कहानी एवं उपन्यास में अंतर



गद्य साहित्य की अनेक विधाओं में कहानी और उपन्यास का विशेष महत्व है। कारण समस्त विधाओं में सबसे पहले कहानी का प्रदुर्भाव हुआ, दादी, नानी, परदादी, परनानी और उनसे भी पहले की कई पीढ़ियों में इस विधा का जन्म हुआ था जब संभवतः विज्ञान के कोई भी ऐसे संसाधन आमजन को उपलब्ध नहीं थे जिससे वे अपना मनोरंजन कर सकें। अतः कल्पनालोक में खोकर बुनी गई कथा, कहानियां ही व्यक्ति के मनोरंजन का प्रमुख साधन बनी।
जिन्हें केवल श्रवणेन्द्रियों के बल व्यक्ति एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तातंरित करती रही। जब एक कहानी के आसपास और भी कई सह-कहानियाँ बुनती और जुड़ती चली गईं तो कहानी का क्षेत्र व्यापक बन गया। निःसंदेह इसे कंठस्थ रख पाना आसान नहीं था किन्तु जब तक टंकण और मुद्रण व्यवस्था लोगों को उपलब्ध हुई और इन कहनियों के व्यापक स्वरूप को सहेज पाना आसान हुआ। जिसे उपन्यास विधा के रूप में जाना गया। ये सच है कि उपन्यास कहानी का ही विस्तृत रूप है किन्तु कहानी और उपन्यास के अंतर को हम प्रेमचंद के इन शब्दों बेहतर समझ सकते है - "गल्प (कहानी) वह रचना है जिसमें जीवन के किसी एक मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है उसे चित्र, उसकी शैली, उसका कथाविन्यास सब उसी एक भाव को पुष्ट करते हैं। उपन्यास की भांति उसमें मानव जीवन का संपूर्ण तथा वृहद रूप दिखाने का प्रयास नहीं किया जाता न ही उसमें उपन्यास की भांति सभी रसों का समिश्रण होता है। वह ऐसा रमणीय उद्यान नहीं जिसमें भांति-भांति के फूल बेल-बूटे सजे हुए हैं, अपितु एक गमला है जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।"

तथ्यों के आधार पर कहानी और उपन्यास के अंतर को हम इस तरह स्पष्ट कर सकते हैं- 
  1. कथानक के आधार पर -‘कथानक को हम एक नींव कह सकते है जिसके बल पर संपूर्ण कहानी या उपन्यास रूपी भवन टिका होता है। कहानी में कथानक की अनिवार्य शर्त नहीं होती किन्तु उपन्यास में कथानक की प्रधानता होती हैं। कहानी में जीवन की एक ही घटना का वर्णन होने से इसका स्वरूप छोटा होता है वहीं उपन्यास में संपूर्ण जवीन की व्याख्या होती है। एक मुख्य घटना से जुड़ी कई अन्य घटनाएं, उपन्यास की पृष्ठभूमि को विस्तृत बनाते हैं। मानव जीवन के छोटे से छोटे जीवन व्यापार का इसमें समावेश किया जाता है।
    कहानी में जहाँ जीवन के एक अंग का वर्णन होता है वहीं उपन्यास में कई अन्य गौण कथाएं भी सम्मिलित होती है। हम कह सकते हैं कि कहानी जीवन का एक बिंदु है तो उपन्यास एक गहरी सरिता है। कहानी में पाठक केवल एक ही कथा का आनंद ले पाता है वहीं उपन्यास में पाठक को कई कथाओं का आनंद मिलता है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि उपन्यास में कथानक जहाँ साध्य के रूप में प्रयुक्त होता है, वहीं कहानी में वह साधन बन जाता है।
  2. चरित्र-चित्रण के आधार पर - कथानक की ही तरह चरित्र-चित्रण की दृष्टि से भी कहानी और उपन्यास में पर्याप्त अंतर है। प्रथम उपन्यास का क्षेत्र काफी विस्तृत है क्योंकि यह जीवन की संपूर्ण व्याख्या प्रस्तुत करता है तो जाहिर है यह एक दीर्घकालीन एवं विशाल स्वरूप की रचना है। कारण मानव जीवन की संपूर्ण यात्रा में उसका संबंध कई चरित्रों से पड़ता है। इस दृष्टि से उपन्यास में कई चरित्रों का समायोजन होता है वहीं कहानी जीवन के एक छोटे से अंश को प्रस्तुत करती है इसलिए एक संक्षेप परिवेश में जाहिर है मानव अपेक्षाकृत कम लोगों से ही जुड़ पाता है इसलिए इसमें पात्रों की संख्या भी सीमित ही होगी।
    इस संबंध में स्वयं प्रेमचंद का कथन दृष्टव्य है - "मैं उपन्यास को मानव चरित्र का चित्र मात्र समझता हूं। मानव चरित्र पर प्रकाश डालना और उनके रहस्यों को खोलना ही उपन्यास का मुख्य उद्देश्य है। वहीं कहानी में बहुत विश्लेषण की गुंजाइश नहीं होती। यहाँ हमारा उद्देश्य संपूर्ण मनुष्य को चित्रित करना नहीं, वरन उसके चरित्र के एक अंग को दिखाना है।"
  3. कथोपकथन के आधार पर - कहानी की परिधि उपन्यास से अपेक्षाकृत छोटी होती है सीमित पात्र एवं छोटे प्रसंगों एवं जीवन की छोटी सी किसी घटना का वर्णन होने के कारण जाहिर है पात्रों के बीच संवादों की गुंजाइश भी कम होती है। दो-तीन पात्रों के बीच के कथानक की अवधि लगभग 10 मिनट में समाप्त हो जाती है। कारण कहानीकार किसी एक लक्ष्य को लेकर चलता है लक्ष्यपूर्ण होते ही कहानी का अंत हो जाता है।
    वहीं उपन्यास जैसा कि एक दीर्घकालीन रचना है। संपूर्ण जीवन चक्र में कई घटनाएं घटित होती है निरंतर नवीन संपर्क स्थापित होते हैं। संवाद उनका प्रमुख माध्यम होता है क्योंकि कथानक को पात्र नहीं संवाद ही आगे बढ़ाते हैं। अतः उपन्यास में संवादों की एक लंबी श्रृंखला होती है। उपन्यासकार का यह दायित्व होता है कि वह अपने संवादों को गढ़ते समय भाषा, शैली व रोचकता का पूर्ण ध्यान रखे। यं संवाद ही किसी भी कथानक को प्राणवान बनाते हैं।
  4. शिल्पविधान के आधार पर - शिल्पविधान की दृष्टि से कहानी और उपन्यास का अपना-अपना विधान होता है। उपन्यास के कथानक में कथा का आदि, मध्य और अंत गठित होता है। विस्तृत स्वरूप होने से उपन्यास में भूमिका की गुंजाइश होती हैं, कहानी के आधार पर उपन्यास की रचना उतनी कठिन नहीं जितनी उपन्यास से कहानी का निर्माण करना है। जबकि कहानी की बात करें तो उसका कोई निश्चित प्रारंभ और अंत नहीं होता। जीवन के किसी भी एक क्षेत्र से घटना चुनकर कथाकर उसे कहानी का स्वरूप दे सकता है। अर्थात् कहानी पर कोई प्रतिबंध नहीं होता वह कहीं बीच से उठाई जा सकती है। आधुनिक कहानी एवं लघु कथा के दौर में तो कहानी का आरंभ ही चरम सीमा से होता है। साथ ही प्राचीन काल में जहाँ कथा का समापन दुखांत सुखांत या प्रसादांत होता था किन्तु आज कथा पाठक के मन में उत्सुकता छोड़ देती है, कई बार कथाकार कहानी का समापन पाठक की कल्पना पर छोड़ देता है।
  5. देशकाल और वातावरण के आधार पर - उपन्यास एक ऐसा वातायन है, जिसके रास्ते पर हम बहती हुई चेतना के प्रवाह का अवलोकन करते हैं। कहानी एक सूक्ष्म दर्शक यंत्र है जिसके नीचे मानवीय रूपक के दृश्य खुलते है। सीमित क्षेत्र, सीमित पात्र तथा लघु अवधि में देश काल और वातावरण भी सीमित होता है। उदाहरण के लिए "कफन अथवा पूस की एक रात" कहानी जिनका परिदृश्य केवल एक कथानक के लिए निर्मित होता है, पूस की ठंड, रात का समय अथवा एक छोटे से गांव में अलाप में आलू भूंजते पिता-पुत्र के आसपास ही कथा समाप्त हो जाती है। किन्तु गबन को देखें तो जालपा का बचपन जहाँ गुजरा वह परिवेश फिर ससुराल, फिर कलकत्ता इन सबके आस-पास के वातावरण को जोड़कर उपन्यासकार ने उपन्यास की रचना की। वहाँ के संस्कार, संस्कृति, खान-पान, लोगों के जीने का तरीका सभी का समावेश उपन्यास में देखने को मिलता है।
  6. भाषा शैली के आधार पर - कहानी का उद्देश्य किसी एक घटना को निरूपित करना होता है। विशेष क्षेत्र, विशिष्ट समाज अथवा समूह के बीच घटने वाली एक छोटी से घटना को चित्रित करने हेतु कहानीकार को किसी विशेष भाषा ज्ञान की आवश्यकता नहीं होती। वह केवल क्षेत्र विशेष के बारे में अध्ययन एवं अनुभव के आधार पर कहानी की सर्जना कर सकता है। वहीं उपन्यास की रचना करने से पहले उपन्यासकार को अपने पात्र के जीवन में आए समस्त घटनाक्रम को, उस वातावरण तथा वहाँ की भाषा शैली को जानना बहुत आवश्यक है। जितने अधिक चरित्र उनके अनुसार उतनी ही भाषा शैली, संवादों की रचना में उपन्यासकार को एक विशेष कौशल की आवश्यकता होती है। वातावरण एवं पात्रों के अनुरूप बिंब एवं प्रतीकों की रचना ये सब मिलकर ही किसी उपन्यास की रोचकता को बढ़ाते हैं। किन्तु कहानी में कहानीकार को अपेक्षाकृत कम श्रम की आवश्यकता होती है। उदाहरण गबन में रमानाथ, जालपा, देवीदीन, दयानाथ, रतन, इन्दुभूषण, जोहरा आदि पात्रों के लिए उनके अनुरूप संवाद तैयार करने हेतु उपन्यास को इन समस्त चरित्रों के आचार, व्यवहार, विचार एवं भाषा का अध्ययन करना होता है। निःसंदेह कहानी अथवा उपन्यास दोनों में ही भाषा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है और एक लेखक का गंभीर दायित्व भी।
  7. उद्देश्य के आधार पर - जिस तरह एक समझदार व्यक्ति जीवन में कोई भी कार्य बिना उद्देश्य के नहीं करता उसी तरह एक लेखक कोई भी रचना बिना उद्देश्य के नहीं रचता । फिर चाहे वह कहानी हो या उपन्यास ।उद्देश्य की दृष्टि से इनमें अंतर हो सकता है जैसे कहानी की रचना ही किसी एक उद्देश्य को दृष्टि के रखकर की जाती हैं फिर चाहे वह पुरस्कार कहानी में नारी के निश्छल प्रेम को दर्शाना हो या छोटा जादूगर में एक बालक के स्वाभिमान को दर्शाना हो या फिर ईदगाह में बालक का दादी के प्रति प्रेम, कफन में निष्ठुरता की पराकष्ठा ही क्यों न हो। वही उपन्यास में एक प्रधान घटना के साथ कई अन्य गौण घटनाएं भी जुड़ी होती हैं लेखक का उद्देश्य प्रत्येक घटना से कोई न कोई संकेत पाठकों तक पहुँचाना होता है। फिर वह गबन की मुख्य घटना नारी की आभूषणप्रियता हो, रतन की बेमेल विवाह एवं वैधव्य की समस्या हो, रमानाथ के मिथ्या आडम्बर की हो, जोहरा के प्रति समाज का उपेक्षापूर्ण व्यवहार हो, पुलिस की कुटनीति हो अथवा स्वतंत्रता सेनानियों की अनदेखी पीड़ा है। लेखक प्रत्येक घटना को क्रम से पिरोते हुए कहानी अथवा उपन्यास की रचना करता है । यदि घटना पाठकों पर अपना प्रभाव छोड़ती है तथा अपने उद्देश्य की सार्थकता को सिद्ध करती है तो वह कहानी और उपन्यास की सफलता साबित करती है।


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