अकरकरा के औषधीय प्रयोग



अकरकरा (Anacyclus pyrethrum) का पौधा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता है। भारत में यह कश्मीर, आसाम, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में, गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कहीं-कहीं उगता है। वर्षा के शुरू में ही इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है। अकरकरा का तना रोए दार और ग्रंथि युक्त होता है। अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग की होती है। इसके फूल पीले रंग के गंध युक्त और मुंडक आकर में लगते हैं। जड़ 8 से 10 सेमी लंबी और लगभग 1.5 सेमी चौड़ी तथा मजबूत और मटमैली होती है।
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विभिन्न भाषाओं में नाम
  1. संस्कृत - आकारकर, आकल्लक
  2. हिंदी - अकरकरा
  3. मराठी - अक्कलकरा
  4. गुजराती - अकोरकरो
  5. बंगाली आकरकरा।
  6. फारसी वेश्वतर्खून, कोही।
  7. अरबी आकिकिहां, अदुक लई।
  8. पंजाबी - अकरकरा।
  9. अंग्रेजी पेलिटरी।
  10. लैटिन एनासाइक्लस पाइरेथ्रम।
रंग : अकरकरा ऊपर से काला और अंदर से सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद तेज, चरपरा, ठंडा, चुनचुनाहट पैदा करने वाला होता है।
प्रकृति : अकरकरा की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।
गुण : अकरकरा कड़वी, रूक्ष, तीखी, प्रकृति में गर्म तथा कफ और वात नाशक है। इसके अलावा यह कामोत्तेजक (सेक्स उत्तेजना को बढ़ाने वाला), धातुवर्द्धक (वीर्य को बढ़ाने वाला), रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), शोथहर (सूजन को कम करने वाला), मुंह दुर्गंध नाशक (मुंह की बदबू) को नष्ट करना), दन्त रोग, हृदय की दुर्बलता (दिल की कमजोरी), बच्चों के दांत निकलने के समय के रोग, तुतलाहट, हकलाहट, रक्त संचार (शरीर में खून के बहाव) को बढ़ाने में भी गुणकारी हैं।
हानिकारक प्रभाव : अकरकरा का बाह्य प्रयोग अधिक मात्रा में करने से त्वचा का रंग लाल हो जाता है तथा उस पर जलन होती है। यदि इसका सेवन आन्तरिक रूप से अधिक किया गया हो तो इससे- नाड़ी की गति बढ़ना, दस्त लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी छाना, रक्तपित्त आदि दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं। फेफड़ों के लिए भी यह हानिकारक होता है, क्योंकि इससे उनकी गति बढ़ जाती है।

Akarkara Herb Is Beneficial For Many Diseases

विभिन्न रोगों में अकरकरा से उपचार
Akarkara Powder Benefits in Hindi
  1. अर्दित (मुंह टेढ़ा होना) होने पर - उसी के साथ अकरकरा का 100 मिलीलीटर काढ़ा मिलाकर पिलाने से अर्दित मिटता है। अकरकरा का चूर्ण और राई के चूर्ण को शहद में मिलाकर जिह्वा पर लेप करने से अर्धांगवात मिटती है।
  2. खांसी - अकरकरा का 100 मिलीलीटर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है। अकरकरा के चूर्ण को 3-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते कफ को बाहर निकाल देती है।
  3. गर्भनिरोधक - अकरकरा को दूध में पीसकर रूई लगाकर तीन दिनों तक योनि में लगातार रखने से 1 महीने तक गर्भ नहीं ठहरता है।
  4. गले का रोग - अकरकरा चूर्ण की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायकों (सिंगर) का स्वर सुरीला हो जाता है। तालू, दांत और गले के रोगों में इसके कुल्ले करने से बहुत लाभ होता है।
  5. गृध्रसी (सायटिका) - अकरकरा की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी मिटती है।
  6. जीभ के विकार के कारण हकलापन - अकरकरा की जड़ के चूर्ण को काली मिर्च व शहद के साथ 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर जीभ पर मालिश करने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। इसे 4-6 हफ्ते प्रयोग करें।
  7. जुकाम के कारण सिर दर्द - अकरकरा को दांतों के बीच दबाने से जुकाम का सिर दर्द दूर हो जाता है।
  8. ज्वर (बुखार) होने पर - अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। अकरकरा 10 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 मिलीलीटर अदरक का रस मिलाकर लेने से सन्निपात ज्वर में लाभ मिलता है। अकरकरा 10 ग्राम और चिरायता 10 ग्राम लेकर कूटकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ लेने से बुखार समाप्त होता है।
  9. तुतलापन, हकलाहट- अकरकरा और काली मिर्च बराबर लेकर पीस लें। इसकी एक ग्राम की मात्रा को शहद में मिलाकर सुबह-शाम जीभ पर 4-6 हफ्ते नियमित प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलेगा। अकरकरा 12 ग्राम, तेजपत्ता 12 ग्राम तथा काली मिर्च 6 ग्राम पीसकर रखें। 1 चुटकी चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम जीभ पर रखकर जीभ को मलें। इससे जीभ के मोटापे के कारण उत्पन्न तुतलापन दूर होता है।
  10. दमा (श्वास) होने पर - अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को सूंघने से श्वास का अवरोध दूर होता है। लगभग 20 ग्राम अकरकरा को 200 मिलीलीटर जल में उबालकर काढ़ा बनाएं और जब यह काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाये तो इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को सेवन करने से अस्थमा रोग ठीक हो जाता है।
  11. दांत रोग- अकरकरा को सिरके में पीसकर दुखते दांत पर रखकर दबाने से दर्द में लाभ होता है। अकरकरा और कपूर को बराबर की मात्रा में पीसकर नियमित रूप से सुबह-शाम मंजन करते रहने से सभी प्रकार के दांतों की पीड़ा दूर हो जाती है।
  12. दांतों में दर्द - अकरकरा को बारीक पीसकर पाउडर बना लें। उसके पाउडर में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कपूर को मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को दांतों के बीच के खाली जगहों को भरें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है तथा मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है। अकरकरा का बारीक चूर्ण बनाकर मसूढ़ों पर मालिश करने से व खोखले दांतों की जड़ में लगाने से कीड़े नष्ट होकर दर्द खत्म हो जाता है। अकरकरा व कपूर के चूर्ण को रूई में लपेटकर लौंग के तेल में भिगो लें। इसे दर्द वाले दांत के नीचे दबाकर रखें तथा मुंह का राल (लार) बाहर गिरने दें। इससे दांत का तेज दर्द जल्द ठीक होता है। गर्मी के कारण दांतों में दर्द रहता हो तो अकरकरा, तज और मस्तांगी को बराबर मात्रा में लें। इन सबको पीस-छानकर प्रतिदिन दांतों पर मलें। इससे रोग में जल्द आराम मिलता है। अकरकरा और कपूर दोनों बराबर लेकर पीसकर मंजन करने से सभी प्रकार की दांतों की पीड़ा मिटती है। अकरकरा की जड़ के काढ़े से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है और हिलते हुए दांत जम जाते हैं। अकरकरा की जड़ को दांतों पर मलने से दांतों का दर्द दूर होता है।
  13. दिमाग को तेज करने के लिए - अकरकरा और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, इसको आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि तेज होती है|
  14. नपुंसकता (नामर्दी) होने पर- अकरकरा का बारीक चूर्ण शहद में मिलाकर शिश्न (पुरुष लिंग) पर लेप करके रोजाना पान के पत्ते लपेटने से शैथिल्यता (ढीलापन) दूर होकर वीर्य बढेगा। अकरकरा 2 ग्राम, जंगली प्याज 10 ग्राम इन दोनों को पीसकर लिंग पर मलने से इन्द्री कठोर हो जाती है। 11 या 21 दिन तक यह प्रयोग करना चाहिए।
  15. नाक के रोग - अकरकरा के चूर्ण को नाक से सूंघने से बंध-रोग (नाक से छींक न आना) दूर हो जाता है।
  16. पक्षाघात (लकवा) - अकरकरा की सूखी डंडी महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा दूर होता है। अकरकरा की जड़ को बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है। अकरकरा की जड़ का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
  17. पेट के रोग - छोटी पीपल और अकरकरा की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम, भोजन के बाद सेवन करते रहने से पेट सम्बंधी अनेक रोग दूर हो जाते है।
  18. पेट में पानी का भरना (जलोदर) - अकरकरा का चूर्ण सुबह और शाम पीने से जलोदर में लाभ होता है।
  19. वाजीकरण - अकरकरा, सफेद मूसली और असगंध सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित लें।
  20. बालाचार, बालग्रह - अकरकरे को धागे में बांधकर बच्चे के गले में पहनाने से मिर्गी, आक्षेप आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
  21. मंदाग्नि - शुंठी का चूर्ण और अकरकरा दोनों की 1-1 ग्राम मात्रा को मिलाकर फंकी लेने से मंदाग्नि और अफारा दूर होता है। 20 शरीर की शून्यता और आलस्य होने पर - अकरकरा के 1 ग्राम चूर्ण को 2-3 पीस लौंग के साथ सेवन करने से शरीर की शून्यता और इसकी जड़ के 100 मिलीलीटर काढ़े पीने से आलस्य मिटता है।
  22. मसूड़ों का रोग - अकरकरा के पत्तों को पानी में उबालकर प्रतिदिन गरारे करें। यह मुंह के सभी रोग को नष्ट करती है।
  23. मस्तक की पीड़ा में - अकरकरा की जड़ को पीसकर मस्तक पर हल्का गर्म लेप करने से मस्तक की पीड़ा मिटती है। अकरकरा को दांतों के बीच में रखने से प्रतिश्याय (जुकाम) से होने वाला सिर दर्द मिटता है। इसको चबाने से लार छूटकर दाढ़ की पीड़ा मिट जाती है।
  24. सिक-धर्म की अनियमितता - अकरकरा का काढ़ा बनाकर पीने से मासिक-धर्म समय पर होता है।
  25. मिरगी (अपस्मार) - अकरकरा को सिरके में पीसकर शहद के साथ मिलाकर जिस दिन मिरगी न आये उस दिन रोगी को चटाने से मिर्गी आना बंद हो जाता है। अकरकरा, ब्राह्मी और शंखाहुली का काढ़ा बनाकर मिर्गी के रोगी को देने से मिर्गी आना बंद हो जाती है। 15 ग्राम पिसा हुआ अकरकरा और 30 ग्राम बीज निकले हुए मुनक्का को मिलाकर उसकी चने के आकार के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसे सुबह और शाम को एक-एक गोली लेने से और पिसे हुए अकरकरा को नाक में सूंघने से मिरगी का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। ब्राह्मी के साथ इसका काढ़ा बना करके पिलाने से मिर्गी में लाभ होता है। अकरकरा को बारीक पीसकर थोड़ा-सा शहद मिलाकर सूंघने से मिर्गी दूर होती है।
  26. मुख दुर्गंध (मुंह से बदबू आने पर) - अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूड़ों के सभी विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है।
  27. शीतपित्त - अकरकरा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से शीत पित्त का विकार दूर होता है।
  28. सफेद दाग (श्वेत कुष्ठ) - अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर श्वेत कुष्ठ पर लगाने से कुष्ठ थोड़े समय में ही अच्छा हो जाता है।
  29. सिर के दर्द में- यदि सर्दी के कारण से सिर में दर्द हो तो अकरकरा को मुंह में दांतों के नीचे दबायें रखें। इससे शीघ्र लाभ होगा। बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम अकरकरा का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से लगातार एक समान बने रहने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है। अकरकरा को जल में पीसकर गर्म करके माथे पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  30. हिचकी - एक ग्राम अकरकरा का चूर्ण 1 चम्मच शहद के साथ चटाएं।
  31. हृदय रोग - अर्जुन की छाल और अकरकरा का चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में सुबह और शाम आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कंपन और कमजोरी में लाभ होता है। कुलंजन, सोंठ और अकरकरा की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। फिर इसे पीने से हृदय रोग मिटता है।
  32. काली मिर्च और लंबी काली मिर्च के साथ अकरकरा की जड़ का पाउडर सामान्य सर्दी ठीक करने में मददगार होता है। इसमें एंटीवायरल गुण होते हैं जो फ्लू के सभी लक्षणों को कम करता है और नाक बंद होने को कम करता है।
  33. करकरा, माजूफल, नागरमोथा, फूली हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें। इससे नियमित मंजन करते रहने से दांत और मसूड़ों के समस्त विकार दूर होकर दुर्गंध मिट जाती है।
  34. अकरकरा नपुंसकता और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए बेहतर उपाय है और इससे ब्लड प्रेशर भी नहीं बढ़ता है। इसके अलावा साइलेंडाफील की तुलना में इसके कम दुष्प्रभाव हैं। इसे अकेले उपयोग किए जाने पर कुछ सप्ताह के बाद अकरकरा की प्रभाविता कम हो जाती है।
  35. सेक्सुअल समस्याओं दूर करने का रामबाण इलाज है अकरकरा, अकरकरा इच्छा को उत्तेजित करता है और जननांगों की ओर खून के बहाव को बढ़ाता है। अकरकरा कामोत्तेजक, कामेच्छा उत्तेजना और स्पर्मेटोजेनिक क्रियाएं होती है। यह एंड्रोजन के स्राव को प्रभावित करता है और उसके बनने को बढ़ाता है। अकरकरा प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। स्पर्म की संख्या बढ़ाता है और पुरुषों की कामेच्छा में बेहतर सुधार लाता है।
  36. अकरकरा जेनिटल्स में खून के प्रवाह को बढ़ाता है। जिससे कामेच्छा बढ़ जाती है। इजेकुलेशन में देरी होती है और पुरुषों की कामेच्छा में कमी को ठीक करता है। यह वीर्य के रिटेंशन को भी तेज करता है।
अकरकरा के नुकसान
अकरकरा बहुत ही लाभदायक जड़ी बूटी है। लेकिन असावधानी और बिना जानकारी इसका उपयोग करने से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जैसे- अत्यधिक लार गिरना, मुंह में छाला, जलन महसूस होना, सीने की जलन, एसिडिटी।


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चमत्कारी त्रिफला और सेवन के नियम



त्रिफला से कायाकल्प


त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड़, बहेड़ा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है। जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार है त्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एंटीबायोटिक व एन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेनिसिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोजमर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्तदोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक, जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बे, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च करने के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोकता है।

त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है। आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरूर किया होगा। पर बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है इससे अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है। बस जरूरत है तो इसके नियमित सेवन करने की। क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है।

इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा, तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सौंदर्य निखरेगा, पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा, छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढ़ेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवा शक्ति सा परिपूर्ण लगेगा।

दो तोला हरड बड़ी मंगावे।तासू दुगुन बहेड़ा लावे।।
और चतुर्गुण मेरे मीता।ले आंवला परम पुनीता।।
कूट छान या विधि खाय।ताके रोग सर्व कट जाय।।
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला)
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफला बनाना है तो  20 ग्राम हरड़+40 ग्राम बहेड़ा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनों को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
  1. हरड़ -  हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली, पीलिया ,शोध ,मूत्राघात, दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्ण रोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा। त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड़, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग औषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गई है
  2. बहेड़ा - बहेड़ा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है, लगाने में ठंडा व रूखा है, सर्दी, प्यास, वात, खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेड़ा मन्दाग्नि, प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेड़ा न मिले तो छोटी हरड़ का प्रयोग करते है
  3. आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती। आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्त रोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आंवला और अनार पित्तनाशक है। आंवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाला होता है।
कुछ विशेषज्ञों की राय है कि तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) समान अनुपात में होने चाहिए। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए। कुछ विशेषज्ञों की राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड़, बहेड़ा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ करने वाला) होता है। ऋतु के अनुसार सेवन विधि :-
  • 1.शिशिर ऋतु में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला का आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
  • 2.बसंत ऋतु में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।
  • 3.ग्रीष्म ऋतु में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला का चौथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।
  • 4.वर्षा ऋतु में (14 जुलाई से 13 सितंबर) 5 ग्राम त्रिफला का छठा भाग सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
  • 5.शरद ऋतु में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।
  • 6.हेमंत ऋतु में (14 नवंबर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरद पूर्णिमा की रात को चांदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को कांच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

त्रिफला लेने का सही नियम
  • सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं।क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamin, iron, calcium, micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए।
  • सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं।
  • रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण होता है।
  • रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।
बड़े व्यक्ति 10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करें। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है।

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानी : दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए। घी और शहद कभी भी समान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक जहर होता है । त्रिफला चूर्ण के सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कॉफी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये। त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखें और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प
कायाकल्प हेतु नींबू लहसुन, भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है।आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?
  • एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
  • दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता है।
  • तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ़ जाती है।
  • चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।
  • पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
  • छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
  • सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफेद से काले हो जाते हैं।
  • आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धावस्था से पुन: यौवन लौट आता है।
  • नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
  • दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।
  • ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।
सेवन से लाभ 
  • औषधि के रूप में त्रिफला रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चूर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
  • अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।
  • इसके सेवन से नेत्र ज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
  • सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुंह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
  • शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
  • एक चम्मच बारीक त्रिफला चूर्ण, गाय का घी 10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आंखों का मोतियाबिंद, कांचबिंदु, दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
  • त्रिफला के चूर्ण को गोमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।
  • त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ी बूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देते हैं।
  • चर्म रोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
  • एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाएँ और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुंह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
  • त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिलाकर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएं कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द की समस्या दूर हो जाती है।
  • त्रिफला एंटीसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इसका काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
  • त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
  • मोटापा कम करने के लिए त्रिफला को गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चर्बी कम होती है।
  • त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
  • त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गर्मी से हुए त्वचा के चकत्ते पर लगाने से राहत मिलती है।
  • 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
  • 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
  • टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
  • त्रिफला दुर्बलता का नाश करता है और स्मृति को बढ़ाता है। दुर्बलता का नाश करने के लिए हरड़, बहेड़ा, आँवला, घी और शक्कर मिलाकर खाना चाहिए।
  • त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफ दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांति आ जाती है।
  • त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिलाकर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधा शक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, कांचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
  • डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
  • दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।









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मधुराष्टकं Madhurashtakam




madhurashtakam

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

अधर, वदन नयना अति मधुरा, स्मित मधुर, हृदय अति मधुरा
चाल मधुर, सब कुछ मधु मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

चरित मधुर, वचनं अति मधुरा, भेष मधुर, वलितं अति मधुरा
चाल मधुर अति, भ्रमण भी मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

वेणुर्मधुरो रेनुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

मधुरं वेणु , चरण रज मधुरा, पाद पाणि दोनों अति मधुरा
मित्र मधुर मधु, नृत्यं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

गायन मधुर, पीताम्बर मधुरा, भोजन मधुरम, शयनं मधुरा
रूप मधुरतम, तिलकं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

करम मधुरतम, तारण मधुरा, हरण, रमण दोनों अति मधुरा
परम शक्तिमय मधुरम मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीचीर्मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

कुसुम माल, गुंजा अति मधुरा, यमुना मधुरा, लहरें मधुरा
यमुना जल, जल कमल भी मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

मधुर गोपियाँ, लीला मधुरा, मिलन मधुर भोजन अति मधुरा
हर्ष मधुरतम, शिष्टं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फ़लितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

ग्वाले मधुरम, गायें मधुरा, अंकुश मधुरम, सृष्टिम मधुरा
दलितं मधुरा, फलितं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

- श्री श्री वल्लभाचार्य


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