भारतीय संविधान के अनुच्छेद 44 का दर्द



भारत के अतिरिक्त संसार में ऐसा कोई देश नहीं है, जहां अलग-अलग सम्प्रदायों व वर्गों के लिए अलग-अलग कानून विद्यमान हों। अमरीका व अन्य पश्चिमी देशों में पूर्णतया समान नागरिक संहिता लागू है, जहां बड़ी संख्या में मुसलमान व अन्य अल्पसंख्यक वर्गों के लोग रहते हैं। अनेक प्रगतिशील मुस्लिम देशों यथा मिस्र, सीरिया, तुर्की, मोरक्को, इंडोनेशिया व मलेशिया, यहां तक कि पाकिस्तान में भी बहुपत्नीवाद, मौखिक तलाक तथा पुरुष-प्रधान उत्तराधिकार आदि के मामलों में भेदभावपूर्ण व दमनकारी कानून बदल दिए गए हैं और उनको उदार व मानवीय बनाया गया है।

पाकिस्तान जैसे कट्टर इस्लामिक देश के सर्वोच्च न्यायालय ने अपने 20 दिसम्बर, 2003 के महत्वपूर्ण निर्णय में मुस्लिम लड़कियों को अपनी मर्जी से विवाह करने की स्वतंत्रता प्रदान की है किन्तु हमारे देश में अल्पसंख्यकों के संरक्षण के नाम पर आज भी महिलाओं को अन्याय, दमन व पीड़ा सहनी पड़ रही है। और संविधान के अनुच्छेद 44 का प्रावधान कि सभी के लिए निजी कानून एक जैसे होंगे। अपने अपने अमलीजमा पहनाये जाने का इंतजार कर रहा है..

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