झड़ते बालों का उपचार



  1. अपने बालों को खोने का नुकसान कम करने के लिए जो पहला कदम आप उठा सकते हैं वह है तेल के साथ अपने सिर की मालिश करना। बालों और सिर की उचित मालिश करने से बालों के रोम में रक्त का प्रवाह बढ़ाता है और आपके बालों की जड़ों की शक्ति में वृद्धि होती है। यह आपको आराम पहुंचाने और तनाव की भावनाओं को कम करने में मदद भी करेगा।
  2. अपने बालों को खोने का नुकसान कम करने के लिए जो पहला कदम आप उठा सकते हैं वह है तेल के साथ अपने सिर की मालिश करना। बालों और सिर की उचित मालिश करने से बालों के रोम में रक्त का प्रवाह बढ़ता है और आपके बालों की जड़ों की शक्ति में वृद्धि होती है। यह आपको आराम पहुंचाने और तनाव की भावनाओं को कम करने में मदद भी करेगा। आप बालों के लिए नारियल या बादाम का तेल, जैतून का तेल, अरंडी का तेल, आंवला तेल, या अन्य तेल का उपयोग कर सकते हैं। बेहतर और तेज़ परिणाम के लिए रोज़मैरी एसेंशियल ऑइल की कुछ बूंदें जोड़ें। अपनी उंगलियों के साथ हल्का दबाव देकर बाल और सिर पर उपरोक्त बताये तेलों में से किसी एक से अपने बालों में मालिश करें। यह सप्ताह में कम से कम एक बार करें।
  3. आंवले के चूर्ण को दही में मिलाएं और पेस्ट बना लें। इसके बाद इस पेस्ट को हल्के हाथों से बालों की जड़ों में लगाएं। कुछ देर ऐसे ही रहने दें और फिर धो लें। ऐसा नियमित रूप से करने पर बालों की समस्याएं खत्म हो जाती हैं।
  4. आधा कप दही में एक ग्राम काली मिर्च और थोड़ा नीबू का रस मिलाकर बालों में लगाएं, शीघ्र ही बहुत फायदा होगा।
  5. आप क्या खाते हैं ये भी बालों के पोषण में अहम भूमिका निभाता है। विटामिन, प्रोटीन और मिनरल युक्त भोजन भोजन के सेवन करने से बालों को भी पोषित किया जा सकता है। सही खाने से बालों को झड़ने से रोका जा सकता है।
  6. आप बालों के लिए नारियल या बादाम का तेल, जैतून का तेल, अरंडी का तेल, आंवला तेल, या अन्य तेल का उपयोग कर सकते हैं। बेहतर और तेज़ परिणाम के लिए रोज़मैरी एसेंशियल ऑइल की कुछ बूंदें जोड़ें।
  7. एलोवेरा में एंज़ाइम होते हैं जो बालों के स्वस्थ विकास को सीधे बढ़ावा देने में शामिल होते हैं। इसके अलावा, अपने एल्कलाइन गुण के कारण ये बालों के पीएच को एक सही स्तर पर लाने में मदद कर सकते हैं और बाल विकास को बढ़ावा दे सकते हैं। एलोवेरा के नियमित उपयोग से आप सिर की खुजली को दूर कर सकते है, सिर की लालिमा और सूजन को कम कर सकते हैं, बालों की शक्ति और चमक बढ़ा सकते हैं और रूसी को भी कम कर सकते हैं। एलो वेरा जेल और रस दोनों ही इस काम में प्रभावी हैं।
  8. गरम जैतून के तेल में एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर उनका पेस्ट बनाकर नहाने से पहले उसे लगाने से भी बालों का गिरना कम होता है।
  9. जैतून के तेल और दही के मिश्रण से भी सिर के झड़ते बालों को रोका जा सकता है। इसके लिए एक प्याले में ताजा दही लेकर इसमें 2 चम्मच जैतून का तेल मिला लें। दोनों का मिश्रण तैयार करके इसे बालों की जड़ों में मसाज करते हुए लगाएं। ऐसा करने के करीब आधे घंटे बाद शैंपू करके सिर धो लें। बालों की झड़ने की समस्या इससे धीरे-धीरे कम हो जाएगी।
  10. जैतून के तेल को गर्म करें और उसमें एक चम्मच शहद और एक चम्मच दालचीनी पाउडर मिलाकर पेस्ट बना लें। नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों की जड़ों में लगाएं। कुछ समय बाद बालों को धो लें।
  11. दस मिनट तक कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। इससे बाल भी नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ भी नहीं होगी।
  12. दही और नीबू के रस को मिलाकर पेस्ट बनाएं। इस पेस्ट को नहाने से पहले बालों में लगाएं। 20-30 मिनट बाद बालों को धो लें।
  13. नियमित रूप से तिल के तेल से बालों की मालिश करें। तिल के तेल में गाय का घी और अमरबेल के चूर्ण को मिलाकर लगाएंगे तो बहुत जल्दी लाभ होगा। यह नुस्खा रात को सोने से पहले अपनाना चाहिए। सिर की मालिश करने से रक्त संचार व्यवस्थित हो जाता है और बालों के रोम सक्रिय हो जाते हैं। इससे बालों की सेहत में सुधार होता है।
  14. नींबू से भी बालों के झड़ने को रोका जा सकता है। नींबू के रस के इस्तेमाल से रूसी से निजात पाई जा सकता है। इसके लिए नींबू को हल्के हाथों से सिर की त्वचा पर रगड़ें। कई दिनों तक लगातार ऐसा करने से फायदा दिखने लगेगा।
  15. नींबू के रस को दही में मिलाकर पेस्ट बना लीजिए। नहाने से पहले इस पेस्ट को बालों में लगाइए। 30 मिनट बाद बालों को धो लीजिए। बालों का गिरना कम हो जाएगा।
  16. नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें, फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
  17. प्याज का रस निकालकर उसे गर्म करें और ठंडा होने के बाद बालों की जड़ों में लगाएं। इससे पहले गर्म पानी में भीगे हुए तौलिए से बालों को कुछ देर ढककर रखें। इसके बाद प्याज का रस लगाएं। कुछ देर बाद बालों को अच्छे शैम्पू से धो लें। ऐसा नियमित रूप से करें। प्याज का रस गर्म करने से उसकी दुर्गंध दूर हो जाती है।
  18. प्याज के रस में उच्च मात्रा में सल्फर कंटेंट होता है, जो बालों के रोम के लिए रक्त परिसंचरण में सुधार करता है, बालों के रोम का पुनर्निर्माण करने और सूजन को कम करने में मदद करता है जिसके कारण बालों का झड़ना कम हो जाता है। प्याज के रस में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो बालों के झड़ने का कारण बन सकने वाले कीटाणुओं और परजीवियों को मारने में मदद करता है, और सिर संक्रमण का उपचार करता है।
  19. प्याज के रस में उच्च मात्रा में सल्फर कंटेंट होता है, जो बालों के रोम के लिए रक्त परिसंचरण में सुधार करता है, बालों के रोम का पुनर्निर्माण करने और सूजन को कम करने में मदद करता है जिसके कारण बालों का झड़ना कम हो जाता है। प्याज के रस में जीवाणुरोधी गुण होते हैं जो बालों के झड़ने का कारण बन सकने वाले कीटाणुओं और परजीवियों को मारने में मदद करता है, और सिर संक्रमण का उपचार करता है।
  20. प्रतिदिन नहाने से पहले टमाटर का पेस्ट बनाकर बालों की जड़ों में लगाएं तो रूसी की समस्या दूर हो जाएगी।
  21. बाल धोने से 20-30 मिनट पहले बालों की जड़ों में दही लगाएं। जब बाल सूख जाएं तो पानी से धो लें।
  22. बालों का गिरना रोकने और बालों की वृद्धि के लिए सप्ताह में एक बार अपने बालों की रोजमेरी ऑयल से मालिश कीजिए, इससे बाल मजबूत होते हैं।
  23. बालों के प्राकृतिक और तेज़ी से विकास के लिए, आप आंवले का भी उपयोग कर सकते हैं। आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में होता है, जिसकी शरीर में कमी बालों को गिरने का एक कारण हो सकती है।
  24. बालों को धोने से कम से कम आधा पहले बालों में दही लगाइये और जब यह पूरी तरह सूख जाएं तो उसे पानी से धो लीजिए। बालों को धोने से एक घंटा पहले बालों में अंडे लगाने से भी बाल मजबूत होते हैं।
  25. बालों को सेहतमंद और मजबूत बनाए रखने के लिए तेल मालिश करना बेहद जरूरी है। इससे सिर की त्वचा में ब्लड सर्कुलेशन तेज होता है और बालों के झड़ने में कमी आती है। इसके अलावा बालों की मालिश करने से सिर की त्वचा को नमी मिलती है। जिसकी वजह से रूसी नहीं होती है।
  26. बालों में सप्ताह में एक बार तिल का तेल जरूर लगाएं। इस तेल के लगातार उपयोग से बाल गिरना बंद हो जाते हैं।
  27. बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। इससे भी बालों में चमक आती है और झड़ना भी बंद होता है।
  28. मेंहदी का इस्तेमाल करके भी बालों के झड़ने को कम किया जा सकता है। इसके लिए रात को मेहंदी के पाउडर को पानी में भिगो दें। इसके बाद सुबह इसे अच्छी तरह फेंट कर बालों में जड़ों से लेकर पूरी लम्बाई में लगा लें। इसके बाद इसे सूखने दें और बाद में शैम्पू से सिर को धो लें। इससे जल्द ही बालों की झड़ने की समस्या से निजात मिलेगी।
  29. मेथी बालों के झड़ने के उपचार में बहुत प्रभावी है। मेथी के बीज में हार्मोन अंटेसीडेंट होते हैं जो बालों के विकास को बढ़ाने और बालों के रोम के पुनर्निर्माण में मदद करते हैं। इसमें प्रोटीन और निकोटिनिक एसिड भी होता है जो बालों के विकास को प्रोत्साहित करता है।
  30. मेहंदी में भरपूर पोषण होता है जो बालों के लिए फायदेमंद है, इसलिए बालों में मेहंदी लगानी चाहिए। मेहंदी को अंडे के साथ मिलाकर लगाने से भी बहुत फायदा होता है।
  31. विटामिन डी बालों को बढ़ने में काफी मददगार साबित होता है। शरीर पर कम से कम 15 मिनिट के लिए भी सूर्य की किरणें पड़ने देते हैं, तो उस दिन के लिए जरूरी मात्रा में विटामिन डी की खुराक मिल जाती है।
  32. शहद को बालों में लगाने से बालों का गिरना बंद हो जाता है और असमय सफेदी से भी मुक्ति मिलती है।
  33. सप्ताह में एक बार एक चम्मच शहद और एक चम्मच नीबूं को मिलाकर नहाने से आधा घंटा पहले अपने बालों में लगाने से बालों का गिरना बहुत कम हो जाता है। दालचीनी और शहद को मिलाकर भी बालों में लगाइए।
  34. समय से पहले झड़ते बालों का एक मुख्य कारण तनाव भी हो सकता है। इसके लिए तनाव से मुक्ति पाना जरूरी है। तनाव में कमी लाकर काफी हद तक झड़ते बालों से बचा जा सकता है।


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प्रभाकर चौबे का जीवन एवं साहित्यिक परिचय



प्रभाकर चौबे का जन्म एक अक्टूबर सन् 1935 में इलाहाबाद में हुआ। उनके पिता का नाम माधवानंद और माता का नाम सरयूबाई था। उनके पिता जी बंगाल नागपुर रेलवे में स्टेशन मास्टर के पद पर कार्यरत थे। प्रभाकर चौबे के पिता का स्वर्गवास कम उम्र में हो जाने के कारण उन्हें पितृ सुख प्राप्त नहीं हुआ। पिता के स्वर्ग सिधार जाने पर बालक की जिम्मेदारी बढ़ जाती है, बालक का बचपना खो जाता है, उन्हें कष्टों का सामना करना पड़ता है। प्रभाकर चौबे के शब्दों में-
"मां का जाना, घर के छत का जाना,
पिता का जाना, घर की आंखों का जाना।
पिता होते हैं तो निश्चिंत होते हैं
या चिंता में होते हैं, पिता के नहीं होने पर
हम अचानक, पिता हो जाते हैं।"
प्रभाकर चौबे की माता जी परिश्रम, साहस, संघर्ष, मर्यादा और ममता की साक्षात प्रतिमूर्ति थी। उन्होंने आसुओं को पीकर दृढ़ता से जीना सिखाया था। वह कड़क और स्वाभिमानी थी। वह खेत की देखरेख करती थी। प्रभाकर जी के बड़े भाई ने भी जीवन में बहुत संघर्ष किया। घर में बड़ा होने के कारण से कम पढ़ाई करके ही परिवार के लिये पैसा कमाना आरंभ कर दिया उन्हीं के सहयोग से प्रभाकर जी ने हाई स्कूल और उच्च शिक्षा प्राप्त की। प्रभाकर चौबे अपनी मां का बहुत सम्मान करते थे। घर में अभिभावक मां ही थी। वे देवी के समान मां को पूजते थे। गीता में संस्कृत श्लोक में कहा गया है- "यत्रनार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता।"

प्रभाकर चौबे की माता जी को छत्तीसगढ़ी और बुदेलखंडी भाषा की अनेक कविताएँ याद थी। बात-बात पर कहावतें व लोकोक्तियाँ बोलती थीं। वे आज प्रभाकर जी के बड़े काम आये। उन्होंने कई लेखों में उसका उपयोग भी किया है। कबीर की वाणी के ढेरों दोहे और तुलसी की चैपाइयाँ उन्हें याद थी। मीरा के पद वे बड़े राग से गाती थी। धार्मिक ग्रंथ जैसे रामायण, गीता आदि पढ़ने में अभिरूचि थी। पढ़ने के साथ-साथ वे राम और कृष्ण के आदर्शों को उदाहरण के रूप में सुनाती थी। इन सबका प्रभाव बचपन में ही प्रभाकर जी के मानस पटल पर पड़ा। प्रभाकर चौबे माँ को ही सर्वस्व मानते थे -
मैं नहीं जानता था - जंगल, पहाड़।
मैं नहीं जानता था- आसमान, तारे सूर्य-चाँद,
अंतरिक्ष मैं नहीं जानता था, मैं केवल मां जानता था।"
जैसे कि आम ग्रामीण बच्चों का बालपन गांव की गलियों में गोली-कंचा, गुल्ली-डंडा, छुवा-छुवौवल और कबड्डी खेलते बीतता है, वहाँ की प्रकृति की धूल भरी गोद में, नालों-तालाबों और खेत-खलिहानों में फसलों का आनंद लूटते हुए व्यतीत होता है, प्रभाकर चौबे का बालपन भी इन्हीं क्रियाकलापों में बीता। जहाँ भविष्य के कोई सपने नहीं होते और न उन सपनों को पूरा करने की कोई चिंता। प्रभाकर चौबे की प्राथमिक शिक्षा सिरसिदा गांव से दो किलोमीटर दूर सिहावा में हुई। महानदी पार करके पढ़ने के लिये स्कूल जाना पड़ता था। बरसात में जब महानदी में खूब बाढ़ आ जाती थी, तो स्कूल जाने का कार्य बाधित हो जाता था। उन दिनों स्कूल की छुट्टी होती थी। यदि नदी में गले तक पानी होता था, तो वह अपने बाल मित्रों के साथ बस्ता और कपड़ा हाथ में उठाकर एक-दूसरे के हाथ पकड़े हुए नदी पार करते थे और स्कूल पहुँच जाते थे। उन्हीं के मित्रों में से कुछ अच्छे तगड़े बच्चे नदी पार करने में छोटे बच्चों को सहयोग देते थे। यह सहयोग उसी तरह का था जैसे भगवान कृष्ण एवं ग्वाल-बाल का।


सन् 1945 में प्रभाकर चौबे को आई.वी.एम. स्कूल रायपुर में पांचवी कक्षा में प्रवेश दिलाया गया। आई.वी.एम. स्कूल अंग्रेजों ने भारतीय छात्रों के लिये स्थापित किया था, जिसका नाम 'इंडियन वर्नाकुलर मिडिल स्कूल' दिया गया। अंग्रेज भारतीय भाषा को वर्नाकुलर कहकर हमारी भाषा का अपमान करते थे। आजादी के बाद वर्नाकुलर शब्द हटा दिया गया। उनके घर में अभाव की स्थिति थी। पांच लोगों का परिवार था और उनके बड़े भाई की छोटी सी नौकरी थी। बहुत मुश्किल से परिवार का गुजारा चलता था।

प्रभाकर जी पढ़ने लिखने में बड़े कुषाग्र बुद्धि के थे। वे बचपन से ही मेघावी छात्र थे। सिहावा रेंज के प्राथमिक शाला बोर्ड परीक्षा में वे प्रथम स्थान पर थे। पूरे सिहावा रेंज में प्रथम स्थान प्राप्त करना एक गौरव की बात थी, इसलिये पांचवी कक्षा (मिडिल स्कूल) में अध्ययन के समय 'मेरिट कम मीन्स' स्कालरशिप दिया गया। इसी तिनके के सहारे उन्होंने आगे के शिक्षा-दीक्षा के अथाह समुद्र को पार करने की योजना बनाई। उस जमाने में तीन रूपये प्रतिमाह स्कालरशिप मिलती थी। साल के अंत में एक साथ छत्तीस रूपये हाथ में आता था। गरीबी के दिनों में यह बहुत बड़ी रकम थी। सन् 1945 में यह रकम उनके पढ़ाई एवं कॉपी-पुस्तक की सहायता के लिये पर्याप्त थी। परिवार के सदस्य भी इस स्कालरशिप से राहत महसूस करते थे।

प्रभाकर चौबे ने विद्यार्थी जीवन में नाटकों में खूब काम किया। एक नाटक में महिला का अभिनय किया। नाटक के निर्देशक पी.के. सेन थे। वे तन्मय होकर नाटक का निर्देशन करते थे। प्रभाकर जी ने बताया-देश स्वतंत्र होने के बाद भी अंग्रेजी शासन काल का प्रभाव खत्म नहीं हुआ था -
"मैंने स्कूल में दाखिला लिया, तब मुल्क आजाद हो गया था।
पिता ने अंग्रेजी राज में नौकरी की थी
उन्हीं ने मुझे योर्स मोस्ट ओबिडिएंट सर्वेंट
की स्पेलिंग और इसका अर्थ बताया था।

छत्तीसगढ़ महाविद्यालय रायपुर में जब प्रभाकर चौबे बी.कॉम. अंतिम वर्ष के छात्र थे, तो उन्हें महाविद्यालय में छात्र संघ का अध्यक्ष चुना गया। सागर विश्वविद्यालय की ओर से सामुदायिक विकास योजनाओं के क्रियान्वयन की समीक्षा करना था। वहाँ उन्हें चालीस दिन रहकर अध्ययन करना और रिपोर्ट बनाना था। उनके साथ सागर विश्वविद्यालय का एक और छात्र था। उन्हें चटगाँव का दौरा कर सर्वेक्षण पूरा करना था। यह कार्य बहुत ही रोचक एवं ज्ञानवर्धक था। बाद में उनकी सर्वे रिपोर्ट को प्रथम स्थान प्राप्त हुआ, जिसमें 250 रुपये की सम्मान राशि के साथ विश्वविद्यालय प्रतिभा प्रमाण पत्र प्राप्त हुआ। प्रभाकर जी ने बी.काॅम. अंतिम की परीक्षा प्रावीण्य सूची में उत्तीर्ण की। अतः उन्हें अपनी स्नातक होने की डिग्री लेने सागर विश्वविद्यालय जाने का एवं दीक्षांत समारोह में शामिल होने का एक नया अनुभव मिला, जिसने उन्हें काफी रोमांचित किया। सन् 1946 में शहर में छात्रों का एक विशाल जुलूस निकला। देश के बंटवारे पर सहमति बन गई थी और शायद इसीलिये उस जुलूस में यह नारा लग रहा था- "एक पैसा तेल में, जिन्ना बेटा जेल में।" जुलूस टाउन हॉल में गया। वहाँ राष्ट्रीय पुस्तकों की प्रदर्शनी लगी थी। प्रभाकर जी ने वहाँ दो-दो पैसे की कामिक तराना नामक पुस्तक खरीदी। उसी दिन उन्होंने सर्वेश्वर म्यूजियम देखा। आज भी यह अष्ट कोणिय भवन यथावत स्थित है, जो महाकौशल कला वीथिका को दे दी गई। जिलाधीष परिसर में महारानी विक्टोरिया और पंचम जॉर्ज के संगमरमर की मूर्तियाँ स्थापित की गई थी। आज़ादी के पश्चात् उन मूर्तियों को वहाँ से हटाकर म्यूजियम में रख दिया गया।

सन् 1947 में गांधी जी रायपुर स्टेशन से गुजरे। खबर मिलते ही जनसमुदाय उनसे मिलने के लिये स्टेशन पर उमड़ पड़ा। प्रभाकर चौबे भी स्कूल के अन्य छात्रों के साथ स्टेशन गये। वहाँ इतनी भीड़ थी, कि अंदर घुसना बहुत मुश्किल था। प्रभाकर जी लोगों के बीच से घुसते हुए ट्रेन के दरवाजे तक पहुँचे, उन्होंने देखा गांधी जी ट्रेन के दरवाजे पर खड़े थे। वहाँ गांधी बाबा की जय जयकार के नारे का घोष हो रहा था। वे भीड़ में भी गांधी जी को देखते रह गये। गांधी जी की झलक आज भी उनकी स्मृतियों में बसी हुई है।

प्रभाकर जी पढ़ाई के साथ-साथ शहर की अन्य गतिविधियों से भी जुड़े रहे। अन्य गतिविधियों के कारण अनुभव और ज्ञान के नये आयाम खुले, जिसने उनके बाद के लेखन में बड़ी मदद की। प्रभाकर चौबे खेल के भी शौकीन रहे। इसी के चलते उन्होंने एक पुस्तक का नाम "खेल के बाद मैदान" रखा। वास्तव में खेल के पश्चात् भी मैदान की उपयोगिता की समीक्षा और अगले प्रतियोगिता के लिये अभ्यास करने के लिये आवश्यक है।
"खेल के बाद, मैदान खाली नहीं होता
खेल के बाद खिलाड़ी, छोड़ जाते है स्पंदन।
खेल के बाद, मैदान यह चुगली नहीं करता।
सबके स्पंदन को, आत्मसात करता है, मैदान।"

गोवा मुक्ति आंदोलन में प्रभाकर जी के चाचा राजेन्द्र कुमार चौबे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनके ताऊ समाजवादी विचारधारा के थे। कुछ समाजवादी लोगों के साथ वे सन् 1948 में समाजवादी कांग्रेस से अलग हुए और रायपुर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष बने। प्रसिद्ध वकील बुलाकीलाल पुजारी और सरयू प्रसाद दुबे उनके मुख्य सहयोगी थे। उसी समय से किषोर अवस्था में जयप्रकाश नारायण, राममनोहर लोहिया, लाड़ली मोहन निगम, एच.वी. कामथ जैसे प्रखर समाजवादी नेता से उन्हें मिलने का अवसर प्राप्त हुआ। जब रायपुर में बड़े गणमान्य नेतागण आते, तो उनकी देख-रेख की जवाबदारी प्रभाकर जी को दी जाती थी। बाद में वे डॉ. राममनोहर लोहिया को लेकर सिहावा गये, जहाँ आदिवासी नेता सुखराम बागे के नेतृत्व में आदिवासियों का जंगल सत्याग्रह चल रहा था। डॉ. राममनोहर लोहिया के साथ उन्हें सिहावा इसलिये भेजा गया क्योंकि वे इस क्षेत्र से पहले से ही वाकिफ थे। सन् 1954 में छत्तीसगढ़ कॉलेज रायपुर में छात्रसंघ का उद्घाटन करने के लिये ठाकुर प्यारेलाल सिंह को आमंत्रित किया, जो उन दिनों नगर के विधायक थे। वे प्रखर समाजवादी और छत्तीसगढ़ के लोकप्रिय नेता थे। वे पूर्व मध्य प्रदेश में विधानसभा के विपक्षी दल के नेता थे। बाद में वे विनोबा भावे के प्रभाव में आकर सर्वोदयी नेता बन गये।

प्रभाकर चौबे ने अनुभव किया कि सरकार मलेरिया उन्मूलन और बीमारियों के लिये जागरूकता लाने का प्रयास कर रही थी। प्रौढ़ शिक्षा के अंतर्गत रात को कक्षाएँ लगती थी। पंचायत भवनों में रेडियो दिये गये थे। विकास कार्यों में जनता की सहयोग भावना विकसित करना सामुदायिक विकास कार्यक्रम की योजना थी। प्रभाकर जी को जब सागर विश्वविद्यालय की ओर से सामुदायिक विकास योजना के क्रियान्वयन की समीक्षा करना था और वहाँ चालिस दिन रहकर अध्ययन कर रिपोर्ट बनाना था। तब उनको इस बीच वहाँ उस क्षेत्र के ग्रामीण समाज को समझने का अवसर मिला। छत्तीसगढ़ के गांव तथा मालवा अंचल के गांव का तुलनात्मक अध्ययन करना रोचक था। इस आधार पर चौबे जी ने विस्तृत लेख भी लिखा। कॉलेज के दिनों में प्रभाकर चौबे वाम राजनीति की ओर आकर्षित हो गये थे। बुलाकी लाल पुजारी जब नगर पालिका के अध्यक्ष का चुनाव लड़ रहे थे तब प्रभाकर जी उनके चुनाव कार्य में सहयोग किया और वकील बुलाकीलाल पुजारी चुनाव जीत गये। पुजारी जी बहुत ही स्पष्टवादी थे, उनके प्रति प्रभाकर जी का सम्मान व विश्वास हमेशा बना रहा। साहित्य के क्षेत्र में उन्हें अनेक पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
  1. वर्ष 2006 में साहित्य के क्षेत्र में कवि नारायण लाल परमार सम्मान से नवाजा गया।
  2. वर्ष 2011 में महाराष्ट्र मंडल रायपुर द्वारा साहित्य के समग्र अवदान के लिये मुक्तिबोध सम्मान से नवाजा गया।
  3. महासचिव के रूप में छत्तीसगढ़ प्रगतिशील लेखक संघ ने सार्वजानिक सम्मान किया।
  4. ट्रेड यूनियन के कार्यकर्ताओं ने 'श्रेष्ठ लीडर' के रूप में सार्वजनिक सम्मान किया।
  5. मध्य प्रदेश शिक्षक संगठन ने अखिल भारतीय शिक्षक संघ नेतृत्वकत्र्ता के रूप में सम्मानित किया।
इसके अतिरिक्त विभिन्न संस्थाओं द्वारा आपका सार्वजनिक सम्मान किया गया। जिनमें प्रमुख रूप से नगर पालिका रायपुर द्वारा सार्वजनिक अभिनंदन किया गया। अखिल भारतीय शांति एवं एकजुटता संगठन में वरिष्ठ सक्रिय कार्यकर्ता के नाम पर सम्मान किया। आप कुछ समय तक आकाशवाणी के सलाहकार समिति के मानद सदस्य भी रहे। वहाँ पर अच्छे प्रस्तोता के रूप में उन्हें सार्वजनिक सम्मान दिया गया। चूंकि प्रभाकर चौबे का जीवन एक अध्यापकीय जीवन रहा है, जहाँ अध्ययन अध्यापन ही एकमात्र कर्म है। वहाँ घरेलू वातावरण भी ब्राह्मण संस्कार युक्त प्रांजल परिवेश में उनका वैवाहिक जीवन फलता फूलता रहा है। पत्नी मालती चौबे भी अत्यंत सात्विक और संस्कारों में पली हुई, पति की छाया की तरह साहित्य सेवा में सतत उनकी अनुगामिनी रही। पत्नी नगर पालिका रायपुर में शिक्षक होने के साथ-साथ अच्छी गृहिणी भी रही। पुत्र द्वय जीवेश और आलोक अपने माता-पिता के स्वभाव के अनुकूल साहित्य अनुरागी ही रहे और पिता की रचनाओं में अपना योगदान देते रहे। 21 जून 2018 को उनका निधन हो गया।


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