विधि तुच्छ बातो पर ध्यान नहीं देती



 "विधि तुच्छ बातो पर ध्यान नहीं देती"

("Law gives no importance to trifles" De mini mis non curat lex) इस कहावत का अर्थ है कि विधि उन बातों पर ध्यान नहीं देती जो अपने शाब्दिक अर्थ में तो अपराध की श्रेणी में जाते हैं परन्तु उनमें क्षति नाममात्र की होती है जिसके लिए अपराध का संज्ञान करना भी न्यायोचित नहीं कहा जा सकता। उदाहरणतः दूसरे व्यक्ति की दवात में कलम डुबोना, चोरी करना होगा, किसी के पापड़ के टुकड़े करना रिष्टि होगी, दूसरों के पास से घोड़ा दौड़ा कर निकालना और धूल से ढक देना हमला होगा, गाड़ी में चढ़ते हुए को धक्का देना चोट होगी। इसी प्रकार के अनेक कार्य हैं जिनको किये विना व्यक्ति समाज में रह ही नहीं सकता।


धारा 95 के अनुसार- "कोई बात इस कारण से अपराध नहीं है कि उससे कोई हानि पहुँचती है या पहुँचाने का आशय किया गया है या पहुँचाने की सम्भावना का ज्ञान है, यदि वह इतनी तुच्छ है कि मामूली समझ और स्वभाव वाला कोई व्यक्ति उसकी शिकायत नहीं करेगा।"

धारा 95 के लागू होने के लिए निम्नलिखित बातें आवश्यक है-

  1. विचाराधीन कार्य अपराध होना चाहिए, तथा
  2. वह इतना तुच्छ हो कि साधारण बुद्धि वाला व्यक्ति भी उसकी शिकायत न करे।

( इस उपवन्ध पर टिप्पणी करते हुए हुदा का कथन है कि "कोई भी समझदार व्यक्ति तुच्छ बातों की शिकायत नहीं करना चता। कोई व्यक्ति भीड़ से भरी सड़कों पर किसी अन्य के अँगूठों को दवाये विना अथवा किसी को धक्का दिये बिना नहीं चल सकता और कोई समझदार व्यक्ति इन तुच्छ बातों की शिकायत भी नहीं करेगा। इस प्रकार यदि देखा जाये तो यह उपबन्ध साधारण व्यक्तियों के लिए अनावश्यक ही है। परन्तु कुछ सनकी होते हैं जिनकी सनकों के संरक्षण के लिए यह औपचारिक उपवन्ध करना पड़ता है। प्रत्येक छोटा कार्य तुच्छ नहीं होता। कोई कार्य तुच्छ है अथवा नहीं यह उसकी प्रकृति तथा किये जाने पर निर्भर करता है।




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चुरायी हुई सम्पत्ति प्राप्त करना - Receiving of stolen property



भा० द० सं० की धारा 410 चुराई हुई संपत्ति की परिभाषा प्रस्तुत करती है जिसके अनुसार - "वह संपत्ति जिसका कब्जा चोरी द्वारा या उद्यापन द्वारा या लूट द्वारा अंतरित किया गया है और वह संपत्ति जिसका आपराधिक दुर्विनियोग किया गया है या जिसके विषय में आपराधिक न्यास-भंग किया गया है, "चुराई हुई संपत्ति" कहलायेगी, चाहे वह अंतरण या वह दुर्विनियोग या न्यास-भंग भारत के भीतर किया गया हो या बाहर । किन्तु यदि ऐसी संपत्ति इसके पश्चात ऐसे व्यक्ति के कब्जे में पहुँच जाती है जो कब्जे के लिए वैध रूप से हकदार है तो यह चुरायी हुई संपत्ति नहीं रह जाती।

चान्द मल वनाम राजस्थान राज्य (1976, Cr. L.J.679) के मामले में यह मत व्यक्त किया गया है कि चुरायी हुई संपत्ति के अन्तर्गत केवल ऐसी सम्पत्ति आती है जिसका कब्जा चोरी द्वारा या उद्यापन द्वारा या लूट द्वारा या आपराधिक दुर्विनियोग द्वारा हस्तांतरण हुआ हो।"

चुराई हुई संपत्ति को बेईमानी से प्राप्त करना -धारा 411 के अनुसार- "जो कोई किसी चुराई हुई संपत्ति को यह जानते हुए या विश्वास करने का कारण रखते हुए कि वह चुरायी हुई सम्पत्ति है, बेईमानी से प्राप्त करेगा या रखेगा वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी या जुर्माने या दोनों से दण्डित किया जायेगा।"



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राजद्रोह - Sedition



धारा 124-क के अनुसार- "जो कोई बोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा या संकेतों द्वारा या दृश्यरूपण द्वारा या अन्यथा भारत में विधि द्वारा स्थापित सरकार के प्रति घृणा या अवमान पैदा करेगा या पैदा करने का प्रयास करेगा या अप्रीति उत्पन्न करने का प्रयास करेगा, वह आजीवन कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या तीन वर्ष तक के कारावास से जिसमें जुर्माना जोड़ा जा सकेगा या जुमनि से दण्डित किया जायेगा।" संक्षेप में राजद्रोह के अपराध के निम्नलिखित आवश्यक तत्व हैं-

  1. अभियुक्त का आशय राज्य सरकार के प्रति घृणा या अवमान फैलाना,
  2. विधि द्वारा स्थापित सरकार के विरुद्ध घृणा, उपेक्षा उत्पन्न करना या द्वेष उत्तेजित करना या उसका प्रयास करना,
  3. ऐसा कार्य वोले गये या लिखे गये शब्दों द्वारा, संकेतों द्वारा या दृश्यरूपण द्वारा किया जाये।

धारा के साथ तीन स्पष्टीकरण भी दिये गए हैं, जिनके अनुसार द्वेष से तात्पर्य गैर भक्ति और शत्रुता की भावना भी सम्मिलित है। उपर्युक्त प्रकार के कार्य किये बिना सरकार के प्रति असहमति प्रकट करना या आलोचना करना अपराध नहीं है।




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