अल्प ब्लाग जीवन के फटे में पैबँद



फुरसतिया जी का लेख परदे के पीछे-कौन है बे? को पडा लगा कि तो लगा कि छद्म नाम के साथ लेख करना गलत नहीं है पर नाम लिख कर दूसरों पर टिप्पणी करना गलत है नाम न लिखने की परम्परा आज की नहीं है कई लोग इसे निभाते चले आ रहे है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी बात को कहने का हक है चाहे जैसे हो कह सकता है स्वामी जी तथा छाया जी भी अपनी बात सफलतापूर्वक कह रहे है तथा कोई इन लोगों को काई नहीं जानता है। स्वामी जी तो प्रत्येक व्यक्ति पर मुंह फाड के टिप्पणी तथा पोस्ट कर रहे है तथा हम इनके बेनाम पोस्टो को झेल रहे है नाम नहीं पता है तो इनकी दादा गिरी भी झेलनी पडती है।
अब एक जगह देख लीजिये कि स्वामी जी के क्या वाक्य है:- आप जितना समय यहाँ अपनी समझदारी का प्रदर्शन करने में लगाते रहे हैं उसका एक अंश अपने ब्लाग पर "संस्क्रत" को "संस्कृत" कैसे लिखें वो सीखने पर लगाएं. समय आ गया है की आपके अल्प ब्लॉग जीवन के फटे में पैबंद लगाने शुरु करें - शुरुआत खराब की है आपने. यदी अपने पाठकों का सम्मान चाहते हैं तो आपकी छवि और ब्लाग दोनो को सुधारना शुरु करें. यहाँ सब आपके शुभाकांक्षी ही हैं। स्वामी जी को उन्हें दूसरों का संस्क्रत गलत लगता है जबकि कि यदि का यदी लिखा है वह गलत नहीं लगता। तुलसीदास जी ने स्वामी जी जैसे लोगों के लिये ठीक ही समरथ को नहीं दोष गोसाईं!!" स्वामी जी आप तो समर्थवान है उनसे कहां गलती होने वाली है गलती तो हम लोग ही करते है और हमें ही अल्प ब्लॉग जीवन के फटे में पैबंद लगाने पडेगे स्वामी जी लोग तो समर्थवान हे अच्छा लिखे या खराब लोग पडेगे भी तथा टिप्पणी भी करेंगे और वाह-वाह भी ।
छिपकर लिखने का मतलब है कि आप दूसरों को भला बुरा कहते है किन्तु नाम इस लिये छिपाते है कोई दूसरा आपके नाम को लेकर आक्षेप न करें। छद्म नाम से लेख लिखने का मतलब है कि या तो आप मंत्री है, राजनेता है, अधिकारी है या आतंकी है जो नाम छिपाने की जरूरत है। मैं तो यही कहूंगा कि छिप कर लेख करने तो ठीक है पर छद्म नाम का सहारा किसी पर व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं करनी चाहिये।
हमें तो जुम्‍मा-जुम्‍मा आये 4 दिन ही हुआ है और अभी तो पैबंद लगाने का समय है सो तो हम लगाएंगे ही और ऐसा ही चलता रहा तो वक्त आपका भी आयेगा।

8 टिप्‍पणियां:

  1. अरे यार, तुम बहुत जल्दी टेंशन लेने लगते हो। कोई क्या कहता है, इसपर ज़्यादा वक़्त ज़ाया मत किया करो। सिर्फ़ अपने लेखन गुणवत्ता से वास्ता रखो, बाक़ी बातें मत सोचो।

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  2. हां भाई प्रमेन्द्र मैं समर्थवान हूं और मुझसे अधिक समर्थवान लोग भी हैं तुम्हारे आसपास. रवि रतलामी हैं, देबू हैं आलोक हैं! ये मत समझना की लोगों में वैचारिक मतभेद नही होते - लेकिन मतभेद रखने का अर्थ असम्मान नही होता!

    समर्थवान होने का सादा फ़र्मुला भी दे दूं - जिसे भी जब भी किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत हुई है लोग निस्वार्थ उपलब्ध होते हैं और पंगे लेने से ज्यादा कुछ काम का श्रमदान करते हैं तब मिलता है समर्थन और होते हो आप समर्थवान - समझे प्यारे? कभी देखना की अमित नें परिचर्चा पर, पंकज नें ग्राफ़िक्स पर और आशीष ने जावा पर कितनी मेहनत की है तब समझोगे की तुम्हारी आयूवर्ग में समर्थवान होने के लिए क्या किया जाता है. क्यों वे सबके लाडले होते हैं - मुझे सचमुच दोष नही लग सकता है - मैं दोष-प्रूफ़ हूं क्योंकी मैंने फ़िर तुम्हें अनुज जान कर सप्रेम खजाने की चाबी दे दी है - खोल लो खजाना और हो जाओ समर्थवान तुम भी! :)

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  3. स्‍वामी जी समार्थवान होने का मतलब यह नही है कि व्‍याकरण आप पर लागू नही होता है तथा आप व्‍याकरण के बंधन से मुक्‍त हो गये है और आप ''यदि को यदी'' लिख सकते है अगर व्‍यकरण के मामले मे आप टिप्‍पणी करते है तो आपको भी सुधरना होगा। आप दूसरे के सरसो के सामने अपने तरबूज को नही छिपा सकते।

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  4. मेरे विचार से यहाँ पर टिप्पणी करने से भी कुछ नही होगा। अगर कोई समझने के लिए तैयार हो, तभी समझाना चाहिए। बेकार मे ऊर्जा व्यर्थ करने से क्या लाभ? इसलिए प्रमेन्द्र को उसके हाल पर ही छोड़ना श्रेयकर होगा।

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  5. प्रमेन्द्र यार मेरे पल्ले नही पडता आपको तकलीफ क्या है? क्यों गडे मुर्दे उखाडने के चक्कर में खड्डे खोदे जाते हो? देखना उन खड्डों में ऐसा गिरोगे कि कोई सम्भालने वाला नही मिलेगा। सहयोग करोगे तो सहयोग मिलेगा। युँ सबको लताडते फिरोगे तो कोई पुछने वाला भी नहीं होगा।

    कितनी बातें हैं जो आपको पता ही नहीं है। हम लोग इतने दूर दूर बैठे भी आपसी सहयोग से कितना कुछ कर पा रहे हैं। और आपका योगदान तो होगा भी कैसे? ऐसा व्यवहार करोगे तो लोग आपका नाम सुनकर भी भागेंगे।

    अब ये मत कहना मुझे परवाह नहीं। परवाह सबको होती है, होनी पडती है भाई।

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  6. ये स्वामी जी कौन हैं भाई? लिंक तो दीजियेगा जी

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  7. ये स्वामी जी कौन हैं भाई? लिंक तो दीजियेगा जी

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