परीक्षा तक के लिये संन्यास लिया था किन्तु आज विशेष कारण के कारण इसे तोड़ना पड़ा करू भी क्या जरूरी कामों को लिये समय निकालना ही पड़ता है। :)
आज मेरे लिये बहुत ही शुभ अवसर है कि आज के ही दिन ईश्वर मेरे निर्माण के लिये माता-पिता को वैवाहिक बंधन मे बांधा था। प्रत्येक व्यक्ति निर्माण व्यर्थ मे नही हुआ है प्रकृति ने निश्चित रूप से हर व्यक्ति-जीव को अपना माध्यम बना कर भेजा है। मै आज के दिन अपने माता पिता को कुछ उपहार देना चाहता था पर सोचने को हुआ कि मै उन्हे क्या दे सकता हूँ ? जो खुद ही अभी उनके ग्रास का में अपने ग्रास को पा रहा हूँ। जो कुछ भी मै क्रय करके देता वह उनके द्वारा दिये माध्यम से दिया होता। तो यह कैसा उपहार होता ?
एक पुत्र अपने माता-पिता को क्या दे सकता है ? पुत्र अगर दुनिया की सबसे बड़ी खुशी भी दे दें तो वह अपने माता-पिता के प्रेम के आगे तुच्छ होगा। मै अपने माता -पिता को हर वो चीज देना चाहता हूँ जो वे मुझसे चाहते है। किन्तु एक पिता की यही अभिलाषा होती है, उसके पुत्र का नाम उनसे भी उपर जाये तभी पिता को सबसे बड़ी खुशी मिलती है। मै वो खुशी देना चाहता हूँ।
मै अपने माता पिता के संघर्षों को जानता हूँ। मेरे पिता प्रतापगढ़ के छोटे से गाँव बड़ारी मे एक कृषक परिवार मे जन्म लिया, फिर अपने कानपुर के गंदे मोहल्ले में ढकना पुरवा में बीता बचपन, और इसी जगह से अपने नये आयामों को छूते हुए अपने पढ़ाई के समय में ही गाँव मे पैसे भेजने की जिम्मेदारी के साथ अपने लक्ष्यों को प्राप्त किया। विभिन्न राजनीतिक आंदोलनों मे भाग लेते हुए कई बार जेल गये ( मुझे याद है जब 1991-92 मे गिरफ्तारियां हो रही थी तब मै 6 वर्ष का रहा हूँगा तब सोचता था कि चोरी आदि करने पर जेल होती थी पर मेरे पापा ने तो ऐसा कुछ नही किया, और व्यथित रहता था और सोचता था कि चोरी करते हुये पकड़े गये होंगे और मुझे कोई बता नहीं रहा है। पर यह मेरा उस समय का बाल मन की बात थी) और अपने लक्ष्यों को नही भूले, और 1988 के आस पास इलाहाबाद उच्च न्यायालय मे वकालत की प्रैक्टिस करने आ गये, उस समय हाथ मे कुछ न था किन्तु अपने अथक साहस के बल पर उच्च न्यायालय में बिना किसी गॉड फादर के 15 वर्षो की वकालत में भारत सरकार के वरिष्ठ स्थायी अधिवक्ता का पद 2003 में प्राप्त किया, और आज उच्च न्यायालय मे सम्मानित अधिवक्ता है। मेरे पिताजी के शब्दकोश में असंभव नाम का कोई शब्द नहीं है और यही उनकी सफलता का राज है। अगर मै उनके चरणों की धूल भी बन सका तो यह मेरी उपलब्धी होगी।
मेरी माता जी का जन्म मुंबई में हुआ था, और उनका भी पैतृक निवास प्रतापगढ़ ही था। बचपन और पढ़ाई मुंबई में ही हुई। एक खास बात मेरी माता जी मुम्बई नगर पालिका में कई दर्जन स्कूल हुआ करते थे। उसमें मेरी माता जी सीनियर वर्ग मे मुम्बई चैम्पियन थी। एक गृहणी के रूप में उन्होंने अपने अपने सभी दायित्वों का पालन किया। पिताजी की अपनी व्यस्तता थी पर माता जी ने हमें कभी भी पिताजी की कमी महसूस नहीं होने दिया। मेरे जन्म से पहले और जन्म के 5 वर्ष के बाद की मै नही जानता जो जनता हूँ सुनी सुनाई है। किन्तु 1990 के बाद की बाते धुँधलेपन के साथ याद है। बात 1991-92 के दंगे के समय की है कानपुर वाले जानते है कि कानपुर मे उन दिनों कैसा माहौल था, पिताजी को भी रात में गिरफ्तार कर लिया गया था। अब मेरे घर मे मात्र चार लोग बचे मेरी माता जी, दो बड़े भाई (उम्र 13 व 9 वर्ष) और मै उम्र 5 वर्ष पूरे मोहल्ले मे दहशत का माहौल था, कि अब हमला हुआ कि तब, मेरी माता जी ने मुझे और मेरे बीच वाले भाई को एक कमरे बंद कर दिया और दरवाजे के बाहर बडे भाई को लेकर एक एक लाठी लेकर बैठ गई। हमारे परिवार को कानपुर से इलाहाबाद पूर्ण रूप से 1994 मे आया और 1988 से 1993 तक मेरी माता जी ने हम दोनो छोटे भाई का अच्छी तरह पालन पोषण किया, जो निश्चित रूप से किसी बड़े सघर्ष से कम न था। मेरे पिता जी के 2005 मे हुऐ एक्सीडेन्ट ( इसके बारे मे फिर कभी लिखूँगा) मे माता जी का धैर्य और साहस गजब का था निश्चित रूप से यह क्षण मेरे परिवार पर अब तक के सबसे भारी थे। मेरे बड़े भईया के कहने पर मेरी माता जी तीन दिनों तक पिताजी को अस्पताल में देखने नहीं गई, कई महिलाओं ने तो ऐसा भी कहा कि कैसी औरत हो कि तुम्हारा पति तीन दिनों से अस्पताल में है और तुम देखने तक नहीं गई, शायद उनका यह त्याग है जो पिताजी को मौत के मुँह से बाहर निकाल लाया। नहीं तो लोगों का कहना था कि बीएन सिंह अब अपने पैरों पर नहीं चल सकेंगे ( कुछ का कहना था कि बचेगें ही नहीं) किन्तु आज स्थिति सामने है कि पिताजी प्लास्टर खुलने के चार महीने के अन्दर ही कोर्ट जाने लगे(चलने लगें) और जो देखता था कि बीएन सिंह जी आप जैसी हिम्मत भगवान सभी को दे। इन सब मे पिता जी को योग था ही पर माता जी का अमूल्य योगदान था कि गंभीर विषयों पर भी उन्होंने अपना धैर्य नहीं खोया और हमारे परिवार की सफलता में हर क्षण एक एक मोती जोड़ने का काम करतीं रही।
मै मानता हूँ कि मेरे माता-पिता दुनिया के सबसे अच्छे माता-पिता है और मेरे भाई सबसे अच्छे भाई, हे ईश्वर इस पर कभी किसी की नजर न । ।
मेरी ओर से मेरे माता-पिता और मेरे भाइयों को इस शुभ दिन पर हार्दिक शुभकामनाएं।
फिर मिलेंगे 24 के बाद :)
सभी पाठकों को धन्यवाद
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18 टिप्पणियां:
बधाई हो,कृपया मेरी बधाई पहुचा दे मित्र
भाई, हमारी तरफ़ से भी बधाई प्रेषित करें।
प्रमेन्द्रजी,
हमारी बधाई भी दे दीजियेगा :)
प्रमेन्द्र के पूज्य माता - पिता को प्रणाम। प्रमेन्द्र ने उन्हें आदरपूर्वक याद किया इसके लिए आभार ,साधुवाद ।
हमारी बधाई भी दे दीजियेगा :)
प्रमेन्द्र जी आपको और आपके माताजी और पिताजी को हार्दिक बधाई।
मेरी तरफ़ से भी बधाई स्वीकार करें .
मेरी तरफ से भी बधाई दें।
इस शुभ दिन पर हमारी हार्दिक शुभकामनाऐं और बधाई। माता जी पिता जी को हमारा नमन.
हमारी तरफ से भी बधाई।
बहुत अच्छा किया जो यहां इसे लिखा। आज के दिन की तुम्हारे घर में सबको बधाई! मां-पिताजी को खासकर!
हमरी तरफ़ से भी बधाई व शुभकामनाएं भैया।
अच्छा आपका लेख ...और आपकी भावनायें
हमारी ओर से आपके पापा-मम्मी को शादी की सालगिरह की हार्दिक बधाई
आप सभी को हार्दिक धन्यवाद,
मैने एक जगह उल्लेख किया था कि '' उसमें मेरी माता जी सीनियर वर्ग मे मुम्बई चैम्पियन थी।''
मैने यह नही बताया कि किसी चीज में थी वह अच्छी धाविका थी।
प्रमेन्द्रजी,
आपके माताजी एवं पिताजी को हमारी तरफ़ से भी उनके सफ़ल, सुखद एवं मंगलमय वैवाहिक जीवन की वर्षगाँठ पर हार्दिक शुभकामनायें ।
"जो खुद ही अभी उनके ग्रास का में अपने ग्रास को पा रहा हूँ। जो कुछ भी मै क्रय करके देता वह उनके द्वारा दिये माध्यम से दिया होता। तो यह कैसा उपहार होता ?"
आपकी इस बात ने मन प्रसन्न कर दिया ।
आपको आपकी परीक्षाओं के लिये भी शुभकामनायें,
आपको तथा आपके माता-पिता को इस शुभ दिन हेतु बधाई।
आपका उनके प्रति प्रेम तथा आदर प्रशंसनीय है।
हमारी ओर से भी शुभकामनाएँ।
प्रमेन्द्र के पूज्य माता - पिता को प्रणाम। प्रमेन्द्र ने उन्हें आदरपूर्वक याद किया इसके लिए शाबाशी और उन्हेँ बहुत सारी बधाई ।
--- लावण्या
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