अखरोट के फायदे, उपयोग और नुकसान



ड्राई फ्रूट्स सेहत के लिए फायदेमंद होते हैं। स्वस्थ आहार के साथ-साथ अगर आप अपनी दिनचर्या में ड्राईफ्रूट्स शामिल करते हैं, तो यह आपकी सेहत के लिए अच्छा है। बादाम, किशमिश, खजूर व अखरोट के साथ-साथ कई ऐसे ड्राई फूट्स हैं, जो आपकी सेहत बनाए रखने में मदद करते हैं। अखरोट का फल एक प्रकार का सूखा मेवा है जो खाने के लिये उपयोग में लाया जाता है। अखरोट का बाह्य आवरण एकदम कठोर होता है और अंदर मानव मस्तिष्क के जैसे आकार वाली गिरी होती है। अखरोट (के वृक्ष) का वानस्पतिक नाम जग्लान्स निग्रा है। आधी मुट्ठी अखरोट में 392 कैलोरी ऊर्जा होती हैं, 9 ग्राम प्रोटीन होता है, 39 ग्राम वसा होती है और 8 ग्राम कार्बोहाइड्रेट होता है। इसमें विटामिन ई और बी6, कैल्शियम और मिनेरल भी पर्याप्त मात्रा में होते है। दिन भर में एक मुट्ठी या 4 से 5 अखरोट का सेवन आपके हृदय को तंदुरुस्त रखने के साथ ही, कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने में मदद करता है। अखरोट खाने के 4 घंटे के भीतर ही अपना असर दिखाना शुरु कर देता है। अखरोट में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट न केवल आपकी त्वचा को बेहतरीन बनाता है बल्कि आंखों और बालों के लिए भी फायदेमंद है। इसमें कई तरह के एंटीऑक्सीडेंट पाएं जाते हैं जो आपको जवां बनाए रखने के साथ ही सेहत से जुड़े फायदे देते हैं। मानव मस्तिषक के आकार का यह फल वाकई आपके मस्तिष्क के लिए बेहद फायदेमंद है। मौजूद ओमेगा 3 मस्तिष्क की समस्याओं को दूर कर तनाव कम करने में भी सहायक है। नियमित रूप से अखरोट को अपनी डाइट में शामिल कर आप मस्तिष्क को स्वास्थ बनाए रख सकते हैं।
अखरोट को अंग्रेजी में वॉलनट (Walnut), तेलुगू में अकरूट काया, मलयालम में अक्रोथंदी, कन्नड़ में अक्रोटा, तमिल में अकरोट्टू, मराठी में अकरोड़ और गुजराती में अक्रोट कहा जाता है। विभिन्न भाषाओं में अखरोट के जितने नाम हैं, उसके फायदे भी उतने ही हैं।
  • रंग : अखरोट का रंग भूरा होता है।
  • स्वाद : इसका स्वाद फीका, मधुर, चिकना (स्निग्ध) और स्वादिष्ट होता है।
  • स्वरूप : पर्वतीय देशों में होने वाले पीलू को ही अखरोट कहते हैं। इसका नाम कर्पपाल भी है। इसके पेड़ अफगानिस्तान में बहुत होते हैं तथा फूल सफेद रंग के छोटे-छोटे और गुच्छेदार होते हैं। पत्ते गोल लम्बे और कुछ मोटे होते हैं तथा फल गोल-गोल मैनफल के समान परन्तु अत्यंत कड़े छिलके वाले होते हैं। इसकी मींगी मीठी बादाम के समान पुष्टिकारक और मजेदार होती है।
  • स्वभाव : अखरोट गर्म व खुष्क प्रकृति का होता है।
  • गुण : अखरोट बहुत ही बलवर्धक है, हृदय को कोमल करता है, हृदय और मस्तिष्क को पुष्ट करके उत्साही बनाता है इसकी भुनी हुई गिरी सर्दी से उत्पन्न खांसी में लाभदायक है। यह वात, पित्त, टी.बी., हृदय रोग, रुधिर दोष वात, रक्त और जलन को नाश करता है।
अखरोट के फायदे
अखरोट न सिर्फ सेहत, बल्कि त्वचा के लिए भी फायदेमंद है। नीचे हम आपको पहले सेहत के लिए अखरोट के फायदे बताएंगे, उसके बाद बताएंगे कि यह त्वचा के लिए किस प्रकार लाभकारी है।
  1. अपस्मार :- अखरोट की गिरी को निर्गुण्डी के रस में पीसकर अंजन और नस्य देने से लाभ होता है।
  2. अर्श (बवासीर) होने पर :- *वादी बवासीर में अखरोट के तेल की पिचकारी को गुदा में लगाने से सूजन कम होकर पीड़ा मिट जाती है।
  3. आंतरिक सफाई करे - अखरोट वास्तव में आपके शरीर के लिए वैक्यूम क्लीनर का काम करता है, क्योंकि यह आपकी पाचन प्रणाली से अनगिनत जीवाणुओं को साफ करता है।
  4. इंफ्लेमेटरी बीमारियों के लिए - अखरोट में उच्च मात्रा में फैटी एसिड होता है। इसलिए, जिन्हें अस्थमा, आर्थराइटिस व एक्जिमा जैसी इंफ्लेमेटरी बीमारियां होती हैं, उनके लिए अखरोट का सेवन फायदेमंद हो सकता है।
  5. एंटी-एजिंग - अखरोट विटामिन-बी से भरपूर पाया जाता है, जिस कारण यह त्वचा के लिए फायदेमंद है। वहीं, विटामिन-बी तनाव से दूर करने में मदद करता है। अगर इंसान को तनाव रहता है, तो इसका सीधा असर उनके चेहरे पर रिंकल्स और एजिंग के रूप में नजर आने लगता है। ऐसे में जब आप अखरोट का सेवन करते हैं, तो एजिंग और रिंकल त्वचा से हटने लगते हैं। इसके लिए एक चम्मच अखरोट का पाउडर, एक चम्मच ओलिव ऑयल, दो चम्मच गुलाब जल व आधा चम्मच शहद मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पैक को अपने चेहरे पर 15 मिनट के लिए लगाकर छोड़ दें। फिर सूखने पर पानी से मुंह धो लें। बेहतर परिणाम के लिए आप यह फेस पैक सप्ताह में दो से तीन बार लगा सकते हैं।
  6. कंठमाला :- अखरोट के पत्तों का काढ़ा 40 से 60 मिलीलीटर पीने से व उसी काढ़े से गांठों को धोने से कंठमाला मिटती है।
  7. कंठमाला के रोग में :- अखरोट के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से और कंठमाला की गांठों को उसी काढ़े से धोने से आराम मिलता है।
  8. कब्ज और पाचन - अखरोट फाइबर से भरपूर होता है, जो आपकी पाचन प्रणाली को दुरुस्त रखता है। पेट सही रखने और कब्ज से बचने के लिए फाइबर युक्त चीजें खानी जरूरी है। ऐसे में अगर आप रोजाना अखरोट का सेवन करते हैं, तो आपका पेट भी सही रहेगा और कब्ज भी नहीं होगी।
  9. कमजोरी :- अखरोट की मींगी पौष्टिक होती है। इसके सेवन से कमजोरी मिट जाती है।
  10. कैंसर के लिए - अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की शोध के मुताबिक, रोजाना कुछ अखरोट का सेवन करने से ब्रेस्ट कैंसर का खतरा कम होता है ।
  11. खूनी बवासीर (अर्श) :- अखरोट के छिलके का भस्म (राख) बनाकर उसमें 36 ग्राम गुरुच मिलाकर प्रतिदिन सुबह-शाम खाने से खूनी बवासीर (रक्तार्श) नष्ट होता है।
  12. गंजेपन से बचाए - अखरोट का तेल गंजेपन से भी बचाने में मदद करता है। कई अध्ययनों में भी यह बात सामने आई है कि नियमित रूप से अखरोट का तेल सिर पर लगाने से गंजापन दूर होता है।
  13. गर्भावस्था - गर्भावस्था में अखरोट खाना भी फायदेमंद हो सकता है। इसमें मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड बच्चे के दिमागी विकास में मदद करता है। आप डॉक्टर की सलाह पर सही मात्रा में अखरोट का सेवन कर सकते हैं।
  14. गुल्यवायु हिस्टीरिया :- अखरोट और किशमिश को खाने और ऊपर से गर्म गाय का दूध पीने से लाभ मिलता है।
  15. घाव (जख्म) :- इसकी छाल के काढ़े से घावों को धोने से लाभ होता है।
  16. चमकदार त्वचा - अखरोट में ओमेगा-3 जैसे कई पोषक तत्व होते हैं, जो स्वास्थ्य के साथ-साथ त्वचा को भी पोषण देते हैं। इसके अलावा, इसमें एंटीऑक्सीडेंट गुण भी होता है, जो त्वचा से गंदगी दूर कर आपको चमकदार त्वचा देता है। चार अखरोट, दो चम्मच ओट्स, एक चम्मच शहद, एक चम्मच क्रीम और चार बूंद ऑलिव ऑयल एक साथ अच्छी तरह मिलाकर महीन पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को अपने चेहरे पर लगाएं और सूखने तक लगा रहने दें। इसके बाद, चेहरे को गुनगुने पानी से धो लें।
  17. जी-मिचलाना :- अखरोट खाने से जी मिचलाने का कष्ट दूर हो जाता है।
  18. टी.बी. (यक्ष्मा) के रोग में :- 3 अखरोट और 5 कली लहसुन पीसकर 1 चम्मच गाय के घी में भूनकर सेवन करने से यक्ष्मा में लाभ होता है।
  19. डायबिटीज - डायबिटीज से बचाव के लिए भी अखरोट का सेवन फायदेमंद बताया गया है। अध्ययन में भी यह बात सामने आई है कि जो लोग दो से तीन चम्मच अखरोट का सेवन रोजाना करते हैं, उनमें टाइप-2 डायबिटीज का खतरा कम हो जाता है।
  20. डार्क सर्कल - आंखों के नीचे काले घेरे दूर करने में भी अखरोट का सेवन फायदेमंद हो सकता है। अखरोट का तेल आपकी आंखों के नीचे आई सूजन को दूर करता है और डार्क सर्कल कम करने में मदद करता है।
  21. डैंड्रफ से बचाए - अखरोट का तेल प्राकृतिक रूप से एंटी-डैंड्रफ का काम भी करता है। यह सिर की त्वचा को मॉइस्चराइज करता है, जिससे डैंड्रफ दूर रहता है।
  22. तनाव खत्म और बेहतर नींद - अखरोट का सेवन आपको तनाव से दूर कर बेहतर नींद भी प्रदान करता है। अखरोट में मेलाटोनिन होता है, जो बेहतर नींद लाने में मदद करता है। वहीं, ओमेगा-3 फैटी एसिड ब्लड प्रेशर को संतुलित कर तनाव से राहत दिलाता है।
  23. दर्द व सूजन में :- किसी भी कारण या चोट के कारण हुए सूजन पर अखरोट के पेड़ की छाल पीसकर लेप करने से सूजन कम होती है।
  24. दांतों के लिए :- अखरोट की छाल को मुंह में रखकर चबाने से दांत स्वच्छ होते हैं। अखरोट के छिलकों की भस्म से मंजन करने से दांत मजबूत होते हैं।
  25. दाद :- सुबह-सुबह बिना मंजन कुल्ला किए बिना 5 से 10 ग्राम अखरोट की गिरी को मुंह में चबाकर लेप करने से कुछ ही दिनों में दाद मिट जाती है।
  26. दिल के स्वास्थ्य के लिए - अखरोट दिल को स्वस्थ बनाए रखने में मदद करता है। इसमें प्रचुर मात्रा में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है, जो आपकी हृदय प्रणाली के लिए फायदेमंद होता है। इसके अलावा, यह भी पाया गया है कि जिन्हें उच्च रक्तचाप की समस्या होती है, उनके लिए भी अखरोट लाभकारी होता है। आपको बता दें कि ओमेगा-3 फैटी एसिड शरीर से खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छे कोलेस्ट्रॉल के निर्माण में मदद करता है, जो हृदय के लिए फायदेमंद होता है ।
  27. नष्टार्तव (बंद मासिक धर्म) :- अखरोट का छिलका, मूली के बीज, गाजर के बीज, वायविडंग, अमलतास, केलवार का गूदा सभी को 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर लगभग 2 लीटर पानी में पकायें फिर इसमें 250 ग्राम की मात्रा में गुड़ मिला दें, जब यह 500 मिलीलीटर की मात्रा में रह जाए तो इसे उतारकर छान लेते हैं। इसे सुबह-शाम लगभग 50 ग्राम की मात्रा में मासिक स्राव होने के 1 हफ्ते पहले पिलाने से बंद हुआ मासिक-धर्म खुल जाता है।
  28. नाड़ी की जलन :- अखरोट की छाल को पीसकर लेप करने से नाड़ी की सूजन, जलन व दर्द मिटता है।
  29. नासूर :- अखरोट की 10 ग्राम गिरी को महीन पीसकर मोम या मीठे तेल के साथ गलाकर लेप करें।
  30. नेत्र ज्योति (आंखों की रोशनी) :- 2 अखरोट और 3 हरड़ की गुठली को जलाकर उनकी भस्म के साथ 4 काली मिर्च को पीसकर अंजन करने से आंखों की रोशनी बढ़ती है।
  31. पेट में कीड़े होने पर :- अखरोट को गर्म दूध के साथ सेवन करने से बच्चों के पेट में मौजूद कीड़े मर जाते हैं तथा पेट के दर्द में आराम देता है।
  32. प्रमेह (वीर्य विकार) :- अखरोट की गिरी 50 ग्राम, छुहारे 40 ग्राम और बिनौले की मींगी 10 ग्राम एक साथ कूटकर थोड़े से घी में भूनकर बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर रखें, इसमें से 25 ग्राम प्रतिदिन सेवन करने से प्रमेह में लाभ होता है। ध्यान रहे कि इसके सेवन के समय दूध न पीयें।
  33. फंगल इन्फेक्शन से बचाए - अगर आपको फंगल इन्फेक्शन की समस्या रहती है, तो काला अखरोट आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। पाचन तंत्र में कैंडिडा की वृद्धि और फंगल इन्फेक्शन के कारण त्वचा खराब होने लगती है। ऐसे में काला अखरोट फंगल इन्फेक्शन को बढ़ने से रोकता है।
  34. फुंसियां :- यदि फुंसियां अधिक निकलती हो तो 1 साल तक रोजाना प्रतिदिन सुबह के समय 5 अखरोट सेवन करते रहने से लाभ हो जाता है।
  35. बालों के रंग को हाइलाइट करे - अखरोट का छिलका एक प्राकृतिक रंग का एजेंट है, जो आपके बालों को और खूबसूरत बनाने में मदद करता है। अखरोट के तेल में भरपूर मात्रा में प्रोटीन होता है। यह बालों के रंग को ठीक करता है और उन्हें चमकदार बनाता है।
  36. बूढ़ों की निर्बलता :- 8 अखरोट की गिरी और चार बादाम की गिरी और 10 मुनक्का को रोजाना सुबह के समय खाकर ऊपर से दूध पीने से वृद्धावस्था की दुर्बलता दूर हो जाती है।
  37. बूढ़ों के शरीर की कमजोरी :- 10 ग्राम अखरोट की गिरी को 10 ग्राम मुनक्का के साथ रोजाना सुबह खिलाना चाहिए।
  38. मरोड़ :- 1 अखरोट को पानी के साथ पीसकर नाभि पर लेप करने से मरोड़ खत्म हो जाती है।
  39. मस्तिष्क के लिए - अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड न सिर्फ दिल, बल्कि मस्तिष्क के लिए भी फायदेमंद होता है। ओमेगा-3 फैटी एसिड से भरपूर चीजें खाने से आपकी तंत्रिका प्रणाली ठीक तरह से काम करती है, जिससे स्मरण शक्ति में सुधार आता है।
  40. मॉइस्चराइजर - जिनकी त्वचा रूखी होती है, उनके लिए भी अखरोट काफी फायदेमंद होता है। चूंकि, इसमें प्राकृतिक रूप से चिकनाई पाई जाती है, जो त्वचा का रूखापन दूर कर इसे पोषण देकर मॉइस्चराइज रखने में मदद करती है। इसके लिए आपको ज्यादा कुछ नहीं, बस रोजाना रात को सोते समय अपनी त्वचा पर अखरोट का तेल लगाना होगा। इसके बाद सुबह उठकर मुंह धो लें।
  41. याददाश्त कमजोर होना :- ऐसा कहा जाता है कि हमारे शरीर का कोई अंग किस आकार का होता है, उसी आकार का फल खाने से उस अंग को मजबूती मिलती है। अखरोट की बनावट हमारे दिमाग की तरह होती है इसलिए अखरोट खाने से दिमाग की शक्ति बढ़ती है। याददाश्त मजबूत होती है।
  42. रोग-प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाए - अखरोट में प्रचुर मात्रा में एंटीऑक्सीडेंट तत्व पाए जाते हैं, जो आपकी रोग-प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाते हैं और आपको बीमारियों से बचाने में मदद करते हैं। इसलिए, खुद को बीमारियों से बचाने के लिए और तंदुरुस्त रहने के लिए अपनी रोजाना की डाइट में अखरोट जरूर शामिल करें।
  43. लंबे और मजबूत बाल - अखरोट पोटेशियम, ओमेगा-3, ओमेगा-6 और ओमेगा-9 फैटी एसिड से भरपूर होता है। ये सभी पोषक तत्व बालों को मजबूती देते हैं। ऐसे में नियमित रूप से बालों में अखरोट तेल लगाने से बाल लंबे और मजबूत होते हैं। इसके लिए दो प्रयोग है प्रथम आप थोड़ा-सा अखरोट का तेल लें। तेल को गुनगुना करके इसे आंखों के नीचे काले घेरे वाले भाग पर लगाकर सो जाएं। फिर सुबह सामान्य तरीके से चेहरा धो लें। आप इस प्रक्रिया को रोज रात को तब तक दोहराएं, जब तक असर दिखना न शुरू हो जाए। दूसरा प्रयोग आप नींबू का रस, शहद, ओटमील और अखरोट का पाउडर एक साथ मिलाकर पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को आंखों के नीचे लगाएं और 15-20 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर पानी से धो लें। इस प्रक्रिया को आप सप्ताह में तीन से चार बार दोहरा सकते हैं।
  44. लकवा (पक्षाघात-फालिज-फेसियल, परालिसिस) :- रोजाना सुबह अखरोट का तेल नाक के छिद्रों में डालने से लकवा ठीक हो जाता है।
  45. वजन कम करे - आपको जानकर हैरानी होगी कि अखरोट वजन कम करने में अहम भूमिका निभाता है। इसमें भरपूर मात्रा में प्रोटीन व कैलोरी होती है, जो वजन को नियंत्रित रखने में मदद करती है। शोध में भी यह बात साबित हो चुकी है कि अखरोट का सेवन न सिर्फ वजन कम करता है, बल्कि उसे नियंत्रित भी रखता है।
  46. वात रक्त दोष (खूनी की बीमारी) :- वातरक्त (त्वचा का फटना) के रोगी को अखरोट की मींगी (बीज) खिलाने से आराम आता है।
  47. वात रोग :- अखरोट की 10 से 20 ग्राम की ताजी गिरी को पीसकर दर्द वाले स्थान पर लेप करें, ईंट को गर्म कर उस पर जल छिड़ककर कपड़ा लपेटकर उस स्थान पर सेंक देने से शीघ्र पीड़ा मिट जाती है। गठिया पर इसकी गिरी को नियमपूर्वक सेवन करने से रक्त शुद्धि होकर लाभ होता है।
  48. विवेचन (पेट साफ करना) :- अखरोट के तेल को 20 से 40 मिलीलीटर की मात्रा में 250 मिलीलीटर दूध के साथ सुबह देने से मल मुलायम होकर बाहर निकल जाता है।
  49. विसर्प-फुंसियों का दल बनना :- अगर फुंसियां बहुत ज्यादा निकलती हो तो पूरे साल रोजाना सुबह 4 अखरोट खाने से बहुत लाभ होता है।
  50. शरीर में सूजन :- अखरोट के पेड़ की छाल को पीसकर सूजन वाले भाग पर लेप की तरह से लगाने से शरीर के उस भाग की सूजन दूर हो जाती है।
  51. शैय्या मूत्र (बिस्तर पर पेशाब करना) :- प्राय: कुछ बच्चों को बिस्तर में पेशाब करने की शिकायत हो जाती है। ऐसे बाल रोगियों को 2 अखरोट और 20 किशमिश प्रतिदिन 2 सप्ताह तक सेवन करने से यह शिकायत दूर हो जाती है।
  52. सफेद दाग :- अखरोट के निरंतर सेवन से सफेद दाग ठीक हो जाते हैं।
  53. सफेद दाग होने पर :- रोजाना अखरोट खाने से श्वेत कुष्ठ (सफेद दाग) का रोग नहीं होता है और स्मरण शक्ति (याददाश्त) भी तेज हो जाती है।
  54. स्कैल्प को स्वस्थ रखे - नियमित रूप से अखरोट के तेल से सिर की मालिश करने से आपका स्कैल्प स्वस्थ रहता है। यह आपके स्कैल्प को मॉइस्चराइज रखता है। इसमें मौजूद एंटी फंगल गुण इन्फेक्शन से भी बचाने में मदद करता है।
  55. स्तन में दूध की वृद्धि के लिए :- गेहूं की सूजी एक ग्राम, अखरोट के पत्ते 10 ग्राम को एक साथ पीसकर दोनों को मिलाकर गाय के घी में पूरी बनाकर सात दिन तक खाने से स्त्रियों के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है।
  56. हड्डियों के लिए - अखरोट हड्डियों को मजबूत करने का भी काम करता है। इसमें अल्फा-लिनोलेनिक एसिड होता है, जो हड्डियों को मजबूत करने में मदद करता है। इसके अलावा, अखरोट में मौजूद ओमेगा-3 फैटी एसिड सूजन को भी दूर करता है ।
  57. हाथ-पैरों की ऐंठन:- हाथ-पैरों पर अखरोट के तेल की मालिश करने से हाथ-पैरों की ऐंठन दूर हो जाती है।
  58. हृदय की दुर्बलता होने पर :- अखरोट खाने से दिल स्वस्थ बना रहता है। रोज एक अखरोट खाने से हृदय के विकार 50 प्रतिशत तक कम हो जाते हैं। इससे हृदय की धमनियों को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा नियंत्रित रहती है। अखरोट के असर से शरीर में वसा को पचाने वाला तंत्र कुछ इस कदर काम करता है। कि हानिकारक कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम हो जाती है। हालांकि रक्त में वसा की कुल मात्रा में कोई परिवर्तन नहीं होता। अखरोट में कैलोरी की अधिकता होने के बावजूद इसके सेवन से वजन नहीं बढ़ता और ऊर्जा स्तर बढ़ता है।
  59. हैजा :- हैजे में जब शरीर में बाइटें चलने लगती हैं या सर्दी में शरीर ऐंठता हो तो अखरोट के तेल से मालिश करनी चाहिए।
  60. होठों का फटना :- अखरोट की मिंगी (बीज) को लगातार खाने से होठ या त्वचा के फटने की शिकायत दूर हो जाती है।

     

    अखरोट के नुकसान
    जिस चीज के इतने फायदे होते हैं, उसके कहीं न कहीं, कुछ न कुछ नुकसान भी होते ही हैं। ऐसा ही अखरोट के साथ भी हैं। नीचे हम अखरोट खाने के नुकसान बता रहे हैं:
    1. अखरोट खाने के नुकसान में एलर्जी भी शामिल है। अगर आपको इससे एलर्जी है, तो अखरोट का सेवन न करें। इससे आपको छाती में खिंचाव महसूस हो सकता है या फिर सांस लेने में तकलीफ हो सकती है।
    2. अगर अखरोट का ज्यादा सेवन किया जाए, तो यह मुंह में छाले पैदा कर सकता है।
    3. अगर किसी को पहले से ही कफ की समस्या है, उन्हें अखरोट नहीं खाना चाहिए। कफ के दौरान अखरोट खाने से यह समस्या और बढ़ सकती है।
    4. इसमें फैट होता है, इस वजह से अगर इसका ज्यादा सेवन किया जाए, तो यह मोटापा बढ़ा सकता है।
    5. काले अखरोट में कुछ ऐसे केमिकल तत्व होते हैं, जिनसे त्वचा के कैंसर का खतरा बढ़ सकता है।
    6. काले अखरोट में फाइटेट्स नाम के यौगिक होते हैं। आयरन डिसऑर्डर इंस्टीट्यूट के अनुसार, फाइटेट्स भोजन में मौजूद लोहे के अवशोषण को 50 से 60 प्रतिशत तक कम कर सकते हैं, जिससे खून की कमी हो सकती है।
    7. काले अखरोट से स्किन रैशेज होने का खतरा भी बढ़ सकता है। इसके छिलके में ऐसे तत्व पाए जाते हैं, जो आपकी त्वचा पर लाल रैशेज पैदा कर सकते हैं।
    अखरोट का उपयोग
    अकसर हमारे मन में ये सवाल उठता है कि अखरोट का सेवन कैसे और कब करें। अखरोट के फायदे और नुकसान जानने के बाद अब हम जानते हैं कि अखरोट कैसे खाएं।
    1. दही में अखरोट की दो-तीन गिरियां मिलाकर भी इसे खाया जा सकता है।
    2. दूध में एक चम्मच अखरोट का पाउडर और एक चम्मच शहद डालकर भी इस्तेमाल कर सकते हैं।
    3. रात को सोते समय एक गिलास दूध के साथ अखरोट के दो-तीन टुकड़े खाना काफी फायदेमंद रहता है।
    4. शाम के वक्त स्नैक्स में आप अखरोट को भूनकर भी खाने में उपयोग कर सकते हैं।
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    व्यंग्यकार श्रीलाल शुक्ल संक्षिप्त जीवन परिचय



    श्रीलाल शुक्ल हिन्दी व्यंग्य तथा कथा साहित्य के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर है। "उनका जन्म लखनऊ के मोहनलाल कस्ब के निकटवर्ती ग्राम अतरौली में 31 दिसम्बर, 1925 को एक सुसंस्कृत और विपन्न कृषक परिवार में हुआ। पितामह पं. गदाधर प्रसाद शुकुल, हिन्दी, उर्दू एवं संस्कृत का व्यवहारिक ज्ञान रखते थे तथा कसरत और संगीत का उन्हें शौक था। "उन्होंने अपने पुत्र को श्लोंकों तथा हिन्दी कविताओं का बचपन में ही मुक्तदान दिया। इसी के फलस्वरूप हाई स्कूल तक आते-आते जब श्रीलाल शुक्ल ने संस्कृत बोलने का अभ्यास प्रारम्भ किया तो व्याकरण में भले ही कमजोरी अनुभव हुई हो अभिव्यक्ति की कमजोरी अनुभव न हुई।" शुक्ल जी का बचपन गरीबों की गलियों में बीता। वहाँ के बच्चों के साथ खेलकर, गाँव के आस-पास की खेतों और जंगलों में घूमकर उन्होंने अपना बचपन व्यतीत किया था। गाँव में अलग-अलग जाति के लोग रहते थे। उन सब के अपने-अपने आचार-विचार भी थे। शुक्ल जी के पिता एक किसान थे। गरीब परिवार के बावजूद उनके परिवार में पठन-पाठन की परम्परा बनी रही। जीवन के उत्तरार्द्ध में अपने बड़े पुत्र पर निर्भर रहते हुए सन् 1945 में इनके पिता की मृत्यु हो गई। माँ साधनहीन होते हुए भी उदारमना तथा उत्साही प्रवृत्ति की थी। सन् 1960 में अपने कनिष्ठ पुत्र भवानी शंकर शुक्ल के पास अल्मोड़ा में उनका निधन हुआ।


    दो भाईयों तथा दो बहनों के बीच श्रीलाल शुक्ल का बाल्यकाल बीता। परिवार का बोझ सिर पर आ जाने के कारण उनके अग्रज पं. शीतलासहाय शुकुल को हाई स्कूल उत्तीर्ण होते हुए कानपुर जाकर नौकरी करनी पड़ी। श्रीलाल शुक्ल की प्रारम्भिक शिक्षा पास के मोहनलालगंज में हुई। परिश्रमी, कुशाग्र बुद्धि तथा साहित्यिक रूचि सम्पन्न उनके एक चचेरे चाचा पं. चन्द्रमौलि शुकुल संस्कृत, हिन्दी, उर्दू, फारसी तथा अंग्रेजी के प्रकाण्ड विद्वान थे। उन्होंने हिन्दी में विविध विषयक अनेक पुस्तकें लिखी। जब वह ग्रीष्मावकाश में गाँव आते, तो उनके पास उच्च कोटि की पुस्तकों को भण्डार होता था। साहित्य-जगत् से श्रीलाल शुक्ल का परिचय इन्हीं पुस्तकों के माध्यम से हुआ। उन्हीं के शब्दों में "पर उनकी (चाचा की) सम्पन्नता में मेरे मतलब की चीज़ सिर्फ उनकी किताबें और पत्रिकाएँ थीं। वह हमारे लिए 'चाँद', 'माधुरी', 'सुधा', 'सरस्वती', 'गंगा', 'हंस', 'सुकवि', 'काव्य', 'कलाधर' आदि पढ़ने का मौका था। मैंने प्रेमचन्द और प्रसाद की कई पुस्तकं,े जो उन्हें सादर भेंट की गई थीं, आठवीं पास करने के पहले ही पढ़ी थीं, उन साहित्यिकों के हस्ताक्षरों को बार-बार गौर से देखा था। नागरी-प्रचारिणी सभा और गंगा-पुस्तक माला आदि के नवीनतम प्रकाशन मैंने 1939-40 तक पढ़ लिये। उनमें वृन्दावन लाल वर्मा और निराला की कृतियाँ भी थी।"

    श्रीलाल शुक्ल में सृजनात्मकता के बीज बचपन से ही थे, जिन्हें गाँव के साहित्यिक माहौल में पनपने का अवसर मिला। शिक्षा और साहित्य के प्रति उनमें अदम्य आग्रह रहा है। 12-13 वर्ष की अवस्था में उन्होंने धनाक्षरी-सवैये लिखना प्रारम्भ कर दिए। वह कवि-सम्मेलनों में भी जाने लगे। कुछ कहानियाँ, अलोचनात्मक निबन्ध, उपन्यास भी लिखे। उन्होंने मिडिल मोहनलालगंज से, हाई स्कूल कान्यकुब्ज वोकेशनल काॅलिज, लखनऊ से इन्टरमीडिएट कान्यकुब्ज काॅलिज कानपुर से किया।

    1945 में इन्टरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण कर उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बी.एड. में प्रवेश लिया। अब तक पद्य के प्रति उनका आकर्षण समाप्त हो गया था। उन्होंने कहानियाँ लिखना प्रारम्भ किया। इलाहाबाद में वह केशवचन्द्र वर्मा, धर्मवीर भारती, विजयदेव नारायण साही, सर्वेश्वरदयाल सक्सेना, गिरीधर गोपाल, जगदीश गुप्त जैसे उभरते साहित्यकारों के सम्पर्क में आये। विपन्नता के कारण एम.ए. और कानून की पढ़ाई छोड़नी पड़ी। कुछ समय तक उन्होंने कान्यकुब्ज वोकेशनल इंटर काॅलिल, लखनऊ में अध्यापन कार्य किया।


    इसी बीच उनका विवाह कानपुर के एक सुसंस्कृत परिवार में हो गया। उनका पारिवारिक जीवन सुखी रहा। उनकी तीन पुत्रियाँ (रेखा, मधुलिका, विनीता) तथा एक पुत्र आशुतोष है। सभी सुखी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। अपनी पत्नी की देखभाल में उन्होंने कोई कमी नहीं की। रवीन्द्र कालिया के शब्दों में "श्रीलाल जी एक शिशु की तरह गिरिजा की देखभाल करते।" अपने परिवार के प्रति अपनी आस्था उन्होंने कभी छिपायी नहीं। रचना के तीव्र क्षणों में अपने मकान को वह परिवारवालों के लिए छोड़कर अकेले रह लिया करते थे। पत्नी के बीमार हो जाने के बाद वे उदास हो गये। रवीन्द्र कालिया ने इसके बारे में लिखा है "श्रीलाल जी के साथ बितायी एक दोपहर तो भुलाए नहीं भूलती। गिरिजा जी एकदम असहाय, असमर्थ और चेतनाशून्य हो चुकी थी। श्रीलाल जी पूर्ण समर्पण के साथ उनकी तीमारदारी में मशगुल थे।" वे एक ऐसे जिम्मेदार गृहस्थ भी हैं जो जीवनभर सैर-सपाटे और पत्नी के साथ बाहर निकलने में रूचि रखते हैं। वे एक ऐसे जिम्मेदार गृहस्थ भी हैं जो जीवन भर सैर-सपाटे और पत्नी के साथ बाहर निकलने में रूचि रखते थे। पत्नी के बीमार होने के बाद उन्होंने जीवन की मस्ती, उत्साह, आराम सब कुछ छोड़ दिये। "इस समय श्रीलाल जी न लेखक थे, न आराम पसन्द अवकाश प्राप्त अधिकारी, वह मात्र पति थे, प्रेमी थे, दोस्त थे। पास ही मेज़ पर कई दिनों के समाचार-पत्र और पत्रिकाएँ पड़ी थी। लगता था, समाचार पत्रों की तह भी नहीं खुली। एक कोने में लावारिस सी डाक पड़ी थी।" इस तरह एक उन्मुक्त, उत्साहप्रिय, आराम तलब व्यक्ति अपनी पत्नी के लिए पूर्णरूप से समर्पित हो जाते हैं। रवीन्द्र वर्मा के अनुसार-"एक ठेठ भारतीय की तरह उनकी पत्नी उनके लिए एक जीवन मूल्य थी।" उनकी पत्नी उनके साथ ही साहित्य का अध्ययन भी करती थी और उसे संगीत में भी रूचि थी।

    सन् 1949 में उनका चयन पी.सी.एस. में हो गया। वर्ष 1973 में श्रीलाल शुक्ल की आई.ए.एस. में पदोन्नति हो गई। उत्तरप्रदेश शासन के अनके उच्च पदों पर कार्य करने के उपरान्त वह विशेष सचिव, चिकित्सा, एव स्वास्थ्य के पद से 30 जून, 1983 को सेवा मुक्त हो गए। उन्हें भिन्न-भिन्न जगहों पर काम करने का अवसर मिला था। जहाँ-जहाँ उन्होंने काम किया वहाँ के जनजीवन की खासियतों को समझने की कोशिश भी की है। नौकरी के क्षेत्र में वे समाजधर्मी एवं निष्ठावान थे। सरकारी अफसर के रूप में उन्हांेने प्रशासनिक क्षेत्र की समस्याओं को सुलझाने में विशेष क्षमता दिखाई है। उत्तरप्रदेश सिविल सर्विसेज में काम करते हएु उन्हें संघीय लोकसेवा आयोग में विशेष कार्याधिकारी के रूप में कार्य करने का अवसर मिला था। नौकरी के क्षेत्र में उन्हें कई अनुभव प्राप्त हुए है। बड़े-बड़े लोगों से मिलने तथा उनकी आदतों एवं चारित्रिक विशेषताओं को समझने का अवसर भी उन्हें प्राप्त हुआ था।


     राजनीतिक परिस्थिति तथा प्रशासनिक क्षेत्र के बारे में गहराई से पढ़ने की कोशिश की। नौकरी के क्षेत्र में व्यस्त रहने पर भी वे एक अच्छे पाठक थे। वे नौकरशाह नहीं थे। वैसा दम्भ उनमें नहीं था। सरकारी फाइलों के बीच सालों तक रहने पर भी वे सच्चे, मनुष्य तथा मानवीयता के वक्ता बनकर रहे हैं। ममता कालिया ने लिखा है-'वे हिन्दी के एकमात्र ऐसे कथाकार हैं जिन्होंने खाकी रगं की सरकारी फाइलों की अटपटी जानकारी व शब्दावली से अपनी मौलिक रचनात्मक भाषा का अनुसन्धान किया है। पूर्णकालिक जिम्मेदार नौकरी में इतने घंटे (बरस) बिताकर, कई आदमी यांत्रिक और बेजान हो जाते हैं, उनमें से फाइलों की बू आने लगती है पर श्रीलालजी ने इन सीमाओं को अपना सामथ्र्य बनाया।" उत्तर प्रदेश शासन के अनेक उच्च पदों पर कार्य करने के उपरान्त वह विशेष सचिव, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य के पद से 30 जून, 1983 को सेवामुक्त हो गए। उसके बाद वे निरन्तर लेखन में जुड़े रहे तत्पश्चात् 28 अक्टुबर 2011 को इनकी मृत्यु हो गई।


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