12 राशि नाम और अक्षर - 12 Rashi Naam



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1    मेष राशि (Aries)     अ     *     ल     *     ई
2    वृषभ राशि (Taurus)    ब     *     व     *     उ
3    मिथुन राशि (Gemini)    क     *     छ     *     घ
4    कर्क राशि (Cancer)    ड     *     ह
5    सिंह राशि (Leo)     म     *     ट
6    कन्या राशि (Virgo)     प     *     ठ     *     ण
7    तुला राशि (Libra)     र     *     त
8    वृश्चिक राशि (Scorpio)     न     *     य
9    धनु राशि (Sagittarius)     फ     *     ध     *     भ     *     ढ
10    मकर राशि (Capricorn)     ख     *     ज
11    कुंभ राशि (Aquarius)     ग     *     स     *     श     *     ष
12    मीन राशि (Pisces)     द     *     च     *     झ     *     थ

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वेदों और श्रुतियों की जननी देवी गायत्री की जयंती और अवतरण



Gayatri Mantra

कौन हैं गायत्री माता कैसे हुआ अवतरण
मान्यता है कि चारों वेद, शास्त्र और श्रुतियां सभी गायत्री से जन्मी हैं। वेदों की उत्पत्ति कारण इन्हें वेद माता कहा जाता है, ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों देवताओं की आराध्य भी इन्हें ही माना जाता है इसलिए इन्हें देवमाता भी कहा जाता है। समस्त ज्ञान की देवी भी गायत्री हैं इस कारण गायत्री को ज्ञान-गंगा भी कहा जाता है। इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। माना जाता है कि सृष्टि के आदि में ब्रह्मा जी पर गायत्री मंत्र प्रकट हुआ। मां गायत्री की कृपा से ब्रह्मा जी ने गायत्री मंत्र की व्याख्या अपने चारों मुखों से चार वेदों के रूप में की। आरंभ में गायत्री सिर्फ देवताओं तक सीमित थी लेकिन जिस प्रकार भगीरथ कड़े तप से गंगा मैया को स्वर्ग से धरती पर उतार लाए उसी तरह विश्वामित्र ने भी कठोर साधना कर मां गायत्री की महिमा अर्थात गायत्री मंत्र को सर्वसाधारण तक पहुंचाया।

मां गायत्री को माना गया है पंचमुखी
हिंदू धर्म में मां गायत्री को पंचमुखी माना गया है, जिसका अर्थ है यह संपूर्ण ब्रह्मांड जल, वायु, पृथ्वी, तेज और आकाश के पांच तत्वों से बना है। संसार में जितने भी प्राणी हैं, उनका शरीर भी इन्हीं पांच तत्वों से बना है। इस पृथ्वी पर प्रत्येक जीव के भीतर गायत्री प्राण-शक्ति के रूप में विद्यमान है। यही कारण है गायत्री को सभी शक्तियों का आधार माना गया है। इसीलिए भारतीय संस्कृति में आस्था रखने वाले हर प्राणी को प्रतिदिन गायत्री उपासना अवश्य करनी चाहिए।

गायत्री जयंती
पुराणों के अनुसार गायत्री जयंती ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में 11 वें दिन मनाई जाती है। कहते हैं कि महागुरु विश्वामित्र ने पहली बार गायत्री मंत्र को ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की ग्यारस को बोला था, जिसके बाद इस दिन को गायत्री जयंती के रूप में जाना जाने लगा। तो कह सकते हैं कि गायत्री जयंती की उत्पति महर्षि विश्वामित्र द्वारा हुई थी, उनका दुनिया में अज्ञानता दूर करने में विशेष योगदान रहा है, वैसे गायत्री जयंती ज्यादातर गंगा दशहरे के दूसरे दिन आती है। कुछ लोगों के अनुसार इसे श्रवण पूर्णिमा के समय भी मनाया जाता है। गायत्री जयंती पर गायत्री मंत्र जपने से यश, प्रसिद्धि, धन व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। यदि आप गायत्री मंत्र का पूरा लाभ चाहते हैं तो इसको सही विधि विधान तथा पूरी पवित्रता के साथ बोलना चाहिये।


गायत्री माता की महिमा
हिंदू धर्म में मां गायत्री को वेद माता कहा जाता है अर्थात सभी वेदों की उत्पत्ति इन्हीं से हुई है। पुराणों के अनुसार इन गायत्री देवी को ब्रह्मा, विष्णु, महेश (त्रिमूर्ति) के बराबर माना जाता है और त्रिमूर्ति मानकर ही इनकी आराधना की जाती है। देवी गायत्री को सभी देवी-देवता की माता माना जाता है व देवी सरस्वती, पार्वती और देवी लक्षमी का अवतार माना जाता है। गायत्री के 5 सिर और 10 हाथ माने जाते हैं। उनके स्वरूप में चार सिर चारों वेदों के प्रतीक हैं और उनका पाँचवाँ सिर सर्वशक्तिमान शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है। वे कमल पर विराजमान हैं, गायत्री के 10 हाथ भगवान विष्णु के प्रतीक हैं, इन्हें भगवान ब्रह्मा की दूसरी पत्नी भी माना जाता है। माता गायत्री को भारतीय संस्कृति की जननी भी कहा जाता है। धर्म शास्त्रों के अनुसार, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मां गायत्री का अवतरण माना जाता है। इस दिन को हम गायत्री जयंती के रूप में मनाते हैं। धर्म ग्रंथों में यह भी लिखा है कि मां गायत्री की उपासना करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और किसी वस्तु की कमी नहीं होती है। मां गायत्री से आयु, प्राण, प्रजा, पशु, कीर्ति, धन एवं ब्रह्मवर्चस के सात प्रतिफल अथर्ववेद में बताए गए हैं।
गायत्री की महिमा में प्राचीन भारत के ऋषि-मुनियों से लेकर आधुनिक भारत के विचारकों तक अनेक बातें कही हैं। वेद, शास्त्र और पुराण तो गायत्री मां की महिमा गाते ही हैं। अथर्ववेद में मां गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्मतेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। महाभारत के रचयिता वेद व्यास कहते हैं गायत्री की महिमा में कहते हैं जैसे फूलों में शहद, दूध में घी सार रूप में होता है वैसे ही समस्त वेदों का सार गायत्री है। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाए तो यह समस्त इच्छाओं की पूर्ति पूरी करने वाली दैवीय गाय कामधेनु के समान है। जैसे गंगा शरीर के पापों को धो कर तन मन को निर्मल करती है उसी प्रकार गायत्री रूपी ब्रह्म गंगा से आत्मा पवित्र हो जाती है। गायत्री को सर्वसाधारण तक पहुंचाने वाले विश्वामित्र कहते हैं कि ब्रह्मा जी ने तीनों वेदों का सार तीन चरण वाला गायत्री मंत्र निकाला है। गायत्री से बढ़कर पवित्र करने वाला मंत्र और कोई नहीं है। जो मनुष्य नियमित रूप से गायत्री का जप करता है वह पापों से वैसे ही मुक्त हो जाता है जैसे केंचुली से छूटने पर सांप होता है। गायत्री माता भक्त देवी गायत्री को आदि शक्ति मानते हैं और इसी रूप में उनकी आराधना करते हैं। प्रतीकात्मक रूप से गायत्री देवी को ज्ञान की देवी माना जाता है, कहते हैं कि इनके रहने से अज्ञानता दूर होती है, इस ज्ञान को विश्वमित्र द्वारा पूरी दुनिया में फैलाया गया है।

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क्यों कहा जाता है वेदमाता
गायत्री संहिता के अनुसार, ‘भासते सततं लोके गायत्री त्रिगुणात्मिका’यानी गायत्री माता सरस्वती, लक्ष्मी एवं काली का प्रतिनिधित्व करती हैं। इन तीनों शक्तियों से ही इस परम ज्ञान यानी वेद की उत्पत्ति होने के कारण गायत्री को वेद माता कहा गया है। गायत्री मंत्र के लिए शास्त्रों में लिखा है कि सर्वदेवानां गायत्री सारमुच्यते जिसका मतलब है गायत्री मंत्र सभी वेदों का सार है। इसलिए मां गायत्री को वेदमाता कहा गया है। मां गायत्री का उल्लेख ऋक्, यजु, साम, तैत्तिरीय आदि सभी वैदिक संहिताओं में है। कुछ उपनिषदों में सावित्री और गायत्री दोनों को एक ही बताया गया है। किसी समय ये सविता की पुत्री के रूप में प्रकट हई थीं, इसलिये इनका नाम सावित्री पड़ गया। कहा जाता है कि सविता के मुख से इनका प्रादुर्भाव हुआ था। भगवान सूर्य ने इन्हें ब्रह्माजी को समर्पित कर दिया। तभी से इनको ब्रह्माणी भी कहा जाता है। गायत्री ज्ञान-विज्ञान की मूर्ति हैं। ये ब्राह्मणों की आराध्य देवी हैं। इन्हें परब्रह्मस्वरूपिणी कहा गया है। वेदों, उपनिषदों और पुराणादि में इनकी विस्तृत महिमा का वर्णन मिलता है।

देवी गायत्री के विवाह की कथा
एक कथा के अनुसार ब्रह्मा किसी यज्ञ में जाते हैं। परंपरा के अनुसार किसी भी पूजा, अर्चना, यज्ञ में शादीशुदा इंसान को जोड़े में ही बैठना चाहिए। जोड़े में बैठने से उसका फल जल्दी व अवश्य मिलता है, लेकिन किसी कारणवश ब्रह्मा की पत्नी सावित्री को आने में देरी हो जाती है, इस दौरान ब्रह्मा जी वहां मौजूद देवी गायत्री से विवाह कर लेते हैं और अपनी पत्नी के साथ यज्ञ शुरू कर देते हैं।

गायत्री मंत्र और अर्थ
Gayatri Mantra
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
अर्थ - सृष्टिकर्ता प्रकाशमान परामात्मा के तेज का हम ध्यान करते हैं, वह परमात्मा का तेज हमारी बुद्धि को सन्मार्ग की ओर चलने के लिए प्रेरित करें।
इस मंत्र के जाप से ज्ञान की प्राप्ति होती है और मन शांत तथा एकाग्र रहता है। ललाट पर चमक आती है। गायत्री माता के विभिन्न स्वरूपों का उनके मंत्रों के साथ जाप करने से दरिद्रता, दुख और कष्ट का नाश होता है, नि:संतानों को पुत्र की प्राप्ति होती है।

गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर
गायत्री मंत्र में चौबीस (24) अक्षर हैं। ऋषियों ने इन अक्षरों में बीज रूप में विद्यमान उन शक्तियों को पहचाना जिन्हें चौबीस अवतार, चौबीस ऋषि, चौबीस शक्तियां तथा चौबीस सिद्धियां कहा जाता है। गायत्री मंत्र के चौबीस अक्षर 24 शक्ति बीज हैं। गायत्री मंत्र की उपासना करने से उन मंत्र शक्तियों का लाभ और सिद्धियां मिलती हैं। गायत्री मंत्र में चौबीस अक्षरों के चौबीस देवता हैं यह चौबीस अक्षर चौबीस शक्तियों-सिद्धियों के प्रतीक हैं। यही कारण है कि ऋषियों ने गायत्री मंत्र को भौतिक जगत में सभी प्रकार की मनोकामना को पूर्ण करने वाला बताया है। उन शक्तियों के द्वारा क्या - क्या लाभ मिल सकते हैं, उनका वर्णन इस प्रकार हैं–
  1. तत्: देवता - गणेश, सफलता शक्ति। फल : कठिन कामों में सफलता, विघ्नों का नाश, बुद्धि की वृद्धि।
  2. स: देवता - नरसिंह, पराक्रम शक्ति। फल : पुरुषार्थ, पराक्रम, वीरता, शत्रु नाश, आतंक - आक्रमण से रक्षा।
  3. वि: देवता - विष्णु, पालन शक्ति। फल : प्राणियों का पालन, आश्रितों की रक्षा, योग्यताओं की वृद्धि।
  4. तु: देवता - शिव, कल्याण शक्ति। फल : अनिष्ट का विनाश, कल्याण की वृद्धि, निश्चितता, आत्म परायणता।
  5. व: देवी - श्रीकृष्ण, योग शक्ति। फल : क्रियाशीलता, कर्मयोग, सौन्दर्य, सरसता, अनासक्ति, आत्म निष्ठा।
  6. रे: देवी - राधा, प्रेम शक्ति। फल : प्रेम - दृष्टि, द्वेष भाव की समाप्ति।
  7. णि: देवता - लक्ष्मी, धन शक्ति। फल : धन, पद, यश और भोग्य पदार्थों की प्राप्ति।
  8. यं: देवता - अग्नि, तेज शक्ति। फल : प्रकाश, शक्ति और सामर्थ्य की वृद्धि, प्रतिभाशाली और तेजस्वी होना।
  9. भ : देवता - इन्द्र, रक्षा शक्ति। फल : रोग, हिंसक चोर, शत्रु, भूत - प्रेतादि के आक्रमणों से रक्षा।
  10. र्गो : देवी - सरस्वती, बुद्धि शक्ति। फल: मेधा की वृद्धि, बुद्धि में पवित्रता, दूरदर्शिता, चतुराई, विवेकशीलता।
  11. दे : देवी - दुर्गा, दमन शक्ति। फल : विघ्नों पर विजय, दुष्टों का दमन, शत्रुओं का संहार।
  12. व : देवता - हनुमान, निष्ठा शक्ति। फल : कर्तव्यपरायणता, निष्ठावान, विश्वासी, निर्भयता एवं ब्रह्मचर्य - निष्ठा।
  13. स्य : देवी - पृथ्वी, धारण शक्ति। फल : गंभीरता, क्षमाशीलता, भार वहन करने की क्षमता, सहिष्णुता, दृढ़ता, धैर्य।
  14. धी : देवता - सूर्य, प्राण शक्ति। फल : आरोग्य - वृद्धि, दीर्घ जीवन, विकास, वृद्धि, उष्णता, विचारों का शोधन।
  15. म : देवता - श्रीराम, मर्यादा शक्ति। फल : तितिक्षा, कष्ट में विचलित न होना, मर्यादा पालन, मैत्री, सौम्यता, संयम।
  16. हि : देवी - श्रीसीता, तप शक्ति। फल: निर्विकारता, पवित्रता, शील, मधुरता, नम्रता, सात्विकता।
  17. धि : देवता - चन्द्र, शांति शक्ति। फल : उद्विग्नता का नाश, काम, क्रोध, लोभ, मोह, चिन्ता का निवारण, निराशा के स्थान पर आशा का संचार।
  18. यो : देवता - यम, काल शक्ति। फल : मृत्यु से निर्भयता, समय का सदुपयोग, स्फूर्ति, जागरुकता।
  19. यो : देवता - ब्रह्मा, उत्पादक शक्ति। फल: संतान वृद्धि, उत्पादन शक्ति की वृद्धि।
  20. न: देवता - वरुण, रस शक्ति। फल : भावुकता, सरलता, कला से प्रेम, दूसरों के लिए दया भावना, कोमलता, प्रसन्नता, आर्द्रता, माधुर्य, सौन्दर्य।
  21. प्र :देवता - नारायण, आदर्श शक्ति। फल :महत्वाकांक्षा - वृद्धि, दिव्य गुण-स्वभाव, उज्ज्वल चरित्र, पथ - प्रदर्शक कार्यशैली।
  22. चो : देवता - हयग्रीव, साहस शक्ति। फल : उत्साह, वीरता, निर्भयता, शूरता, विपदाओं से जूझने की शक्ति, पुरुषार्थ।
  23. द : देवता - हंस, विवेक शक्ति। फल : उज्जवल कीर्ति, आत्म - संतोष, दूरदर्शिता, सत्संगति, सत् - असत् का निर्णय लेने की क्षमता, उत्तम आहार-विहार।
  24. यात् : देवता - तुलसी, सेवा शक्ति। फल : लोकसेवा में रुचि, सत्यनिष्ठा, पातिव्रत्यनिष्ठा, आत्म - शान्ति, परदु:ख - निवारण।
गायत्री उपासना से हर कार्य संभव
गायत्री, गीता, गंगा और गौ यह भारतीय संस्कृति की चार आधार शिलाएं हैं। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने इस बात का उल्लेख किया है कि मनुष्य को अपने कल्याण के लिए गायत्री और ॐ का उच्चारण करना चाहिए। वेदों में माँ गायत्री को आयु, प्राण, शक्ति, कीर्ति, धन और ब्रह्म तेज प्रदान करने वाली देवी कहा गया है। इनकी उपासना से मनुष्य को यह सब आसानी से प्राप्त हो जाता हैं।

गायत्री मंत्र का लाभ
महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी गायत्री की महिमा का यशोगान करते हुए कहते हैं कि जैसे फूलों में शहद, दूध में घी होता है, वैसे ही समस्त वेदों का सार देवी गायत्री हैं। यदि गायत्री को सिद्ध कर लिया जाए तो यह समस्त इच्छाओं को पूर्ण करने वाली काम धेनु गाय के समान हैं। गायत्री मंत्र से आध्यात्मिक चेतना विकास होता हैं एवं इस मंत्र का श्रद्धा पूर्वक निरंतर जप करने से सभी कष्टों का निवारण होता हैं एवं माँ उसके चारों ओर रक्षा-कवच का निर्माण स्वयं करती हैं। योग पद्धति में भी माँ गायत्री मंत्र का उच्चारण किया जाता हैं।


देवी और देवताओं के गायत्री मंत्र
  1. काली :- ॐ कालिकायै च विद्महे, स्मशानवासिन्यै धीमहि, तन्नो घोरा प्रचोदयात् ।।
  2. कृष्ण :- ॐ देवकीनन्दनाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो कृष्ण प्रचोदयात् ।।
  3. गणेश:- ॐ एकदन्ताय विद्महे, वक्रतुण्डाय धीमहि, तन्नो दन्ती प्रचोदयात् ।।
  4. दुर्गा :- ॐ कात्यायन्यै विद्महे, कन्याकुमार्ये च धीमहि, तन्नो दुर्गा प्रचोदयात् ।।
  5. राम :- ॐ दशरताय विद्महे, सीता वल्लभाय धीमहि, तन्नो रामा: प्रचोदयात् ।।
  6. रुद्र :- ॐ तत्पुरुषाय विद्महे, महादेवाय धीमहि, तन्नो रुद्र: प्रचोदयात् ।।
  7. लक्ष्मी:- ॐ महादेव्यै च विद्महे, विष्णुपत्न्यै च धीमहि, तन्नो लक्ष्मी प्रचोदयात् ।।
  8. विष्णु:- ॐ नारायणाय विद्महे, वासुदेवाय धीमहि, तन्नो विष्णु प्रचोदयात् ।।
  9. सरस्वती :- ॐ वाग्देव्यै च विद्महे, कामराजाय धीमहि, तन्नो देवी प्रचोदयात् ।
  10. हनुमान :- ॐ आञ्जनेयाय विद्महे, वायुपुत्राय धीमहि, तन्नो हनुमान् प्रचोदयात् ।।
इस तरह गायत्री मंत्र का जप
गायत्री मंत्र के जप से कई प्रकार का लाभ मिलता है। यह मंत्र कहता है 'उस प्रमाणस्वरूप, दुःख नाशक, सुख स्वरूप, श्रेष्ठ, तेजस्वी, पापनाशक, देव स्वरूप परमात्मा को हम अन्तःकरण में धारण करें। वह परमात्मा हमारी बुद्धि को सन्मार्ग में प्रेरित करें।' यानी इस मंत्र के जप से बौद्धिक क्षमता और मेधा शक्ति यानी स्मरण की क्षमता बढ़ती है। इससे व्यक्ति का तेज बढ़ता है साथ ही दुःखों से छूटने का रास्ता मिलता है। गायत्री मंत्र का जप सूर्योदय से दो घंटे पूर्व से लेकर सूर्यास्त से एक घंटे बाद तक किया जा सकता है। मौन मानसिक जप कभी भी कर सकते हैं लेकिन रात्रि में इस मंत्र का जप नहीं करना चाहिए। माना जाता है कि रात में गायत्री मंत्र का जप लाभकारी नहीं होता है। आर्थिक मामलों में परेशानी आने पर गायत्री मंत्र के साथ श्रीं का संपुट लगाकर जप करने से आर्थिक बाधा दूर होती है। छात्रों के लिए यह मंत्र बहुत ही फायदेमंद है। स्वामी विवेकानन्द ने कहा है कि गायत्री सद्बुद्धि का मंत्र है, इसलिए उसे मंत्रों का मुकुट मणि कहा गया है। नियमित 108 बार गायत्री मंत्र का जप करने से बुद्धि प्रखर और किसी भी विषय को लंबे समय तक याद रखने की क्षमता बढ़ जाती है। यह व्यक्ति की बुद्धि और विवेक को निखारने का भी काम करता है।

गायत्री जयन्ती को क्या करें
  1. अन्न का दान करें।
  2. इस दिन भंडारा करायें। लोगों को शीतल जल पिलायें। घर की छत पर जल से भरा पात्र रखें जिससे चिड़ियों के कंठ तृप्त हो सकें।
  3. गायत्री मन्त्र का जप करके हवन करें।
  4. गुड़ और गेहूं का दान करें।
  5. धार्मिक पुस्तक का दान करें।
  6. पवित्र नदी में स्नान करें।
  7. फला हार व्रत रहें।
  8. श्री आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठ करें।
  9. सत्य बोलने का प्रयास करें।
  10. सूर्य पूजा करें।


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