गुटनिरपेक्षता



द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति के स्वरूप में परिवर्तन लाने वाले तत्वों में ‘गुटनिरपेक्षता’ का विशेष महत्व है। गुटनिरपेक्ष आन्दोलन की उत्पत्ति का कारण कोई संयोग मात्र नहीं था, अपितु यह सुविचारित अवधारणा थी। इसका उद्देश्य नवोदित राष्ट्रों की स्वाधीनता की रक्षा करना एवं युद्ध की सम्भावनाओं को रोकना था। गुटनिरपेक्ष अवधारणा के उदय के पीछे मूल धारणा यही थी कि साम्राज्यवाद एवं उपनिवेशवाद से मुक्ति पाने वाले देशों को शक्तिशाली गुटों से अलग रखकर उसकी स्वतन्त्रता को सुरक्षित रखा जाय। आज एशिया, अफ्रिका, और लैटिंन अमेरिका के अधिकांश देश गुटनिरपेक्ष होने का दावा करने लगे है।

द्वितीय विश्व युद्ध के समय दो विरोधी गुटों सोवियत गुट और अमेरिकी गुटों में विभक्त हो चुका था और दूसरी तरफ एशिया एवं अफ्रिका के राष्ट्रों का स्वतन्त्र आस्तित्व उभरने लगा। अमेरिकी गुट एशिया के इन नवोदित राष्ट्रों पर तरह-तरह के दबाव डाल रहा था ताकि वे उसके गुट में शामिल हो जाय, लेकिन एशिया के अधिकांश राष्ट्र पश्चिमी देशों की भाॅति गुटबन्दी मे विश्वास नही करते है। वे सोवियत साम्यवाद और अमेरिकी पूॅजीवाद दोनों को अस्वीकार करते थें। वे अपने आपको किसी ‘वाद’ के साथ सम्बद्ध नही करना चाहते थे और उनका विश्वास था कि उनके प्रदेश ‘तीसरी शक्ति’ हो सकते है जो गुटोंके विभाजन को अधिक जाटिल सन्तुलन में परिणत करके अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग में सहायक हो सकते है। गुटों से अलग रहने की नीति - गुटनिरपेक्षतावाद एशिया के नव जागरण की प्रमुख विशेषता थी। सन् 1947 में स्वतन्त्र होने के उपरान्त भारत ने इस नीति का पालन करना शुरू किया; उसके बाद एशिया के अनेक देशों ने इस नीति में अपनी आस्था व्यक्त की। जैसे-जैसे अफ्रीका के देश स्वतन्त्र होते गये, वैसे-वैसे उन्होंने भी इस नीति का अवलम्बन करना शुरू किया। भारत के जवाहर लाल नेहरू, मिस्र के राष्ट्रपति नासिर तथा यूगोस्लाविया के मार्शल टीटो ने ‘तीसरी शक्ति’ की इस धारणा को काफी मजबूत बनाया।
शीत युद्ध के राजनीतिक ध्रुवीकरण ने गुटनिरपेक्षता की समझ तैयार करने में एक उत्पे्ररक का कार्य किया। लम्बे औपनिवेशिक आधिपत्य सें स्वतन्त्र होने के लम्बे संघर्ष के बाद किसी दूसरे आधिपत्य को स्वीकार कर लेना नवोदित राष्ट्रों के लिए एक असुविधाजनक स्थिति थी। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में वे एक ऐसी भूमिका की तलाश में थे जो उनके आत्मसम्मान और क्षमता के अनुरूप हो। क्षमता स्तर पर किसी एक राष्ट्र के लिए ऐसी स्वतंन्त्र भूमिका अर्जित कर पाना एक भागीरथी प्रयत्न होता, जिसकी सम्भावनाएं भी अत्याधिक सन्दिग्ध बनती। अतः आत्मसम्मान की एक अन्तर्राष्ट्रीय भूमिका के लिए सामूहिक पहल न सिर्फ वांछित थी, अपितु आवश्यक थी। स्वतन्त्रता और सामूहिकता की इस मानसिकता ने गुटनिरपेक्षता की वैचारिक और राजनीतिक नींव रखी। इस प्रक्रिया को शीत युद्ध के तात्कालिक वातावरण ने गति प्रदान की।

गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का उदय व विकास 
गुटनिरपेक्ष आन्दोलन का जन्म नव साम्राज्यवादी ताकतो के विरूद्ध तीसरी दुनिया के राष्ट्रों के संगठित होने के प्रयासो से हुआ। यद्यपि आधिकारिक रूप से इसकी स्थापना वर्ष 1961 मे बेलग्रेड में आयोजित गुटनिरपेक्ष देश के प्रथम सम्मेलन के साथ हुई परन्तु इसके बीज द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ही अंकुरित हो चुके थे। इसकी एक झलक हमें एशियाई संबंध सम्मेलन से दिखाई पड़ती है।


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वारसा पैक्ट



जब पश्चिमी जर्मनी भी 9 मई 1955 को नाटो का सदस्य बना लिया गया और पश्चिमी राष्ट्रों ने जर्मनी का पुनः शस्त्रीकरण कर दिया तो इसमें सोवियत संघ तथा अन्य पूर्वी यूरोप के राष्ट्रों के लिए चिन्तित होना स्वाभाविक था। पश्चिमी शाक्तियों ने नाटो, सीटो, सेण्टो, द्वारा सोवियत संघ के इर्द-गिर्द घेरे की स्थिति पैदा कर दी थी। अतः यह स्वभाविक था कि सोवियत संघ सैनिक गठबन्धनों का उत्तर सैनिक गठबन्धन से देता।

साम्यवादी राष्ट्रों का एक सम्मेलन 11 से 14 मई 1955 को वारसा में बुलाया गया। इस सम्मेलन में सोवियत संघ और पूर्वी यूरोप के सात राष्ट्रों अल्बानिया, बुल्गारिया, चेकोस्लोवाकिया, पूर्वी जर्मनी हंगरी, पोलैण्ड तथा रोमानिया ने भाग लिया। यूगोस्लाविया ने इसमें भाग नहीं लिया। 14 मई 1955 को सम्मेलन में भाग लेने वाले राष्ट्रों ने मित्रता एवं पारस्पारिक सहयोग की सन्धि पर हस्ताक्षर किये जिसे ‘वारसा पैक्ट‘ कहा जाता है।
इस पैक्ट की मुख्य व्यवस्था धारा 3 में हैं। इसके अनुसार यदि किसी सदस्य पर सशस्त्र आक्रमण होता है तो अन्य देश उसकी सैनिक सहायता करेंगे। इसके लिए धारा 5 में एक ‘संयुक्त सैनिक कमान’ बनायी गयी। सैनिक सहयोग के अतिरिक्त वारसा पैक्ट हस्ताक्षरकर्ता राष्ट्रों में आर्थिक राजनीतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक सहयोग की व्यवस्था भी करती है। इसमें संन्धिकर्ता राष्ट्र पारस्पारिक संबंधों में शक्ति का प्रयोग नहीं करेंगे और अन्तर्राष्ट्रीय विवादों को शान्तिमय साधनों से सुलझाने का प्रयास करेंगे।
वारसा पैक्ट का मुख्य अंग राजनीतिक परामर्शदात्री समिति है। आवश्यकता पड़ने पर यह सहायक अंगो की स्थापना कर सकती है। प्रत्येक सदस्य राज्य का एक एक प्रतिनिधि राजनीतिक परामर्शदात्री समिति का सदस्य होता है। इसकी बैठक वर्ष में दो बार होती है। दूसरे कार्यों में सहायता करने के लिए सचिवालय है जिसका सर्वोच्च पदाधिकारी महासचिव होता है। 1989-90 में पूर्वी यूरोप में साम्यवादी व्यवस्थाओं के पतन तथा लोकतन्त्रात्मक व्यवस्थाओं के आगमन के बाद तथा शीतयुद्ध कें अंत की प्रक्रिया के साथ 31 मार्च 1991 को वारसा पैक्ट समाप्त कर दिया गया।


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उत्तर प्रदेश गुण्डा नियन्त्रण अधिनियम 1970



 UP Control of Goondas Act, 1970
UP Control of Goondas Act, 1970
 
धारा-1, इसका प्रसार सम्पूर्ण उ0प्र0 में होगा।
धारा-2, परिभाषायें -  क. जिला मजिस्ट्रेट- जिला मजिस्ट्रेट के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा अधिकृत कोई अपर जिला मजिस्ट्रेट भी होगा अधिसूचना सं0 1528/6-पु0-9-30(2)(1)/83 दिनाॅंक 4 जुलाई 1991 के द्वारा राज्यपाल महोदय समस्त अपर जिला मजिस्ट्रेट (प्रशासन तथा वित्त राजस्व)को क्रमशः अपनी अपनी तैनाती के जिले की सीमा के भीतर उक्त अधिनियम के अधीन जिला मजिस्ट्रेट की समस्त शक्तियों का प्रयोग करने के लिये शक्ति प्रदान करते हैं।

ख. गुण्डा-गुण्डा का तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है-
  1. जो स्वयं या किसी गिरोह के सदस्य या सरगना के रुप में भा0द0सं0 की धारा 153 या धारा 153-ख, या धारा 294 या उक्त संहिता के अध्याय 16,17,22 के अधीन दंडनीय अपराध को अभ्यस्तः करता है या करने का प्रयास करता है या करने के लिये दुष्प्रेरित करता है या
  2. जो स्त्री तथा लड़की अनैतिक व्यापार दमन अधिनियम 1956 के अधीन दंडनीय अपराध के लिये न्यायालय से सिद्धदोष हो चुका है।
  3. जो उ0प्र0 आबकारी अधिनियम 1910 या सार्वजनिक जुआ अधिनियम या आयुध अधिनियम 1959 की धारा 25,27,या धारा 29 के अधीन दंडनीय अपराध के लिये कम से कम तीन बार दंडित हो चुका हो।
  4. जिसकी सामान्य ख्याति दुस्साहसिक और समाज के लिये एक खतरनाक व्यक्ति की है या
  5. जो अभ्यस्तः महिलाओं या लड़कियों को चिढाने के लिये अश्लील टिप्पणियां करता हो।
  6. जो दलाल हो- इसके अन्तर्गत वे व्यक्ति आयेगें जो अपने लिये या दूसरों के लिये लाभ प्राप्त करते हों, प्राप्त करने के लिये सहमत होते हो या प्रयास करते हों जिससे वह किसी लोक सेवक को या सरकार, विधान मंडल, संसद के किसी सदस्य को किसी पक्षपात के द्वारा कोई कार्य करने या न करने के लिये प्रेरित करते हों।
  7. जो मकानों पर अवैध कब्जा करते हैं।
स्पष्टीकरण-‘‘मकानों पर कब्जा करने वाले से’’ तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से है जो नाजायज/बिना अधिकार कब्जा ग्रहण करता है या ग्रहण करने का प्रयास करता है या करने के लिये सहायता करता है या दुष्प्रेरित करता है या वैध रुप से प्रवेश करके भूमि, बाग, गैरेजो को शामिल करके भवन या भवन से संलग्न बाहरी गृहों के कब्जा में अवैध रुप से बना रहता है।
धारा-3, गुण्डों का निष्कासन आदि- यदि जिला मजिस्ट्रेट को यह प्रतीत होता है कि कोई व्यक्ति गुण्डा है और जनपद में या उसके किसी भाग में उसकी गतिविधियाॅं या कार्य व्यक्तियों की जान या उनकी सम्पत्ति के लिये संत्रास,संकट अथवा नुक्सान उत्पन्न कर रही हैं या यह विश्वास करने का आधार है कि वह जनपद में या उसके किसी भाग में धारा-2, में वर्णित खण्ड-ख, के उपखण्ड-1 से 3 तक वर्णित अपराधों में लगा हुआ है अथवा उसके लगने की संभावना है और गवाह उसके डर के मारे उसके विरुद्ध गवाही देने के लिये तैयार नही है तो जिला मजिस्ट्रेट उस व्यक्ति को एक लिखित नोटिस के द्वारा उसके विरुद्ध लगाये आरोपों से सूचित करेगें और उसे अपना उत्तर देने के लिये अवसर प्रदान करेगें।
2. जिस व्यक्ति को नोटिस जारी किया गया है उसको किसी अधिवक्ता के द्वारा अपनी प्रतिरक्षा करने का अधिकार है और यदि वह चाहता है तो उसको व्यक्तिगत रुप से सुने जाने का भी अवसर दिया जायेगा और वह अपनी प्रतिरक्षा में गवाह भी पेश कर सकता है।
3. यदि जिला मजि0 का यह समाधान हो जाता है कि उस व्यक्ति की गतिविधियाॅं धारा-3 की उपधारा-1, के अन्तर्गत आती हैं तो वह उस व्यक्ति को अपने जनपद के किसी क्षेत्र से या जनपद से 6 माह तक के लिये निष्कासन का आदेश कर सकता है। इसके अतिरिक्त वह यह भी आदेश कर सकते हैं कि वह आदेश में निर्दिष्ट प्राधिकारी या व्यक्ति को अपनी गतिविधियों की सूचना देने अथवा उसके समक्ष उपस्थित होने अथवा उक्त दोनों कार्य करने की अपेक्षा कर सकते है।
धारा-4, निष्कासन के पश्चात अस्थाई रुप से वापिस आने की अनुमति-जिला मजि0 किसी गुण्डे के निष्कासन के बाद उसे अस्थाई रुप से उस क्षेत्र में आने की अनुमति दे सकते है जहाॅं से वह निष्कासित किया गया था।
धारा-5, आदेश की अवधि में बढ़ोत्तरी-जिला मजि0 धारा 3 के अधीन दिये गये आदेश में निर्दिष्ट अवधि को,सामन्य जनता के हित में समय-समय पर बढा सकतें है,किन्तु इस प्रकार बढायी गयी अवधि किसी भी दशा में कुल मिलाकर दो वर्ष से अधिक न होगी।
धारा-6 , अपील- धारा 3 या 4 या 5 के अधीन दिये गये किसी आदेश से क्षुब्ध व्यक्ति ऐसे आदेश के दिनांक से 15 दिन के भीतर आयुक्त के पास अपील कर सकता है। आयुक्त अपील का निस्तारण होने तक आदेश के प्रवर्तन को स्थगित कर सकते है।
धारा-10, धारा 3 से 6 के अधीन दिये गये आदेशों का उल्लंघन करने पर- यदि कोई गुडां धारा 3,4,5,6 के अधीन दिये गये आदेशों का उल्लंघन करे तो न्यूनतम 6 माह से जो 3 वर्ष तक का हो सकता है के कठिन कारावास से और जुर्माने से दंडित किया जायेगा।
धारा-11, निष्कासित गुंडे द्वारा आदेशों का उल्लंघन करते हुये पुनः प्रवेश आदि पर उसका बल प्रयोग द्वारा हटाया जाना-
1. जिला मजिस्ट्रेट उसे गिरफतार करा सकता है और पुलिस की अभिरक्षा में उक्त आदेश में निर्दिष्ट क्षेत्र के बाहर किसी ऐसे स्थान के लिये,जैसा वह निर्देश दे हटवा सकता है।
2.कोई पुलिस अधिकारी ऐसे व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार कर तुरंत निकटतम मजिस्ट्रेट के पास अग्रसारित करेगा,जो उसे जिला मजिस्ट्रेट के पास अग्रसारित करायेगा जो पुलिस अभिरक्षा में उसे हटवा सकेगा।
3. इस धारा के उपबन्ध धारा 10 के उपबन्धों के अतिरिक्त है और धारा 10 के प्रभाव को कम नही करते।


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