आज इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन की अराजकता से ग्रसित है। जब यह विश्वविद्यालय स्वनियत्रण में आया है तब से इसके कुलपति अपने आपको विश्वविद्यालय के सर्वेसर्वा मानने लगे है। करोड़ो रूपये की छात्र कल्याण हेतु आर्थिक सहायता सिर्फ कागजों तक ही सीमित रह गई है। जो काम छात्रों के काम छात्र संघ होने पर तुरंत हो जाता था आज कर्मचारी उसी काम को करने में हफ्तो लगा देते है। जिस छात्र संघ ने कई केन्द्रीय मंत्री और राज्य सरकार को मंत्री देता आ रहा है उस पर प्रतिबंध लगाना गैरकानूनी है। आज जबकि जेएनयू और डीयू जैसे कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव हो रहे है तो इलाहाबाद केन्द्रीय विवि में चुनाव न करवाना निश्चित रूप से विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपनी खामियों के छिपाने का प्रयास मात्र है।विश्वविद्यालय राजनीति का अखड़ा नही है किन्तु छात्रसंघ से देश को प्रतिनिधित्व का साकार रूप मिलता है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय प्रशासन को चाहिये कि अपनी गलती को मान कर छात्रों के सम्मुख मॉफी मॉंग कर जल्द ही चुनाव तिथि घोषित करना चाहिये। वरन युवा शक्ति के आगे प्रशासन को झ़कना ही पड़ेगा।
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5 टिप्पणियां:
इलाहाबाद विवि के छात्रसंघ ने देश की बहुत सेवा की है। प्रतिबन्ध हटना चाहिये!
allahabad university student union per pratibandh bilkul galt hai, aur ish per se jald hi rook hat jana chahiye.
yah to dada giri hui
इलाहबाद विश्वविद्यालय और छात्रसंघ : हासिल फ़िल्म मुझे बहुत अच्छी लगी थी. इससे ज्यादा कुछ आईडिया नहीं है :(
जब जेएनयू जैसे कई केन्द्रीय विश्वविद्यालयों में चुनाव हो रहे है तो इलाहाबाद विवि में चुनाव न करवाना निश्चित रूप से विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा अपनी खामियों के छिपाने का प्रयास मात्र है!
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