इन्टरनेट का उपयोग दिनो दिन बढ़ रहा है, और आम तौर पर लोग इन्टरनेट की अभासी दुनिया मे अपने नये सम्बन्ध (दोस्ती-विवाह) आदि जोड़ने लगे है। चिट्ठाकारी से जुड़ाव के कारण मैने विभिन्न लोगो से मिलना हुआ है, उनसे मिलना किसी न किसी प्रकार की नजदीकी दे जाती है। हिन्दी चिट्ठकारी से जुड़ाव वर्ष 2006 मे हुआ, तब से आज तक सर्वश्री श्ाशि सिंह, अमिताभ त्रिपाठी, शैलेश भारतवासी, अरूण अरोड़ा, पंकज तिवारी, चंदन चौहान, समीर लाल, रामचन्द्र मिश्र, नीशू तिवारी जैसे ब्लागरो से इलाहाबाद मे अपने घर या स्टेशन पर मिल चुका हूँ। इलाहाबाद से बाहर 2007 मे दिल्ली यात्रा के दौरान मैथली जी, अरूण आरोड़ा, हिन्द युग्म की पूरी टीम सहित अनेको लोगो बिना हिचक और बिना झिझक मिला, तो लौटते हुये आगरा मे प्रतीक पांडेय और कानपुर मे अनूप शुक्ल जी से मिलना हुआ। वर्ष 2009 जबलपुर के सर्वश्री विजय तिवारी किसलय, संजीव वर्मा सलिल, गिरीश बिल्लोरे, महेन्द्र मिश्र, आदि से उनके गृह पर तथा अन्य ब्लागरो से होटल सत्य आशोका होटल मे ब्लागरो से भी मिलना हुआ। हिन्दी ब्लागरो से मिलना किसी हद तक अपना पन दिया कि किसी से भी मिलने मे कोई हिचक नही हुयी।
अगर हम हिन्दी ब्लागर से अतिरिक्त आर्कुट और याहू चैट मैसेन्जर की बात करे तो यहाँ पर बात बिल्कुल भिन्न हो जाती है। आर्कुट के जरिये सर्व श्री दिल्ली मे , आलोक सिंह, सुरेन्द्र सुमन और इलाहाबाद मे आशुतोष मिश्र तथा चन्द्र वैभव सिंह आदि से भी मिला जो बाद मे ब्लागर बने मित्रो से मिलना हुआ है, आज इलाहाबाद मे अनेको आर्कुट दोस्तो से व्यक्तिगत मिलना हो चुका है लगभग उन्ही से मिलना हुआ जो अपने विचार के होने के कारण अपने आप आत्मीय सम्बन्ध की संगरचना कर देते है।
याहू चैट का उपयोग मै कम ही करता हूँ किन्तु आज से दो वर्ष पूर्व त्रिपुरा के त्रिपुरा निवासी एक सज्जन से मेरी मित्रता हुई और हम तब से लगातार सम्पर्क मे थे, हाल मे 6 माह पूर्व कालका ट्रेन से कोलकाता से शिमला की ओर सपरिवार जा रहे थे उन्होने कहा भाई अगर हो सकेगा तो मिलने की कोशिश होगी, और इसी के साथ उनसे तथा उनके परिवार से मिलना हुआ। यह तक इन्टरनेट की दुनिया के किसी इंसान के साथ मिलना आज तक सुखद ही रहा किन्तु होली के 2 दिन पूर्व याहू के एक मित्र ने मुझे सुचित किया कि मै इलाहाबाद आ रहा हूँ, इलाहाबाद घूमना चाहता हूँ, मैने भी कहा कि आओ अगर मेरे पास समय होगा तो जरूर घुमा दूँगा। मै उसे पिछले 2 माह से सम्पर्क मे था, अपना नाम मणि भूषण पांडेय बताया था, मैने पूछा कि यह तुम्हारा वास्तविक नाम है तो उसने हाँ मे उत्तर दिया। इन दो माहो मे काफी घंनिष्ठता भी आ गई थी, दोस्ती भी ऐसी चीज होती है जो एक दूसरे को नजदीक ले ही आती है। मै कभी भी सच्चाई छिपाने की कोशिश नही करता हूँ, कम से कम जिनसे मिला जा सकता है उनसे तो कभी नही।
वो लड़का इलाहाबाद जक्शन पर मुझे मिलता है, एक दिन पूर्व ही मैने इलाहाबाद से कोलकाता तक कीशाम की रिर्जवेशन टिकट मैने ले रखा था, मेरे पास इलाहाबाद घुमाने के लिये 6-8 घंटे थे, मै अपने घर मे बता दिया था कि मै अमुख दोस्त को इलाहाबाद घुमाने के लिये ले जा रहा हूँ। उसके बैग मे लॉक नही था सो उसे हम लॉकर रूम मे नही रख सकते थे, मैने उसके बैग को अपने एक दोस्त के घर रखवा दिया और संगम की ओर निकल दिये। उसने मुझे पहले ही बता दिया था कि वह स्नान नही करेगा इसलिये मै घर से ही स्नान करने निकला था ताकि मन्दिर आदि मे दर्शन कर सकूँ, वह इलाहाबाद के सभी प्रमुख देव स्थानो पर गया किन्तु कहीं दर्शन नही किया।
करीब 12 बज चुके थे, अब हमारे बीच विभिन्न मुद्दो पर चर्चा भी हो चुकी थी, तभी किसी बात पर धर्म की बात भी शुरू हुई। तो उसके मुँह से यह शब्द सुनकर कि मै मुसलमान हूँ और मेरा नाम जहॉंगीर खान है, मै हतप्रभ हुआ। यह सुनना बहुत ही कठिन था क्योकि जिसे मै दो माह से अच्छी तरह से जान रहा हूँ वो मुझे ऐसी बात बताये तो हतप्रभ होना स्वाभाविक भी था। मैने उसे बहुत डांटा, मन था कि दो चार ठो रसीद भी दूँ किन्तु अतिथि समझ कर मै उसके साथ कोई भी दुराभाव नही करना चाहता था। मुझे दुख इस बात का था कि उसने मिलने तक झूठ का सहारा लेता रहा, जब आप किसी से मिल रहे हो तो निश्चित रूप से आपको अपनी वास्तविक स्थिति के साथ मिलना चाहिये।
मै बहुत ही ज्यादा परेशान था क्योकि उस यह एक बात मुझे झकझोर के रख दी। वो 5 मिनट से हिन्दू से मुसलमान बन सकता था तो उसके आतंकी होने सम्भावना भी हो सकती थी। मैने जिस घर मे विश्वास के साथ उसका समान रखवाया था, अगर उसके समान मे कुछ भी हो सकता था। मैने कभी किसी के विश्वास से खेलने की कोशिश नही किया। इस वाक्ये के बाद तो किसी भी इंटरनेट के बंदे से मिलने से डर लगता है, आज नाम कुछ हो और कुछ देर बाद बोले मै ओसामा हूँ। किसी के बारे मे कुछ भी अनुमान लगा लेना उचित नही है। अब जिनसे भी मिला बहुत अच्छा व्यवहार मिला किन्तु इस प्रकार की घटना मन मे संसय उत्पन्न कर जाती है।
ऐसा ही दिल्ली मे एक मित्र है जिन्होने 2007 आर्कुट पर एक लड़की के साथ शादी कि किन्तु वह शादी बहुत दिनो तक नही चल सका और वह विवाह तलाक मे पणित हो गया। इस प्रकार की घटनाये एक तरफ तो अविश्वास पैदा करती है और एक बार भी अविश्वास सभी के प्रति अविश्वास की धारणा बना देती है और 1-2 वर्ष पूर्व मुम्बई मे कौशाम्बी हत्या कांड भी इन्टरनेट और याहू आर्कुट की ही देन रही है।
मै तो अब स्वयं सावधानी रखूँगा आप भी रखे क्योकि दुनिया मे अच्छे लोग है तो बुरे भी बहुत ज्यादा है, दोस्ती यारी मे समझदारी भी आवाश्यक है।
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