण करना चाहिए।
  59. प्राणी अपनी देह को त्यागकर इंद्र का पद भी प्राप्त करना नहीं चाहता।
  60. प्रातःकाल ही दिन-भर के कार्यों के बारे में विचार कर लें।
  61. प्रेत भी धर्म-अधर्म का पालन करते है, दया धर्म की जन्मभूमि है।
  62. फूलों की इच्छा रखने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।
  63. फूलों की सुगंध केवल वायु की दिशा में फैलती है, लेकिन एक व्यक्ति की अच्छाई हर दिशा में फैलती है।
  64. बच्चों की सार्थक बातें ग्रहण करनी चाहिए।
  65. बल प्रयोग के स्थान पर क्षमा करना अधिक प्रशंसनीय होता है।
  66. बलवान से युद्ध करना हाथियों से पैदल सेना को लड़ाने के समान है।
  67. बहुत दिनों से परिचित व्यक्ति की अत्यधिक सेवा शंका उत्पन्न करती है।
  68. बहुत पुराना नीम का पेड़ होने पर भी उससे सरौता नहीं बन सकता।
  69. बहुत बड़ा कनेर का वृक्ष भी मूसली बनाने के काम नहीं आता।
  70. बहुत से गुणों को एक ही दोष ग्रस्त कर लेता है।
  71. बहुमत का विरोध करने वाले एक व्यक्ति का अनुगमन नहीं करना चाहिए।
  72. बिना अधिकार के किसी के घर में प्रवेश न करें।
  73. बिना उपाय के किए गए कार्य प्रयत्न करने पर भी बचाए नहीं जा सकते, नष्ट हो जाते है।
  74. बिना प्रयत्न किए धन प्राप्ति की इच्छा करना बालू में से तेल निकालने के समान है।
  75. बिना प्रयत्न के जहां जल उपलब्ध हो, वही कृषि करनी चाहिए।
  76. बिना विचार किये कार्य करने वालों को भाग्यलक्ष्मी त्याग देती है।
  77. बुद्धिमान व्यक्ति को मूर्ख, मित्र, गुरु और अपने प्रियजनों से विवाद नहीं करना चाहिए।
  78. बुद्धिमानों के शत्रु नहीं होते।
  79. बुद्धिहीन व्यक्ति निकृष्ट साहित्य के प्रति मोहित होते है।
  80. बुद्धिहीन व्यक्ति पिशाच अर्थात दुष्ट के सिवाय कुछ नहीं है।
  81. बुरे व्यक्ति पर क्रोध करने से पूर्व अपने आप पर ही क्रोध करना चाहिए।
  82. ब्राह्मणों का आभूषण वेद है, सभी व्यक्तियों का आभूषण धर्म है, विनय से युक्त विद्या सभी आभूषणों की आभूषण है।
  83. भगवान प्रतिमाओं में नहीं बसते आपकी भावनाएँ ही भगवान हैं और आपकी आत्मा ही परमात्मा का मंदिर हैं ।
  84. भगवान मूर्तियों में नहीं है, आपकी अनुभूति आपका ईश्वर है, आत्मा आपका मंदिर है।
  85. भली प्रकार से पूजने पर भी दुर्जन पीड़ा पहुंचाता है।
  86. भले लोग दूसरों के शरीर को भी अपना ही शरीर मानते है।
  87. भविष्य के अंधकार में छिपे कार्य के लिए श्रेष्ठ मंत्रणा दीपक के समान प्रकाश देने वाली है।
  88. भविष्य में आनी वाली मुसीबतों से बचने के लिए धन इकट्ठा करना चाहिए, यहां तक कि अमीरों को भी, क्योंकि जब धन साथ छोड़ता है तो संगठित धन भी तेज़ी से घटने लगता है।
  89. भाग्य का शमन शांति से करना चाहिए अर्थात मनुष्य के कार्य में आई विपत्ति को कुशलता से ठीक करना चाहिए।
  90. भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुखदायी हो जाता है।
  91. भाग्य पुरुषार्थी के पीछे चलता है।
  92. भूख के समान कोई दूसरा शत्रु नहीं है।
  93. भूखा व्यक्ति अखाद्य को भी खा जाता है।
  94. मंत्रणा की गोपनियता को सर्वोत्तम माना गया है।
  95. मंत्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
  96. मंत्रणा को गुप्त रखने से ही कार्य सिद्ध होता है।
  97. मंत्रणा रूप आँखों से शत्रु के छिद्रों अर्थात उसकी कमजोरियों को देखा-परखा जाता है।
  98. मछवारा जल में प्रवेश करके ही कुछ पाता है।
  99. मधुर व प्रिय वचन होने पर भी अहितकर वचन नहीं बोलने चाहिए।
  100. मन में सोचे हुए काम को किसी के सामने जाहिर नहीं करना चाहिए बल्कि उस काम को अपने मन में रखते हुए पूरा कर देना चाहिए।
  101. मनुष्य कर्मों से महान बनता हैं जन्म से नहीं।
  102. मनुष्य की वाणी ही विष और अमृत की खान है। दुष्ट की मित्रता से शत्रु की मित्रता अच्छी होती है।
  103. मनुष्य के चेहरे पर आए भावों को देवता भी छिपाने में अशक्त होते है।
  104. मनुष्य को ऐसे देश में बिलकुल भी नहीं रहना चाहिए जहाँ पर रोजगार की सुविधा न हो, आदर न हो, शुभचिंतक न हो तथा अंततः शिक्षा प्राप्त करने के स्त्रोत न हों।
  105. मनुष्य को ऐसे स्थान पर कभी नहीं रहना चाहिए जहाँ के लोग वहाँ के क़ानून नहीं मानते, जहाँ के लोगों में लज्जा न हो, जहाँ के लोगों में दान पुण्य के प्रति आस्था न हो तथा जहाँ पर कला न हो। ऐसे स्थानों में रहना एक निर्जन वन में रहने से भी अधिक खतरनाक होता है।
  106. मनुष्य को विभिन्न स्वजनों की पहचान विभिन्न समय में होती है। पत्नी की परीक्षा धनाभाव में, मित्र की परीक्षा आवश्यकता के समय में, सगे सम्बंधियों की परीक्षा संकट काल में तथा नौकर की परीक्षा मालिक द्वारा दिये गये अतिआवश्यक कार्य अथवा गुप्त कार्य के समय होती है। ऐसे समय में यदि मनुष्य को इन लोगों की सहायता नहीं मिल पाती तो ये लोग उस मनुष्य के लिए व्यर्थ हैं।
  107. मन्त्रणा की सम्पति से ही राज्य का विकास होता है।
  108. मर्यादा का कभी उल्लंघन न करें। विद्वान और प्रबुद्ध व्यक्ति समाज के रत्न है।
  109. मर्यादाओं का उल्लंघन करने वाले का कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
  110. मलिछ अर्थात नीच की भाषा कभी शिक्षा नहीं देती।
  111. मलिछ अर्थात नीच व्यक्ति की भी यदि कोई अच्छी बात हो तो अपना लेना चाहिए।
  112. महाजन द्वारा अधिक धन संग्रह प्रजा को दुःख पहुँचाता है।
  113. महात्मा को पराए बल पर साहस नहीं करना चाहिए।
  114. महान व्यक्तियों का उपहास नहीं करना चाहिए। कार्य के लक्षण ही सफलता-असफलता के संकेत दे देते है।
  115. मांस खाना सभी के लिए अनुचित है।
  116. माता द्वारा प्रताड़ित बालक माता के पास जाकर ही रोता है।
  117. मित्रता अपने स्तर के मनुष्य के साथ ही बेहतर होता है।
  118. मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
  119. मित्रों के संग्रह से बल प्राप्त होता है।
  120. मूर्ख लोगों का क्रोध उन्हीं का नाश करता है। सच्चे लोगो के लिए कुछ भी अप्राप्य नहीं।
  121. मूर्ख व्यक्ति उपकार करने वाले का भी अपकार करता है। इसके विपरीत जो इसके विरुद्ध आचरण करता है, वह विद्वान कहलाता है।
  122. मूर्ख व्यक्ति को अपने दोष दिखाई नहीं देते, उसे दूसरे के दोष ही दिखाई देते हैं।
  123. मूर्ख का कोई मित्र नहीं है।
  124. मूर्ख के लिए किताबों का उतना ही मौल होता हैं जितना किसी नेत्रहीन के लिए दर्पण का ।
  125. मूर्ख लोग कार्यों के मध्य कठिनाई उत्पन्न होने पर दोष ही निकाला करते है।
  126. मूर्खों को समझाना, चरित्रहीन स्त्रियों की चिंता करना तथा एक निराशा वादी इंसान के साथ समय व्यतीत करना बेवकूफी है, क्योंकि मूर्ख ज्ञानवर्धक बातें नहीं समझ पाते, चरित्रहीन स्त्रियाँ हज़ारों पाबंदियों के बाद भी अपने मन की ही करती हैं, तथा एक निराशा वादी मनुष्य अपने मित्र को किसी भी मूल्य पर खुश नहीं कर सकता है।
  127. मूर्खों से विवाद नहीं करना चाहिए। मूर्ख से मूर्खों जैसी ही भाषा बोलें।
  128. मृग तृष्णा जल के समान है।
  129. मृत व्यक्ति का औषधि से क्या प्रयोजन।
  130. मृतिका पिंड (मिट्टी का ढेला) भी फूलों की सुगंध बढ़ा देता है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवशय पड़ता है जैसे जिस मिट्टी में फूल खिलते है उस मिट्टी से भी फूलों की सुगंध आने लगती है।
  131. मृत्यु भी धर्म पर चलने वाले व्यक्ति की रक्षा करती है।
  132. यदि आदमी के पास प्रसिद्धि है तो भला उसे और किसी श्रृंगार की क्या आवश्यकता है।
  133. यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे, लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए।
  134. यदि किसी का स्वभाव अच्छा है तो उसे किसी और गुण की क्या जरूरत है ?
  135. यदि न खाने योग्य भोजन से पेट में बदहजमी हो जाए तो ऐसा भोजन कभी नहीं करना चाहिए।
  136. यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
  137. यदि माता दुष्ट है तो उसे भी त्याग देना चाहिए।
  138. यदि स्वयं के हाथ में विष फैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
  139. यदि स्वयं के हाथ में विष फ़ैल रहा है तो उसे काट देना चाहिए।
  140. यश शरीर को नष्ट नहीं करता।
  141. यह संसार आशा के सहारे बंधा है।
  142. याचक कंजूस-से- कंजूस धनवान को भी नहीं छोड़ते।
  143. युवाओं को किसी भी चीज का लालच नहीं करना चाहिए।
  144. युवावस्था के छात्र जीवन को तपस्वी की तरह माना गया है। चाणक्य कहते हैं युवा छात्र को स्वादिष्ट भोजन की लालसा छोड़ देना चाहिए और स्वास्थ्यवर्धक संतुलित आहार लेने की कोशिश करनी चाहिए।
  145. योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है।
  146. योग्य सहायकों के बिना निर्णय करना बड़ा कठिन होता है। एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
  147. रत्न कभी खंडित नहीं होता अर्थात विद्वान व्यक्ति में कोई साधारण दोष होने पर उस पर ज्यादा ध्यान नहीं देना चाहिए।
  148. राज अग्नि दूर तक जला देती है।
  149. राज पुरुषों से संबंध बनाए रखें।
  150. राजकुल में सदैव आते-जाते रहना चाहिए।
  151. राजतंत्र को ही नीतिशास्त्र कहते है।
  152. राजतंत्र से संबंधित घरेलू और वाह्य, दोनों कर्तव्यों को राजतंत्र का अंग कहा जाता है।
  153. राजदासी से कभी शारीरिक संबंध नहीं बनाने चाहिए।
  154. राजधन की ओर आँख उठाकर भी नहीं देखना चाहिए।
  155. राजपरिवार से द्वेष अथवा भेदभाव नहीं रखना चाहिए।
  156. राजसेवा में डरपोक और निकम्मे लोगों का कोई उपयोग नहीं होता।
  157. राजा अपने गुप्तचरों द्वारा अपने राज्य में होने वाली दूर की घटनाओं को भी जान लेता है।
  158. राजा अपने बल-विक्रम से धनी होता है।
  159. राजा की आज्ञा का कभी उल्लंघन न करें।
  160. राजा की आज्ञा से सदैव डरते रहे।
  161. राजा की भलाई के लिए ही नीच का साथ करना चाहिए।
  162. राजा के दर्शन देने से प्रजा सुखी होती है।
  163. राजा के दर्शन न देने से प्रजा नष्ट हो जाती है।
  164. राजा के पास खाली हाथ कभी नहीं जाना चाहिए।
  165. राजा के प्रतिकूल आचरण नहीं करना चाहिए।
  166. राजा के सेवकों का कठोर होना अधर्म माना जाता है।
  167. राजा से बड़ा कोई देवता नहीं।
  168. राजा, गुप्तचर और मंत्री तीनों का एक मत होना किसी भी मंत्रणा की सफलता है।
  169. राज्य का आधार अपनी इन्द्रियों पर विजय पाना है।
  170. राज्य को नीतिशास्त्र के अनुसार चलना चाहिए।
  171. राज्य नीति का संबंध केवल अपने राज्य को समृद्धि प्रदान करने वाले मामलों से होता है।
  172. रात्रि में नहीं घूमना चाहिए।
  173. रिश्तेदारों की परख तब करें जब आप किसी मुसीबत में घिरे हों।
  174. रूप के अनुसार ही गुण होते है।
  175. रोग शत्रु से भी बड़ा है।
  176. लाड-प्यार से बच्चों में गलत आदतें ढलती है, उन्हें कड़ी शिक्षा देने से वे अच्छी आदतें सीखते है, इसलिए बच्चों को जरूरत पड़ने पर फिटकारें, ज्यादा लाड ना करें।
  177. लापरवाही अथवा आलस्य से भेद खुल जाता है।
  178. लालच युवाओं के अध्ययन के मार्ग में स बसे बड़ा बाधक माना जाता है।
  179. लोक चरित्र को समझना सर्वज्ञता कहलाती है।
  180. लोक व्यवहार शास्त्रों के अनुकूल होना चाहिए।
  181. लोक-व्यवहार में कुशल व्यक्ति ही बुद्धिमान है।
  182. लोभ द्वारा शत्रु को भी भ्रष्ट किया जा सकता है।
  183. लोभ बुद्धि पर छा जाता है, अर्थात बुद्धि को नष्ट कर देता है।
  184. लोभी और कंजूस स्वामी से कुछ पाना जुगनू से आग प्राप्त करने के समान है।
  185. लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
  186. लोहे को लोहे से ही काटना चाहिए।
  187. वन की अग्नि चंदन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते हैं।
  188. वन की अग्नि चन्दन की लकड़ी को भी जला देती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति किसी का भी अहित कर सकते है।
  189. वह चीज जो दूर दिखाई देती है, जो असंभव दिखाई देती है, जो हमारी पहुँच से बहार दिखाई देती है, वह भी आसानी से हासिल हो सकती है यदि हम मेहनत करते है, क्योंकि मेहनत से बढ़कर कुछ नहीं।
  190. वह जो अपने परिवार से अत्यधिक जुड़ा हुआ है, उसे भय और चिंता का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सभी दुखों कि जड़ लगाव है। इसलिए खुश रहने कि लिए लगाव छोड़ देना चाहिए।
  191. वह जो हमारे चिंतन में रहता है वह करीब है, भले ही वास्तविकता में वह बहुत दूर ही क्यों ना हो; लेकिन जो हमारे ह्रदय में नहीं है वो करीब होते हुए भी बहुत दूर होता है।
  192. वाहनों पर यात्रा करने वाले पैदल चलने का कष्ट नहीं करते।
  193. विकृति प्रिय लोग नीचता का व्यवहार करते है।
  194. विचार अथवा मंत्रणा को गुप्त न रखने पर कार्य नष्ट हो जाता है।
  195. विचार न करके कार्य करने वाले व्यक्ति को लक्ष्मी त्याग देती है अर्थात परीक्षा किये बिना कार्य करने से कार्य विपत्ति में पड़ जाता है।
  196. विद्या अर्जन करना यह एक कामधेनु के समान है जो हर मौसम में अमृत प्रदान करती है, वह विदेश में माता के समान रक्षक एवं हितकारी होती है। इसीलिए विद्या को एक गुप्त धन कहा जाता है।
  197. विद्या से विद्वान की ख्याति होती है।
  198. विद्या ही निर्धन का धन है, विद्या को चोर भी चुरा नहीं सकता।
  199. विनय रहित व्यक्ति का ताना देना व्यर्थ है।
  200. विनाश का उपस्थित होना सहज प्रकृति से ही जाना जा सकता है।
  201. विनाश काल आने पर आदमी अनीति करने लगता है।
  202. विनाश काल आने पर दवा की बात कोई नहीं सुनता।
  203. विवाद के समय धर्म के अनुसार कार्य करना चाहिए।
  204. विवेकहीन व्यक्ति महान ऐश्वर्य पाने के बाद भी नष्ट हो जाते है।
  205. विशेष कार्य को (बिना आज्ञा भी) करें।
  206. विशेष स्थिति में ही पुरुष सम्मान पाता है। सदैव आर्यों (श्रेष्ठ जन) के समान ही आचरण करना चाहिए।
  207. विशेषज्ञ व्यक्ति को स्वामी का आश्रय ग्रहण करना चाहिए।
  208. विश्वास की रक्षा प्राण से भी अधिक करनी चाहिए।
  209. विश्वासघाती की कहीं भी मुक्ति नहीं होती।
  210. विष प्रत्येक स्थिति में विष ही रहता है।
  211. विष में यदि अमृत हो तो उसे ग्रहण कर लेना चाहिए।
  212. वृद्ध सेवा अर्थात ज्ञानियों की सेवा से ही ज्ञान प्राप्त होता है।
  213. वृद्धजन की सेवा ही विनय का आधार है।
  214. वे लोग जो इस दुनिया में सुखी है. जो अपने संबंधियों के प्रति उदार है. अनजाने लोगों के प्रति सहृदय है. अच्छे लोगों के प्रति प्रेम भाव रखते है. नीच लोगों से धूर्तता पूर्ण व्यवहार करते है. विद्वानों से कुछ नहीं छपाते. दुश्मनों के सामने साहस दिखाते है. बड़ों के प्रति विनम्र और पत्नी के प्रति सख्त है।
  215. वेद से बाहर कोई धर्म नहीं है।
  216. वेश्याएं निर्धनों के साथ नहीं रहतीं, नागरिक कमजोर संगठन का समर्थन नहीं करते, और पक्षी उस पेड़ पर घोंसला नहीं बनाते जिस पे फल ना हों।
  217. वैभव के अनुरूप ही आभूषण और वस्त्र धारण करें।
  218. वो जिसका ज्ञान बस किताबों तक सीमित है और जिसका धन दूसरों के कब्ज़े मैं है, वो जरूरत पड़ने पर ना अपना ज्ञान प्रयोग कर सकता है ना धन।
  219. व्यक्ति अकेले पैदा होता है और अकेले मर जाता है और वो अपने अच्छे और बुरे कर्मों का फल खुद ही भुगतता है; और वह अकेले ही नर्क या स्वर्ग जाता है।
  220. व्यक्ति के मन में क्या है, यह उसके व्यवहार से प्रकट हो जाता है।
  221. व्यक्ति को उट-पटांग अथवा गवार वेशभूषा धारण नहीं करनी चाहिए।
  222. व्यसनी व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता।
  223. व्यसनी व्यक्ति लक्ष्य तक पहुँचने से पहले ही रुक जाता है।
  224. शक्तिशाली राजा लाभ को प्राप्त करने का प्रयत्न करता है।
  225. शक्तिशाली शत्रु को कमजोर समझकर ही उस पर आक्रमण करें।
  226. शक्तिहीन को बलवान का आश्रय लेना चाहिए।
  227. शत्रु का पुत्र यदि मित्र है तो उसकी रक्षा करनी चाहिए।
  228. शत्रु की जीविका भी नष्ट नहीं करनी चाहिए।
  229. शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाए रखें।
  230. शत्रु की दुर्बलता जानने तक उसे अपना मित्र बनाएं रखें।
  231. शत्रु की निंदा सभा के मध्य नहीं करनी चाहिए।
  232. शत्रु की बुरी आदतों को सुनकर कानों को सुख मिलता है।
  233. शत्रु के छिद्र (दुर्बलता) पर ही प्रहार करना चाहिए।
  234. शत्रु के प्रयत्नों की समीक्षा करते रहना चाहिए।
  235. शत्रु दण्ड नीति के ही योग्य है।
  236. शत्रु द्वारा किया गया स्नेहपूर्ण व्यवहार भी दोषयुक्त समझना चाहिए।
  237. शत्रु भी उत्साही व्यक्ति के वश में हो जाता है।
  238. शत्रु हमेशा छिद्र (कमजोरी) पर ही प्रहार करते है।
  239. शत्रुओं के गुणों को भी ग्रहण करना चाहिए।
  240. शत्रुओं से अपने राज्य की पूर्ण रक्षा करें।
  241. शराबी के हाथ में थमें दूध को भी शराब ही समझा जाता है।
  242. शराबी व्यक्ति का कोई कार्य पूरा नहीं होता है।
  243. शांत व्यक्ति सबको अपना बना लेता है।
  244. शांतिपूर्ण देश में ही रहें।
  245. शासक को स्वयं योग्य बनकर योग्य प्रशासकों की सहायता से शासन करना चाहिए।
  246. शास्त्र का ज्ञान आलसी को नहीं हो सकता।
  247. शास्त्र शिष्टाचार से बड़ा नहीं है।
  248. शास्त्रों के ज्ञान से इन्द्रियों को वश में किया जा सकता है।
  249. शास्त्रों के न जानने पर श्रेष्ठ पुरुषों के आचरणों के अनुसार आचरण करें।
  250. शिकार परस्त राजा धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट कर लेता है।
  251. शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है।
  252. शिक्षा सौंदर्य और यौवन को परास्त कर देती है।
  253. शिष्य को गुरु के वश में होकर कार्य करना चाहिए।
  254. शुद्ध किया हुआ नीम भी आम नहीं बन सकता।
  255. श्रेष्ठ और सुहृदय जन अपने आश्रित के दुःख को अपना ही दुःख समझते है।
  256. श्रेष्ठ व्यक्ति अपने समान ही दूसरों को मानता है।
  257. श्रेष्ठ स्त्री के लिए पति ही परमेश्वर है।
  258. संकट में केवल बुद्धि ही काम आती है।
  259. संकट में बुद्धि ही काम आती है।
  260. संकटकाल में जो व्यक्ति आपकी सहृदयता से सहायता करता है, वही सच्चे अर्थों में आपका मित्र और भाई होता है। अतः संकट काल में जिन लोगों से सहायता प्राप्त हो उन्हें किसी भी मूल्य पर नहीं भूलना चाहिए।
  261. संतान को जन्म देने वाली स्त्री पत्नी कहलाती है।
  262. संतुलित दिमाग जैसी कोई सादगी नहीं है, संतोष जैसा कोई सुख नहीं है, लोभ जैसी कोई बीमारी नहीं है, और दया जैसा कोई पुण्य नहीं है।
  263. संधि और एकता होने पर भी सतर्क रहे।
  264. संधि करने वालो में तेज़ ही संधि का हित होता है।
  265. संपन्न और दयालु स्वामी की ही नौकरी करनी चाहिए।
  266. संबंधों का आधार उद्देश्य की पूर्ति के लिए होता है।
  267. संयोग से तो एक कीड़ा भी स्थिति में परिवर्तन कर देता है।
  268. संसार में निर्धन व्यक्ति का आना उसे दुखी करता है।
  269. संसार में लोग जान-बूझकर अपराध की ओर बढ़ते हैं।
  270. सज्जन की राय का उल्लंघन न करें।
  271. सज्जन को बुरा आचरण नहीं करना चाहिए।
  272. सज्जन तिल बराबर उपकार को भी पर्वत के समान बड़ा मानकर चलता है।
  273. सज्जन थोड़े-से उपकार के बदले बड़ा उपकार करने की इच्छा से सोता भी नहीं।
  274. सज्जन दुर्जनों में विचरण नहीं करते।
  275. सत वाणी से स्वर्ग प्राप्त होता है।
  276. सत्य पर संसार टिका हुआ है।
  277. सत्य पर ही देवताओं का आशीर्वाद बरसता है।
  278. सत्य भी यदि अनुचित है तो उसे नहीं कहना चाहिए।
  279. सत्य से बढ़कर कोई तप नहीं।
  280. सत्य से स्वर्ग की प्राप्ति होती है।
  281. सत्संग से स्वर्ग में रहने का सुख मिलता है।
  282. सदाचार से मनुष्य का यश और आयु दोनों बढ़ती है।
  283. सदाचार से शत्रु पर विजय प्राप्त की जा सकती है।
  284. सबसे ज्यादा दुख दाई बात किसी दूसरे के घर जाकर उसका अहसान लेना है।
  285. सबसे बड़ा गुरु मन्त्र है : कभी भी अपने राज़ दूसरों को मत बताएं, ये आपको बर्बाद कर देगा।
  286. सभा के मध्य जो दूसरों के व्यक्तिगत दोष दिखाता है, वह स्वयं अपने दोष दिखाता है।
  287. सभा के मध्य शत्रु पर क्रोध न करें।
  288. सभी अशुभों का क्षेत्र स्त्री है। स्त्रियों का मन क्षणिक रूप से स्थिर होता है।
  289. सभी पहाड़ियों में मणि मुक्ता नहीं होती, सभी स्थान घर नहीं होता और सभी घर आदर्श मनुष्यों के लिए उत्तम नहीं होता। सभी हाथी के पास गज मुक्ता मणि नहीं होती तथा सभी जंगलों में चन्दन का पेड़ नहीं पाया जाता है। तात्पर्य ये है कि सभी मनुष्य आदर्श मनुष्य नहीं होते हैं।
  290. सभी प्रकार की सम्‍पत्ति का सभी उपायों से संग्रह करना चाहिए।
  291. सभी प्रकार के भय से बदनामी का भय सबसे बड़ा होता है।
  292. सभी मार्गों से मंत्रणा की रक्षा करनी चाहिए।
  293. समय का ज्ञान न रखने वाले राजा का कर्म समय के द्वारा ही नष्ट हो जाता है।
  294. समय का ध्यान नहीं रखने वाला व्यक्ति अपने जीवन में भ्रम में रहता है।
  295. समय को समझने वाला कार्य सिद्ध करता है।
  296. समस्त कार्य पूर्व मंत्रणा से करने चाहिए।
  297. समस्त दुखों को नष्ट करने की औषधि मोक्ष है।
  298. समस्त संसार धन के पीछे लगा है।
  299. समुद्र के पानी से प्यास नहीं बुझती।
  300. समृद्धता से कोई गुणवान नहीं हो जाता।
  301. सर्प, नृप, शेर, डंक मारने वाले ततैया, छोटे बच्चे, दूसरों के कुत्तों, और एक मूर्ख: इन सातों को नीद से नहीं उठाना चाहिए।
  302. सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
  303. सांप को दूध पिलाने से विष ही बढ़ता है, न की अमृत।
  304. साधारण दोष देखकर महान गुणों को त्याज्य नहीं समझना चाहिए।
  305. साधारण पुरुष परम्परा का अनुसरण करते है।
  306. साधु पुरुष किसी के भी धन को अपना नहीं मानते है।
  307. सामर्थ्य के अनुसार ही दान दें।
  308. सारस की तरह एक बुद्धिमान व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए और अपने उद्देश्य को स्थान की जानकारी, समय और योग्यता के अनुसार प्राप्त करना चाहिए।
  309. साहसी लोगों को अपना कर्तव्य प्रिय होता है।
  310. सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
  311. सिंह भूखा होने पर भी तिनका नहीं खाता।
  312. सीधे और सरल व्यक्ति दुर्लभता से मिलते है
  313. सुख और दुःख में समान रूप से सहायक होना चाहिए।
  314. सुख का आधार धर्म है।
  315. सेवक को तब परखें जब वह काम ना कर रहा हो, रिश्तेदार को किसी कठिनाई में, मित्र को संकट में, और पत्नी को घोर विपत्ति में।
  316. सेवक को स्वामी के अनुकूल कार्य करने चाहिए।
  317. सेवकों को अपने स्वामी का गुणगान करना चाहिए।
  318. सोने के साथ मिलकर चांदी भी सोने जैसी दिखाई पड़ती है अर्थात सत्संग का प्रभाव मनुष्य पर अवश्य पड़ता है।
  319. सौंदर्य अलंकारों अर्थात आभूषणों से छिप जाता है।
  320. सौभाग्य ही स्त्री का आभूषण है।
  321. स्तुति करने से देवता भी प्रसन्न हो जाते है।
  322. स्त्रियाँ घर में ही सुरक्षित होती हैं।
  323. स्त्री का आभूषण लज्जा है।
  324. स्त्री का नाम सभी अशुभ क्षेत्रों से जुड़ा हुआ है।
  325. स्त्री का निरीक्षण करने में आलस्य न करें।
  326. स्त्री के प्रति आसक्त रहने वाले पुरुष को न स्वर्ग मिलता है, न धर्म-कर्म।
  327. स्त्री के बंधन से छूटना अथवा मोक्ष पाना अत्यंत कठिन है।
  328. स्त्री के बंधन से मोक्ष पाना अति दुर्लभ है।
  329. स्त्री पर जरा भी विश्वास न करें।
  330. स्त्री बिना लोहे की बड़ी है।
  331. स्त्री भी नपुंसक व्यक्ति का अपमान कर देती है।
  332. स्त्री रत्न से बढ़कर कोई दूसरा रत्न नहीं है, रत्नों की प्राप्ति बहुत कठिन है अर्थात श्रेष्ठ नर और नारियों की प्राप्ति अत्यंत दुर्लभ है।
  333. स्नेह करने वालों का रोष अल्प समय के लिए होता है।
  334. स्वजनों की बुरी आदतों का समाधान करना चाहिए।
  335. स्वजनों के अपमान से मनस्वी दुःखी होते है।
  336. स्वजनों को तृप्त करके शेष भोजन से जो अपनी भूख शांत करता है, वह अमृत भोजी कहलाता है।
  337. स्वभाव का अतिक्रमण अत्यंत कठिन है।
  338. स्वयं अशुद्ध व्यक्ति दूसरे से भी अशुद्धता की शंका करता है।
  339. स्वयं को अमर मानकर धन का संग्रह करें, धनवान व्यक्ति का सारा संसार सम्मान करता है।
  340. स्वर्ग की प्राप्ति शाश्वत अर्थात सनातन नहीं होती।
  341. स्वर्ग-पतन से बड़ा कोई दुःख नहीं है।
  342. स्वाभिमानी व्यक्ति प्रतिकूल विचारों को सम्मुख रखकर दोबारा उन पर विचार करे।
  343. स्वामी के क्रोधित होने पर स्वामी के अनुरूप ही काम करें।
  344. स्वामी द्वारा एकांत में कहे गए गुप्त रहस्यों को मूर्ख व्यक्ति प्रकट कर देते हैं।
  345. स्वार्थ पूर्ति हेतु दी जाने वाली भेंट ही उनकी सेवा है।
  346. हंस पक्षी श्मशान में नहीं रहता अर्थात ज्ञानी व्यक्ति मूर्ख और दुष्ट व्यक्तियों के पास बैठना पसंद नहीं करते।
  347. हम अपना हर कदम फूँक-फूँक कर रखे। 
  348. हम वही काम करें जिसके बारे हम सावधानीपूर्वक सोच चुके है।
  349. हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए, विवेक वान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते हैं।
  350. हर एक दोस्ती के पीछे कोई न कोई स्वार्थ होता हैं कोई भी दोस्ती स्वार्थ के बिना नहीं होती यह एक कड़वा सच हैं।
  351. हर चीज़ की ‘अति’ बुरी होती है, क्योंकि अत्यधिक सुंदरता के कारण सीताहरण हुआ, अत्यंत घमंड के कारण रावन का अंत हुआ, अत्यधिक दान देने के कारण रजा बाली को बंधन में बंधना पड़ा, अतः सर्वत्र अति को त्यागना चाहिए।
  352. हर पल अपने प्रभुत्व को बनाए रखना ही कर्तव्य है।
  353. हर मित्रता के पीछे कोई ना कोई स्वार्थ होता है, ऐसी कोई मित्रता नहीं जिसमें स्वार्थ ना हो, यह कड़वा सच है।
  354. हाथ में आए शत्रु पर कभी विश्वास न करें।
  355. हे बुद्धिमान लोगों ! अपना धन उन्हीं को दो जो उसके योग्य हों और किसी को नहीं। बादलों के द्वारा लिया गया समुद्र का जल हमेशा मीठा होता है।


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चाणक्य नीति की 656 अकाट्य बातें जो आपको कभी फेल नही होने देगी Chankya Niti in Hindi



 
चाणक्य, चन्द्रगुप्त मौर्य के महामंत्री थे। वे 'कौटिल्य' नाम से भी विख्यात हैं। उन्होने नंदवंश का नाश करके चन्द्रगुप्त मौर्य को राजा बनाया। उनके द्वारा रचित अर्थशास्त्र राजनीति, अर्थनीति, कृषि, समाजनीति आदि का महान ग्रंन्थ है। अर्थशास्त्र मौर्यकालीन भारतीय समाज का दर्पण माना जाता है। मुद्राराक्षस के अनुसार इनका असली नाम 'विष्णुगुप्त' था। विष्णुपुराण, भागवत आदि पुराणों तथा कथासरित्सागर आदि संस्कृत ग्रंथों में तो चाणक्य का नाम आया ही है, बौद्ध ग्रंथो में भी इसकी कथा बराबर मिलती है। बुद्धघोष की बनाई हुई विनयपिटक की टीका तथा महानाम स्थविर रचित महावंश की टीका में चाणक्य का वृत्तांत दिया हुआ है। चाणक्य तक्षशिला (जो अब पाकिस्‍तान मे है) के निवासी थे। इनके जीवन की घटनाओं का विशेष संबंध मौर्य चंद्रगुप्त की राज्यप्राप्ति से है। ये उस समय के एक प्रसिद्ध विद्वान थे, इसमें कोई संदेह नहीं। कहते हैं कि चाणक्य राजसी ठाट-बाट से दूर एक छोटी सी कुटिया में रहते थे।
चाणक्य एक महान साहित्यकार, शिक्षक, दर्शनशास्त्री, अर्थशास्त्री व सलाहकार थे। चाणक्य बहुत ज्ञानी और समझदार व्‍यक्तित्‍व के इंसान थे, जिन्हें अर्थशास्त्र की अच्छी समझ थी। चाणक्य ने अपनी सूझबूझ व कूटनीति से मौर्य साम्राज्य की स्थापना की, उन्होंने चन्द्रगुप्त जैसे साधारण से इंसान को भारत देश के सबसे बड़े साम्राज्य का संस्थापक बना दिया। चाणक्य एक शिक्षक थे जो अर्थशास्त्र, कॉमर्स की शिक्षा दिया करते थे, उन्हें लेखन का भी बहुत शौक था, उनकी प्रसिद्ध रचना चाणक्य नीति, अर्थशास्त्र व नीतिशास्त्र रही। चाणक्य की ज़िन्दगी के बारे में उनकी पुस्तक ‘कौटिल्य’ में सब कुछ लिखा हुआ है, जिसे पढ़ कर हम उन्हें और करीब से जान सकते है। चाणक्य एक ब्राह्मण परिवार में जन्मे थे, इसके बावजूद उनमें राजा वाली गुणवत्ता थी। चाणक्य बहुत बड़े देशभक्त थे, देश के लिए वो किसी भी हद तक जा सकते थे। वे हमेशा देश हित का सोचते थे, इसके लिए उन्होंने कूटनीति भी बनाई थी, इसलिए उन्हें कूटनीतिज्ञ कहा गया।

आचार्य चाणक्य ने महाराज चंद्र गुप्त को अखंड भारत का सम्राट बनने में सहायता करने बाद विशाल साम्राज्य की प्रजा के मार्गदर्शन के लिए एक नीतिशास्त्र की रचना की थी जिसे आज 'चाणक्य नीति' के नाम से जाना जाता है। भले ही 'चाणक्य नीति' आज से करीब 2000 साल पहले लिखी गई पर आज भी इसमें बताई गई ज्यादातर बातें उतनी ही सही बैठती हैं जितनी कि तब थी। 

चाणक्य ने चाणक्य नीति के अलावा सैकड़ों ऐसे कथन और कहे थे जिन्हें की हर इंसान को पढ़ना, समझना और अपने जीवन में अपनाना चाहिए। आज हम आपको उनके ऐसे ही कुछ कथनों और विचारों के बारे में बताने जा रहे हैं। चाणक्य ने हर उम्र, हर वर्ग के लोगों के लिए अपने अनुभवों से संचित ज्ञान को प्रस्तुत किया है। चाणक्य ने युवाओं के लिए ऐसी बताई है कि युवाओं को किन बातों से परहेज करना चाहिए और किन बातों को जीवन में आत्मसात करना चाहिये। किसी भी देश का युवा उस देश की शक्ति होते हैं। युवा देश की संस्कृति और धरोहरों के रक्षक होते हैं। आइए जानते हैं चाणक्य ने किन बातों के लिए युवाओं को चेताया है।
Chanakya Niti in Hindi
  1. अकारण किसी के घर में प्रवेश न करें।
  2. अकुलीन धनिक भी कुलीन से श्रेष्ठ है।
  3. अगम्भीर विद्वान को संसार में सम्मान नहीं मिलता।
  4. अगर सांप जहरीला ना भी हो तो उसे खुद को जहरीला दिखाना चाहिए।
  5. अग्नि के समान तेजस्वी जानकर ही किसी का सहारा लेना चाहिए।
  6. अग्नि में दुर्बलता नहीं होती।
  7. अच्छी सेहत के लिए अच्छी नींद की आवश्यकता होती है लेकिन युवा वर्ग अगर नींद से ही प्रेम करने लगे तो उनमें आलस्य की मात्रा बढ़ जाती है और समय भी उनके पास कम बचता है, चाणक्य की चेतावनी है सोने में जीवन को खोना नहीं।
  8. अजीर्ण की स्थिति में भोजन दुःख पहुंचाता है।
  9. अज्ञानी लोगों द्वारा प्रचारित बातों पर चलने से जीवन व्यर्थ हो जाता है।
  10. अज्ञानी व्यक्ति के कार्य को बहुत अधिक महत्व नहीं देना चाहिए।
  11. अति आसक्ति दोष उत्पन्न करती है।
  12. अत्यधिक आदर-सत्कार से शंका उत्पन्न हो जाती है।
  13. अत्यधिक भार उठाने वाला व्यक्ति जल्दी थक जाता है।
  14. अधर्म बुद्धि से आत्मविनाश की सूचना मिलती है।
  15. अधिक मैथुन (सेक्स) से पुरुष बूढ़ा हो जाता है।
  16. अनुराग अर्थात प्रेम फल अथवा परिणाम से ज्ञात होता है।
  17. अन्न के सिवाय कोई दूसरा धन नहीं है।
  18. अन्न दान करने से भ्रूण हत्या (गर्भपात) के पाप से मुक्ति मिल जाती है।
  19. अपनी कमजोरी का प्रकाशन न करें
  20. अपनी दासी को ग्रहण करना स्वयं को दास बना लेना है।
  21. अपनी शक्ति को जानकार ही कार्य करें।
  22. अपनी सेवा से स्वामी की कृपा पाना सेवकों का धर्म है।
  23. अपने कार्य की शीघ्र सिद्धि चाहने वाला व्यक्ति नक्षत्रों की परीक्षा नहीं करता।
  24. अपने कुल अर्थात वंश के अनुसार ही व्यवहार करें।
  25. अपने तथा अन्य लोगों के बिगड़े कार्यों का स्वयं निरीक्षण करना चाहिए।
  26. अपने धर्म के लिए ही कोई सत्पुरुष कहलाता है।
  27. अपने व्यवसाय में सफल नीच व्यक्ति को भी साझीदार नहीं बनाना चाहिए।
  28. अपने व्यवहार में बहुत सीधे ना रहे, आप यदि वन जाकर देखते है तो पायेंगे की जो पेड़ सीधे उगे उन्हें काट लिया गया और जो पेड़ आड़े तिरछे है वो खड़े है।
  29. अपने से अधिक शक्तिशाली और समान बल वाले से शत्रुता न करें।
  30. अपने स्थान पर बने रहने से ही मनुष्य पूजा जाता है।
  31. अपने स्वामी के स्वभाव को जानकार ही आश्रित कर्मचारी कार्य करते है।
  32. अपमानित हो के जीने से अच्छा मरना है, मृत्यु तो बस एक क्षण का दुःख देती है, लेकिन अपमान हर दिन जीवन में दुःख लाता है।
  33. अपराध के अनुरूप ही दंड दें अर्थात कथन के अनुसार ही उत्तर दें।
  34. अप्राप्त लाभ आदि राजतंत्र के चार आधार है।
  35. अर्थ का आधार राज्य है।
  36. अर्थ कार्य का आधार है।
  37. अर्थ, धर्म और कर्म का आधार है।
  38. अल्प व्यसन भी दुःख देने वाला होता है।
  39. अविनीत व्यक्ति को स्नेही होने पर भी अपनी मंत्रणा में नहीं रखना चाहिए।
  40. अविनीत स्वामी के होने से तो स्वामी का न होना अच्छा है।
  41. अविश्वसनीय लोगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए।
  42. अशुभ कार्य न चाहने वाले स्त्रियों में आसक्त नहीं होते।
  43. अशुभ कार्यों को नहीं करना चाहिए अर्थात गलत कार्यों को नहीं करना चाहिए।
  44. असंशय की स्थिति में विनाश से अच्छा तो संशय की स्थिति में हुआ विनाश होता है।
  45. असहाय पथिक बनकर मार्ग में न जाएं।
  46. अस्थिर मन वाले की सोच स्थिर नहीं रहती।
  47. अहंकार से बड़ा मनुष्य का कोई शत्रु नहीं।
  48. अहिंसा धर्म का लक्षण है। संसार की प्रत्येक वास्तु नाशवान है।
  49. आँखों के बिना शरीर क्या है?
  50. आंखें ही देहधारियों की नेता है।
  51. आंखों के समान कोई ज्योति नहीं।
  52. आग में घी नहीं डालनी चाहिए अर्थात क्रोधी व्यक्ति को अधिक क्रोध नहीं दिलाना चाहिए।
  53. आग सिर में स्थापित करने पर भी जलाती है अर्थात दुष्ट व्यक्ति का कितना भी सम्मान कर लें, वह सदा दुःख ही देता है।
  54. आचार्य चाणक्य कहते हैं कि क्रोध हर इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन होता है, क्रोध में आते ही व्यक्ति की सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। क्रोध से युवाओं को हमेशा बचना चाहिए।
  55. आचार्य चाणक्य का मानना है कि छात्रों के लिए जरूरत से ज्यादा मनोरंजन नुकसानदायक हो सकता है, जितना जरूरी हो उतना ही मनोरंजन करें अधिक मनोरंजन से युवा शक्ति का ह्रास होता है।
  56. आत्म रक्षा से ही सबकी रक्षा होती है।
  57. आत्म सम्मान के हनन से विकास का विनाश हो जाता है।
  58. आत्मविजयी सभी प्रकार की संपत्ति एकत्र करने में समर्थ होता है।
  59. आत्मस्तुति अर्थात अपनी प्रशंसा अपने ही मुख से नहीं करनी चाहिए।
  60. आत्मा व्यवहार की साक्षी है, आत्मा तो सभी की साक्षी है, कूट साक्षी नहीं होना चाहिए।
  61. आधी रात तक जागते नहीं रहना चाहिए।
  62. आप जो करना चाहते हैं उसे जाहिर ना होने दे लेकिन जो आप करना चाहते हैं उसे बुद्धिमानी से छिपा कर रखे और अपने काम को करते रहे।
  63. आपको कभी भी अपना कोई राज़ किसी भी दोस्त को नहीं बताना चाहिए, क्योंकि एक पक्का दोस्त भी नाराज़ होने पर आपके सारे राज़ खोल सकता है।
  64. आपातकाल में स्नेह करने वाला व्यक्ति ही मित्र होता है।
  65. आपातकाल में स्नेह करने वाला ही मित्र होता है।
  66. आलसी का न वर्तमान है, और न ही भविष्य।
  67. आलसी राजा अपने विवेक की रक्षा नहीं कर सकता।
  68. आलसी राजा अप्राप्त लाभ को प्राप्त नहीं करता।
  69. आलसी राजा की प्रशंसा उसके सेवक भी नहीं करते।
  70. आलसी राजा प्राप्त वास्तु की रक्षा करने में असमर्थ होता है।
  71. आवश्यकतानुसार कम भोजन करना ही स्वास्थ्य प्रदान करता है।
  72. आशा के साथ धैर्य नहीं होता।
  73. आशा लज्जा को दूर कर देती है अर्थात मनुष्य को निर्लज बना देती है।
  74. इंद्रियों के अत्यधिक प्रयोग से बुढ़ापा आना शुरू हो जाता है।
  75. इन्द्रियों को वश में करना ही तप का सार है।
  76. इन्द्रियों पर विजय का आधार विनम्रता है।
  77. इस बात को व्यक्त मत होने दीजिये कि आपने क्या करने के लिए सोचा है, बुद्धिमानी से इसे रहस्य बनाये रखिये और इस काम को करने के लिए दृढ़ रहिये।
  78. इसे आज की भाषा में हम फैशन कह सकते हैं। युवा विद्यार्थियों को हमेशा सादा जीवनशैली अपनाना चाहिए। साफ सुथरे रहें लेकिन अतिरिक्त साज-सज्जा, श्रृंगार करने वाले युवाओं का मन अध्ययन से भटकता है। अतः चाणक्य कहते हैं इनसे दूरी बनाकर रखें।
  79. ईर्ष्या करने वाले दो समान व्यक्तियों में विरोध पैदा कर देना चाहिए।
  80. उचित समय पर सम्भोग सुख न मिलने से स्त्री बूढ़ी हो जाती है।
  81. उत्साह हीन व्यक्ति का भाग्य भी अंधकारमय हो जाता है।
  82. उदासीन होकर शत्रु की उपेक्षा न करें।
  83. उन्नति और अवनति वाणी के अधीन है।
  84. उपकार का बदला चुकाने के भय से दुष्ट व्यक्ति शत्रु बन जाता है।
  85. उपाय से सभी कई कार्य पूर्ण हो जाते है। कोई भी कार्य कठिन नहीं होता।
  86. उपायों को जानने वाला कठिन कार्यों को भी सरल बना लेता है।
  87. उपार्जित धन का त्याग ही उसकी रक्षा है अर्थात उपार्जित धन को लोक हित के कार्यों में खर्च करके सुरक्षित कर लेना चाहिए।
  88. उम्र के अनुरूप ही वेश धारण करें।
  89. उस व्यक्ति को जीवन में स्वर्ग जैसा सुख प्राप्त होता है, जिसका पुत्र आज्ञाकारी और पत्नी भरोसेमंद हो। व्यक्ति को स्वयं भी संतोषी होना आवश्यक है।
  90. ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
  91. ऋण, शत्रु और रोग को समाप्त कर देना चाहिए।
  92. एक अंग का दोष भी पुरुष को दुखी करता है।
  93. एक अकेला पहिया नहीं चला करता।
  94. एक अच्छा दोस्त वही है जो जरूरत पड़ने पर आपके काम आए, जा फिर दुर्घटना में आपकी सहायता करे।
  95. एक अनपढ़ व्यक्ति का जीवन उसी तरह से बेकार है जैसे की कुत्ते की पूँछ, जो ना उसके पीछे का भाग ढकती है ना ही उसे कीड़े-मकोड़ों के डंक से बचाती है।
  96. एक आदमी अकेला जन्म लेता हैं अकेला मृत्यु पाता हैं अकेला ही अपने कर्मो का अच्छा बुरा फल भोगता हैं और अकेले ही स्वर्ग अथवा नरक का वासी बनता हैं ।
  97. एक उत्कृष्ट बात जो शेर से सीखी जा सकती है वो ये है कि व्यक्ति जो कुछ भी करना चाहता है उसे पूरे दिल और जोरदार प्रयास के साथ करें।
  98. एक ऐसा बालक जो जन्मते वक़्त मृत था, एक मूर्ख दीर्घायु बालक से बेहतर है। पहला बालक तो एक क्षण के लिए दुःख देता है, दूसरा बालक उसके माँ बाप को जिंदगी भर दुःख की अग्नि में जलाता है
  99. एक ज्ञानी व्यक्ति को सभी जगह सम्मान मिलता हैं।
  100. एक परिवार को बचाने के लिए एक मनुष्य, एक गाँव बचाने के लिए एक परिवार तथा संपूर्ण राज्य को बचाने के लिए यदि एक गाँव का बहिष्कार करना पड़े तो इसमें कोई ग़लत बात नहीं है।
  101. एक बिगड़ैल गाय सौ कुत्तों से ज्यादा श्रेष्ठ है। अर्थात एक विपरीत स्वभाव का परम हितैषी व्यक्ति, उन सौ लोगों से श्रेष्ठ है जो आपकी चापलूसी करते हैं।
  102. एक व्यक्ति को अपने संकट भरे समय के लिए धन इकट्ठे कर के रखने चाहिए। यदि कभी उसकी स्त्री किसी संकट में पड़ जाती है तो इस संचित धन का मोह न करते हुए स्त्री को बचाना चाहिए।
  103. एक शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है।
  104. एक शुष्क पेड़ में जब आग लग जाती है तो समस्त जंगल जल जाता है। इसी तरह से एक नालायक पुत्र समस्त खानदान को तबाह कर देता है।
  105. एक सच्चा पुत्र अपने पिता के प्रति आज्ञाकारी होता है और एक सच्चा पिता अपने पुत्र की सभी तरह से देख भाल करता है। सत्यता किसी भी सम्बन्ध को मधुर बनाता है और सम्बन्धी संबंधों से परे मित्र भी बन जाते हैं।
  106. एक स्त्री को अपने घर में रहना चाहिए।
  107. एक ही गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं का निकट संपर्क ब्रह्मचर्य को नष्ट कर सकता है।
  108. एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते है।
  109. एक ही देश के दो शत्रु परस्पर मित्र होते हैं।
  110. एरण वृक्ष का सहारा लेकर हाथी को अप्रसन्न न करें।
  111. ऐश्वर्य पैशाचिकता से अलग नहीं होता। स्त्री में गंभीरता न होकर चंचलता होती है।
  112. ऐसे मनुष्य से दूर रहना ही सही होता है, जो सामने मिथ्या- प्रशंसा करता हो तथा पीठ पीछे हानि पहुंचने की नियत रखता हो। ऐसे मित्र विष से भरे उस प्याले की तरह होते हैं, जिसके ऊपर दुग्ध रख दिया गया हो।
  113. ऐसे लोगों से बचना चाहिए जो आपके मुंह पर तो मीठी बातें करते हैं, पर आपकी पीठ पीछे आपको बर्बाद करने की योजना बनाते है, ऐसा करने वाले ज़हर के उस घड़े के समान है जिसकी उपरी सतह दूध से भरी है, पर अंदर जह़र ही ज़हर है।
  114. ऐसे स्थान पर मनुष्य को क्षण भर भी नहीं ठहरना चाहिए जहाँ व्यापारी, शिक्षित ब्राह्मण, सैनिक, नदी तथा एक सुशिक्षित वैद्य नहीं हो। क्योंकि व्यापारी से भोजन, ब्राह्मण से ज्ञान, नदी से जल, सैनिक से रक्षा तथा वैद्य से स्वास्थवर्धक औषधि मिल पाती है। जीवन के लिए ये पांच तत्व अतिआवश्यक हैं।
  115. कच्चा पात्र कच्चे पात्र से टकराकर टूट जाता है।
  116. कठिन कार्य करवा लेने के उपरान्त भी नीच व्यक्ति कार्य करवाने वाले का अपमान ही करता है।
  117. कठिन परिश्रम से मनुष्य कुछ भी प्राप्त कर सकता है। परिश्रमी व्यक्ति को उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य और उसे पचाने की शक्ति प्राप्त होती है। कठिन परिश्रम से मनुष्य अधिक धन अर्जन कर पाता है तथा अपने जीवन निर्वाह के लिए उचित कर्मों में उसका प्रयोग कर पाता है।
  118. कठिन समय के लिए धन की रक्षा करनी चाहिए।
  119. कठोर दंड से सभी लोग घृणा करते है, राजा योग्य अर्थात उचित दंड देने वाला हो।
  120. कठोर वाणी अग्निदाह से भी अधिक तीव्र दुःख पहुंचाती है।
  121. कभी भी उनसे मित्रता मत कीजिये जो आपसे कम या ज्यादा प्रतिष्ठा के हों। ऐसी मित्रता कभी आपको ख़ुशी नहीं देगी।
  122. कभी भी पुरुषार्थी का अपमान नहीं करना चाहिए।
  123. कमजोर शरीर में बढ़ने वाले रोग की उपेक्षा न करें।
  124. कर्म करने वाले को मृत्यु का भय नहीं सताता।
  125. कर्म करने से ही तत्व ज्ञान को समझा जा सकता है।
  126. कल का कार्य आज ही कर ले।
  127. कल की हज़ार कौड़ियों से आज की एक कौड़ी भली अर्थात संतोष सबसे बड़ा धन है।
  128. कल के मोर से आज का कबूतर भला अर्थात संतोष सब से बड़ा धन है।
  129. कामी पुरुष कोई कार्य नहीं कर सकता।
  130. कायर व्यक्ति को कार्य की चिंता नहीं होती।
  131. कार्य करते समय शत्रु का साथ नहीं करना चाहिए।
  132. कार्य करने वाले के लिए उपाय सहायक होता है।
  133. कार्य का स्वरूप निर्धारित हो जाने के बाद वह कार्य लक्ष्य बन जाता है।
  134. कार्य की सिद्धि के लिए उदारता नहीं बरतनी चाहिए जैसे दूध पीने के लिए गाय का बछड़ा अपनी माँ के थनों पर प्रहार करता है।
  135. कार्य के अनुरूप प्रयत्न करें अर्थात पात्र के अनुरूप दान दें।
  136. कार्य के मध्य में अति विलम्ब और आलस्य उचित नहीं है।
  137. कार्य-अकार्य के तत्वदर्शी ही मंत्री होने चाहिए।
  138. कार्य-सिद्धि के लिए हस्त-कौशल का उपयोग करना चाहिए।
  139. किसी कार्यारंभ के समय को विद्वान और अनुभवी लोगों से पूछना चाहिए।
  140. किसी बड़े परिवार से सम्बन्ध रखने वाला अति सुन्दर नौजवान यदि अशिक्षित रह जाए तो लोग उसे ठीक उसी तरह नजरंदाज करते हैं, जैसे एक सुगंध हीन फूल को नजरंदाज किया जाता है।
  141. किसी मूर्ख व्यक्ति के लिए किताबें उतनी ही उपयोगी हैं जितना कि एक अंधे व्यक्ति के लिए आईना।
  142. किसी राजा के अंतर्गत नौकरी सबसे बेहतर होती है।
  143. किसी लक्ष्य की सिद्धि में कभी भी किसी भी शत्रु का साथ न करें।
  144. किसी विशेष प्रयोजन के लिए ही शत्रु मित्र बनता है।
  145. कीड़ों तथा मलमूत्र का घर यह शरीर पुण्य और पाप को भी जन्म देता है।
  146. कुछ युवा सेवा के अतिरेक में स्वयं पर ध्यान नहीं देते हैं अत: बहुमूल्य समय खो देते हैं।
  147. कुशल लोगों को रोजगार का भय नहीं होता।
  148. कृतघ्न अर्थात उपकार न मानने वाले व्यक्ति को नरक ही प्राप्त होता है।
  149. केवल आशा के सहारे ही लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती।
  150. केवल साहस से कार्य-सिद्धि संभव नहीं।
  151. कोई भी काम शुरू करने से पहले अपने आपसे तीन सवाल हमेशा करना चाहिए मैं यह क्यूँ कर रहा हूँ ? इस कार्य के क्या परिणाम हो सकते हैं ? क्या मुझे सफलता प्राप्त होगी ? केवल इन सवालों के चिन्तन के बाद अगर आपको इनके सकारात्मक जवाब मिलते हैं तो आप आगे बढ़ सकते हैं।
  152. कोमल स्वभाव वाला व्यक्ति अपने आश्रितों से भी अपमानित होता है।
  153. कोयल की सौन्दर्यता उसकी आवाज़ में, स्त्री की सौन्दर्यता उसकी ईमानदारी, एक कुरूप की सौन्दर्यता उसकी शिक्षा तथा एक साधू की सौन्दर्यता उसमें निहित दयाभाव में होती है।
  154. क्षमा करने वाला अपने सारे काम आसानी से कर लेता है।
  155. क्षमाशील पुरुष को कभी दुःखी न करें।
  156. क्षमाशील व्यक्ति का तप बढ़ता रहता है।
  157. खाने योग्य भी अपथ्य होने पर नहीं खाना चाहिए।
  158. गलत कार्यों में लगने वाले व्यक्ति को शास्त्र ज्ञान ही रोक पाते है।
  159. गाय के पीछे चलते बछड़े के समान सुख-दुःख भी आदमी के साथ जीवन भर चलते है।
  160. गाय के स्वभाव को जानने वाला ही दूध का उपभोग करता है।
  161. गुणवान क्षुद्रता को त्याग देता है।
  162. गुणी पुत्र माता-पिता की दुर्गति नहीं होने देता।
  163. गुणी व्यक्ति का आश्रय लेने से निर्गुणी भी गुणी हो जाता है।
  164. गुणों से ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए।
  165. गुरु और देवता के पास भी खाली नहीं जाना चाहिए।
  166. गुरु, देवता और ब्राह्मण में भक्ति ही भूषण है। विनय सबका आभूषण है।
  167. गुरुओं की आलोचना न करें।
  168. गुरुजनों की माता का स्थान सर्वोच्च होता है।
  169. घर आए अतिथि का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।
  170. चंचल चित वाले के कार्य कभी समाप्त नहीं होते।
  171. चतुरंगणी सेना (हाथी, घोड़े, रथ और पैदल) होने पर भी इन्द्रियों के वश में रहने वाला राजा नष्ट हो जाता है।
  172. चरित्र का उल्लंघन कदापि नहीं करना चाहिए।
  173. चाणक्य कहते हैं इस संसार में सीधे वृक्ष और सीधे लोग ही सबसे पहले काटे जाते हैं।
  174. चाणक्य की नीति कहती है सबकी सेवा करों पर अपना भी ख्याल रखो।
  175. चाणक्य के अनुसार एक कर्मठ व्यक्ति कभी भी दरिद्र नहीं होता, ठीक इसी तरह सदैव ईश्वर का स्मरण करने वाला कोई पाप नहीं कर सकता है, तथा शांत स्वभाव का एक व्यक्ति कभी भी झगडा नहीं कर सकता है। अतः मनुष्य को किसी भी परिस्थिति में अपनी मनुष्यता नहीं भूलनी चाहिए।
  176. चाणक्य के अनुसार, प्रलय के समय समस्त स्थल समुद्र के नीचे चला जाएगा, किन्तु आदर्श मनुष्य के चरित्र में कई समुद्र एक साथ समा सकते हैं। अतः ऐसे मनुष्य बुरे से बुरे समय में भी अडिग रहता है।
  177. चालाक और लोभी बेकार में घनिष्ठता को बढ़ाते है।
  178. चुगलखोर व्यक्ति के सम्मुख कभी गोपनीय रहस्य न खोलें।
  179. चुगलखोर श्रोता के पुत्र और पत्नी उसे त्याग देते है।
  180. चोर और राज कर्मचारियों से धन की रक्षा करनी चाहिए।
  181. चोर कर्म से बढ़कर कष्टदायक मृत्यु पाश भी नहीं है।
  182. छः कानों में पड़ने से (तीसरे व्यक्ति को पता पड़ने से) मंत्रणा का भेद खुल जाता है।
  183. जनपद के लिए ग्राम का त्याग कर देना चाहिए। ग्राम के लिए कुटुम्ब (परिवार) को त्याग देना चाहिए।
  184. जन्म-मरण में दुःख ही है।
  185. जब आप किसी काम की शुरुआत करें, तो असफलता से मत डरें और उस काम को ना छोड़ें। जो लोग ईमानदारी से काम करते हैं वो सबसे प्रसन्न होते हैं।
  186. जब कार्यों की अधिकता हो, तब उस कार्य को पहले करें, जिससे अधिक फल प्राप्त होता है।
  187. जब खीर गर्म हो तो पतीले में खीर किनारे से थोड़ी-थोड़ी खानी चाहिए।
  188. जब तक आपका शरीर स्वस्थ और नियंत्रण में है और मृत्यु दूर है, अपनी आत्मा को बचाने कि कोशिश कीजिये; जब मृत्यु सर पर आ जायेगी तब आप क्या कोई व्यक्ति अपने कार्यों से महान होता है, अपने जन्म से नहीं।
  189. जब तक पुण्य फलों का अंश शेष रहता है, तभी तक स्वर्ग का सुख भोग जा सकता है।
  190. जल में मूत्र त्याग नहीं करना चाहिए। नग्न होकर जल में प्रवेश न करें।
  191. जहाँ पाप होता है, वहां धर्म का अपमान होता है।
  192. जहां सज्जन रहते हों, वहीं बसें।
  193. जहां सुख से रहा जा सके, वही स्थान श्रेष्ठ है।
  194. जितेन्द्रिय व्यक्ति को विषय-वासनाओं का भय नहीं सताता।
  195. जिन वचनों से राजा के प्रति द्वेष उत्पन्न होता हो, ऐसे बोल नहीं बोलने चाहिए। कोयल की कुक सबको अच्छी है। प्रिय वचन बोलने वाले का कोई शत्रु नहीं होता।
  196. जिन्हें भाग्य पर विश्वास नहीं होता, उनके कार्य पूरे नहीं होते। प्रयत्न न करने से कार्य में विघ्न पड़ता है।
  197. जिस घर में एक चरित्रहीन दुष्ट पत्नी, कपटी मित्र तथा कटु भाषी नौकर हो, वह घर सर्प से भरे स्थान से भी अधिक संकटप्रद होता है। ऐसे घर में न रहना ही बेहतर होता है।
  198. जिस प्रकार केवल एक सुखा हुआ जलता पेड़ पूरे जंगल को जला देता है उसी प्रकार एक ही कुपुत्र सरे कुल के मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा को नष्ट कर देता है।
  199. जिस प्रकार बालू अपने रूखे स्वभाव नहीं छोड़ सकता, उसी प्रकार दुष्ट भी अपना स्वभाव नहीं छोड़ पाता।
  200. जिस व्यक्ति के काम करने की कोई व्यवस्था नहीं, उसे कोई सुख नहीं मिल सकता।
  201. जिसकी आत्मा संयमित होती है, वही आत्मविजयी होता है।
  202. जिसके द्वारा जीवनयापन होता है, उसकी निंदा न करें।
  203. जिससे कुल का गौरव बढे वही पुरुष है।
  204. जीवन के लिए सत्तू (जौ का भुना हुआ आटा) भी काफी होता है।
  205. जुंए में लिप्त रहने वाले के कार्य पूरे नहीं होते है।
  206. जुगनू कितना भी चमकीला हो, पर उससे आग का काम नहीं लिया जा सकता।
  207. जैसा बीज होता है, वैसा ही फल होता है। जैसी शिक्षा, वैसी बुद्धि। जैसा कुल, वैसा आचरण।
  208. जैसा शरीर होता है वैसा ही ज्ञान होता है। जैसी बुद्धि होती है, वैसा ही वैभव होता है।
  209. जैसी आज्ञा हो वैसा ही करें।
  210. जैसे ही डर निराशा आप पर हावी होने लगती हैं उस पर आक्रमण करके उसे ख़त्म कर दीजिये।
  211. जो अपने आप को भूलकर सेवा करता है वह अंत में खाली रह जाता है।
  212. जो अपने कर्तव्यों से बचते है, वे अपने आश्रितों परिजनों का भरण-पोषण नहीं कर पाते। जो अपने कर्म को नहीं पहचानता, वह अँधा है।
  213. जो कुलीन न होकर भी विनीत है, वह श्रेष्ठ कुलीनों से भी बढ़कर है। याचकों का अपमान अथवा उपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
  214. जो जन्म से अंधें हैं वो देख नहीं सकते। उसी तरह जो वासना के अधीन है वो भी देख नहीं सकते। घमंडी व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं लगता की वह कुछ बुरा कर रहा है। और जो पैसे के पीछे पड़े है उनको उनके कामों में कोई बुराई नहीं दिखाई देती।
  215. जो जिस कार्य में कुशल हो उसे उसी कार्य में लगना चाहिए। दोषहीन कार्यों का होना दुर्लभ होता है किसी भी कार्य में पल भर का भी विलम्ब न करें।
  216. जो दूसरों की भलाई के लिए समर्पित है, वही सच्चा पुरुष है।
  217. जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य।
  218. जो धैर्यवान नहीं है, उसका न वर्तमान है न भविष्य।
  219. जो भविष्य के लिए तैयार है और जो किसी भी परिस्थिति को चतुराई से निपटता है वो सुखी रहता है।
  220. जो मांगता है, उसका कोई गौरव नहीं होता।
  221. जो लोग परमात्मा तक पहुंचना चाहते हैं उन्हें वाणी, मन, इन्द्रियों की पवित्रता और एक दयालु ह्रदय की आवश्यकता होती है।
  222. जो व्यक्ति आर्थिक व्यवहार करने में, ज्ञान अर्जन करने में, खाने में और काम-धंधा करने में शर्माता नहीं है वो सुखी हो जाता है।
  223. जो व्यक्ति जिस कार्य में कुशल हो, उसे उसी कार्य में लगाना चाहिए।
  224. जो सुख मिला है, उसे न छोड़े। मनुष्य स्वयं ही दुःखों को बुलाता है।
  225. जो सुख-शांति व्यक्ति को आध्यात्मिक शान्ति के अमृत से संतुष्ट होने पे मिलती है वो लालची लोगों को बेचैनी से इधर-उधर घूमने से नहीं मिलती।
  226. ज्ञान अर्थात अपने अनुभव और अनुमान के द्वारा कार्य की परीक्षा करें।
  227. ज्ञान ऐश्वर्य का फल है। मूर्ख व्यक्ति दान देने में दुःख का अनुभव करता है।
  228. ज्ञान से राजा अपनी आत्मा का परिष्कार करता है, सम्पादन करता है।
  229. ज्ञान ही सबसे बड़ा साथी हैं।
  230. ज्ञान ही सौन्दर्य और यौवन को परास्त करता हैं ।
  231. ज्ञानियों के कार्य भी भाग्य तथा मनुष्यों के दोष से दूषित हो जाते है।
  232. ज्ञानियों में भी दोष सुलभ है।
  233. ज्ञानी और छल-कपट से रहित शुद्ध मन वाले व्यक्ति को ही मंत्री बनाए।
  234. ज्ञानी पुरुषों को संसार का भय नहीं होता।
  235. झूठ से बड़ा कोई पाप नहीं।
  236. झूठी गवाही देने वाला नरक में जाता है।
  237. झूठे अथवा दुर्वचन लम्बे समय तक स्मरण रहते है।
  238. ठंडा लोहा लोहे से नहीं जुड़ता।
  239. ढेकुली नीचे सिर झुकाकर ही कुएँ से जल निकालती है अर्थात कपटी या पापी व्यक्ति सदैव मधुर वचन बोलकर अपना काम निकालते है।
  240. तत्वों का ज्ञान ही शास्त्र का प्रयोजन है।
  241. तपस्वियों को सदैव पूजा करने योग्य मानना चाहिए। पराई स्त्री के पास नहीं जाना चाहिए।
  242. तीन वेदों ऋग, यजु व साम को जानने वाला ही यज्ञ के फल को जानता है।
  243. दंड का निर्धारण विवेक सम्मत होना चाहिए। सिद्ध हुए कार्य का प्रकाशन करना ही उचित कर्तव्य होना चाहिए।
  244. दंड का भय न होने से लोग अकार्य करने लगते है। दण्ड नीति से आत्मरक्षा की जा सकती है।
  245. दंड नीति से राजा की प्रवृत्ति अर्थात स्वभाव का पता चलता है। स्वभाव का मूल अर्थ लाभ होता है।
  246. दंड से सम्पदा का आयोजन होता है। दण्ड नीति के प्रभावी न होने से मंत्री गण भी बेलगाम होकर अप्रभावी हो जाते है।
  247. दण्ड नीति के उचित प्रयोग से ही प्रजा की रक्षा संभव है।
  248. दरिद्र मनुष्य का जीवन मृत्यु के समान है।
  249. दान जैसा कोई वशीकरण मन्त्र नहीं है।
  250. दान ही धर्म है। न्याय ही धन है। जो धर्म और अर्थ की वृद्धि नहीं करता वह कामी है।
  251. दानवीर ही सबसे बड़ा वीर है।
  252. दिन में स्वप्न नहीं देखने चाहिए। दिन में सोने से आयु कम होती है।
  253. दिया गया दान कभी नष्ट नहीं होता।
  254. दुनिया की सबसे बड़ी शक्ति नौजवानी और औरत की सुन्दरता है।
  255. दुर्जन व्यक्ति के साथ अपने भाग्य को नहीं जोड़ना चाहिए।
  256. दुर्जन व्यक्तियों द्वारा संगृहीत सम्पति का उपभोग दुर्जन ही करते है
  257. दुर्बल के आश्रय से दुःख ही होता है।
  258. दुर्बल के साथ संधि न करें।
  259. दुर्वचनों से कुल का नाश हो जाता है।
  260. दुष्ट के साथ नहीं रहना चाहिए।
  261. दुष्ट व्यक्ति का कोई मित्र नहीं होता।
  262. दुष्ट व्यक्ति पर उपकार नहीं करना चाहिए।
  263. दुष्ट स्त्री बुद्धिमान व्यक्ति के शरीर को भी निर्बल बना देती है।
  264. दुष्टता नहीं अपनानी चाहिए।
  265. दूध के लिए हथनी पालने की जरुरत नहीं होती अर्थात आवश्यकतानुसार साधन जुटाने चाहिए।
  266. दूध में मिला जल भी दूध बन जाता है।
  267. दूसरे का धन तिनके भर भी नहीं चुराना चाहिए, दूसरों के धन का अपहरण करने से स्वयं अपने ही धन का नाश हो जाता है।
  268. दूसरे के धन अथवा वैभव का लालच नहीं करना चाहिए।
  269. दूसरे के धन का लोभ नाश का कारण होता है।
  270. दूसरे के धन पर भेदभाव रखना स्वार्थ है।
  271. दूसरों की रहस्यमयी बातों को नहीं सुनना चाहिए।
  272. देवता का कभी अपमान न करें।
  273. देवता के चरित्र का अनुकरण नहीं करना चाहिए।
  274. देश और फल का विचार करके कार्य आरम्भ करें।
  275. देश के युवा को कामवासना से दूर रहना चाहिए, जब युवा इन बातों में उलझता है तो अध्ययन और सेहत पर ध्यान नहीं दे पाता है। कामवासना से वह निष्क्रिय हो जाता है, जबकि यह उम्र सीखने और सक्रिय रहने की होती है।
  276. देहधारी को सुख-दुःख की कोई कमी नहीं रहती।
  277. दैव (भाग्य) के अधीन किसी बात पर विचार न करें।
  278. दोपहर बाद के कार्य को सुबह ही कर लें।
  279. धन का लालची श्रीविहीन हो जाता है।
  280. धन के नशे में अंधा व्यक्ति हितकारी बातें नहीं सुनता और न अपने निकट किसी को देखता है।
  281. धन विहीन महान राजा का संसार सम्मान नहीं करता।
  282. धन होने पर अल्प प्रयत्न करने से कार्य पूर्ण हो जाते है।
  283. धनवान असुंदर व्यक्ति भी सुरुपवान कहलाता है।
  284. धनहीन की बुद्धि दिखाई नहीं देती।
  285. धनिक को शुभ कर्म करने में अधिक श्रम नहीं करना पड़ता।
  286. धर्म का आधार अर्थ अर्थात धन है।
  287. धर्म का आधार ही सत्य और दान है।
  288. धर्म का विरोध कभी न करें।
  289. धर्म के समान कोई मित्र नहीं है।
  290. धर्म को व्यावहारिक होना चाहिए।
  291. धर्म से भी बड़ा व्यवहार है।
  292. धर्म ही लोक को धारण करता है।
  293. धर्मार्थ विरोधी कार्य करने वाला अशांति उत्पन्न करता है।
  294. धार्मिक अनुष्ठानों में स्वामी को ही श्रेय देना चाहिए।
  295. धूर्त व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए दूसरों की सेवा करते हैं।
  296. धैर्यवान व्यक्ति अपने धैर्य से रोगों को भी जीत लेता है।
  297. न जाने योग्य जगहों पर जाने से आयु, यश और पुण्य क्षीण हो जाते है।
  298. नक्षत्रों द्वारा भी किसी कार्य के होने, न होने का पता चल जाता है।
  299. नसीब के सहारे चलने वाले लोग जल्दी बर्बाद हो जाते है।
  300. निकट के राज्य स्वभाव से शत्रु हो जाते है।
शेष चाणक्य नीति की अकाट्य बातें जो कभी फेल नही होने देगी भाग-2 पर


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