कृपया पक्ष मे टिप्‍पड़ी करे अन्‍यथा न करें

नववर्ष के दिन मैने अमित जी के ब्लॉग एक लेख देखा, जिस पर उन्होंने कुछ बातो का उल्लेख किया था। मैने भी उनके इस लेख पर अपनी एक टिप्पणी प्रस्तुत की थी किन्तु वह माडरेशन की शिकार हो गई। कुछ अटपटा सा लगा कि मैंने ऐसा क्या लिख दिया कि वह पठनीय नही था। मैने उस टिप्पणी की कोई प्रति अपने पास सुरक्षित नहीं रखी थी, पर मुझे जहां तक याद है मै अक्षरस: बताने का प्रयास करूँगा।
 
मैंने जो कुछ भी टिप्पणी में लिखा वह निम्न है ----- 
 ‘अमित जी आपके दोस्त को पूरा ध्यान पूर्वक पढ़ लगा कि दिव्याभ जी ने जिन शब्दो का प्रयोग किया वह कदापि उचित नही था और मै इन शब्दों के प्रयोग की कढ़ी शब्‍दो मे निंदा करता हूँ। पर ध्यान देने योग्य यह भी है कि जैसा आपने कहा कि मै चिठ्ठाकार को ईमेल भेज रहे थे वह उनके पास गया तो गलती तो अपकी थी अगर आपने इसकी माफी मॉंग ली होती कि भूल से चला गया है तो बात वही खत्म हो जाती। और एक बात जब बात द्विपक्षीय हो रही हो तो उसे बहुपक्षीय बनने से स्थिति और खराब होती है। आपने जिस प्रकार दिव्याभ जी के ईमेल को सार्वजनिक किया वह ठीक नहीं था। कोशिश करनी चाहिये कि इस प्रकार के झंझटो से बचा जाय। मै एक बार फिर से किसी चिठ्ठाकार या किसी के प्रति इन प्रकार के शब्दों की निंदा करता हूँ।‘
मेरी पूरी टिप्पणी मेरे विवेकानुसार जो मैने लिखा था वह यही है, और इसमे क्या माडरेशन वाली बात थी जिसे माडरेशन का कोप भाजन का होना पड़ा और इसे प्रकाशित नहीं किया गया मुझे नही समझ मे आया, अगर अपने मन की ही टिप्पणी की इच्छा हो तो इस पर लिख दिया जाए कि केवल पक्ष में बोलने वाले ही टिप्पणी करे विपक्ष में लिखने वालों की टिप्पणियों को प्रकाशित नहीं किया जायेगा। तो मैं टिप्पणी करता न ही इस पोस्ट को लिखता। अब तो मै सोचने पर मजबूर हूँ कि माडरेशन वाली ब्लॉगों पर टिप्पणी करूँ भी कि नहीं। क्योंकि आधे घंटे-पन्द्रह मिनट बैठ कर टाइप करों और किसी को पसंद न आया तो टिप्पणी को कोप का भाजन बनना पड़े, आप सभी से माडरेशन वालों से निवेदन है कि आप अपने ब्लॉग पर नोटिस चस्पा कर दे कि आपको किस प्रकार की टिप्पणी की जाए ताकि भूलवश कोई आपके मन के विपरीत टिप्पणी न करे और टिप्पणीकार की करनी का परिणाम उसकी टिप्पणी को न भुगतना पडे।

8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह महाशक्ति जी वाह - आपको तो 5000 डॉलर मिल गये इस पोस्ट के लिये.

    क्या ट्रिक लगाये हैं भैया, हमको भी बतायें (सुलाखी हलवाई की 1 किलो बालूसाही खिलायेंगे!) :)

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  2. प्रमेन्द्रजी,

    मैं आपकी बात एक हद तक सहमत हूं, परन्तु ब्लाग पर टिप्पणी रखना या न रखना ब्लागर का अधिकार क्षेत्र है |

    मेरी समझ से हमें उस अधिकार क्षेत्र पर अतिक्रमण करनें का कोई नैतिक अधिकार नहीं है |

    मैं सहमत हूं कि कभी कभी टिप्पणी प्रकाशित न होने पर मन खिन्न हो सकता है, परन्तु हम इसे एक अपवाद समझ कर भुला भी तो सकते हैं |

    हिन्दी ब्लागजगत के सभी सदस्यों के आपसी प्रेम व्यवहार को देखकर मन में बहुत प्रसन्नता होती है, ऐसे में कभी कोई छोटी मोटी बहस हो जाये तो इसे बनिये के खाते के ऊपर लिखी पंक्ति समझ कर भुला देना चाहिये |

    भूल चूक लेनी देनी,

    वैसे तो मैं नियमित ब्लाग नही लिखता हूं, पर कुछ नया लिखा तो बदले में लम्बी सी टिप्पणी करना न भूलियेगा |

    आपका शुभचिन्तक,

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  3. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. @ wwwmrchen
    जी प्रथम कमाऊ टिप्‍पड़ी के लिये धन्‍यवाद, आपके कारण अनुराग भाई इलाहाबाद की सबसे महंगी सुलाकी की मिठाई खाने को मिल रही है।

    @ अनुराग श्रीवास्तव जी
    पहले सुलाकी की मिठाई खिलाई और तो ट्रिक बताऊँगा :)

    @ Neeraj Rohilla ji
    मैं भी आपकी बात से सहमत हूँ, किन्‍तु हम ब्‍लाग लेखन अपनी दो कारणों से करते है पहला कि हमारी रूचि होती है। दूसरा कि हम अपना लेखन का मूल्‍याकंन करते है कि हम कैसा लखि रहे है, और इस मूल्‍यकंन का पता हमे लेख के पक्ष और विपक्ष मे मिली टिप्‍पणी के कारण होता है। मन तो खिन्‍न होता है कि आपने अपना समय पहले तो लेख पढ़ने मे व्‍यय किया फिर टिप्‍पड़ी टंकण करने मे, जिस प्रकार किसी मॉं के बच्‍चे को उसकी कोख मे ही मार देने पर जो दुख होता है उसी प्रकार आपकी टिप्‍पणी को जन्‍म लेने से पहले की कत्‍ल कर दिया जाये यह तो खराब लगेगा ही। इस परिवार मे खुशियॉं देखना चाहता हूँ एवं सदा एक दूसरे की सहयोग भावना का कायल हूँ, और मुझे भी प्रतीक जी, पं‍कज जी तथा अन्‍य भाई बन्‍धु से सहायता मिली हे मै इसको नही भूल सकता हूँ।
    आप लिखिये मै गज़ब की टिप्‍पड़ी करूँगा टिप्‍पड़ी करने मे मै माहिर हूँ, पर पहले से बता दिजिये कि कैसी टिप्‍पड़ी चाहिये :-)


    @ हे मेरे प्रभु,
    क्‍या मेरा ब्‍लाग कुस्‍ती का अखाड़ा दिखता है? जो आप अपनी ताल ठोकते हुये यहॉं आ गये। आप इतनी अच्‍छी हिन्‍दी टाईप करते है तो आप इसे अपना स्‍वयं का ब्‍लाग बना के डाल सकते थे। क्‍या यहाँ सकेते मे समधियाना करना जरूरी था मै ? मै आपकी टिप्‍पडी को मिट रहा हूँ। इसके लिये मै क्षमा प्रार्थी हूँ जो कुछ कहना हो मेरे लेख के विषय मे कहे, व्‍यर्थ की चर्चा न यहाँ न करे अन्‍यत्र काफी जगह खाली है।

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  5. क्‍या गुप्‍ता जी आप पुन: मे फटी लंगोट पहन कर कूद पडे़ है।
    ''बद्तमीज़ और गंवार'' किसी विशेष प्रकार के नही होते है।
    भाषा की सरलता और सरसता स्‍वयं श्रेष्‍ठता का परिचायक है।

    कोई भी व्‍यक्तिगत ईमेल का जवाब सर्वजनिक रूप से और अशिष्‍टता के साथ दिया जाना तथा ईमेल को भी सर्वजनिक करना उचित नही है। किसी को अवांक्षित मेल भेजकर आपने अपने आप को तुर्रम शाह बताना गलती तो आपने की ही है।

    फिलहाल क्षमा मॉंगने की जगह सीना जोरी और ढीडता पर उतर आना संसार के बत्‍तमीज और गंवॉंरों के टॉप रैकिंग के टॉपेस्‍ट रैंक पर आते है।

    आप मे किसी की सामना करने की क्षमता नही है और अत्‍यंत डरपोक किस्‍म के व्‍यक्ति है, जिसकी झलक छोटी-छोटी बातों पर धमकियों पर उतर आना अपकी विभिन्‍न लेखों मे दिखाई पड़ता है।

    फिलहाल उपरोक्‍त लेख आपने अपनी बड़ाई के लिये लिखा है किन्‍तु कोई भी ब्‍यक्ति आपकी फटी लंगोट तीव्र मे ईष्‍य और द्वेष का देख सकता है।
    फिलहाल फटी लंगोट के प्रर्दशन से अच्‍छा होगा कि इस लेख को मिटा दे,
    बजाय अपनी इज्‍जत के जनाजे का जूलूस अपनी ही कन्‍धों पर लिये फिरे।
    अशिष्‍ट भाषा का विरोध यदि शिष्‍ट भाषा मे हो और केवल उसी से हो तो उत्‍तम होगा।
    लोकप्रियता के और भी रास्‍ते है। और आप google.com क्लिक करके आसानी से खोज लेगें।

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  6. प्रमेन्द्रजी,

    मैं आपकी बात से सहमत हूं, परन्तु नीरज की टिप्पणी पर भी गौर कीजियेगा. आप द्वारा अमीतजी के ब्लॉग पर की गई टिप्पणी में ऐसा कुछ भी नहीं था जिसे प्रकाशित नहीं किया जा सके मगर यह निर्धारण करने का अधिकार भी ब्लॉग के मालिक का ही है।

    मेरा मानना है कि आपने अपनी टिप्पणी को चिट्ठे पर प्रकाशित कर अच्छा किया। आपकी यह पंक्तियाँ विचारणिय लगी -

    जब बात द्विपक्षीय हो रही हो तो उसे बहुपक्षीय बनने से स्थिती और खराब होती है।

    मैं इससे पूर्णतया सहमत हूँ.

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  7. @ गिरिराज जी, सर्मथन के लिये धन्‍यवाद, मै रोहिला जी की सभी बातों से सहमत हूँ। पर इस बात पर नही कि मालिक होने के कारण कोई किसी कि सही बात को नजरअन्‍दाज करे। मॉडरेशन का यह अर्थ नही लगाना चाहिये कि जो मालिक की मर्जी हो वही छपेगा। मै तो यह मानता हूँ लेखक को अपने लेख का टिप्‍पणी के माध्‍यम से सही विश्‍लेषण करना करना चाहिये कि क्‍या गलत है क्‍या सही?
    एक लेखक अपने लेख को ब्‍लाग पर डालता है, टिप्‍पणी प्राप्‍त करने के लिये तथा इस लेख पर अन्‍य लोगों के क्‍या विचार है। एक टिप्‍पणी कार टिप्‍पणी करता है इसलिये कि उसकी भी राय लोगो तक पहुँचे।
    जब तक टिप्‍पड़ी मे अशिष्‍ट भाषा या अशोभानीय बात न हो तब तक टिप्‍पणी का गला न दबाया जाय।

    @ हे मेरे भगवान, आप क्‍यों पीछे पड़े हुऐ है?

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  8. भईया इस तरह ५००० डॉलर की कमाई कराने वाले आर्टीकल हमको भी लिखना सिखा दो यार, आधे पैसे तुम रख लिया करना... प्लीज।

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